TS 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

Telangana SCERT TS 8th Class Hindi Study Material रचना निबंध लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.

TS 8th Class Hindi Rachana निबंध लेखन

1.वृक्ष हमारे साथी (या) वृक्षारोपण :

भूमिका : हमारी संस्कृति वन-प्रधान है। ऋग्वेद, जो हमारी सनातन शक्ति का मूल है, बन-देवियों की अर्चना करता है। मनुस्मृति में वृक्ष विच्छेदक को बड़ा पापी माना गया है – “जो आदमी वृक्षों को नष्ट करता है, उसे द्ण्ड दिया जाये। तालाबों, सड़कों या सीमा के पास के वृक्षों का काटना, गुरूतर अपराध था। उसके लिए दण्ड भी बड़ा कड़ा रहता था। उसमें कहा गया है कि जो वृक्षारोपण करता है, वह तीस हज़ार पितरों का उद्धार करता है। अग्निपुराण भी वृक्ष-पूजा पर जोर देता है। वृक्षों का रोपण स्नेहपूर्वक और उनका पालन पुत्रवत करना चाहिए।

महत्व : पुत्र और तरु में भी भेद है, क्योंकि पुत्र को हम स्वार्थ के कारण जन्म देते हैं परन्तु तरु-पुत्र को तो हम परमार्थ के लिए ही बनाते हैं। ऋषि-मुनियों की तरह हमें वृक्षों की पूजा कर्नी चाहिए, क्योंकि वुक्ष तो द्वेषवर्जित हैं। जो छेदन करते हैं, उन्हें भी बृक्ष छाया, पुष्प और फल देते हैं । इसीलिए जो विद्वान पुरुष हैं, उनको वृक्षों का रोपण करना चाहिए और उन्हें जल से सींचना चाहिए ।

इतिहास में महान सम्राट अशोक ने कहा है – “‘रास्ते पर मैंने वट-वृक्ष रोप दिये हैं, जिनसे मानवों और पशुओं को छाया मिल सकती है। आम्र वृक्षों के समूह भी लगा दिये।” आज प्रभुत्व सम्पन्न भारत ने इस महारार्जि के राज्य चिह्न ले लिये हैं। 23 सौ वर्ष पूर्व उन्होंने देश में जैसी एकता स्थापित की थी, वैसी ही हमने भी प्राप्त कर ली है । हम उस सन्देश को सुनकर निश्चय ही ऐसा प्रबन्ध करेंगे, जिससे भारत के भावी प्रजा जन कह सकें कि हमने भी हर रास्ते पर वृक्ष लगाये थे, जो मानवों और पशुओं को छाया देते हैं।

हमें पूर्वजों की ज्चलन्त संस्कृति मिली है, लेकिन हम उसके योग्य नहीं रहे । हम अपने वनों को काट डालते हैं। हम वृक्षों का आरोपण करना भूल गये । वृक्ष-पूजा का हमारे जीवन में स्थान नहीं रहा। हमारी स्त्रियों में से शकुन्तला की आत्मा चली गयी है। शकुन्तला वृक्षों को पानी दिये बिना आप पानी ग्रहण नहीं करती थीं । आभूषणप्रिय होते हुए भी वह यह सोचकर पल्लवों को नहीं तोड़ती थीं कि इससे वृक्षों को दु;ख होगा । पार्वती ने देवदारु को पुत्र के समान समझ कर, माँ के दूध के समान पानी पिलाकर बढ़ाया ।

उपसंहार : आज सरकार भी “बन महोत्सव” कार्यक्रम की रचनाकर नये नये पेड पौथों को बोने सबको बाध्य कर रही है। अतः हर व्यक्ति को इस महायज़ का मूल्य जानकर पेड पौधों को बोना ही नहीं उन की रक्षा ही अपना परम धर्म समझना है।

वृक्षो रक्षति रक्षितः

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2. भारतीय संस्कृति :

प्रस्तावना : संस्कृति माने संस्कार या नागरिकता है। देश के आचार – विचार, रीति – रिवाज, वेश – भूषा, ललित कलाएँ और सामाजिक, धार्मिक, नैतिक विषयों का सम्मिलित रूप ही संस्कृति कहलाती है। संस्कृति का संबन्ध भूत, वर्तमान और भविष्य से होता है ।

