Access to a variety of AP Inter 2nd Year Hindi Model Papers Set 7 allows students to familiarize themselves with different question patterns.
AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 7 with Solutions
Time : 3 Hours
Max Marks : 100
सूचनाएँ :
- सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
- जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।
खंड – क ( 60 अंक)
1. निम्नलिखित दोहे की पूर्ति करते हुए भावार्थ सहित विशेषताएँ लिखिए । (1 × 8 = 8)
तुलसी मीठे वचन तै, सुख उपजत चाहूँ ओर ।
बसीकरन यह मंत्र है, परिहरु वचन कठोर ॥
उत्तर:
भावार्थ : कवि तुलसीदास इस दोहे माध्यम से कह रहे हैं – कोई भी व्यक्ति मीठे वचन बोलने से सब को अपने वश में कर ले सकते हैं अपनी ओर अकर्षित कर सकते हैं। अच्छी वाणी वशीकरण मंत्र के समान है। अच्छी वाणी से चारों ओर सुःख शांती फैली रहती है। अच्छी वाणी के कारण शत्रुता कभी भी पैदा नहीं होगी । इसलिए कठोर वचन को हमेशा के लिए त्याग कर वाणी में माधुर्य लाना चाहिए ।
अथवा
2. या अनुरागी चित्त की गति समझौ नहिं कोई ।
ज्यों-ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यौं – त्यौं उज्ज्वलु होई ॥
उत्तर:
भावार्थ : कवि बिहारीलाल इस दोहे के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति अपने अट्टू प्रेम को प्रकट करते हुए कह रहे हैं “इस प्रेमी मन की. स्थिति को कोई समझ नहीं सकता । जैसे- जैसे मेरा मन कृष्ण के रंग में रंगता जाता है, वैसे-वैसे उज्ज्वल होता जाता है । अर्थात श्रीकृष्ण के प्रेम में रमने के बाद अधिक निर्मल हो जाता है । यही श्रीकृष्ण के प्रेम का महत्व है । अपने आप को निर्मल बनाने के लिए श्रीकृष्ण के प्रेम में रमने की अधिक आवश्यकता है ।”
2. किसी एक कविता का सारांश बीस पंक्तियों में लिखिए | (1 × 6 = 6)
1. ‘हिमाद्रि से’ कविता का सारांश लिखिए |
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्तंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं- कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि। इनकी भाषां शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ
सारांश : प्रस्तुत गीत चंद्रगुप्त नाटक के चौथे अंक के छठे दृश्य से संकलित है । यह एक सामूहिक गीत है । अलका के भाई आम्भिक देशद्रोही है। गांधार नरेश पुरुषोत्तम के विरुद्ध यवनों को भारत पर हमला करने के लिए सिंधु तट पर सेतु का निर्माण करते वक्त उनके विरुद्ध में उनकी बहन अलका ने सब सैनिकों को युद्ध के लिए उत्साहित करती गाती है । मा भारती गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए वीर सैनिकों को बुला रही है । वह नींद से जगाती है । आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रही है । वह.. स्वतंत्र हो कर अपनी संपत्ती का सदुपयोग करना चाहती है ।
युद्ध में मरनेवाले अमर हो जाते हैं भारतवासी ऐसे ही अमरों के हैं। उन्होंने मातृभूमि को स्वतंत्र बनाने की प्रतिज्ञा की है । पूर्वजों से बना मार्ग उनके सामने हैं उसको उन्होंने प्रशस्त किया है !
