TS 10th Class Hindi Important Questions 12th Lesson धरती के सवाल अंतरिक्ष के जवाब

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TS 10th Class Hindi 12th Lesson Important Questions धरती के सवाल अंतरिक्ष के जवाब

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्अकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चाए पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
टेसी थॉमस का जीवन हमें किस तरह प्रेरित करता है?
उत्तर :
भारत की “प्रथम मिज़ाइल वुमन” और अग्निपुत्री नाम से विख्यात हैं टेसी थॉमस। उनका आदर्शमय जीवन सबके लिए प्रेरणादायक रहा है। कठोर परिश्रम, लगन, लक्ष्य प्राप्ति तक चैन न लेने का महान आशय आदि उनको इतनी ख्यातिवान बना चुके हैं। उनका सफल जीवन ही पढाई में श््धा, मेहनत, मनपसंद विषय में जी – जान लगा देने की सूचना, सफलता प्राप्त करने तक कमर – कसकर तैयारी करने की हमें प्रेरणा देता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
समाज को शिक्षित करने में छात्रों की भूमिका पर ए.पी.जे. अबुल कलाम के विचारों पर प्रकाश खलिए।
उत्तर :
भारत के पूर्व राष्ट्रपति थे अब्दुल कलाम जी। वे कर्मठ, निष्कामी और सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। आप सादगी, ईमानदारी, अध्यवसायी मेहनत की प्रतिमूर्ति थे। महानगुणों की खान कलाम जी पूरी दुनिया के आदर्श थे। दुनिया के मानचित्र में आपने पवित्र भारत को उच्चतम स्थान दिलाया। सब भारतवासी कलाम जी को अपना आदर्श मानसे है।

समाज को शिक्षित करने में कलाम जी ने कुछ प्रभावशाली विचार व्यक्त किये हैं। वे है – आज का छात्र कल का नागरिक है। अपने प्रति ईमानदारी और दूसरों के प्रति आदर का गुण रखना आदर्श छात्र का लक्षण है। छात्रों को पढाई में निरंतर परिश्रमी रहना चाहिए। जीवन में आगे बढने के लिए एक लंक्य को बना लेना चाहिए। लक्ष्यप्राप्ति के लिए आवश्यक ज्ञान और अनुभव वे प्राप्त करें। बाधाओं का सामना करते हुए, उन पर विजय प्राप्त करें। नैतिक मूल्यों को अपनाना चाहिए। फुरसत के समय गरीब और सुविधाओं से वंचित बच्चों को पढ़ाने का काम करना चाहिए। पौधे लगाकर पर्यावरण को संतुलित करना चाहिए। साथ ही सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार उन्मूलन में भी छात्रों का सहयोग होना चाहिए। ऐसे महान गुणों से समाज को शिक्षित करने में छात्र महत्बपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे।

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प्रश्न 2.
टेसी थॉमस के जीवन से हमें कैसी प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :

  • टेसी थॉमस के जीवन से हमें ये प्रेरणाएँ मिलती हैं।
  • भारतीय संस्कृति की छाप को अपनाना। सादगी जीवन बिताना।
  • मेहनत, लगन और दृढ़ – निश्चय से सफलता के नये शिखर तय करना।
  • ध्यापकों के सहयोग और सची लगन से सफ़लता की बुलंदियों को प्राप्त करना।
  • गुरु भक्ति से रहना। गुरु को आदर कंरना।
  • जो भी पढ़ें ध्यान से पढ़ें। मेहनत करें और लक्ष्य प्राप्त करने तक रुके नहीं।
  • जो हमें पसंद है उसमें अपना जी – जान लगा देना। कमर कसकर तैयार करना।

प्रश्न 3.
‘बाल मज़ूरी और भ्रष्टाचार’ हमारे देश की बहुत बड़ी समस्याएँ है। इनके निर्मूलन के लिए कलाम जी ने जो सुझाव दिये हैं उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘बाल मजदूरी और भ्रष्टाचार’ हमारे देश की बहुत बड़ी समस्याएँ है। इनके निर्मूलन के लिए कलाम जी ने जो सुझाव दिये है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति कर्मठ, निष्कामी और प्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता डॉ.ए.पी. जे अब्दुल कलाम जी बाल मज़ंदूरी को समूल समाप्त करने की महत्वाकांक्षा रंखते थे। उनके विचार में बाल मज़ूरी करवाना एक महान अपरांध है। संविधान के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है। इसलिए बच्चें अपनी पढ़ाई जारी रखने में खुद रुचि दिखायें अभिभावकों को नशाखोरी से मुक्ति दिलाने के अभियान चलायें। प्रौढ शिक्षा के माध्यंम से शिक्षित करने की व्यवस्था करें। ऐसा करने से बच्चों के माता – पिता ही नही बच्चों से काम लेनेवालों में भी परिवर्तन आकर आत्मनियंत्रण की प्रवृति का विकास होगा। कलाम जी के ये प्रभावशाली सुझाव सचमुच असरदार और स्फूर्तिदायक हैं। इनके अमल करने से भारत देश में बाल मज़दूरी की समस्या समूल दूर हो जायेगी। भारत देश सुसंपन्न हो संसार में अपना महत्व बनाये रख सकेगा।

भ्रष्टांचार के उन्मूलन के लिए कलाम जी ने सुझाव दिया है कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए व्यापक आंदोलन की आवश्यकता है। यह आंदोलन अपने घर और विद्यालय से ही आरंभ करना होगा। भ्रष्टाचार उन्मूलन में तीन लोग अधिक सहायक हो सकते है- मात्, पिता और प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक। यदि ये तीनों बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाते हैं तो इसके बाद जीवन में शायद ही कोई उनको हिला पाएगा। हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम सदैव ईमानदार एवं भ्रष्टाचारमुक्त जीवन का निर्वाह करेंगे और दूसरों के लिए आदर्शवान बने रहेंगे।

प्रश्न 4.
टेसी थॉमस अग्नि 5 कार्यक्रम की निर्देशक कैसे बनी ? उनकी इस सफलता के कारणों पर अपने विचार लिखिए ।
उत्तर :
टेसी थॉमस की शिक्षा-दीक्षा केरल प्रांत के अलप्पुा में हुई। यहीं पर उनका जन्म हुआ था। उन्हें ‘हाथी वाला स्मारक.’ भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के समय कॉलेज की ओर से दिया गया था। उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने की चाह थी। वे अंतरिक्ष के सपने देखती थी। यही कारण रहा कि उन्होंने गणित और विझान विषय को अपने तन-मन में बसा लिया। इसमें उनकी पाठशाला (अलप्पुझा) और अध्यापको का बहुत बड़ा योगदान रहा। टेसी थॉमस एक महिला वैज्ञानिक हैं। रक्षा अनुसंधान और विज्ञान को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था। मगर टेसी जी ने अपने मेहनत लगन और दृढ़ निश्चय से इस क्षेत्र में मेहनत की। निरंतर श्रम से वो रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ) के अग्नि-5 कार्यक्रम की निदेशक बनी। उन्होंने देश के किसी मिज़ाइल प्रॉजेक्ट की पहली महिला प्रमुख बनने का गौरव प्राप्त किया। इसलिए उन्हें मिजाइल वुमेन कहते हैं।

टेसी थॉमस अब्दुल कलाम के बारे में कहती हैं कि “आज हमारे यहाँ जब भी अंतरिक्ष विज्ञान और मिजाइल की बात की जाती है, तो सभी के मस्तिष्क में ए.पी.जी. अब्दुल कलाम का नाम गूँजता है। उन्होंने दुनिया के मान चित्र में भारत को जो स्थान दिलाया है, उसके लिए भारतवासी उनके ऋ्रृणी हैं। अतः सचे अर्थों में वें देश के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के आदर्श हैं। में गर्व के साथ कहना चाहती हूँ कि वे मेरे गुरु हैं। उन्होंने मुझे प्रेरणा के अग्नि पंख .दिये हैं। वे महान थे, महान हैं और महान रहंगे। उन्हे में अपना आदर्श मानने में गर्व अनुभव करती हूँ। जहाँ कड़ी मेहनत, लगन और दृढ़ा निश्चय होते हैं, वहाँ सफलता अवश्य मिलती है। टेसी थॉमस के जीवन से हमें यहीं संदेश मिलता है। लक्ष्य प्राप्ति तक नहीं रुकना चाहिए। निरंतर प्रयत्न करते रहना चाहिए। जो भी पढ़े ध्यान से पढ़ना चाहिए।

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प्रश्न 5.
राष्ट्र को विकास और समृद्धि के पथ पर ले जाने के लिए ए.पी.जे. अन्दुल कलाम जी ने छात्रों को क्या सुझ्काव दिये ? अपने शब्दों में उत्तर लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्र को विकास और समृद्धि के पथ पर ले जाने के लिए ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने छात्रों को निम्न लिखित सुझाव दियेः

  • युवा शक्ति को पूर्ण रूप से विनियोग में लेना चाहिए। महिला साक्षरता दर बढ़ाना चाहिए।
  • समाज की प्रमुख समस्याओं के बारे में महिलाओं को बताना चाहिए जिनसे आजकल की महिलाओं को संकट का सामना करना पड रहा है। हर एक छात्र कम से कम पाँच महिलाओं को शिक्षित करें।
  • छ़: से चौदह वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा पाने के अधिकार को जारी रखना चाहिए।
  • सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए ब्यापक आंदोलन आरंभ करना है।
  • माता-पिता तथा प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक बच्चों को सचाई और ईमानदारी का पाठ पढाएँ।
  • छात्रों में अपने प्रति ईमानदारी और दूसरों के प्रति आदर का गुण जरूर होना चाहिए।
  • छात्र जिस कक्षा में पढते हैं उसमें आगे बढ़ने खूब परिश्रम करना चाहिए।
  • छात्र अधिक से अधिक पेड़ – पौधे लगायें।

प्रश्न 6.
एक छात्र के रूप में आप विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर :
एक छात्र के रूप में विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने में में इस प्रकार योगदान दे सकता है-

  • मैं खूब परिश्रम करूँगा। मैं अपने जीवन में एक लक्ष्य को बना लूंगा।
  • उस लक्ष्य को सफल बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान और अनुभव प्राप्त करूँगा।
  • बाधाओं पर विजय प्राप्त करूँगा। नैतिक मूल्यों को अपनाऊँगा।
  • अपने प्रति ईमानदारी और दूसरों के प्रति आदर जैसा महत्वपूर्ण गुण रखूँगा।
  • भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने में योगदान दे सकूँगा।
  • सुविधाओं से वंचित बच्चों को पढ़ाने का काम करूँगा।
  • अधिक से अधिक पौधे लगाऊँगा।

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प्रश्न 7.
बाल मज़दूरी की समस्या की समाप्ति के लिए ए.पी.जे. अब्ुुल कलाम के सुझावों पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
भारत के पूर्व राष्ट्रपति कर्मठ, निष्कामी और प्रसिद्ध विज्ञानवेत्ता डॉ.ए.पी. जे अब्दुल कलाम जी बाल मजदूरी को समूल समाप्त करने की महत्वाकांक्षा रखते थे। उनके विचार में बाल मज़ूूरी करवाना एक महान अपराध है। संविधान के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है। इसलिए बच्चे अपनी पढ़ाई जारी रखने में खुद रुचि दिखायें अभिभावकों को नशाखोरी से मुक्ति दिलाने के अभियान चलायें। प्रौढ शिक्षा के माध्यम से शिक्षित करने की व्यवस्था करें। ऐसा करने से बच्चों के माता – पिता ही नहीं बच्चों से काम लेनेवालों में भी परिवर्तन आकर आत्मनियंत्रण की प्रवृति का विकास होगा। कलाम जी के ये प्रभावशाली सुझाव सचमुच असरदार और स्फूर्तिदायक हैं। इनके अमल करने से भारत देश में बाल मजदूरी की समस्या समूल दूर हो जायेगी। भारत देश सुसंपन्न हो संसार में अपना महत्व बनाये रख सकेगा।

II. अधिव्यदितनकनाजकता (4 Marks Questions)

प्रश्न 1.
कलाम जी के बचपन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
कलाम जी बचपन में बहुत गरीब परिवार से थे। वे तमिलनाडु के रामेश्वरम की गलियों में समाचार पत्र बेचते थे। वे निर्धन थे। बचपन में उन्हें शिक्षा के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ा।

प्रश्न 2.
बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए कलाम जी ने क्या उपाय बताए?
उत्तर :
बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए कलाम जी ने लोगों को साक्षर बनाने को कहा है। उनका कहना है कि हंमें महिलाओं की साक्षरता पर विशेष बल देना चाहिए। हम देखते हैं कि जिन क्षेत्रों में महिला साक्षरता अधिक है वहाँ जनसंख्या वृद्धि दर कम है। वे कहते हैं कि प्रत्येक छात्र को कम से कम पाँच महिलाओं को शिक्षित करना चाहिए। साथ ही आप उन्हें समाज की उन प्रमुख समस्याओं के बारे में भी बतायें, जिनसे आजकल की महिलाओं को संकट का सामना करना पड़ रहा है।

प्रश्न 3.
महिला साक्षरता की क्या आवश्यकता है?
उत्तर :
महिलाएँ परिवार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। परिवारों को जोड़कर ही समाज बनता है। यदि महिलाएँ सक्षर होंगी तो घर की समस्याओं का अंत हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो समाज का विकास होगा। जनसंख्या दर को धीमा करने के लिए महिलाओं का साक्षर होना आवश्यक है। यदि महिला शिक्षित होगी तो वह अपने पूरे परिवार को शिक्षित बना सकती है। वैसे भी माँ. को ही पहली अध्यापिका होने का गौरव प्राप्त है। इससे महिलाएँ रोजगार कर सकती है। वे नौकरी भी कर सकती हैं। इससे महिलाओं के विकास को भी बल मिलेगा।

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प्रश्न 4.
भारत में प्रमुख समस्याएँ क्या-क्या हैं?
उत्तर :
भारत में अनेक प्रकार की समस्याएँ हैं। जनसंख्या समझ्या उसमें प्रमुख है। इस समस्या के साथ अनेक समर्याएँ भी जुड़ी हुई हैं। रोजगार की समस्यम का मूल कारण बढ़ती जनसंख्या ही है। अशिक्षा भी भारत की प्रमुख समस्या है। मज़दूरों की हालत भी दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। पर्यावरण में प्रदूषण तेजी से फैलता जा रहा है। पीने के पानी की समर्या भी बढ़ गई है। भ्रष्टाचार भी भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। इसके कारण हमारा विकारा सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।

प्रश्न 5.
भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए कलामजी ने क्या-क्या सुझाव दिये हैं?
उत्तर :
भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए कलाम जी ने सुझाव दिया है कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए व्यापक आंदोलन की आवश्यकता है। यह आंदोलन अपने घर और विद्यालय से ही आरंभ करना होगा। भ्रष्टाचार उन्मूलन में तीन लोग अधिक सहायक हो सकते हैं- माता, पिता और प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक। यदि ये तीनों बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाते हैं तो इसके बाद जीवन में शायद ही कोई उनको हिला पाएगा। हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम सदैव ईमानदार एवं भ्रष्टाचारममक्त जीवन का निर्वाह करेंगे और दूसरों के लिए आदर्शवान बने रहेंगे।

प्रश्न 6.
कलाम जी सद्गुण संपन्न हैं। आप उनमें से किस गुण का पालन करना चाहते हैं?
उत्तर :
कलाम जी में अनेक गुण हैं, जैसे- सादगी, ईमानदारी, अध्यवसायी, मेहनती इत्यादि। मैं उनकी तरह ईमानदार बनना चाहूँगा। ईमानदारी इंसान को बहुत आगे ले जाती है। ईमानदार इसान समाज के विकास में सहायक होता है। ईमानदारी का पालन करने से इसका प्रसार होता है। इससे समाज स्वस्थ बनता है। इसके माध्यम से हम और समाज दोनों सुखी रह सकते हैं।

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प्रश्न 7.
बाल मज़दूरी दूर करने के लिए अपनी ओर से कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर :
बाल मजदूरी कराना एक अपराध है। इसे रोकने के लिए कानून को और कड़ा बनाना पड़ेगा। कितु बालक अपनी घर की परेशानी के कारण मजदूरी करने जाते हैं। यदि हम भारत से गरीबी को मिटा दें तो बाल मजदूरी अपने आप समाप्त हो जाएगी। बच्चो के लिए शिक्षा, स्वारश्य और रहने-खाने की व्यवस्था मुफ्त होनी चाहिए। जो बच्चे ऐसे आवासीय पाठशालाओं में पढ़ते हैं उनके माता-पिता को भी प्रोत्साहन स्वरूप धन या आवश्यक सामग्री मिलनी चाहिए। बाल मजदूरी रोकने के लिए पोस्टर आदि लगाकर लोगों को जागरूक करना चाहिए।

प्रश्न 8.
भ्रष्टाचार उन्मूलन में पाठशाला का क्या महत्व है?
उत्तर :
भ्रष्टाचार उन्मूलन में पाठशाला का बहुत महत्व है। पाठशाला बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाते हैं। हमें अनुशासन में रहने की सीख पाठशाला से ही मिलती है। यदि हमारे पाठशाला का माहौल अच्छा है तो बच्चे आगे चलकर ईमानदार इंसान बनते हैं। इससे समाज में भलाई फैलती है। बच्चे पाठशाला में सीखी हुई बात घर में भी बताते हैं। इसलिए बड़ों को भी कभी-कभी बच्चों की बाते सुननी चाहिए। उनसे सीख लेनी चाहिए। इस प्रकार भ्रष्टाचार अपने आप समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 9.
टेसी थॉमस की पाठशाला की पढ़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
टेसी थॉमस की शिक्षा-दीक्षा केरल प्रांत के अलप्पुझा में हुई। यहीं पर उनका जन्म हुआ था। उन्हें ‘हाथी वाला स्मारक’ भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के समय कॉलेज की ओर से दिया गया था। उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने की चाह थी। वे अंतरिक्ष के सपने देखती थी। यही कारण रहा कि उन्होंने गणित और विज्ञान विषय को अपने तन-मन में बरा लिया। इसमें उनकी पाठशाला (अलप्पुझा) और अध्यापकों का बहुत बड़ा योगदान रहा।

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प्रश्न 10.
भारत को अष्टाचार से मुक्त कराने में छात्रों का क्या योगदान हो सकता है?
उत्तर :
भूतपूर्व रार्ट्रपति मान्य ए. पी.जे. अब्दुल कलाम जी की दृष्टि में भ्रष्टाचार उन्मूलन में तीन तरह के लोग सहायक सिद्ध हो सकते हैं। वे हैं – 1) माता 2) पिता और 3) प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक। घर में और बाहर बच्चों को ईमानदारी और सचाई का पाठ मिलना चाहिए।
भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने में छात्रों का महान योगदान हो सकता है। पहले – पहल वे संकल्प कर लें कि “हम सदैव ईमानदारी एवं भ्रष्टाचार मुक्त जीवन का निर्वाह करेंगे और दूसरों के लिए आदर्शवान बने रहेंगे।”

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
सारे भारतवासी अब्दुल कलाम को आदर्श मानते हैं। क्यों?
उत्तर :
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक महान भारतीय वैज्ञानिक हैं। वे भारत के ‘मिजाइल मैन’ के रूप में माने जाते हैं। उन्होंने भारत की रक्षाशक्ति बढ़ाई। उनका पूरा नाम अबुल फ़कीर जैनुलाबुद्दीन अब्दुल कलाम हैं। उन्हें देश भारत रत्न दिया गया। उनका बचपन तमिलनाडु के रामेश्वरम की गलियों में समाचार पत्र बेचते हुए बीता। उनका परिवार बहुत निर्धन था। यह बालक एक दिन सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा भारत का राष्ट्रपति बनेगा, ऐसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। कितु उस ग़रीब बालक ने अपनी प्रतिभा, परिश्रम और लगन से यह सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य के लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है। मन में अगर चाह हो तो उसे राह् अपने आप मिल जाती है।

अब्दुल कलाम महान गुणों की खान हैं। वे बच्चों के प्रिय हैं और बच्चे उन्हें। सच्चे अर्थों में अब्दुल कलाम पूरी दुनिया के आदर्श हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता बेमिसाल है। उनके नेतृत्व में ‘अग्नि’, ‘पृथ्वी’, ‘आकाश’, ‘त्रिशूल’, ‘नाग’ आदि भारतीय मिसाइलों का निर्माण हुआ। उन्होंने दुनिया के मानचित्र में भारत को जो स्थान दिलाया है, उसके लिए भारतवासी उनके ऋणी है। इसलिए भारतवासी कलाम जी को अपना आदर्श मानते है।

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प्रश्न 2.
अब्दुल कलाम जी और टेसी थॉमस के साक्षात्कारों से आपने क्या सीखा?
उत्तर :
अब्दुल कलाम और टेसी थॉमस के साक्षात्कारों से हमें निम्नलिखित सीख मिलती है-

  • एक छात्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण अपने प्रति ईमानदारी और दूसरों के प्रति आदर का गुण है।
  • हमें पढाई में हमेशा खूब परिश्रमी बनने का प्रयास करना चाहिए।
  • जीवन में एक लक्ष्य बनाना चाहिए।
  • हमें पढ़ाई के लिए आवश्यक ज्ञान और अनुभव प्राप्त करना चाहिए।
  • हमें निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। नैतिक मूल्यों को ग्रहण करना चाहिए।
  • छुट्टियों में गरीब बच्चों और अशिक्षित महिलाओं को पढ़ाना चाहिए।
  • अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। पर्यावरण को संतुलित बनाने में हाथ बटाना चाहिए।
  • मेहनत, लगन और दृढ़-निश्चय से मंजिल तक पहुँचने का प्रयास करना चाहिए।
  • सच्ची सफलता शिक्षा से ही प्राप्त होती है। ईमानदारी सबसे अच्छा गुण है।

प्रश्न 3.
कलाम जी का जीवन हर एक के लिए अनुसरणीय है। समझाइए।
उत्तर :
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक महान भारतीय वैज्ञानिक हैं। अब्दुल कलाम महान गुणों की खान हैं। वे बच्चों के प्रिय हैं और बच्चे उन्हें। सच्चे अर्थों में अब्दुल कलाम पूरी दुनिया के आदर्श हैं। उनकी नेतृत्य क्षमता बेमिसाल है। उनके नेतृत्व में ‘अग्नि’, ‘पृथ्वी’, ‘आकाश’, ‘त्रिशूल’, ‘नाग’ आदि भारतीय मिसाइलों का निर्माण हुआ। उन्होंने दुनिया के मानचित्र में भारत को जो स्थान दिलाया है, उसके लिए भारतवासी उनके ऋणी हैं। भारतवासी कलाम जी को अपना आदर्श मानते हैं। वें भारत के ‘मिजाइल मैन’ के रूप में माने जाते हैं। उन्होंने भारत की रक्षाशक्ति बढ़ाई। उनका पूरा नाम अबुल फ़कीर जैनुलाबुद्दीन अब्दुल कलाम हैं।

उन्हें देश भारत रत्न दिया गया। उनका बचपन तमिलनाडु के रामेश्वरम की गलियों में समाचार पत्र बेचते हुए बीता। उनका परिवार बहुत निर्धन था। शिक्षा के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया। यह बालक एक दिन सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा भारत का राष्ट्रपति बनेगा, ऐसा किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। कितु उस ग़रीब बालक ने अपनी प्रतिभा, परिश्रम और लगन से यह सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य के लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है। मन में अगर चाह हो तो उसे राह अपने आप मिल जाती है। यही कारण है कि उनका जीवन हम सबके लिए आज भी आदर्श बना हुआ है।

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प्रश्न 4.
आज का बालक कल का नागरिक है। आप किस प्रकार के बालक को आदर्श मानेंगे ? पाठ के आधार पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
कलाम के विचारों में “आदर्श छात्र` के गुण निम्नलिखित हैं एक छात्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उसकी अपने प्रति ईमानदारी और दूसरों के प्रति आदर का गुण

  • निरंतर प्रयत्नशील रहते हुए सबसे बढ़िया काम करने की ओर बढ़ते रहना।
  • नैतिक मूल्यों को ग्रहण करना।
  • जीवन में एक लक्ष्य बनाकर उसे प्राप्त करने के लिए हमेशा परिश्रमी बनने का प्रयास करना।
  • छुट्टी के दिनों में गरीब और सुविधाओं से वंचित बच्चों को पढ़ाने का काम करना।
  • छात्र अधिक से अधिक पौधे लगाना आदि।

प्रश्न 5.
टेसी थॉमस का जीवन छात्रों के लिए आदर्श (प्रेरणादायक) है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
टेसी थॉमस के जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि -‘अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प की बुलंदियों को प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही जो भी पढ़ें ध्यान से पढ़े, मेहनत करें और लक्ष्य प्राप्त करने तक रुके नहीं। जो हमें पसंद है उसमें जी – जान लगा दें। उसे प्राप्त करने के लिए कमर कसकर तैयार करें तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी। अध्यापकों से सहयोग और सच्ची लगन से सफलता की ऊँचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
सफलता की बुलंदियों को चूमने के लिए परिश्रम और लगन आवश्यक है। पाठ के आधार पर बताइए कि आप क्या करेंगे?
उत्तर :
अच्छे नागरिक बनंने के लिए निम्नलिखित गुण होने चाहिए।

  • अपने जीवन में एक लक्ष्य बनाकर उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर परिश्रम करते हुए आवश्यक ज्ञान और अनुभव प्राप्त करना।
  • सदैव ईमानदार एवं भ्रष्टाचार मुक्त जीवन का निर्वाह करते हुए दूसरों के लिए आदर्शवान् बनना।
  • सामाजिक समस्याओं का उन्मूलन करने के लिए जागरूक रहना।
  • संविधान संशोधन अधिनियम 2002 का पालन करना और कराना।
  • अपने देश को विकास और समृद्धि के पथ पर ले जाने के लिए भरसक प्रयत्न करना।
  • नैतिक मूल्यों को ग्रहण करना। हमेशा परिश्रमी बनने का प्रयास करना।
  • पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने के लिए हर संभव प्रयास करना।
  • सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए हर संभव प्रयत्न करना।
  • बाल मज़ूरी की समस्या का उन्मूलन करने में सहयोग देना।
  • गरीब और सुविधाओं से वंचित बच्चों पर ध्यान देना और उनकी सहायता करना।
  • बढ़ती जनसंख्या को रोकने में अपना सहयोग देना।
  • महिला साक्षरता दर बढ़ाने में सहयोग देना।
  • अच्छा नागरिक बनने की नीव बचपन में ही पड़नी चाहिए।

क्योंकि आज का बचा ही कल का नागरिक बनता है। इसलिए बचपन में ही खास करके घर में और प्राथमिक स्कूलों में ही अच्छा नागरिक बनने हेतु आवश्यक बीज पड़ने ज़रूरी हैं। छात्र को सदैव ईमानदारी एवं भ्रष्टाचार मुक्त जीवन का निर्वाह करने का संकल्प लेना चाहिए।

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प्रश्न 7.
अब्दुल कलाम ने दुनिया के मानचित्र में भारत को जो स्थान दिलाया है, उसके लिए भारतवासी उनके ॠणी हैं – अब्दुल कलाम की विशेषता प्रकट करते हुए लिखिए।
उत्तर :
टेसी थॉमस अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानती हैं। क्योंकि सच्चे अर्थों में वे देश के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के आदर्श हैं। आज हमारे यहाँ जब भी अंतरिक्ष विज्ञान और मिज़ाइल की बात की जाती है, तो सभी के मस्तिष्क में एक ही नाम गूँजता है – “ए.पी.जे. अब्दुल कलाम”। उन्होंने दुनिया के मानचित्र में भारत को जो स्थान दिलाया है, उसके लिए भारतवासी उनके ऋणी हैं। डी.आर.डी. ओ.में टेसी थॉमस, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में काम कर चुकी हैं। उन्होंने ही टेसी थॉमस को प्रेरणा के “अग्नि पंख” दिये हैं। वे महान् थे, महान् हैं और महान् रहेंगे। उनकी नेतृत्व क्षमता बेमिसाल है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि अपनी प्रतिभा, परिश्रम और लगन से मनुष्य के लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है। मन में अगर चाह हो तो उसे राह अपने आप मिल जाती है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 11th Lesson जल ही जीवन है

These TS 10th Class Hindi Important Questions 11th Lesson जल ही जीवन है will help the students to improve their time and approach.