उद्देश्य (महत्व) : भारतीय संस्कृति अति प्राचीन और अविच्छिन्न रही है। खासकर यह संस्कृति धर्म, दर्शन और चिंतन प्रधान रही है।भारतीय संस्कृति व्यापक, उदार और सत्यों का पुंज है। इसका एक अलीकिक तत्व रस की सहिष्णुता है। यह जड अथवा स्थिर नहीं, बल्कि सचेतन और गतिशील है। साथ ही एकांगी नहीं, सर्वांगीण है। इसके सब पक्ष परिपक्व, समुन्नत, विकसित और संपूर्ण हैं। इन्हीं विशेषताओं ने भारत को एक सशक्त और संपूर्ण भावात्मक एकता के सूत्र में बाँध रखा है। धार्मिक एकता ही इसकी शक्तिशाली पक्ष है। देखने की कम और अनुभव करने की वस्तु अधिक है । यही भारतीय संस्कृति का प्रमुख लक्षण है ।

उपसंहार : भारत में विविध विभिन्नताओं के बाबजूद एक अत्यंत टिकाऊ और सुदृढ एकता की धारा प्रवाहित हो रही है। रंग, भाषा, वेष-भूषा, रहन-सहन की शिलियों और जातियों की अनेकताओं के बावजूद सर्वत्र विद्यमान है। एक बात में कहना है तो मानवता का अंतिम कल्याण ही भारतीय संख्कृति का आदर्श है।

3. कंप्यूटर की उपयोगिता :

विज्ञान के अत्याधुनिक उपकरणों में कंप्यूटर का विशेष स्थान है। कंप्यूटर एक प्रकार का मानव मस्तिष्क है जो कठिन से कठिन गणनाएँ, गुणा, भाग, जोड़, घटाना आदि पलक झपकते ही करने में समर्थ है। आज के युग को यदि कंघ्यूटर युग कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि जीवन के प्रायः हर क्षेत्र में कंप्यूटर का सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अइ्डों के अलावा वैज्ञानिकों, चिकिस्सकों, इंजीनीयरों द्वारा भी कंष्यूटर का प्रयोग किया जाता है। वायुयान, जलयान आदि के संचालन, युद्धों संचालन और रक्षा सामाग्री के उत्पादन में भी कंप्यूटर की सहायता ली जाती है।

आजकल तो कंप्यूटर पर इंटरनेट सुविधाएँ उपलब्ध होने से कुछ ही क्षणों में विश्व की कोई भी सूचना या समाचार उपलब्ध हो जाता है। अनेक विषयों की पढ़ाई में भी कंप्यूटर सहायक हो रहा है। भारत में कंप्यूटर ने सूचना क्रांति ला दी है। वर्तमान में कंप्यूटर-साक्षर को हो साक्षर कहा जाने लगा है। इसीसे स्पष्ट है कि कंप्यूटर की उपयोगिता कितनी अधिक है।

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4. प्रिय केता :

भूमिका : प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी विश्व की महानतम महिला थीं । इनका जन्म इलाहाबाद आनन्द भवन में 19 नवंबर सन् 1917 में हुआ था । उस समय इनके पिता पं. जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी के साथ देश के स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न थे। आनन्द भवन उन दिनों स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ बना हुआ था ।

विषयविस्तार : इन्दिरा जब नन्हीं सी थी तो देश के महान नेताओं की गोद में खेलने का अवसर उसे मिला|जब यह नन्हीं बालिका केवल चार वर्ष की थी तभी मेज पर खडे होकर अँग्रेजों के खिलाफ़ भाषण देती। जिसे भारत के बड़े-बड़े नेता सुनते और हँसकर उस पर स्नेह की वर्षा करते । इन्दिरा का जन्म जब आनन्द भवन में हुआ तो भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने पं. जवाहरलाल को एक बधाई सन्देश भेजकर कहा था – “कमला की कोख से भारत की नयी आत्मा उत्पन्न हुई है” ।

