Exploring a variety of TS Inter 1st Year Hindi Model Papers Set 2 is key to a well-rounded exam preparation strategy.
TS Inter 1st Year Hindi Model Paper Set 2 with Solutions
Time : 3 Hours
Maximum Marks: 100
सूचनाएँ :
- सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
- जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।
खंड – ‘क’
(60 अंक)
1. निम्न लिखित किसी एक दोहे का भावार्थ लिखिए । 1 × 6 = 6
जग में बैरी कोइ नही, जो मन सीतल होय ।
यह आपा तू डरि दे, दया करै सब कोय |
उत्तर:
भावार्थ : कबीरदास इस दोहे में “अहंकार को त्याग” करने के लिए कहते है । आपके मन में यदि शीतलता है अर्थात दया और सहानुभूति है, तो संसार में आपकी किसी से शत्रुता नही हो सकती । इसलिए अपने अहंकार को बाहर निकाले और आप अपने प्रति दूसरों में भी समवेदना पायेगें ।
(अथवा)
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है, परिहरु वचन कठोर ॥
उत्तर:
भावार्थ : इस दोहे में तुलसीदास “मधुर वाणी” के महत्व के बारे में हमें बता रहे हैं। तुलसीदास कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुखं फैलाते हैं। किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होता हैं । इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे । मीठे वचन बोलने से सब का मन प्रसन्न रहता हैं और शत्रु भी मित्र होते है । कठोर वचन बोलने से सब हमसे घृणा करते हैं ।
2. किसी एक कविता का सारांश लिखिए । 1 × 6 = 6
(1) बालिका का परिचय
उत्तर:
‘बालिका का परिचय कविता श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान जी से लिखी गयी है । संपूर्ण कविता मे कवइत्री का हृदय बोलता है। एक माँ के लिए उसकी अपनी संतान ही सब कुछ होती है । इसकविता की विषयवस्तु एक और उसकी पुत्री पर आधारित है माँ के लिए वह बालिका ही गोद की शोभा होती है और अपना सौभाग्य । उसी की चेष्टओं में कवइत्री अपना बचपन की स्मृतियों को देख रही है । उसी को अपना मंदिर, मसजिद, काबा, काशी, समझाती है । कृष्ण की बाल लीलाओं को और कौसल्या की ममता को अपनी और बेटी के बीच मे देख रही है ईसा की क्षमाशीलता, नबी मोहम्मद का विश्वास, गौतम की अहिंसा सभी बेटी मे देख रही है । कवइत्री यही मानती है कि जिसके पास सच्ची माँ जी ममता होती है, उस एक बालिका का परिचय मिल जाता है ।
(2) दान बल
उत्तर:
कवि का कहना है कि दान के देने से ही मानव जीवन निरंतर पूर्णरूप से आगे चलती है। दान बल से स्नेह ज्योति उज्वलित होती है। रोते हुए या हँसते हुए जो दान देते है, जो अहंकार में पडकर दान देते है और जा अपने स्वत्व को त्याग मानते हैं, उसका कोई फल नहीं मिलता । वास्तव में त्याग देना स्वत्व का त्याग नही है, यह जीवन की सहज क्रिया मात्र है । जो अपनी संपत्ति को रोक लेता है वह जीवित रहते हुए भी मृतक के समान है । अर्थात् जो दूसरों को दान या मदद नहीं करते वह मरे हुए व्यक्ति के समान है । कवि वृक्ष का उदाहरण देते हुए कहते है किसी पर कृपा दिखाने के लिए फल नहीं देता है । यदि वृक्ष फल को गिरने से रोक देता चले जान के बाद भी फल डाल पर भी रखता है तो ये फल सड़ जाते है और उससे कीटाणु निकल कर डालों को ही नही, सारे वृक्ष को नाश कर देता है । इसलिए वृक्ष फल को त्याग देता है तो उसके बीजों से नसे पौधे पैदा होते है ।
नदी का उदाहरण देते हुए कवि कहते हैं कि नदि भी अपने पानी को नहीं रोकती है । नदी का पानी भाप बनकर बादलो का रूप लेता है और बरसकर पानी उसी नदी में मिल जाता है । इसलिए जो भी हम देते है उसका संपूर्ण फल हमें प्राप्त होता है ।
इस प्रकार कवि का मानना है कि दान एक प्राकृतिक धर्म है । दान देने मे मनुष्य व्यर्थ ही डरता है । हर एक को किसी न किसी दिन सब छोडकर जाना ही है । इसलिए समय का ज्ञान समजकर हमे सब कुछ समय पर दान देना चाहिए। नहीं तो जब मृत्यु आती है तो अपना सर्वस्व छोडकर भी लाभ नहीं मिलता ।
इस प्रकार दान देना मनुष्य का सहज स्वभाव होना चाहिए । यह कोई उपकार नहीं है । इस कर्तव्य को निभाना हमारा कर्तव्य है । उनकी भाषा सरल खडीबेली है ।
3. किसी एक पाठ का सारांश लिखिए । 1 × 6 = 6
(1) बुतकम्मा
उत्तर:
1. प्रस्तावना (बतुकम्मा का अर्थ क्या है) : भारत त्यौहारों का देश है । यहाँ लगभग हर राज्य के अपने – अपने राज्य पर्व हैं । उसी तरह ‘बतुकम्मा’ तेलंगाणा राज्य का राज्य पर्व है । तेलंगाणा राज्य सरकार ने 24 जुलाई, 2014 के दिन सरकारी आदेश संख्या 2 के अनुसार इसे राज्य पर्व के रूप में गौरवान्वित किया है । हर वर्ष धूम-धाम, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला त्योहार ही बतुकम्मा |
बतुकम्म तेलुगु भाषा के दो शब्दों से बना है- ‘बतुकु’ और ‘अम्मा’ । यहाँ ‘बतुकु’ का अर्थ ‘जीवन’ और ‘अम्मा’ का अर्थ ‘माँ’ है । इस तरह बतुकम्मा का अर्थ है – ‘जीवन प्रदायिनी माता’ । बतुकम्मा त्यौहार तेलंगाणा राज्य की वैभवशाली संस्कृति का प्रतीक है । बतुकम्मा त्यौहार दशहरे की नवरात्रियों में मनाया जाता है । यह कुल नौ दिन का त्यौहार है । इसका आरंभ भाद्रपद अमावस्या यानी महालया अमावस्या या पितृ अमावस्या से होता है ।
2. पौराणिक गाथाएँ : वेमुलवाडा चालुक्य राजा, राष्ट्रकूट राजा के उप- सामंत थे, चोला राजा और राष्ट्रकूट के बीच हुए युद्ध में चालुक्य राजा ने राष्ट्रकूट का साथ दिया था । 973 AD में राष्ट्रकूट राजा के उपसामंत थैलापुदु द्वितीय ने आखिरी राजा कर्कुदु द्वितीय को हरादिया और अपना एक आजाद कल्याणी चालुक्य साम्राज्य खड़ा किया, अभी जो तेलंगाणा राज्य है, वो यही राज्य है ।
