TS Inter 1st Year Hindi Model Paper Set 5 with Solutions

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TS Inter 1st Year Hindi Model Paper Set 5 with Solutions

Time : 3 Hours
Maximum Marks: 100

सूचनाएँ :

  1. सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
  2. जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।

खंड – ‘क’
(60 अंक)

1. निम्न लिखित किसी एक दोहे का भावार्थ लिखिए । 1 × 6 = 6

सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार ।
लोचन अनंत उघारिया, अनंत दिखावनहार ॥
उत्तर:
भावार्थ: कबीरदास इस दोहे में “सतगुरु की महिमा” के बारे में बताया। सतगुरु की महिमा अनन्त है और अनेक उपकार भी अनन्त हैं । उन्होंने मेरी अनन्त दृष्टि खोल दी जिससे मुझे उस अनन्त प्रभु का दर्शन प्राप्त हो गया । सतगुरु ही भगवान के बारे में हमें बताते हैं । भगवान तक पहुँचने के मार्ग वही हमें दिखाता हैं ।

(अथवा)

तुलसी पावस के समै, धरी कोकिला, मौन |
अब तो दादुर बोलि है, हमें पुछि है कौन ॥
उत्तर:
भावार्थ : इस दोहे में तुलसीदास हमें “समयानुसार बोलने का महत्व” के बारे में बात रहै हैं ।
तुलसीदास जी कहते है कि वर्षा ऋतु के समय पर कोकिला मौन धारण कर लेती है। अब मेंढक ही बढ़कर बोलने लगते है । यह सोचते हुए कि ‘हमें अब पूछनेवाला कौन है’ । तुलसीदास विद्वानों के स्वभाव का संकेत देते हैं । जहाँ मूर्ख लोग बोलने लगते हैं, वहाँ विद्वान लोग चुप हो जाते हैं । वे जानते हैं कि उनकी बात अब कोई नहीं सुनेगा । विद्वान को समय और परिस्थिति को देखकर भाषण करना चाहिए ।

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2. किसी एक कविता का सारांश लिखिए । 1 × 6 = 6

(1) दान बल
उत्तर:
कवि का कहना है कि दान के देने से ही मानव जीवन निरंतर पूर्णरुप से आगे चलती है । दान बल से स्नेह ज्योति उज्जव, उज्वल जलती है। रोते हुए या हँसते हुए जो दान देते है, जो अहंकार में पड़कर दान देते है और जा अपने स्वत्व को त्याग मानते हैं, उसका कोई फल नहीं मिलता ।

वास्तव में त्याग देना स्वत्व का त्याग नही है, यह जीवन की सहज क्रिया मात्र है । जो अपनी संपत्ति को रोक लेता है वह जीवित रहते हुए भी मृतक के समान है । अर्थात् जो दूसरों को दान या मदद करते वह मरे हुए व्यक्ति के समान है । कवि वृक्ष का उदाहरण देते हुए कहते है कि वृक्ष किसी पर कृपा दिखाने के लिए फल नहीं देता है। यदि वृक्ष फल को गिरने से रोक देती है और ऋतु चले जान के बाद भी फल डाल पर भी रखते है तो ये फल सड जाते है और उससे की टाणु निकल कर डालों को ही नही, सारे वृक्ष को नाश देती है । इसलिए वृक्ष फल को त्याग देता है तो उसके बीजों से नसे पौधे पैदा होते है ।

नदी का उदाहरण देते हुए कवि कहते हैं कि नदि भी अपने पानी को नहीं रोकती है। नदी का पानी भाप बनकर बादलो का रुप लेता है और बरसकर पानी उसी नदी में मिल जाता है । इसलिए जो भी हम देते है उसका संपूर्ण फल हमें प्राप्त होता है |

इस प्रकार कवि का मानना है कि दान एक प्राकृतिक धर्म है । दान देने मे मनुष्य व्यर्थ ही डरता है । हर एक को किसी न – किसी दिन सब छोडकर जाना ही है । इसलिए समय का ज्ञान समजकर हमे सब कुछ समय पर दान देना चाहिए। नहीं तो जब मृत्यु आती है तो अपना सर्वस्व छोडकर भी लाभ नहीं मिलता ।

इस प्रकार दान देना मनुष्य का सहज स्वभाव होना चाहिए । यह कोई उपकार नहीं है । इस कर्तव्य को निभाना हमारा कर्तव्य है । उनकी भाषा सरल खडीबेली है ।

(2) समता का संवाद
उत्तर:
हमारा देश भारत माता का मंदिर है । यहाँ सबलोग समान है और सबकी वाणी एक ही है । यहाँ पर सबका शुभ हो जाएगा और सभी को भारतमाता की कृपा मिलेगी ।

इसदेश में जाति, धर्म, संप्रदाय का कोई भेदभाव नही है । सभी को समान रूप में स्वागत किया जाता है और सब का समान आदार मिलजाता है। राम रहीम, बुद्ध, ईसा का सबकी पूजा की जाती है । भिन्न-भिन्न संस्कृतियां होने पर भी सभी का समान गौरव और सभी से समान ज्ञान प्राप्त होता है । सभी लोग प्रेम को चाहते है, पर शत्रुता को नहीं । इसदेश में सभी का शुभ मंगल होगा और सबकी इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी ।

इसदेश में अनेक तीर्थस्थल है। पर हम अपने हृदय को ही पवित्र बनाकर तीर्थस्थल बनाएँगे । यहाँ पर हम अजातशत्रु बनकर सब को मित्र बनाएँगे । हम अपने मन की रेखाओं से एक मित्र बनाते है । अनेक आदर्शों से हम अपने चरित्र का निर्माण करते है ।

भारत माता के समक्ष रहने वाले हम सब भाई – बहन है। हम सब उसी माँ के गोद से पले सन्तान है | हम सब लोग मिलकर सुख – दुख को बाँट देंगे। सभी का कल्याण होगा और सभी की इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी ।

भारत माँ की सेवा में हम पूजारी है । उन्ही के कहने पर सब काम करते है । इस जीवन से लाभ उठाकर मुक्ति पाना हमारा कर्तव्य है । हम सब उसके अनुचर है । इस देश के करोडों लोग मिलकर भारतमाता का जयगान करेंगे । इस देश में हम सब का कल्याण होगा और हम सब पर उनकी कृपा रहेगी ।

इसप्रकार भारतदेश की महानता और भारतमाता को एक देवी के रूप में चित्रण करके उसके प्रति हमारा कर्तव्य निभाने का सन्देश कवि दे रहे है उनकी भाषा सरल खडीबोली है ।