महात्मा गाँधी तथा देश के बड़े-बड़े नेताओं के सम्पर्क में आने से इन्दिरा की राजनीति में गहरी पैठ होने लगी थी । स्वतंत्रता आन्दोलन के समय इलाहाबाद में बच्चों की एक स्वयं सेवी संस्था बनी थी जिसका नाम वानर सेना रखा गया था । इस सेना के लगभग साठ हजार सदस्य थे। इन्दिरा जब सात वर्ष की थी तभी वानर सेना की सदस्य बनी और बारह वर्ष की आयु में उसकी नेता चुनी गयी ।

बानर सेना ने अँग्रेज सरकार की नाक में दम कर रखा था। इस सेना का काम जुलूस निकालना, इन्कलाब के नारे लगाना, काँग्रेस के नेताओं के संदेश जनता तक पहुँचाना और पोस्टर चिपकाना होता था ।

आन्दोलन में नेहरू परिवार व्यस्त रहने के कारण इन्दिरा की प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही होती रही । बाद में उन्हें स्विटजरलैंड तथा भारत में शान्ति निकेतन में शिक्षा पाने का अवसर मिला । इन्दिरा को आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी प्रवेश मिला था किन्तु अस्वस्थता एवं दूसरा महायुद्ध शुरू हो जाने के कारण वहाँ की शिक्षा पूरी न हो सकी ।

सन् 1942 में इन्दिरा गाँधी का विवाह फिरोज गाँधी से हुआ । स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और तेरह मास जेल की सजा हुई ।

24 जनवरी 1966 को इन्दिरा गाँधी ने भारत के प्रधानमंत्री का पद भार सँभाला । उसके बाद उन्होंने राष्ट्र की प्रगति के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये। जैसे – बैंकों का राष्ट्रीयकरण, रूस से संधि, पाकिस्तान से युद्ध, राजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति, बीस सूत्री कार्यक्रम आदि । भारत की प्रगति के लिए इन्दिरा गाँधी ने रातदिन कार्य किया ।

उपसंहार : भारत को प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी से भारी आशाएँ थीं । परन्तु 31 अक्टूबर 1984 को प्रातः 9 बजकर 15 मिनट पर इनके ही दो सुरक्षाकर्मचारियों ने इनको गोलियों से छलनी कर दिया । उस दिन विश्वशांती और भारत की प्रगति के लिए सर्वस्व निछावर करनेवाली प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के निधन पर सारा संसार शोकमग्न हो गया ।

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5.उगादि :

भूमिका : किसी भी जाति के सांस्कृतिक विकास क्रम में उस जाति के पर्व-त्योहारों का बहुत बड़ा हाथ रहता है। मनुष्य के सामाजिक व पारिवारिक दैनंदिन जीवन में एकरूपता के कारण सांस्कृतिक चेतना के कुंठित होने की जो संभावना है, उसे रोकने के लिए उसके जीवन में कुछ परिवर्तन अवश्यंभावी हैं। सांस्कृतिक चेतना में नयी स्फूर्ति व सजगता लाने के उद्देश्य से समाज में पर्व-्योहारों का आयोजन हुआ है, यह मानना उचित ही है ।

महत्व : आन्ध्र प्रदेश के निवासी नववर्षारंभ के दिन को उगादि कहते हैं। “उगादि” शब्द की उत्पत्ति क्या है तथा नववर्पारंभ के दिन को यह नाम कैसे पड़ा है – इसका समाधान देना मुश्किल है। यह तो मानी हुई बात है कि बहुत पुराने जमाने से यह आन्ध्रों का प्रमुख व विशिष्ट पर्बदिन रहा है। शायद यह युगादि शब्द का अपभ्रंश रूप हो सकता है । उगादि-पर्व आन्ध्र जनता के जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।

आन्ध्रों का नववर्ष चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ होता है तथा फाल्गुन कृष्ण अमाबस्या को समाप्त होता है । आन्ध्रवासी इस उगादि पर्वदिन को अतिपवित्र मानते हैं। उस दिन घर के सब लोग मुँह अँधेरे जाग पड़ते हैं। तेल व उबटन लगाकर गरम पानी से अभ्यंगन-स्नान करते हैं। नियमित रूप से उस दिन परिवार के सब लोग नये कपड़े पहनते हैं। पूजा-पाठ आदि के बाद सब लोग नीम के फूलों की चटनी चखते हैं। इस पर्वभोग में छहों रसों का एक विचित्र सम्मिश्नण होता है, जिसे खाना उगादि पर्व का पहला व प्रमुख रस्म है ।

