AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 9 with Solutions

Access to a variety of AP Inter 2nd Year Hindi Model Papers Set 9 allows students to familiarize themselves with different question patterns.

AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 9 with Solutions

Time : 3 Hours
Max Marks : 100

सूचनाएँ :

  1. सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
  2. जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।

खंड – क ( 60 अंक)

1. निम्नलिखित दोहे की पूर्ति करते हुए भावार्थ सहित विशेषताएँ लिखिए। (1 × 8 = 8)

1. राम नाम मनि ………………….
…………….. जौ चाहसि उजियार ||
उत्तर:
राम नाम मनि दीप धरू जीद देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहिरौ जौ चाहसि उजियार ||
भावार्थ : कवि तुलसीदास कहते हैं ‘राम’ शब्द मणि के समान है । इसे दीप के रूप में द्वार पर रखे तो भीतर – बाहर प्रकाश फैलता है । उसी प्रकार मुह में राम शब्द का प्रयोग करने से देह के भीतर – बाहर भी उजियाला होगा । अर्थात राम शब्द से मन की शुद्धी होगी ।

(अथवा )

कोऊ कोटिक ……………….
…………… बिदारन हार ॥
उत्तर:
कोऊ कोटिक संग्रहौं, कोऊ लाख हजार ।
संपति दूति सदा बिपति बिदारन हार ॥
उत्तर:
भावार्थ : कवि बिहारीलाल इस दोहे के माध्यम से कह रहे हैं कि “कोई लाखों करोडों रूपये कमा लेते हैं, कोई लाखों या हजारों रूपये कमा लेते हैं । मेरी दृष्टि में धन का कोई महत्व नहीं है। मेरी दृष्टि में इस संसार की सबसे अनमोल संपत्ति मात्र श्रीकृष्णा ही है जो हमेशा मेरी विपत्तियों को नष्ट कर देते हैं, मुझे सदा सुखी रखते हैं । इसलिए सदा श्रीकृष्ण का नाम स्मरण करना चाहिए ।

2. किसी एक कविता का सारांश बीस पंक्तियों में लिखिए |

1. ऊर्मिला का विरह गान कविता का सारांश लिखिए |
उत्तर:
कवि परिचय : ‘ऊर्मिला का विरह गान’ नामक कविता के कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिक खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं। खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई को झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ । गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, चिंतक, विद्वान है । साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ । गुप्त जी को भारत सरकार पद्मभूषण से सम्मानित किया ।

सारांश : प्रस्तुत कविता साकेत नामक महाकाव्य के नवम सर्ग से लिया गया है। रामायण में अधिक उपेक्षित तथा अनदेखा नारी पात्र उर्मिला । इस कविता में विरह विदग्ध उर्मिला की मनोदशा का मार्मिक चित्रण है । लक्ष्मण राम और सीता के साथ वनवास के लिए चल पड़ते हैं । लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला पति के आदेश के अनुसार अयोध्या नगरी के राजभवन में ही रह जाती है । उर्मिला लम्बे समय से पति से दूर रह ने कारण पति के वियोग एवं विरह में व्यकुल हो उठती है और अपने आप में ही बातें करने लगती है । अपने सम्मुख पति लक्ष्मण ना होने पर भी लक्ष्मण को सम्बोधितं करती हुई कह रही है ।

हे प्रियतम ! तुम हंस कर मुझे भूल जाओ पर मैं तुम्हें याद कर – करके रोती ही रहूँगी, तुम्हारे हंसने में ही फूलों जैसी सुकुमारता, मधुरता है, पर हमारे रोने में निकलने वाले आँसू मोती बनते जा रहे हैं। मैं सदा यही मानती रही हूँ कि तुम मेरे देवता हो, तुम ही मेरे सब कुछ हो तथा मेरे आराध्य हो । अपने आप को साबित करना अनिवार्य है कि मैं सोती रहती हूँ या जागती रहती हूँ पर तुम्हें ही याद करती रहती हूँ, तुम्हारे ही स्मरण में जी रही हूँ । तुम्हारे हंस ने में फूल है असीम प्यार है और हमारे रोने में मोती है ।

प्रार्थना करती हूँ कि तुम्हारा त्याग सहज हो, सफ़ल हो, मेरा अटूट विश्वास है कि आपके प्रति मेरा अनुराग, प्रेम कभी निष्फल नहीं होगा । बस साधन-भाग स्वयं सिद्धी है । अमृत की तृषा में भूख भी नहीं होती।
काल चक्र भले ही रूक ना जाय, तुम्हारे और मेरे मिलन को भले ही काल चक्र रोक पाये, पर हमारे लिए बस विरह काल है । तुम जहाँ हो वहाँ सृजन, मिलन है, पर यहाँ राजभवन में सुविशाल प्रलय, विनाश सा सूना सूना एकाँत है ।

विशेषताएँ : इतिहास में उपेक्षित उर्मिला नामक नारी पात्र को महत्व देने का प्रयास किया है। गुप्त जी ने उर्मिला के दुख को, उसकी पीड़ा के प्रति अपनी संवेदना, सहानुभुति प्रकट किया है । कविता की भाषा सरल सहज अवं प्रसंगानुकूल शुद्ध खड़ीबोली है | शैलि लालित्य से भरपूर है ।

AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 9 with Solutions

2. परशुराम की प्रतीक्षा’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ

सारांश : परशुराम की प्रतीक्षा एक खंड काव्य है । भारत चीन युद्धानंतर देश की परिस्थितियाँ बदलगयी । देश में निराशा हताशा कि स्थिति फैली हुई थी, ऐसी स्थिति को दूर करने के लिए परशुराम जैसे वीर के पुनः जन्म की प्रतीक्षा थी इसी प्रतीक्षा को लेकर यह लिखा गया है परशुराम की प्रतीक्षा काव्य के माध्यम से कवि दिनकर जी ने भारतीय संस्कृति के महत्व का परिचय दिया है | भारत की संस्कृति सर्वोन्नत है ही ।

कवि कह रहे हैं हम कैसी बीज बो रह हैं हमे पता ही नहीं, पर यहाँ की धरती दानी है । मनुष्य उसको जब भी जल कण देता उस के दान वृथा नहीं . होने देती, बदले में कुछ न कुछ देती है । यह धरती वज्रों का निर्माण करती है यह देश और कोई नहीं, केवल हम और तुम है। यह देश किसी और के लिए नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा और तुम्हारा है । भारत में न तो जाति का, न तो गोत्रों का बन्धन है । अनेकता में एकता रखने वाला देश है । इस देश महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध जैसे महापुरूषों का जन्म हुआ ।

इन महा पुरुषों के त्याग की नीव पर इस देश का निर्माण हुआ है, शंकराचार्य का शुद्ध विराग लेकर आते हैं । यह भी सच है कि जब- जब भारत का गौरव खतरे में पड़ता है तब तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में आग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भाग्य लिए आते हैं । भारत पर चीन के आक्रमण के समय भारत का गौरव घायल हुआ है। इसीलिए भारत के लोग चोट खाये भुजंग की तरह क्रोदित हो कर सुलगी हुई आग बना देते हैं | जब किसी जाति का आत्म सम्मान चोट खाता है, आग प्रचंड हो कर बाहर आती है । यह चोट खाये स्वदेश का बल वही है। ऐसी परिस्थिति में देश के उद्धार के लिए परशुराम जैसे वीर आदर्श पुरुष की प्रतीक्षा करते हैं । परशुराम के आदर्शों के बल पर भारत का भाग्योदय संभव है।

3. किसी एक कविता का सारांश 20 पंक्तियों में लिखिए |

1. अपना – पराया’ पाठ का साराँश लिखिए।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत कहानी ‘अपना पराया’ के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है । आपका जन्म कौडियागंज, अलीगढ़ में 1905 ई में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ । गाँधीजी के प्रभाव से असहयोग आंदोलन में भाग लेकर जेल भी गये । आपकी पहली कहानी ‘विशल भारत में प्रकाशित हुई । आपका पहला उपन्यास ‘परख’ है ।

सारांश : जैनेंद्र कुमार जी ने इस कहानी में लंबी अवधी के बाद युद्ध क्षेत्र से घर लौटते एक सिपाही की मनोभावनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है ।

एक सिपाही लंबी अवधी के बाद युद्ध : क्षेत्र से घर लौटते हुए एक सराय में टहरकर अपने घर-परिवार की कल्पनाएँ करता है । सिपाही सपने में घर की बातें देखने लगा । उसकी पत्नी पाँच साल से विधवा की भाँती रही, प्रेम-संभाषण के लिए अवकाश नही निकाल पाती । बेचारी कितनी कष्ट उठाती थी । किस प्रकार मेरे पीछे दिन काटे ? बे पैसे, बे- आदमी, साढे चार साल का बेटा करनसिंह कैसा है ? जैसे सपने देखता ही था इतने में सिपाही की नींद टूटी। देखा घर की मंजिल अभी दूर है। और बातचीत के लिए सरायवाले को बुलाया और कहा- युद्ध क्षेत्र में हम जितने दुश्मनों को मारते है उतना ही नाम सम्मान और प्रतिष्ठा देते है ।

सिपाही बातें करता रहा, भटियारा सुनता रहा। जब रात हुई सिपाही खा : पीकर सोने लगा । इतने में जोर से एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पडी । बच्चे को माँ कितनी बार समझाने पर भी रोता ही रहा । आखिर सिपाही को नींद असंभव हो गई । भटियारे को बुलाकर कहा बच्चा और उसकी माँ को यहाँ से कही दूर भेजने का आदेश दिया । बच्चे की माँ के अनुरोध पर भटियार का मन बदलगया । लेकिन सिपाही की खफगी का उसे डर था । बच्चा और प्रबल से रोता रहा ।

यह काम भटियारे से न होगा समझकर इस बार स्वयं सिपाही ही उस स्त्री की कोठरी के पास जाकर कहा : “देखो, तुमको इसी वक्त बच्चे को लेकर चले जाना होगा। बच्चा रोता रहा स्त्री चुपचाप उठी, बच्चे को उठाकर मैं चली जाती हूँ | बच्चे को जहाँ चाहे फेंक दो ।” कहती हुई चलने लगी। सिपाही कहता है- ” ठहरो ठहरों कहाँ जाती हों । स्त्री ने उत्तर दिया – “मुझे जहाँ मौत मिले वहाँ जाती हूँ ।”

सिपाही के पैरों में डालकर जब सिपाही के मन में एकदम परिवर्तन आजाता है और कहता है. पाँच कौन हो, कहाँ से आ रही हो, किधर जाती हो’ स्त्री ने कहा तुम बरस से बच्चे के बाप की तलाश में धूमती हूँ। वह लडाई पर गया । पता नही जिंदा है या मर गया । शायद लौटते हुए रास्ते में मिल जाय । मैं उसी के पास इस बदनसीब बच्चे को ले जा रही हूँ ।”
सिपाही की आँखो में आँसू आगये । तब सिपाही को पता चला कि वह बच्चा अपना ही है और वह स्त्री अपनी पत्नी । बच्चे को पैरो पर से उठाया, प्यार किया और वह अत्यंत ममत्वपूर्ण हो उठता है ।

