Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material गद्य भाग 6th Lesson ग्राम लक्ष्मी की उपासना Textbook Questions and Answers, Summary.
AP Inter 2nd Year Hindi Study Material 6th Lesson ग्राम लक्ष्मी की उपासना
संदर्भ सहित व्याख्याएँ – సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు
प्रश्न 1.
यह देहाती लक्ष्मी किन – किन रास्तों से भागती है, सो देखो । उन रास्तों को बंद कर दो।
उत्तर:
कवि परिचय : ये पंक्तियाँ ग्राम लक्ष्मी की उपासना नामक निबन्ध से दी गयी । इसके लेखक आचार्य विनोबाबावे जी हैं । आप का जन्म 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र मे हुआ । भूदान यज्ञ के प्रवर्तक एवं गाँधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित हैं । आपकी रचनाएँ हैं सर्वोदय विचार, भूदान गंगा, कार्यकर्ता वर्ग, गीता प्रवचन आदि प्रमुख हैं।
संदर्भ : ये वाक्य लेखक विनोबा जी ग्राम उद्धार केलिए ग्रामवासियों से कह रहे हैं।
व्याख्या : लेखक विनोबा जी का कहना है – आज गाँवों की बुरी हालत है कारण यह है – किसानों के दो उपास्य देवता हैं, एक पानी बरसाने वाले ईश्वर तथा दूसरा शहरिये भगवान । एक साथ इन दोनों की उपासना असंभव है । शहरिये भगवान की यह उपासना का यह दुष्परिणाम निकला है कि ग्राम लक्ष्मी कई रास्तों से होकर शहरिये भगवान की उपासना के पास पहुंचती है उनके रास्ते चार वे हैं पहला बाजार, दूसरा व्याह – शादी, तीसरा साहुकार और चौथा व्यसन, इसलिए इन रास्तों को बन्द कर देना चाहिए।
विशेषताएँ : यह निबन्ध भरतीय जनता को ग्राम की ओर आकर्षित करने वाला है। ग्रामीण संवेदना की सोंधी गंध देखने को मिलती है ।
प्रश्न 2.
स्वराज्य यानी स्वदेश का राज्य, अपने गाँव का राज्य । पुराने जमाने में हमारे गाँव स्वावलंबी थे। उन्हें सच्चा स्वराज्य प्राप्त था।
उत्तर:
कविपरिचय : ये पंक्तियाँ ग्रम लक्ष्मी की उपासना नामक निबन्ध से दी गयी । इसके लेखक आचार्य विनोबाबावे जी हैं । आप का जन्म 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र मे हुआ । भुदान यज्ञ के प्रवर्तक एवं गाँधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित हैं । आपकी रचनाएँ हैं सर्वोदय विचार, भूदान गंगा,.. कार्यकर्ता वर्ग, गीता प्रवचन आदि प्रमुख हैं ।
संदर्भ : ग्राम स्वराज्य की महानता के बारे में बता रहे हैं ।
व्याख्या : लेखक कहते हैं – बाजार में कुछ जरूरी चीजें खरीदने जाना पड़ता है । जिन चीजों की जरूरत पड़ती है उन्हें भरसक ग्राम में बनाने का निश्चय करो। यहीं से ग्राम स्वराज्य की स्थापना होगी । स्वरीज्य यानी स्वदेश का राज्य है, अपने गांव का राज्य । पुराने जमाने में हमारे गाँव स्वावलंबी थे। उन्हें सच्चा स्वराज्य प्राप्त था । इस रवैये को अपनाओ फिर देखो गाँव कैसे लहलहाते हैं।
विशेषताएँ : लेखक इस निबंध के माध्यम ग्राम स्वराज्य की कोमल कल्पना करते हुए सच्चे स्वराज्य की अकांक्षा को प्रकट कर रहे हैं।
प्रश्न 3.