TS 10th Class Hindi 11th Lesson Important Questions जल ही जीवन है

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
‘जल ही जीवन है’ इस पाठ को दृष्टि में रखकर बताइए कि बाइसवी सदी का भारत कैसा होगा?
उत्तर :
जल हमारे जीवन का एक प्रमुख आधार है। जल के बिना हमारा जीवन की कल्पना करना असंभव है। ‘जल में ही जीवन बसता है।’ ऐसा महत्वपूर्ण जल का बचाव व संरक्षण करना हर मानव का कर्तव्य है। अनेक अदूरदर्शी चेष्टाओ से जल की कमी बनी हुई हैं। ऐसी हालत में आनेवाली बाईसची सदी के भारत को भयंकर आपदाएँ घेर सकती हैं। पेयजल लुप्त हो जायेगा। शुद्धजल की मात्रा घट जायेगी। हर जगह प्रदूषित जल ही मिल जायेगा जीवनदियाँ बहनेवाले भारत को पानी की एक बूंद के लिए तरसना पडेगा। पानी कि वजह से आंतरिक झगडे हो जाने की संभावना है। भारत जैसे शांति कामुक देश में भी अशांति फैल सकेगी।

TS 10th Class Hindi Important Questions 11th Lesson जल ही जीवन है

प्रश्न 2.
यदि पृथ्वी का पानी प्रदूषित हो जाए तो आपके पास इसका क्या समाधान है?
उत्तर :
यदि पृथ्वी का पानी प्रदूषित हो जाए तो आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों और विधाओं एवं तरीकों को अपना कर प्रदूषित जल को शुद्ध बनाएँगे।
वर्षा के जल को इकट्डा करके उसे शुद्ध करके पीने के पानी के रूप में उपयोग करेंगे।
देश – विदेशों में से प्रदूषित पानी को साफ़ करने की विविध पद्धतियों को जानकर उन्हें अमल में लाकर पानी को शुद्ध बनाएँगे।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
जल का प्रयोग सावधानी से करने के लिए कुछ उपाय बताइए।
उत्तर :
हमारे जीवन में जल का बडा महत्व है। जल नहीं तो कल नहीं है। इसीलिए हमें जल का प्रयोग सावधानी से फरनी चाहिए।

  • जल को दूषित नहीं करना चाहिए।
  • नहाने – धोने के लिए आवश्यकता से अधिक जल का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • उपयोग में लाये गये जल को पुनः भूगर्भ में जाने की बवस्था करना चाहिए।
  • पेड – पौधों की सिंचाई के लिए व्यर्थ जल का उपयोग करना चाहिए।
  • नदियों पर बांध बनाकर नदियों के पानी को सागर में मिलने से रोकना चाहिए।
  • गलियों में खुले हुये नलों से पानी व्यर्थ बहने से रोकना चाहिए।

प्रश्न 2.
जल की समख्या को समाप्त करने में छात्र क्या सहयोग दे सकते हैं?
उत्तर :

  • आज संसार के सभी देशों में जल की समस्या बनी हुयी है। ऐसी खास और प्रभावशाली समर्या का हल निकालकर सुख जीवन बिताने का यत्न करना सब लोगों का प्रमुख कर्तव्य है।
  • जल ही जीवन है। जल के बिना हमारा जीवन ही नहीं है। जल की समस्या को समाप्त करने में छात्र निम्न प्रकार से सहयोग दे सकते हैं।
  • जल का आवश्यकतानुसार ही इस्तेमाल करना चाहिए। जल को दूषित होने से बचाना चाहिए।
  • गंदगी कूडे कचरे को जल प्रवाहों में गिराने को रोकना चाहिए।
  • कुओं के पानी को दूषित होने से बचाकर इस्तेमाल करना चाहिए।
  • वर्षा के पानी को इकट्टा करने का प्रबंध करना चाहिए।
  • जल की बचत के लिए जल रत्रोतों को साफ़ और स्वच्छ रखना है।
  • पेड – पौधों को अधिक से अधिक लगाकर हरियाली बनाये रखने का प्रयत्न करना है।
  • खुद पानी का इस्तेमाल कम करते, लोगों को जल संरक्षण संबंधी आशयों से परिचय कराना है।

II. अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता (4 Marks Questions)

प्रश्न 1.
आप किन – किन जगहों में जल का उपयोग करते हैं?
उत्तर :
हम पीने के लिए जल का उपयोग करते हैं। जल से हम नहाते भी हैं। कपड़ों की धुलाई के लिए भी जल की जरूरत होती है। जल से फसलों की सिंचाई भी की जाती है। जल न हो तो जीवन भी नहीं होगा।

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प्रश्न 2.
जल के बिना मानव का अस्तित्व नहीं है। कैसे?
उत्तर :
जल ही जीवन है। जल के बिना मानव जीवित नहीं रह सकता। मानव ही नहीं जल के बिना धरती पर कोई भी जीव जीवित नहीं रह सकता। जल न हो तो पेड़-पोधे भई नहीं होंगे। मनुष्य का जीवन प्रकृति पर आधारित होता है। बिना जल के प्रकृति नष्ट हो जाएगी। इसलिए जल के बिना मानव का अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 3.
स्वच्छ जंल ही स्वस्थ जीवन का आधार है। विवरण दीजिए।
उत्तर :
जल ही जीवन है। जीवन के लिए स्वच्छ जल का होना बहुत ज़रूरी है। धरती पर पीने लायक पानी की मात्रा बहुत कम है। समुद्र में इतना जल है किंतु उसे स्वच्छ नहीं माना जा सकता। गंदा पानी पीने से हमें अनेक बीमारियाँ हो सकती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि स्वच्छ जल ही स्वस्थ जीवन का आधार है।

प्रश्न 4.
आप अपने घर में जल का सदुपयोग कैसे करेंगे?
उत्तर :
मैं जल को दूषित नहीं होने दूगा। नहाने-धोने के लिए आवश्यकता से अधिक जल का उपयोग नहीं करूँगा। उपयोग में लाये गये जल को पुनः भूगर्ग में जाने की व्यवर्था करूँगां। यदि नल से पानी गिर रहा हो तो उसे बंद करूँगा। पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए व्यर्थ जल का उपयोग करूँगा।

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प्रश्न 5.
जल से क्या-क्या उपयोग हैं ?
उत्तर :
हम पीने के लिए जल का उपयोग करते हैं। जल से हम नहाते भी हैं। कपड़ों की धुलाई के लिए भी जल की जरूरत होती है। जल से फसलों की सिंचाई भी की जाती है। जल न हो तो जीवन भी नहीं होगा। जल से विद्युत भी बनाते हैं।

प्रश्न 6.
जल त्रोतों की सुरक्षा कैसे करनी चाहिए?
उत्तर :
जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए। कुँओं, तालाबों और जलाशयों की रक्षा की जानी चाहिए। नदी-नालों में कारखानों का कचरा बहाने वालों को दंड मिलना चाहिए। जल स्रोतों की रक्षा करने वालों को पुरस्कार देना चाहिए।

प्रश्न 7.
अशुद्ध जल से मानव रोगों का शिकार बनता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अभुद्ध जल पीने से कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती हैं, जैसे- हैजा, कलरा इत्यादि। अशुद्धं जल बीमारी का प्रमुख कारण है। अशुद्ध जल पीने से पोलियो का शिकार होने की संभावना भी अधिक होती है। इसलिए हमें पानी उबाल कर पीना चाहिए।

प्रश्न 8.
पाठशाला में पानी के गड्ढे खोदने से क्या लाभ हैं ?
उत्तर :
पाठशाला में पानी के लिए गड्ढा खोदने से जल संरक्षण किया जा सकता है। आजकल पाठशालाओं में पानी की समर्या है। पानी न होने के कारण शौचालय साफ नहीं रह पाते। पीने के लिए पानी भी नहीं मिल पाता है। पाठशाला में पानी के लिए गड्ढा खोदने से ये समस्याएँ नहीं होगी। पाठशाला पानी के लिए आत्मनिर्भर हो जाएगा।

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प्रश्न 9.
लेखक श्री प्रकाश जी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :

  • श्री प्रकाश हिंदी के प्रमुख लेखक हैं।
  • इन्होंने विज्ञान संबंधी निबंध लिखे हैं।
  • पपके निबंध विचारोत्तेजक होते हैं।
  • इन्होंने ‘संचार माध्यमों के लिए विज्ञान नामक पुस्तक को लिखे।

प्रश्न 10.
आप अपनी पाठशाला में जल संरक्षण कैसे करेंगे ?
उत्तर :
में अपनी पाठशाला में पानी के लिए अपने मित्रों के साथ मिलकर गड्ढा खोदूँगा। पानी बेकार नहीं करूँगा। अपने सहपाठियों को भी पानी बेकार न करने की सलाह दूँगा। पाठशाला के प्रांगण में पेड़-पौधे लगाऊँगा। जगह-जगह जल संरक्षण को प्रेरित करने वाले पोस्टर बनाकर लगाऊँगा।

प्रश्न 11.
जल संरक्षण में पाठशाला का दायित्व क्या है ?
उत्तर :
पाठशालाओं द्वारा जल संरक्षण का संदेश घर-घर पहुँचाया जा सकता है। पाठशाला में बहुत सारे छात्र पढ़ते हैं यदि वे निर्णय कर लें कि जल संरक्षण हो तो बहुत सारा पानी बच जाएगा। जल के महत्व के बारे पाठशालाओं द्वारा रैली निकालनी चाहिए। पाठशाला के प्रांगण में पेड़-पौधे लगाने चाहिए। पानी इकट्ठा करने के लिए गड्ढा खोदना चाहिए।

प्रश्न 12.
आने वाली पीढ़ियों को जल की समस्या से बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं ?
उत्तर :
आने वाली पीढ़ियों को जल की समस्या से बचाने के लिए हम निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं-

  • हमें जल आवश्यकता से अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • हमें जल व्यर्थ होने से बचाना चाहिए। पेड़-पौधे अधिक से अधिक लगाने चाहिए जिससे वर्षा अधिक हो।
  • जल स्रोतों की रक्षा करनी चाहिए।
  • व्यर्थ हो रहे पानी को पुनः उपयोग में लाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • हमें जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए।
  • नदियों में कूड़ा-कचरा नही बहाना चाहिए।

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प्रश्न 13.
जल की समस्या का कारण मानव ही है। अपने विचार दीजिए।
उत्तर :
इसमें कोई संदेह नही है कि जल की समस्या का कारण मानव ही है। मनुष्य ने अपनी आवश्यकता से अधिक जल का उपयोग किया है। धरती के जल को स्वार्थ के लिए दूषित किया है। मनुष्य पेड़-पौधे काटता जा रहा है। इससे वर्षा कम होती है। नदियों, कुआं और जलाशयों में कूड़ा-कचरा बहता आ रहा है। इससे जल स्रोत नष्ट हो रहे हैं। मनुष्य अपनी गलतियों से सीख नहीं रहा है। आज भी जल संरक्षण के प्रयास समुचित मात्रा में नहीं हो रहे हैं ।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
जल सोतों के कुछ नाम बताइए। विवरण दीजिए।
उत्तर :
जल स्रोत अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे- कुँआ, तालाब, नदी, झील आदि।
कुँआ : कुँआ मनुष्य धरती पर गड्ढा खोदकर तैयार करता है। भारत में पीने के जल के लिए सर्वाधिक उपयोग कुएए का ही होता है।
तालाब : तालाब प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों प्रकार के होते है। यदि धरती का कोई क्षेत्र गहरा हो तो वहाँ बरसात में पानी इकट्ठा होकर तालाब का रूप ले लेता है। इसके जल का उपयोग पीने के साथसाथ सिंचाई के लिए भी किया जाता है।
नदी : भारत अनेक नदियों का देश है। इसीलिए इसका अधिकतर क्षेत्र हरा-भरा है। गंगा, यमुना, नर्मदा, कृष्णा, गोदावरी आदि भारत की प्रमुख जीव नदियाँ हैं। इसके जल का उपयोग पीने के साथ-साथ सिंचाई के लिए भी किया जाता है। इन पर बाँध बनाकर बिजली का उत्पादन भी किया जाता है।
झील : पर्वतीय क्षेत्र में कोई स्थान गहरा होने पर वर्षा का जल इकट्ठा होकर विशाल जलाशय का रूप ले लेता है। इसे झील कहते हैं।

प्रश्न 2.
जल में जीवन बसता है और जीवन में जल का महत्व आज जल की समस्या को हल करने के लिए आप कौन – से कदम उठायेंगे?
उत्तर :

  • आज दुनिय़ा के सभी देशों में जल की समस्या बनी हुई है।
  • इस समस्या से निबटने के लिए हमारी निम्नलिखित जिम्मेदारी है।
  • पानी के महत्व से सभी को अवगत कराना।
  • पानी को व्यर्थ होने से (दुरुपयोग होने से) बचाना।
  • वर्षा के पानी को जमीन में सोखने से बचाने के लिए गड्ढे खोदना। पानी इकट्टा करना।
  • जल – संरक्षण के बारे में सबको बताकर जगरूक करना।
  • नदियों पर बाँध बनाकर नदियों के पानी को सागर में मिलने से रोकना।
  • नदी, नालों, तालाबों, जलाशयों, सरोवरों आदि के पानी को स्वच्छ रखने का हर संभव प्रयास करना।
  • अपने आसपास के जल स्रोतों की सुरक्षा करना।
  • भूगर्भ जलों का संरक्षण करना।
  • स्वैच्छिक एवं सरकारी संस्थाओं से इस काम के लिए सहयोग प्राप्त करना।
  • सासकर छात्रों को इन सावधानियों से अवगत कराकर उनकी सहायता लेना।
  • समुद्र के खारे पानी को तकनीक के माध्यम से शुद्ध पानी के रूप में बदलने के प्रयास करना।
  • एक बार उपयोग में लाये गये पानी का दुबारा काम में लाना।

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प्रश्न 3.
आपके गाँव में जल संरक्षण कैसे किया जा रहा है? इसके बारे में बताते हुए कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर :

  • हमारे गाँव में जल संरक्षण (निम्नलिखित प्रकार से किया जा रहा है) के लिए सुझाव –
  • अपने आसपास के जल स्रोतों की सुरक्षा करना।
  • तालाबों – नदियों में जानवर, कपड़े अदि न धोयें।
  • कुएँ के पास नहाते समय नहाया पानी कुएए में न गिरने दें।
  • नलकूपों के पास उपयोग में लाये गये पानी का उपयोग अन्य कामों में (पेड़ – पौधों की सिंचाई में) करें।
  • जल स्रोतों को हर संभव प्रयास करते हुए स्वच्छ रखें।
  • वर्षा के जल को रोकने के लिए बड़े – बड़े गड़ढे खोदकर पानी को इकट्टा करें।
  • नदी – नालों व तालाबों में प्लास्टिक की चीज़ें न बहायें।

TS 10th Class Hindi Important Questions 10th Lesson नीति दोहे

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TS 10th Class Hindi 10th Lesson Important Questions नीति दोहे

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकला
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
कवि रहीम का परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • रहीम हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के कवि थे। वे अकबर के मित्र, प्रधान सेनापति तथा मंत्री थे।
  • उनका जीवन काल सन् 1556-1626 तक है।
  • वे संस्कृत, फारसी और अरबी के विद्वान थे। वे दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • रचनाएँ : रहीम सतसई; बरवै नायिका भेद और श्रुंगार सोरठ आदि।

प्रश्न 2.
कवि बिहारीलाल का परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • कवि बिहारीलाल का जीवन काल 1595 से 1663 है।
  • आप की प्रसिद्ध रचना ‘बिहारी सतसई’ है।
  • इन के दोहे नीतिपरक होते हैं।
  • इनके दोहों के लिए ‘सागर में गागर’ भर देने वाली बात कही जाती है।

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प्रश्न 3.
रहीम ने विपति को सच्चे मित्र की पहचान की कसौटी क्यों माना है ?
(या)
रहीम के अनुसार सच्चा मित्र कौन है ?
उत्तर :
रहीम कहता है कि सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय होती है। संपत्ति मिलने पर बहुत लोग हमारे मित्र हो जाते हैं। वे हमारी संपत्ति के कारण हमारी मित्रता स्वीकार करते हैं। लेकिन विपत्ति के समय जो हमारा साथ दे वही हमारा सच्चा मित्र है।

प्रश्न 4.
बिहारी ने कनक – कनक में अंतर बताते हुए क्या संदेश दिया है?
उत्तर :
कविवर बिहारी नीतिपरक दोहे लिखने में पटु थे। बिहारी ने इस दोहे में धनी व्यक्तियों की मनोदशा का वर्णन किया। कनक शब्द के दो अर्थ हैं – धतूरा और सोना। बिहारी ने अपने दोहों के द्वारा यह संदेश दिया कि धतूरे की अपेक्षा सोने में सौ गुना नशा अधिक है। धतूरे को खाने से मानव पागल बनता है। लेकिन सोना (धन, दौलत) को पाने से ही मानव पागल हो जाता है। अर्थात् यह नशा धतूरे नशे से भी खतरनाक है।

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प्रश्न 5.
कवि रहीम और बिहारी ने पानी की विशेषता के बारे में क्या कहा ?
उत्तर :
रहीम ने पारी के महत्व के बारे में बताया है। उन्होंने यहाँ ‘पानी’ शब्दों को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है – चमक, इड्त्त और जल। वे बताते हैं कि मोती के लिए चमक, मनुष्य के लिए इज्ञत और चूने के लिए जल की आवश्यकता है। चमक न होने पर मोती, इज्ञत न रहने पर मनुष्य और जल के सूख जाने पर चूना बेकार हो जाते हैं। इसलिए इनकी रक्षा करनी चाहिए। नल के पानीं पर जितना दबाव डाला जाय वह उतना ही ऊपर उठंता है। उसी प्रकार मानव भी जितना विनम्र, विनयशील होगा उतना ही उसका विकास होगा। ऊँचे स्थान पर पहुँचेगा। इसलिए बिहारी ने नल के पानी से नर की तुलना की है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
कवि बिहारी के संबंध में कहा जाता है कि वे ‘गागर में सागर भरते है’ नीति दोहे पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि बिहारी का एक – एक दोहा मर्मस्पर्थी है। बिहारी अपने संक्षिप्त वर्णन और नपे – तुले शब्दों में प्रस्तुत करते हैं। इनके दोहे जीवन के यथार्थ रूप हैं। बिहारी अपने पैनी दृष्टि से जीवन का निरीक्षण किया था। उन्होंने जीवन के प्रौढ़ अनुभवों का भी उद्धाटन किया है। वे अपने भावों और विचारों को कलात्मक रूप में प्रस्तुत करने की प्रतिभा थी। बिहारी मोलिक कवि थे। उन्होंने बिहारी सतसई नामक एक ही ग्रंथ लिखकर भी हिंदी साहित्य के इतिहास में कवियों की पंक्तियों में बिहारी का उत्कृष्ट स्थान है। कवि के रूप में वे हिंदी साहित्य के गौरव है। इसलिए कहा जाता है कि – इनके दोहे ‘गागर में सागर’ भर देनेवाले होते हैं। इसके उदाहरण यह है कि –

कनक – कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाए बौराइ जग, इहिं पाए बौराय।

भाव : कविवर बिहारी इस दोहे में धनी व्यक्तियों की मनोदश का वर्णन किया। कनक शब्द के दो अर्थ हैं . धतुरा और सोना। बिहारी ने अपने दोहों के द्वारा यह संदेश दिया है कि धतूरे की अपेक्ष सोने में सौ गुना नशा अधिक है। धतूरे को खाने से मानव पागल बनता है। लेकिन सोना (धन – दौलत) को पाने से ही मानव पागंल हो जाता है। अर्थात् यह नशा धतुरे के नशे से भी अधिक नष्टदायक होता है। नर की अरु नल नीर की, गति एकै कर जोए। जेतौ नीचौ हूवै चलै, तेतौ ऊँचौ होय।

भाव : बिहारी का कहना है कि – मनुष्य और नल नीर की स्थिति समान है। नल का पानी जितना ही नीचे जाता है, पुनः उतना ही ऊपर उठता है। उसी प्रकार मनुष्य जितना अधिक विनम्र होता है। उतना ही विकास करता है। इसलिए हमें विनम्र होना चाहिए।

इन उदाहरणों से पता चलता है कि सचमुच ‘बिहारी’ के दोहे ‘गगागर में सागर’ बननेवाले हैं। छोटे दोहों में कम – से – कम शब्दों में, अधिक – विस्तार से विषय ज्ञान होता है। ये नीतिपरक होते हैं।

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प्रश्न 2.
कवि रहीम के दोहों का संदेश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कविवर रहीम का पूरा नाम खानखाना अब्दुल रहीम था। उनका जीवन काल 1556-1626 था। वे सहृदयी कुशलवीर और राजनीतिज्ञ थे। वे अकबर के दरबारी कवि और मित्र थे। वे कई भाषाओं के ज्ञाता, कृष्ण भक्त थे। उन्होंने भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, नीति – विषयों पर सरस रचनाएँ की। इनके दोहे नीतिपरक और उपदेशात्मक हैं।

कवि रहीम कहते हैं कि यदि हमारे पास धन-संपत्ति हो तो कई तरह के लोग नाते रिश्ते जोड़कर सगे बन जाते हैं। उन लोगों में हमारा सच्चा मित्र कौन है और पराया कौन है इसका निर्धारण विपत्ति (कष्ट) कर देतीं है। संकट के समय सच्चे मित्र ही हाथ देता है। झूठे लोग तो खिसक जाते हैं। संदेश : संकट के समय में साथ देनेवाला ही सच्चा मित्र है।

रहीम कहते हैं कि सबको पानी रखना आवश्यक है। पानी के बिना सब व्यर्थ है। पानी का अर्थ होता है – चमक (कांति), मान (इज्ञत) और जल। चमक के बिना मोती, मान के बिना आदमी और जल के बिना चूना बेकार हैं। चमक के जाने से मोती व्यर्थ होता है। मान के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। जल के न रहने से चूना व्यर्थ हो जाता है।

पठित – पद्यांश (5 Marks Questions)
नीचे दिये गये पद्यां को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य कें लिखिए।

I. कहि रहीम संपति सठो, बनल बहुत बहु रील।
विपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे कीता।

प्रश्न :
1. किसके आने पर संगे बहुत बनते हैं ?
2. विपत्ति रूपी कसौटी से कैसा -मीत निकलता है?
3. विपत्ति अपने को क्या निर्धारण कर देती है?
4. संकट समय में कौन खिसक जाते हैं?
5. इस दोहे के कवि कौन हैं?
उत्तर :
1. संपत्ति के आने पर सगे बहुत बनते हैं।
2. विपत्ति रूपी कसौटी से सच्चा मीत निकलता है।
3. विपत्ति यह निर्धारण कर देती है कि पराया और अपना कौन हैं?
4. झूठे लोग संकट के समय में खिसक जाते हैं।
5. इस दोहे के कवि हैं श्री “रहीम”।

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II. रहिमन पानी याखिए. विन पानी सब सून।
पानी वये न कबरै, मोली मानुष सुन।

प्रश्न :
1. दोहे में “पानी” शब्द के कितने अर्थ हैं?
2. पानी के बिना क्या – क्या बचते नहीं है ?
3. किसके बिना मनुष्य नहीं रह सकता है?
4. जल के न रहने से क्या व्यर्थ होता है ?
5. मोती के लिए पानी चाहिए। यहाँ पानी का अर्थ क्या है?
उत्तर :
1. दोहे में पानी शब्द के तीन अर्थ है जैसे
1) चमक 2) इज्जत/आदर और 3) जल
2. पानी के बिना मोती, मनुष्य और चूना बचते नही हैं।
3. प्रतिष्ठा या इज्ज़त के बिना मनुष्य नहीं रह सकता।
4. जल के न रहने से चूना व्यर्थ होता है ।
5. मोती के लिए पानी चाहिए। – यहाँ पानी का अर्थ है ‘चमक’ या कांति।

III. कनक-कनक तैं सौ गुनी, मादक्ता अधिकाइ।
उहि खाए बौचाइ जग, इहिं पाए बौराइ।

प्रश्न:
1. “कनक” शब्द का अर्थ क्या है?
2. इस दोहे के कवि कौन हैं ?
3. किसके मिलने पर मनुष्य पागल बन जाता है?
4. सोना धतूरे की अपेक्षा – कितने गुना अधिक नशीला होता है?
5. सोने को पाकर मनुष्य क्या हो जाता है?
उत्तर :
1. कनक शब्द का अर्थ है “सोना”।
2. इस दोहे के कवि हैं बिहारी।
3. सोना (कनक) मिलने पर मनुष्य पागल बन जाता है।
4. सोना धतूरे की अपेक्षा सौ गुना अधिक नशीला होता है।
5. सोने को तो पाकर ही मनुष्य पागल (उन्मत्त) हो जाता है।