विशेषताएँ : सैनिक के मनोभावनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया गया । यह एक मौलिक चिंतन है जो देश के लिए अपने परिवार को छोडकर सुदूर सीमा पर रहनेवाले सिपाही की है । मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जैनेंद्र कुमारजी की कहानियों की विशेषता है ।

2. ‘ग्राम लक्ष्मी की उपासना’ पाठ का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : ग्राम लक्ष्मी की उपासना नामक निबन्ध के लेखक आचार्य विनोबा भाने जी हैं। आपका जन्म 1895 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र मे हुआ । भूदान यज्ञ के प्रवर्तक एवं गाँधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित हैं । आपकी रचनाएँ हैं सर्वोदय विचार, भूदान गंग, कार्यकर्ता वर्ग, गीता प्रवचन आदि प्रमुख हैं ।

सारांश : प्रस्तुत निबन्ध के माध्यम से लेखक विनोबा भावे जी भारतीय जनता को ग्राम की ओर आकर्षित करने का प्रयाम कर रहे हैं । विनोबा जी का कथन है कि आज गावों की बुरी हालत है कारण यह है – किसानों के दो उपास्य देवता हैं, एक पानी बरसाने वाले ईश्वर तथा दूसरा शहरिये भगवान । एक साथ इन दोनों की उपासना असंभव है। शहरिये भगवान की यह उपासना का यह दुष्परिणाम निकला है कि ग्राम लक्ष्मी कई रास्तों से होकर शहरिये भगवान की उपासना के पास पहुंचती है । उनके रास्ते चार . वे हैं । पहला बाजार, दूसरा ब्याह-शादी, तीसरा साहुकार और चौथा व्यसन इसलिए इन रास्तों की बन्द कर देना चाहिए ।

देहात में प्रेम और भाईचारा होता है । देहाती लोग एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल करेंगे। शहर में कोई किसी को नहीं पूछता । शहर में मात्र स्वार्थ और लोभ रहता है । गाँव प्रम से बनता है । यथार्थ लक्ष्मी देहात में है। पेडों में फल लगते हैं। खेतों में गोहूं होता है, गन्ना होता है। यह सब सच्ची लक्ष्मी है । गाँव में चीजें न बनती हो, उनके लिए दूसरे गाँव खोजना है । इस कार्य की जिम्मेदारी पंचायत की है। गांव के झगड़े – टंटे करने का काम पंचायत का होता है। गांव में कौन-कौन सी चीजं बाहर जाती है, कौन-कौन सी है इसका ध्यान भी पंचायत ही रखना चाहिए । फिर बाहर मे क्यों आती है जानकर उन्हें गाँव में ही बनाने की कोशिश करनी चाहिए । फिर दाम ग्राम ही ठहराएगा । जब सब एक दूसरे की चीजें खरिदने लगेंगे तो सब सस्ता होगा | सस्ता और महंगा ये दो शब्द नहीं रहेंगे।

लेखक का मान है कि भगवान श्री कृष्ण ग्राम देवता के सच्चे उपासक थे । गांव से जुड़े उत्पादनों का ही उन्होंने इस्तेमाल करके गावों का वैभव बड़ाया है । गावों की सेवा की । गावों पर प्रेम किया। गांव के पशु-पक्षी, गांव की नदी, गांव का गोवर्धन पर्वत इन सब पर उसने प्रेम किया ।

शहर भोग है, पैसा है, परन्तु आनंद नहीं । अपने गावों को गोकुल बनायेंगे तब नगर के सेठ गाँव की नमक – रोटी के लिए ललायित होकर लौट आयेंगे | देहातों को हरा भरा गोकुल बनाना है … सर्वाश्रयी, स्वावलंबी, आरोग्यशील, उद्योग संपन्न । बाजार में जाना क्यों पड़ता है । जिन चीजों की जरूरत पड़ती है उन्हें भरसक बनाने का निश्चय करो । स्वराज्य यानी स्वदेश का राज्य है, अपने गांव का राज्य । पुराने जमाने में हमारे गाँव स्वावलंबी थे | उन्हें सच्चा स्वराज्य प्राप्त था । इस रवैये को अपनाओ फिर देखो गाँव कैसे लहलहाते हैं ।

शहरी वस्तुओं के प्रति मोह को रोक देना चाहिए । अपने लिए आवश्यक चीजों को देहातों में तैयार कर लेना चाहिए । झगडे फ़सादों के कारण आदालतों में जाने की आदतों से बचो रहना चाहिए तथा देहातों की पंचायतों में ही समस्या को परिष्कृत करना चाहिए । लेखक का मानना है देहाती स्वराज्य देहाती उद्योग धंधों का स्वराज्य है और उसके नष्ट होने से आज देहात वीरान तथा डरावना दिखाई दे रहा है ।

विशेषताएँ : ग्राम के विकास से ही देश का विकास होगा। गाँव ही देश की रीढ़ की हड्डी है | देहाती स्वराज्य देहाती उद्योग धंधों का स्वराज्य है लेखक की भाषा में गाँव की सरलता, सहजता तथा प्रवाहमयता देखने को मिलती है |

4. किसी एक एकांकी का सारांश लिखिए ।

1. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जाने- माने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।

सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है । इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं । प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं ।