गोपालकृष्ण ने गाँवों का वैभव बढ़ाया, गाँवों की सेवा की । गाँवों पर प्रेम किया । गाँव के पशु पक्षी, गाँव की नदी, गाँव का गोवर्धन पर्वत – इन सब पर उसने प्रेम किया।
उत्तर:
कविपरिचय : ये पंक्तियाँ ग्रम लक्ष्मी की उपासना नामक निबन्ध से दी . गयी । इसके लेखक आचार्य विनोबाबावे जी हैं । आप का जन्म 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र मे हुआ । भूदान यज्ञ के प्रवर्तक एवं गाँधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित हैं । आपकी रचनाएँ हैं सर्वोदय विचार, भूदान गंगा, कार्यकर्ता वर्ग, गीता प्रवचन आदि प्रमुख हैं।
संदर्भ : गाँव के प्रति भगवान श्रीकृण के प्रेम को लेखक ने उदाहरण सहित बताया है!
व्याख्या : लेखक का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण ग्राम देवता के सच्चे उपासक थे । गांव से जुड़े उत्पादनों का ही उन्होंने इस्तेमाल कर के गावों का वैभव बड़ाया है। गावों की सेवा की । गावों पर प्रेम किया । गांव के पशु पक्षी, गांव की नदी, गांव का गोवर्धन पर्वत इन सब पर उसने प्रेम किया ।
विशेषताएँ : ग्रामीण संवेदना को श्रीकृष्ण के माध्यम से बता रहे हैं । , श्रीकृष्ण गांवई मिट्टी की सोंधी गंध है । लेखक की भाषा सरल तथा सहज है। शैली प्रवाहमान है।
दीर्घ प्रश्न – దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न
1. ‘ग्राम लक्ष्मी की उपासना पाठ का सारांश लिखिए ।
2. देहातों की महिमा और गरिमा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि परिचय : ग्राम लक्ष्मी की उपासना नामक निबन्ध के लेखक आचार्य विनोबा भाने जी हैं । आपका जन्म 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र मे हुआ । भूदान यज्ञ के प्रवर्तक एवं गाँधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित हैं। आपकी रचनाएँ हैं सर्वोदय विचार, भूदान गंग, कार्यकर्ता वर्ग, गीता प्रवचन आदि प्रमुख हैं।
सारांश : प्रस्तुत निबन्ध के माध्यम से लेखक विनोबा भावे जी भारतीय जनता को ग्राम की ओर आकर्षित करने का प्रयाम कर रहे हैं। विनोबा जी का कथन है कि – आज गावों की बुरी हालत है कारण यह है – किसानों के दो उपास्य देवता हैं, एक पानी बरसाने वाले ईश्वर तथा दूसरा शहरिये भगवान । एक साथ इन दोनों की उपासना असंभव है । शहरिये भगवान की यह उपासना का यह दुष्परिणाम निकला है कि ग्राम लक्ष्मी कई रास्तों से होकर शहरिये भगवान की उपासना के पास पहुंचती है। उनके रास्ते चार वे हैं । पहला बाजार, दूसरा ब्याह-शादी, तीसरा साहुकार और चौथा व्यसन । इसलिए इन रास्तों की बन्द कर देना चाहिए ।
देहात में प्रेम और भाईचारा होता है । देहाती लोग एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल करेंगे। शहर में कोई किसी को नहीं पूछता । शहर में मात्र स्वार्थ और लोभ रहता है । गाँव प्रेम से बनता है । यथार्थ लक्ष्मी देहात में है। पेडों में फल लगते हैं । खेतों में गोहूं होता है, गन्ना होता है । यह सब सच्ची लक्ष्मी है । गाँव में चीजें न बनती हो, उनके लिए दूसरे गाँव खोजना है । इस कार्य की जिम्मेदारी पंचायत की है । गांव के झगड़े – टंटे करने का काम पंचायत का होता है। गांव में कौन-कौन सी चीज बाहर जाती है, कौन-कौन सी बाहर से आती है इसका ध्यान भी पंचायत ही रखना चाहिए। फिर बाहर से क्यों आती है जानकर उन्हें गाँव में ही बनाने की कोशिश करनी चाहिए । फिर दाम ग्राम ही ठहराएगा । जब सब एक दूसरे की चीजें खरिदने लगेंगे तो सब सस्ता होगा । संस्ता और महंगा ये दो शब्द नहीं रहेंगे।