3. किसी एक पाठ का सारांश लिखिए । 1 × 6 = 6

(1) अपराजिता
उत्तर:
लेखिका परिचय : गौरा पंत हिन्दी की प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। वे ‘शिवानी’ उपनाम से लिखा करती थी । शिवानी ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन से बि.ए. किया । साहित्य और संगीत के प्रति एक गहरा रूझान ‘शिवानी’ को अपने माता और पिता से ही मिला। भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हें हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया | उनकी अधिकतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े रोचक ढंग से किया ।

सारांश : ‘अपराजिता’ नामक कहानी में लेखिका हमें ‘चंद्रा’ नामक एक युवती की जीवन के बारे में बतायी । ‘चंद्रा’ एक अपंग स्त्री है, जिन्होंने 1976 में माइक्रोबायोलाजी में डाक्टरेट मिली हैं । अपंग स्त्री पुरुषों में इस विषय में डॉक्टरेट पानेवाली डॉ. चंद्रा प्रथम भारतीय है। डाँ. चंद्रा के बारे में अपनी माँ इस प्रकार बता रही है कि ” चंद्रा के बचपन में जब हमें सामान्य ज्वर के चौथे दिन पक्षाघात हुआ तो गरदन के नीचे सर्वांग अचल हो गया था । भयभीत होकर हमने इसे बडे – से – बडे डाक्टर को दिखाया । सबने एक स्वर से कहा आप व्यर्थ पैसा बरबाद मत कीजिए आपकी पुत्री जीवन भर केवल गरदन ही हिला पायेगी । संसार की कोई भी शक्ति इसे रोगमुक्त नही कर सकती”। चंद्रा के हाथों में न गति थी, न पैरों में फिर भी माँ – बाप होने के नाते हम दोनों आशा नही छोडी, एक आर्थोपेडिक सर्जन की बडी ख्याति सुनी थी, वही ले गये । वहा चंद्रा को एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपचार चला और एक दिन स्वयं ही इसके ऊपरी धड़ में गति आ गयी । हाथ हिलने लगे, नन्हीं उँगलियाँ माँ को बुलने लगी । निर्जीव धड़ से ही चंद्रा को बैठना सिखाया | पाँच वर्ष की हुई, तो माँ ही इसका स्कूल बनी। चंद्रा मेधावी थी। बेंगलूर के प्रसिद्ध माउंट कारमेल में उसे प्रवेश मिली। स्कूल में पूरी कक्षाओं में अपंग पुत्री की कुर्सी की परिक्रमा उसकी माँ स्वयं करती |

प्रत्येक परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चंद्रा ने स्वर्ण पदक जीते। बि.एस. सी किया । प्राणि शास्त्र में एम.एस.सी में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बेंगलूर के प्रख्यात इंस्टिटयूट ऑफ साइंस में अपने लिए स्पेशल सीट अर्जित की। केवल अपनी निष्ठा, धैर्य एवं साहस से पाँच वर्ष तक प्रोफेसर सेठना के निर्देशन में शोधकार्य किया । सब लोग चंद्रा जैसी हँख मुख लडकी को देख अचरज हो जाते । लेखिका चंद्रा को पहली बार अपनी कोठी का अहाते में जुड़ा एक कोठी में कार से उतरते देखा । तो आश्चर्य से देखती ही रह गयी। ड्राइवर ह्वील चेयर निकालकर सामने रख दी, कार से एक युवती ने अपने निर्जीव निचले धड़ को बडी दक्षता से नीचे उतरता, फिर बैसाख़ियों से ही हवील चेयर तक पहुँच उसमें बैठ गयी। बड़ी तटस्थता से उसे स्वयं चलाती कोठी के भीतर चल गयी थी । छीरे-धीरे लेखिका को उससे परिचय हुवा । चंद्रा की कहानी सुना तो लेखिका दंग रह गयी | चंद्रा लेखिका को किसी देवांगना से कम नही लगी । चंद्रा विधाता को कभी निंदा नही करती । आजकल वह आई.आई.टी मद्रास में काम कर रही है । गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का स्वर्ण काई पानेवाली वह प्रथम अपंग बालिका थी । यह नही भारतीय एंव प्राश्चात्य संगीत दोनों में उसकी समान रुचि है ।

डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में “मुझे यह कहने में रंच मात्र भी हिचकिटहट नही होती कि डाँ चंद्रा ने विज्ञान की प्रगति में महान योगदान दिया है। चिकितसा ने जो खोया है, वह विज्ञान ने पाया है | चंद्रा के पास एक अलबम था | चंद्रा के अलबम के अंतिम पृष्ठ में है उसकी जननी का बड़ा सा चित्र जिसमें वे जे सी बेंगलूर द्वारा प्रदत्त एक विशिष्ट पुरस्कार ग्रहण कर रही हैं .”वीर जननी का पुरस्कार” । लेखिका के कानों में उस अद्भुत साहसी जननी शारदा सुब्रह्मण्यम के शब्द अभी भी जैसे गूँज रहे हैं – “ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नही करता । यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है” । इसलिए अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नही ठहराता ।

लेखिका चंद्रा जी के बारे में इस तरह कह रही है कि – “जन्म के अठारहवे महीने में ही जिसकी गरदन से नीचे पूरा शरीर पोलियो ने निर्जीव कर दिया हो, इसने किस अद्भुत साहस से नियति को अंगूठा दिखा अपनी थीसिस पर डाक्टरेट ली होगी ? उसकी आज की इस पटुता के पीछे है एक सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका’ । स्वयं डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में ‘‘हमने आज तक दो व्यक्तियों द्वारा सम्मानित रूप में नोबेल पुरस्कार पाने के ही विषय में सुना था, किंतु आज हम शायद पहली बार इस पी. एच. डी के विषय में भी कह सकते हैं । देखा जाय तो यह डाक्टरेट भी संयुक्त रूप में मिलनी चाहिए डॉ. चंद्रा और उनकी अद्भुत साहसी जननी श्रीमति टी. सुब्रह्मण्यम को । लेखिका कहती है कि कभी सामान्य सी हड्डी टूटने पर था पैर में मोंच आ जाने पर ही प्राण ऐसे कंठगात हो जाते हैं जैसे विपत्ति का आकाश ही सिर पर टूट पड़ा है और इधर यह लड़की चंद्र को देखो पूरा निचला धड़ सुन्न है फिर भी कैसे चमत्कार दिखायी । सब लोग डाँ. चंद्र से बहुत सीखना है । कभी जीवन में निराश नही होना चाहिए । जितने भी कष्ट आने पर भी, सभी को हसते हुए झेलकर अपना मंजिल तक पहुँचना ही इस कहानी का उद्येश्य है ।

विशेषताएँ :