वेमुलवाड़ा के साम्राज्य के समय राजा राजेश्वर का मंदिर बहुत प्रसिद्ध था । तेलंगाणा के लोग इनकी बहुत पूजा आराधना करते थे । चोला के राजा परान्तका सुंदरा, राष्ट्रकूट राजा से युद्ध के समय घबरा गए थे। तब उन्हें किसी ने बोला कि राजाराजेश्वर उनकी मदद कर सकते थे, तो राजा चोला उनके भक्त बन गए । उन्होंने अपने बेटे का नाम भी राजराजा रखा। राजराजा चोला ने 985 – 1014 AD तक शासन किया। उनके बेटे राजेन्द चोला जो सेनापति थे, सत्यास्त्राया में हमला कर जीत हासिल की। अपनी जीत की निशानी के तौर पर उसने राजा राजेश्वरी मंदिर तुड़वा दिया और एकबड़ी शिवलिंग अपने पिता को उपहार के तौर पर दी । 1006 AD में राजराजा चोला इस शिवलिंग के लिए एक बडे मंदिर का निर्माण शुरु करते है, 1010 में बृहदीश्वर नाम से मंदिर की स्थापना होती है, वेमुलावाडा से शिवलिंग को तन्जावूरु में स्थापित कर दिया गया, जिससे तेलंगाणा के लोग बहुत दुखी हुए। तेलंगाणा छोड़ने के बाद बृहदम्मा (पार्वती) के दुःख को कम करने के लिए बतुकम्मा की शुरुवात हुई, जिस में फूलों से एक बड़े पर्वत की आकृति बनाई जाती है। इसके सबसे ऊपर हल्दी से गौरम्मा बनाकर उसे रखा जाता है। इस दौरान नाच, गाने होते है । बतुकम्मा का नाम बृहदम्मा से आया है। शिव के पार्वती को खुश करने के लिए थे त्यौहार 1000 साल से तेलंगाणा में बडी धूम धाम से मनाया जा रहा है ।
इसके अतिरिक्त एक पौराणिक कहानी भी है – कहा जाता है कि चोल नरेश धर्मागंद और उनकी पत्नी सत्यवती के सौ पुत्र थे । वे सभी पुत्र एक महायुद्ध में मारे गए। इस दुख से उबरने के लिए राजा धर्मांगंद और रानी सत्यवती ने कई पूजा पाठ, यज्ञ आदि पूजन कार्य किए । फलस्वरुप उनके घर में साक्षात लक्ष्मीदेवी का जन्म हुआ । बचपन में घटी कई दुर्घटनाओं के बावजूद वह सुरक्षित बची रही । इसीलिए माता पिता ने उसका नाम ‘बतुकम्मा’ रख दिया । सभी लोग उसकी पूजा करना आरंभ किया ।
3. बतुकम्मा पर्व का महत्व : बतुकम्मा पर्व के पीछे एक खास उद्देश्य है, वर्षा 3. बतुकम्मा ऋतु में सभी पानी जगह आ जाता है, जैसे नदी, तालाब एंव कुँए भर जाते हैं, धरती भी गीली महिम सी हो जाती है और इसके बाद फूलों के रूप में पर्यावरण में बहार आती है। इसी कारण प्रकृति का धन्यवाद देने के लिए तरह- तरह के फूलों के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है, इसमें फोक रीजनल साँग अर्थात क्षेत्रीय गीत गाये जाते है। इन दिनों पूरे देश में ही उत्साह के पर्व मनाये जाते हैं, इन सबका उद्देश्य प्रकृति का अभिवादन करना ही होता है ।
4. बतुकम्मा पर्व कैसे मनाता और कैसे आचरण करता है : इस त्यौहार को मनाने के लिए नव विवाहित अपने मायके आती है। ऐसा कहा जाता हैं उनके जीवन में परिवर्तन के लिए यह प्रथा शुरु की गई,
a) पर्व के शुरुवाती पाँच दिनों में महिलाएँ अपने घर का आँगन स्वच्छ करती है, गोबर से आंगन को लिपा जाता है ।
b) सुबह जल्दी उठकर उस आँगन में सुंदर-सुंदर रंगौली डालती है ।
c) कई जगह पर एपन से चौक बनाया जाता है जिसमें सुंदर कलाकृति बनाई जाती है, चावल के आटे से रंगोली का बहुत महत्व है ।
d) इस उत्सव में घर के पुरुष बाहर से नाना प्रकार के फूल एकत्र करते हैं जिसमें तंगेडु, गुम्मडि पुव्वु, बंती, मंदारम, गोरिंटा, पोकाबंती, कट्लपाडु, गुंट्लागरगरा, चामंती, तामरा, गन्नेरु, गुलाबी, वज्रदंती, गड्डी पुव्वु आदि फूलों को एकत्र किया जाता हैं ।
e) फूलों के आने के बाद उनको सजाया जाता हैं । तरह-तरह की लेयर बनाई जाती हैं, जिसमें फूलों की पत्तियों को सजाया जाता है। इसे तांबालम (Thambalam) के नाम से जाना जाता है ।
f) बतुकम्मा बनना एक लोक कला है। महिलाएँ बतुकम्मा बनाने की शुरुवात दो पहर से करती है ।
आचरण (Celebration ) :
a) नौ दिन इस त्यौहार में शाम के समय महिलाएँ, लड़कियाँ एकत्र होकर इस त्यौहार को मनाती हैं । इस समय ढोल बजाये जाते हैं ।
b) सब अपने – अपने बतुकम्मा को लेकर आती है ।
c) महिलाएँ पारंपरिक साड़ी और गहने पहनती है । लडकियाँ लहंगा चोली पहनती है |
d) सभी महिलाएँ बतुकम्मा के चारों ओर गोला बनाकर क्षेत्रीय बोली में गाने गाती हैं, यह गीत एक सुर में गाये जाते हैं, इस प्रकार यह त्यौहार नौ दिनों तक मनाया जाता हैं। महिलाएँ अपने परिवार की सुख, समृद्धि, खुशहाली के लिए प्रार्थना करती है ।
e) हर एक दिन का अपना एक नाम है, जो नैवेद्यम (प्रसाद) के अनुसार रखा गया है ।
f) बहुत से नैवैद्यम बनाना बहुत आसान होता है, शुरु के आठ दिन छोटी बड़ी लडकियाँ इसे बनाने में मदद करती है ।
g) आखिरी दिन को सहुला बतुकम्मा कहते है, सभी महिलाएँ मिलकर नैवैद्यम बनाती है । इस अंतिम दिन बतुकम्मा को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है ।
5. आनंद का पर्व : बतुकम्मा महीने भर समाज आनन्द मग्न रहता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में स्त्रियों के करताल से सारा वातावरण गूंज उठता है। नीरस भी सरस बन जाता है। चारों तरफ हरियाली, पानी की भरपूर मात्रा, घर आँगन में खुशियों का वातावरण बनाये रखे । जीवन में महीने भर मानों आनन्द ही आनन्द बना रहता है ।
6. उपसंहार : भारत के सारे पर्वदिन आनन्द के ही त्योहार है । बतुकम्मा अधिक आनंदप्रद त्योहार है । रंक से लेकर रईस तक इसे मनाते हैं गौरवशाली वैभव का गुणगान करता है । इस केवल ममता, प्रेम, समर्पण, त्याग की प्रतीक है, बल्कि समय आने पर समाज के हितों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहती है । यह त्योहार उस रूढिवादिता का विरोध करता है । जहाँ पुरुष को प्रधान माना जाता है । यह त्योहार स्त्री शक्ति को पहचानने, उनका आदर करने और समाज में उचिन स्थान देने पर बल देना है |
“तेलंगाणा यदि शरीर है तो बतुकम्मा उसकी आत्मा । बतुकम्मा के बिना तेलंगाणा राज्य की कल्पना करना असंभव है” ।
(2) अपराजिता
उत्तर:
लेखिका परिचय : गौरा पंत हिन्दी की प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। वे ‘शिवानी’ उपनाम से लिखा करती थी । शिवानी ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन से बि.ए. किया । साहित्य और संगीत के प्रति एक गहरा रूझान ‘शिवानी’ को अपने माता और पिता से ही मिला । भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हें हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया । उनकी अधिकतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े रोचक ढंग से किया ।
