Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material गद्य भाग 2nd Lesson आलस्य और दृढ़ता Textbook Questions and Answers, Summary.
AP Inter 2nd Year Hindi Study Material 2nd Lesson आलस्य और दृढ़ता
संदर्भ सहित व्याख्याएँ – సందర సహిత వ్యాఖ్యలు
प्रश्न 1.
युवा पुरुषों के लिए इससे अच्छा कोई दूसरा उपदेश नहीं है कि ‘कभी आलस्य न करो।
उत्तर:
लेखक परिचय : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है । इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने माने विद्वान और आलोचक हैं । आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे ।
संदर्भ : प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं।
व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहते हैं कि आलस्य को छोड़ने के लिए कहना ही युवापीढ़ी के लिए श्रेष्ठ उपदेश है | क्योंकि आजकल की युवापीढ़ी की प्रबल समस्या आलसीपन ही है । काम को टालने और सुस्ती के कारण बड़े-बड़े कार्य पूरा नहीं हो रहे हैं । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित रूप से करना चाहिए | बस …. इतना ध्यान रहे कि नियम का भंग न हो ।
विशेषता : इन पंक्तियों में लेखक युवाओं से आलस्य छोड़ने का आग्रह किया है । यह पाठ प्रबोधात्मक लेख है । भाषा अत्यंत सरल और भाव गंभीर हैं।
प्रश्न 2.
एक आलसी मनुष्य उस घरवाले के समान है जो अपना घर चोरों के लिए खुला छोड़ देता है।
उत्तर:
लेखक परिचर्य : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है । इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने माने विद्वान और आलोचक हैं । आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे। आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य-विषय के रूप में स्थान दिलाया।
संदर्भ : प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं।
व्याख्या : सुस्ती या आलसीपन के कारण गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । आलसी आदमी उस मकान मालिक के समान है जो अपने घर को चोरों के लिए खुला छोड़कर तमाशा देखता है । क्योंकि आलसीपन नेक समस्याओं को आश्रय देता है जो संपूर्ण जीवन का नाश कर देती हैं।
जीवन में कभी आलसी बनना नहीं चाहिए।
विशेषता : यहाँ रचइता घर से एक व्यक्ति के जीवन की तुलना करते । आलस्य के कारण हमारा जीवन अनेक समस्याओं का निलय होकर बाली हो जायेगा।
प्रश्न 3.
यह बात अच्छी तरह समझ ली जाए कि बिना हाथ पैर हिलाये संसार में कोई काम नहीं हो सकता ।
उत्तर:
लेखक परिचर्य : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है । इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने माने विद्वान और आलोचक हैं। आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दीविभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य-विषय के रूप में स्थान दिलाया ।
संदभ : प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं।
व्याख्या : लेखक के अनुसार परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । हमें समझ लेना चाहिए कि इस संसार में पसीना बहाये बिना कुछ भी संभव नहीं होगा । यह संसार मेहनती लोगों के लिए है । इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है ।
विशेषता : यह एक प्रबोधात्मक लेख है । भाषा भावानुकूल है । सरल उदाहरणों से लेख प्रभावशाली बन पड़ा ।
दीर्घ प्रश्न – దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न
1. ‘आलस्य और दृढ़ता पाठ का सारांश लिखिए ।