  • आधुनिक होने का दावा करनेवाला समाज अब तक अपंगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है ।
  • अधिकतर लोगों के मन में विकलांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है, यह दोनों भाव विकलांगों के स्वाभिमान पर चोट करते हैं ।
  • अपंगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है।
  • अपंगों ने तमाम बाधाओं पर काबू पा कर अपनी क्षमताएं सिद्ध की है ।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 27 अंदिसंबर को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक दिव्य क्षमता है और उनके लिए अपंग शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ।
  • अपंत लोगों को केवल सहयोग चाहिए, सहानुभूति को भीख नहीं ।

(2) समय पर मिलने वाले
उत्तर:
लेखक परिचय : हिंदी गद्य साहित्य के व्यंग्यकारों में हरिशंकर परसाई अग्रगण्य थे । सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में फैली विसंगतियों पर आप की दृष्टि सदैव रहती है। समसामयिक जीवन में समय पर मिलना सब के लिए महत्वपूर्ण होता है । परसाई जी के व्यंग्यपरक निबंध पाठकों को सचेत करते हैं और अपने जीवन व्यवहार को सुधारने की दिशा में प्रेरित करते हैं । व्यंग्य के अतिरिक्त इन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं पर भी अपनी लेखना चलाई थी, परन्तु इनकी प्रसिद्ध व्यंग्यकार के रूप में ही हुई ।

सारांश : समय पर मिलने वाले हरिशंकर परसाई की गद्य साहित्य से ली गयी व्यंग्यात्मक निबंध है।

आदमी तीन तरह के होते हैं –

  1. समय पर घर न मिलने वाले
  2. समय पर किसी के घर न जाने वाले और
  3. समय पर घर पर मिलने वाले और किसी के घर जाते वाले ।

इसके बाद कुछ मुट्ठी भर जीवधारी बचते हैं, कुछ लोग जो समय पर घर मिलते हैं और समय पर दूसरों के घर भी जाते हैं । सज्जनतावश हम उन्हें भी ‘आदमी’ कह देते हैं । वह असल में टाइमपीस हैं । ये घर में रहेंगे तो टाइमपीस देखते रहेंगे और बाहर रहेंगे तो हम घड़ी देखते रहेंगे। इन्हें हम बदरित कर लेते हैं, मगर इनकी चर्चा करता व्यर्थ है ।

रमारा लेखका एक मित्र है, हमें चर्चा उनकी करनी है, जिन्होंने सुबह आठ बजे घर पर मिलने का वादा किया था, पर वे घर पर नहीं हैं । हम उनकी बैठक में इंतजार कर रहे हैं। हम तनाव कम करने के लिए उसके बडे सडके से पढाई के बारे में पूछ लेते हैं, खेल के बारे में बात कर लेते हैं । वह हमारे सवाल का छोटा सा जवाब देता है । हम अखबार पढने लगते हैं । समाचार पढ़कर विज्ञापन पढ़ने लगते हैं । बीच बीच में पूछ लेते हैं, “कहाँ गए हैं ?”

वह जवाब देता है, “पता नहीं ।”
“कब तक आएँगे” ?
“पता नहीं ।”
” कुछ कह गए थे ?”
“कुछ नहीं ।”

हम फिर अखबार देखने लगते हैं । लड़का ऊब उठा है । वह चाहता है कि हम टलें । मगर हमें जरूरी काम है |
पास ही दरवाजा है । भीतर औरतों की बातें सुनाई पड़ती है।
सबेरे से आकर बैठ गया है, तो उठने का नाम ही नहीं लेता । अरे, कह दिया कि घर पर नहीं हैं तो जाता क्यों नहीं है ?”
हमारा चेहरा लाल हो जाता है। कान की लोरियाँ जलने लगती हैं। मगर हमें जरूरी काम है । आखिर हम उठते हैं। लड़के से कहते हैं,
अच्छा अब हम जाते हैं । कह देना कि हम आए थे ।”
लडका बहुत कम खुश होकर नमस्ते करता है और हमें विदा देता है ।
दूसरे दिन आठ बजे हम फिर पहुँचते हैं। बड़ा लड़का फाटक पर आकर हमारे पूछने से पहले ही कह देता हैं, “घर में नहीं हैं” ।
वह फाटक तक इसलिए भागता आया है कि हम वहीं से लौट जाएँ।
मगर हमें काम है और हम खुद फाटक खोल कर भीतर आ जाते हैं ।
हम बैठक में बैठ जाते हैं । बड़ा लड़का किताब पढ़ने लगा है । हम कल का अखबार पढ़ने लगते हैं । लड़का मुँह छिपाकर हँसता है।
छोटे बच्चे दरवाजे पर आकर हमें देख जाते हैं ।
भीतर औरतों की बातचीत सुनाई देती है ।
“लो, वह फिर आकर बैठ गया ।”
“काम – काम कुछ हो तो देखें ।”
(सब हँसती हैं) छोटा लड़का सारे परिवार की भावना
समझकर दरवाजे पर आकर कहता है । ” ए. पापा बाहर गए हैं ।”
हम उठते हैं, कहते हैं, “पता नहीं वे कब आएँगे । अच्छा, हम चलते हैं ।”

सारा परिवार खिड़की और दरवाजे पर है और बड़ी दिलचस्पी से हमें जाते देख रहा है । इतनी तपस्या के बाद अगर वे कभी घर मिल गए तो लगता है भगवान को पा लिया । जो लोग समय तथ करके भी घर नहीं मिलते वे मुझे भगवान के एजेंट मालूम होते हैं ।

भगवान के दरवाजे पर तो कई जन्म इंतजार करना पड़ता है । अगर इधर कुछ अभ्यास हो गया, तो उधर आसानी पड़ेगी। दूसरी बात यह है कि इंतजार से प्रेम बढ़ता है ।
मेरे एक दोस्त हैं | उनसे मैं मिलने का समय तथ कर लेता हूँ । पर उस वक्त हरगिज़ उनके घर नहीं जाता । यह निश्यित है कि वह घर नहीं होंगे ।

जब उनके मिलने की बिल्कुल संभावना नहीं है और वे मिल जाते हैं । वे किसी कमेटी के सदस्य हैं, जिसकी बैठक में उन्हें होना चाहिए। मगर उस वक्त ने घर मिल जाएँगे ।

जब मेरा उनसे नया परिचय या और कुछ औपचारिकता बाकी थी तब उन्होंने मुझे इसरे दिन ” बजे खाने पर बुलाया । मैं ठीक “बजे पहुँच गया 12 बज गए तो मैं ने उनके लड़के से पूछा, “कहाँ गए हैं ?” उसने कहा, “कुछ पता नहीं हैं ?”
उसने कहा, “कुछ नहीं बता गए ।”
मैं बैठा रहा । जब । बज गया तब लड़के ने कहा, “आपको कुछ जरूरी काम होगा ?”