सारांश : ‘अपराजिता’ नामक कहानी में लेखिका हमें ‘चंद्रा’ नामक एक युवती की जीवन के बारे में बतायी । ‘चंद्रा’ एक अपंग स्त्री है, जिन्होंने 1976 में माइक्रोबायोलाजी में डाक्टरेट मिली हैं । अपंग स्त्री पुरुषों में इस विषय में डॉक्टरेट पानेवाली डाँ. चंद्रा प्रथम भारतीय है। डॉ. चंद्रा के बारे में अपनी माँ इस प्रकार बता रही है कि ” चंद्रा के बचपन में जब हमें सामान्य ज्वर के चौथे दिन पक्षाघात हुआ तो गरदन के नीचे सर्वांग अचल हो गया था । भयभीत होकर हमने इसे बडे – से – बडे डाक्टर को दिखाया । सबने एक स्वर से कहा आप व्यर्थ पैसा बरबाद मत कीजिए आपकी पुत्री जीवन भर केवल गरदन ही हिला पायेगी । संसार की कोई भी शक्ति इसे रोगमुक्त नही कर सकती”। चंद्रा के हाथों में न गति थी, न पैरों में फिर भी माँ-बाप होने के नाते हम दोनों आशा नही छोडी, एक आर्थीपैडिक सर्जन की बडी ख्याति सुनी थी, वही ले गये । वहा चंद्रा को एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपचार चला और एक दिन स्वयं ही इसके ऊपरी धड़ में गति आ गयी । हाथ हिलने लगे, नन्हीं उँगलियाँ माँ को बुलने लगी । निर्जीव धड़ से ही चंद्रा को बैठना सिखाया | पाँच वर्ष की हुई, तो माँ ही इसका स्कूल बनी । चंद्रा मेधावी थी। बेंगलूर के प्रसिद्ध माउंट कारमेल में उसे प्रवेश मिली । स्कूल में पूरी कक्षाओं में अपंग पुत्री की कुर्सी की परिक्रमा उसकी माँ स्वयं करती ।
प्रत्येक परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चंद्रा ने स्वर्ण पदक जीते । बि.एस.सी किया । प्राणि शास्त्र में एम.एस.सी में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बेंगलूर के प्रख्यात इंस्टिटयूट ऑफ साइंस में अपने लिए स्पेशल सीट अर्जित की। केवल अपनी निष्ठा, धैर्य एवं साहस से पाँच वर्ष तक प्रोफेसर सेठना के निर्देशन में शोधकार्य किया । सब लोग चंद्रा जैसी हँख मुख लडकी को देख अचरज हो जाते | लेखिका चंद्रा को पहली बार अपनी कोठी का अहाते में जुड़ा एक कोठी में कार से उतरते देखा । तो आश्चर्य से देखती ही रह गयी । ड्राइवर हवील चेयर निकालकर सामने रख दी, कार से एक युवती ने अपने निर्जीव निचले धड़ को बडी दक्षता से नीचे उतरता, फिर बैसाखियों से ही ह्वील चेयर तक पहुँच उसमें बैठ गयी । बड़ी तटस्थता से उसे स्वयं चलाती कोठी के भीतर चल गयी थी । छीरे-धीरे लेखिका को उससे परिचय हुवा । चंद्रा की कहानी सुना तो लेखिका दंग रह गयी । चंद्रा लेखिका को किसी देवांगना से कम नही लगी। चंद्रा विधाता को कभी निंदा नही करती । आजकल वह आई.आई.टी मद्रास में काम कर रही है । गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का स्वर्ण पानेवाली वह प्रथम अपंग बालिका थी । यह नही भारतीय एंव प्राश्चात्य संगीत दोनों में उसकी समान रुचि है ।
डाँ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में “मुझे यह कहने में इंच मात्र भी हिचकिटहट नही होती कि डाँ चंद्रा ने विज्ञान की प्रगति में महान योगदान दिया है । चिकित्सा ने जो खोया है, वह विज्ञान ने पाया है | चंद्रा के पास एक अलबम था | चंद्रा के अलबम के अंतिम पृष्ठ में है उसकी जननी का बड़ा सा चित्र जिसमें वे जे सी बेंगलूर द्वारा प्रदत्त एक विशिष्ट पुरस्कार ग्रहण कर रही हैं – “वीर जननी का पुरस्कार” । लेखिका के कानों में उस अद्भुत साहसी जननी शारदा सुब्रह्मण्यम के शब्द अभी भी जैसे गूँज रहे हैं – “ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नही करता । यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है’ । इसलिए अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नही ठहराता ।
लेखिका चंद्रा जी के बारे में इस तरह कह रही है कि – “जन्म के अठारहवे महीने में ही जिसकी गरदन से नीचे पूरा शरीर पोलियो ने निर्जीव कर दिया हो, इसने किस अद्भुत साहस से नियति को अंगूठा दिखा अपनी थीसिस पर डाक्टरेट ली होगी ? उसकी आज की इस पटुता के पीछे है एक सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका” । स्वयं डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में “हमने आज तक दो व्यक्तियों द्वारा सम्मानित रूप में नोबेल पुरस्कार पाने के ही विषय में सुना था, किंतु आज हम शायद पहली बार इस पी. एच. डी के विषय में भी कह सकते हैं । देखा जाय तो यह डाक्टरेट भी संयुक्त रूप में मिलनी चाहिए डाँ. चंद्रा और उनकी अद्भुत साहसी जननी श्रीमति टी. सुब्रह्मण्यम को । लेखिका कहती है कि कभी सामान्य सी हड्डी टूटने पर या पैर में मोच आ जाने पर ही प्राण ऐसे कंठगात हो जाते हैं जैसे विपत्ति का आकाश ही सिर पर टूट पड़ा है और इधर यह लड़की चंद्र को देखो पूरा निचला धड़ सुन्न है फिर भी कैसे चमत्कार दिखायी । सब लोग डॉ. चंद्र से बहुत सीखना है। कभी जीवन में निराश नही होना चाहिए | जितने भी कष्ट आने पर भी, सभी को हसते हुए झेलकर अपना मंजिल तक पहुँचना ही इस कहानी का उद्येश्य है ।
विशेषताएँ :
- आधुनिक होने का दावा करनेवाला समाज अब तक अपंगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है ।
- अधिकतर लोगों के मन में विकलांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है, यह दोनों भाव विकलांगों के स्वाभिमान पर चोट करते हैं ।
- अपंगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है ।
- अपंगों ने तमाम बाधाओं पर काबू पा कर अपनी क्षमताएं सिद्ध की है ।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 27 दिसंबर को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक दिव्य क्षमता है और उनके लिए अपंग शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए |
- अपंग लोगों को केवल सहयोग चाहिए, सहानुभूति को भीख नहीं ।
4. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर तीन या चार वाक्यों में लिखिए । 2 × 4 = 8
1) रवींद्र का लक्ष्य क्या था ?