उमा एक पढ़ी लिखी युवती है । वह मेहनत करके बी.ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं । एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी बेटी का विवाह कर देना चाहता है। जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है । शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है । लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़ी – लिखी हो । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ मेट्रिक पास है । दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता। वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे। उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जाये ।

निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है। पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं। वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो। इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है | गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए | उनमें शिक्षा भी एक है। वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम बस घर को संभालना है ।

रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है। गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती । उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है। वह कहती है कि बाजार में कुर्सी – मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती । दूकानदार बस उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं । उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है ।

उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है । वे बाजार में देखकर खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं । वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी । इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है । उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी. ए. पास की है । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं । उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’ यही पर एकांकी समाप्त होता है ।

विशेषताएँ: प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है। लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की – शिक्षा’ है । उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं । रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया । भाषा बहुत सरल और शैली प्रवाहमान है ।

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2. ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत एकांकी “महा भारत की एक साँझ’ के लेखक भारत भूषण अग्रवाल है । आप आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुपरिचित एवं संवेदनशील प्रतिनिधि साहित्यकार है । इनके नाटक प्रयोगधर्मी है, किन्तु ये अपनी प्रभावान्विति में मानवीय अन्तस की गहराइयों का संस्पर्श करते हुए महनीय – जीवन मूल्यों के प्रति आस्या उत्पन्न करते है ।

संदर्भ : महाभारत की साँझ एक एकांकी में भारतभूषण अग्रवाल ने दुर्योधन के प्रति सहानुभूति जताया है ।

पाँडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युध्द चलता है । युद्ध अंतिम दशा तक पहुँचता है । अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा संजय, धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखो दिखा वर्णन करता रहता है। युद्ध के परिणामों को देखकर धृतराष्ट्र अंत मे पछताता है । और संजय से कहता है कि यह किसके पापों का फल है 1. क्या पुत्र प्रेम अपराध है, 2. धृतराष्ट्र के दुःख को देखकर संजय शांत होने केलिए सांत्वना देते है ।

युद्ध की अंतिम दशा का विवरण धृतराष्ट्र संजय से पूछते है । संजय बताते है कि आत्मरक्षा का उपाय न मिलने पर सुयोधन कुरुक्षेत्र के निकट द्वैतवन के सरोवर मे घुस गये और जल स्तंभ से छिपकर बैठे है ।
यह समाचार अहीरों के द्वारा पाण्डवों को मालूम हुआ तो वे दुर्योधन को तरह – तरह से ललकार कर युद्ध के लिए उकसाते है । युधिष्ठिर और भीम के उकसाने से सरोवर से बाहर आकर, दुर्योधन युद्ध करने केलिए सिद्ध हो जाते है ।

यह विवरणं संजय धृतराष्ट्र को बता रहे है । पाण्डवो ने विरक्त सुयोधन को युद्ध के लिए विवश किया । पाण्डवों की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे । दोनों वीरो ने भयंकर युद्ध किया । सुयोधन का पराक्रम सबको चकित कर देता था । ऐसा लगता था मानों विजयश्री अंत में सुयोधन का वरण करेगी। पर तभी श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंधा में गदा का भीषण प्रहार किया । कुरूराज सुयोधन आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पडे ।

संजय के द्वारा पुत्र की स्थिति सुनते ही पिता का हृदय बिघल जाता है । पुत्र प्रेम से अंधा होकर धृतराष्ट्र. पांडवो को हत्यारे, अधर्मी कहने लगते है । जब सुयोधन आहत होकर निस्सहाय भूमिपर गिर पडे तो पाण्डव जय ध्वनि करते और हर्ष मनाते अपने शिविर को लौट गये । संध्या होने पर पहले अश्वत्थामा आए और कुरूराज की यह दशा देखकर बदला लेने का प्रण करते हुए चले गये । फिर युधिष्ठिर आए । सुयोधन के पास आकर वे झुके और शांत स्वर में उन्हे सांत्वना देने केलिए तरह- तरह से समझाते सुयोधन और युधिष्ठिर के बीच धर्माधर्म की काफी लंबी चर्चा होती है । युधिष्ठिर चाहे जितना समझाने पर भी सुयोधन में पश्चत्ताप की लेशमात्र भावना भी नही होती हैं ।

अंत में दुर्योधन कहता है : “मुझे कोई ग्लानी नही, कोई पश्चत्ताप नही है, केवल एक केवल एक दुख मेरे साथ जाएगा यही – यही कि मेरे पिता अंधे क्यो हुए ।” इस अंतिम वाक्य से एकांकी समात्प होती है।
विशेषता : इसमें महाभारत युद्ध के उपरान्त दुर्योधन और पांडवो के भावपूर्ण मिलन – अवसरों का चित्रण किया गया ।

5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए ।

1. अराति सैन्य सिंधु में सुवाडवाग्निसे जलो।
प्रवीर हो जयी बनी – बढ़े चलो, बढ़े चलो।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है। इनका निधन 1937 ई. में हुआ

संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियों को उत्तेजित करते हुए देशभक्ति की मशाल जला रहे हैं ।

व्याख्या : भारत देश के गौरव चिह्न हिमालयों के द्वारा माता भारती अपने सुपुत्रों को बुला रही है । स्वाधीनता के संघर्ष में भाग लेने को प्रेरित कर रही है । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसी अनन्त है । उस को हराना हँसी • खेल नहीं है । फिर भी देश स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढना ही होगा । ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा । अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा । आप कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे ।

विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।

2. सफल हो सहज हो तुम्हारा त्याग,
नहीं निष्फल मेरा अनुराग,
सिद्धि है स्वयं साधन – भाग,
सुधा क्या, क्षुधा न जो होती ।
उत्तर:
सफल हो सहज हो तुम्हारा त्याग,
नहीं निष्फल मेरा अनुराग,
सिद्धि है स्वयं साधन – भाग,
सुधा क्या, क्षुधा न जो होती ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ऊर्मिला का विरह गान’ नामक कविता से दी गयी है । इस के कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिक खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं। खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ | गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, तिंतक, विद्वान है साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष, भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ । गुप्त जी को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया ।

संदर्भ : ये पंक्तियाँ उर्मिला वनवास को गये लक्ष्मण को याद करती हुई दुःख भाव से कहती हैं ।

व्याख्या : हे प्रियतम ! मुझे आयोध्या के राजभवन में छोड़ कर तुम राज्य के सुख – भोगों को त्याग कर श्रीराम, सीतादेवी के साथ वनवास को चले गये | तुम्हारा त्याग सहज तथा सरल, सफल होने की कामना करती हूँ । और आपके प्रति मेरा अनुराग कभी भी निष्फल नहीं जायेगा । आपको स्वयं सिद्धि भाग कर आपके पास पहुंचेगी। अमृत की तृषा में भूख भी नहीं होती। विशेषताएँ : अपने पती के वियोग, विरह में विदग्ध उर्मिला का वर्णन है । वियोग श्रृंगार का सफ़ल प्रस्तुतीकरण है । भाषा शुद्ध खड़ीबोली है।

3. नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती।
उत्तर:
कवि-परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते है कि जब नन्हीं चींटी दाना लेकर दीवारों पर चढ़ती है, कई बार फिसलकर नीचे गिर जाती है । फिर भी वह अपनी लगन नहीं छोड़ती और मंजिल पहुँचने तक उसका प्रस्थान नहीं रुकता । चींटी की कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती । जिनके मन का विश्वास, रगों में साहस को भरता है – वे चढ़ने और गिरने में संकोच नहीं करते । कोशिश करनेवालों की हार कभी नहीं होती |

विशेषता: प्रस्तुत कविता का संदेश स्पर्धा से युक्त आधुनिक युग में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । कवि चींटी जैसे छोटे और सरल उदाहरण से गंभीर विषय को समझाते हैं | कविता उपदेशात्मक एवं प्रभावशाली है । भाषा बहुत सरल है ।

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4. जब किसी जाति का अहं चोट खाता है,
पावक प्रचंड होकर बाहर आता है ।
उत्तर:
कविपरिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारतं सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ !

संदर्भ : कवि दिनकर जी इन पंन्तियों के माध्यम से भारत की गरिमा का गान गा रहे हैं ।

व्याख्या : यह भी सच है कि जब जब भारत का गौरव रे में पड़ता है तब तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में अग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भागय लिए आते है । भारत पर चीन के आक्रमण के समय भारत का गौरव घायल हुआ है । इसीलिए भारत के लोग चोट खाये भुजंग की तरह क्रोधित हो कर सुलगी हुई आग बना देते हैं । जब किसी जाति का आत्म सम्मान चोट खाता हैं, आग प्रचंड हो कर बाहर आती है ।

विशेषताएँ: देश के प्रति प्रेम और भक्तिभावनाओं को जगानेवाली कविता है । कविता की भाषा सरल तथा विषयानुकूल है । शैली सहज तथा प्रवाहमान है ।

6. निम्नलिखित में से किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए ।

1. युवा पुरुषों के लिए इससे अच्छा कोई दूसरा उपदेश नहीं है कि “कभी आलस्य न करो।’
उत्तर:
संदर्भ: प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है। इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं | आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहते हैं कि आलस्य को छोड़ने के लिए कहना ही युवापीढ़ी के लिए श्रेष्ठ उपदेश है । क्योंकि आजकल की युवापीढ़ी की प्रबल समस्या आलसीपन ही है। काम को टालने और सुस्ती के कारण बड़े-बड़े कार्य पूरा नहीं हो रहे हैं । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित रूप से करना चाहिए | बस इतना ध्यान रहे कि नियम का भंग न हो ।

विशेषता : इन पंक्तियों में लेखक युवाओं से आलस्य छोड़ने का आग्रह किया है । यह पाठ प्रबोधात्मक लेख है । भाषा अत्यंत सरल और भाव गंभीर हैं ।

2. उसकी पन्ती जो पाँच साल से विधवा की भाँति रह रही है, उसके पहुँचने पर काम – धाम में बहुत व्यस्त है, प्रेम – संभाषण के लिए तनिक अवकाश नहीं निकाल पाती।
उत्तर:
कविपरिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ” अपना पराया’ नामक कहानी से दी गई है । कहानी के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है। आप हिन्दी कहानी क्षेत्र में मनोविश्लेषणवादी रचनाकार के रूप में सुपरिचित हैं । आपका जन्म 1905 ई – अलीगढ़ के कौडियागंज में हुआ । गांधी जी के प्रभाव से असहयोग . आन्दोलन में भागलेने के कारण जेल भी गये! जेल के वातावरण से ही कहानियाँ लिखने की प्रेरणा मिली! आपने भाषा की सहजता शिल्पगत सूक्ष्मता पर अधिक बलदिया है ।