उपसंहार : लोग सुख-समृद्धि के मधुर स्वप्न देखते उगाद् की रात बिताते हैं। इस तरह आंध्र संस्कृति का प्रमुख पर्ब उगादि का शुभ दिन देखते-देखते बीत जाता है ।

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6.’मेरी प्रिय पुस्तक’ :

मैं ने अनेक पुस्तकों विभिन्न विषयों की पढ़ी हैं। अपनी पठित पुस्तकों में मुझे सबसे प्यारी पुस्तक “गीता” लगती है। इसके लेखक भगवान कृष्ण हैं। युदूध भूमि में निराश खड़े अर्जुन को भगवान कृष्ण ने जो सरस और उत्तम उपदेश दिया है। यह संस्कृत के श्लोकों को रूप में है। भगवान कृष्ण ने छोटी-सी पुस्तक गीता में चारों वेदों और छ: शास्त्रों का ज्ञान भर दिया है। यदि इसे “गगर में सागर” कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गीता में भगवान कृष्ण ने बताया है कि मनुष्य को कर्म करना चाहिए। यही उसका कर्तव्य है, फल भगवान पर छोड दो। फल की लालसा से किया हुआ कर्म अच्छा कर्म नहीं हो सकता। कर्म न करना पाप है और मृत्यु के सामना है। इसीलिए गीता मेरी प्रिय पुस्तक है।

7. पर्यावरण और प्रदूषण (या) पर्यावरण का महत्व :

प्रस्तावना : पर्याबरण का अर्थ है वातावरण। पर्याबरण हर प्राणी का रक्षाकवच है। पर्यावरण के संतुलन से मानव का स्वास्थ्व अच्छा रहता है। विश्व भर की प्राणियों के जीवन पर्याबरण की स्थिति पर निर्भर रहते हैं। आजकल ऐसा महत्वपूर्ण पर्यावर्ण बिगडता जा रहा है। पर्यावरण में भूमि, वायु, जल, ध्वनि नामक चार प्रकार के प्रदूषण फैल रहे हैं। इन प्रदूषणों के कागण पर्यावरण का संतुलन बिगडता जा रहा है।

उद्देश्य : भूमि पर रहनेवाली हर प्राणी को जीने प्राणवायु (आक्सिजन) की आवश्यकता होती है। यह प्राणवायु हमें पेड-पौधों के हरे-भरे पत्तों से ही मिलता है। इन दिनों पेड-पौधों को बेफिक्र हो काट रहे हैं। वास्तव में पेड्पौधे ही पर्यावरण को संतुलन रखने में काम आते हैं। ऐसे पेड पौधों को काटने से पर्यावर्ण का संतुलन तेजी से बिगडता जा रहा है। हमारे चारों ओर के कल-कारखानों से धुआँ निकलता है। इस से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। कूडे-कचरे को नदी-नालों में बहा देने से जल प्रदूषण हो रहा है। वायु-जल प्रदूषणों के कारण कई बीमारियाँ फैल रही हैं।

नष्ट : पर्यावरण के असंतुलन से मीसम समय पर नहीं आता। इस से वर्षा भी ठीक समय पर नहीं होती। वर्षा के न होने के कारण अकाल पडता है। कहीं अतिवृष्ठि और कहीं अनावृष्टि की हालत भी आती है।

ऐसे प्रदूषण को यथा शक्ति दूर कर्ना हम सब का कर्त्तव्य है। इस के लिए हम सब यह वचन लें और प्रयल करें – गंदगी न फैलाएँ, कूड़ा- कचरा नदी नालों में न बहायें, उनको सदा साफ रखें, पेडों को न काटें। साथ ही नये पेड पौधे लगाकर पृथ्वी की हरियाली बढाये। वाहनों का धुआँ कम करें। ऐसा करने से ही पर्याबरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं।

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8. यदि मैं प्रधानमंयी होता :

आज का युग लोकतंत्र का है। अतः प्रधानमंत्री हो देश का सर्वप्रिय नेता होता है। मंत्रि मंडल की नीति का वही निर्धारण करता है। देश की उन्नति और विकास प्रधान मंत्र के व्यक्तित्व पर बहुत कुछ निर्भर रहता है।