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IV. नर की अरु नल नीर की, वाति एकै कर जोड।
जेतौ कीचौ हैवै चलै, तेतौ ऊँचौ होइ॥

प्रश्न :
1. किनकी दशा एक ही प्रकार की है ?
2. नल नीर से मतलब क्या है?
3. मानव को उन्नति के सोपान पर क्या बिठाती है?
4. “अरु” का अर्थ क्या है?
5. बिहारी ने नर की तुलना किससे की ?
उत्तर :
1. मनुष्य और नल की पानी की दशा एक ही प्रकार की है।
2. नल नीर से मतलब यह है कि नल का पानी।
3. विनम्रता मानव को उन्नति के सोपान पर बिठाती है।
4. अरु का अर्थ है ओर।
5. बिंहारी ने नर की तुलना नल के पानी से किया है।

II. अक्षिययदितनकणात्मकता (4 Marks Questions)

प्रश्न 1.
कविवर रहीम के जीवन काल और रचनाओं के बारे में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर :

  • रहीम हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के कवि थे।
  • वे अकबर के मित्र, प्रधान सेनापति तथा मंत्री थे।
  • उनका जीवन काल सन् 1556-1626 तक है।
  • वे संस्कृत, फारसी और अरबी के विद्धान थे। वे दोहों के लिए प्रसिद्ध है।
  • रचनाएँ : रहीम सतसई, बरवैनायिका भेद और श्रुंगार सोरठ आदि।

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प्रश्न 2.
कविवर बिहारी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :

  • बिहारी का जीवन काल सन् 1595 से 1663 तक है।
  • आपके दोहे नीतिपरक होते हैं।
  • आप के दोहों के लिए गागर में सागर भर देनेवाली बात कही जाती है।

प्रश्न 3.
रहीम जी ने ‘पानी’ शब्द का प्रयोग किन अर्थों में किया है? विवरण दीजिए।
उत्तर :
रहीम इस दोहे में पानी शब्द के तीन अर्थ बताते हैं- 1. सम्मान 2. चमक 3. जल। इन तीनों के बिना मानव, मोती, चूने का कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य को सम्मान, मोती को चमक, चूने को जल आवश्यक है। इसके बिना वे शून्य हैं। दोहे का संदेश है कि मनुष्य को अपना सम्मान बनाये रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
पानी शब्द का प्रयोग रहीम जी ने चमत्कारिक रूप से किया है, कैसे?
उत्तर :
रहीम के इस दोहे में पानी शब्द तीन बार प्रयोग हुअ है। यहाँ पानी के तीन अर्थ है- सम्मान, चमक, जल। इन तीनों के बिना मानव, मोती, चूने का कोई मूल्य नहीं है। मनुष्य को सम्मान, मोती को’ चमक, चूने को जल आवश्यक है। इसके बिना ये तीनों बेकार है।

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प्रश्न 5.
मोती, मानुष और चून किनके बिना निरर्थक हैं? रहीम जी ते कैसे समझाया?
उत्तर :
चमक के बिना मोती निरर्थक है। सम्मान के बिना मनुष्य निरर्थक है। पानी के बिना चूना निरर्थक है। रहीम ने चमक, सम्मान और जल तीनों के लिए पानी शब्द का प्रयोग किया है।

प्रश्न 6.
पानी शब्द के द्वारा रहीम जी ने किनकी महत्व के बारे में बताया?
उत्तर :
रहीम ने चमक, सम्मान और जल तीनों के लिए पानी शब्द का प्रयोग किया है। चमक के बिना मोती निरर्थक है। सम्मान के बिना मनुष्य निरर्थक है। पानी के बिना चूना निरर्थक है।

प्रश्न 7.
धतूरे से बढ़कर सोने में मादकता है। बिहारी जी ने कैसे सिद्ध किया?
उत्तर :
बिहारी कहते हैं कि सोने में धतूरे से सौ गुना अधिक नशा होता है। क्योंकि धतूरे के खाने से आदमी थोड़े समय के लिए मदहोश होता है। वही आदमी सोने या संपत्ति के मिलने पर हमेशा के लिए मदहोश हो जाता है। धन की मादकता से घमंडी हो जाता है। धन का नशा अन्य सभी नशों से अधिक खतरनाक है।

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प्रश्न 8.
बिहारी जी ने ‘कनक’ शब्द का प्रयोग किनकिन के लिए किया है? समझाइए।
उत्तर :
बिहारी जी ने ‘कनक’ शब्द का प्रयोग अपने दोहे में दो बार किया है। एक कनक का अर्थ है – धतूरा और दूसरे का सोना। वे कहना चाहते हैं कि धतूरे से अधिक सोने या संपत्ति का नशा होता है। धतूरा तो मनुष्य खाकर पागल होता है लेकिन सोना तो पाकर ही पागल हो जाता है। इसलिए हमें संपत्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 9.
‘सोना’ मानव को पागल बना देता है। बिहारी ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर :
बिहारी कहना चाहते हैं कि धतूरे से अधिक सोने या संपत्ति का नशा होता है। धतूरा तो मनुष्य खाकर पागल होता है लेकिन सोना तो पाकर ही पाग़ल हो जाता है। बिहारी हमें संपत्ति का अभिमान न करने का संदेश देना चाहते हैं। इसलिए हमें संपत्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 10.
‘धतूरा-सोना’ इन दोनों में किसकी मादकता अधिक है? बिहारी के दृष्टिकोण से बताइए।
उत्तर :
बिहांरी के अनुसार ‘धतूरा-सोना’ में सोने की मादकंता अधिक है। वे कहते हैं कि धतूरे से अधिक सोने या संपत्ति का नशा होता है। धतूरा तो मनुष्य खाकर पागल होता है लेकिन सोना तो पाकर ही पागल हो जाता है। बिहारी हमें संपत्ति का अभिमान न करने का संदेश देना चाहते हैं। इसलिए हमें संपत्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 11.
बिहारी के दोहों से आपको क्या सीख मिलती है? समझाइए।
उत्तर :
बिहारी हमें अभिमान न करते हुए विनम्र रहने का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि कि सोना, धतूरे से सौगुना अधिक जहरीला और नशीला होता है। क्योंकि धतूरा तो खानें से लोग पागल होते हैं, लेकिन सोना तो पाकर ही लोग पागल हो जाते हैं। इसलिए हमें संपत्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। उनका कहना है. कि मनुष्य और नल के पानी की स्थिति समान है। नल का पानी जितना ही नीचे जाता है पुनः उतना ही ऊपर उठता’ है। उसी प्रकार मनुष्य जितना अधिक विनम्र होता है उतना ही विकास करता है, वह उतना ही अधिक यश प्राप्त करता है।

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प्रश्न 12.
सच्चे मित्र की पहचान कब होती है?
उत्तर :
सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय होती है। रहीम का कहना है कि संपत्ति मिलने पर बहुत लोग हमारे मित्र हो जाते हैं। वे हमारी संपत्ति के कारण हमारी मित्रता स्वीकार करते हैं। लेकिन विपत्ति के समय जो हमारा साथ दे वही हमारा सच्चा मित्र है।

प्रश्न 13.
बिहारी के अनुसार नर और नल्नीर की गति कैसी होनी चाहिए?
उत्तर :
बिहारी के अनुसार नर और नल-नीर की गति नीचे होनी चाहिए। यहाँ नर के लिए नीचे का अर्थ हैविनम्रता। बिहारी का कहना है कि मनुष्य और नल के पानी की स्थिति समान है। नल का पानी जितना ही नीचे जाता है पुनः उतना ही अधिक ऊपर उठता है। उसी प्रकार मनुष्य जितना अधिक विनम्र होता है उतना ही विकास करता है, वह उतना ही अधिक यश प्राप्त करता है। इसलिए हमें विनम्र रहना चाहिए।

प्रश्न 14.
रहीम जी ने मित्र के स्वभाव के बारे में क्या बताया?
उत्तर :
रहीम कहते हैं कि सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय होती है। संपत्ति मिलने पर बहुत लोग हमारे मित्र हो जाते हैं। वे हमारी संपत्ति के कारंण हमारी मित्रता स्वीकार करते हैं। लेकिन विपत्ति के समय जो हमारा साथ दे वही हमारा सच्चा मित्र है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 10th Lesson नीति दोहे

प्रश्न 15.
आपातकाल में आप अपने मित्रों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं?
उत्तर :
आपातकाल में मैं अपने मित्रों की सहायता करता हूँ। उनकी हर संभव सहायता करता हूँ। उनका मनोबल बढ़ाता हूँ। अधिक समय उनके साथ गुजारता हूँ। ‘जब तक वह उस मुसीबत से बाहर नहीं आ जाता मैं उसका विशेष ध्यान रखता हूँ। मैं तन, मन और धन से उसकी सहायता करने को तत्पर रहता हूँ।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
रहीम और बिहारी के दोहों के द्वारा क्या नीति मिलती है?
उत्तर :
रहीम ने सच्चे मित्र के लक्षण बताये हैं। उनका कहना है कि संपत्ति मिलने पर बहुत लोग हमारे मित्र हो जाते हैं। वे हमारी संपत्ति के कारण हमारी मित्रता स्वीकार करते हैं। लेकिन विपत्ति के समय जो हमारा साथ दे वही हमारा सच्चा मित्र है। रहीम का कहना है कि मनुष्य को अपना अत्मसम्मान बनाये रखना चाहिए। क्योंकि मानव जीवन सम्मान के बिना बेकार है।

बिहारी हमें अभिमान न करते हुए विनम्र रहने का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि कि ‘सोना, धतूरे से सौ गुना अधिक जहरीला और नशीला होता है। क्योंकि धतूरा तो खाने से लोग पागल होते हैं, लेकिन सोना तो पाकर ही लोग पागल हो जाते हैं। इसलिए हमें संपत्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। उनका कहना है कि मनुष्य और नल के पानी की स्थिति समान है। नल का पानी जितना ही नीचे जाता है पुनः उतना ही ऊपर उठता है। उसी प्रकार मनुष्य जितना अधिक विनम्र होता है उतना ही विकास करता है, वह उतना ही अधिक यश प्राप्त करता है।

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प्रश्न 2.
रहीम और विहारी के दोहों के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास होता है। अपने विचार बताइए।
उत्तर :
आज समाज में नैतिक मूल्यों की कमी होती जा रही हैं। नैतिक मूल्यों का विकास करना बेहद जरूरी है। इनकी वृद्धि महापुरुषों के वचन से ही हो सकती है। रहीम ओर बिहारी भी ऐसे ही महापुरुष हैं। उनके दोहों में अनेक नीतियाँ हैं। ‘नीति दोहे’ पाठ इसका उदाहरण है। रहीम ने सच्चे मित्र के लक्षण बताये हैं। उनका कहना है कि संपत्ति मिलने पर बहुत लोग हमारे मित्र हो जाते है। वे हमारी संपत्ति के कारण हमारी मित्रता स्वीकार करते हैं। लेकिन विपत्ति के समय जो हमारा साथ दे वही हमारा सच्चा मित्र है। रहीम का कहना है कि मनुष्य को अपना आत्मसम्मान बनाये रखना चाहिए। क्योंकि मानव जीवन सम्मान के बिना बेकार है।

बिहारी हमें अभिमान न करते हुए विनम्र रहने का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि सोना, धतूरे से सौ गुना अधिक जहरीला और नशीला होता है। क्योंकि धतूरा तो खाने से लोग पायल होते है, लेकिन सोना तो पाकर ही लोग पागल हो जाते हैं। इसलिए हमें संपत्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। उनका कहना है कि मनुष्य और नल के पानी की स्थिति समान है। नल का पानी जितना ही नीचे जाता है पुनः उतना ही ऊपर उठता है। उसी प्रकार मनुष्य जितना अधिक विनम्र होता है उतना ही विकास करता है, वह उतना ही अधिक यश प्राप्त करता है।

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि रहीम और बिहारी के दोहे नैतिक मूल्यों के विकास में सहायक हैं। हमें इसके अन्य दोहों को भी पढ़ना और पढ़ाना चाहिए।

TS 10th Class Hindi Important Questions 9th Lesson दक्षिणी गंगा गोदावरी

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TS 10th Class Hindi 9th Lesson Important Questions दक्षिणी गंगा गोदावरी

II. अभिव्यक्ति – शृजनात्मकला
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – घाट पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
काका कालेलकर का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर :
काका कालेलकर का पूरा नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर है। उनका जन्म् सन् 1885 में और मृत्यु सन् ‘1991 में हुई। इन्होंने आजीवन गाँधीवादी विचारधारा का पालन किया। इन्होंने हिंदुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा के माध्यम से हिंदी की खूद सेवा की। वे राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।

TS 10th Class Hindi Important Questions 9th Lesson दक्षिणी गंगा गोदावरी

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
दक्षिणी गंगा गोदावरी में वर्णित प्रकृति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
‘दक्षिणी गंगा गोदावरी” पाठ के लेखक काका कालेलकर जी हैं। इसमें लेखकं ने प्रकृति का वर्णन सुंदर ढंग से किया है। लेखक चेन्नई से राजमहेंद्री जा रहे थे। बेजवाडे से आगे सूर्योदय हुआ। बर्सात के दिन होने के कारण जहाँ – तहाँ विविध छटावाली हरियाली फैली थी। यह बहुत आनंददायक है। पूर्व की तरफ एक नहर रेल की पटरी के किनारे पर बह रही थी। उसमें तितलियों की तरह अपने पाल कतार में खडी हुई नौकाओं से नहर का अनुमान करना पडा। बीच में छोटे – छोटे तालाबों में रंग – बिरंगे बादलों वाला आसमान नहाने के लिए उतरता हुआ दीख पडता। कहीं कहीं चंचल कमलों के बीच मोनी बकों को देखकर सबेरे की ठंडी हवा का अभिनंदन करने को मन मचल पडता।

कोल्वूर पहुँचने पंर गोदावरी माँ का दर्शन होता है। गोदावरी आंधप्रदेश और तेलंगाण की प्रमुख जीव नदी है और यह अत्यंत सुंदर है। इसके अनेक घाट दूर – दूर तक प्रसिद्ध हैं। राजमहेंद्री के निकट तो यह् अद्भुत दिखाई देती है। रेल की पुल से गुजरते समय यह सब का मन लुभा लेती है। भोर के समय यह और भी सुंदर दिखाती है। राजमहेंद्री के आगे गोदावरी की शान – शौकत बडी निराली है। पश्चिम की तरफ दूर – दूर तक पहाडियों की श्रेणियाँ है। बादलों का साँवला रंग गोदावरी के मटमैले जल की झॉई को और भी गहरा करता है।

गोदावरी का अखंड प्रवाह पहाडों में से निकलकर अत्यंत गौरवशाली लगता है। यह ऐसा लगता है कि छोटे – बडे जहाज गोदावरी के जल में तैर रहे हैं। नदी का किनारा यानी मानुष्यता की कृतज्ता का अखंड उत्सव। गोदावरी नदी के किन्मरे के मंदिरों के ऊँचे – ऊँचे शिखर उसकी अखंड उपासना है। यहाँ मंदिरों की घंटियों की आवाज दूर – दूर तक सुनाई देती है। संस्कृत के उपासक भारतवासी यहाँ गंगाजल के आधे कलश गोदावरी में उँडेलकर गोदावरी के जल से फिर अपना कलश भर कर ले जाते हैं। यहाँ के टापुओं पर वन श्री की शोभा भी है। गोदावरी के जल में अमोघ शक्ति है। यह है दक्षिणीं गंगा गोदावरी में वर्णित प्रकृति का वर्णन।

प्रश्न 2.
काका कालेलकर ने गोदावरी को दक्षिणी गंगा की संक्ञा क्यों दी होगी ?
उत्तर :
यह प्रश्न ‘दक्षिणी गंगा गोदावरी’ यात्रा वृत्तांत पाठ से दिया गया है। इसके लेखक श्री काका कालेलकर हैं। लेखक ने गोदावरी को माता की संज्ञा दी क्योंकि गोदावरी माता ने सीता, राम – लक्ष्मण से लेकर बूढ़े जटायु तक सबको स्तन्य – पान कराया है। गोदावरी के तट पर शूरवीर भी पैदा हुए हैं और बडे – बडे तत्व ज्ञानी भी, साधु – संत भी पैदा हुए हैं। धुरंधर राजनीतिज्ञ भी और ईश्वर भक्त भी गोदावरी के गोद में पले हैं। चार वर्णों के लोगों की माता है गोदावरी। पूर्वजों की अधिष्ठात्री देवी है।

गोदावरी के जल में अमोघ शक्ति है, गोदावरी नदी के पानी का एक बूँद का सेवन भी व्यर्थ नहीं जाता। सभी नदियाँ अंत में जाकर सागर में मिलती है। तब नदियों में संभ्रम, घबराहट और उत्तेजना तो होगी ही पर गोदावरी तो धीर – गंभीर माता है। उसका संभ्रम भी उदात्त रूप में ही प्रकठ हो सकता है। गोदावरी के टापुओं के वनश्री की शोभा पूरी – पूरी खिल रही है। गोदावरी माता के विशाल तट पर कई तीर्थस्थल भी हैं। गोदावरी अपने जल के द्वारा सभी लोगों को अन्न प्रदान करती हैं। इसलिए इन सभी कारणों से लेखक ने गोदावरी को माता और दक्षिणी गंगा की संज्ञा दी होगी।

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प्रश्न 3.
काका कालेलकर ने गोदावरी नदी को ‘दक्षिणी गंगा’ क्यों माना ?
उत्तर :
‘दक्षिणी गंगा’ गोदावरी यात्रा वृत्तांत के लेखक श्री काका कालेलकर का जन्म सन् 1885 में और -मृत्यु सन् 1991 में हुई। इन्होंने आजीवन गाँधीवादी विचार धारा का पालन किया था।

  • भारतीय संप्रदाय में नदियों को माता या देवी मानकर पूजा करने की प्रथा है।
  • जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा नदी को पवित्र एवं जीवनदी मानते हैं, उसी प्रकार दक्षिण भारत में भी गोदावरी को पवित्र एवं जीवनदी मानते हैं।
  • गंगा एवं गोदावरी में कई तुलनात्मक लक्षण हैं। इसलिए गोदावरी को दक्षिणी गंगा मानते हैं।
  • गंगा की उत्पत्ति हिमालय के गंगोत्री से हुयी। उसी प्रकार गोदावरी पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणी में त्रिम्बक पर्वत से हुई।
  • गोदावरी नदी की लंबाई 1450 कि.मी. है और गंगा की तरह इस नदी का पाट बहुत बडा है। लाखों एकड की भूमि इस नदी के जल से सींची जा रही है।
  • यह महाराष्ट्र, तेलंगाणा और आन्ध्रप्रदेश से बहते हुये राजमहेंद्री शहर के समीप बंगाल की खाडी में जाकर मिलती है।
  • गोदावरी के जल में अमोघ शक्ति है। इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। इस नदी के किनारे कई महापुरुषों का जन्म हुआ।

II. अविव्यक्ति-हृगनात्मकता

प्रश्न 1.
यात्रा वर्णन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
यात्रा वर्णन एक प्रकार की साहित्यिक विधा है। जब कोई साहित्यकार अपने द्वारा की गई यात्रा का वर्णन करते हुए लेख लिखता है तो उसे यात्रा-वर्णन कहते हैं। राहुल सांकृत्यायन, काका कालेलकर आदि साहित्यक़ार अपने यात्रा साहित्य के लिए प्रसिद्ध हैं। यात्रा-वर्णन में विशेषकर साहसिक और प्राकृतिक यात्राओं को लोग विशेष पसंद करते हैं।

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प्रश्न 2.
यात्रा सुखदायी है। समर्थन कीजिए।
उत्तर :
यात्रा वास्तव में सुखदायी है। क्योंकि यात्रा से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है। इससे हमें प्रसिद्धि मिलती है। जो जितनी यात्राएँ करता है वह उतना ही विख्यात होता है। महात्मा बुद्ध, गुरु नानक, विवेकानंद, शंकराचार्य आदि ने दूर-दूर की यात्राएँ की थीं और वहाँ अपने संदेश का प्रसार किया था। इस कारण हम कह सकते हैं कि यात्रा सुखदायी होती है।

प्रश्न 3.
यात्रा करने के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर :
यात्रा करने के अनेक उद्देश्य हो सकते हैं। जैसे-

  • कोई विशेष आवश्यकता के कारण। ज्ञान बढ़ाने के लिए।
  • विविध प्रदेशों के बारे में जानने के लिए
  • व्यापार में वृद्धि के लिए।
  • पवित्र स्थानों के दर्शन के लिए। अपनी संस्कृति के विकास के लिए।
  • नौकरी पाने के लिए। अध्ययन के लिए, आनंद लेने के लिए।

प्रश्न 4.
लेखक ने गोदावरी को पूर्वजों की अधिष्ठत्री देवी क्यों कहा?
उत्तर :
भारत में नदियों का विशेष महत्व रहा है। यहॉं कुछ लोग नदियों को देवी मानते हैं तो कुछ लोग माता। माना जाता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने भी इसके किनारे निवास किया था। आंध्र प्रदेश और भारत में रहने वाले लोग गोदावरी नदी को अपनी अधिष्ठात्री देवी के रूप में युगों से पूजते आये हैं। इसी कारण लेखक ने गोदावरी को पूर्वजों की अधिष्ठात्री देवी कहा।

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प्रश्न 5.
भारतवासियों को संस्कृति का उपासक क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
भरत की संस्कृति गरिमामयी है। यहाँ के लोगों में भारतीय संस्कृति में विशेष आस्था है। भारत पर्वों का देश माना जाता है। भारत के लोगों का रहन-सहन, रीति-रिवाज सब कुछ संस्कृति से प्रेरित है। यहाँ सुख-सुविधाओं के साधनों से अधिक सांस्कृतिक भावनाओं का महत्व है। भारतीय लोग अपनी संस्कृति के लिए अनेक सुविध्राओं का त्याग कर देते हैं। इसी कारण भारतवासियों को संस्कृति का उपासक कहा जाता है।

प्रश्न 6.
गोदावरी नदी के तट पर स्थित तीर्थ स्थल क्या-क्या हैं?
उत्तर :
गोदावरी नदी के तट पर अनेक तीर्थ स्थल हैं। राजमह्ंद्री, भद्राचलम, धवलेश्वर, हंसलदीवि आदि इनमें से प्रमुख हैं। यहाँ संस्कृति के उपासकों की उपासना देखते ही बनती है।

प्रश्न 7.
लेखक ने गोदावरी को मांता की संज्ञा क्यों दी होगी ?
उत्तर :
गोदावरी नदी धीर – गंभीर माता और पूर्वजों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। इसके जल में अमोघ शक्ति है। राम – लक्ष्मण और सीता से लेकर बूढे जटायु तक सबको स्तन्य – पान कराया है। इसके तट पर अनेक शूरवीरों, तत्व – ज्ञानियों, साधु – संतों, राजनीतिज्ञों और ईश्वर भक्तों ने जन्म लिया है। चतुर्वर्णों की माता है। इन कारणों से लेखक ने गोदावरी को माता की संज्ञा दी होगी।

प्रश्न 8.
लेखक काका कालेलकर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :

  • काका कालेलकर का पूरा नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर है।
  • आपका जन्म सन् 1885 में और मृत्यु 1991 में हुई।
  • इन्होंने गाँधीवादी विचार धारा का पालन किया।
  • इन्होंने हिंदी की खूब सेवा की। वे राज्य सभा के सदस्य भी रहे।

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7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
गोदावरी को माता कहना कहाँ तक उचित है ? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (या) लेखक ने गोदावरी नदी की तुलना माँ से क्यों की होगी? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सत् युग में राम, लक्ष्मण और सीता गोदावरी नदी के तट पर स्थित भद्राचलम प्रांत में वनवास के समय कुछ समय तक वास किया था। वहाँ उन्होंने गोदावरी नदी का जल – पान अवश्य किया होगा। उसी दौरान जटायु ने भी वहाँ निवास किया था। इस नदी के तट पर तत्वज्ञानी, धुरंधर राजनीतिज्ञ, ईश्वर भक्त, साधु – संत, शूरवीरों ने जन्म लिया। इनका पालन – पोषण यहीं हुआ था। गोदावरी नदी चारो वर्णों की माता है और पूर्वजों की अधिष्ठात्री देवी है। उसके जल में अमोघ शक्ति है। उसके पानी की एक बूँद का सेवन भी व्यर्थ नहीं जाता है।

गोदावरी नदी के अखंड प्रवाह में छोटे – बड़े जहाज और नाव नंदी के बच्चे हैं। जैसे कि छोटे बचे माता की गोद में मनमाना नाचते है, खेलते हैं, उछलते हैं और कूदते हैं। उसी प्रकार जहाज और नावें हिचकोले लेतें हुए आगे बढ जाते हैं। प्रवाह में जहाँ – तहाँ पडते हुए भัवरों को देखकर ऐसा लगता है मानो गोदावरी माता के विशाल तट पर इसने स्तन्य पान किया था।

जिस प्रकार एक माता अपने बच्चों की देखाभाल और लालन – पालन बड़े प्रेम से करती है । इसी प्रकार उपरोक्त बातों के आधार पर ही लेखक ने गोदावरी को माता की संज्ञा दी होगी। माता कहना उचित है। माता से तुलना की होगी।

प्रश्न 2.
गोदावरी नदी के प्राकृतिक सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
गोदावरी नदी आंध्रप्रदेश की प्रमुख जीव नदी है। यह अत्यंत सुंदर है। इसके अनेक घाट दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं। राजमहेंद्री के निकट तो यह अद्भुत दिखाई देती है। यहाँ से रेल के पुल से गुजरते हुए यह सबके मन को अपनी ओर आकर्षित करती है। भोर के समय यह और सुंदर दिखती है। राजमहेंद्री के आगे गोदावरी की शान-शोकत बड़ी निराली है। पश्चिम की तरफ़ दूर-दूर तक पहाड़ियों की श्रेणियाँ हैं। बादलों का साँवला रंग गोदावरी के मटमैले जल की झाईई को और गहरा करता है।

गोदावरी का अखंड प्रवाह पहाड़ों में से निकलकर अत्यंत गौरवशाली लगता है। ऐसा लगता है कि छोटे-बड़े जहाज़ गोदावरी के जल में तैर रहे हैं। नदी का किनारा यानी- मनुष्य की कृतज्ञता का अखंड उत्सव! गोदावरी नदी के किनारे के मंदिरों के ऊँचे-ऊँचे शिखर उसकी अखंड उपासना हैं। यहाँ मंदिरों की घंटियों की आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती है। संस्कृति के उपासक भारतवासी यहाँ गंगाजल के आधे कलश गोदावरी में उडड़ेलकर गोदावरी के जल से फिर अपना कलश भर कर ले जाते हैं। यहाँ के टापुओ पर वन-श्री की शोभा भी है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 9th Lesson दक्षिणी गंगा गोदावरी

प्रश्न 3.
गोदावरी के दर्शन करते समय लेखक के मन में कौन्कौन सी भावनाएँ जागृत हुई?
उत्तर :
लेखक गोदावरी नदी की सुंदरता से बहुत प्रभावित हुआ। काका कालेलकर चेन्नई से राजमहेंद्री जा रहे थे। भोर का समय था। बेंजवाड़े से आगे सूर्योदय हुआ। जहाँ-तहाँ विविध छटा वाली हरियाली फैल रही थी। बीच-बीच में छोटे-छोटे तालाब भी मिलते। इनमें रंग-बिरंगे बादलों वाला आसमान नंहाने के लिए उतरता हुआ दिखाई पड़ रहा था। कोव्वूरु स्टेशन के पार होते ही लेखक का म्त गोदावरी मैया के दर्शन के लिए व्याकुल होने लगा। रेल के पुल पर चढ़ते ही भागमती गोदावरी का किनारा दिखा। उन्हें राजमहेंद्री के आगे गोदावरी की शान-शौकत बड़ी निराली लगी। यहाँ लेखक को प्रकृति के ठाट-बाट का अनुभव हो रहा था।

पहाड़ी पर कुछ उतरे हुए धौले-धौले बादल ऋषि-मुनियों जैसे लगते थे। गोदावरी का अखंड प्रवाह पहाड़ों में से निकलकर अत्यंत गौरवशाली लग रहा था। छोटे-बड़े जहाज़ गोदावरी के बच्चे लग रहे थे। इस प्रकार की भावनाएँ ग्रोदाव्री को देखकर लेखक के मन में उभरीं।

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TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

These TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव will help the students to improve their time and approach.