संदर्भ : एक सिपाही लंबे समय के बाद घर लौटते समय अपनी पत्नी परिवार के बरे में स्वप्न देखता है।

व्याख्या : एक सिपाही युद्ध क्षेत्र से लंबी अवधी के बाद घर लौटते समय संडक के किनारे एक सराय में टहरता है । उसे जल्दी नींद आजाती है । सपने में घर की बातें देखने लगता है … उसकी पत्नी जो पाँच साल से विधवा जैसे रह रही है! उस के पहुँचने पर भी काम धाम में व्यस्त रहती है । प्रेम- संभाषण के लिए तनिक समय नहीं निकाल पाती है। पती से बची- बची काम कर रही है । और कल्पना करता है कि… इस बेचारी ने उसके बगैर विपदाओं में किस प्रकार समय काटा होगा।

विशेषताएँ : इन पंक्तियों के माध्यम से जैनेंद्रजी ने एक सिपाई की परिवार के प्रति आकांक्षओं को प्रस्तुत किया है। भाषा सरल एवं सहज है।

3. यह बात अच्छी तरह समझ ली जाए कि बिना हाथ पैर हिलाये संसार में कोई काम नहीं हो सकता ।
उत्तर:
संदर्भ : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है | इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं | आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दीविभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।

व्याख्या : लेखक के अनुसार परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । हमें समझ लेना चाहिए कि इस संसार में पसीना बहाये बिना कुछ भी संभव नहीं होगा। यह संसार मेहनती लोगों के लिए है। इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है ।

विशेषता : यह एक प्रबोधात्मक लेख है । भाषा भावानुकूल है । सरल उदाहरणों से लेख प्रभावशाली बन पड़ा ।

4. यदि सोना को अपने स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए मेरे सर को ऊपर कूदना आवश्यक लगेगा तो वह कूदेगी ही ।
उत्तर:
कवि परिचय : ये पंक्तियाँ सोना हिरनी नामक रेखाचित्र से दिया गया है । इस की लेखिका महादेवी वर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ है । हिन्दी साहित्य में छायावाद की प्रमुख लेखिका के साथ साथ संस्मरण तथा रेखाचित्र लेखिका के रूप में सुपरिचित है । आप की प्रमुख रचनाएँ है – नीहार, नीरजा, संध्यगीत, दीप शिखा, अतीत के चलचित्र, क्षणदा, श्रृंखला की कडियाँ, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार आदि । इन को ‘यामा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है।

संदर्भ : लेखिका अपनी पालतू हिरन स्नेह से जुड़े रहने के बारे में बता रही है ।

व्याख्या : लेखिका कह रही है – अनेक विद्यार्थियों की भारी भरकम जी से सोना का क्या लेना देना था । वह तो उस दृष्टि को पहचान ती गुरु थी जिसमें उनका प्यार छलकता था और उन हाथों को जानती थी जिन्हों ने यनपूर्वक उसे दूध की बोतल मुह से लगाथी । सोना अपने स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए लेखिका के सिर के ऊपर से कूदना आवश्यक लगेगा तो वह कूदेगी ही । लेखिका की किसी अन्य परिस्थितियों से प्रभावित होना उसके लिए संभव ही नहीं था ।

विशेषताएँ : जंगल के प्रणि मात्र के प्रति मनुष्य की संवेदना का सजीव चित्रण है | हिरन जंगली जीवी होते हुए भी मनुष्य के साथ मिल कर घुल- मिल जाने की रसात्मक कथा है ।

7. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । 2 x 2 = 4

1. आलस्य को दूर करने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर:
आलस्य को दूर करने के लिए आदमी को निरंतरता से काम करना होगा । लेखक के अनुसार इसके लिए सभी काम नियम से और उचित समय पर करने चाहिए | चाहे जितना भी कम समय हो, हर रोज निरंतर करने से किसी भी काम में सफलता प्राप्त होती है ।

2. सोना कहाँ आ पड़ी है ?
उत्तर:
बेचारी ‘सोना’ भी मनुष्य की निष्टुर मनोरंजन प्रियता के कारण अपने अरण्य परिवेश और स्वजाति से दूर मानव समाज में आ पडी है।

3. फक़ीर ने कौन सा शर्त रखा ।
उत्तर:
फकीर ने अब्दुल्ला को सबक सिखाना चाहा । फकीर ने कहा कि मै एक ऊँट को लेकर क्या करूँ । तुम खजाने से भरे अपने ऊँटों में से आधे यनी चालीस ऊँटोंको मुझे दे दो ।

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4. ताल्लुकेदारों के यहाँ नौकरी कैसा होता है ?
उत्तर:
ताल्लुकेदारों के यहाँ दिन भर का ही नहीं, बल्कि दिन और रात की नौकरी बजानी पड़ती है । जब भी मालिक की तलबी होती है, फ़ौरन हाज़िर होना पड़ता है चाहे रात या दिन चाहे ओले गिरते हो या तूफ़ान चलता हो. और वहाँ पहुंचकर जिस सिलसिले में बातें हो रही हो उसी में मालिक की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती है ।

8. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए | 2 × 2 = 4

1. दुर्योधन ने कौन-सा कटु सत्य कहा ?
उत्तर:
दुर्योधन ने कटु सत्य यह कहा कि – पाण्डवो ने ही अपने कृत्य से वनवास पाकर भी दोष मुझ पर (दुर्योधन) लगाया है। उस वनवास में पांडवो ने एक – एक क्षण युद्ध की तैयारी में लगाया गया । अर्जुन ने तपस्या द्वारा नये शस्त्र प्रप्त किए. विराट राजा से मैत्री कर नये संबंध बनाए गए और वनवास अवधि पूर्ण होते ही अभिमन्यु के विवाह के बहाने सारे राजाओं को निमंत्रण भेजकर एकत्र किया ।