उत्तर:
रवींद्र एक छोटे से गाँव का लड़का था । गरीब परिवार का रवींद्र खुद अपने बलबूते पर पढ़ता चला गया । हर परिक्षा में प्रथम रहता था । दसवी कक्षा में प्रथम आने पर रवींद्र का उत्साह दुगना हो गया और अधिक लगन से पढ़ने लगा । उसका एक मात्र लक्ष्य खूब पढकर आई. ए. एस बनना है । उसने अपना ध्यान आई. ए. एस की परीक्षा पास कर एक अधिकारी बनने पर केन्दित किया । अंत में कलक्टर बन जाता है |
2) वनों को नष्ट करने से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में लिखिए ?
उत्तर:
वनों की कटाई से मिट्टी, पानी और वायु क्षरण होता है जिसके परिणामस्वरुप हर साल 16,400 करोड़ से अधिक वृक्षों की कमी देखी जाती है। वनों की कटाई भूमि की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डालती है कयों कि वृक्ष पहाडियों की सतह को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है तथा तेजी से बढती बारिश के पानी में प्राकृतिक बाधाएँ पैदा करते हैं। नतीजतन नदियों का जल स्तर अचानक बढ़ जाता है जिससे बाढ़ आती है । मिट्टी की उपजाऊ शक्ति की हानि होती है । वायु प्रदूषित होती है । प्रजातियां विलुप्त हो जाती है । ग्लोबल वार्मिगं हो जाता है । औषधीय वनस्पति प्राप्त करना दुर्लभ हो जाता है । ओजोन परत को नुकसान हो रहा है । जल संसाधन की कमी होती है ।
3) ध्यान चंद का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए ?
उत्तर:
हाँकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह को कौन नहीं जानता है । उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाब्द में हुआ था । वह भारतीय फील्ड हाँकी के भुतपुर्व खिलाडी व कप्तान थे । उन्हें भारत एंव विश्व हाँकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है । वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतनेवाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं । इनमें मे 1928 का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलम्पिक और 1936 का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है | 3 दिसंबर 1979 को जब उन्होंने दुनिया से विदा ली तो उनके पार्थिव शरीर पर दो हाँकी स्टिक क्राँस बनाकर रखी गई । ध्यानचंद ने मैदान पर जो ‘जादू’ दिखाए, वे इतिहास में दर्ज है ।
4) “सफलता अकेले आगे बढने में नहीं है, बल्कि दूसरों को भी साथ लेकर बढने में है ।” इसक कथन का समर्थन करते हुए अपने विचार लिखिए ?
उत्तर:
किसी भी संस्था के परिणामों को बेहतर बनाने केलिए टीम वर्क की अहमियत को समझना बेहद जरुरी है| संकटपूर्ण स्थितियों में टीम भावना से किया काम सफलता को सुनिश्चित करता है । यह वह स्थिति होती है, जिसमें सभी की जीत होती है । पारस्परिक मधुर संबंध टीम की सफलता केलिए जरुरी होते है । सदस्यों के बीच भरोसा मजबूत होना चाहिए । टीम वर्क से कोई भी काम कम वक्त में पूरा हो जाता है । जब कई लोग किसी एक समस्या का समाधान ढूंढने का कोशिश करते है तो बेहतर विचार सामने आते हैं। टीम वर्क में गलती की संभावनाएं कम होती हैं, क्यों कि एक व्यक्ति का काम दूसरे से जुड़ा होता है, इसलिए प्रत्येक स्तर पर काम की जांच होती रहती है । अच्छा टीम वर्क किसी संगठन को कम समय में बेहतर नतीचे तक पहुंचाता है । सफलता एक व्यक्ति का न होकर समस्त व्यक्तियों के होते तो उसका मजा ही और है । हम उस आनंद बातों में नहीं बता सकते ।
5. निम्नलिखित दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए | 2 × 3 = 6
1) सब तीर्थो का एक तीर्थ यह हृदय पवित्र बना ले हम ……………. सौ-सौ आदर्शों को लेकर एक चरित्र बना ले हम |
उत्तर:
यह पद्य ‘समता का संवाद’ नामक कविता से लिया गया है । इसके कवि मैथिलीशरण है । सब को आदर्शमय जीवन बिताने का सन्देश कवि देते हैं ।
कवि का कहना है कि हमारे देश मे अनेक तीर्थ स्थल है । उनके समान हमारे हृदय को भी पवित्र बनाएंगे । हम अजातशत्रु बनकर सबसे मित्रता करेंगे। हमारे मनोभावों को एक निश्चित रूप देंगे और उनसे हमारे चरित्र आदर्श बनाएंगे । कवि की भाषा सरल खडीबोली है ।
2) रशि – किरणों से उतर उतरकर,
भूपर कामरूप नभ चर,
चूम नवल कलियों का मृदु – मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना ।
उत्तर:
यह पद्य ‘प्रथम रश्मि नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी है । इसमे प्रातः काल की सुन्दरता का वर्णन किया गया है ।
कवि कहते है कि परिवेश के अनुरूप अपना इम बदलने वाली तितलियाँ चन्द्र किरणों की तरह जमींन पर उतरकर नव कोमल पत्तों को चूमकर उनको मुस्कुराना सिखा रही है। प्रकृति का कोमल वर्णन इसमे वर्जित है ।
3) यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सुहाग की है लाली ।
शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली ।
दीप शिखा है अंधकार की, बनी घटा की उजियाली ।
उषा है यह कमल भृंग की है पतझड की हरियाली ।
उत्तर:
यह पद्य ‘बालिका का परिचय’ नामक कविता से लिया गया है । इसकी कवइत्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी है। इसमे नारी चेतना का स्वर स्पष्ट होती है ।
