AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 नंबरोंवाली तिजोरी

Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material गद्य भाग 5th Lesson नंबरोंवाली तिजोरी Textbook Questions and Answers, Summary.

AP Inter 2nd Year Hindi Study Material 5th Lesson नंबरोंवाली तिजोरी

संदर्भ सहित व्याख्याएँ – సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు

प्रश्न 1.
एक डाकू ने उनकी तोंद पर बल्लम अड़ाकर कहा जल्दी तिजोरी की चाबी दो, नहीं तो बल्लम पेट के आर – पार हो जाएगा।
उत्तर:
लेखक परिचय : “नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथा के लेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं । सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के कालाकाँकर के राज परिवार में हुआ । वे हिन्दी के सुपरिचित साहित्यकार हैं तथा आइ.ए.एस अफसर भी हैं । आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत जी और कालाकाँकर’ एवं ‘यादों के झरोखे से’ । इनकी रचनाएँ भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं।

संदर्भ : मैनेजर के सर पर डाकु बल्लम तनाकर तिजोरी की चाबी मांग रहे हैं।

व्याख्या : मैनेजर साहब को राजा साहब के यहाँ से तोहफ़े में एक नंबरोंवाली तिजोरी मिली थी | जो बंद पड़ी हुई होती है उनके घर में डाकू चोरी के लिए आते हैं । उसे कई प्रयत्नों के बाद भी खोल नहीं पाते तो मैनेजर के सर पर बल्लम अड़ा कर धमकी देते हुए चाबी मांग रहे हैं। उनमें से एक डाकू ने मैनेजर से कहा “चाबी अगर जल्दी नहीं दिये तो बल्लम पेट के आर – पार हो जाएगा।

विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है | कमरे की रौनख बढाने के लिए लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा है । भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है । शैली प्रवाहमान है।

AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 नंबरोंवाली तिजोरी

प्रश्न 2.
उनकी काँपती हुई जबान से केवल इतना ही निकला – साहब, यह तिजोरी ताली से नहीं, नम्बरों से खुलती है।
उत्तर:
लेखक परिचय : “नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथा के लेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं । सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के कालाकाँकर के राज परिवार में हुआ । वे हिन्दी के सुपरिचित साहित्यकार हैं तथा आइ.ए.एस अफसर भी हैं | आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत जी और कालाकाँकर’ एवं ‘यादों के झरोखे से | इनकी रचनाएँ भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं।

संदर्भ : ये वाक्य डाकुओं से डरते हुए मैनेजर कह रहे हैं ।

व्याख्या : मैनेजर साहब को राजा साहब के यहाँ से तोहफ़े में एक नंबरोंवाली तिजोरी मिली थी | जो बंद पड़ी हुई होती है उनके घर में डाकू चोरी के लिए आते हैं । उसे कई प्रयत्नों के बाद भी खोल नहीं पाते तो मैनेजर के सर पर बल्लम अड़ा कर धमकी देते हुए चाबी मांगते हैं | खूब पिटाई करते हैं पिटा गया मैनेजर कांपते हुए स्वर में कहता है कि यह तिजोरी ताले से नही नंबरों से खुलती है।

विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है. J.कमरे की रौनख बढाने के लिए … लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा ह । भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है । शैली प्रवाहमान है।

प्रश्न 3.
डाकू लोग यह सोच रहे थे कि शायद इस बार पीटने में कमी हो गई, नहीं तो नंबर जरूर बता देता।
उत्तर:
लेखक परिचय : “नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथा के लेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं । सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के कालाकाँकर के राज परिवार में हुआ | वे हिन्दी के सुपरिचित साहित्यकार है तथा आइ.ए.एस अफसर भी हैं | आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत जी और कालाकॉकर’ एवं ‘यादो के झरोखे से’ | इनकी रचनाएँ भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं।

संदर्भ : मैनेजर के घर चोरी के लिए डाकू मैनेजर से तिजोरी के नंबरों के बारे में सच कहलवाने को सोच रहे हैं।