TS 10th Class Hindi 8th Lesson Important Questions स्वराज्य की नींव

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
विष्णु प्रभाकर की एकांकी का शीर्षक ‘स्वराज्य की नींव’ क्यों रखा गया होगा ?
उत्तर :
सन् सत्तावन के समय भारत देश पर अंग्रेजों का शासन रहा था। अंग्रेज लोग भारत के सभी प्रांतों पर आक्रमण कर रहे थे। लक्ष्मीबाई झांसी की रानी थी। अंग्रेज़ लोग झांसी को भी अपने वश करने युद्ध कर रहे थे। बाबा गंगादास, लक्ष्मीबाई से कहते हैं कि स्वराज्य प्राप्त करने के लिए सभी भारतवासी अपनी विलासिता को छोड़कर जन सेवक बनना है। स्वराज्य की प्राप्ति से उत्तम है स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना हर एक को स्वराज्य की नीवं का पत्थर बनना है। इसका अर्थ है सब लोगों में स्वराज्य प्राप्ति की इच्छा होनी चाहिए। नींव के पत्थर बनने से कोई नहीं रोक सकते हैं। यह सब का अधिकार है। इसी आशय पर जोर देते इस एकांकी का शीर्षक “स्वराज्य की नींव” रखा होगा।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
‘स्वराज्य की नींव’ एकांकी की ऐतिहासिकता अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • झॉसी पर अंग्रेजी लोग अपना अधिकार रखना चाहते थे।
  • सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक परिस्थितियों का पतन हुआ था।
  • राजा विलास प्रिय थे।
  • राजाओं में एकता नहीं थी।
  • स्वतंत्रता के लिए संघर्षमय वातावरण था।
  • स्त्रियों की सेना बनाकर झॉँसी लक्ष्मीबाई युद्ध के लिए प्रयत्न कर रही थी।
  • लक्ष्मीबाई स्वराज्य की नीव डालना चाहती थी।
  • लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से कहती है कि में अपनी झासी कभी नहीं दुँगी।
  • झॉसी 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केंद्र बन गया था।
  • झाँसी की सुरक्षा के लिए लक्ष्मीबाई ने युद्ध करना शुरू कर दिया।
  • 18 जून 1858 को लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की।

प्रश्न 2.
‘स्वराज्य की नींव’ एकांकी को दृष्टि में रखकर रानी लक्ष्मीबाई के त्याग और बलिंदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रानी लक्ष्मीबाई कहती हैं कि जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केंवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाये। हम सब मिलकर या तो स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नीव का पत्थर बनेंगे। इन पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई की स्वतंत्रता की तड़प स्पष्ट दिखाई देती है। लेकिन साथ ही वह एक ऐसे स्वतंत्र भारत की कल्पना करती थी जहौँ समाज में भेदभाव न हो। लक्ष्मीबाई मातृभूमि को माता के समान मानती हैं। वे मातृभूमि को अँग्रेजों के हाथों अपवित्र नहीं होने देना चाहत्ती। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकती। इसी कारण उन्हें मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

प्रश्न 3.
लक्ष्मीबाई के जीवन से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर :

  • लक्ष्मीबाई के जीवन से हमें ये संदेश मिलते हैं –
  • हर एक नागरिक को देश – प्रेम तथा देश – भक्ति के साथ रहना चाहिए।
  • हर एक को विलासिता से दूर रहना चाहिए। देश के लिए मर मिटना चाहिए।
  • छुआछूत और ऊँच – नीच के भेदों को भूलकर जन सेवक बनना चाहिए।
  • सेवा, तपस्या और बलिदान आदि गुणों से ओतप्रोत होना चाहिए।
  • अबला हमेशा अबला नहीं आवश्यकता पडने पर वह सबला भी बन सकती है।
  • हर एक को स्वराज्य की नीव का पत्थर बनना चाहिए।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

प्रश्न 4.
‘स्वराज्य की नींव’ एकांकी के आधार पर लक्ष्मीबाई का चरित्र – चित्रण कीजिए।
उत्तर :

  • ‘स्वराज्य की नींव’ के एकांकीकार श्री विष्णु प्रभाकर जी हैं। इनका जन्म सन् 1912 में हुआ। भारत सरकार ने इन्हें “पद्म भूषण” सम्मान से
  • सम्मानित किया है। है। जिन्होंने स्वराज्य की नीव डाली।
  • वीरांगना लक्ष्मीबाई एक साहसी, कर्मपरायण, देश प्रेमी नारी थी। उसने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी।
  • वह अंग्रेजों की कूट नीति को सफ़ल नहीं होने दे रही थी। वह नुपरों की झंकार की अपेक्षा तोपों की गर्जना सुनना चाहती थी।
  • उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया था कि आवश्यकता पङने पर अबला भी सबला बन सकती है। ने इसका डटकर विरोध किया।
  • राज्य में ऊँच – नीच और छुआछूत की भावनाओं को मिटाना, सेवा, तपस्या बलिदान से ख्वराज्य प्राप्त करने के हर संभव प्रयास किये। लिए आवश्यक सामग्री संचित की।
  • अंग्रेज़ों से वीरतापूर्वक युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त कर लीं।
  • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वीरांगना लक्ष्मीबाई देशभक्ति की एक अदुभुत मिसाल थी और यह सिद्ध किया कि लक्ष्मीबाई ने सच्चे अर्थो में ख्तंत्रता की नीव रखी थी।

प्रश्न 5.
मंजिल है कि पास.आकर भी हर बार दूर चली जाती है – महारानी लक्ष्मीवाई ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर :
मंजिल है कि पास आकर भी हर बार दूर चली जाती है – महारानी लक्ष्मीबाई ने निम्नलिखित कारणों से ऐसा कहा होगा। लक्ष्मीबाई स्वराज्य की प्राप्ति के लिए खूब कोशिश कर रही थी। लेकिन उनको मार्ग पर बहुत कष्ट आ रहें थे। उन कष्टों को झेलकर आयी तो इधर सेनापति विलासिता में डूबे हुए थे। उनको स्वराज्य प्राप्त होने की आशा मिलती थी, दूसरे ही क्षण में मार्ग में हिमालय पहाड अड जाता था। लक्ष्मीबाई हिमालय रूपी कष्ट को पार करती थी तो महासागर भयानक लहरों से टकराते हुए सामने आती थी। लक्ष्मीबाई उन लहरों को भी रोकती तो यहाँ सेनापति तात्या विलासिता में डूबकर सो रहा था, जैसे कष्टों के समय में नाविक सो रहा था। कष्ट समय में नाविक सोता तो नाव डूब जाता है। लक्ष्मीबाई को ही इनको संभालना पडता है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

प्रश्न 6.
रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा के लिए क्या प्रयास किये ?
उत्तर :
“खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी” सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्ति लक्ष्मीबाई की वीरता को प्रकट करती है। लक्ष्मीबाई ने यह सिद्ध कर दिखाया कि अबला हमेशा अबत्बा नहीं रहती। आवश्यकता पडने पर वह सबला भी बन सकती है। लक्ष्मीबाई ने सचे अर्थों में देश की स्वतंत्रता की नीव रखी थी। देश के प्रति उनकी कर्मपरायणता बहुत अधिक थी।

वह झाँसी को स्वतंत्रता तथा स्वराज्य दिलाने के लिए अंग्रेज़ो सरकार से बड़ी वीरता के साथ युद्ध करती है। नारी सेना को तैयार करती है। वह झाँसी, कालपी और ग्वालियर के लिए अंग्रेजों से लडती है। झॉसी लक्ष्मीबाई सेवा, बलिदान और तपस्या की देवी है। वह नूपुरों की झंकार के रथान पर तोपों का गर्जन सुनना चाहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वीरांगना लक्ष्मीबाई देश भक्ति की एक अद्भुत मिसाल थी, और उन्होंने देश की सुरक्षा के लिए बहुत प्रयास की।

4 Marks Questions :

प्रश्न 1.
रवराज़्य की नींव का अर्थ अपने शब्दों में बताइए।
उत्तर :
स्वराज्य का नीव का अर्थ भारत को आजाद कराना है। उस समय भारत अँग्रेजों का गुलाम था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने प्रथम स्वतंत्रता सेग्राम का नेतृत्व किया। अतः उन्होंने स्वराज्य प्राप्त करने के युद्ध की नींव रखी। स्वराज्य का मतलब है स्वयं द्वारा स्वयं के नियम बनाकर उसके अनुसार काम करना।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

प्रश्न 2.
लक्ष्मीबाई की दृष्टि में मातृभूमि का क्या महत्व है ?
उत्तर :
लक्ष्मीबाई मातृभूमि को माता के समान मानती हैं। वे मातृभूमि को अँग्रेजों के हाथों अपवित्र नही होने देना चाहतीं। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकती। वे यहाँ के समाज में फैले भेदभाव को भी दूर करना चाहती हैं। इसी कारण वे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

प्रश्न 3.
बाबा गंगादास कौन थे ? उन्होंने लक्षमीबाई से क्या कहा था ?
उत्तर :
बाबा गंगादास रानी लक्ष्मीबाई के गुरु थे। उन्होंने उनसे कहा था कि जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नही बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।

प्रश्न 4.
लक्ष्मीबाई को कौन सी चिंता सताती थी ?
उत्तर :
लक्ष्मीबाई को चिंता सता रही थी कि कही उनकी वीरता कलंकित न होने पाये। उन्हें पता था कि वह युद्ध में जीत नहीं पाएँगी। लेकिन वह मरकर भी स्वराज्य की नीव का पत्थर बनना चाहती थी। लेकिन उनके साथी रावसाहब इत्यादि विलासिता में डूबे थे। रावसाहब के सेनापति तात्या भी उनका साथ दें रहे थे। इस कारण रानी को चिंता थी कि उनकी वीरता कहीं कलंकित न होने पाये।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

प्रश्न 5.
तात्या कौन थे, उनसे लक्ष्मीबाई क्यों नाराज थी ?
उत्तर :
तात्या लंक्ष्मीबाई की सेना के सेनापति थे। लेकिन वे रावसाहब को अपना स्वामी मानते थे। राव साहब युद्ध की घड़ी में भी विलासिता में डूबे थे। तात्या भी उनका साथ दे रहे थे। इसलिए लक्ष्मीबाई तात्या से नाराज थी।

प्रश्न 6.
लक्मीबाई की सहेलियाँ कौन थीं? उनके बारे में दो वाक्य लिखिए।
उत्तर :
लक्ष्मीबाई की सहेलियाँ जूही और मुंदर थी। वे भी उनके साथ युद्ध करने आई थी। वे बहादुर थीं। वे रानी लक्ष्मीबाई का साहस बढ़ा रही थी। जूही एक नृत्यांगना थी। वह तात्या से प्रेम करती थी। मुंदर एक. वीरांगना थी। वह भी निडर होकर अँग्रेज़ों से लोहा लेने आई थी।

प्रश्न 7.
बाबा गंगादास के अनुसार स्वराज्य की प्राप्ति कब होगी?
उत्तर :
बाबा गंगादास का कहना था कि स्वराज्य की प्राप्ति वास्तव में तब होगी जब हमारे समाज से भेदभाव मिट जमयेगा। उन्होंने कहा था कि जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेना, तपस्या और बलिदान से।

प्रश्न 8.
विलासिता में कौन डूवे ह्ञा थे ?
उत्तर :
विलासिता में राव साहब, बाँदा के नवाब और तात्या डूबे हुए थे। युद्धभूमि की चिंता छोड़कर वे नृत्य और मदिरा का आनंद ले रहे थे। इसी कारण रानी लक्ष्मीबाई उनसे नाराज़ थीं।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

प्रश्न 9.
लक्ष्मीबाई और उनके साथी स्वराज्य की नींव क्यों बनना चाहती थीं ?
उत्तर :
लक्ष्मीबाई और उनकी साथी मातृभूमि को माता के समान मानती थीं। वे मातृभूमि को अँग्रेजों के हाथों अपवित्र नहीं होने देना चाहती थीं। वे भारत माता को गुलाम होते नहीं देख सकती थीं। उन्हें पता था कि उनकी मृत्यु के बाद भारत के लोग अँग्रेजों से लड़ने के लिए प्रेरित होंगे। वे जाग जाएँगे। इसलिए वे स्वराज्य की नींव बनना चाहती थीं।

प्रश्न 10.
विष्णु प्रभाकर की दृष्टि में ‘लक्ष्मीबाई अबला नहीं सबला नारी है।’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘ख्वराज्य की नींव’ के एकांकीकार विष्णु प्रभाकर जी हैं। प्रस्तुत एकांकी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित है। इसमें महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा है जिन्होंने स्वराज्य की नींव डाली। लक्ष्मीबाई अपनी महिला सहायकों जूही और मुंदर के साथ युद्धभूमि में खड़ी हैं। लक्ष्मीबाई के सबला होने का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि वह एक छोटी सी सेना लेकर अँग्रेज़ों की विशाल सेना से लोहा लेने के लिए खड़ी है।

महारानी लक्ष्मीबाई मरते-मरते भी स्वराज्य की नींव डालना चाहती हैं। उन्हें मालूम है कि सफलता और असफलता दैव के हाथ में है। लेकिन नीव के पत्थर बननें से उन्हें कोई नहीं रोक सकंता है। रानी अपनी सेना को अँग्रेज़ सेनापति रोज के खिलाफ युद्ध करने को तैयार रहने को कहती हैं। जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाये। हम सब मिलकर या तो ख्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नीव का पत्थर बनेंगे। इस प्रकार विष्णु प्रभाकर ने इस एकांकी में सिद्ध कर दिया है कि रानी लक्ष्मीबाई अबला नहीं सबला है।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।’ ऐसा सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लक्ष्मीबाई के बारे में क्यों कहा गया है? लिखिए। (पाठ के आधार पर)
उत्तर :
वीरांगना लक्ष्मीबाई एक साहसी, कर्मपरायण, देशप्रेमी नारी थी। उसने झाँसी, कालपी, ग्वालियर राज्यों के लिए अंग्रेजों से खूब लड़ाई लड़ी थी। उसने अंग्रेजों की नीद हराम कर दी थी। वह अंग्रेजों की कूट नीति को सफल नहीं होने दे रही थी। वह नूपुरों की झंकार की अपेक्षा तोपों की गर्जना सुनना चाहती थी। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया था कि आवश्यकता पड़ने पर अबला भी सबला बन सकती है।

अंग्रेज झाँसी, कालपी, ग्वालियर आदि राज्यों को हस्तगत कर लेना चाहते थे। रानी लक्ष्मीबाई ने इसका डटकर विरोध किया। उन्होंने विलासिता को छोड़ दिया। राज्य में ऊँच – नीच और छुआछूत की भावनाओं को मिटाना सेवा, तपस्या, बलिदान से स्वराज्य प्राप्त करने के हर संभव प्रयास किये। राज्य में अनुशासन युक्त सेना तैयार की। युद्ध के लिए आवश्यक सामग्री संचित की। साथ ही आवश्यक योजनाएँ बनाकंर अमल में लाया। अंग्रेजों से वीरतापूर्रक युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि – वीरांगना लक्ष्मीबाई देशभक्ति की एक अद्भुत मिसाल थीं। इसीलिए सुभद्रा कुमारी चौहान ने लक्ष्मीबाई के बारे में उक्त पंक्तियाँ कही हैं। यह सिद्ध हो जाता है कि लक्ष्मीबाई ने सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता की नीवं रखी थी।

TS 10th Class Hindi Important Questions 8th Lesson स्वराज्य की नींव

प्रश्न 2.
“स्वराज्य की नींव” का पत्थर बनने के लिए लक्ष्मीवाई ने कौन – कौन से प्रयत्न किये? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एक वीरांगना और कर्मपरायण नारी थी। उन्होंने अंग्रेजों की नींद हराम कर रखी थी। उन्होंने अंग्रेजों की कूटनीति को सफल नहीं होने दिया था और रुकावटें लाती गयी। आनेवाली विपत्तियों को पहले ही भाँप कर उसका हल निकाल लेती थी। उन्होंने स्वराज्य की महत्ता से लोगों को अवगत कराया। उन्होंने लोगों को स्वतंत्रता का स्वाद चखाया था। लक्ष्मीबाई ने छुआ – छूत, ऊँच – नीच का भेद मिटाया। विलासप्रियता को छोड़कर जन सेवक बनना पसंद किया। सेवा, तपस्या और बलिदान से स्वराज्य प्राप्त करने के हर संभव प्रयास किये।

उन्होंने जूही, मुंदर, तात्या जैसे देश भक्तों और देश प्रेमियों की सहायता से स्वराज्य प्राप्ति की योजनाएँ बनायी थी। लक्ष्मीबाई ने स्वराज्य प्राप्त के लिए सारे सुखों को त्याग दिया था। उन्होंने अपने जीवन में यह सिद्ध कर दिखाया कि आवश्यकता पडने पर अबला भी सबला बन सकती है। स्त्रियाँ अबला नही होती। आवश्यकतानुसार सबला बन जाती हैं। इस प्रकार लक्ष्मीबाई नें स्वराज्य प्राप्त करने हेतु अंग्रजों से वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए स्वयं “स्वराज्य की नींव” का पत्थर बन गयी। कई देशप्रेमियों और देशभक्तों को प्रेरणा दी।

TS 10th Class Hindi Important Questions 7th Lesson भक्ति पद

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TS 10th Class Hindi 7th Lesson Important Questions भक्ति पद

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार्ट पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
रैदास को भक्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

  • रैदास हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के कवि है।
  • वह ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि है।
  • उसकी भक्ति दार्य भक्ति की है।
  • रैदास भगवान को चंदन और अपने को पानी के रूप में वर्णन करते हैं।
  • रैदास भगवान को घन – बन और अपने को मोर के रूप में वर्णन के उन दोनों की बीच के संबंध को बताते हैं।

प्रश्न 2.
जीवन की सफलता के लिए सतगुरु का होना अत्यन्त महत्व रखता है। मीरा के पद के आधार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। गुरु हमें ज्ञान देता है। ज्ञान हमें अच्छ-बुरे में भेद करना सिखलाता है। गुरु का सच्चा ज्ञान हमें सत्य के मार्ग पर ले जाता है। गुरु द्वारो दिये ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। गुरु ज्ञान हमारे लिए एक अनमोल रत्न के समान है। इसके सहारे हम जीवन को सफल बना सकते हैं। संसार रूपी भवसागर को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं।

TS 10th Class Hindi Important Questions 7th Lesson भक्ति पद

प्रश्न 3.
मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार लिखिये।
उत्तर :
मीरा कृष्ण भक्ति कवयत्री हैं। उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भावना ही मीरा के पदों का मूल भाव है। उनके पदों में प्रेम, त्याग, भक्ति और आराधना के भाव हैं। मीराबाई हिन्दी की श्रेष्ठ कवयित्री हैं।
मीरा के पदों में उनकी अन्तरात्मा की पुकार है। उनमें हृदय की कसक है। वियोगिनी का आर्त क्रंदन है। आत्म निवेदन है और मार्मिकता तथा कोमलता का अदभुत मिश्रण है। इन पदों में मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन पाने का उद्देश्य प्रकट करती हैं। मीरा की भक्ति महान है।

प्रश्न 4.
मीराबाई के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :

  • मीराबाई प्राचीन हिंदी साहित्य की कवयित्री हैं। आप हिंदी साहित्य में भक्तिकाल की कवयित्री हैं।
  • आप कृष्णोपासिका है। श्रीकृष्ण की प्रेमिका है।
  • आपका जीवन काल सन् 1498 से सन् 1573 तक है।
  • आपकी प्रसिद्ध रचना मीराबाई पदावली है। वे माधर्य भाव प्रयोग में पटु हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
रैदास के पदों के आधार पर उनकी भक्ति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रैदास को रविदास भी कहते हैं। ये निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानमार्गी शाखा के कवियों में प्रमुख हैं। रैंदास की भक्ति भावना दार्य भाव की है। रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन से की है। और स्वयं की पानी से। क्योंकि चंदन में पानी को मिलाने से ही पानी का प्रत्येक कण सुगंधित हो उठता है। उन्होंने ईश्वर को बादल और स्वयं को मोर माना है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर खुशी से झूम उठता है और नाचने लगता है। उसी प्रकार भगवान के स्मरण मात्र से रैदास का मन झूम उठता है। चंद्र को देखकर चकोर संतृप्त होता है।

उसी प्रकार भगवान के स्मरण से रैदास भी तृप्त हो जाते हैं। उन्होंने ईश्वर को मोती और स्वयं को धागा माना है। धागे में मोतियों को पिरोने से एक सुंदर माला बनती है और धागे का महत्व बढ़ जता है। जिस प्रकार मोती के बिना या धागे के बिना माला नहीं बनती। दोनों एक – दूसरे के पूरक हैं। उसी प्रकार सोने में सुहागे से ही चमक आती है और सुंदरता बढ़ जाती है। रैदास ईश्वर को स्वामी और स्वयं को दास मानते हैं। भगवान के प्रति उनकी भक्ति दास्य भांव की है।

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प्रश्न 2.
कवि रैदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिये।
उत्तर :
भक्ति काल के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवियों में रैदास एक है। रैदास का जीवन काल सन् 1482 सन् 1527 माना जांता है। इनकी प्रसिद्ध रचना गुरुग्रंथ साहिब में इनके पद संकलित हैं।

  • हमारे जीवन में भक्ति का बडा महत्व है।
  • रैदास की भक्ति भावना सख्य तथा दास्य भक्ति कां सम्मिलित रूप है।
  • रैदास स्वयं को दास समझंता है और भगवान को मालिक। वे राम – रहींम को एक मानते थे।
  • मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा जैसी दिखावटों पर इन्हें विश्वास नहीं है।
  • वे ईश्वर को अपना स्वामी मानते और इनकी भक्ति में समर्पण की भावना है।
  • चंदन में पानी को मिलाने से पानी का प्रत्येक कण, सुगंधित हो उठता है। इसलिए रैदास अपने को पानी और ईश्वर को चंदन माना है।
  • जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर खुशी से झूम उठकर नाचने लगता है उसी प्रकार भगवान के स्मरण मात्र से रैदास का मन झूम उठता है। इसलिए वह अपने को मोर और ईश्वर को बादल माना है।
  • जिस प्रकार मोती और धागे, सोना और सुहागा – एक दूसरे के पूरक है उसी प्रकार जीवन भगवान (भक्ति) के बिना असंपूर्ण है।

प्रश्न 3.
मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति की किस प्रकार के धन से तुलना की है?
उत्तर :

  • कवइत्री कहती है कि मुझे राम नाम रूपी रत्न की पूँजी मिली। मुझे यह पूँजी सद्गुरु के द्वारा तथा उनकी कृपा से मिली। यह पूँजी मेरे कई
  • जन्मों के लिए भी पर्याप्त है। इसे प्राप्त करने के लिए मैंने जग के सांसारिक वैभवों को खो दिया।
  • मेरी पूँजी ऐसी है कि इसे खर्च करने पर भी खर्च नही होती, कोई चोर भी इसे नहीं चुरा सकता। यह हर दिन 11 / 4 सवाये मूल्य की होती है।
  • कवइत्री और कहती है कि मेरी नाव जो है वह सत्य की है। इसे खेने वाला सद्गुरु है। मैं उसकी कृपा से भव सागर को पार करती हूँ। मेर भगवान तो श्रीकृष्ण (गिरिधर नागर) है। मैं हर्ष के साथ उसके यश गाती हूँ।

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प्रश्न 4.
सामाजिक मूल्यों के विकास में ‘भक्ति’ किस प्रकार सहायक हो सकती है? भक्ति पदों के आधार पर उत्तर लिखिए।
उत्तर :
हमारे मानव जीवन में भक्ति का बडा महत्व है। प्रेम से श्रद्धा और श्रद्धा से भक्ति उत्पत्र होती है। सामाजिक प्राणी मानव को आदर्शमय जीवन बिताते निष्काम भावना से रहना है। भक्ति भादना इसका मूलमंत्र है। भक्ति में शक्ति होती है। भक्ति में ममत्य होता है। मानव समाज में रहते हुए संतों की संगति, भगवान के गुणगान में अनुराग, गुरुसेवा, भगवान का गुणगान, निष्काम कर्म, विश्व को ईश्वरमय समझना, दूसरों के अपकार गुणों पर ध्यान न देना, निष्कपट रहना आदि भक्ति के महान गुण हैं। भक्ति ये सब सद्गुण देती है। वह संकल्प की दृढता देती है। वह शांति और आनंद देती है। भक्ति पदों में हमें यही भावना स्पष्ट होती है। सामाजिक मूल्यों के विकास में भक्ति ही बडा असरदार है। इस कथन के द्वारा हम स्पष्ट कर सकते हैं।