भारत माता स्वतंत्रता के लिए पुकार रही है । जागो हे अमर्त्य वीर पुरुषों जागो, भारत-माता के सपूतों जागो । दृढ संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करो कि “भारत देश को आजाद बनायेंगे” इस सर्वश्रेष्ठ, पुण्य, उत्तम मार्ग में निकलो बढ़ते चलो, बढ़ते चलो । विजयी बनो ।
संसार में इस देश की असंख्याक कीर्ति है । भारत माता के सुपुत्रों पवित्र मशाल बन कर जलते हुए तपते हुए उजालों को फैलाते आगे बढो… आगे बढो । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसे अनन्त है । उस को हराना हसी खेल नहीं है । फिर भी देश की स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढ़ना ही होगा । ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा | अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा। तुम अच्छे वीर हो, तुम में सच्ची देश भक्ति है आवश्य विजयी बनो… बढ़ते चलो बढ़ते चलो । रुको मत हे वीर पुत्रों । तुम्हारा मार्ग प्रशस्त है । भारतीय कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे | –
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।
2. परशुराम की प्रतीक्षा’ कविता का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं | आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ ।
साराशं : परशुराम की प्रतीक्षा एक खंड काव्य है । भारत चीन युद्धानंतर देश की परिस्थितियाँ बदलवगयी । देश में निराशा हताशा कि स्थिति फैली हुई थी, ऐसी स्थिति को दूर करने के लिए परशुराम जैसे वीर के पुनः जन्म की प्रतीक्षा थी इसी प्रतीक्षा को लेकर यह लिखा गया है । परशुराम की प्रतीक्षा काव्य के माध्यम से कवि दिनकर जी ने भारतीय संस्कृति के महत्व का परिचय दिया है । भारत की संस्कृति सर्वोन्नत है ही ।
कवि कह रहे हैं हम कैसी बीज बो रह हैं हमे पता ही नहीं, पर यहाँ की धरती दानी है | मनुष्य उसको जब भी जल कण देता उस के दान वृथा नहीं होने देती, बदले में कुछ न कुछ देती है । यह धरती वज्रों का निर्माण करती है । यह देश और कोई नहीं, केवल हम और तुम है । यह देश किसी . और के लिए नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा और तुम्हारा है । भारत में न तो जाति का, न तो गोत्रों का बन्धन है । अनेकता में एकता रखने वाला देश है । इस देश में महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध जैसे महा पुरुषों का जन्म हुआ. इन महा पुरुषों के त्याग की नीव पर इस देश का निर्माण हुआ है, शंकराचार्य का शुद्ध विराग लेकर आते हैं। यह भी सच है कि जब- जब भारत का गौरव खतरे में पड़ता है तब तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में आग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भाग्य लिए आते हैं।
भारत पर चीन के आक्रमण के समय भारत का गौरव घायल हुआ है । इसीलिए भारत के लोग चोट खाये भुजंग की तरह क्रोदित हो कर सुलगी हुई आग बना देते हैं । जब किसी जाति का आत्म सम्मान चोट खाता है, आग प्रचंड हो कर बाहर आती है। यह चोट खाये स्वदेश का बल वही है। ऐसी परिस्थिति में देश के उद्धार के लिए परशुराम जैसे वीर आदर्श पुरुष की प्रतीक्षा करते हैं । परशुराम के आदर्शों के बल पर भारत का भाग्योदय संभव है ।
3. किसी एक पाठ का सारांश 20 पंक्तियों में लिखिए । (1 × 6 = 6)
1. ‘अपना पराया’ पाठ का साराँश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत कहानी ‘अपना पराया’ के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है । आपका जन्म कौडियागंज, अलीगढ़ में 1905 ई में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ । गाँधीजी के प्रभाव से असहयोग आंदोलन में भाग लेकर जेल भी गये । आपकी पहली कहानी ‘विशल भारत में प्रकाशित हुई । आपका पहला उपन्यास ‘परख’ है ।
सारांश : जैनेंद्र कुमार जी ने इस कहानी में लंबी अवधी के बाद युद्ध क्षेत्र से घर लौटते एक सिपाही की मनोभावनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है ।
एक सिपाही लंबी अवधी के बाद युद्ध क्षेत्र से घर लौटते हुए एक सराय में टहरकर अपने घर-परिवार की कल्पनाएँ करता है । सिपाही सपने में घर की बातें देखने लगा । उसकी पत्नी पाँच साल से विधवा की भाँती रही, प्रेम-संभाषण के लिए अवकाश नही निकाल पाती । बेचारी कितनी कष्ट उठाती थी । किस प्रकार मेरे पीछे दिन काटे ? बे पैसे, बे- आदमी, साढ़े चार साल का बेटा करनसिंह कैसा है ? जैसे सपने देखता ही था इतने में सिपाही की नींद टूटी। देखा घर की मंजिल अभी दूर है 1 और बातचीत के लिए सरायवाले को बुलाया और कहा- युद्ध क्षेत्र में हम जितने दुश्मनों को मारते है उतना ही नाम सम्मान और प्रतिष्ठा देते है ।