व्याख्या : मैनेजर साहब को राजा सहब के यहाँ से तोहफ़े में एक नंबरोंवाली तिजोरी मिली थी | जो बंद पड़ी हुई होती है उनके घर में डाकू चोरी के लिए आते हैं । उसे कई प्रयत्नों के बाद भी खोल नहीं पाते तो मैनेजर के सर पर बल्लम अड़ा कर धमकी देते हए चाबी मांगते हैं। खूब पिटाई करते । हैं पिटा गया मैनेजर कांपते हए स्वर में कहता है कि यह तिजोरी ताले से नहीं नंबरों से खुलती है । नंबरो के लिए बेहद पिटाई की, यह तक कि जलाने केलिए गर्म सलाखा मंगवाया ।

AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 नंबरोंवाली तिजोरी

विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है । कमरे की रौनख बढाने के लिए लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा है | भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है । शैली प्रवाहमान है।

दीर्घ प्रश्न – దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు

प्रश्न
1. ‘नंबरोंवाली तिजोरी’ कहानी का सारांश लिखिए ।
2. ‘नंबरोंवाली तिजोरी’ कहानी के प्रमुख पात्रों की समीक्षा करें।
उत्तर:
कवि परिचय : “नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथा के लेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं। सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के कालाकाँकर के राज परिवार, में हुआ । वे हिन्दी के सुपरिचित साहीत्यकार हैं तथा आइ.ए.एस अफसर भी हैं | आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत जी और कालाकाँकर’ एवं ‘यादों के झरोखे से’ । इनकी रचनाएँ भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत हैं |

सारांश : यह एक तिजोरी को लेकर लिखी गई हास्य रचना है । राजा – रईस तो अब नहीं रहे पर उनकी यादें अभी तक नहीं भूली गई, राजा रईसों के यहाँ नौकरी करना हंसी-खेल की बात नहीं । कहानी के मुख्य पात्र “मैं” के चाचा छुईखदान महाराजा के यहाँ नौकर थे, उन्हीं की शिफ़ारिश से “मैं’ को नौकरी मिल गयी । रियासत में दस साल सर्वीस करने के बाद जमीन्दारी खत्म हो गयी । राजा साहब द्वारा कटाई गई टिकट के सहारे बिना कौडी के ”मैं” अपने घर वापस आ गये | आते – आते राजा साहब से भेंट में मिली खाली, बंद तिजोरी के साथ | यह तिजोरी आज भी नीम के नीचे पड़ी है जिस पर दिन भर लड़के उछल – कूद मचाया करते हैं।

आखिर यह तिजोरी आयी तो क्यों आयी, इसे मकान के बाहर क्यों फेंका गया इस के बारे में ”मैं’ पात्र बता रहा है | राजा साहब ने तिजोरी मैनेजर को तोहफ़े में दिया था । यह राय साहब की एक मात्र यादगार है इसलिए इसे संभाल कर रखना भी जरूरी हो गया । यह तिजोरी रौनख बढ़ाने के अलावा किसी काम की नहीं रही । यहाँ तक कि अचार, चटनी, दूध बिल्ली से बचाने में भी बेकाम है । इस तिजोरी को राजा साहब के वालिद साहब ने रियासत में ला रखा था और यह नंबरों वाली तिजोरी है । इसे खोलने के नंबर राजा साहब के वालिद के अलावा किसी को पता नहीं । मैनेजर ने इसे अपनी कोठी में रखना बढ़प्पन मानते थे | कई दिनों तक इस तिजोरी के कारण मैनेजर की खूब चर्चा चलती रही।