कवइत्री कहती है कि बालिका मेरी गोद की शोभा है और सौभाग्य प्रदान करनेवाली है । वह मेरी मनोकामना का प्रतिफल है। माँ जितनी सम्पन्न होने पर भी बालिका के सामने भिखारिन ही है । वह अन्धकार में दीपशिखा की तरह, कालीघटा में प्रकाश की तरह है । वह पतझड की हरियाली में, कमल भौरों में उषा की पहली किरण जैसी है । अपनी बालिका ही जीवन का सूर्योदय है। उनकी भाषा सरल खडीबोली है ।
4) ऋतु के बाद फूलों का रुकना डालों का सड़ना है, मोह दिखाना देय वस्तु पर आत्मघात करना है । देते तरु इसलिए कि रेशों में मत कीट समायें, रहें डालियाँ स्वस्थ और फिर नये – नये फल आयें ।
उत्तर:
यह पद्य ‘दान बल, नामक कविता से लिया गया है । यह कविता रश्मिरथी नामक काव्य से लिया गया है । इसके कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी है ।
इसमे दान की महानता को व्यक्त करते हुए कवि वृक्ष का उदाहरण दे रहा है । वृक्ष ऋतु जाने के बाद स्वयं अपने फलों को छोड देती है । यदि नही छोडती तो वे फल डालों पर ही सड जाते है । उससे कीडे निकलकर सारा वृक्ष नाश हो जाता है । यदि फल को छोडता है तो उसके बीजों से नये पौधे और नये फल उत्पन्न होते है उसकी भाषा सरल खडीबोली है ।
6. निम्नलिखित किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए : 2 × 3 = 6
(1) रूई की पतली पत्ती दूध से भिगोकर जैसे- जैसे उसके नन्हें से मुँह में लगाई पर मुँह खुल न सका और दूध की बूँदे दोनों ओर दुलक गई ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘गिल्लू’ नामक पाठ से दिया गया है । इस पाठ की लेखिका ‘श्रीमती महादेवी’ वर्मा है । आप हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में छायावाद युग की प्रसिद्ध कवइत्री एवं ख्यातिप्राप्त गद्य – लेखिका है। आपको ‘आधुनिक मीराबाई’ कहा जाता है । ‘नीहार’, ‘नीरजा’, ‘रश्मि’, ‘सन्ध्यागीत’, आदि आपके काव्य है। ‘स्मृति की रखाएँ’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘रटंखला की कडियाँ’ आदि आपकी प्रख्यात गद्य रचनाएँ हैं । आपको ‘यामा’ काव्य पर भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार प्राप्त हुआ । प्रस्तुत पाठ में एक छोटी जीव की जीवन का चित्रण करती हैं ।
व्याख्या : महादेवी वर्मा के घर में एक दिन बरामदे से तेज आवाज आने लगी । तब लेखिका बाहर आकर देखती है । दो कौए गिलहरी को खाने का प्रयत्न करते हैं । लेखिका उस छोटे जीव को कौओं से बचाकर घर के अंदर ले आती है । गिलहरी के शरीर पर हुए घावों पर पेंसिलिन मरहम लगाती है | उसे खिलाने या पिलाने की प्रयत्न करती है । दूध पिलाने केलिए रूई को दूध से भिगोकर, उसके नन्हे से मुँह में लगाती है, पर मुँह खुला सका। तब दूध की बूँदे ढुलक जाती है । अंत मैं कई घंटे के बाद उसके मुँह में टपकाया जाता है । गिलहरी को बचाने के लिए बहुत प्रयास करती है ।
विशेषताएँ :
- किसी भी प्राणी आपत्ति में रहने पर उसकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है ।
- छोटे जीवों के प्रती भी लेखिका के मन में करुण भावना है |
- कई घंटे उस छोटी जीव की उपचार करती रही, अंत में सफल हुई ।
(2) तेलंगाणा यदि शरीर है तो बतुकम्मा उसकी आत्मा । बतुकम्मा के बिना तेलंगाणा राज्य की कल्पना करना असंभव है ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘बतुकम्मा’ नामक पाठ से दिया गया है । यह पाठ एक निबंध है | त्यौहार समय समय पर आकर हमारे जीवन में नई चेतना, नई स्फूर्ति, उमंग तथा सामूहिक चेतना जगाकर हमारे जीवन को सही दिशा में प्रवृत्त करते हैं । ये किसी राष्ट्र एंव जाति-वर्ग की सामूहिक चेतना को उजागर करने वाले जीवित तत्व के रूप में प्रकट हुआ करते है ।
व्याख्या : भारत में लगभग हर राज्य के अपने – अपने राज्य पर्व हैं । उसी तरह ‘बतुकम्मा’ तेलंगाणा राज्य का राज्य पर्व है । बतुकम्मा त्यौहार विश्व का एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें एक मंच पर 9,292 स्त्रियों ने भाग लेकर अपनी श्रद्धा और भक्ति का अनूठा प्रस्तुत किया है । 8 अक्तूबर, 2016 को तेलंगाणा राज्य का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया । बतुकम्मा त्यौहार स्त्री शक्ति को पहचानने उनका आदर करने और समाज में उचित स्थान देने पर बल देता है । ‘बतुकम्मा’ त्योहार के द्वारा ‘तेलंगाणा’ विश्व मे प्रसिद्ध हुवा है । इसलिए लोग कहते है कि तेलंगाणा यदि शरीर है तो बतुकम्मा उसकी आत्मा । “आत्मा के बिना मनुष्य जीवित नही रह पाते । इसी तरह बतुकम्मा के बिना ‘तेलंगाणा’ राज्य की कल्पना करना असंभव है ।
विशेषताएँ :
- त्यौहार मनुष्य के जीवन में उल्लास लाता है ।
- बतुकम्मा त्यौहार भारतीय समाज में स्त्रियों के गौरवशाली वैभव का गुणगान करता है ।
- गरीब – अमीर जैसे भेद – भाव के बिना बतुकम्मा त्यौहार मनाते हैं ।
(3) ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नही करता । यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘अपराजिता’ नामक कहानी से दिया गया है। इसकी लेखिका ‘गौरा पंत शिवानी’ जी है । भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हे हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया । शिवानी जी की अधिकतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । प्रस्तुत कहानी ‘अपराजिता’ में लेखिका ‘डाँ. चंद्रा’ नामक एक अपंग युवती की जीवन संबंधी विषयों के बारे में हमें बतायी ।