सिपाही बातें करता रहा, भटियारा सुनता रहा। जब रात हुई सिपाही खा – पीकर सोने लगा । इतने में जोर से एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पडी । .बच्चे को माँ कितनी बार समझाने पर भी रोता ही रहा । आखिर सिपाही को नींद असंभव हो गई । भटियारे को बुलाकर कहा बच्चा और उसकी माँ को यहाँ से कही दूर भेजने का आदेश दिया । बच्चे की माँ के अनुरोध पर भटियार का मन बदलगया । लेकिन सिपाही की खफगी का उसे डर था । बच्चा, और प्रबल से रोता रहा ।
यह काम भटियारे से न होगा समझकर इस बार स्वयं सिपाही ही उस स्त्री की कोठरी के पास जाकर कहा – “देखो, तुमको इसी वक्त बच्चे को लेकर चले जाना होगा’। बच्चा रोता रहा स्त्री चुपचाप उठी, बच्चे को उठाकर सिपाही के पैरों में डालकर मैं चली जाती हूँ ! बच्चे को जहाँ चाहे फेंक दो ।” कहती हुई चलने लगी । सिपाही कहता है – ” ठहरो – ठहरों कहाँ जाती हों । स्त्री ने उत्तर दिया ‘मुझे जहाँ मौत मिले वहाँ जाती हूँ ।’
जब सिपाही के मन में एकदम परिवर्तन आजाता है और कहता है “तो तुम कौन हो, कहाँ से आ रही हो, किधर जाती हो’ स्त्री ने कहा-‘ पाँच बरस से बच्चे के बाप की तलाश में घूमती हूँ। वह लडाई पर गया। पता नही जिंदा है या मर गया । शायद लौटते हुए रास्ते में मिल जाय । मैं उसी के पास इस बदनसीब बच्चे को ले जा रही हूँ ।”
सिपाही की आँखो में आँसू आगये । तब सिपाही को पता चला कि वह बच्चा अपना ही है और वह स्त्री अपनी पत्नी । बच्चे को पैरो पर से उठाया, प्यार किया और वह अत्यंत ममत्वपूर्ण हो उठता है ।
विशेषताएँ : सैनिक के मनोभावनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण ፡ प्रस्तुत किया गया । यह एक मौलिक चिंतन है जो देश के लिए अपने परिवार को छोडकर सुदूर सीमा पर रहनेवाले सिपाही की है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जैनेंद्र कुमारजी की कहानियों की विशेषता है ।
2. ‘आलस्य और दृढ़ता पाठ का सारांश लिखिए !
उत्तर:
लेखक-परिचय : प्रस्तुत पाठ ‘आलस्य और दृढ़ता’ के लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं । आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ एक प्रबोधात्मक लेख है । लेखक ने इस लेख के द्वारा जीवन में आलस्य को छोड़ने तथा दृढ़ता को अपनाने का संदेश दिया है । उनके अनुसार आज की युवापीढ़ी के लिए इससे अच्छा संदेश दूसरा नहीं होगा कि ‘कभी आलस्य न करें।’ आलस्य का अर्थ है सुस्ती । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित रूप से करना चाहिए । इस प्रकार किसी काम को रोज नियमित ढंग से करने से एक वर्ष के बाद हम उस काम में माहिर बन जायेंगे । इस नियम के द्वारा हमारे सामने चाहे जितना भी बड़ा लक्ष्य हो, उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है। बीज तो देखने में छोटा ही है किन्तु उसीमें एक बड़ा वृक्ष छिपा रहता है ।
लेखक कहते हैं – “जल्दबाजी और अस्थिरता जीवन में आलस्य की तरह बुरे गुण हैं। आलसी आदमी व्यर्थ ही मुश्किलों का आह्वान करता है । जिन्दगी में वही सफल मनुष्य कहलायेगा जो व्यर्थ प्रलापों में समय नष्ट नहीं करता और हर समय काम में लगा रहता । जो समय नष्ट करता है वह अपने घर को चोरों के लिए छोड़ रखे मकान मालिक जैसा ही मूर्ख है ! एक काम के पूरा होने के बाद ही दूसरे काम में लगना श्रेष्ठता की पहचान है । परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । यह संसार मेहनती लोगों के लिए है । इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है । आलस्य को छोड़ने से मन की दृढ़ता अपने आप आ जाती है |
दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विघ्न-बाधाओं के बारे में नहीं सोचता । वह पक्के मन से कार्यक्षेत्र में उतरता हैं। ऐसे दृढ़वान मनुष्य की लगन के सामने चाहे कितना भी बड़ा संकट हो, टिक नहीं सकता । सामने की कठिनाई को देखकर हमें साहस छोड़ना नहीं चाहिए । दृढ़ता से एक-एक कदम आगे बढ़ायेंगे तो चाहे पहाड़ जितना भी बड़ा हो, आसानी से उसकी चढ़ाई की जा सकती है। विशेषकर, किसी कार्य के आरंभ होने से पहले उस कार्य की विघ्न-बाधाओं को देखकर डरना नहीं चाहिए । क्योंकि आरंभ में सभी कार्य कठिन होते हैं । वह आदमी जिन्दगी में कुछ भी नहीं कर सकता जो यह सोचकर पासा पटक देता है कि पहली बार ही उसे खेल में जीत नहीं मिली । परिश्रम और सबर जिन्दगी के खेल में बहुत महत्वपूर्ण हैं ।”
विशेषताएँ: इस लेख के द्वारा रचइता ने जीवन के कई मूल्यों को बहुत प्रभावशाली ढंग से सिखाया । लेख में अंग्रेजी साहित्य से भी कई उदाहरण दिये गये । इससे लेखक के गहन अध्ययन का पता चलता है । यह पाठ युवाओं के लिए अत्यंत मूल्यवान है । भाषा सरल व गंभीर है और शैली प्रवाहमान है ।
4. किसी एक एकांकी का सारांश लिखिए । (1 × 6 = 6)
1. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जाने- माने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य सृजन भारतीय. समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है । इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं। प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं ।
उमा एक पढ़ी लिखी युवती है । वह मेहनत करके बी. ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं। एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी बेटी का विवाह कर देना चाहता है। जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है । शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है। लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी हों । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ़ मेट्रिक पास है । दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता । वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे। उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जायें ।
निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है । पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं । वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो। इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है। गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर, में होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए | उनमें शिक्षा भी एक है । वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम बस घर को संभालना है ।
रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है। गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती । उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है । वह कहती है कि बाजार में कुर्सी – मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती । दूकानदार बस …. उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं । उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है । उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है । वे बाजार में देखकर, खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं । वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी । इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है । उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी. ए. पास की हैं । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं | उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’ यही पर एकांकी समाप्त होता है ।
विशेषताएँ : प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है। लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की – शिक्षा’ है। उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं। रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया | भाषा . और शैली प्रवाहमान है ।
2. ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
महाभारत की एक साँझ एकांकी में भारतभूषण अग्रवाल ने दुर्योधन के प्रति सहानुभूति जताया हैं ।
पाँडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युध्द चलता है । युद्ध अंतिम दशा तक पहुँचता है । अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा संजय, धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखो दिखा वर्णन करता रहता है । युद्ध के परिणामों को देखकर धृतराष्ट्र अंत मे पछताता है । और संजय से कहता है कि यह किसके पापों का फल है 1. क्या पुत्र – प्रेम अपराध है, 2. धृतराष्ट्र के दुःख को देखकर संजय शांत होने केलिए सांत्वना देते है ।
युद्ध की अंतिम दशा का विवरण धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं । संजय बताते है कि आत्मरक्षा का उपाय न मिलने पर सुयोधन कुरुक्षेत्र के निकट द्वैतवन के सरोवर मे घुस गये और जल स्तंभ से छिपकर बैठे है ।
यह समाचार अहीरों के द्वारा पाण्डवो को मालूम हुआ तो वे दुर्योधन को तरह- तरह से ललकार कर युद्ध केलिए उकसाते हैं । युधिष्ठिर और भीम के उकसाने से सरोवर से बाहर आकर, दुर्योधन युद्ध करने केलिए सिद्ध हो जाते है ।
यह विवरण, संजय धृतराष्ट्र को बता रहे है । पाण्डवो ने विरक्त सुयोधन को युद्ध के लिए विवश किया । पाण्डवों की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे। दोनो वीरो ने भयंकर युद्ध किया । सुयोधन का पराक्रम सबको चकित कर देता था । ऐसा लगता था मानों विजयश्री अंत में सुयोधन का , वरण करेगी। पर तभी श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंधा में गदा का भीषण प्रहार किया । कुरूराज सुयोधन आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पडे ।