2. डॉ. बहादूर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए क्या जानना जरूरी है ?
उत्तर:
डॉ. बहादुर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए जानना जरूरी है कि एक तो वह सांप था या नही, दूसरा अगर सांप था तो जहरीला था या नही, तीसरे अगर जहरीला था तो किस जाति का सांप था ।

3. उमा किसकी रीढ़ की हड्डी’ की बात कहती है और क्यों ?
उत्तर:
उमा, शंकर के रीढ़ की हड्डी की बात कहती है । शंकर का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है | वह अपने पिता के हाथ का कठपुतला है । ‘रीढ़ की हड्डी’ किसीके स्वतंत्र व्यक्तित्व का प्रतीक है । इसलिए उमा एकांकी के अंत में गोपालप्रसाद से कहती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’

4. शर्मा के अनुसार डॉक्टर साहब क्या जानना चाहेंगे ।
उत्तर:
शर्मा के अनुसार डाक्टर साहब यह जानना चाहेंगे कि – मरीजो की भलाई के लिए सारी खास खास बातें परचे में लिख देना चाहते है जिससे डाक्टर साहब एक नजर डालते ही सारा केस समझ जायें और तुरंत इलाज हो जाय ।

9. निम्नलिखित प्रश्नों का वाक्य में उत्तर लिखिए ।

1. परशुराम में किन – किन महापुरुषों के गुण निहित हैं ?
उत्तर:
गाँधीजी, गौतम बुद्ध एवं शंकर

2. तुलसी के आराध्य कौन थे ?
उत्तर:
तुलसी के आराध्य भगवान श्रीरामचंद्र जी हैं

3. बिहारी के ग्रंथ का नाम क्या था?
उत्तर:
बिहारी सत्तसई ।

4. ‘हिमाद्रि से’ गीत किस संकलन से लिया गया है ? कौन
उत्तर:
चंद्रगुप्त नाटक से

5. दिनकर जी की रचनाओं में सारस पाया जाता है?
उत्तर:
वीर रस

10. निम्नलिखित प्रश्नों का एक वाक्य में उत्तर लिखिए ।

1. ‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ के लेखक डॉ. श्यामसुंदर दास हैं ।

2. सौंदर्य के प्रति किसका आकर्षका नहीं रहता?
उत्तर:
शिकारी ।

3. फकीर ने कितने ऊँट लेने का शर्त रखा?
उत्तर:
फकीर ने चालीस ऊँट लेने की शर्त रखा ।

4. ‘नंबरों वाली तिजोरी’ पाठ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
सुरेश सिंह ।

5. देहाती लक्ष्मी कितने रास्तों से भागती है?
उत्तर:
चार रास्तों में भागती है ।

खंड-ख (40 अंक) )

11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीखिए । 5 x 2 = 10

1) भारत के संविधान के निर्माता कौन थे ?
उत्तर:
भारत के संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर जी थे

2) अंबेडकर ने संविधान को कब समर्पित किया ?
उत्तर:
अंबेडकर ने संविधान को 26 नवंबर, 1949 को समर्पित किया।

3) अंबेडकर ने किन – किन विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट प्राप्त की?
उत्तर:
अंबेडकर ने ‘कोलंबिया विश्वविद्यालय’ और ‘लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स विश्वविद्यालयो में अर्थशास्त्र के डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

4) अंबेडकर को भारत रत्न के पुरस्कार से कब सम्मानित किया?
उत्तर:
अंबेडकर को भारत रत्न के पुरस्कार से सन् 1990 में सम्मनित किया|

5) अंबेडकर जयंती कब मनायी जाती है?
उत्तर:
अंबेडकर जयंती प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को मनायी जाती है।

12. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए ।
1. मुनींद्र
2. सूक्ति
3. वनौषध
4. दिगम्बर
5. भूषण
6. परिच्छेद
4. दिगम्बर
7. वाग्दान
8. दुर्बल
9. प्रातः काल
10. निष्फल
उत्तर:
1. मुनींद्र = मुनि + इन्द्र
2. सूक्ति = सु + उक्ति
3. वनौषध = वन + औषध
4. दिगम्बर = दिक् + अम्बर
5. भूषण = भू + षन
6. परिच्छेद = परि + छेद
4. दिगम्बर दिक् + अम्बर
7. वाग्दान = वाक् + दान
8. दुर्बल = दुः + बल
9. प्रातः काल = प्रातः + काल
10. निष्फल = नि: + फल

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13. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों के समास के नाम लिखिए ।

1. हर रोज
उत्तर:
अव्ययीभाव समास

2. जयचंद्रकृत
उत्तर:
तत्पुरुष समास

3. सुख प्राप्त
उत्तर:
तत्पुरुष समास

4. अनाचार
उत्तर:

6. नव रत्न
उत्तर:
द्विगु समास

7. पाप-पुण्य
उत्तर:
द्वंद्व समास

8. थोड़ा-बहुत
उत्तर:
द्वंद्व समास

9. इंद्रजीत
उत्तर:
बहुव्रीहि समास

10. पंकज
उत्तर:
बहुव्रीहि समास

14. (अ) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को हिंदी में अनुवाद कीजिए ।