व्याख्या : डाँ. चंद्रा अपनी दुस्थिति पर कभी असंतुष्ठ नही होती । भगवान को भी कभी निंदा नही करती थी। चंद्रा की माँ अपने सारे सुख त्यागकरके बेटी की उन्नती चाही । चंद्रा की माँ एक बार भाषण में इस प्रकार कहती है कि – “भगवान हमारे सब द्वार एक साथ बंद नही करता । यदि भगवान एक रास्ता बंद करता भी है, तो दूसरा रास्ता हमें दिखायेगा ” । भगवान अंतयामी है । मानव अपनी विपत्ति के कठिन क्षणें में विधाता को दोषी कहते हैं । उसका निंदा भी करते हैं । कृपा करके ऐसा कभी नही सोचिए । हमारे जीवन में कितने मुश्किलों आने पर भी धैर्य से उसके सामना करना होगा ।
विशेषताएँ :
- भगवान हमेशा दीन लोगों की सहायता करता है ।
- तुम एक रास्ते पर मंजिल तक जाना चाहते हो, अचानक उस रास्ता बन्द हो तो, जरूर दूसरा रास्ता खोज देंगे ।
- भगवान अपंग लोगों को एक अंग से वंचित करने पर भी दूसरे अंगों की क्षमता इस प्रकार देगा कि सामान्य से अधिक होगा ।
(4) विनम्रता केवल बडों के प्रति नही होती । बराबरवालों और अपने से छोटों के प्रति भी नम्रता और स्नेह का भाव होना चाहिए ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘शिष्टाचार’ नामक पाठ से लिया गया है । यह पाठ एक सामाजिक निबंध है । इसके लेखक रामाज्ञा द्विवेदी ‘समीर’ जी हैं। वे ‘समीर’ उपनाम से साहित्यिक रचनाएँ करते थे । हिंदी के शब्द भंडार को समृद्ध करने की दृष्टि से उन्होंने ‘अवधी’ शब्द कोश का निर्माण किया था । इसके अतिरिक्त उन्होंने कई फुटकल रचनाएँ भी की हैं ।
व्याख्या : विनम्रता शिष्टाचार का लक्षण है । किसी के द्वारा बुलाए जाने पर हाँ जी, नहीं जी, अच्छा जी कहकर उत्तर देना चाहिए । कुछ लोग विनम्रता केवल बड़ों के प्रति ही दिखाते हैं। अपने से छोटों और बराबर वालों के प्रति भी नम्रता और स्नेह का भाव होना चाहिए । बड़ों का आदर- सम्मान करना, अपने मित्रों एवं सहयोगियों के प्रति सहयोगात्मक रवैया, छोटों के प्रति स्नेह की भावना, स्थान विशेष के अनुकूल व्यवहार इत्यादि शिष्टाचार के उदारहण है । हमारे मन को संयम में रखना शिष्ट व्यवहार केलिए अत्यंत आवश्यक है ।
विशेषताएँ : प्रस्तुत निबंध ‘शिष्टाचार’ एक उपदेशात्मक निबंध है । उम्र में बडे व्यक्तियों को ‘आप’ कह कर संबोधित करना, बोले तो मधुर बोलो सत्य बोलो, प्रिय बोलो। किसी की निंदा न करना चाहिए | औरतों के प्रती श्रद्धा और गौरवभाव रहनी चाहिए । शिष्टाचार व्यक्ति सबसे प्रशंसनीय पात्र बन पाता है ।
7. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए । 2 × 3 = 6
1) माँ केलिए बेटी किसके समान है ?
उत्तर:
माँ के लिए बेटी गोद की शोभा है और सौभाग्य प्रदान करती है । वह अपने अंधकारमय जीवन के लिए दीपशिखा की तरह है । माँ जीवन मन उषा की पहली किरण है । नीरस मन में अमृत की धारा और रस भरने वाली है – वह बालिका नष्ट नयनों की ज्योति है और तपस्वी को मन की सच्चीलगन है । एक माँ के लिए उसकी अपनी संतान है सबकुछ होती है। माँ और बेटी में भेद न करने की भावना समाज को उन्नति के शिखर पर पहुँचा सकती है ।
2) सत्गुरु के विषय में कबीर के क्या विचार है ?
उत्तर:
कबीरदास गुरु का बड़ा मान रखते थे । उनकी दृष्टि में गुरु का स्थान भगवान से भी बढकर है । गुरु की महिमा अपार और अनंत है, जो शब्दों से बयान नही होती । गुरु ही अपने अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान रूपी दीप (ज्योती) जलाते है । सत्गुरु ही भगवान के बारे में हमें बताते है । भगवान तक पहुँचने के मार्ग हमें दिखाते हैं ।
3) कवि ने प्रातः काल का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
पंत जी ने प्रातः काल का सुन्दर वर्णन किया है । उषा काल मे सूरज की प्रथम किरण धरती को छूने से कितने सुन्दर परिवर्तन होते है, उनका सुन्दर वर्णन किया है । सूर्योदय के स्वागत में नन्ही सी पक्षी की मधुर आवाज मे गाना, नन्ही सी कलियों का चन्द्रके किरण तितलियों के रुप मे स्पर्श करने से मुस्कुराना, रात के चमकीले तारे मन्द पड जाना, सूर्योदय के स्वागत करते हुए कोयल का गाना सभी का सुन्दर वर्णन करके कवि यह प्रश्न कर रहा है कि सुर्योदय के आगमन के बारे मे इन सबको कैसा पता चल रहा है ।
4) मैथिली शरण गुप्त का संक्षिप्त परिचय लिखिए ?
उत्तर:
मैथिलिशरण गुप्त जी का जन्म सन् 1886 में झांसी के चिरगाँव गाँव में हुआ | वे राष्ट्र कवि के रूप में प्रसिद्ध थे | उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनो में भी भाग लिया । भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण उपाधि से भी सम्मानित किया । सन् 1964 में उनकी मृत्यु हो गयी । साकेत, जयभारत, यशोधरा, भारत-भारती, उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है । उन्होंने मानवता को अपनी कविता का आदर्श बनाया । त्याग और प्रेम को उन्होंने महानता दी । प्रस्तुत ‘समता का संवाद’ कविता में उन्होंने भारत में सभी धर्मों, संस्कृतियों, आचार-विचारों आदि को समान रूप में बदलकर देश में एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया । उनकी भाषा सरल खडीबोली है ।
8. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए । 2 × 3 = 6
1) अनुशासन के पालन पर विचार व्यक्त कीजिए ?