लेखक का मान है कि भगवान श्री कृष्ण ग्राम देवता के सच्चे उपासक थे । गांव से जुडे उत्पादनों का ही उन्होंने इस्तेमाल करके गावों का वैभव बड़ाया है । गावों की सेवा की । गावों पर प्रेम किया । गांव के पशु-पक्षी, गांव की नदी, गांव का गोवर्धन पर्वत इन सब पर उसने प्रेम किया ।
शहर भोग है, पैसा है, परन्तु आनंद नहीं । अपने गावों को गोकुल बनायेंगे तब नगर के सेठ गाँव की नमक – रोटी के लिए ललायित होकर लौट आयेंगे । देहातों को हरा भरा गोकुल बनाना है … सर्वाश्रयी, स्वावलंबी, आरोग्यशील, उद्योग संपन्न । बाजार में जाना क्यों पड़ता है । जिन चीजों की जरूरत पड़ती है उन्हें भरसक बनाने का निश्चय करो। स्वराज्य यानी स्वदेश का राज्य है, अपने गांव का राज्य । पुराने जमाने में हमारे गाँव स्वावलंबी थे। उन्हें सच्चा स्वराज्य प्राप्त था । इस रवैये को अपनाओ फिर देखो गाँव कैसे लहलहाते हैं ।
शहरी वस्तुओं के प्रति मोह को रोक देना चाहिए । अपने लिए आवश्यक चीजों को देहातों में तैयार कर लेना चाहिए । झगडे फ़सादों के कारण आदालतों में जाने की आदतों से बचो रहना चाहिए तथा देहातों की पंचायतों में ही समस्या को परिष्कृत करना चाहिए । लेखक का मानना है देहाती स्वराज्य देहाती उद्योग – धंधों का स्वराज्य है और उसके नष्ट होने से आज देहात वीरान तथा डरावना दिखाई दे रहा है।
विशेषताएँ : ग्राम के विकास से ही देश का विकास होगा । गाँव ही देश की रीढ़ की हड्डी है। देहाती स्वराज्य देहाती उद्योग – धंधों का स्वराज्य है लेखक की भाषा में गाँव की सरलता, सहजता तथा प्रवाहमयता देखने को मिलती है।
लघु प्रश्न – స్వల్ప సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न 1.
किसान के दो ईश्वर कौन हैं ?
उत्तर:
किसानों के दो उपास्य देवता है, एक पानी बरसाने वाले ईश्वर तथा दूसरा शहरिये भगवान । एक साथ इन दोनों की उपासना असंभव है।
प्रश्न 2.
देहाती लक्ष्मी किन – किन रास्तों से भागती हैं ?
उत्तर:
देहाती लक्ष्मी चार रास्तो से भगती हैं उनमें पहला बाजार, दूसरा ब्याह शादी, तीसरा साहुकार और चौथा व्यसन ।
प्रश्न 3.
बांसुरी कैसे बनाया जाता है ?
उत्तर:
बांसुरी हमारा राष्ट्रीय वाद्य है । एक बांस की नली को छेद बनाने से बाँसुरी तैयार हो जाती है।
एक वाक्य प्रश्न – ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न 1.
‘ग्राम लामी की उपासना के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर:
आचार्य विनोबा भावे ।
प्रश्न 2.
देहाती लक्ष्मी कितने रास्तों से भागती है ?
उत्तर:
चार रास्तों में भागती है। *
प्रश्न 3.
गोपालबाल भोजन करके कहाँ हाथ धोते हैं ?
उत्तर:
यमुना के जल में।
प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण क्या बजाता था ?