2. ‘आलस्य और दृढ़ता’ निबंध में व्यक्त लेखक के विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लेखक-परिचय : प्रस्तुत पाठ ‘आलस्य और दृढ़ता’ के लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं । आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक पाठ्य-विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ एक प्रबोधात्मक लेख है । लेखक ने इस लेख के द्वारा जीवन में आलस्य को छोड़ने तथा दृढ़ता को अपनाने का संदेश दिया है । उनके अनुसार आज की युवापीढ़ी के लिए इससे अच्छा संदेश दूसरा नहीं । होगा कि ‘कभी आलस्य न करें।’ आलस्य का अर्थ है सुस्ती । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित । रूप से करना चाहिए । इस प्रकार किसी काम को रोज नियमित ढंग से करने से एक वर्ष के बाद हम उस काम में माहिर बन जायेंगे । इस नियम के द्वारा र हमारे सामने चाहे जितना भी बड़ा लक्ष्य हो, उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है । बीज तो देखने में छोटा ही है किन्तु उसीमें एक बड़ा वृक्ष छिपा रहता है।
लेखक कहते हैं – “जल्दबाजी और अस्थिरता जीवन में आलस्य की । तरह बुरे गुण हैं । आलसी आदमी व्यर्थ ही मुश्किलों का आह्वान करता है। जिन्दगी में वही सफल मनुष्य कहलायेगा जो व्यर्थ प्रलापों में समय नष्ट नहीं । करता और हर समय काम में लगा रहता । जो समय नष्ट करता है वह अपने घर को चोरों के लिए छोड़ रखे मकान मालिक जैसा ही मूर्ख है ! एक काम के पूरा होने के बाद ही दूसरे काम में लगना श्रेष्ठता की पहचान है । परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । यह संसार मेहनती लोगों के लिए है। इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है। आलस्य को छोड़ने से मन की दृढ़ता अपने आप आ जाती है ।
दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विघ्न-बाधाओं के बारे में नहीं सोचता । वह पक्के मन से कार्यक्षेत्र में उतरता है । ऐसे दृढ़वान मनुष्य की लगन के सामने चाहे कितना भी बड़ा संकट हो, टिक नहीं सकता । सामने की कठिनाई को देखकर हमें साहस छोड़ना नहीं चाहिए | दृढ़ता से एक-एक कदम आगे बढ़ायेंगे तो चाहे पहाड़ जितना भी बड़ा हो, आसानी से उसकी चढ़ाई की जा सकती है । विशेषकर, किसी कार्य के आरंभ होने से पहले उस कार्य की विघ्न-बाधाओं को देखकर डरना नहीं चाहिए । क्योंकि आरंभ में सभी कार्य कठिन होते हैं । वह आदमी जिन्दगी में कुछ भी नहीं कर सकता जो यह सोचकर पासा पटक देता है कि पहली बार ही उसे खेल में जीत नहीं मिली। परिश्रम और सबर जिन्दगी के खेल में बहुत महत्वपूर्ण हैं ।”
विशेषताएँ : इस लेख के द्वारा रचइता ने जीवन के कई मूल्यों को बहुत प्रभावशाली ढंग से सिखाया । लेख में अंग्रेजी साहित्य से भी कई उदाहरण दिये गये । इससे लेखक के गहन अध्ययन का पता चलता है । यह पाठ युवाओं के लिए अत्यंत मूल्यवान है । भाषा सरल व गंभीर है और शैली प्रवाहमान है ।
लघु प्रश्न – స్వల్ప సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न 1.
कौन – सा व्यक्ति संसार में गौरव पा सकता है ?
उत्तर:
वही व्यक्ति संसार में गौरव पा सकता है जो किसी काम में दृढ़ता के साथ लगे रहता है । वह आलस्य से मुक्त रहता है और सारे काम सफलता पूर्वक कर सकता है । अतः दृढ़तापूर्ण व्यक्ति ही संसार में गौरव पाने का योग्य है।
प्रश्न 2.
आलस्य को दूर करने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर:
आलस्य को दूर करने के लिए आदमी को निरंतरता से काम करना होगा । लेखक के अनुसार इसके लिए सभी काम नियम से और उचित समय पर करने चाहिए । चाहे जितना भी कम समय हो, हर रोज निरंतर करने से किसी भी काम में सफलता प्राप्त होती है।
प्रश्न 3.
काम में दृढ़ता से लगे रहने से क्या प्रयोजन है ?
उत्तर:
काम में दृढ़ता से लगे रहने से काम आसानी से पूरा हो जाता है । दृढ़ता के कारण सुस्ती नहीं आती और कार्य में निरंतरता बनी रहती है । दृढ़ता से युक्त मनुष्य ही संसार में यथार्थ गौरव पा सकता है ।
एक वाक्य प्रश्न – ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न 1.
‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ के लेखक कौन हैं ? ।
उत्तर:
‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास हैं ।
प्रश्न 2.