मैं उसे कैसे बताता कि क्या काम है । इतना मैं अलबन्ता समझ गया कि रस परिवार में मेरे भोजन का कोई सिलसिला नहीं है। मैं भोड़ी देर और बैठ कर उठ गया। शाम को मालूम हुआ कि, जब मैं उनके घर बैठा था, तब वे खुद दूसरों के घर भोजत कर रहे थे। मुझे मिले तो बहुत दुखी हुए। कहने लगे अरे बड़ी गलती हो गई । मैं भूल ही गया ।

कई सालों के उनके साथ के अनुभवों से सावधानी की दीवार मैं ने अपने आसपास खड़ी कर ली थी । जब वे मेरे घर आने की बात करते तब मैं बेखटके बाहर धूमता । मुझे विश्वास था, वे उस वाक्य नहीं आएँगे । शाम को 7 बजे आने को उन्होंने कहा है तो सुबह 8 बजे तक भी आ सकते हैं । वे घर से इधर आने के लिए ही निकलेंगे, पर रास्ते में जो मिल जाएगा उसी के हो जाएँगे, वहाँ खाना लेंगे और तब उन्हे याद आएगा कि किसी से मिलने का वक्त तथ किया था |

हमारे एक मित्र का तबादला हो गया । जो मेरा पहला मित्रता उसने इस मित्र को भी भोजन पर बुलाया । मुझे भी आने के लिए कहा । दूसरे दिन शाम को उनके घर पहुँचे । वे घर नहीं थे । हम दोनों अब सचेत हो गये । मित्र ने कहा कि तुझे उसके बारे में मालूम हैं ना ? मुझसे क्यों नहीं बताया । मैं उस मित्र के लडके से पूछा आप का पापा कहाँ हैं । लडके ने बोला मुझे मालूम नहीं है । तबादले हुए मित्र चले गये | पहला मित्र ने इस विषय के बारे में भूल गया ।

ऐसे लोगों की निंदा भी होती है कि वह समय का कोई खमाल नहीं रखते और अपना तथा दूसरे का वक्त खराब करते हैं । मेरा मत दूसरा है, ऐसे लोग ज्ञानी हैं। वे जानते हैं कि काम अनंत हैं और आत्मा अमर है। जो काम इस जन्म में पूरे नहीं हुए, उन्हें अगले जन्म में पूरे कर लेंगे था उसके बाद वाले में । इस बार आत्मा ने मनुष्य का चोला लिया है। अगली बार वह मेंढ़क का चोला भी ले सकती है । तब मेंढ़क के रूप में हम काम पूरे कर लेंगे ।

विशेषताए :

  1. समय का उचित उपयोग करना समय को बचाना ह ।
  2. समय की बर्बादी से वह और भी छोटा हो जाता है ।
  3. समय किसी की प्रतीक्षा नही करता ।

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4. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर तीन या चार वाक्यों में लिखिए | 2 × 4 = 8

1) बाबा भारती का सुल्तान के प्रति लगाव कैसा था ?
उत्तर:
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था । भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता । बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कहकर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दानना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे । “मैं सुल्तान के बिना नहीं रह सकूँगा”, उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी । खड्गसिंह उस घोड़े को हड़पने पर छोटे बच्चे जैसे रोता था । फ़िर सुल्तान को अंत में देखकर बेहद खुश हो जाता है ।

2) छोटू को सुरंग में जाने की अनुमति नहीं थी ? क्यों ?
उत्तर:
छोटू को सुरंग में जाने की इज़ाजत इसलिए नहीं थी, क्यों कि वह थोटा था । और यंत्रों की सुरक्षा के बारे में नहीं जानता था । आम व्यक्ति को सुरंग में जाने की मनाही थी । कुछ चुनिंदा लोगों को यह प्रशिक्षण दिया गया था । इस कारण छोटू को सुरंग में जाने की अनुमति नहीं थी ।

3) ध्यानचंद को संक्षिप्त जीवन परिपय लिखिए ।
उत्तर:
हाँकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह को कौन नहीं जानता है । उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाब्द में हुआ था । वह भारतीय फील्ड हॉकी के भुतपुर्व खिलाड़ी व कप्तान थे । उन्हें भारत एंव विश्व हाँकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है । वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतनेवाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं । इनमें मे 1928 का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलम्पिक और 1936 का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है । 3 दिसंबर 1979 को जब उन्होंने दुनिया से विदा ली तो उनके पार्थिव शरीर पर दो हाँकी स्टिक क्रॉस बनाकर रखी गई। ध्यानचंद ने मैदान पर जो ‘जादू’ दिखाए, वे इतिहास में दर्ज है ।

4) ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का संक्षिप्त परिचय लिखिए ।
उत्तर:
ए.पी.जे अब्दुल कलाम को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के तौर पर अधिक जाना जाता है, जो साल 2002 से लेकर साल 2007 तक भारत के राष्ट्रपति के पद पर रहे। इस से पहले कलाम विज्ञान क्षेत्र में सक्रिय थे । कलाम ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्म लिया और वही पर उनका पालन पोषण भी हुआ । शिक्षा के लिहाज से उन्होंने अन्तरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की । अपने करियर के अगले करीब चालीस सालों तक, वह भारतीय रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन यानि संक्षेप में कहें तो डी. आर. डी. ओ. और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन यानि इसरो में वैज्ञानिक और इंजिनियर के पद पर रहे। इन्हें लोगों के दिल में बहुत सम्मान प्राप्त है ।

5. निम्नलिखित दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । 2 × 3 = 6

1) शशि – किरणों से उत्तर – उतरकर,
भू पर कामरुप नभ – चर,
चूम नवल कलियों का मृदु – मुख,
सिख रहे भे मुसकाना ।
उत्तर:
यह पद्य ‘प्रथम रश्मि’ नामक कविता से लिया गया है । इसके कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी है । इसमे प्रातः काल की सुन्दरता का वर्णन किया गया है ।

कवि कहते है कि परिवेश के अनुरूप अपना इम वदलने वाली तितलियाँ चन्द्र किरणों की तरह जमीन पर उतरकर नव कोमल पत्तों को चूमकर उनको मुस्कुराना सिखा रही है। प्रकृति का कोमल वर्णन इसमे वर्जित है ।

2) ऋतु के बाद फलों का रूकना डालों का सड़ना है, मोह दिखाना देय वस्तु पर आन्मघात करना है । देते तरु इसलिए कि रेशों में मत कीट समायें, रहें डालियाँ स्वस्थ और फिर नये नये फल आयें ।
उत्तर:
यह पद्य ‘दान – बल, नामक कविता से लिया गया है । यह कविता रश्मिरथी नामक काव्य से लिया गया है । इसके कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जो है ।