एक दिन मैनेजर कुंभकर्ण की तरह गहरी नींद में खर्राटे भर रहे थे । डाकु घर में चोरी के लिए घुसे । खोज – बीन के बाद डाकुओं को कुछ भी न मिलने कारण तलाशी मे मैनेजर के कमरे में गये । डाकुओं के हाथों में बल्लम तने हुए थे उन्हें देख कर मैनेजर कांपने लगा । डाकुओं की निगाह तिजोरी पर पड़ी । तिजोरी को फोड़ने शताधिक प्रयत्न करके विफल रहे । तिजोरी की चाबी के लिए मैनेजर की खूब पिटाई की । मैनेजर ने कहा यह ताले से नहीं बलकी नंबरों से खुलती है । नंबरों के लिए बेहद पिटाई की, यहाँ तक कि जलाने के लिए गर्म सलाखा मंगवाया । इतने में चौकीदार चौंक कर हल्ला मचाते वहाँ पहुंचता है तो डाकू भाग जाते हैं | दूसरे दिन ही उठा कर मैनेजर ने तिजोरी महल में पहचा दी। यह राजा साहब के तोहफ़े की शकल मे ”मैं’ के घर पहुंची, उसे घर में रखने की हिम्मत न होने कारण “मैं” ने नीम के पेड़ के नीचे फेंकवा दिया ।

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विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है । कमरे की रौनख बढाने के लिए लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा है । भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है | शैली प्रवाहमान है ।

लघु प्रश्न – లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు

प्रश्न 1.
ताल्लुकेदारों के यहाँ नौकरी कैसी होती है ?
उत्तर:
ताल्लुकेदारों के यहाँ दिन भर की ही नहीं, बल्कि दिन और रात की नौकरी बजानी पड़ती है । जब भी मालिक की तलबी होती है, फ़ौरन हाज़िर होना पड़ता है चाहे रात या दिन चाहे ओले गिरते हो या तफ़ान चलता हो और वहाँ पहुंचकर जिस सिलसिले में बातें हो रही हो उसी में मालिक की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती है।

प्रश्न 2.
मैनेजर साहब ने डाकुओं से क्या जवाब दिया ?
उत्तर:
मैनेजर साहब ने डाकुओं से मार खा कर घबराए हए स्वर में कहा यह तिजोरी तालों से नहीं, नंबरों से खुलती है । और कहा इसका नंबर मुझे भी नहीं मालुम है ।

प्रश्न 3.
डाकुओं के सरदार ने क्या कहा ?
उत्तर:
डाकुओं के सरदार ने कहा – हमें उल्लू बनाना चाहता है ? अपने घर की तिजोरी का नंबर इसे नहीं मालूम है ? लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

एक वाक्य प्रश्न – ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు

प्रश्न 1.
मैनेजर पर कौन आकर पिटाई करते हैं ?
उत्तर:
डाकू ।

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प्रश्न 2.
‘नंबरों वाली तिजोरी’ पाठ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
कुवर सुरेश सिंह ।

प्रश्न 3.
तिजोरी किस पेड़ के नीचे है ?
उत्तर:
नीम के पेड़ ।

प्रश्न 4.
डाकू ने बल्लम कहाँ रखा ?
उत्तर:
मैनेजर के सर पर ।

प्रश्न 5.
तिजोरी किससे खुलती है ?
उत्तर:
नंबरों से।

लेखक परिचय – రచయిత పరిచయం

“नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथा के लेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं । सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के कालाकाँकर के राज परिवार में हुआ । वे हिन्दी के सुपरिचित साहित्यकार हैं तथा आइ.ए.एस अफसर भी हैं । आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत जी और कालाकाँकर’ एवं ‘यादों के झरोखे से’ | इनकी रचनाएँ भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं।

सारांश – సారాంశం

यह एक तिजोरी को लेकर लिखी गई हास्य रचना है । राजा – रईस तो अब नहीं रहे पर उनकी यादें अभी तक नहीं भूली गई, राजा रईसों के यहाँ नौकरी करना हंसी – खेल की बात नहीं । कहानी के मुख्य पात्र “मैं’ के चाचा छुईखदान महाराजा के यहाँ नौकर थे, उन्हीं की शिफ़ारिश से. ”मैं’ को नौकरी मिल गयी । रियासत में दस साल सर्वीस करने के बाद जमीन्दारी खत्म हो गयी । राजा साहब द्वारा कटाई गई टिकट के सहारे बिना कौडी के ”मै’ अपने घर वापस आ गये । आते – आते राजा साहब से भेंट में मिली खाली, बंद तिजोरी के साथ | यह तिजोरी आज भी नीम के नीचे पड़ी है जिस पर दिन भर लड़के उछल – कूद मचाया करते है ।