डॉ. श्यामसुंदर दास के माता – पिता का नाम क्या था ?
उत्तर:
डॉ. श्यामसुंदर दास के माता-पिता का नाम था – देवीदास और देवकी देवी।
प्रश्न 3.
डॉ. श्यामसुंदर दास ने युवा पुरुषों के लिए कौन-सा उपदेश दिया ?
उत्तर:
डॉ. श्यामसुंदर दास ने युवा पुरुषों के लिए आलस्य को छोड़ने का उपदेश दिया ।
प्रश्न 4.
लोगों को किस बात का ध्यान बचपन से ही रखना चाहिए ?
उत्तर:
लोगों को इस बात का ध्यान बचपन से ही रखना चाहिए कि समय व्यर्थ न जाये ।
प्रश्न 5.
डॉ. श्यामसुंदर दास ने आलस्य को दूर करने का मुख्य उपाय क्या बताया ?
उत्तर:
डॉ. श्यामसुंदर दास के अनुसार आलस्य को दूर करने का मुख्य उपाय है – किसी निश्चित काम को उचित समय पर निरंतरता से करना ।
लेखक परिचय – రచయిత పరిచయం
जीवन-वृत्त : प्रस्तुत पाठ के लेखक बाबू श्यामसुंदर दास जी हैं । आप हिन्दी साहित्य के जाने माने विद्वानों में से एक हैं । आपका जन्म बनारस में 1875 ई. में हुआ था । आप हिन्दी के अनन्य साधक, चिन्तक, आलोचक और शिक्षाविद थे । आपने बनारस के क्वींस कॉलेज में सन् 1897 ई. में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की । ‘सरस्वती’ के आरंभिक संपादक के रूप में आप तीन वर्ष तक रहे और फिर हिन्दू स्कूल तथा हिन्दू कॉलेज में अध्यापन का काम किया । बाद में आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए।
साहित्यिक परिचय : हिन्दी को एक विषय के रूप में विश्वविद्यालयस्तर पर पढ़ाने में बाबू श्यामसुंदर दास का विशेष योगदान रहा । आपने पाठ्यक्रमों में हिन्दी को स्थान दिलाया और हिन्दी के विषय-भण्डार को अपनी प्रतिभा से समृद्ध किया । इण्टर मीडिएट की अवस्था में आपने मित्रों के सहयोग से काशी नागरी प्रचारिणी सभा का आरंभ किया । आपके संपादकत्व में हिन्दी शब्द-सागर और वैज्ञानिक कोश प्रकाशित हुए । आपकी एक दर्जन से भी अधिक पुस्तकें मिलती हैं जो विषय की दृष्टि से अत्यंत सारगर्भित और महत्त्वपूर्ण हैं । साहित्यालोचन, भाषा विज्ञान, साहित्य का इतिहास व कई निबंध-संग्रह आपने प्रकाशित किये । हिन्दी के इस महान विद्वान का निधन 1945 ई. में हुआ ।
सारांश – సారాంశం
लेखक-परिचय : प्रस्तुत पाठ ‘आलस्य और दृढ़ता’ के लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं | आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं।
सारांश : प्रस्तुत पाठ एक प्रबोधात्मक लेख है । लेखक ने इस लेख के द्वारा जीवन में आलस्य को छोड़ने तथा दृढ़ता को अपनाने का संदेश दिया है। उनके अनुसार आज की युवापीढ़ी के लिए इससे अच्छा संदेश दूसरा नहीं । होगा कि ‘कभी आलस्य न करें।’ आलस्य का अर्थ है सुस्ती । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित रूप से करना चाहिए । इस नियम के द्वारा हमारे सामने चाहे जितना भी बड़ा लक्ष्य हो, उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है ।