संजय के द्वारा पुत्र की स्थिति सुनते ही पिता का हृदय बिघल जाता है । पुत्र प्रेम से अंधा होकर धृतराष्ट्र. पांडवो को हत्यारे, अधर्मी कहने लगते है । जब सुयोधन आहत होकर निस्सहाय भूमिपर गिर पडे तो पाण्डव जय ध्वनि करते और हर्ष मनाते अपने शिविर को लौट गये । संध्या होने पर पहले अश्वत्थामा आएं और कुरूराज की यह दशा देखकर बदला लेने का प्रण करते हुए चले गये । फिर युधिष्ठिर आए । सुयोधन के पास आकर वे झुके और शांत स्वर में उन्हे सांत्वना देने केलिए तरह- तरह से समझाते है ।
सुयोधन और युधिष्ठिर के बीच धर्माधर्म की काफी लंबी चर्चा होती है । युधिष्ठिर चाहे जितना समझाने पर भी सुयोधन में पश्चत्ताप की लेशमात्र भावना भी नही होती है ।
अंत में दुर्योधन कहता है – “मुझे कोई ग्लानी नही, कोई पश्चत्ताप नही है, केवल एक केवल एक दुख मेरे साथ जाएगा यही – यही कि मेरे पिता अंधे क्यो हुए।” इस अंतिम वाक्य से एकांकी समात्प होती है।
विशेषता : इसमें महाभारत युद्ध के उपरान्त दुर्योधन और पांडवो के भावपूर्ण मिलन – अवसरो का चित्रण किया गया |
5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । (2 × 4 = 8)
1. अराति सैन्य सिंधु में सुवाडवाग्निसे जलो ।
प्रवीर हो जयी बनी – बढ़े चलो, बढ़े चलो ।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी ( महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ |
संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियों को उत्तेजित करते हुए देशभक्ति की मशाल जला रहे हैं ।
व्याख्या : भारत देश के गौरव चिह्न हिमालयों के द्वारा माता भारती अपने सुपुत्रों को बुला रही है । स्वाधीनता के संघर्ष में भाग लेने को प्रेरित कर रही है । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसी अनन्त है । उस को हराना हँसी खेल नहीं है । फिर भी देश स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढ़ना ही होगा । ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा । अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा । आप कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे ।
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है। यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।
2. सफल हो सहज हो तुम्हारा त्याग,
नहीं निष्फल मेरा अनुराग,
सिद्धि है स्वयं साधन – भाग,
सुधा क्या, क्षुधा न जो होती ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ऊर्मिला का विरह गान’ नामक कविता से दी गयी हैं । इसके कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिकं खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं । खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई. को झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ । गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, चिंतक, विद्वान है साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष, भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ । गुप्त जी को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया ।
संदर्भ : ये पंक्तियाँ उर्मिला वनवास को गये लक्ष्मण को याद करती हुई दुःख भाव से कहती है ।
व्याख्या : हे प्रियतम ! मुझे आयोध्या के राजभवन में छोड़ कर तुम राज्य के भोगों को त्याग कर श्रीराम, सीतादेवी के साथ वनवास को सुख चले गये | तुम्हारा त्याग सहज तथा सरल, सफल होने की कामना करती हूँ । और आपके प्रति मेरा अनुराग कभी भी निष्फल नहीं जायेगा । आपको स्वयं सिद्धि भाग कर आपके पास पहुंचेगी । अमृत की तृषा में भूख भी नहीं होती ।
विशेषताएँ : अपने पती के वियोग, विरह में विदग्ध उर्मिला का वर्णन है । वियोग श्रृंगार का सफ़ल प्रस्तुतीकरण है । भाषा शुद्ध खडीबोली है। से ओतप्रेत है ।
3. डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगुना उत्साह इसी हैरानी में ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं। आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के. प्रवर्तक माने जाते हैं । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं ।
संदर्भ : प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते है” समुंदर में डुबकी लगाकर मोतियों का अन्वेषण करते गोताखोरो को देखिए कितनी बार खाली हाथ लौटकर आते हैं। पर हर डार के बाद वे दुगुना उत्साह लेकर कोशिश करते है । वे तब एक लगातार प्रयास करते रहते है। जब तक मोती उनके हाथ नही आते । किसी न किसी दिन उनकी मुटिठयां मोतियों से भर जाती है ।