1. उपदालवा-मांतिबा
नीचे दिये गये पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।

I. प्रभुजी, तुम चंदन हन पाव्दि।
जाकी अँग – जँग बास समानी।
प्रशुजी, तुम घन – बन हम मोरा।
जैसे चितवहि चंद्र चकोरा।

प्रश्न :
1. रैदास भगवान को किससे तुलना करते हैं?
2. कवि रैदास अपने को किससे तुलना करते हैं?
3. प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति किस भाव की है?
4. “चितवहि’ का अर्थ क्या है?
5. भवसागर को तर करनेवाला कौन है?
उत्तर :
1. रैदास भगवान को चंदन से तुलना करते हैं।
2. रैदास अपने को पाती से तुलना करते हैं।
3. प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति दास्य भाव की थी।
4. चितवहि का अर्थ है “देखता” है।
5. भवसागर को तर करनेवाला गुरु ही है।

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II. प्रभुजी, तुम नोती हम धागा।
जैसे सोनहि मिलन सुहागा।
प्रभुजी, तुम स्वामी हम दासा।
ऐसी भवित्त करै रैदासा।।

प्रश्न :
1. रैदास के अनुसार भगवान किसके समान है?
2. हम सब किसके समान है?
3. इस पद में किसकी भक्ति का वर्णन है ?
4. सदृगुरु के मार्ग दर्शन से हमें क्या मिल सकता है?
5. उपर्युक्त पद्यांश के कवि कौन है?
उत्तर :
1. रैदास के अनुसार भगवान मोती के समान है।
2. हम सब दास के समान हैं।
3. इस पद में रैदास की भक्ति का वर्णन है।
4. संत्गुरु के मार्ग दर्शन से ज्ञान और मुक्ति मिल सकता है।
5. उपर्युक्त पद्यांश के कवि हैं श्री रैदास।

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III. पायो जी क्हें तो रान रतन धन पायो।
कस्तु अमोलक दी क्हारे सतनुरु, किशप कर अपनायो
जनम – जनम की पूँजी पायी. जन में सभी खोवायो।
खरच न खूटै, चोर न लूटै, दिन – दिन बढ़्त सवायो।
सत की नाँव खेवटिया सतमुछु, भवसावार तर आयो।
मीरा के प्रभु विरिधर जाणर, हरख-हरख जस पायो।

प्रश्न :
1. मीरा ने कौनसा धन पाया है?
2. मीराबाई के प्रभु कौन है ?
3. श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति कैसी है?
4. सतगुरु के मार्ग दर्शन से हमें क्या – क्या मिल सकता है?
5. अमोलक वस्तु मीरा को किसने दी ?
उत्तर :
1. मीरा ने राम रतन धन पाया है।
2. मीरा के प्रभु गिरिधर नागर है।
3. श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति माधुर्य एवं दास्य है।
4. सत्गुरु के मार्ग दर्शन से हमें ज्ञान और मुक्ति मिल सकता है।
5. अमोलक वस्तु मीरा को सत्गुरु ने दी है।

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IV. पायो जी क्हें तो रान रतन धन पायो।
वस्तु अनोलक दी क्हारे सतमुरु, किरपा कर अवनायो।
जनम – जनम की पूँजी पायी, जठ में स्षभी खोवायो।
खरव न खूटै, चोर न लूटै, दिन – दिन बढ़त सवायो।
सत की नाँव खेवटिया सतठुह, भवसाबार तर आयो।
नीरा के प्रशु विरिधर नावर, हरखनहख जस पायो॥

प्रश्न :
1. मीरा को अमोलक वस्तु किसने दी ?
2. मीरा ने क्या पाया ?
3. मीरा की नाँव का खेवटिया कौन है ?
4. मीरा ने किस प्रकार की पूँजी पायी ?
5. इस पद की कवयित्री कौन है?
उत्तर :
1. मीरा को अमोलक वस्तु सतगुरु ने दी।
2. मीरा ने जन्म – जन्म की पूँजी पायी।
3. मीरा की नॉव का खेवटिया सतगुरु है।
4. मीरा ने जो पूँजी पायी वह ऐसी है कि उसे खरच न खूटता, चोर न लूटता और वह दिन – ब – दिन बढ़ता जाता है।
5. इस पद की कवइत्री मीराबाई है।

4. Marks Buastrions :

प्रश्न 1.
भगवान की तुलना तुम किससे करोगे? क्यों?
उत्तर :
भगवान की तुलना मैं प्रकृति से करूँगा। क्योंकि प्रकृति ही सबका पालन-पोषण करती है। यहीं से हम हवा और पानी पीते हैं। यहीं से हम रोटी, कपड़ा और मकान बनाते हैं। प्रकृति सबका समान भाव से ध्यान रखती है। इसकी गोद में हम खेल-कूदकर बड़े होते हैं। इसलिए मैं भगवान की तुलना प्रकृति से करूँगा।

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प्रश्न 2.
माधुर्य भक्ति के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
ईश्वर को पति या सखा मानकर उनकी भक्ति करना माधुर्य भक्ति कहलाती है। मीराबाई का नाम माधुर्य भाव की भक्ति के लिए जाना जाता है। ईश्वर को पति या सखा मानकर उसके प्रति प्रेम रखना भक्ति की एक परंपरा है। इसमें हम स्वयं को ईश्वर के प्रति अर्पित कर देते हैं।

प्रश्न 3.
अपने मनपसंद तीन संत कवियों के नाम और उनकी रचनाएँ बताइए।
उत्तर :
मेरे मनपसंद तीन संत कवि कबीर, रैदास और रहीम है। कबीर ने बीजक नामक ग्रंथ लिखा है। इसके तीन भाग है- साखी, सबद और रमैनी। रैदास ने छिटपुट पद और भजन लिखे हैं। इनके पद गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं। इनका असली नाम रविदास था। रहीम ने अनेक नीति दोहे लिखे है। रहीम दोहावली, रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, शृंगार सोरठा आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।

प्रश्न 4.
‘भवसागर’ पार करने के लिए हमें किनकी ज़रूरत है?
उत्तर :
भवसागर पार करने के लिए हमें गुरु की ज़रूरत है। गुरु हमें ज्ञान देता है। इस ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। इसे जितना खर्च करो उतना बढ़ता है। गुरु ज्ञान के सहारे हम अपने जीवन को सफल बनाते हैं। इसके सहारे ही हम संसाररूपी भवसागर को सफलतापूर्रक पार कर लेते हैं। हमारा नाम संसार में हमेशा के लिए अमर हो जाता है।

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प्रश्न 5.
मीरा भवसागर को कैसे पार करना चाहती हैं?
उत्तर :
मीरा भवसागर को सत्य के सहारे पार करना चाहती हैं। उनके गुरु ने उन्हें राम रत्न रूपी अनमोल ज्ञान दिया है। वे इस ज्ञान के सहारे कृष्ण भक्ति में लीन हैं। वे इस ज्ञान का प्रसार करते हुए, ईश्वर के गुण गाते हुए इस संसार रूपी भवसागर को पार कर्ना चाहती हैं।

प्रश्न 6.
रैदान ने अपनी तुलना किन चीजों से की हैं ?
उत्तर :
रैदास कहते हैं कि हे प्रभुजी! आप चंदन हो तो मैं पानी हूँ। तुम बादल हो तो में मोर हूँ। तुम मोती हो मैं धागा हूँ। मैं आपकी भक्ति में खो जाना चाहता हूँ। मैं तुम्हारा दास हूँ। उनकी भक्ति में समर्पण की भावना है।

प्रश्न 7.
भक्ति मार्ग के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास कैसे हो सकता है?
उत्तर :
भक्ति मार्ग के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास होता है। भक्ति और नैतिक मूल्य परस्पर मिले-जुले हैं। एक भक्त किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। वह ईश्वर की बनाई हर वस्तु का सम्मान करता है। वह प्रकृति के कण-कण की रक्षा करता है। भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति विशेष प्रेम। भगवान के प्रति भक्ति रखने के लिए सहृदयता, सादगीपन,सत्यविचार, स्वच्छ. मन, गुरु की महत्ता, लोकमर्यादा और आदर्श मानवतावाद जैसे नैतिक मूल्यों की जरूरत होती है।

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प्रश्न 8.
जीवन में गुरु का क्या महत्व है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। गुरु हमें ज्ञान देता है। ज्ञान हमें अच्छे-बुरे में भेद करना सिखलाता है। गुरु का सच्चा ज्ञान हमें सत्य के भार्ग पर ले जाता है। गुरु द्वारा दिये ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। गुरु ज्ञान हमारे लिए एक अनमोल रत्न के समान है। इसके सहारे हम जीवन को सफल बना सकते हैं। संसार रूपी भवसागर को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
रैदास ने किन उदाहरणों के द्वारा भक्त और भगवान के बीच संबंध स्थापित किया ?
उत्तर :
रैदास जी ने भगवान की तुलना चंदन, मेघ, मोती और स्वामी से की है। उनका कहना है कि ईश्वर चंदन है और हम पानी हैं। वह मेघ है और हम मोर हैं। हम धागा हैं और वह मोती है। वह मालिक है और हम उसके दास हैं।

प्रश्न 10.
मीराबाई ने गुरु की महिमा के बारे में क्या बताया ?
उत्तर :
मीरा का कहना है कि गुरु हमें अमूल्य ज्ञान देता है। ज्ञान ऐसा धन है जो खर्च करने से बढ़ता है। ज्ञान कोई चोरी भी नहीं कर सकता। दिन-द-दिन यह सवा गुना बढ़ता है। गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान ही हमें भवसागर से पार लगाता है।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
मीराबाई के अनुसार जनम्जनम की पूँजी क्या है ? समझ्भाइ।
उत्तर :
मीराबाई के अनुसार जनम-जनम की पूँजी गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान है। उन्होंने गुरु की महिमा का गुणगान किया है। मीरा कहती हैं कि मेरे गुरु ने मुझे भक्ति रूपी धन दिया है। यह धन रामरूपी रत्न के समान है। गुरु की विशेष कृपा के कारण मुझे यह धन मिला है। मेरा सौभाग्य है कि उन्होंने मुझे अपनी शिष्या के रूप में स्वीकार किया। मैंने सेंसार में सबकुछ खोकर जन्मजन्म की पूँजी प्राप्त कर ली है। वह पूँजी है- ज्ञान। यह ज्ञानधन अमूल्य है। इसकी विशेषता है कि यह कभी खत्म नहीं होता। खर्च करने पर यह् बढ़ता है। इसे कोई चोर भी नहीं लूट सकता। यह धन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है। मीरा कहती हैं कि जीवन सत्य की नाव है। इसके केवट मेरे सतगुरु है। उन्होंने मुझे ज्ञान देकर भवसागर से पार उतार दिया। मेरे प्रभु गिरधर नागर हैं। सैं उनके समक्ष अपने गुरु का यश गा रही हूँ।

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प्रश्न 2.
मीरा ने भगवान नाम रूपी धन की क्या विशेषता बतायी है? विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। (या) मीरा ने राम रतन धन पाने में गुरु की कृपा का वर्णन किया है। पाठ के आधार पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मीरा कहती है कि मैंने रामरतन (भगवान नाम रूपी) धन पाया है। इस अनमोल वस्तु को उन्होंने सत्गुरु की कृपा से ही पाया है। गुरु के मार्गदर्शन से ही यह जन्म – जन्म की पूँजी है। इसे पाने के लिए उन्होंने संसार में (सब कुछ) सभी को खोया है। यह ऐसा धन है जिसे न तो खर्च किया जा सकता है और न ही चोर लूट सकता है। यह धन जितना खर्च करो उतना ही बढ़ता चला जाता है। इस धन में दिन – ब – दिन वृद्धि होती ही रहती है। सत्य रूपी नाव के केवट स्वयं सत्गुरु हैं जो उन्हें इस संसार रूपी भवसागर से पार लगाते हैं। मीरा कहती है कि मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हैं। मैं बार – बार उनके यश का गान करूँगी।

प्रश्न 3.
रैदास के पद का भाव अपने शब्दों में लिखिए। (या) रैदास ने अपने पद में दास्य भाव को किस प्रकार दर्शाया है? पाठ के आघार पर व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
रैदास को रविदास भी कहले हैं। ये निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानमार्गी शाखा के कवियों में प्रमुख है। रैदास की भक्ति भावना दास्य भाव की है। रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन से की है। और स्वयं की पानी से। क्योंकि चंदन में पानी को मिलाने से ही पानी का प्रत्येक कण सुगंधित हो उठता है। उन्होंने ईश्वर को बादल और स्वयं को मोर माना है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर खुशी से झूम उठता है और नाचने लगता है। उसी प्रकार भगवान के स्मरण मात्र से रैदास का मन झूम उठता है। चंद्र को देखकर चकोर संतृप्त होता है। उसी प्रकार भगवान के स्मरण से रैदास भी तृप्त हो जाते हैं। उन्होंने ईश्वर को मोती और स्वयं को धागा माना है।

धागे में मोतियों को पिरोने से एक सुंदर माला बनती है और धागे का महत्व बढ़ जता है। जिस प्रकार मोती के बिना या धागे के बिना माला नही बनती। दोनों एक-दूसरे के पूरक है। उसी प्रकार सोने में सुहागे से ही चमक आती है और सुंदरता बढ़ जाती है। रैदास ईश्वर को स्वामी और स्वयं को दास मानते हैं। भगवान के प्रति उनकी भक्ति दास्य भाव की है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 6th Lesson अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी

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TS 10th Class Hindi 6th Lesson Important Questions अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकला
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चाए पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
बशीर अहमद ने अपने मित्र को आगे की पढ़ाई के लिए हिन्दी के संघंध में क्या सलाह दी ? Junc 2015
उत्तर :
बशीर अहमद ने अपने मित्र को आगे की पढ़ाई के लिए हिंदी के संबंध में यह सलाह दी कि आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिदी का महत्वपूर्ण स्थान है। हम इससे अपने उज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते है। इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए प्रथम भाषा हो या द्वितीय भाषा, हिंदी का चयन करना ही लाभदायक है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 6th Lesson अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की उच्नति व प्रगति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

  • भारत एक विशाल देश है। इसकी गौरवशाली परंपरा है। भारत की राष्ट्र भाषा बनने का सौभाग्य हिंदी को ही मिला है। यह सबकी संस्कृति, सभ्यता वा गरिमा का प्रतीक है।
  • अब हिदी न केवल भारत की बल्कि विश्व की भाषा बन चुकी है।
  • संसार के विविध क्षेत्रों में हिंदी करोड़ों लोगों की जीविका बन चुकी है।
  • आज भारत के अलावा बंग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, भूटान, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिडाड एवं टुबेग़ो, द.अफ्रीका, बहरीन, कुवैत, ओमान, कत्तर, सौदी अरब गण राज्य, श्रीलंका, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, मॉरिशस और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में हिंदी की माँग बढती ही जा रही है। विदेशों में भी हिंदी की रचनाएँ लिखी जा रही है।
  • इसमें चहाँ के साहित्यकारों का भी योगदान है।
  • विदेशों में भारतीयों से आपसी व्यवहारं के लिए वहाँ के लोग भी हिदी सीख रहे है।
  • भारत के अलावा अन्य देशों में भी कई संख्थाएँ हिंदी के प्रचार व प्रसार में जुटी हुई है।
  • आज विश्व भर में करीब डेढ़ सौ से अधिक विश्व विद्यालय हिंदी संबंधी कोर्सों का संचालन कर रहे हैं। बैंक, मीडिया, फ़िल्म उद्योग आदि क्षेत्रों में हिदी की उपयोगिता दिन – ब – दिन बढ़ती ही जा रही है। हिंदी नये – नये रोज़गारों का प्रमुख आधार बन चुकी है।
  • सारा विश्व हिंदी का महत्व जान चुका है। हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाते है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिदी “विश्व भाषा” है।

4 Marks Questions :

प्रश्न 1.
भारत के अलावा किन – किन देशों में हिंदी की माँग बढ़ रही है ?
उत्तर :
भारत के अलावा बंग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, भूटान, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिटाड एवं टुबेगो, दक्षिण अफ्रीका, बहरीन, कुवैत, ओमान, कत्तर, सौदी अरब गणराज्य, श्रीलंका, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, मारिशस, आस्ट्रेलिया आदि देशों में हिंदी की माँग बढ़ रही है।

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प्रश्न 2.
हिंदी की उपयोगिता किन – किन क्षेत्रों में बढ़ती जा रही है ?
उत्तर :
हिंदी की उपयोगिता बैंक, मीडिया, फिल्म उद्योग आदि क्षेत्रों में बढ़ती जा रही है।
हिंदी आज नये – नये रोजगारों का प्रमुख आधार बन चुकी है ।

प्रश्न 3.
भारत में हिंदी का प्रचार किन – किन संस्थाओं के द्वारा हो रहा है ?
उत्तर :

  • भारत में हिंदी का प्रचार करने के लिए दक्षिण भारत हिदी प्रचार सभा के नाम से आंध्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में संस्थाएँ कार्यरत हैं।
  • इसके अलावा केंद्रीय हिंदी संस्थान हिदी का प्रसार एवं प्रचार में योगदान दे रहा है।
  • इनके अलावा अनेक वेबसाइट हिंदी की सेवा में तत्पर हैं – जिनमें मुख्य हैं – www. rajbasha. nic. in, www.basha india. com, www. ssc. nic.in आदि।

प्रश्न 4.
हिंदी भाषा भारतीयों की साँसों में बसी हुई है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सांस्कृतिक दृष्टि से हिंदी का बड़ा महत्व है। यह भारतीयों की साँसों में बसी हुई है। भारत में विभिन्न भाषाएँ बोलनेवाले और भिन्न – भिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं। देश की संस्कृति का मुख्य केंद्र भाषा है। भारतीय संस्कृति को बढ़ाने में हिंदी का प्रमुख स्थान है। हिंदी का प्रचार विदेशों में भी हो रहा है। जिसके कारण हम वहाँ की संस्कृतियों के बारे में भी जान पा रहे हैं। देश की संस्कृति की रक्षा भी हिंदी से ही होती है। हिंदी से ही अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं।

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प्रश्न 5.
हिदी से ही अनेकता में एकता का दर्शन होता है। अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हिदी देश को जोड़ने वाली कड़ी है। क्योंकि हिंदी राजभाषा के साथ – साथ राष्ट्रभाषा होने के कारण विभिन्न प्रांतों के लोगों को आपस में जानने – समझने में सहायक है। हिंदी के द्वारा ही लोग एक – दूसरे के आचार – विचार, संप्रदाय, संस्कृति को जानकर अपना रहे हैं। हिंदी भाषा विश्व में भी प्रचलित होने के कारण लोग आपस में जुड़ रहे है। इस प्रकार हिंदी सभी प्रातों से जुडने में सहायता कर रही है। लोगों को एकता के सूत्र में बाँध. रही है। विभिन्रता में अभिन्रता के दर्शन हो रहे हैं।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
हिंदी अनेकता में एकता को दर्शानेवाली भाषा है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :

  • हिंदी अनेकता में एकता को दर्शानेवाली भाषा है।
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में देश को एकता के सूत्र में बाँधने हिंदी भाषा की ही आवश्यकता हुयी।
  • हिंदी से ही हम सारे भारत की पहचान अच्छी तरह कर सकते हैं।
  • हमें भारत के सभी प्रांतों से जुडने के लिए हिंदी की ही आवश्यकता है। क्योंकि हिंदी ही भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँधती है।
  • भारत में विभिन्न जातियों, धर्मों और भाषाओं के लोग रहते हैं। इसलिए इस देश में विभिन्नता है । इस विभिन्नता को दूर करके उसमें एकता
  • लानेवाली भाषा हिंदी ही हैं।
  • भारत में हिदी बोलनेवालों की संख्या अधिक है । इसलिए हिंदी एकता को बढ़ानेवाली भाषा है।
  • हिंदी अपने शाब्दिक अर्थ से भी भारतीय कहलाती है।

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प्रश्न 2.
देश के लोगों को जोड़कर रखने में हिंदी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। स्पष्ट कीजिए। (या)
हिंदी को जोड़नेवाली कड़ी कहा गया है। क्यों ? समर्थन कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से हिंदी महत्वपूर्ण भाषा है। क्योंकि यह एक सरल और मधुर भाषा है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी हिंदी का बड़ा महत्व है। हिदी भारतीयों की साँसों में बसी हुई है। यह सबकी संस्कृति, सभ्यता और गरिमा का प्रतीक है। विश्व के साहित्य में भी हिन्दी का विशेष स्थान है। भारत के ग्यारह राज्यों में हिंदी भाषा बोली जाती है। अर्थात् भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। अहिंदी प्रांतों में हिंदी का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से द्वितीय भाषा के रूप में स्कूलों में पढ़ायी जा रही है।

हमारे संविधान ने 14 सितंबर 1949 को इसे राजभाषा के रूप में गौरवान्वित किया है। भारत एक विशाल देश है। यहाँ विभिन्न भाषा, धर्म, संस्कृति के लोग रहते हैं। इन सबको एकता के सूत्र में बाँधने में हिंदी का बड़ा योगदान है। हिंदी स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक हम सबको जोड़कर रखने में विशेष भूमिका निभा रही है। आर्थिक, मनोरंजन, शिक्षा, संस्कृति आदि कई क्षेत्रों में हिंदी के माध्यम से ही लोग आपस में जुड़ पा रहे हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिंदी जोड़ने वाली भाषा है, तोड़ने वाली नहीं।

लोग शिक्षा, नौकरी, जीवन यापन के लिए एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जाकर हिदी भाषा के माध्यम से ही अपने भावों का आदान – प्रदान कर रहे हैं। एक – दूसरे को समझकर, मिलजुलकर रह रहे हैं। एक – दूसरे की संस्कृति को अपनाने में रुचि दिखा रहे हैं।
इस प्रकार राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से हिदी महत्वपूर्ण भाषा है।

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प्रश्न 3.
भारत के सभी प्रांतों को जोडने में हिंदी की क्या भूमिका है ?
उत्तर :

  • हिदी दिलों को जोडनेवाली भाषा है, तोडनेवाली नहीं।
  • भारत देश के कई राज्यों में हिदी बोली जाती है।
  • भारत देश में हिंदी बोलने वालों की संख्या अधिक है। अर्थात् देश भर में कई करोडों लोग हिंदी को अच्छी तरह बोल एवं जान सकते हैं।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भी हिंदी भाषा देश को एकता के सूत्र में बाँधी।
  • आज हमें एक से अधिक भाषाएँ सीखना ज़रूी है। जिनमें हिंदी का योगदान ही अधिक है।
  • हिंदी से हम सारे भारत की पहचान अच्छी तरह से कर सकते हैं।
  • भारत के अलग – अलग प्रांतों में अलग – अलग भाषाएँ बोली जाती हैं । इसलिए हमें सभी प्राँतों से जुडने के लिए हिदी भाषा की हीं आवश्यकता है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 5th Lesson लोकगीत

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TS 10th Class Hindi 5th Lesson Important Questions लोकगीत

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार्ट पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
लोकगीतों का आज मनोरंजन का साधन कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर :

  • लोच, ताजगी भरा कर लोकगीतों को मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता है।
  • साधारण ढ़ोलक, झॉझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से लोकगीतों को मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता है।
  • गाँवों और इलाकों की बोलियों के कारण इन्हें मनोरंजन का साधन बनाया जा सकता हैं।
  • नाच – गान दोनों साथ-साथ चलाने के कारण इन्हें मनोरंजन का साधन बना सकेंगे।

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निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
शास्त्रीय संगीत की तुलना में लोकगीत अपना एक विशेष स्थान रखते हैं, इस कथन की पुष्टि करते हुए अपने क्षेत्रीय लोकगीतों का उह्लेख कीजिए।
उत्तर :
मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये गीत साधारण ढोलक, झँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से माये जाते हैं। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। लोकगीतों के कई प्रकार हैं। आदिवासियों का लोकगीत बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। ये मध्य प्रदेश, दक्कन, छोटा नागपुर में गोंड – खांड, भील संथाल आदि में फैले हुए हैं।

इनकी भाषा के संबंध में कहा जाय तो ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते है।। यही इनकी सफलता का कारण है। स्त्रियाँ भी लोकगीतों को सिरजती हैं और गाती हैं। नारियों के गाने साधारणतः दल बॉधकर गाये जाते हैं। विवाह, जन्म, सभी ऋतुओं में, होली, बरसात में ये गीत गाये जाते हैं। सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काठियावाड़ गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा – आंध्र तक लोकगीत गाये जाते हैं। इनके अपने अपने विद्यापति हैं। गुरजात का दलीय गायन “‘गरबा’ है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है। गाँव के गीतों के अनंत प्रकार हैं। जीवन जहाँ इठला – इठलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है। उद्ाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं।

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प्रश्न 2.
“लोकगीतों का संबंध विशेषतः स्त्रियों से है।” – इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर :

  • अनंत संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है। ये भी लोकगीत हैं।
  • एक विशेष बात यह है कि नारियों के गाने साधारणतः अकेले नहीं गाये जाते हैं, दल बाँधकर गाये जाते हैं। अनेक कंठ एक साथ फूटते हैं यद्यपि अधिकतर उनमें मेल नहीं होता, फिर भी त्यौहारों और शुभ अवसरों पर वे बहुत ही भले गाते लगते हैं।
  • गाँवों और नगरों में गायिकाएं भी होती हैं जो विवाह, जन्म आदि के अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं। इन गीतों का संबंध विशेषतः रत्री से हैं।
  • सभी ऋतुओं में स्रियाँ उह्नासित होकर दल बाँधकर गाती हैं। पर होली,बरसात की कजरी आदि तो उनकी अपनी चीज़ है, जो सुनते ही बनती है।पूरब की बोलियों में अधिकतर मैथिल-कोकिल के गीत गाये जाते हैं। पर सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और
  • कठियावाड – गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा-तेलंगाणा तक अपने – अपने विद्यापति हैं।
  • स्तियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। अधिकतर उनके गाने के साथ नाच का भी पुट होता है।
  • गुजरात का एक प्रकार का दलीय गायन ‘गरबा’ है जिसे विशेष विधि से घेरे में घूम-घूमकर औरतें गाती हैं। साथ ही लकड़ियाँ भी बजाती जाती हैं। जो बाजे का काम करती है।
  • इसमें नाच -गान साथ-साथ चलते हैं। वस्तुतः यह नाच ही है। सभी प्रांतों में यह लोकप्रिय हो चला है।
  • इसी प्रकार होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है जिसे दल के दल लोग गाते हैं, स्त्रियाँ विशेष तौर पर।