उत्तर:
मुरली /बाँसुरी।
लेखक परिचय – రచయిత పరిచయం
ग्राम लक्ष्मी की उपासना नामक निबन्ध के लेखक आचार्य विनोबा भावे जी हैं। आपका जन्म 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र मे हुआ । भूदान यज्ञ के प्रवर्तक एवं गाँधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित हैं । आपकी रचनाएँ हैं सर्वोदय विचार, भूदान गंग, कार्यकर्ता वर्ग, गीता प्रवचन आदि प्रमुख हैं।
सारांश – సారాంశం
प्रस्तुत निबन्ध के माध्यम से लेखक विनोबा भावे जी भारतीय जनता को ग्राम की ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं । विनोबा जी का कथन है कि – आज गावों की बुरी हालत है कारण यह है – किसानों के दो उपास्य देवता है, एक पानी बरसाने वाले ईश्वर तथा दूसरा शहरिये भगवान । एक साथ इन दोनों की उपासना असंभव है। शहरिये भगवान की यह उपासना का यह दुष्परिणाम निकला है कि ग्राम लक्ष्मी कई रास्तों से होकर शहरिये भगवान की उपासना के पास पहुंचती है । उनके रास्ते चार वे हैं । पहला बाजार, दूसरा ब्याह – शादी, तीसरा साहकार और चौथा व्यसन । इसलिए इन रास्तों को बन्द कर देना चाहिए।
देहात में प्रेम और भाईचारा होता है । देहाती लोग एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल करेंगे। शहर में कोई किसी को नहीं पूछता । शहर में मात्र स्वार्थ और लोभ रहता है । गाँव प्रेम से बनता है । यथार्थ लक्ष्मी देहात में है । पेडों में फल लगते हैं । खेतों में गोहूं होता है, गन्ना होता है । यह सब सच्ची लक्ष्मी है। गाँव में चीजें न बनती हो, उनके लिए दूसरे गाँव खोजना है । इस कार्य की जिम्मेदारी पंचायत की है। गांव के झगड़े – टंटे करने का काम पंचायत का होता है । गांव में कौन-कौन सी चीज बाहर जाती है, कौन-कौन सी बाहर से आती है इसका ध्यान भी पंचायत ही रखना चाहिए । फिर बाहर से क्यों आती है जानकरी उन्हें गाँव में ही बनाने की कोशिश करनी चाहिए । फिर दाम ग्राम ही ठहराएगा । जब सब एक दूसरे की चीजें खरिदने लगेंगे तो सब सस्ता होगा । सस्ता और महंगा ये दो शब्द नहीं रहेंगे।
लेखक का मान है कि भगवान श्री कृष्ण ग्राम देवता के सच्चे उपासक थे । गांव से जुड़े उत्पादनों का ही उन्होंने इस्तेमाल करके गावों का वैभव बड़ाया है । गावों की सेवा की । गावों पर प्रेम किया । गांव के पशु-पक्षी, गांव की नदी, गांव का गोवर्धन पर्वत इन सब पर उसने प्रेम किया । – शहर भोग है, पैसा है, परन्तु आनंद नहीं । अपने गावों को गोकुल बनायेंगे तब नगर के सेठ गाँव की नमक – रोटी के लिए ललायित होकर लौट आयेंगे । देहातों को हरा भरा गोकुल बनाना है … सर्वाश्रयी, स्वावलंबी, आरोग्यशील, उद्योग संपन्न । बाजार में जाना क्यों पड़ता है । जिन चीजों की जरूरत पड़ती है उन्हें भरसक बनाने का निश्चय करो । स्वराज्य यानी स्वदेश का राज्य है, अपने गांव का राज्य । पुराने जमाने में हमारे गाँव स्वावलंबी थे। उन्हें सच्चा स्वराज्य प्राप्त था । इस रवैये को अपनाओ फिर देखो गाँव कैसे लहलहाते हैं।
शहरी वस्तुओं के प्रति मोह को रोक देना चाहिए । अपने लिए आवश्यक चीजों को देहातों में तैयार कर लेना चाहिए । झगडे फ़सादों के कारण अदालतों में जाने की आदतों से बचे रहना चाहिए तथा देहातों की पंचायतों में ही समस्या को परिष्कृत करना चाहिए । लेखक का मानना है देहाती स्वराज्य देहाती उद्योग – धंधों का स्वराज्य है और उसके नष्ट होने से आज देहात वीरान तथा डरावना दिखाई दे रहा है ।
विशेषताएँ : ग्राम के विकास से ही देश का विकास होगा । गाँव ही देश की रीढ़ की हड्डी है । देहाती स्वराज्य देहाती उद्योग – धंधों का स्वराज्य है लेखक की भाषा में गाँव की सरलता, सहजता तथा प्रवाहमयता देखने को मिलती है।
తెలుగు సారాంశం
గ్రామలక్ష్మి ఉపాసన అనే వ్యాసాన్ని ఆచార్య వినోబాభావే గారు రచించారు. 1895 సంవత్సరము మహారాష్ట్రలోని కొంకణ్ ప్రాంతంలో వినోబాభావే జన్మించారు. భూదానోద్యమ రూపకర్తగా, గాంధేయవాదిగా ఈయన అందరికి సుపరిచితులు. సర్యోదయ విచార్, భూదాన గంగా, గీతా ప్రవచ లాంటి రచనల ద్వారా ఖ్యాతిని పొందారు.