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आखिर यह तिजोरी आयी तो क्यों आयी, इसे मकान के बाहर क्यों फेंका गया इस के बारे में “मैं” पात्र बता रहा है। राजा साहब ने तिजोरी मैनेजर को तोहफ़े में दिया था । यह राय साहब की एक मात्र यादगार है इसलिए इसे संभाल कर रखना भी जरूरी हो गया । यह तिजोरी रौनख बढ़ाने के अलावा किसी काम की नहीं रही । यहाँ तक कि अचार, चटनी, दूध बिल्ली से बचाने में भी बेकाम है । इस तिजोरी को राजा साहब के वालिद साहब ने रियासत में ला रखा था और यह नंबरों वाली तिजोरी है । इसे खोलने के नंबर राजा साहब के वालिद के अलावा किसी को पता नहीं। मैनेजर ने इसे अपनी कोठी में रखना बढ़प्पन मानते थे । कई दिनों तक इस तिजोरी के कारण मैनेजर की खूब चर्चा चलती रही।

एक दिन मैनेजर कुंभकर्ण की तरह गहरी नींद में खर्राटे भर रहे थे । डाकु घर में चोरी के लिए घुसे । खोज – बीन के बाद डाकुओं को कुछ भी न मिलने कारण तलाशी मे मैनेजर के कमरे में गये । डाकुओं के हाथों में बल्लम तने हुए थे उन्हें देख कर मैनेजर कांपने लगा | डाकुओं की निगाह तिजोरी पर पड़ी । तिजोरी को फोड़ने शताधिक प्रयत्न करके विफल रहे । तिजोरी की चाबी के लिए मैनेजर की खूब पिटाई की | मैनेजर ने कहा यह ताले से नहीं बलिक नंबरों से खुलती है । नंबरों के लिए बेहद पिटाई की, यहाँ तक कि जलाने के लिए गर्म सलाखा मंगवाया । इतने में चौकीदार चौंक कर हल्ला मचाते वहाँ पहुंचता है तो डाकू भाग जाते हैं । दूसरे दिन ही उठा कर मैनेजर ने तिजोरी महल में पहुंचा दी । यह राजा साहब के तोहफ़े की शकल मे ”मैं’ के घर पहंची, उसे घर में रखने की हिम्मत न होने कारण “मैं” ने नीम के पेड़ नीचे फेंकवा दिया ।

विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है । कमरे की रौनख बढाने के लिए लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा है । भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है । शैली प्रवाहमान है।

తెలుగు సారాంశం

నంబరో వాలీ తిజోరి’ అను హాస్యరచనను కుంవర్ సురేష్ సంహ్ గారు రచించారు. సురేష్ గారు 1935 సంవత్సరంలో ఉత్తర ప్రదేశ్ లోని కాలా కాంకర్ రాజ కుటుంబంలో జన్మించారు. ఈయన హిందీ సాహిత్యంలో గొప్ప రచయిత వృత్తిరిత్యా I.A.S అధికారి.

ఇది ఒక ఇనుప పెట్టెకు సంభందించి వ్రాయబడిన హాస్యరచన ఇప్పుడు రాజులు లేరు – రాజ్యాలు లేవు. ధనవంతుల దగ్గర ఉద్యోగం చేయడం ఆషామాషీ పనికాదు. ఆత్మాశ్రయంగా సాగిపోయే ఈ కథలో కథానాయకుడి యొక్క చిన్నాన్న చుయీఖ్ దాన్ మహారాజు వద్ద సేవలందించారు. ఆయన సిఫారసుతో కథానాయకుడు ఉద్యోగం వరించింది. 10సం||రాలు సేవలందించిన తర్వాత, రాజుగారు కొని పెట్టిన టికెట్టు ద్వారా ఖాళీ చేతులతో ఇంటికి చేరుకుంటాడు. ఈయనకు రాజుగారి ఇంట్లో ఉన్న మూతపడ్డ ఇనుపపెట్టె బహుమతిగా లభిస్తుంది. ఇది ఈ రోజుకు కూడా ‘వేప చెట్టు క్రింద పడి ఉంది. దానిపై నిత్యం పిల్లలు ఎగురుతూ ఆడుకుంటుంటారు.