उत्तर:
हर एक के जीवन में अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण चीज है । बिना अनुशासन के कोई भी एक खुशहाल जीवन नही जी सकता है । कुछ नियमों और फायदों के साथ ये जीवन जीने का एक तरीका है । अनुशासन सब कुछ है, जो हम सही समय पर सही तरीके से करते हैं । ये हमें सही राह पर ले जाता है ।
हम अपने रोजमर्रा के जीवन में कई प्रकार के नियमों और फायदों के द्वारा अनुशासन पर चलते हैं, इसके कई सारे उदाहरण हैं, जैसे हम सुबह जल्दी उठते हैं। अनुशासन अपने बड़ों, ऑफिस के सीनियर, शिक्षक और माता पिता के हुक्म का पालन करना है जिससे हम सफलता की ओर आगे बढते हैं । हमें अपने जीवन में अनुशासन के महत्व को समझना चाहिए । जो लोग अनुशासनहीन होते हैं, वह अपने जीवन में बहुत सारी समस्याओं को झेलते हैं साथ निराश भी होते हैं ।
2) चंद्रा की किस विषय में रुचि थी ? वह क्या बनना चाहती थी ?
उत्तर:
चंद्रा की रुचि डॉक्टरी में थी । वह एक डॉक्टर बनना चाहती थी। परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर भी चंद्रा को मेडिकल में प्रवेश नही मिला क्यों कि उसकी निचला धड़ निर्जीव है | चंद्रा एक सफल शल्य चिकित्सक नही बन पायेगी । बडी डॉक्टर बनना ही चंद्रा की इच्छा थी । डाँ. चंद्रा के प्रोफेसर कहते है कि – “विज्ञान की प्रगती में चंद्रा महान योगदान दिया है “। “चिकित्सा ने जो खोया है, वर विज्ञान ने पाया है ।” इसका अर्थ डाक्टर बनकर चिकित्सा क्षेत्र में जो काम चंद्रा करना चाहती थी, वह विज्ञान में करके दिखायी थी ।
3) महादेवी वर्मा ने गिल्लू की किस प्रकार से सहायता की थी ?
उत्तर:
लेखिका गिलहरी के घायल बच्चे को उठाकर अपने कमरें में ले आई उसका घाव रूई से पोंछा
उस पर पेंसिलिन दवा लगाई किर उसके मुँह में दूध डालने की कोशिश की । परन्तु उसका मुँह खुल नही सका, कई घंटे के उपचार के बाद उसने एक बूँद पानी पिया । तीन दिन के बाद उसने आँखे खोली और धीरे – धीरे स्वस्थ हुआ । गिल्लू को अंत तक याने मरण तक लेखिका अपने साथ ही रखी। बडे प्रेम से पालन पोषण किया ।
4) ‘अधिकार का रक्षक’ नामक एकांकी के मुख्य पात्र सेठ जी के बारे में संक्षिप्त में लिखिए ?
उत्तर:
अधिकार का रक्षक नामक एकांकी के मुख्य पात्र सेठजी है । सेठ जी प्रांतीय असेंबली के उम्मीदवार हैं । सेठजी जो कुछ भी कहते हैं वह कभी नहीं करते। लोगों से कहते हुए बात अपना जीवन में आचरण नही करते हैं। बच्चों के संबन्ध में कहते है कि बच्चो को प्रेम से देखना चाहिए लेकिन अपने बच्चे को ही दंड देता है। प्रेम से बच्चों के साथ व्यवहार करने की सलाह देता है। खुद अपने बच्चों को मारते हैं। मजदूरों और गरीबों की सहायता करने की बात करते हैं। फिर भी अपना घर में काम करने वाली रसोइया और साफ करने वाली दो महिलाओं को पैसे देने के बिना धकेलता है। खुद सेठजी नौकरों पर हुए अत्याचार के विरुद्ध नौकर यूनियन स्थापित की है । “असेंबली में जाते ही मजदूरों की अवस्था सुधारने का प्रयास करूँगा ” – इस तरह वायदे करते हैं। सेठजी श्रीमती सेठनी से बुरी तरह व्यवहार करते हैं । जब सरला जी फोन करती है तो महिलाओं के पक्ष लड़ने के लिए वादा करते हैं ।
चुनाव में जीतने के लिए और शासक को अपने हाथों में लेने के लिए सेठजी जैसे लोग अनेक प्रकार के व्यूह रचते हैं। नेताओं में बहुत से लोग योग्य नहीं हैं । इसीलिए जनता सोच समझकर अपनी कीमती वोट सही नेता को देना चाहिए ।
9. एक शब्द में उत्तर लिखिए । 5 × 1 = 5
1) कबीरदास समय की तुलना किससे की है ?
उत्तर:
अमोल हीरा से की है ।
2) भारत माता के मंदिर में किसका व्यवधान नही है ?
उत्तर:
भारत माता के मंदिर में जाति धर्म या संप्रदाय का भेदभाव नही है ।
3) प्रथम रश्मि कविता में कौन स्वागत गीत गा रहा है ?
उत्तर:
प्रथम रश्मि कविता में पेड पर रहनेवाली कोयल स्वागत गीत गा रही है ।
4) तुलसी के अनुसार संत की दृष्टी में कौन कौन समान है ?
उत्तर:
मित्र और शत्रु
5) दान – बल कविता किस काव्य से लिया गया है ?
उत्तर:
दान – बल कविता दिनकर के रश्मिरथी काव्य के चतुर्थ सर्ग से ली गयी है ।
10. एक शब्द में उत्तर लिखिए । 5 × 1 = 5
1) कृतज्ञता प्रकट करने का सबसे सरल तरीका क्या है ?
उत्तर:
धन्यवाद देना |
2) परसाई जी काम पूरा करने केलिए अगले जन्म में कौन सा चोला लेने की बात करते हैं ?
उत्तर:
मेढक के चोला लेने की बात करते है ।
3) परिचारिका की भूमिका कौन निभा रहा था ?
उत्तर:
गिल्लू ।
4) बतुकम्मा का विसर्जन कहाँ करते हैं ?
उत्तर:
तालाबों, जल स्त्रोतों में ।
5) डॉ. चंद्रा को शोधनकार्य में निर्देशन कौन दिया ?