लेखक कहते हैं – “जल्दबाजी और अस्थिरता जीवन में आलस्य की तरह बुरे गुण हैं । जो समय नष्ट करता है वह अपने घर को चोरों के लिए छोड़ रखे मकान-मालिक जैसा ही मूर्ख है ! एक काम के पूरा होने के बाद ही दूसरे काम में लगना श्रेष्ठता की पहचान है । परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता | यह संसार मेहनती लोगों के लिए है । इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है ।
दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विघ्न-बाधाओं के बारे में नहीं सोचता । वह पक्के मन से कार्यक्षेत्र में उतरता है । ऐसे दृढ़वान मनुष्य की. लगन के सामने चाहे कितना भी बड़ा संकट हो, टिक नहीं सकता । सामने की कठिनाई को देखकर हमें साहस छोड़ना नहीं चाहिए । विशेषकर, किसी कार्य के आरंभ होने से पहले उस कार्य की विघ्न-बाधाओं को देखकर . डरना नहीं चाहिए | क्योंकि आरंभ में सभी कार्य कठिन होते हैं । वह आदमी जिन्दगी में कुछ भी नहीं कर सकता जो यह सोचकर पासा पटक देता है कि पहली बार ही उसे खेल में जीत नहीं मिली । परिश्रम और सबर जिन्दगी के खेल में बहुत महत्वपूर्ण हैं ।”
विशेषताएँ : इस लेख के द्वारा रचइता ने जीवन के कई मूल्यों को बहुत प्रभावशाली ढंग से सिखाया । भाषा सरल व गंभीर है और शैली प्रवाहमान है ।
తెలుగు అనువాదం
ఇప్పుడు మనం చదువుకున్న ఈ పాఠం ఒక ప్రబోధాత్మక లఘు వ్యాసం. దీనిని వ్రాసింది బాబూ శ్యాంసుందర్ దాసు గారు. వీరు ఆధునిక యుగంలోని తొలితరం హిందీ పండితులలో పేరెన్నికగన్నవారు. బెనారస్ హిందూ విశ్వవిద్యాలయంలో హిందీ శాఖకు మొదటి అధ్యక్షులు. విశ్వవిద్యాలయస్థాయిలో హిందీని ఒక పాఠ్యవిషయంగా చేర్చడంలో ఎంతో కృషి చేసినవారు. బెనారస్లో ‘కాశీ నాగరీ ప్రచారిణీ సభ’ ను స్థాపించి హిందీ ప్రచారానికి ఎంతగానో పాటుబడిన గొప్ప దేశభక్తులు. ఈ రచనలో శ్యామ్ సుందర్ దాసుగారు యువతను ఉద్దేశించి ‘సోమరితనాన్ని వీడమని, దృఢంగా ఉండమనీ’ ప్రబోధిస్తున్నారు.
రచయిత అభిప్రాయం ప్రకారం నేటి యువతకు ‘సోమరితనాన్ని తక్షణం వీడమని” చెప్పడం కన్నా గొప్ప ఉపదేశం లేదు. సోమరితనం వల్ల పనులను వాయిదా వేయడం, మానసికంగా దృఢంగా లేకపోవడం, కార్యదక్షత కుంటుపడటం వంటి అనేక అనర్థాలు జరుగుతాయి. కాబట్టి యువకులు తక్షణం సోమరితనాన్ని వీడి కార్యరంగంలోకి ప్రవేశించాలి. రోజూ ఒక పనిని నియమంగా చేయడం కన్నా సాఫల్యానికి దగ్గిరదారి లేదు. ‘ఎంత సేపయినా ఫరవాలేదు …. రోజూ ఒకే పనిని క్రమం తప్పకుండా చేస్తూ ఉంటే కొంతకాలానికి ఆ పనిలో మనం నిపుణులుగా మారిపోతాం !’ అని చెబుతూ ‘ఇది చూసేందుకు చిన్న నియమంగా కనిపించినా అద్భుత ఫలితాలనిస్తుంది. విత్తనం చూసేందుకు చిన్నగా ఉన్నా, అందులో పెద్ద వృక్షం దాగి ఉండదూ !’ అని ఉదాహరణ చూపెడతారు రచయిత.