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అసలు ఈ ఇనుప పెట్టి ఇక్కడికి ఎలా వచ్చింది ? అది ఎందుకు వేప చెట్టు క్రింద పడేయబడినదో కథానాయకుడు చెబుతున్నాడు.

రాజుగారు ఈ ఇనుప పెట్టెను తన మేనేజరు గారికి బహుమానంగా ఇచ్చారు. ఇది రాజు గారి ఏకైక జ్ఞాపిక కావటం చేత దీనిని జాగ్రత్తగా చూసుకోవలసిన అవసరం మేనేజరకు ఏర్పడినది. ఈ ఇనుప పెట్టే ఇంటి అందాన్ని పెంచటములో తప్ప కనీసం ఊరగాయ, పాలు భద్రపరుచుటకు కూడా పనికిరాదు. ఈ ఇనుప పెట్టెను రాజు గారి తండ్రి తయారు చేయించారు. ఈ ఇనుపపెట్టే అంకెల ద్వారానే తెరువబడుతుంది. దీనిని తెరిచే నంబర్లు రాజుగారి తండ్రికి తప్ప ఇంకెవ్వరికి తెలియదు. ఆయన మరణం తర్వాత రాజు గారు మేనేజర్ గారికి బహుమానంగా ఇచ్చారు. మేనేజర్ గారు దీనిని తనింట్లో పెట్టుకోవటాన్ని గర్వంగా భావించేవారు. ఈ పెట్టె కారణంగా మేనేజరు ఖ్యాతి నలువైపులా వ్యాపించింది.

ఒకరోజు మేనేజరు కుంభకర్ణుడిలా గురకలేస్తూ నిద్రపోతుండగా ఇంట్లో దొంగలు పడ్డారు. వెతకగా వెతకగా ఇంట్లో ఇనుపపెట్టే కంట పడింది. శత ప్రయత్నాల తర్వాత కూడా ఈ పెట్టె తెరవబడలేదు. దొంగలు అలికిడికి మేనేజరు ఉలిక్కిపడి మేల్కొన్నాడు. దొంగలు భయపెట్టి తాళాలు అడగగా, తాళాలు లేవని మేనేజర్ భయపడుతూ చెప్పగా కొట్టడం మొదలు పెట్టారు. తదుపరి ఈ పెట్టె తాళాలతో కాకుండా నంబర్ల ద్వారా తెరవబడుతుందని ప్రాధేయపడి’ చెప్పగా నంబర్లు చెప్పమని మేనేజర్ ఒళ్ళు హూనమై య్యోట్లు కొట్టసాగారు. ఎంతకూ నెంబర్లు చెప్పకపోగా దొంగలలోని ఒకడు కట్రకాల్చి వాతలు పెడితే కాని చెప్పరు కనుక కట్ర కాల్చుకొని తీసుకురమ్మంటుండగా బయట నిద్రిస్తున్న వాచ్మెన్ అలికిడి విని ఇంట్లోకి ప్రవేశించగా దొంగలు పారిపోతారు. మరుసటి రోజు ‘మేనేజర్ ఆ పెట్టెను రాజు గారికి తిరిగి చేర్చి వేస్తాడు. తర్వాత కథానాయకునికి రాజుగారు బహుమానంగా ఇనుప పెట్టెను ఇ్వగా, దానిని ఇంట్లోకి తెచ్చుకునే ధైర్యం చాలక నేపచెట్టు క్రింద పడేశాడు.

कठिन शब्दों के अर्थ – కఠిన పదాలకు అర్ధాలు

इजाहार – प्रकट करना, వ్యక్తపరచడం
वाखिया – वृत्तांत, ఉదంతం
तादाद – संख्या , సంఖ్య
बर्दाश्त – सहन, సహనం, ఓర్పు
तलबी – बुलाहट, పిలుపు
मजमून – लेख, వ్యాసం
गुरबा – गरीब की बहू, నిరుపేద కోడలు
मातहत – कर्मचारी, ఉద్యోగి
मुकर्रर – दोबारा, స్థిరం
मुश्क – कंधे, వాయు

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