इसमे दान की महानता को व्यक्त करते हुए कवि वृक्ष का उदाहरण दे रहा है। वृक्ष ऋतु के बाद स्वयं अपने फलों को छोड देती है । यदि नही छोडती तो वे फल डालों पर ही सड जाते है । उससे कीडे निकलकर साश वृक्ष नाश हो जाता है। यदि फल को छोडता है तो उसके बीजों से नये पौधे और नये फल उत्पन्न होते है उसकी भाषा सरल खडीबोली है ।

3) कृष्णाचन्द्र की क्रीड़ाओं को, अपने आंगन में देखो ।
कौशल्या के मातृ – मोद को, अपने ही मन में देखी ।
प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, तबी मुहम्मद का विश्वास |
जीव – दया जिनवर गौतम की, आओ देखो इसके पास ।
उत्तर:
यह पद्य ‘बालिका का परिचय’ नामक कविता से लिया गया है । इसकी कवइत्री सुभद्राकुमारी चौहान जी है। इसमें नारी चेतना और बालिका के प्रति माँ की ममता का स्पष्ट चित्रण किया गया है ।

कृष्ण की बाललीलाएँ, कौशल्या की ममता सभी का दर्शन मै अपनी बालिका के देखकर अनुभव करती है । ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास, गौतम की अहिंसा इसी बालक मे दिखाई पड रहा है मेरी बालिका इतनी महान है कि सारे सद्गुण उसमें है उनकी भाषा है सरल खडीबोली है ।

4) भारतमाता का मंदिर यह, समता का संवाद जहाँ ।
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ ।
उत्तर:
यह पद्य ‘समता का संवाद’ नामक कविता से लिया गया है । इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त जी है । इसमें देश की एकता पर बल दिया गया है ।

कविकां कहना है कि हमारा यह देश भारत माता का मंदिर हैं। यहाँ समता का संवाद किया जाता है । अर्थात् सभी जाति, मत, संप्रदाय में एकता दिखायी पडता है। ऐसे इस देश में हम सब का शुभ होता है । हम सबकी ऊँछाएँ पूरी होती हैं और हम सब पर समान रूप से कृपा दिखायी जाती है । कवि की भाषा सरल खडी – बोली है ।

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6. निम्नलिखित किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए : 2 × 3 = 6

(1) भारत त्यौहारों का देश है । यहाँ लगभग हर राज्य के अपने – अपने राज्य पर्व हैं ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘बतुकम्मा’ नामक पाठ से दिया गया है । यह पाठ एक निबंध है। त्यौहार समय समय पर आकर हमारे जीवन में नई चेतना, नई स्फूर्ति, उमंग तथा सामूहिक चेतना जगाकर हमारे जीवन को सही दिशा में प्रवृत्ते करते हैं । ये किसी राष्ट्र एवं जाति वर्ग की सामूहिक चेतना को उजागर करनेवाले जीवित तत्व के रुप में प्रकट हुआ करते हैं ।

व्याख्या : भारत महान और विशाल देश है। भारत में कई धर्मों और जातियों के लोग रहते हैं त्यौहार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं (1) राष्ट्रीय त्यौहार और (2) धार्मिक त्यौहार | भारत त्यौहारों का देश है । भारत में लगभग हर राज्य के अपने – अपने राज्य पर्व है । सभी त्यौहारों की अपनी परंपरा होती है जिससे संबंधित जन-समुदाय इनमें एक साथ भाग लेता है । सभी जन त्यौहारों के आगमन से प्रसन्न होते हैं । प्रत्येक त्योहार में अपनी विधि व परंपरा के साथ समाज, देश व राष्ट्र के लिए कोई न कोई विशेष संदेश निहित होता है । जैसे ‘बतुकम्मा’ तेलंगाणा राज्य का राज्य पर्व है | तेलंगाणा के लोग बतुकम्मा – धूम-धाम, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं ।

विशेषताएँ :

  1. त्यौहार मनुष्य के जीवन को हर्षोल्लास से भर देते हैं ।
  2. लोग संपूर्ण आलस्य व नीरसता को त्याग कर पूरे उत्साह के साथ त्यौहारों की तैयारी व प्रतीक्षा करता है ।
  3. भूखे को भोजन, निर्धनों को वस्त्र आदि बाँटकर लोग सामाजिक समरसता लाने का प्रयास करते हैं ।

(2) रूई की पतली पत्ती दूध से भिगोकर जैसे- जैसे उसके नन्हें से मुँह में लगाई पर मुँह खुल न सका और दूध की बूँदे दोनों ओर ढुलक गई।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘गिल्लू’ नामक पाठ से दिया गया है । इस पाठ की लेखिका ‘श्रीमती महादेवी’ वर्मा है । आप हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में छायावाद युग की प्रसिद्ध कवइत्री एवं ख्यातिप्राप्त गद्य – लेखिका है । आपको ‘आधुनिक मीराबाई’ कहा जाता है । ‘नीहार’, ‘नीरजा’, ‘रश्मी’, ‘सन्ध्यागीत’, आदि आपके काव्य है। ‘स्मृति की रखाएँ, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘रटंखला की कडियाँ’ आदि आपकी प्रख्यात गद्य रचनाएँ हैं । आपको ‘यामा’ काव्य पर भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार प्राप्त हुआ । प्रस्तुत पाठ में एक छोटी जीव की जीवन का चित्रण करती हैं ।

व्याख्या : महादेवी वर्मा के घर में एक दिन बरामदे से तेज आवाज आने लगा । तब लेखिका बाहर आकर देखती है । दो कौए गिलहरी को खाने का प्रयत्न करते हैं । लेखिका उस छोटे जीव को कौओं से बचाकर घर के अंदर ले आती है। गिलहरी के शरीर पर हुए घावों पर पेंसिलिन मरहम लगाती है । उसे खिलाने या पिलाने की प्रयत्न करती है । दूध पिलाने केलिए रूई को दूध से भिगोकर, उसके नन्हे से मुँह में लगाती है, पर मुँह खुला सका । तब दूध की बूँदे ढुलक जाती है । अंत मैं कई घंटे के बाद उसके मुँह में टपकाया जाता है। गिलहरी को बचाने केलिए बहुत प्रयास करती है ।

विशेषताएँ :

  1. किसी भी प्राणी आपत्ति में रहने पर उसकी सहायता करना हमारा कर्तव्य है ।
  2. छोटे जीवों के प्रती भी लेखिका के मन में करुण भावना है ।
  3. कई घंटे उस छोटी जीव की उपचार करती रही, अंत में सफल हुई |