प्रश्न 3.
लोकगीतों का चलन अधिकतर देहातों में ही क्यों रहता है?
उत्तर :
लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शारत्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिए साधना की जरूरत नही होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। सदा से ये गाये जाते रहे हैं और इनके रचनेवाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झॉझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते है।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार तो बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में हैं। इनका संबंध देश के देहाती जनता से संबंध हैं। उनके राग भी साधारणतः पीलु, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं। उपर्युक्त इन संभी कारणों से लोकगीत का चलन अधिकतर देहातों में ही रहता है।

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प्रश्न 4.
लोकगीतों का हमारे जीवन में क्या महत्व होता है?
उत्तर :
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण रथान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है। लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न है। लोकगीत सीधे जनता का संगीत है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं इनके लिए साधना की जरूरत नही होती। त्योहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं। ये गीत बाजों, ढोलक, करताल, झाझ और बॉँसुरी आदि की मदद से गाये जाते है।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार बडा ही ओजख्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्यप्रदेश, दक्रन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं। पहाडियों के अपने – अपने गीत है। वास्तविक लोकगीत देश के गाँचों और देहातों में हैं। सभी लोकगीत गॉंवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रेदश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं।

बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत हैं। पंजाब में महिया गायी जाती है। राजरथानी में ढ़ोला मारू आदि गीत गाते हैं। भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है। इन गीतों में अधिकर्तर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है। इन मीतो में करुणा और बिरह का रस बरसता है। जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं। एक दूसरे के जवाब के रूप में दल बाँधकर ये गाये जाते हैं। आल्हा एक लोकप्रिय गान है। गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं। स्त्रियाँ ढ़ोलक की मदद से गाती हैं। उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।

II. अधिव्यकित-पृणनात्मकता (4 Marks Questions)

प्रश्न 1.
लोकगीत और शारत्रीय संगीत में क्या अंतर है ?
उत्तर :

  • लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न है।
  • लोकगीत सीधे जनता के संगीत है। लोकगीत घर, गाँव और नगर की जनता के गीत है।
  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।
  • इनके अलावा शास्त्रीय संगीत के लिए तो कई साधनों की ज़ूूरत होती है। शास्त्रीय संगीत के लिए साधना की भी जरूरत है।

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प्रश्न 2.
लोकगीत किन – किन अवसरों पर गाये जाते हैं ?
उत्तर :
लोकगीत त्यौहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं।
त्यौहारों पर नदियों में नहाते समय के नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मटकोड, ज्यौनार के, संबंधियों के लिए प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के अलग – अलग गीत लोकगीतों के रूप में गाये जाते हैं।

प्रश्न 3.
लोकगीत के गायन में किन वाद्यों की सहायता ली जाती है ?
उत्तर :
लोकगीत बाजों की मदद के बिना ही साधारण ढोलक, झांझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाये जाते हैं।

प्रश्न 4.
लोकगीत किन – किन रागों में गाये जाते हैं ?
उत्तर :
लोकगीत साधारणतः पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठा आदि रागों में गाये जाते हैं।

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प्रश्न 5.
भगवतशरण उपाध्याय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
भगवतशरण उपाध्याय हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार है। इनका जन्म सन् 1910 में हुआ। इन्होंने कविता, कहानी, रिपोर्ताज, निबंध और बाल – साहित्य में विशेष छाप छोडी है।
रचनाएँ : विश्व साहित्य की रूप रेखा, कालिदास का भारत, टूँठा आम और गंगा गोदावरी आदि।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
शारत्रीय संगीत के सामने लोकगीत हेय माने जाते हैं – क्यों ?
उत्तर :

  • शास्त्रीय संगीत तो सचमुच शास्त्रीय है। शास्त्रीय संगीत के लिए साधना की आवश्यकता है।
  • शास्त्रीय संगीत के लिए विभिन्न राग, ताल तंथा लय तथा संगीत का अध्ययन की आवश्यकता है।
  • शारत्रीय संगीत के लिए विविध प्रकार के संगीत वाद्यों और साधनों की आवश्यकता है।
  • लेकिन लोकगीतों के लिए इन सबकी कोई आवश्यकता नहीं। इसलिए शास्त्रीय संगीत के सामने एक समय लोकगीत हेय माने जाते हैं।

प्रश्न 2.
मनोरंजन की दुनिया में लोकगीत का महत्वपूर्ण स्थान है। साबित कीजिए।
उत्तर :

  • मनोरंजन की दुनिया में लोकगीतों का महत्वपूर्ण रथान है। इस विषय में कोई अतिशयोक्ति नही है।
  • हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है।
  • गीत – संगीत के बिना हमारे मन रसा से नीरस हो जाता है।
  • लोकगीत जो हैं वे घर गाँव और जनता के गीत हैं।
  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।
  • इन के लिए कोई साधना तथा साधन की जरूरत नहीं होती।
  • त्यौहारों पर, नदियों में नहासमय के, नहाने जाते हुए राह के, विवाह के, मटकोड, ज्यौनार के, संबंधियों के प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों में ये गाये जाते हैं।

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प्रश्न 3.
भारतीय संस्कृति लोकगीतों में झलकती है। कैसे ?
उत्तर :

  • हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है।
  • मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • लोकगीतों से हमें उत्तेजना, उत्साह आदि मिलते हैं।
  • भारतीय संस्कृति देश के उत्सव, त्यौहार एवं देश के देहातियों और गाँवों के जनता पर निर्भर रहती है।
  • लोकगीतों में अपने – अपने प्राँत की संस्कृति झलकती है। लोकगीत बडा ही ओजस्वी और सजीव है।
  • इनके द्वारा विभित्र प्रातों के लोगों के रहन – सहन, आचार – व्यवहार, रीति – रिवाज़ आदि हमें मालूम होते हैं। लोकगीत त्यौहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं।
  • लोकगीतों में लोच, ताजगी और लोकप्रियता है।
  • त्यौहारों के समय, नदियों में नहाते समय, विवाह के, मटकोड, ज्यौनार के संबंधियों के प्रेमयुक्त गाली के, जन्म आदि सभी अवसरों के
  • अलग – अलग लोकगीत गाये जाते हैं। जो देश की संस्कृति को प्रतिबिबित करते हैं।
  • इसीलिए कहा गया कि भारतीय संस्कृति लोकगीतों से झलकती हैं।

प्रश्न 4.
देहातियों के मनोरंजन का साधन लोकगीत है – इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध हैं। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतो का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।
ये लोकगीत घर, गाँव और जनता के गीत हैं। इनके लिए कोई साधना की जरूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं। ये गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। ये बडे आह्लादकर और आनंददायक होते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये ग्रामीण जनता के मनोरंजक साधन हैं।

  • त्यौहारों और विशेष अवसरों पर लोकगीत गाये जाते हैं। ये गाँवों और देहातों में गाये जाते हैं। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • लोकगीतों को गाने वाले भी अधिकतर गाँवों की स्त्रियाँ ही है। इसलिए इन लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
    इनके लिए कोई साधना की जरूरत भी नहीं होती है।
  • इसलिए इनमें मुख्यतः ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इन देहाती गीतों के रचयिता कोरी कल्पना को मान न देकर अपने गीतों के विषय रोजमर्रा के बहते जीवन से लेते हैं। जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं।
  • इनके राग भी साधारणतः पीलू, सारंग, दुर्गा, सावन, सोरठ आदि हैं। इसलिए भी इन गीतों में ग्रामीण जनता की मार्मिक भावनाएँ हैं।
  • इन लोकगीतों की भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं।

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प्रश्न 5.
भगवतशरण उपाध्याय जी ने भारत के विविध प्रकार के लोकगीतों के बारे में क्या बताया ?
उत्तर :
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। गीत – संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है।

लोकगीत अपनी लोच, ताजगी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता का संगीत है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं। इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

स्त्री और पुरुष दोनों ही इनकी रचना में भाग लिये हैं। ये गीत बाजे, ढोलक, करताल, झॉझ और बॉसुरी आदि की मदद से गाये जाते है। लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार बडा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्यप्रदेश, दक्षन और छोटा नागपुर में ये फैले हुए हैं। पहाडियों के अपने – अपने गीत हैं। वास्तविक लोकगीत देश के गाँवों और देहातों में है। सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। चैता, कजरी, बारहमासा, सावन आदि मीर्जापुर, बनारस और उत्तर प्रदेश के पूरवी जिलों में गाये जाते हैं। बाउल और भतियाली बंगला के लोकगीत है। पंजाब में महिया गायी जाती है। राजस्थानी में ढ़ोला – मारू आदि गीत गाते हैं। भोजपुर में बिदेसिया का प्रचार हुआ है। इन गीतों में अधिकतर रसिकप्रियों और प्रियाओं की बात रहती है। इन गीतों में करुणा और बिरह का रस बरसता है।

जंगली जातियों में भी लोकगीत गाये जाते हैं। एक-दूसरे के जवाब के रूप में दल बॉँधकर ये गाये जाते है। आल्हा एक लोकप्रिय गान है। गाँवों और नगरों में गायिकाएँ होती हैं। स्त्रियाँ ढ़ोलक की मदद से गाती है। उनके गाने के साथ नाच का पुट भी होता है।

प्रश्न 6.
लोकगीतों के बारे में आप क्या जानते हैं? लिखिए। (या) गाँव के गीतों के वार्तव में अनंत प्रकार हैं। (या) जीवन वहाँ इठला – इठलाकर लहराता है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये गीत साधारण ढोलक, झाझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से माये जाते है। ये घर, गाँव और नगर की जनता के गीत है। इनके लिए साधना की जरूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाये जाते हैं।

लोकगीतों के कई प्रकार हैं। आदिवासियों का लोकगीत बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। ये मध्य प्रदेश, दक्कन, छोटा नागपुर में गोंड-खांड, भील संथाल आदि में फैले हुए है।

इनकी भाषा के संबंध में कहा जाय तो ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते है। यही इनकी सफलता का कारण है। स्त्रियाँ भी लोकगीतों को सिरजती है और गाती है। नारियों के गाने साधारणत: दल बाँधकर गाये जाते है। विवाह, जन्म, सभी ऋतुओं में, होली, बरसात में ये गीत गाये जाते है। सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काठियावाड़ गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा – आंध तक लोकगीत गाये जाते है। इनके अपने अपने विद्यापति हैं। गुरजात का दलीय गायन “गरबा” है। होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है।

गाँव के गीतों के अनंत प्रकार हैं। जीवन जहॉं इठला – इठलाकर लहरांता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है? उद्ाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने के प्रतीक हैं।

TS 10th Class Hindi Important Questions 5th Lesson लोकगीत

प्रश्न 7.
लोकगीत ग्रामीण जनता से कैसे जुडे हुए हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की भावनाएँ होती हैं। ये कल्पना से दूर होते हैं। इनके विषय रोजमर्रा के जीवन से लेते हैं। जिससे वे सीधे मर्म को छू लेते हैं।

उदा : मेरी बहू है रानी है, ऐ भैय्या मिले बता दयो। एक आँख की कानी है ऐ भैय्या मिले बता दयो। मेरी बहू है रानी है, ऐ भैख्या मिले बता दयो। मैं क्या करूँ राम मुझे बुड़ढा मिल गया। – बुड्ढा मिल गया। सब गये बाज़ार मेरा बुडढ़ा भी गया। सब.लाये फूल बुडढा गोभी लेके आ गया। मैं क्या करूँ राम, मुझे बुड्ढ़ा मिल गया। लोकगीत गॉंवों और इलाको की बोलियों में गाये जाते हैं। इसी कारण ये बड़े आह्लादकर और आनंदायक होते हैं। साथ ही इनकी भाषा आसानी से समझ सकने वाली होती है। इसी कारण ये सीधे मर्म को छू लेते है। ये गीत खासकर दैनिक जीवन से संबंधित होते है। बिना किसी साधना के या बिना बाजों के भी गाये जा सकते हैं। ये ढोलक, झाझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से भी गाये जाते हैं। विशेष अवसरों व त्यौहारों जैसे – तीज, मेहंदी, छठी, चालीसा, सगाई, विवाह, जन्म, मृत्यु, बिदाई, मुंडन, नामकरण आदि पर गाये जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि लोकगीत ग्रामीण जनता से जुडे हुए हैं।

TS 10th Class Hindi Important Questions 4th Lesson कण-कण का अधिकारी

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TS 10th Class Hindi 4th Lesson Important Questions कण-कण का अधिकारी

I. अर्थग्राह्दता – प्रतिक्रिक्या
I. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।

जिसने श्रम – जल दिया उसे
पीछे मत रह जाने दो,
विजीत प्रकृति से पहले
उसको सुख पाने दो।
जो कुछ न्यस्त प्रकृति में है.
वह मनुज मात्र का धन है,
धर्मराज उसके कण – कण का
अधिकारी जन – जन है।।

प्रश्न:
1. परिश्रमी व्यक्ति को कौन सा स्थान देना चाहिए?
2. धरती के पास जो संपदा है वह किसकी है?
3. विजयी प्रकृति से पहले किसको सुख प्राप्त करने का अंधिकार है?
4. कण – कण का अधिकारी कौन है?
5. यह पद्यांश जिस पाठ से लिया गया है, उसके कवि कौन हैं?
उत्तर :
1. परिश्रमी व्यक्ति को सबसे पहला स्थान देना चाहिए।
2. धरती के पास जो संपदा है वह परिश्रमी व्यक्ति की है।
3. विजयी प्रकृति सें पहले परिश्रम करने वाले को सुख पाने का अधिकार है।
4. कण – कण का अधिकारी जन – जन है।
5. यह पद्यांश “कण – कण का अधिकारी” पाठ से लिया गया है उसके कवि ‘डॉ.रामधारी सिंह दिनकर’ हैं।

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II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चाए पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
डॉ. रामधारीसिंह दिनकर ने ‘कण-कण का अधिकारी’ कविता के माध्यम से आज के समाज को क्या संदेश दिया है ?
उत्तर :
‘कण – कण का अधिकारी’ नामक कविता के कवि हैं श्री रामधारी सिंह दिनकर। यह कविता कुरुक्षेत्र से ली गयी है। आप इस कविता में श्रम तथा श्रामिक के बडप्पन तथा महत्व के बारे में बताते हैं। कवि ने इस कविता में मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुँजी है। मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता वह हमेशा सफल होता है। सारा संसार उसे आदर भाव से देखता है। कवि कहते हैं कि एक मनुष्य अर्थ पाप के बल पर संचित करता है तो दूसरा भाग्यवाद के छल पर उसे भोगता है।

प्रश्न 2.
डॉ. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
डॉ. रामधारी सिंह दिनकर हिदी के प्रसिद्ध कवियों में एक हैं। आपका जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर में हुआ। आप हिंदी के राष्ट्र कवि कहे जाते हैं। उर्वशी, रेणुका, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, रसवंती आदि उनकी रचनाएँ हैं। आपको उर्वशी काव्य ग्रंथ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

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प्रश्न 3.
कविवर रामधारी सिंह दिनकर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
डॉ. रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रसिद्ध कवियों में एक हैं। आपका जन्म सन् 1908 में बिहार के मुंगेर में हुआ। आप हिंदी के राष्ट्र कवि कहे जाते हैं। रचनाएँ : उर्वशी; रेणुका, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, रसवंतीं आदि। पुरस्कार : आपको उर्वशी काव्य ग्रंथ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 1.
हमारे समाज में परिंभ्रम करनेवालों का जीवन स्तर निम्न क्यों होता है?
उत्तर :
परिश्रम और भुजबल मानव समाज का एक मात्र आधार तथा भाग्य है। श्रम के सामने आसमान, पृथ्वी, सब आदर से झुक जाते हैं। श्रम से बढ़कर कोई मूल्यवान धन नहीं है। श्रम के द्वारा ही सारी संपत्ति, सुखसुविधाएँ संचित होती है। श्रम करने से किसी को अभाव की शंका नहीं रहती। एक मनुष्य के श्रम का फल दूसरा व्यक्ति अनुचित रूप से अर्जित करता है। भाग्यवाद के नांम पर पूँजीवादी उस श्रम धन को भोगता है। छल, कपट से पाप के बल से धन संचित करता है। शारीरिक श्रम न करना पूँजीवाद वाद की पहचान माना जाता है।

वारतव में प्राकृतिक संपदा सब की है न कि कुछ ही लोगों की। श्रमिक ही प्राकृतिक संपदा का सर्व प्रथम अधिकारी है। लेकिन भाग्यवाद के बल पर पूँजीवादी श्रमिकों के श्रम का फल भोग रहे है। उनकी नजर में ये श्रमिक सिर्फ मेहनत करने के लिए पैदा हुए हैं। इसलिए यथा शक्ति श्रमिकों के अधिकार दूर करके उनको पीछे पडे रहने की हालत पैदा करते हैं। नादान श्रमिक अपना भाग्य इतना ही समझकर उनके करतूतों की शिकार बन रहे हैं। अविद्या, ज्ञान की कमी से श्रमिक कष्ट झेल रहे हैं। इसी कारण से अपने अधिकार और सुख प्राप्त करने में वे पीछे रह जाते हैं। परिश्रम करनेवाले का स्तर हमारे मानव समाज में निम्न ही रहं जाता है। श्रम करनेवाला कभी सुख सुविधाओं की ओर ध्यान देता ही कम है।

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प्रश्न 2.
धर्मराज को भीष्म पितामह द्वारा दिये गये संदेश पर आज के समाज को दृष्टि में रखकर अपने विचार
उत्तर :
धर्मराज को भीष्म पितामह के द्वारा श्रम के महत्व के बारे में संदेश दिया गया है। आज के समाज़ को दृष्टि व्यक्त कीजिए। में रखकर इस पर मेरे ये विचार हैं –

  • भाग्य़वाद से कर्मवाद अच्छा है। नरसमाज का भाग्य केवल एक ही है – वह श्रम है। वह भुजबल है।
  • भुजबल या श्रम – जल के सम्मुख पृथ्वी, विनीत नभ – तल झुकते हैं।
  • श्रम के बल पर हम सब – कुछ हासिल कर सकते हैं।
  • श्रम जल देनेवाले को पीछे मत रहने दो। विजीत प्रकृति से पहले उसे सुख पाने देना चाहिए।
  • न्यस्त प्रकृति में जो कुछ है वह मनुज मात्र का धन है। कण- कण का अधिकारी श्रमिक ही है।

प्रश्न 3.
श्रम और छल में क्या अंतर है? ‘कण – कण का अधिकारी’ इस पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
श्रम उत्नति का आधार है। श्रम के सामने भूमि झुकुक जाती है। श्रम से मानव असंभव से असंभव काम भी संभव करता है। श्रम करनेवाला ही प्रकृति के कण – कण का अधिकारी है। श्रम को भाग्यवाद के छलं से श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि – भाग्यवाद के छल में श्रम करनेवाले की भक्ति का शोषण होता है। मानव अपनी दुर्नीति के सहारे धन को इकट्टा करता है। और बिना श्रम के ही छल से भोगने लगता है। उसे ही भाग्यवाद समझ बैठता है। यही छल है। इस प्रकार श्रमिक के श्रम को, उससे उत्पन्न या प्राप्त फल को,धोखे सें या श्रमिक को धोखा देकर, उसके शक्ति का शोषन करतें हुए अनुशासन करनेवाले अपने आपको भाग्यवान समझते हैं। या भाग्यवाद का पक्ष लेते हैं। यह अन्याय है।यही छल है।

प्रश्न 4.
कण – कण का अधिकारी कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
उत्तर :
श्रम और भुजबल ही मानव समाज का एक मात्र आधार है। भाग्य है। हमारे जीवन में, मानित समाज में श्रम का बड़ा महत्व है। जीवन में सफलता पाने के लिए श्रम करना अनिवार्य है। श्रम ऐसा प्रयास है जिससे असंभुव कार्य को भी संभव में आसानी से बदला जा सकता है। हर प्रकार की प्रगति की जा सकती है। मानव समाज और देश को उन्नति के मार्ग में अग्रसर किया जा सकता है। श्रम करने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ (उच्च) स्थान पाता है। हम कह सकते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुँजी है। श्रम करने वाला कभी भी जीवन में हारता (पराजित) नहीं है। न ही कभी निराश होता है। सदैव आत्म विश्वास के साथ निरंतर श्रम करते हुए (सर्वोच) सर्वश्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करता है। श्रम करने वाला ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने में सक्षम होता है।

इसलिए जो श्रम करता है वही प्रकृति के हर एक कण का अधिकारी है। मनुष्य का महान गुण है श्रम करना। श्रम करने से यश, संपत्ति, जीवन यापन के लिए आवश्यक सुख – सुविधाएँ, इज्ञत (आदर), गौरव, मान – सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति कार्य को पूर्ण करने के लिए श्रम करता है वही सुख पाने का सच्चा अधिकारी है। श्रम करनेवाला आस्था के साथ प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है। यहह भाग्य पर विश्वास न करके कर्म पर श्रम पर विश्वास करता है। श्रम करनेवाला हर कठिनाई को अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बना लेता है। इसलिए श्रम का बड़ा महत्व है। श्रम ही सफलता की कुज़ी है। जिसके सम्मुख पृथ्वी भी डुुक जाती है।

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प्रश्न 5.
परिश्रम करनेवाले व्यक्ति को प्रकृति से पहले सुख पाने का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?
उत्तर :
मानव जीवन बहुत मूल्यवान है। श्रम करके सफलता प्राप्त करना मानव का जन्म सिद्ध गुण है। श्रम के आगे कोई असंभव नहीं है। इसलिए आरंभ से हीं मानव कर्मरत हो सफलता प्राप्त कर रहा है। मेहनत करनेवालों से ही सब लोगों को आवश्यक चीजें सुविधाएँ मिल रही हैं। सृष्टि में अनेक आवश्यक और जीवनोपयोमी चीजें निक्षिप्त हैं। निस्वार्थ भाव से श्रम करनेवालों को ही प्रकृति वशीभूत होती है। अतः वे लोग ही महान और भाग्यवान होते हैं। वे ही आदर्शवान और महत्वपूर्ण हैं। ऐसे लोगों को सदा आगे रखने की बात कवि कह रहे हैं।

1. अर्पमालता-मतिबिया
पठित – पह्यांश (5 Marks Questions)

नीचे दिये गये पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।

I. एक मनुल संचित करता है,
अर्थ पाप के बल से,
और मोगाता उसे दूसरा
भाठ्यवाद के छल से।

प्रश्न :
1. मनुष्य अर्थ कैसे संचित करता है ?
2. मनुष्य सुख कैसे भोगता है?
3. “पाप का बल” यह तथ्य कौन से अर्थ में लिया गया है?
4. संधित किये गए धन – दौलत को कौन भोगता है?
5. यह कवितांश किस कविता से लिया गया है ?
उत्तर :
1. मनुष्य अर्थ पाप के बल से संचित करता है।
2. मनुष्य भाग्यवाद के छल से सुख भोगता है।
3. पाप का बल यह तथ्य शोषण के अर्थ में लिया गया है।
4. संचित किये गये धन – दौलत को दूसरा भाग्य समझ कर भोगता है।
5. यह कवितांश कण – कण का अधिकारी कविता से लिया गया है।

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II. नर-समाज का भाव्य एक है,
वह शम, वह भुजबल है,
जिसके सम्नुख झुकी हुई –
पृथ्वी, विमीत नभ -तल है।

प्रश्न :
1. नर समाज का भाग्य क्या है?
2. पृथ्वी और नभ किसके सम्मुख झुके हैं?
3. श्रमिक के सम्मुख क्या झुकते हैं?
4. इस कवितांश के कवि कौन है?
5. उपर्युक्त पंक्तियों में किसके बारे में कहा गया है?
उत्तर :
1. नर समाज का भाग्य श्रम और भुजबल है।
2. पृथ्वी और नभ श्रम और भुजबल के सम्मुख झुकी हुई हैं।
3. श्रमिक के सम्मुख नभ और पृथ्वी झुकते हैं।
4. इस कवितांश के कवि डॉ. रामधारी सिंह दिनकर है।
5. उपर्युक्त पंक्तियों में श्रमिक के बारे में कहा गया है।

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III. जिसने श्रन – जल दिया उसे
पीछे मत रह जाने दो,
विजीत प्रकृति से पहले
उसको सुख पाने दो।

प्रश्न :
1. समाज में श्रम जल देने वाले का क्या स्थान है?
2. किसके सुख के बारे में कहा गया है?
3. किसे पीछे नहीं रहने देना चाहिए ?
4. श्रमिक क्या देता है?
5. किसे सबसे पहले सुख पाने देना चाहिए?
6. श्रमिक को सुख कब देना चाहिए?
उत्तर :
1. समाज में श्रम जल देनेवाले को पीछे नहीं छोड़ना चाहिए।
2. श्रमिक के सुख के बारे में कहा गया है।
3. श्रमिक को पीछे नही रहने देना चाहिए।
4. श्रमिक अपने श्रम – जल से विजय प्राप्त कर सबको सुख देता है।
5. श्रमिक को सबसे पहले सुख पाने देना चाहिए।
6. श्रमिक को संसार में सबसे पहले सुख देना चाहिए।

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IV. ओ कुल क्यस्त प्रकृति नें है,
वह मनुज मात्र का धन है,
धर्मराज उसके कण – कण का
अधिकारी जन-जन है।

प्रश्न:
1. प्रकृति में जो कुछ न्यस्त. है वह किसका धन है?
2. कण – कण का अधिकारी कौन है ?
3. जन – जन क्या कहते हैं?
4. प्रकृति किसका धन है?
5. श्रमिक की तुलना किससे की गई है?
उत्तर :
1. प्रकृति में जो कुछ न्यस्त है वह मनुज मात्र का धन है।
2. कण – कण का अधिकारी धर्मराज है।
3. जन – जन यह कहते हैं कि प्रकृति के कण कण का अधिकारी धर्मराज है।
कण – कण का अधिकारी श्रमिक है।
श्रम जल देने वाला कण – कण का अधिकारी है।
4. प्रकृति मनुष्य का धन है।
5. श्रमिक की तुलना धर्मराज से की गई है।