यदि मैं प्रधान मंत्री होता तो मेरा वैदेशिक नीति तटस्थता की होती। गाँधीजी के सिद्धांतों का पालन मैं अपना कर्तव्य मानता। देश को स्वावलंबी बनाने का प्रयत्न करता। बैदेशिक नीति को सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर ही बनाता। देश में अन्न, वस्त्र आदि की समस्या को दूर करने का प्रयत्न पहले करता। सिंचाई उचित ब्यवस्था करता। बाँध बनवाकर खेती कर्नेवालों की मदद करता। खाद की ब्यवस्था करता। एक बात में कहना है तो खेती बारी के लिये आवश्यक सभी कदम उठाता। बढ़ती आबादी को कम करने योग्य कदम उठाता। अन्न की कमी को दूर कर लेता, जमीन बाँटकर भूमिहीन किसानों को जमीन का मालिक बना देता, भारतवासियों को चुस्त तथा कार्यदक्ष बनाता। बेरोजगारी दूर करता, साथ ही आतंकवाद का अंत करके देश को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाता। मेरे वतन के हर व्यक्ति सिर उठाकर, तनकर रहने की हालत मैं बनाता।

9. यदि में पेड़ होता / होती :

यदि मैं पेड़ होता तो मानव को हर प्रकार से सहायता करता हूँ। थके हुए मुसाफिर को छाया देता हूँ। उसकी भूख मिटाने केलिए मेंरे पेड़ के फल उसे देता हूँ। वातावरण में जो कार्बनडाई-आक्साइड है, उसको मैं लेकर शुद्ध आक्सीजन मानव के स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रदान करता हूँ। मेरा जीवन मानव और जंगल के प्राणी और पशुपक्षियों केलिए इस प्रकार उपयोग होते हुए देखकर मैं समझता हूं कि मेंरे जीवन धन्य हो गया। जब मैं सूख जाता हू मतलब मेरे लिए बढ़ापा आ जाता है, तब भी मैं मानव के आराम, सुख के लिए ही उपयोगी होता हूँ। सूखी हुई लकड़ी से मानव आराम करने के लिए कुर्सी, सोने के लिए पलंग, घर बनाने के लिए पट्टी, खिड़की, किवाड़ आदि बना सकता है। इस प्रकार मैं बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हर पल, हर क्षण मानव की मदद करने में तत्पर रहता हूँ। “मानव सेवा ही माधव सेवा है”‘ – इस कथन के अनुसार मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि हे भगवान। यदि मुझे पेड के र्पप में पैदा किया तो मैं उपयुक्त यह सभी कार्य सारी प्राणिकोटी केलिए करके मेरा जीबन धन्य मानता हूँ। मेरा इतना मानव सेवा करने का सौभाग्य इस दुनिया में और किसीको नहीं मिलेगा।

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10. राष्ट्रभाषा हिन्दी :

प्रस्ताबना : मानवों के बीच में विचार विनिमय के लिए भापा आवश्यक है । एक प्रांत में बोली जानेवाली भाषा प्रादेशिक भाषा कहलाती है। संपूर्ण राष्ट्र की मान्यता प्राप्त करनेवाली भाषा राष्ट्रभाषा कहलाती हैं। हमारे भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है । हिन्दी प्रचार आन्दोलन गाँधीजी ने शुरू किया। दक्षिण भारत में भी हिन्द्री प्रचार गाँधीजी ने ही शुरू किया। भारत देश के स्वतंत्र होने के बाद हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा बनी ।

उद्देशयः देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए राष्ट्रभाषा की ज़रूरत है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र के लोगों की राष्ट्रीय विचार धारा व्यक्त करनेवाली हैं। हिन्दी को रषष्ट्रभाषा बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत में हिन्द्री जाननेवाले ज़्यादा हैं। भारत को एक बनाये रखने में हिन्दी सशक्त हैं।

लाभ : राष्ट्रभाषा हिन्दी होने से ज़्यादा लाभ है । क्यों कि हिन्दी हमारी देश की भाषा है। हिन्दी सीखना और जानना आसान है। हिन्दी आ जाती तो भारत की सैर आराम से कर सकते हैं। हिन्दी में लगभग एक हुजार वर्षों का साहित्य हैं। हिन्दी की शब्द शक्ति अपूर्व है। ज़्यादा लोग हिन्दी भाषा को जान सकते हैं । गष्ट्रभाषा हिन्दी होने के कारण एक हिन्दी सीखने से सभी काम हो सकते हैं।