(3) मेधावी पुत्री की विलक्षण बुद्धि ने फिर मुझे चमत्कृत कर दिया है । सरस्वती जैसे आकर जिह्वाग्र पर बैठ गयी थी ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘अपराजिता’ नामक कहानी से दिया गया है। इसकी लेखिका ‘गौरा पंत शिवानी’ जी है । भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हे हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्ममश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। शिवानी जी की अधिकरतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । प्रस्तुत कहानी अपराजिता में लेखिका ‘डॉ. चंद्रा’ नामक एक अपंग युवती की जीवन संबंधी विषयों के बारे में हमें बतायी।

व्याख्या : डाँ. चंद्रा की माँ श्रीमती टी. सुब्रह्मण्यम चंद्रा के बारे में इस तरह कह रही है कि “चंद्रा की अठारह वी महीने में ज्वर आया । बाद में पक्षाघात हुआ । गरदन के नीचे सर्वांग अचल हो गया था । बड़े-से-बड़े डाक्टर को दिखाया, कोई लाभ नही हुआ । अंत में एक सुप्रसिद्ध आर्थोपेडिक के पास लेगया । एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपाचार चला । अचानक एक दिन चंद्रा की ऊपरी धड़ में गति आगयी’ । पाँच वर्ष तक (टी श्रीमती सुब्रह्मण्यम ) माँ ही बेटी को शिक्षिका बनकर पढायी । चंद्रा बहुत मेथावी थी। चंद्रा की विलक्षण बुद्धि को देखकर अपनी माँ आश्चर्य हो जाती थी । स्वयं सरस्वती ही चंद्रा की जिह्वा पर बैठी थी – ऐसी सोचती थी। चंद्रा एक बार सुनती तो कभी नही भूलती थी। चंद्रा ‘एकाग्रचित्र’ थी ।

विशेषताएँ :

  1. अपंगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है ।
  2. शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है ।
  3. डॉ. चंद्रा जैसे अपंग युवती सबकी मार्गदर्शिका है ।

(4) मै कह रहा था कि पूरे प्रांत में मैं ही ऐसा व्यक्ति हूँ जिसने पाठशालाओं में शारीरिक दंड तत्काल बंद करने पर ज़ोर दिया है ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘अधिकार का रक्षक’ नामक पाठ से दिया गया है । यह पाठ एकांकी है । इसके लेखक ‘उपेंद्रनाथ अश्क’ जी हैं। 1932 में मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिंदी में कहानियाँ लिखना शुरु किया । “औरत का फितरत” आपकी कहानी संग्रह है। उन्होंने फिल्मों की कहानियाँ, पटकथाएँ, संवाद और गीत लिखे । प्रस्तुत एकांकी में नेतगण के बारे में कहा । यह एक व्यंग्यात्मक एकांकी है।

व्याख्या : एकांकी में मुख्य पात्र सेठ जी है: । सेठ प्रांतीय असेंबली के उम्मीदवार है । सेठ चुनाव के समय होने के कारण सबसे विनम्र से बातें कर रहे हैं। मंत्रीजी सेठ को फोन करके बातें करते समय सेठजी मंत्रीजी से उपरियुक्त वाक्य कहते हैं। सेठजी सब इलाकों में पाठशालाओं में शारीरिक दंड तत्काल बंद करने पर जोर दिया है। बच्चों को स्कूलों में शारीरिक दंड देना मना किया। अगर किसी बच्चे को दंड दिया तो शिक्षक को नौकरी से निकाल देंगे या जेल भिजवाना पडेगा | बच्चों के लालन पालन में परिवर्तन लाने केलिए बहुत जोर से बातें करते हैं। बच्चों पर बात बात पर डाँट-फटकार कर रहे हैं । इसे बदलना पडेगा ।

विशेषताएँ : बच्चों को शारीरिक दंड देना सरकार ने मना किया । इस तरह सोचकर लाप्यार देंगे तो बच्चे बिगड़ भी जायेंगे। बच्चों को सही गलत का ज्ञान करवाना हमारी जिम्मेदारी हैं ।

7. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए । 2 × 3 = 6

1) कबीरदास का संक्षिप्त परिचय लिखिए ।
उत्तर:
कबीरदास का स्थान भक्तिकाल के ज्ञानाश्रयी शाखा में सर्वोन्नत है । वे ज्ञानाश्रयी शाखा: के प्रवर्तक माने जाते हैं । कबीरदास के जन्म और मृत्यु को लेकर विभिन्न मत प्रचलित हैं । किंतु अधिकार विद्वानों के मतानुसार कबीर का जन्म काशी में संवत् 1455 (सन् 1398) में हुआ | कबीर का देहातं संवत् 1575 (सन् 1518 ) में मगहर में हुआ। कबीर अनपढ़ और निरक्षर थे । उनके गुरु रामानंद थे। कबीर समाज सुधारक महान कवि और दार्शनिक माने जाते हैं। उनकी वाणी ‘बीजक’ नाम से संग्रहित की गयी है । इसके तीन भाग हैं- 1. साखी 2. सबद 3. रमैनी

कबीर का विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ। उनके दो बच्चे भी हुए जिनेक नाम हैं कमाल और कमाली |

2) फलों का दान करने से पेड को क्या लाभ होता है ?
उत्तर:
दान देना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । इसका समर्थन करते हए कवि कहते है । कि वृक्ष फल देता है । यह कोई दान नहीं है । यदि ऋतु जाने के बाद वृक्ष फल को नहीं छोडता है तो फल उसी डाल पर सड़ जाते है | इससे कीडे निकलकर सारा वृक्ष नाश हो जाता है । यदि वृक्ष फल को गिरा देता है तो फिर नभे फल आते है और उस फल के बीजों से नये पौधों उत्पन्न होते है ।

3) कवि ने प्रातः काल का वर्णना किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
पंत जी ने प्रातः काल का सुन्दर वर्णन किया है । उषा काल मे सूरज की प्रथम किरण धरती को छूने से कितने सुन्दर परिवर्तन होते है, उनका सुन्दर वर्णन किया है। सूर्योदय के स्वागत में नन्ही सी पक्षी की मधुर आवाज मे गाना, नन्ही सी कलियों का चन्द्रके किरण तितलियों के रुप मे स्पर्श करने से मुस्कुराना, रात के चमकीले तारे मन्द पड जाना, सूर्योदय के स्वागत करते हुए कोयल का गाना सभी का सुन्दर वर्णन करके कवि यह प्रश्न कर रहा है कि सुर्योदय के आगमन के बारे मे इन सबको कैसा पता चल रहा है ।

4) माँ के लिए बेटी किसके समान है ?
उत्तर:
माँ के लिए बेटी गोद की शोभ है और सौभाग्य प्रदान करती है । वह अपने अंधकारमय जीवन के लिए दीपशिखा की तरह है। माँ जीवन मन उषा की पहली किरण है। नीरस मन में अमृत की धारा और रस भरने वाली है वह बालिका नष्ट नयनों की ज्योति है और तपस्वी को मन की सच्चीलगन है । एक माँ के लिए उसकी अपनी संतान है सबकुछ होती है । माँ और बेटी में भेद न करने की भावना समाज को उन्नति के शिखर पर पहुँचा सकती है।

8. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए । 2 × 3 = 6

1) शिष्टाचार के कितने गुण हैं, वे कौन कौन से हैं ?
उत्तर:
शिष्टाचार के मुख्यतः तीन गुण हैं । वे हैं विनम्रता, दूसरों की निजी बातों में दखले न देना, अनुशासन ।

शिष्टाचार का सबसे पहला गुण है, विनम्रता । हमारी वाणी में, हमारे व्यवहार में विनम्रता धुली होनी चाहिए । इसलिए किसी बड़े के बुलाने पर ‘हाँ’, ‘अच्छा’, ‘क्या’ न कहकर ‘जीहाँ’ (या) जीनही कहना चाहिए । विनम्रता केवल बडों के प्रति नहीं होनी चाहिए । बराबरवालों और अपने से छोटों के प्रति भी नम्रता और स्नेहकाभाव होना चाहिए ।

शिष्टाचार का दूसरा विशेष गुण है दूसरों की निजी बातों में दखल न देना । हर व्यक्ति का अपना एक निजी जीवन होता है । इसीलिए हमें अकारण किसी से उसका वेतन, उम्र, जाति, धर्म आदि पूछने से बचाना चाहिए । यदि कोई कुछ लिख रहा है तो झाँक झाँक कर उसे पढ़ने की चेष्टा करना अच्छा नहीं है ।

शिष्टाचार का तीसरा आधार अनुशासन का पालन है। अनुशासन समाज के नैतिक नियमों का भी हो सकता है और कानून की धाराओं का भी । जहाँ जाना मना हो, वहाँ न जाना, कानून के अनुशासन का पालन है । ठीक समय पर कहीं पहुँचना अनुशासन भी सिखाता है ।

2) हरिशंकर परसाई के अनुसार आदमी कितने तरह के होते हैं ?
उत्तर:
हरिशंकर परसाई के अनुसार आदमी तीन तरह होते हैं ।

  1. समय पर घर न मिलने वाले ।
  2. समय पर किसी के घर न जाने वाले और ।
  3. न समय पर घर पर मिलते वाले और न किसी के घर जाने वाले कुछ लोग समय पर घर मिलते है और समय पर दूसरों के घर भी जाते हैं । सज्जनतावश हम उन्हें भी ‘आदमी’ कह देते हैं। वह असल में टाइमपीस हैं । ये घर में रहेंगे तो टाइमपीस देखते रहेंगे और बाहर रहेंगे तो हाथ घड़ी देखते रहेंगे ।

3) चंद्रा की किस विषय में रुचि थी ? वह क्या बनना चाहती थी ?
उत्तर:
चंद्रा की रुचि डॉक्टरी में थी । वह एक डॉक्टर बनना चाहती थी। परीक्षा में सर्वेच्च स्थान प्राप्त करने पर भी चंद्रा को मेडिकल में प्रवेश नही मिला क्यों कि उसकी निचला धड़ निर्जीव है | चंद्रा एक सफल शल्य चिकित्सक नही बन पायेगी । बडी डॉक्टर बनना ही चंद्रा की इच्छा थी । डाँ. चंद्रा के प्रोफेसर कहते है कि – ” विज्ञान की प्रगती में चंद्रा महान योगदान दिया है “। “चिकित्सा ने जो खोया है, वर विज्ञान ने पाया है ।” इसका अर्थ डाक्टर बनकर चिकित्सा क्षेत्र में जो काम चंद्रा करना चाहती थी, वह विज्ञान में करके दिखायी थी ।

4) बतुकम्मा का अर्थ क्या है और यह त्यौहार कितने दिनों तक मनाया जाता है ?
उत्तर:
बतुकम्मा तेलुगु भाषा के दो शब्दों से बना है- ‘बतुकु’ और ‘अम्मा’, यहाँ ‘बतुकु’ का अर्थ ‘जीवन’ और ‘अम्मा’ का अर्थ ‘माँ’ है । इस तरह बतुकम्मा का अर्थ है – ‘जीवनप्रदायिनी माता’ । यह त्यौहार तेलंगाणा राज्य की वैभवशाली संस्कृति का प्रतीक है । बतुकम्मा त्यौहार दशहरे की नवरात्रियों में मनाया जाता है । यह कुल नौ दिनों का त्यौहार है । इसका आरंभ भाद्रपद अमावस्या यानी महालया अमावस्या या पितृ अमावस्या से होता है और सहुला बतुकम्मा या पेद्दा बतुकम्मा तक चलता है । विशेष रूप से इसे स्त्रियाँ मनाती हैं । इसे मनाने की विशेष विधि है । नौ दिनों तक मनाये जाने वाले इस त्यौहार का हर दिन एक विशेष नैवेद्य रूपी नाम से जाना जाता है ।

TS Inter 1st Year Hindi Model Paper Set 5 with Solutions

9. एक शब्द में उत्तर लिखिए । 5 × 1 = 5

1) कबीर के अनुसार जहाँ दया होती है, वहाँ क्या होता है ?
उत्तर:
धर्महोता है ।

2) समता शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
समता शब्द का अर्थ समानता या बराबरी है ।

3) किसका दिल बेटी को समझ सकता है ?
उत्तर:
जिसके पास माता का दिल है, वही बेटी को समझ सकता है ।

4) किस काव्य के लिए पंत जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ?
उत्तर:
‘चिदम्बरा’

5) पावस ऋतु में कौन बोलने लगते है ?
उत्तर:
मोंढक

10. एक शब्द में उत्तर लिखिए । 5 × 1 = 5

1) शिष्टाचार का तीसरा विशेष गुण क्या है ?
उत्तर:
अनुशासन ।

2) परसाई जी के मित्र ने उन्हे कितने बजे खाने पर बुलाया ?
उत्तर:
परसाई जी के मित्र ने उन्दे ।। बजे खाने पर बुलाया ।

3) सेठजी के बेटे का नाम क्या है ?
उत्तर:
बलराम |

4) बतुकम्मा विशेषकर किसका त्यौहार है ?
उत्तर:
स्त्रियों ।

5) गिल्लू किसका बच्चा है ?
उत्तर:
गिलहरी का बच्चा है |

खंड – ‘ख’
(40 अंक)

11. निम्नलिखित गद्यांश पढ़िए। प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए । 5 × 1 = 5