ప్రస్తుత వ్యాసం వినోబాభావే గారు ప్రజలను గ్రామాలవైపు ఆకర్షించుటకు చేసిన చిరుప్రయత్నం వినోబా గారి దృష్టిలో గ్రామాలు దుర్భర పరిస్థితిని ఎదుర్కొంటున్నాయి.
నిష్కల్మషమైన ప్రేమాభిమానాలకు, నిస్వార్థ మానవ సంబంధాలకు గ్రామీణ ప్రాంతాలు నిలయాలు గ్రామీణులు ఒకరికొకరు చేదోడు వాదోడుగా ఉంటారు. నగరాలు స్వార్థాలతో నిండి ఉంటాయి. సౌభాగ్యలక్ష్మి గ్రామాలలోనే ఉంది. వృక్షాలకు, పండ్లు, చేలల్లో గోధుమ, చెరుకు పండుతాయి. ఇదే నిజమైన లక్ష్మి. మన గ్రామాలలో నిత్యావసర వస్తువులు తయారుకానప్పుడు ప్రక్క గ్రామాల నుండి సరఫరా చేసుకోవాలి. ఈ బాధ్యత గ్రామ పంచాయితీలదే. గ్రామంలో ఏర్పడే చిన్న – చిన్న సమస్యలు ఘర్షణలను గ్రామ :పంచాయితీలే పరిష్కరించాలి. గ్రామ ఎగుమతులు – దిగుమతులపై పర్వవేక్షాధికారాలు పంచాయితలకే ఉండాలి. దిగుమతులను గుర్తించి వాటిని మన గ్రామమునందే తయారీ ప్రయత్నం చేయాలి. ధర నిర్థారణ గ్రామ పంచాయితీనే చూసుకోవటం వలన వస్తు ధరల్లో తీవ్ర వ్యత్యాసాలు రాకుండా చూసుకోవచ్చు అని వినోబా గారి ఆలోచన.
శ్రీకృష్ణపరమాత్ముడు గ్రామ దేవతకు నిజమైన ఉపాసకుడు. గ్రామోత్పత్తులను మాత్రమే ఉపయోగించి, వాటి వైశిష్ట్యాన్ని, వైభవాన్ని పెంచారు. గ్రామాలకు సేవ చేస్తూ గ్రామ ఔనత్యాన్ని పెంచారు. పశు – పక్ష్యాదులు, నదులు, కాలువలు, గోవర్ధన పర్వతాన్ని ప్రేమించాడు.
రచయిత దృష్టిలో నగరమంటే ధనము, స్వార్థము మాత్రమే మన గ్రామాలను పచ్చటి గోకులాలుగా మార్చితే ధనవంతులు వ్యాపారవేత్తలు ఉప్పు – పప్పు కొరకు మన గ్రామాల దారి పడతారు. స్వావలంబన గల, ఆరోగ్యవంతమైన, ఉపాధికల్పన గల గ్రామాలే స్వరాజ్యాలు. విదేశీ వస్తువుల పట్ల వ్యామోహాన్ని మాని అవసరమగు వస్తువులు గ్రామంలోనే ఉత్పత్తి అయితే గ్రామీణ ఉపాధి, గ్రామీణ ఉద్యోగిత వల్ల గ్రామ స్వరాజ్య సాధన సాధ్యం . అలాకాకుండా పోతే గ్రామాలు నిర్మానుష్యంగా, నిర్జీవంగా, భయానక వాతావరణాన్ని ఎదుర్కొనకతప్పదేమో ……. .
कठिन शब्दों के अर्थ – కఠిన పదాలకు అర్ధాలు
पीहर – मायका, స్త్రీల పుట్టిల్లు
नंग-धडंग – वस्त्रहीन, దుస్తులు లేకుండా
बेदहाशा – बहुत तेजी, క్రూరంగా
बिनौला – कपास का बीज, పట్టి విత్తనాలు
फेहरिस्त – सूची, జాబితా
बुहारना – झाड देना, ఉడ్చివేయడం
कोल्हू – बहुत परिश्रम, అధికశ్రమ
दरख़्त – पेड़, చెట్టు
तकरार – झगड़ा, వివాదం