नष्ट : कुछ लोगों का कहना है कि हिन्दी राष्ट्रभाषा बन नहीं सकती । हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाते तो प्रादेशिक भाषाओं की उन्नति नहीं हो सकती इसलिए वे राष्ट्रभाषा हिन्दी के विरुद्ध आन्दोलन चलाते हैं।

उपसंहार : देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए राष्ट्रभाषा की ज़रूरत है। राष्ट्र भाषा राष्ट्र के लोगों के राष्ट्रीय विचार धारा-व्यक्त करनेवाली है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत में हिन्दी जाननेवाले ज़्यादा हैं। भारत को एक बनाये रखने में हिन्दी सशक्त है ।

11. राष्ट्र के प्रति विद्यार्थीयों का कर्तव्य :

राष्ट्र सभी राष्ट्रवासियों को जन्म, अन्न, धन – घान्य, आवास तथा सुरक्षा प्रदान करता है । इसलिए प्रत्येक राष्ट्रवासी का कर्तव्य बनता है कि वह राष्ट्रहित का ध्यान रखे। राष्ट्र सुरक्षित होगा तो उसके निवासी भी सुरक्षित होंगे। ‘विद्यार्थी’ का कार्य ‘विद्या – अध्ययन’ करना है। उसे शिक्षा के साथ-साथ ऐसी विद्या भी ग्रहण करनी चाहिए, जिससे रष्टीय भावनाओं का विकास हो । विद्यालयों में एन.एस.एस., एन.सी.सी., स्काउट्स आदि संस्थाएँ इन भावनाओं में योगदान देने के लिए बनी हैं। छात्रों को इनमे बढ़ चढ़कर बाग लेना चाहिए। विद्यार्थी को ऐक कर्तव्यनिष्ठ नागरिक की भाँति व्यवहार करना चाहिए। जब देश पर किसी प्रकार रा संकट हो, तो उसे राष्ट्रवाणी से अपनी वाणी मिला देनी चाहिए। राष्ट्र के सामने अनेक प्रकार के संकट आते हैं – कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी युद्ध, कभी महामारी तो कभी दुर्घटनाएँ। विद्यार्थियों को प्रत्येक संकट में कमर कसे तैयार रहना चाहिए । किसी भी देश की क्रांति में नवयुवकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है । जो छात्र पढ़ते समय राष्ट्र-विकास का स्वप्न अपनी आँखों में भर लेगा, वह जिस भी क्षेत्र में जाएगा, वहीं राष्ट्रहित का कार्य करेगा ।

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12. हमारे त्योहार और उनका महत्त्व :

भारत उत्सवों का देश है। यहाँ ऐतिहासिक, सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक और राजनीतिक उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं । भारत के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय त्योहार है – दशहरा, दीपावली, होली, स्वतंत्रता-दिवस और गणतंत्र-दिवस । दशहरा रावण पर राम की विजय के आनंद् में मनाया जाता है । इस दिन राम ने रावण का संहार किया था। अतः इस दिन हिंदुओं में रावण का पुतला बनाकर जलाया जाता है। दशहरे के ठीक बीस दिन बाद दीपावली आती है। इस रात लोग अपने-अपने घरों-दुकानों-बाजारों को रोशनी से जगमगाते हैं। बच्चे आतिशबाजी का खेल करते हैं। इस अवसर पर लोग अपने घरों को साफ-स्वच्छ करते हैं। होली हिंदुओं का अति मस्त उत्सव है । इस दिन रंगों की वर्षा करके आनंद मनाया जाता है ।

स्वतंत्रता-दिवस और गणतंत्र-दिवस हमारे देश की मुक्ति के उत्सव हैं। इन अवसरों पर सरकारी कार्यालयों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाते हैं। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ईद और मुहर्रम मुसलमानों के धार्मिक ल्योहार हैं। ईद आत्मशुद्धि और बल्निदान-भावना गी प्रतीक है। ईसाई लौग ईसामसीह के बलिदान-उत्सव को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इनके अतिरिक्त भी भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते है।