“సమయాన్ని వృథా చేస్తూ ప్రసంగాలతో పొద్దుపుచ్చేవాడు ఎన్నటికీ లక్ష్యాన్ని చేరుకోలేడు. అవసరానికి మించి మాట్లాడుతూ సోమరితనంతో కాలం నష్టపోతే భవిష్యత్తు ఉండదు. ఒకే సమయంలో పరధ్యానంగా రెండు మూడు పనులు చేయడం, పనిని ఆదరాబాదరాగా ముగించేయాలనుకోవడం గొప్పవాళ్ళ లక్షణం కాదు. సోమరిగా కాలం వెళ్లదీసేవాడు, తన ఇంటిని దొంగలకు అప్పగించి చోద్యం చూసే యజమాని లాంటివాడు ! ‘ఈ ప్రపంచం కష్టపడే వాళ్ల కోసమే’ అని తెలుసుకోవడం ముఖ్యం. సోమరితనాన్ని విడిచి దృఢంగా ఉండగలవాడు ప్రపంచంలో గొప్ప కీర్తి-ప్రతిష్ఠలు పొందగలడు.
మానసికంగా దృఢంగా ఉండేవాడు ఎటువంటి ఆటుపోట్లకూ చలించడు. ఒక పనిని ప్రారంభించే కార్యసాధకుడికి ఈ దృఢత్వం ఎంతో అవసరం. ఒక పర్వతాన్ని అధిరోహించే ముందు దారి ఎలా ఉన్నదో అని భయపడకుండా ముందడుగు వేయాలి. అలా కాకుండా పని ప్రారంభించే ముందే ‘అమ్మో ! ఈ పనిలో ఎన్ని ఆటంకాలు వస్తాయో’ అని దిగాలుపడితే ప్రయోజనం ఉండదు. ఎందుకంటే ఆరంభంలో అన్ని పనులూ కఠినంగానే ఉంటాయి. కష్టపడటంతో పాటు ఓర్పు కూడా కార్యసాధకుల లక్షణమే. ఒక్కసారి పాచికలు వేసినంతనే ‘నాకు విజయం లభించలేదంటూ’ పాచికలను నేలకు విసిరికొట్టేవాడు జీవితంలో ఏమి సాధించగలడు ?” అంటారు రచయిత.
ఈ వ్యాసం జీవితానికి అవసరమైన ఎన్నో పాఠాలను అందంగా ఉపదేశిస్తుంది. రచయిత ఎన్నో ఉదాహరణలతో పాఠకులను ఒప్పించే ప్రయత్నం చేశారు. ఇంగ్లీష్, ఇంకా ప్రపంచ సాహిత్యం నుంచి ఎన్నో ఉదాహరణలు పాఠకులకు అందించారు రచయిత. దీని ద్వారా రచయిత లోతయిన అధ్యయనాన్ని, అవగాహనను మనం గమనించవచ్చును.
कठिन शब्दों के अर्थ – కఠిన పదాలకు అర్ధాలు
आलस्य – अलसत्व की भावना/सुस्ती, సోమరితం
इच्छा – चाह, కోరిక
उचित – सही/ठीक, సరి అయిన
शीघ्रता से – जल्दी, త్వరగా
प्रतिदिन – हर रोज, ప్రతి రోజూ
प्रयोजन .. – फायदा, लाभ, లాభం
बराबर – एक जैसा, సమానంగా
आवश्यकता – जरूरत, అవసరం
कोरी बकबक – व्यर्थ प्रलाप, వృథా ప్రసంగాలు
रीति – ढंग, పద్దతి
नाश – नष्ट, నాశనం
परख – जाच, పరీక్షించటం
धब्बा – कलंक, ముచ్చ
आशंका – किसी अनर्थ की संभावना, అనర్ధం జరగొచ్చనే అనుమానం
गौरव – सम्मान, గౌరవించడం
आँधी – तूफान, తుఫాను
बुद्धिमान – अकल, తెలివి
चोटी – शिखर, శిఖరం
विदित – ज्ञात/मालूम, తెలియు
बीहड़ – विषम/ऊबड़-खाबड़, గతుకులు-అవరోధాలతో నిండిన
कोहरा – कुहासा, పొగమంచు
तुच्छ – महत्वहीन, తుచ్ఛమైన
पास – चौपट खेलने का उपकरण, పాచిక
पटकना – जोर से नीचे फेंक देना, నేలకు విసిరిగొట్టడం