1. What is this?
‘उत्तर:
यह क्या है ?

2. Rama killed Ravana.
उत्तर:
राम ने रावण को मारा।

3. Give respect, Take respect.
उत्तर:
सम्मान दीजिए, सम्मान लीजिए।

4. Service to man is service to God.
उत्तर:
मानव सेवा ही माधव सेवा है ।

5. All Indians are our brothers and sisters.
उत्तर:
समस्त भारतीय हमारे भाई – बहन हैं ।

6. Cow gives milk.
उत्तर:
गाय दूध देती है।

7. Visakhapatnam is a beautiful city..
उत्तर:
विशाखापट्टणम एक सुंदर नगर है।

8. Subhash Chandra Bose is a Freedom Fighter.
उत्तर:
शुभाषचंद्र बोस एक स्वतंत्रता सेनानी है।

9. Don’t tell lies.
उत्तर:
झूठ मत बोलो|

10. Respect your teacher.
उत्तर:
अध्यापकों का सम्मान करो ।

(आ) निम्नलिखित वाक्यों में से पाँच वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए ।

1. मैं स्कूल जाता / जाती है। (अशुद्ध )
उत्तर:
स्कूल जाता / जाती हूँ। (शुद्ध)

2. श्रीदेवी पाठ पढ़ता है। (अशुद्ध)
उत्तर:
श्रीदेवी पाठ पढ़ती है। (शुद्ध)

3. धनराज ने चिट्ठी लिखी । (अशुद्ध)
उत्तर:
धनराज ने चिट्ठी लिखा। (शुद्ध)

4. अध्यापक जी ने बोले। (अशुद्ध)
उत्तर:
अध्यापक जी बोले। (शुद्ध)

5. मैं मेरा काम करता हूँ। (अशुद्ध)
उत्तर:
मैं अपना काम करता हूँ। (शुद्ध)

6. मल्लेश्वरी गाना चाहिए। (अशुद्ध )
उत्तर:
मल्लेश्वरी को गाना चाहिए। (शुद्ध)

7. वह गुंटूर जाना है। (अशुद्ध )
उत्तर:
उसे गुंटूर जाना है। (शुद्ध) ( वह + को = उसे )

8. दशरथ की तीन रानियाँ थीं। (अशुद्ध)
उत्तर:
दशरथ के तीन रानियाँ थीं। (शुद्ध) (संबंधी)

9. जेब पर रुपये हैं। (अशुद्ध)
उत्तर:
जेब में रुपये हैं। (शुद्ध)

10. अध्यापक आते ही विद्यार्थी चले गये। (अशुद्ध )
उत्तर:
अध्यापक के आते ही विद्यार्थी चले गये। (शुद्ध)

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15. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षिप्तीकरण कीजिए ।

अहिंसा परम – धर्म है और हिंसा आपद् – धर्म । मनुष्य अहिंसा की ओर चलना चाहता है, किंतु परिस्थितियाँ उससे हिंसा कराती हैं, अर्थात् परम् धर्म की रक्षा के लिए आदमी बराबर आपद् – धर्म से काम लेता रहा है । भारत अपनी सेनाओं को विघटित कर दे, तब भी उसका अपमान उससे अधिक होनेवाला नहीं, जितना नेफा में हुआ किंतु परम – धर्म पर टिकने का सामर्थ्य भारत में नहीं है, तो आपद् धर्म पर उसे आना ही चाहिए । व्यावहारतः आपद् – धर्म का विरोधी नहीं, उसका रक्षक है।
उत्तर:
मानव जीवन का उद्देश्य। मनुष्य अहिंसा मार्ग पर चलते हुए भी परिस्थितियों के अनुरूप हिंसा से काम लेता आ रहा है। ऐसी ही स्थिति भारत की सेना की भी है। परमधर्म आपद्धर्मका विरोधी नहीं उसका रक्षक है।

16. निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच वाक्यों का वाच्य बदलिए ।

1. मैंने किताब पढ़ी। (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे किताब पढ़ी गई।
(कर्म) (किताब – स्त्रीलिंग)

2. मौनिका गीत गाती है। ( कर्तृ)
उत्तर:
मौनिका से गीत गाया जाता है। (कर्म) (गीत – पुलिंग )

3. मैं प्रतिदिन व्यायाम करता हूँ। (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे प्रतिदिन व्यायाम किया जाता है। (कर्म) (व्यायाम – पुलिंग)

4. हम फिल्म देखेंगे। (कर्तृ)
उत्तर:
हमसे फिल्म देखी जाएगी। (कर्म) (फिल्म – स्त्रीलिंग)

5. वह नहीं सोता ( कर्तृ)
उत्तर:
उससे सोया नहीं जाता। (भाव)

6. आप नहीं उठेंगे। (कर्तृ)
उत्तर:
आपसे उठा नहीं जाता।
(भाव)

7. महेश से पुस्तक पढ़ी जाती है। (कर्म)
उत्तर:
महेश पुस्तक पढ़ता है। (कर्तृ) (पुस्तक – स्त्रीलिंग)

8. प्रेमचंद उपन्यास लिख रहा है। (कर्तृ)
उत्तर:
प्रेमचंद से उपन्यास लिखा जा रहा है।
(कर्म) (उपन्यास – पुलिंग )

9. मुझसे कहानी लिखी जाती है। (कर्म) (कहानी – स्त्रीलिंग)
उत्तर:
मैं कहानी लिखता हूँ। (कर्तृ)

10. कुमार हिंदी सीखेगा। (कर्तृ)
उत्तर:
कुमार से हिंदी सीखी जाएगी। (कर्म) (हिंदी – स्त्रीलिंग)

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