13. स्वच्छ भारत :

भूमिका : महात्मा गाँधीजी के दो सपने थे। वे हैं – भारत की आजादी और स्वच्च भारत। उन में से एक को हकीकत में बदलने में लोगों ने मदद की। हालांकि, स्वच्छ भारत का दूसरा सपना अब भी पूरा होना बाकी है। इसीलिए कम से कम 2019 में गाँधी की 150 वीं जयंती मनाए जाने तक उनके स्वच्छभारत के सपने को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी ने गाँधी के जन्मदिवस 2 अक्तूबर 2014 को इस अभियान का आरंभ किया।

अभियान का लक्ष्य : इसका उद्देश्य गलियों, सड़कों आदि को साफ-सुथरा करना है। यह हमारे भारत सरकार के राष्ट्रीय स्तर का अभियान है।

ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मल भारत अभियान के द्वारा लोगों की स्वच्छता संबंधी आदतों को बेहतर बनाना, स्वच्छता सुविधाओं की माँग उत्पन्न करना और स्वच्छता सुविधाओं को उपतब्ध करना है। इससे ग्रामीणों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने का इरादा है।

इस का लक्ष्य पांच वर्षों में भारत को खुला शीच से मुक्त देश बनाना है।

शहरी क्षेत्रों में इस कार्यक्रम खुले में शौच, अस्वच्छ शौचालयों को फ्लश शौचालय में बदलने, मैला दोने की प्रथा का उन्मूलन करने, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वस्थ एवं स्वच्छता से जुड़ी प्रथाओं के संबंध में लोगों के व्यबहार में बदलाव लाना आदि शामिल हैं।
इसके अलावा स्कूल और कॉलेज के छात्रों में भी पूरे जोर से इस अभियान के लक्ष्य को पहुँचाने के लिए अनेक कार्यक्रम किए और उनसे करवाए।

उपसंहार : आशा है हम सब मिलकर महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के सपने को साकार करेंगे। इस अभियान को सब देश-भक्ति की भावना से देखेंगे। एक भारतीय नागरिक होने की खातिर यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है।
एक क़दम स्वच्छता की ओर… यही हमारा नारा है।

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14. मोबाइल फोन – लाभ और हानी :

प्रस्तावना : विज्ञान के इस युग ने मानव को अनेक उपकरण प्रदान किए हैं जिनसे उसका जीवन अत्यंत सुविधाजनक तथा आरामदायक हो गया है। टेलीफ़ोन के आविष्कार से मानब के बीच की दूरी कम हुई थी, पर अब मोबाइल फ़ोन ने तो और भी कमाल कर दिया है।

विषयविस्तार : टेलीफ़ोन में इसका कनेकशन लेना अनिवार्य था जिसमें तारों का प्रयोग होता था। मोबाइल फ़ोन के आगमन से तारों की समस्या से भी छूट मिल गई है। छोटा-सा मोबाइल लेकर कहीं से भी अपने मित्र, संबंधी आदि से बातचीत की जा सकती है। फिर चाहे आप देश में हो अथवा विदेश में ; घर में हों या बाहर; गाड़ी में यात्रा कर रहे हों या कार अथवा बस में; पर्बतारोहण कर रहे हों या किसी अन्य स्थान की यात्रा, कहीं से भी बात कीजिए, कोई रोक-टोक नहीं। अब तो मोबइल फ़ोन के अत्याधुनिक मॉडलों में अनेक प्रकार की सुविधाएँ भी आ गई हैं, जिनमें इंटरनेट, कैमरा प्रमुख हैं। मोबाइल फोन आपातस्थिति में बहुत काम आनेवाला होता है।

उपसंहार : किसी दुर्घटना की स्थिति में इसका उपयोग करके दमकल, पुलिस आदि को आसानी से बुलाया जा सकता है। मोबाइल फ़ोन असुविधा का कारण भी बन जाता है। इसके पास रहने से कभी-कभी असुविधा भी होती है। बार-बार फ़ोन आने से अनावश्यक परेशानी भी होती है। अपराधी तथा समाज-विरोधी तक भी मोबइल फ़ोन का प्रयोग करके अवांछित कार्य करने में कामयाब हो जाते हैं।

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