उत्तर:
प्रोफेसर सेठना ।
खंड – ‘ख’
(40 अंक)
11. निम्नलिखित गद्यांश पढ़ित । प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए । 5 × 1 = 5
दूसरे दिन छोटू के पापा काम पर चले गए । देखा तो कंट्रोल रूम का वातावरण बदला बदला सा था । शिफट खत्म कर घर जा रहे स्टाफ के प्रमुख ने टी.वी. स्क्रीन की तरफ इशारा किया | स्क्रीन पर एक बिंदू झलक रहा था । वह बताने लगा, “यह कोई आसमान का तारा नही है । क्यों कि कंप्यूटर से पता चल रहा है कि यह अपनी जगह अडिग नही रहा है। पिछले कुछ घंटों के दौरान इसने अपनी जगह बदली है। कंप्यूटर के अनुसार यह हमारी धरती की तरफ बढ़ता चला आ रहा है ।
प्रश्न :
1) किसके पापा काम पर चले गए ?
उत्तर:
छोटू के पापा काम पर चले गए ।
2) कहाँ का वातावरण बदला-बदला सा लग रहा था ?
उत्तर:
कंट्रोल रूम का वातावरण बदला – बदला सा लग रहा था ।
3) स्टाफ के प्रमुख ने किसकी ओर इशारा किया ?
उत्तर:
स्टाफ के प्रमुख ने टी.वी. स्क्रीन की ओर इशारा किया ।
4) धरती की ओर क्या बढ़ता चला आ रहा है ?
उत्तर:
धरती की ओर एक बिंदु बढता चला आया रहा है ।
5) यह अनुच्छेद किस पाठ से लिया गया है ?
उत्तर:
यह अनुच्छेद ‘पार नज़र के’ पाठ से लिया गया है ।
12. सूचना के अनुसार लिखिए । 8 × 1 = 8
(12.1 ) किन्हीं चार (4) शब्दों के विलोम शब्द लिखिए ।
(1) कोमल
(2) उदार
(3) भाग्य
(4) रक्षक
(5) सेवक
(6) तीक्षण
उत्तर:
(1) कोमल × कठोर
(2) उदार × अनुदार
(3) भाग्य × अभाग्य
(4) रक्षक × भक्षक
(5) सेवक × स्वामी
(6) तीक्षण × कुंठित
(12.2 ) किन्हीं चार (4) शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए |
(1) औरत
(2) गणेश
(3) पति
(4) घर
(5) माता
(6) दूध
उत्तर:
(1) औरत = स्त्री, नारी, महिला, कामिनी
(2) गणेश = गजानन, गणपति, लम्बोदर, विनायक
(3) पति = स्वामी, नाथ, भर्ता, कंत
(4) घर = गृह, भवन, निकेतन, आलय
(5) माता = माँ, अम्बा, जननी, जन्मदात्री
(6) दूध = दुग्ध, क्षीर, गोरस, पय
13. किन्हीं आठ (8) शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिए | 8 × 1 = 8
(1) देनिक
(2) प्रशन
(3) एनक
(4) ओरत
(5) चरन
(6) राजकोश
(7) विधालय
(8) म्रिग
उत्तर:
(1) देनिक – दैनिक
(2) प्रशन – प्रश्न
(3) एनक – ऐनक
(4) ओरत – औरत
(5) चरन – चरण
(6) राजकोश – राजकोष
(7) विधालय – विद्यालय
(8) म्रिग – मृग
(9) कच्छा – कक्षा
(10) राष्ट्र – राष्ट्र
(11) बाणी – वाणी
(12) हिरन – हिरण
14. कारक चिह्नों की सहायता से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए । 8 × 1 = 8
1) उसके पिता ने कहा …………………. बाहर बहुत ठंड है । (कि / की)
2) श्याम …………………. माता सुंदर चित्र बनाती है । ( कि / की)
3) …………………. भगवान, यह तुमने क्या किया ? (हे / अरे)
4) नर्स ने मरीज की दिल …………………. सेवा की। (के / से)
5) महात्मा बुद्ध एक वृक्ष ………………….. नीचे बैठकर विश्वाम कर रहे थे । (के | की)
6) रास्ते ………………….. एक भालू था । ( में / पर)
7) दिल्ली हमारे देश ………………. राजधानी है | ( का / की)
8) मोहन ने डण्डे ……………………… कुत्ते को मारा । ( से / का)
उत्तर:
1) उसके पिता ने कहा कि बाहर बहुत ठंड है ।
2) श्याम की माता सुंदर चित्र बनाती है ।
3) हे भगवान ! यह तुमने क्या किया ?
4) नर्स ने मरीज की दिल से सेवा की ।
5) महात्मा बुद्ध एक वृक्ष के नीचे बैठकर विक्षाम कर रहे थे ।
6) रास्ते पर एक भालू था ।
7) दिल्ली हमारे देश की राजधानी है ।
8) मोहन ने डण्डे से कुत्ते को मारा ।
15. निर्देश के अनुसार छः (6) वाक्यों को शुद्ध कीजिए । 6 × 1 = 6
1) वह एक सुनार है | (रेखांकित शब्द का लिंग बदलकर लिखिए ।)
उत्तर:
वह एक सुनारिन है ।
2) घोड़ा तेज दौडता है । (रेखांकित शब्द का वचन बदलकर लिखिए ।)
उत्तर:
घोड़े तेज दौडते है ।
3) राम निडर लडका है । (रेखांकित शब्द में उपसर्ग क्या है ।)
उत्तर:
नि
4) लडकी सिलाई करती है । (रेखांकित शब्द में प्रत्यय क्या है |)
उत्तर:
आई
5) राम पुस्तक पढ़ता है । (भविष्यत् काल में लिखिए |)
उत्तर:
राम पुस्तक पढेगा |
6) राम स्कूल में नहीं है । (भूतकाल में लिखिए |)
उत्तर:
राम स्कूल में नहीं था ।
7) वह दिल्ली गया । (वर्तमान काल में लिखिए ।)
उत्तर:
वह दिल्ली जाता है ।
8) रवि बाज़ार गया । (अपूर्ण भूतकाल में लिखिए ।)
उत्तर:
रवि बाज़ार गया होग |
16. किन्हीं पाँच (5) वाक्यों का हिंदी में अनुवाद कीजिए । 5 × 1 = 5
1) India is a country of villages.
उत्तर:
भारत गाँवों का देश है ।
2) He could not go to his office today.
उत्तर:
वह आज अपने ऑफिस नही जा सका ।
3) Donot go home.
उत्तर:
घर मत जाओ ।
4) Does he eat ?
उत्तर:
क्या वह खाता है ।
5) I have read.
उत्तर:
मैं पढ चुका हूँ |
6) Take this.
उत्तर:
यह रुपया लो |
7) He is angry with me.
उत्तर:
वे मुझ पर नाराज है ।
8) You must walk in the morning.
उत्तर:
आपको सबेरे टहलना चाहिए ।