II. अधिव्यक्तित-हुणनालकता (4 Marks Questions)

प्रश्न 1.
मेहनत ही सफलता की कुंजी है। अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :

  • मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
  • मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी भी नहीं हारता।
  • मेहनत करनेवाला हमेशा सफल होता है।
  • काल्पनिक जगत को साकार रूप देने वाला मेहनत करने वाला ही है।
  • कण-कण के पीछे मेहनत करने वाले का ही श्रम निहृत है।
  • जो श्रम करेगा वही कण – कण का अधिकारी है।

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प्रश्न 2.
समाज में मेहनत करने वालों को दिनकर जी ने अग्रस्थान क्यों दिया हैं ?
उत्तर :

  • समाज में मेहनत करनेवालों को दिनकर जी ने अग्रर्थान दिया हैं। क्योंकि
  • मेहनत ही सफलता की कुंजी है। मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता।
  • जो मेहनत करता है वह हमेशा सफल होता है।
  • काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला मेहनत करने वाला ही है।

प्रश्न 3.
कवि मेहनत करनेवालों को ध्यान में रखते हुए हमें क्या सीख दे रहा है? (या) कवि मेहनत को ऊँचा दर्जा क्यों देना चाहता है ?
उत्तर :
कवि ने मेहनत करनेवालों को ऊँचा दर्जा दिया है। कियोंकि मजदूर को आकाश माना है। धरती की सारी संपत्ति मज़ूर की ही है। वह अपनी मेहनत से सारी संपत्ति को पाने का अधिकार रखता है। आज जो सुख – सुविधाएँ उपलब्ध हैं उसमें मजदूर करनेवालों का ही हाथ (श्रम) है। उसीके कारण हम आराम की जिंदगी बिता रहे हैं। इसलिए कवि मेहनत करने वालों को सदा आगे रखने और उनको ऊँचा दर्जा देने की बात करते हैं।

प्रश्न 4.
निराशावादी और आशावादी के स्वभाव में क्या अंतर होता है ?
उत्तर :
निराशावादी सदा निराशा से रंहता है। उसमें विश्वास की भावना नहीं रहती। वह हमेशा निष्क्रिय होता है। उसमें देशभक्ति भावना नहीं रहती। वह हमेशा निरुत्साह से रहता है। भविष्य का कोई लक्ष्य नहीं होता। आशावादी आशा के साथ रहने के कारण हमेशा उत्साह के साथ रहता है। वह हमेशा सक्रिय अर जागरूक रहता है। उसमें देशभक्ति के साथ-साथ त्याग और बलिदान की भावना भरी रहती है। वह भविष्य की योजना बनाकर लक्ष्य प्राप्ति की साधना में रहता है।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
कवि ने मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए। (या) मजदूर ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला है। इसलिए अपनी राय बताते हुए मज़दूरों के अधिकारों का वर्णन कीजिए। (या) पृथ्वी में न्यस्त (रखे हुए) प्रत्येक कण के पीछे मज़ूूर का श्रम है। आपके विचार में मज़दूरों के अधिकार क्या होने चाहिए ? (या) समाज में मग़दूरों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। – कवि ने अपनी कविता के आधार पर किस प्रकार व्यक्त किया है? लिखिए।
उत्तर :
श्रमिक अपने भुजबल पर विश्वास करता है। वह पसीना बहाकर श्रम करता है। सफलता प्राप्त करने की चेष्टा (प्रयत्न) करता है। वह अनुचित तरीके से धन कमाने की बजाय श्रम करके निरंतर श्रम करते हुए असंभव कार्य को संभव में बदल देता है। असफलता को सफलता में बदलने का सामर्थ्य रखता है। अपनी मेहनत से हर प्रकार की सुख – सुविधाओं के साधनों को उपलध्ध कराता है। इसलिए श्रमिक को ही सबसे पहले सुख भोगने का अधिकार है। उसे ही सबसे पहले संपत्ति संचित करने का अधिकार मिलना चाहिए।

हर क्षेत्र में सफलता पाने और प्रगति करने का अधिकार मिलना चाहिए। कार्य सिद्धि के लिए निरंतर प्रयास करने का अधिकार मिलना चाहिए। पृथ्वी में न्यस्त हर वस्तु पर अधिकार मिलना चाहिए। चूँकि हर प्रकार के सुख – सुविधाओं के साधनों को उपलब्ध कराने वाला सिर्फ और सिर्फ (मजदूर) श्रमिक ही है। इसलिए ऐसे श्रमिक के प्रति हमें प्रेम, सहानुभूति और स्नेह के साथ – साथ उनकी सहायता भी करने की आवश्यकता है।

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प्रश्न 2.
श्रम ही जीत की चाबी है। स्पष्ट कीजिए। (या) मेहनत ही सफलता की कुँजी है। अपने विचार लिखिए। (या) श्रम के बिना प्रगति (उन्नति) नहीं पायी जा सकती है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
श्रम और भुजबल ही मानव समाज का एक मात्र आधार है। भाग्य है। हमारे जीवन में, मानव समाज में श्रम का बड़ा महत्व। है। जीवन कें सफलता पाने के लिए श्रम करना अनिवार्य है। श्रम ऐसा प्रयास है जिससे असंभव कार्य को भी संभव में आसानी से बदला जा सकता है। हर प्रकार की प्रगति की जा सकती है। मानव समाज और देश को उन्नति के मार्ग में अग्रसर किया जा संकता है। श्रम करने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ (उच्च) स्थान पाता है। हम कह सकते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुँजी है। श्रम करने वाला कभी भी जीवन में हारता (पराजित) नहीं है। न ही कभी निराश होता है। सदैव आत्म विश्वास के साथ निरंतर श्रम करते हुए (सर्वोच्च) सर्वश्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करता है। श्रम करने वाला ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने में सक्षम होता है।

इसलिए जो श्रम करता है वही प्रकृति के हर एक कण का अधिकारी है। मनुष्य का महान गुण है श्रम करना। श्रम करने से यश, संपत्ति, जीवन यापन के लिए आवश्यक सुख – सुविधाएँ, इज्ञत (आदर), गौरव, मान – सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति कार्य को पूर्ण करने के लिए श्रम करता है वही सुख पाने का सच्चा अधिकारी है। श्रम करनेवाला आस्था के साथ प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है। यह भाग्य पर विश्वास न करके कर्म पर श्रम पर विश्वास करता है। श्रम करनेवाला हर कडिनाई को अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बना लेता है। इसलिए श्रम का बड़ा महत्व है। श्रम ही सफलता की कुँजी है। जिसके सम्मुख पृथ्वी भी झुक जाती है।

प्रश्न 3.
मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी हारता नहीं। वह हमेशा सफल होता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
श्रम और भुजबल ही मानव समाज का एक मात्र आधार है। भाग्य है। हमारे जीवन में, मानव समाज में शम का बड़ा महत्व है। जीवन में सफलता पाने के लिए श्रम करना अनिवार्य है। श्रम ऐसा प्रयास है जिससे असंभव कार्य को भी संभव में आसानी से बदला जा सकता है। हर प्रकार की प्रगति की जा सकती है। मानव समाज और देश को उत्रति के मार्ग में अग्रसर किया जा सकता है। श्रम करने वाला व्यक्ति ही श्रेष्ठ (उच्च) स्थान पाता है। हम कह सकते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुँजी है। श्रम करने वाला कभी भी जीवन में हारता (पराजित) नहीं है। न ही कभी निराश होता है। सदैव आत्म विश्वास के साथ निरंतर श्रम करते हुए (सर्वोच) सर्वश्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करता है।

श्रम करने वाला ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने में सक्षम होता है। इसलिए जो श्रम करता है वही प्रकृति के हर एक कण का अधिकारी है। मनुष्य का महान गुण है श्रम करना। श्रम करने से यश, संपत्ति, जीवन यापन के लिए आवश्यक सुख – सुविधाएँ, इज्ञत (आदर), गौरव, मान – सम्मान आदि प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति कार्य को पूर्ण करने के लिए श्रम करता है वही सुख पाने का सच्चा अधिकारी है। श्रम करनेवाला आस्था के साथ प्रगति पथ पर बढ़ता ही चला जाता है। यह भाग्य पर विश्वास न करके कर्म पर श्रम पर विश्वास करता है। श्रम करनेवाला हर कठिनाई को अपने परिश्रम से अपने अनुकूल बना लेता है। इसलिए श्रम का बड़ा महत्व है। श्रम ही सफलता की कुँजी है। जिसके सम्मुख पृथ्वी भी झुक जाती है।

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प्रश्न 4.
जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

  • जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है।
  • जो सुखमय जीवन चाहता है वह श्रम ज़रू करता है।
  • मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
  • श्रम और मेहनत करने वाला कभी नहीं हारता।
  • श्रम के सहारे ही हम जीवित रहते हैं।
  • अपने – अप्ने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमारे जीवन में श्रम का ही सहारा लेना पडेगा।
  • हम श्रम के सहारे अपने जीवन में काल्पनिक जगत को साकार रूप दे सकेंगे।
  • श्रम करनेवाले भाग्यवाद पर विश्वास नहीं करते। अपने भुज – बल के द्वारा ही श्रम – जल देकर जीवन को सफल बनाते हैं।

प्रश्न 5.
मेहनत करनेवाला कभी भी नहीं हारता – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
उत्तर :

  • मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
  • मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नही हारता।
  • परिश्रम ता मेहनत करनेवाला हमेशा सफल होता है।
  • जो मेहनत करते हैं वे ही काल्पनिक जगत को साकार रूप देने वाले हैं।
  • हर कण के पीछे उसी का श्रम है।
  • जो मेहनत करता है वही ‘कण – कण का अधिकारी है।
  • समाज ही नहीं पृथ्वी, विनीत नभ – तल भी मेहनत करने वाले के सामने झुकता है।
  • मेहनत करने वालों को ही पहले सुख पाने का अधिकार है।
  • उसे ही हर जगह आदर, सम्मान मिलता है।
  • इसलिए क्रवि दिनकर जी ने ऐसा कहा होगा कि मेहनत करनेवाला कभी भी नहीं हारता।

TS 10th Class Hindi Important Questions 4th Lesson कण-कण का अधिकारी

प्रश्न 6.
मनुष्य का धन श्रम और भुजबल है। कैसे ?
उत्तर :

  • मनुष्य का धन श्रम और भुजबल है।
  • श्रम और भुज-बल के सहारे ही मानव का जीवन यापन होता है।
  • श्रमें करनेवाला कभी नहीं हारता।
  • श्रम के अहारे ही मानव समाज में आदर पाता है।
  • काल्पनिक जगत का साकार रूप श्रम के द्वारा ही होता है।
  • जो श्रम करता है वही कण – कण का अधिकारी है।
  • श्रम करनेवाला भाग्यवाद पर भरोसा न रखकर धन कमाता है।
  • इसलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य का धन श्रम और भुजबल है।

प्रश्न 7.
श्रमिकों की उन्नति ही देश की उन्नति है। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

  • श्रमिकों की उन्नति ही देश की उन्नति है। इसमें कोई संदेह नहीं है।
  • इसके कई कारण इस कथन का समर्थन कर सकते हैं।
  • श्रमिक शक्ति के सहारे ही देश में वस्तुओं की उ़त्पत्ति होती है।
  • उन वस्तुओ को देश-विदेशों में बेचे तो विदेशी मारक द्रव्य आता है।
  • विदेशी मारक द्रव्य से व्यक्तिगत आय बढ़ता है।
  • व्यक्तिगत आय बढने से जातीय आय भी बढ़ता है।
  • देश की उन्नति में श्रामिकों का बडा हाथ हैं।
  • इसलिए श्रमिकों की उन्नति के लिए सरकार को विविध कार्यक्रम चलाना चाहिए।
  • श्रमिकों को ही पहले – पहल सुख पाने देना चाहिए।
  • श्रमिकों का देख-रेख; स्वास्थ आदि पर सरकार को ध्यान रखना चाहिए।
  • फ श्रमिक जो हैं वे कांल्पनिंक जगत को साकार करने वाले हैं।
  • श्रमिकों को अच्छे – से अच्छे वेतन देना है।
  • श्रमिकों के बिना यह संसारं में प्रगति अधूरी है। इसलिए हम कह सकते हैं कि श्रमिकों की उन्नति ही देश की उन्नति है। क्योंकि जिस देश में श्रमिक अच्छा जीवन बिताते हैं, उन्नति पाते हैं, उस देश की उन्नति होगी।

TS 10th Class Hindi Important Questions 4th Lesson कण-कण का अधिकारी

प्रश्न 8.
‘कण – कण का अधिकारी कविता से क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर :

  • कण – कण का अधिकारी कविता से हमें ये संदेश मिलते हैं –
  • श्रम और भुजबल नर समाज का भाग्य है। भाग्यवाद पर भरोसा मत रखना है।
  • मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
  • मेहनत करनेंवाला कभी नहीं हारता।
  • काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला श्रामिक ही है।
  • मेहनत करनेवाला ही कण – कण का अधिकारी है।
  • श्रम के समुख पृथ्वी, विनीत नभ – तल झुकुते हैं।
  • श्रम – जल देनेवाले को पहले सुख पाने देना चाहिए।

प्रश्न 9.
‘भ्रमयेव जयते’ – इस कथन को दिनकर जी ने किस प्रकार समझाया ?
उत्तर :
‘कण – कण का अधिकारी’ नामक कविता के कवि हैं श्री रामधारी सिंह दिनकर। यह कविता कुरुक्षेत्र से ली गयी है। आप इस कविता में श्रम तथा श्रामिक के बंडप्पन तथा महत्व के बारे में बताते हैं। कवि ने इस कविता में मजदूरों के अधिकारों का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि मेहनत ही सफलता की कुँजी है। मेहनत करनेवाला व्यक्ति कभी नहीं हारता वह हमेशा सफल होता है। सारा संसार उसे आदर भाव से देखता है। कवि कहते हैं कि एक मनुष्य अर्थ पाप के बल पर संचित करता है तो दूसरा भाग्यवाद के छल पर उसे भोगता है। कवि कहते हैं कि नर समाज का भाग्य श्रम ही है। वह भुजबल है। श्रमिक के सम्मुख पृथ्वी और आकाश झुक जाते हैं। नतमस्तक हो जाते हैं।

कवि श्रम – जल देनेवाले को पीछे मत रहजाने को कहते हैं। वे कहते हैं कि विजीत प्रकृति से पहले श्रमिक को ही सुख पाने देना चाहिए। आखिंर कवि बताते हैं कि इस प्रकृति में जो कुछ न्यस्त है वह मनुजमात्र का धन है। हे धर्मराज उस के कण – कण का अधिकार जन – जन हैं। मतलब यह है कि जो श्रम करेगा वही कण-कण का अधिकारी है।

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प्रश्न 10.
दिनकर जी के अनुसार ‘काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला श्रमिक है’ – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

  • दिनकर जी के अनुसार ‘काल्पनिक जगत को साकार रूप देनेवाला श्रमिक ही है।
  • यह कथन बहुत सच है। मेहनत ही सफलता की कुंजी है।
  • श्रमिक अपने श्रम के कारण कभी नहीं हारता।
  • श्रमिक हमेशा सफल ही होता रहता है। कण-कण के पीछे श्रमिक का ही श्रम है।
  • श्रमिक ही कण – कण का अधिकारी है।
  • श्रमिक अपने श्रम द्वारा काल्पनिक जगत को साकार रूप देता है।
  • श्रमिक भाग्यवाद पर विश्वास नहीं रखता।
  • नर – समाज का भाग्य श्रम, भुजबल ही है – यह श्रमिक का विश्वास है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 3rd Lesson माँ मुझे आने दे!

These TS 10th Class Hindi Important Questions 3rd Lesson माँ मुझे आने दे! will help the students to improve their time and approach.

TS 10th Class Hindi 3rd Lesson Important Questions माँ मुझे आने दे!

I. अर्थवाहयता – प्रतिक्रिया
1. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तह एक वाक्य में लिखिय।

माँ मुझे आने दे, डर मत आने दे।
फैलूँठी तेरे आँगन में हरियाली बनकर
लिपटूँठी तेरे आँचल कें खुशबू बनकर
मेरी किलक और ठुमकते कदमों कें
घर का सबाटा बिखर जाएगा
जो पसरा है प्रिता के दंभ
भाई की उद्दंडता के कारण सदियों से।
पोछ दूँगी अँधेरा, जो तेरे माथे की सिलवटों कें सिमटा है
कभी – कभी इसर जाता है ओस की बूँदों – सा, आँखों की कोरों से।
आने तो दे, धुल जाएगा सारा का सारा रुखीला अहसास
अकड़ीला मिज़ाज जो चिपका है घर की सारी की सारी दीवारों
बंद दरवाज़ों खिड़कियों कें।

प्रश्न 1.
अजन्मी बेटी माँ से क्या प्रार्थना करती है ?
उत्तर :
अजन्मी बेटी माँ से यह प्रार्थना करती है – हे माँ ! डर मत, मुझे आने दे।

प्रश्न 2.
किस पंक्ति में माँ के रोने का उक्केख है?
उत्तर :
तीसरी पंक्ति में माँ के रोने का उक्लेख है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 3rd Lesson माँ मुझे आने दे!

प्रश्न 3.
घर की दिवारों, बंद दरवाजों और खिड़कियों के भीतर क्या है?
उत्तर :
घर की दीवारों, बंद दरवाजों और खिडकियों के भीतर रुखील़ा अहसास अकडीला मिजाज है।

प्रश्न 4.
‘घर का सन्नाटा बिखर जाएगा’ का भाव क्या है?
उत्तर :
घर का सन्नाटा बिखर जायेगा – इसका भाव यह है कि बेटी की किलकारियों और ठुमकते कदमों की ध्वनि से घर का खामोश बिखर जाएगा।

प्रश्न 5.
इस काव्यांश में किस अपराध की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर :
इस काव्यांश में सामाजिक विषमताओं के कारण होनेवाली भ्रूण हत्यायॉ नामक अपराध की ओर संकेत किया गया है।

2. निम्नलिखित पद्यांश पढकक नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।

आने तो दे, धुल जाएगा सारा का सारा रुखीला अहसास
अकड़ीला मिज़ाज जो चिपका है घर की सारी की सारी दीवारों
बंद दरवाज़ों खिड़कियों कें।
तेरी आँखों कें तैरते ये समुंदर ये आसमान के अक्स्र
मैंने देख लिए हैं माँ।
माँ …. जा सकती हूँ मैं दूर – पार, उस झिलमिलाती दुनिया में
ला सकती हूँ वहाँ से चमकीले टुकड़े तेरे सपनों के,
समुंदर की लहरों के थपेड़ों कें दूंढ़ सकती हूँ में
मोती और सीपी और नाव़िको के किस्से।
कर सकती हूँ माँ, मैं सब – कुछ जो रोशनी – सा चमकीला
रंठों – सा चटकीला हो, पर आजे तो दे, डर मत माँ … मुझे आले दे।

प्रश्न 1.
मोती, सीपी और नाविकों के किस्से कहाँ होते हैं?
उत्तर :
मोती, सीपी और नाविकों के किस्से समुंदर की लहरों कें थपेड़ों में होते हैं।

प्रश्न 2.
माँ के डरने का कारण क्या है?
उत्तर :
माँ के डरने का कारण सामाजिक विषमता या सामाजिक असमानता है।

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प्रश्न 3.
घर के भीतर घमंड विध्रमान रहने की बात किस पंक्ति से प्रकट होती है ?
उत्तर :
‘आने तो दे, धुल जाएगा सारा का सारा रुखीला अहसास अकड़ीला मिजाज़ जो चिपका है घर की सारी की सारी दीवारों बंद दरवाजों खिड़कियों में’ –

प्रश्न 4.
झिलमिलाती दुनिया से लड़की क्या लाना चाहती है?
उत्तर :
लड़की झिलमिलाती दुनिया से माँ के सपनों के चमकीले टुकड़े लाना चाहती है।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त पद्यांश किस कविता से लिया गया है?
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश ‘माँ मुझे आने दे !’ कविता से लिया गया है।

3. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।

पोछ दूँगी अँधेरा, जो तेरे माथे की सिलवटों कें सिमटा है
कभी-कभी इन जाता है ओस की बूँदों-सा, आँखों की कोरों से।
आने तो दे, धुल जाएगा सारा का सारा रुखीला अहसास
अकड़ीला मिज़ाज जो चिपका है घर की सारी की सारी दीवारों
बंद दरवाजों खिड़कियों कें।
तेरी आँखों में तैरते ये समुन्दर ये आसमान के अक्स
मैंके देख लिए हैं माँ।
माँ – – – जा सकती हूँ में दूर-पार, उस झिलकिलाती दुनिया में
ला सकती हूँ वहाँ से चमकीले टुकड़े तेरे सपनों के,
समुन्दर की लहरों के थपेड़ों कें ढूंढ़ सकती हूँ में
मोती और सीपी और नाविकों के किस्से।

प्रश्न 1.
अँधेरा कहाँ विद्यमान है ?
उत्तर :
अँधेरा माथे की सिलवटों में सिमटा है।

प्रश्न 2.
दीवारों, बंद दरवाजों, और खिड़कियों के भीतर क्या है ?
उत्तर :
दीवारों, बंद दरवाजों और खिड़कियों के भीतर रुखीला अहसास और अकड़ीला मिजाज है।

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प्रश्न 3.
लड़की ने क्या देखा है ?
उत्तर :
लड़की ने माँ की आँखों में तैरते समुंदर, आसमान के अक्स देखे हैं।

प्रश्न 4.
झिलमिलाती दुनिया से लड़की क्या लाना चाहती है ?
उत्तर :
झिलमिलाती दुनिया से लड़की माँ के सपनों के चमकीले टुकड़े लाना चाहती है।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत कविता किस विषय पर आधारित है ?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता ‘भभूणहत्य’ विषय पर आधारित है।

4. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।

तेरी आँखों कें तैरते ये समुंदर ये आसमान के अक्स
मैने देख लिए हैं माँ।
काँ …. जा सकती हूँ में दूर – पार
उस झिलमिलाती दुनिया में
ला सकती हूँ वहाँ से चमकीले टुकड़े तेरे सपनों के,
समुंदर की लहरों के थपेड़ों कें ढूँढ़ सकती हूँ में
मोती और सीपी और नाविकों के किस्से।
कर सकती हूँ माँ, मैं सब – कुछ जो रोशनी – सा चमकीला
रंगों – सा चटकीला हो, पर आने तो दे,
डर मत माँ … मुझे आने दे।

प्रश्न 1.
इस पद्यांश की कवयित्री का नाम क्या है?
उत्तर :
इस पद्यांश की कवयित्री का नाम ” मृदुल जोशी” है।

प्रश्न 2.
लड़की दूर – पार क्यों जाना चाहती है?
उत्तर :
माँ के सपनों के चमकीले टुकंड़े लाने के लिए लड़की दूर पार जाना चाहती है।

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प्रश्न 3.
समुंदर में क्वा – क्या मिलते हैं?
उत्तर :
समुंदर में मोती, सीपी और नाविकों के किस्से मिलते हैं।

प्रश्न 4.
लड़की दुनिया में आकर क्या कर सकती है?
उत्तर :
लड़की दुनिया में आकर वे सब कुछ कर सकती है, जो रोशनी – सा चमकीला रंगों – सा चटकीला हो।

प्रश्न 5.
लड़की को दुनिया में आने से कौन रोक रह है?
उत्तर :
लड़की कों दुनिया में आने से सामाजिक विषमताएँ रोक रही हैं।

5. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों कें लिखिए।

पोछ दूँठी अँधेरा, जो तेरे काथे की सिलवटों कें सिमटा है
कभी – कभी इनर जाता है ओस की बूँदों – सा, आँखों की कोरों से।
आने तो दे, धुल जाएठा सारा का सारा रुखीला अहसास
अकड़ीला मिज़ाज जो चिपका है घर की सारी की सारी दीवारों
बंद दरवाजों खिड़कियों में।

प्रश्न 1.
किसका अँधेरा पोछने की बात हुई है?
उत्तर :
माँ के माथे की सिलवटों में सिमटे अंधेरे को पोछने की बात हुई है।

प्रश्न 2.
‘आने तो दे’ पंक्ति में यह किसकी पुकार है?
उत्तर :
‘आने तो दे’ पंक्ति में यह पुकार उस बेटी की है जिसने अभी जन्म नहीं लिया हैं।

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प्रश्न 3.
घर, दीवारों, खिड़कियों और दरवाजों से क्या धुल जाएगा?
उत्तर :
घर की दीवारों, खिडकियों और दरवाजों से रुखीला अहसास और अकड़ीला मिजाज धुल जाएगा।

प्रश्न 4.
पंक्ति में “ओस की बूँदों – सा” का तात्पर्य क्या है?
उत्तर :
पंक्ति में ‘ओस की बूँदो – सा’ का तात्पर्य – “आसूँ है।

प्रश्न 5.
पद्यांश की यह पंक्तियाँ किसके जन्म का समर्थन करती हैं?
उत्तर :
पद्यांश की ये पंक्तियाँ बेटी के जन्म का समर्थन करती है।

II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मक्ता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
लड़की के जन्म लेने से घर में खुशियों का वातावरण बनता है, ‘माँ मुझे आने दे’ इस पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लड़की के जन्म लेने से घर में खुशियों का वातावरण बनता है, क्योंकि – बेटी, इस संसार में आकर परिवार में खुशियाँ लाती है। यह घर को आँगन में हरियाली बनना चाहती है, अर्थात् घर को संतोष जनक बनाना चाहती है। माँ के आँचल में ममता रूपी खुशबू चाहती है। लड़की अपने किलकारियों और टुमकते कदमों से घर के सन्नाटे को दूर करती है। माँ के लिए वह झिल मिलाती दुनिया में दूर – पार जाकर माँ के सपनों के टुकडे को वहाँ से लाकर घर में खुखियाँ फैलाती है।

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8.10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
बेटी संसार में आकर परिवार की खुशी के लिए क्या करना चाहती है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :

  • बेटी संसार में आंकर परिंवार की खुशी के लिए ये करना चाहती है।
  • आँगन में हरियाली बनकर फैलना चाहती है।
  • खुशबू बनकर माँ की आँचल में लिपटना चाहती है।
  • किलकारियों और ठुमकते कदमों से घर का सारा सन्नाटा बिखेरना चाहती है।
  • पिताजी के दंभ या गर्व जो भाई के कारण था उसे भी बिखर देना चाहती है।
  • माँ की सिलवटों में सिमटे अंधेरे को पोंछना चाहती है।
  • घर की सारी की सारी दीवारों बंद दरवाजों और खिडकियों में जो अकडीला मिजाज च्पिका है उसे भी धुलना चाहती है।
  • माँ के लिए झिलमिलाती दुमिया में दूर – पार जाना चाहती है।
  • मॉ के लिए. सपनों के टुकडे वहाँ से लाना चाहती है।
  • समुद्र के थपेडों को अलक्ष्य करके समुद्र में जाकर सीपी, मोती और नाविकों के कहानियाँ खोजना चाहती है।

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I. अर्थण्रालता-मतिक्रिया
पठित – पद्यांश (5 Marks Questions)

नीचे दिये गये पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।

I. माँ मुझे आले दे, डर मत आके दे।
फैलूंगी तेरे आँगन में हरियाली बनकर
लिपटूँठी तेरे आँचल में खुथबू बनकर
मेरी किलक और ठुमकते कदमों कें
घर का सक्षाटा बिखर जाएना
जो पसरा है पिता के दंभ
भाई की उद्दंडता के कारण सदियों से।

प्रश्न :
1. बेटी माँ से क्या विनती `करती है?
2. माँ क्यों डर रही है?
3. बेटी माँ के आँगन में क्या बनकर फैलना चाहती हैं?
4. बेटी मॉँ के आँचल में क्या बनकर लिपटना चाहती है?
5. घर का सन्नाटा कैसे बिखर जाएगा ?
उत्तर :
1. बेटी माँ से कहती है कि – हे माँ ! मुझे आने दे!
2. मॉ बेटी को जन्म देने के लिए डर रही है।
3. बेटी माँ के आँगन में हंरियाली बनकर फैलना चाहती है।
4. बेटी मॉ के आँचल में खुशबू बनकर लिपटना चाहती है।
5. घर में बेटी के जन्म लेने से घर का सत्नाटा बिखर जाएगा। घर में बेटी के किलक और टुमकते कदमों के आहट से घर का सत्नाटा बिखर जाएगा।

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II. पोछ दूँगी ऊँधेरा, जो तेरे माथे की सिलवटों कें सिमटा है
कभी – कभी झर जाता है ओस की इूंदों – सा, आँखों की कोरों से।
जाने तो दे, धुल जाएगा सारा का सारा रखीला अहसास
अकड़ीला मिज़ाज जो चिपका है घर की
सारी की सारी दीवारों बंद दरवाजों खिड़कियों कें।
तेरी आँखों कें तैरते ये समुंदर ये आसमानके अक्स
नैं के देख लिए हैं माँ।

प्रश्न :
1. माँ के माथे की सिलवटों में क्या सिमटा है?
2. माँ के ऑंखों से क्या टपकते हैं?
3. बेटी क्या पोंछ देना चाहती है?
4. मों के औंखों से क्या झरता है?
5. बेटी के आने से क्या धुल जायेगा ?
डत्तर :
1. माँ के माथे की सिलवटों में अंधेरा सिमटा है।
2. माँ के आँखों की कोरों से ओस की बूंदों के समान ओंसू टपकते है।
3. बेटी अँधेरा रूपी दुख को पोछ देना चाहती है।
4. माँ के आंखों से आंसू झरते हैं।
5. बेटी के आने से रुखीला अहसास धुल जायेगा।

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III. माँ …. जा सकती है कें दूर – पार, उस झिलकिलाती दुनिया में
ला सकती हूँ वहाँ से चमकीले टुकड़े तेरे सपनों के,
समुंदर की लहरों के थपेड़ों में छंढ़ सकती है में
मोती और सीपी और नाविकों के किस्से।
कर सकती हैं माँ, कैं सब-कुछ जो रोशनी – सा चमकीला
रंगों – सा चटकीला हो, पर आने तो दे.डर मत माँ … मुझे आने दे।

प्रश्न :
1. कवितांश में किस प्रकार की दुनिया के बारे में बताया गया है?
2. माँ के सपनों को कौन पूरा करना चाहती है?
3. बेटी नाविकों के किस्से कहाँ से सुनती है?
4. बेटी मों को क्या द्रेना चाहती है?
5. लड़की कहों जाना चाहती है?
उत्तर :
1. कवितांश में झिलमिलाती दुनिया के बारे में बताया गया है।
2. माँ के सपनों को बेटी पूरा करना चाहती है।
3. बेटी नाविको के किससे अपने माँ के दु:ख दर्द में सुनती है।
4. बेटी माँ को खुशियों से भरी जिंदगी देना चाहती है। बेटी मॉँ को मोती, सीपी और उसके अधूरे सपनों को पूरा करके, देना चाहती है।
5. लड़की दूर – पार जाना चाहती है।

II. अधिव्यवित-दृनात्मकता (4 Marks Questions)

प्रश्न 1.
बेटी माँ से क्या विनती करती है?
उत्तर :
गर्भस्त बेटी अपनी मॉँ से विनती करती है हे माँ मुझे पैदा होने दो। तुम मत डरो। मै तरी ऑंगन में हरियाली बनकर फैलूँगी खुशबू बनकर तुम्हारे आंचल में लिपटूँगी। हर तरह से तुम्हे खुश रखूँगी। निडर होकर मुझे आने दो।

प्रश्न 2.
कवइत्री मृदुल जोशी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
कवयित्री मृदुल जोशी का जन्म सन् 1960 में उत्तराखंड के काठगोदाम में हुआ। इनकी रचनाओं का मुख्य विषय ‘नारी चेतना’ व ‘समसमाज का निर्माण’ है। इनकी चर्चित रचनाएँ ‘समकालीन हिंदी काव्य मे आम आदमी’, ‘गुम हो गये अर्थ की तलाश. में’, ‘शब्दों के क्षितिज से’, ‘इन दिनो’ आदि है।

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प्रश्न 3.
अनदेखी विटिया क्या चाहती है?
उत्तर :
बेटी मॉ के ऑगन में हरियाली बनकर फैलना चाहती है। ऑचल मे खुशबू बनकर लिपटना चाहती है। मॉँ के माथे की सिलवटों में सिमटे अंधेरे को पोंछ देना चाहती है।

प्रश्न 4.
बेटी के आने से घर का माहैल कैसा होगा?
उत्तर :
बेटी के आने से रुखीला अहसास धुल जायेगा। बेटी की किलकारियों और टुमकते कदमों के शब्द से घर का सत्राटा तुरंत बिखर जायेगा। बेटे की उद्दंडता और पिता के गर्व के कारण घर मे जो सन्नाटा बना हुआ है, वह मिट जायेगा।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
‘माँ मुझे आने दे!’ कविता समाज की किस स्थिति के बारे में बताती है? लिखिए। (या) आज समाज में लड़की की स्थिति का वर्णन कीजिए। (या) लड़की माता है, बहन है, पत्नी है। पुप्टि कीजिए।
उत्तर :
‘मॉं मुझे आने दे!’ कविता समाज की स्त्री के प्रति उपेक्षा की भावना दर्शाती है। स्त्री – पुरुष ‘सिक्षे’ के दो पहलू हैं। सिक्के के एक तरफ़ संख्या ओर दूसरी सरफ़ चित्र होता है। कितु सिक्के का महत्व ‘संख्या’ से ही होता है। उसी प्रकार सत्री का भी महत्व है। यदि रत्री न हो तो पुरुष का जन्म कैसे होगा? पुरुष पैदा ही नही हो पायेगा। इस बात को समाज में रहने वालो को समझंना अत्यंत आवश्यक है।

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प्रश्न 2.
भूरणहत्या एक सामाजिक मानवीय अपराध है। अपने विचार लिखिए। (या) बालिका शिक्षा की प्रेरणा समाज की स्थिति को बदल सकती है। अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
स्त्री मानवीय संबंधो को उजागर करने में अपना सथान ऊँचा बनाती है। इसी तरह सामाजिक विषमताओं को लेकर चलती है। ताकि समाज में स्त्री के प्रति प्रेम, आदर्श की भावना को जगा सके। स्त्री जन्म से लेकर मृत्यु तक, वेद काल से आज तक स्त्री की कथाएँ पुरुषों के व्यक्तित्व, अहंकारों से दबी हुई ही दिखाई देती है। इसका कारण यह है कि पुराणों में दिखाये गये सतीत्व की भावना, पतिव्रता की भावना, सीता जैसी नारी के उदाहरण पर चलना। इन सभी कारणों से स्त्री को कमंज़ोर और मजबूर बना दिया गया है। पुरुष समाज समझता है कि स्त्री का कोई अस्तित्व नही होता। सिर्फ उसे काम करने वाली मशीन और आवश्यकता की पूर्ति करने वाली ‘वस्तु’ समझ जा रहा है। र्त्री को हमेशा उपभोग की वस्तु समझा जा रहा था। आज भी ऐसा ही समझा जा रहा है। स्त्री मॉ है, बहन है और पत्नी है। इन तीनो की भूमिका निभाते हुए स्त्री – पुरुष को हर प्रकार का सुख उपलध्ध कराने का निरंतर प्रयास करती ही रहती है। इस बात को न समझकर भ्रूण हत्या करना एक सामाजिक और मानवीय अपराध है।

TS 10th Class Hindi Important Questions 2nd Lesson ईदगाह

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II. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
हामिद के स्थान पर आप होते तो दादी से कैसा व्यवहार करते ?
उत्तर :
हामिद चार – पाँच साल का दुबला – पतला भोला – भाला लडका है। उसके माँ – बाप चल बसे है। बूढ़ी दादी अमीना ही उसकी देखभाल करने लगी है। हामिद बडों के प्रति आदर भाव रखनेवाला अच्छा लडका है। अपनी दादी के प्रति वह बडी श्रद्धा दिखाता है। ऐसे हामिद के स्थान पर मैं होता तो दादी से नम्र व्यवहार करता। उस की हर बात मान लेता। उसके कहे अनुसार चलने की कोशिश करता। उसे किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचाने का प्रयत्न करके । उसे खुश और सुंतष्ट रखता।

प्रश्न 2.
अपने मित्रों द्वारा तरह – तरह के खिलौने और मिठाइयाँ खरीदे जाने पर भी हामिद ने चिमटा ही क्यों खरीदा ?
उत्तर :
अपने मित्रों द्वारा तरह – तरह के खिलौने और मिठाइयाँ खरीदे जाने पर भी हामिद ने चिमटा ही खरीदता है – क्योंकि हामिद की दादी के पास चिमटा नहीं है। जब तवे से रोटियाँ उतार थी तो हाथ जल जाते थे। अगर वह चिमटा खरीदकर दादी के लिए ले जाता, तो वह बहुत प्रसन्न होगी। उनकी उँगलियाँ बी नहीं जलेंगी। उसकी प्रशंसा करके उसे दुआऐँ देगी। ऐसा सोचकर वह चिमटा खरीदा। हामिद के अंदर त्याग, सद्भाव और विवेक, प्रेम जैसे गुण विद्यामान थे। बड़ों के प्रति आदर भाव भी था। इसिलिए वह अपने साथियों को खिलौने खरीदते या मिटाइयाँ खरीदते देखकर भी उसक़ा मन नहीं ललचाया है। बल्कि वह तीन पैसों से चिमटा खरीदता है, उसमें निस्वार्थ भाव था। इसिलिए वह चिमटा ही खरीदा।

TS 10th Class Hindi Important Questions 2nd Lesson ईदगाह

प्रश्न 3.
अमीना, हामिद का पालन्पोषण कैसे करती होगी ?
उत्तर :
यह प्रश्न ईदगाह नामक कहानी पाठ से दिया गया है। इसके लेखक मुँशी प्रेमचंद है। अमीना, हामिद को अपनी गोदी में सुलाती थी। वह हामिद को बहुत प्रेम से देखा करती थी। वह अपनी असहायता से चितित थी। भीड़ में हामिद को अकेले भेजने पर डरती थी। घर में दाना तक न होने पर भी, हामिद को मेले में खरीदने के लिए तीन पैसे दियी। उसे अपने से भी ज्यादा हामिद पर प्रेम था। वही उसके लिए माँ – बाप बन चुकी थी।

प्रश्न 4.
हामिद के ईदगाह जाने के विषय को लेकर अमीना क्यों परेशान थी ?
उत्तर :

  • हामिद चार – पाँच साल का दुबला – पतला लडका था। वह गरीब लडका था।
  • वह बेसमझ लडका था। उसके सिर पर पुरानी फटी टोपी थी।
  • उसके पाँवों में जूते भी नहीं थे। मेला जाने तीन कोस पैदल चलना था।
  • उसके पैरों में छाले पड जायेंगे। गाँव के बच्चे अपने पिता के साथ जा रहे हैं।
  • हामिद का अमीना के सिवा कौन है ? भीड़ में बच्चा कहीं खोगया तो क्या होगा ?
  • उपर्पुक्त इन सारे अंशों के कारण अमीना परेशान थी।

प्रश्न 5.
त्यौहार के दिन बश्चे अधिक खुश होते हैं। क्यों ?
उत्तर :
त्यौहारों के समय बच्चे निम्नलिखित कारणों से अधिक खुश होते हैं बचों के माँ – बाप उनके लिए नये – नये कपडे लेते हैं। घरों में अच्छे – अच्छे पकवान बनाते हैं। मित्र, बंधु – बांधव आदि से घर भर जाते हैं। त्योहारों के समय मेले – उत्सव आदि मनाये जाते हैं। इनमें भाग लेने के लिए बच्चे बहुत उत्सुक रहते हैं।

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प्रश्न 6.
प्रेमचंद के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
लेखक प्रेमचंद का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। आपका जन्म 31 जुलाई, 1880 को काशी में हुआ। गरीब परिवार के प्रेमचंद ने कई कष्टों को झेलते अपना विद्याध्ययन पूरा किया। हिंदी में आपने लगभग एक दर्जन उपन्यास और ढाई सौ कहानियों की रचना की। इनकी कहानियाँ प्रभावशाली और रोचक हैं। उनमें पंचपरमेश्वर बडे घर की बेटी, कफ़न आदि प्रमुख हैं। अपने उपन्यासों में आपने सामाजिक कुरीतियों का खंडन किया। हिंदी साहित्य में आप उपन्यास सम्राट के नाम से मशहूर हुए हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों कें लिखिए।

प्रश्न 1.
निर्धन लोग ईद – त्यौहार कैसे मनाते हैं? ‘ईदगाह’ कहानी को दृष्टि में रखकर उत्तर दीजिये।
उत्तर :
ईदगाह कहानी के कहानीकार श्री प्रेमचंद हैं। इनका जन्म सन् 1880 में हुआ। इन्होंने एक दर्जन उपन्यास और ढ़ाई सौ कहानियों की रचना की। March 2017 त्यौहार मानव जीवन में खुशी और सजगता लाते हैं। खुशियाँ बाँटने में धनी और निर्धन का भेद भाव नहीं। लेकिन अपने – अपने स्थाई के अनुसार वे त्यौहार मनाते हैं।

ईद का मूलमंत्र यह है. कि ईद केवल खुशी मनाने का नहीं बल्कि खुशियाँ बाटने और लोगों को खुशी में शामिल करने का दिन है। खुशी में पूरे समाज विशेष रूप से उन लोगों को शामिल किया जाना चाहिए। जो इसे खुशी के रूप में मनाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए ईदगाह कहानी में हामिद निर्धन होने पर भी अधिक प्रसन्न था। ईद का त्यौहार माने नये कपडे पहनकर खुशबू लगाकर ईदगाह के लिए घर से निकलना, नमाज़ के बाद एक-दूसरे से गले मिलना, ईद की मुबारक बात देना, अपने परिवार और मित्रों के साथ सैर – सपाटे पर निकल जाना ईद के दिन की यह परंपरा वर्षा से नहीं। सदियों से चला आ रहा है। कहानी में भी हामिद नमाज के बाद अपने मित्रों से गले मिलकर, सैर – सपाटे पर निकले तो उसके मित्र तरह – तरह के खिलौने खरीदते हैं।

यह त्यौहार भाईचारे का प्रतीक है। सभी इस दिन गते मिलते हैं। शतृता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस दिन न कोई छोटा होता है न बडा, न कोई धनी होता है। और न निर्धना इस दिन बचे अपने निर्धनता पर ख्याल नहीं रखते। लेकिन हामिद जैसे कुछ बच्चे अपने निर्धनता को ख्याल में रखकर खेल – तमाशों तथा झूले का आनंद लेना, खिलौने खरीदना और भांति – भांति की मिठाइयों का आनंद लेते हैं। नये वस्त्र सिलवाते हैं। ईद भ्रातृभाव का त्यौहार है। ईद-उल-फ़ितर के दौरान नमाज़ पढ़ने के बाद मीठी सेवाइयाँ खाई जाती हैं। इसलिए हामिद की दादी घर में कुछ पकाने का सामान न होने से सेवाइयाँ लाने के बारे में सोचती है। ईद के दिन हर मुसलमान ईदगाह जाने के पहले “फ़ित्रा “के रूप में एक निश्चित राशी अल्लाह के राह में खर्च करता है ताकि निर्धन व असहाय लोग भी ईद के खुशियों में शामिल हो सकें।

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प्रश्न 2.
ईदगाह के मेले को दृष्टि में रखकर बताइए कि हामिद अपने साथियों से किसं तरह अलग स्वभाव का लड़का है?
उत्तर :
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी की सफल एवं असरदार कहानी है ईदगाह। यह आदर्शयुक्त, यथार्थवादी भावनाओं से भरपूर है। मानव जीवन में नैतिक मूल्यों का विकास करना इस कहानी का खास आशय है। बडे बुज़ुर्गों के प्रति आदर भाव रखने पर ज़ोर दिया गया है।
हामिद चार – पाँच साल का दुबला – पतला – भोला भाला लडका है। उसके माँ – बाप चल बसे हैं। अपनी बूढी दादी अमीना की देखभाल वह करने लगा है। हामिद एकदम अच्छा और आशावान लडका है। उसके पैरों में जूते तक नहीं है।

आज ईद का दिन है। सारा वातावरण सुंदर और सुखदायी है। महमूद, मोहसिन ,नूरे, सम्मी हामिद के दोस्त हैं। सब बच्चे अपने पिता के साथ ईदगाह जानेवाले हैं। हामिद भी ईद की खुशियाँ मना रहा है। हामिद भी ईदगाह जाना चाहता है तो अमीना उसे अकेले भेजने डरने लगती है। इस पर हामिद उसे जल्दी आने की बात कहकर उसे धीरज बँधाता है। तब अमीना उसे तीन पैसे देकर ईदगाह भेजने राजी होती है। सब लडके तीन कोस की दूरी पर स्थित ईदगाह पैदल जाते हैं। वहाँ नमाज़ के समाप्त होते ही सब बच्चे अपने मनपसंद खिलौने और मिठाइयाँ खरीदकर खुश रहते हैं। हामिद तो मिठाइयों को ललचाई आँखों से देखता है, मगर चुप रह जाता है। बाद लोहे की दूकान में अनेक चीजों के साथ चिमटे भी रखे हुए हैं। चिमटे को देखकर हामिद को अपनी दादी का ख्याल आता है। क्योंकि दादी के पास चिमटा नहीं है इसलिए रोज़ तवे से रोटियाँ उतारते उसके हाथ जल जाते हैं। वह सोचता है कि चिमटा ले जाकर दादी को देगा तो वह बहुत प्रसन्न होगी और उसके हाथ भी नहीं जलेंगे।

ऐसा सोचकर वह दुकानदार को तीन पैसे देकर चिमटा खरीदता है। सब दोर्त उसका मजाक उडाते हैं। इसकी परवाह न करके वह गर्व के साथ घर आकर दादी को चिमटा देता है तो पहले दादी नाराज़ होती है मगर हामिद के तुम्हारी उंगलियाँ जलती थी न इसलिए मैं इसे लिवा लाया कहने पर उसका क्रोध प्रेम में बदल जाता है। हामिद के दिल के त्याग, सद्भाव और विवेकगुण से उसका मन गदगद होता है। खुशी के ऑसू बहाती हामिद को दुआएँ देती हैं। इस तरह ईदगाह के मेले की इस घटना दृष्टि में रखकर हम कह सकते हैं कि हामिद छोटा है फिर भी विवेक में, प्रेम में अपने साथियों से अलग स्वभाव का लडका है।

4 Marks Questions :

प्रश्न 1.
हामिद के पास और ज्यादा पैसे होते तो क्या – क्या खरीदता ?
उ.
हामिद के पास और ज्यादा पैसे होते तो वह अपने लिए खिलौने, खाने के लिए मिठाइयाँ आदि अन्य लडकों की तरह खरीदता। इतना ही नहीं कि सिर पर पहनने सफ़ेद टोपी, पैरों के लिए जूते आदि भी खरीदता।

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प्रश्न 2.
हामिद के स्थान पर यदि दादी होती तो क्या खरीदती और क्यों ?
उत्तर :
हामिद के स्थान पर यदि दादी होती तो वह हामिद के लिए उसके पसंद का सोहन हलवा (मिठाई) खरीदती है। क्योंकि गरीबी के कारण घर में अन्न का एक दाना तक नहीं है ऊपर से ईद का दिन भी है। कम से कम इस दिन तो लोग कुछ खास चीज़े बनाकर खाते हैं। दूसरों को मिठाई या हलवा खाते देखकर हामिद का मन भी ललचाता है। उसकी इच्छा को पूरी करने के लिए ही दादी हलवा / मिठाई खरीदेगी।

प्रश्न 3.
ईदगाह कहानी के आधार पर अन्य बच्चों के स्वभाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
ईदगाह कहानी के आधार पर अन्य बच्चों का स्वभाव हामिद के स्वभाव से भिन्न था। क्योंकि मोहसिन ने भिश्ती, महमूद ने सिपाही, नूरे ने वकील और सम्मी ने धोबिन के खिलौने खरीदे। साथ ही कई प्रकार की मिठाइयाँ भी खरीदी। क्योंकि उन्होंने केवल अपने ही बारे में सोचा था। दूसरों या बड़े बुज़ुर्गों के बारे में सोचना उनका स्वभाव नहीं था। उनमें हामिद की तरह त्याग, विवेक, प्रेम आदि गुण नहीं हैं।

7 Marks Questions :

प्रश्न 1.
अमीना का मन क्यों गद्गद् हो गया ?
उत्तर :

  • हामिद बूढ़ी दादी अमीना के लिए मेले में तीन पैसों से चिमटा खरीदकर लाता है।
  • उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं। उनके सारे दोस्त तरहं – तरह के खिलौने और मिठाइयाँ खरीदते हैं।
  • हामिद अपनी दीदी अमीना रोटियाँ तवे से उतारते वक्त जलती उंगलियों को याद करके उसके लिए चिमटा खरीदकर ले जाता है।
  • वह दुपहर तक खाली पेट रहता है। वह कुछ खाता – पीता तक नहीं।
  • इसलिए अपने प्रति हामिद का प्यार, श््द्धा, प्रेम और निस्वार्थ भावना को देखकर बूढी दादी अमीना का मन गद्गद् हो गया।

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प्रश्न 2.
हामिद की निस्वार्थ भावना को कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर :

  • हामिद भोला – भाला बालक है। उसमें बडों के प्रति आदर की भावना है।
  • बुजुर्गों के प्रति आदर, शद्धा, भक्ति, प्रेम, निस्वार्थ भावना, सेवा की प्रेरणा आदि हम हामिद में देख सकते हैं।
  • हामिद में बडों के प्रति प्रेम तथा श्रद्धा के साथ – साथ नम्र भाव भी हैं।
  • मेले में जब सारे दोस्त तरह – तरह के खिलौने खरीदते हैं और तरह – तरह की मिठाइयाँ खरीदकर खाते हैं तब हामिद उन्हें देखते भी
  • ललचाता नहीं बल्कि अपने पास के तीन पैसों से बूढी दादी अमीना के लिए चिमटा खरीदकर ले जाता है।
  • उसे ख्याल आता है कि उसकी बूढ़ी दादी अमीना जब तवे पर से रोटियाँ उतारती तब उसकी उंगलियाँ जल जाती है। इसे देख वह नहीं रह सकता और सह सकता।
  • इससे हमें मालूम होता है कि हामिद में निस्वार्थ भावना है।

प्रश्न 3.
ईदगाह कहानी से क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर :

  • ईदगाह कहानी से हमें ये संदेश मिलता है।
  • निस्वार्थ भावना से रहना चाहिए। बडे – बुजुर्गों को आदर करना चाहिए।
  • बडे – बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए। बडे – बुजुर्गों के अवसरों को हमें पूरा करना है।
  • बडे – बुजुर्गों से श्रद्धा, भक्ति, प्रेम से हमें व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न 4.
दादी और पोते के मार्मिक प्रेम को दर्शानेवाली कहानी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (या) अपनी पाठ्यपुस्तक में से मानवीय मूल्यों को प्रतिबिबित कहानी के बारे में लिखिए।
उत्तर :
रमजान के पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद आयी है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। लडके सबसे ज़्यादा प्रसन्न हैं। हामिद भी ज़्यादा प्रसन्न है। वह भोली सूरत का चार – पाँच साल का दुबला – पतला लडका है । उसके माँ – बाप दोनों चल बसे।

हामिद अपनी बूढी दादी अमीना के लालन – पोषण में रहता है। ईद का दिन होने के नाते हामिद आज बहुत प्रसन्न है। आज वह मेले के साथ ईदगाह जाना चाहता है। उसके पैरों में जूते तक नहीं। तीन कोस पैदल ही चलना पडता है। इसलिए दादी अमीना को बडा दुख हुआ।

हामिद कैसा ठहर सकता है। वह ईदगाह की ओर चल पडा। उसके जेब में केवल तीन पैसे हैं। नमाज़ खत्म हो गयी। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। सब मिठाई और खिलौनों के दूकानों पर धावा करने लगे। हामिद के दोस्त मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते उसे ललचाने पर भी वह चुप रह गया। उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं। वह लोहे की चीज़ों के दुकान के पास ठहर जाता है। उसे ख्याल आता है कि दादी के पास चिमटा नहीं है । तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाते हैं।

अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे-तो वह कितनी प्रसन्न होगी ? यह सोचकर हामिद तीन पैसों से चिमटा खरीदकर दादी को देने तैयार होता है । हामिद के दोस्तों ने उसका मजाक किया। अमीना चिमटा देखकर हामिद के त्याग, सद्भाव और विवेक पर मुग्ध हो जाती है। वह् प्रेम से गदगद हो जाती है। वह हामिद को दुआएँ देती है।