अपने निर्माण के दौर में टीमें बच्चों की तरह री होती हैं । वे एकदम उत्तेजनशील, ओजस्विता, उत्साह एवं उत्सुकता से भरपूर और अपने को विशिष्टा दिखाने की इच्छा लिये होती हैं। हालाँकि बहकाए हुए अभिभावक अपने व्यवहार से इन बच्चों की सकारात्मक विशेषताओं, गुणों को नष्ट कर सकते हैं। टीमों की सफलता के लिए काम का माहौल ऐसा होना चाहिए जो कुछ नया करने का अवसर प्रदान करे। डी.टी.डी. एंड. पी. ( एयर), इससे डी. आर. डी. ओ और दूसरी जगहों पर काम करने के दौरान मैं ने ऐसी चुनौतियों का मुकाबला किया है । लेकिन अपनी टीमों को हमेशा ऐसा माहौल देना सुनिश्चित किया जिसमें वे कुछ नया कर सकें और जोखिम उठा सके ।

प्रश्न :
1. टीमें किनकी तरह होती है ?
उत्तर:
टीमें बच्चों की तरह होती है ।

2. बच्चों की विशेषताएँ कैसी होती हैं ?
उत्तर:
बच्चों की विशेषताएँ सकारात्मक होती हैं ।

3. टीमों को कैसा अवसर देना चाहिए ?
उत्तर:
टीमों को कुछ नया करने का अवसर देना चाहिए ।

4. यहाँ किन संस्थाओं के नाम बताए गए हैं ?
उत्तर:
यहाँ डी.टी.डी.एड. पी. ( एयर), इससे डी.आर.डी.ओ के नाम बताए गए हैं ।

5. यहाँ ‘मैं ने’ शब्द का उपयोग किसके लिए हुआ है ?
उत्तर:
यहाँ मैं ने शब्द का उपयोग ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के लिए हुआ है ।

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12. सूचना के अनुसार लिखिए । 8 × 1 = 8

(12.1 ) किन्हीं चार (4) शब्दों के विलोम शब्द लिखिए ।
(1) नख
(2) पाप
(3) गौण
(4) धनी
(5) चर
(6) आय
उत्तर:
(1) नख × शिख
(2) पाप × पुण्य
(3) गौण × प्रधान, मुख्य
(4) धनी × निर्धन
(5) चर × अचर
(6) आय × व्यय

(12.2 ) किन्हीं चार (4) शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए ।

(1) आकाश
(2) औरत
(3) किरण
(4) गणेश
(5) हाभी
(6) सूर्य
उत्तर:
(1) आकाश = आसमान, अम्बर, गगन, नभ |
(2) औरत = स्त्री, नारी, महिला, कामिनी ।
(3) किरण = कर, मरीचि, रश्मि, अंशु |
(4) गणेश = गजानन, गणपति, लम्बोदर, विनायक |
(5) हाभी = गज, करि, द्विप, कुंजर |
(6) सूर्य = सूरज, भानु, रवि, दिनकर ।

13. किन्हीं आठ (8) शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिए । 8 × 1 = 8

(1) ऊंचा
(2) गँगा
(3) पांचवाँ
(4) देविक
(5) एैक्य
(6) दयालू
(7) दावात
(8) अतिथी
(9) साधू
(10) मधू
(11) पशू
(12) नराज़
उत्तर:
(1) ऊंचा – ऊँचा
(2) गँगा – गंगा
(3) पांचवाँ – पाँचवा
(4) देविक – दैविक
(5) एैक्य – ऐक्य
(6) दयालू – दयालु
(7) दावात – दवात / दावत
(8) अतिथी – अतिथि
(9) साधू – साधु
(10) मधू – मधु
(11) पशू – पशु
(12) नराज़ – नाराज़

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14. कारक चिह्नों की सहायता से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए । 8 × 1 = 8

1) मैं भारत ………………… (के/का) निवासी हूँ ।
2) कक्षा में एक ……………….. (पर / से) बढकर एक छात्र है ।
3) रामू ………………… (का / की) घर है ।
4) लड़के ……………….. (की / को) यहाँ बुलाओ ।
5) मेरी कलम जेब …………………….. (में / से) है।
6) आशा ………………….. (के / ने) गीत गाया ।
7) ………………… (हे / है) भगवान । अब मैं क्या करूँ ।
8) रमेश ……………….. बेटी बीमार है । (की / का)
उत्तर:
1) मैं भारत का (के / का) निवासी हूँ ।
2) कक्षा में एक से (पर / से) बढकर एक छात्र है ।
3) रामू का (का / की) घर है ।
4) लड़के को (की / को) यहाँ बुलाओ ।
5) मेरी पलम जेब में ( में / से) है ।
6) आशा ने (के / ने) गीत गाया ।
7) हे (हे / है ) भगवान । अब मैं क्या करूँ ।
8) रमेश की बेटी बीमार है । ( की / का)

15. निर्देश के अनुसार छ: (6)

1) राम ने अमुचित काम किया। (रेखांकित शब्द का उपसर्ग की दृष्टि से सही वाक्य लिखिए ।)
उत्तर:
अनचित ।

2) मेरे को कुछ ना बोलो । (शुद्ध कीजिए ।)
उत्तर:
मुझ से कुछना बोलो ।

3) लडकी सिमाई करती है । (रेखांकित शब्द में प्रत्यय सही लिखिए ।)
उत्तर:
लडकी सिलाई करती है ।

4) खाना खाके आओ । (शुद्ध कीजिए ।)
उत्तर:
खाने केलिए आओ ।

5) वह चतुरिक से काम काम करता है। (रेखांकित शब्द का प्रत्यय की दृष्टि से सही वाक्य लिखिए ।)
उत्तर:
वह चतुरता से काम करता है ।

6) तिरकाल से राम गाँव में रहता है । (रेखांकित शब्द का उपसर्ग की दृष्टि से सही वाक्य लिखिए ।)
उत्तर:
चिरकाल से राम गाँव में रहता है ।

7) माली बगीचे में बैठा है । (रेखांकित शब्द का लिंग बदलकर लिखिए | )
उत्तर:
मालिन बगीचे में बैठा है ।

8) मेरे को बुला रहा है । (वाक्य शुद्ध कीजिए ।)
उत्तर:
वह मुझे बुला रहा है ।

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16. किन्हीं पाँच (5) वाक्यों का हिंदी में अनुवाद कीजिए ।

1) He has helped me .
उत्तर:
उसने मेरी मदद की है ।

2) Which boy took the book?
उत्तर:
किस लड़के ने किताब ली ।

3) I went to Delhi by plane.
उत्तर:
मै हवाई जहाज से दिल्ली गया ।

4) Bring those books.
उत्तर:
उन किताबों को लाओ ।

5) Does he eat?
उत्तर:
क्या वह खाता है ।

6) I read.
उत्तर:
मै पढ़ती हूँ ।

7) This is the house of geetha.
उत्तर:
यह गीता का घर है ।

8) India is a country of villages.
उत्तर:
भारत गाँवों का देश है ।

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