विशेषता: प्रस्तुत कविता पाठकों में आशावाद एवं उत्साह भरनेवाली है । कविता उपदेशात्मक एवं प्रभावशाली है । भाषा बहुत सरल है ।
4. गाँधी – गौतम का त्याग लिये आता है,
शंकर का शुद्ध विराग लिये आता है ।
सच है, आँखों में आग लिये आता है,
पर यह स्वदेश का भाग लिये आता है ।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं | आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ ।
संदर्भ : कवि दिनकर जी इन पंन्तियों के माध्यम से भारत की गारिमा का गान गा रहे हैं ।
व्याख्या : इस देश में महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों के त्याग की नीव पर इस देश का निर्माण हुआ है, शंकराचार्य शुद्ध विराग लेकर आते हैं । यह भी सच है कि जब- जब भारत का गौरव खतरे में पड़ता है तब – तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में आग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भाग्य लिए आते हैं ।
विशेषताएँ : इस देश के वीर सपूतों के त्याग, बलिदानों तथा वीरत्व का विशेष वर्णन है । ऐसी कविताएँ देश के प्रति भक्ति तथा प्रेम को उभारती है ।
6. निम्नलिखित में से किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । (2 × 4 = 8)
1. उसकी पन्ती जो पाँच साल से विधवा की भाँति रह रही है, उसके पहुँचने पर काम – धाम में बहुत व्यस्त है, प्रेम- संभाषण के लिए तनिक अवकाश नहीं निकाल पाती ।
उत्तर:
कविपरिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अपना पराया’ नामक कहानी से दी गई है । कहानी के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है। आप हिन्दी कहानी क्षेत्र में मनोविश्लेषणवादी रचनाकार के रूप में सुपरिचित हैं । आपका जन्म 1905 ई – अलीगढ़ के कौडियागंज में हुआ । गांधी जी के प्रभाव से असहयोग आन्दोलन में भागलेने के कारण जेल भी गये! जेल के वातावरण से ही कहानियाँ लिखने की प्रेरणा मिली! आपने भाषा. की सहजता शिल्पगत सूक्ष्मता पर अधिक बलदिया है ।
संदर्भ : एक सिपाही लंबे समय के बाद घर लौटते समय अपनी पत्नी परिवार के बरे में स्वप्न देखता है ।
व्याख्या : एक सिपाही युद्ध क्षेत्र से लंबी अवधी के बाद घर लौटते समय सडक के किनारे एक सराय में टहरता है । उसे जल्दी नींद आजाती है । सपने में घर की बातें देखने लगता है उसकी पत्नी जो पाँच साल से विधवा जैसे रह रही है! उस के पहुँचने पर भी काम धाम में व्यस्त रहती है । प्रेम – संभाषण के लिए तनिक समय नहीं निकाल पाती है । पती से बची बची काम कर रही है । और कल्पना करता है कि… इस बेचारी ने उसके बगैर विपदाओं में किस प्रकार समय काटा होगा ।
विशेषताएँ : इन पंक्तियों के माध्यम से जैनेद्र जी ने एक सिपाई की परिवार के प्रति आकांक्षाओं को प्रस्तुत किया है। भाषा सरल एवं सहज है ।
2. यह बात अच्छी तरह समझ ली जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाये संसार में कोई काम नहीं हो सकता ।
उत्तर:
संदर्भ : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया । इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं | आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दीविभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।
व्याख्या : लेखक के अनुसार परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । हमें समझ लेना चाहिए कि इस संसार में पसीना बहाये बिना कुछ भी संभव नहीं होगा । यह संसार मेहनती लोगों के लिए है । इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे. रहनेवाला मनुष्य हीं आगे चलकर गौरव पा सकता है ।
विशेषता : यह एक प्रबोधात्मक लेख है । भाषा भावानुकूल है । ‘सरल उदाहरणों से लेख प्रभावशाली बन पड़ा ।
3. यदि सोना को अपने स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए मेरे सर के ऊपर कूदना आवश्यक लगेगा तो वह कूदेगी ही ।
उत्तर:
कवि परिचय : ये पंक्तियाँ सोना हिरनी नामक रेखाचित्र से दिया गया है । इस की लेखिका महादेवी वर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ है । हिन्दी साहित्य में छायावाद की प्रमुख लेखिका के साथ साथ संस्मरण तथा रेखाचित्र लेखिका के रूप में सुपरिचित है । आप की प्रमुख रचनाएँ है नीहार, नीरजा, संध्यगीत, दीप शिखा, अतीत के चलचित्र, क्षणदा, श्रृंखला की कडियाँ, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार आदि । इन को ‘यामा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है ।
संदर्भ : लेखिका अपनी पालतू हिरन स्नेह से जुड़े रहने के बारे में बता रही है ।
‘व्याख्या : लेखिका कह रही है – अनेक विद्यार्थियों की भारी भरकम गुरु जी से सोना का क्या लेना देना था । वह तो उस दृष्टि को पहचान ती थी जिसमें उनका प्यार छलकता था और उन हाथों को जानती थी जिन्हों ने यन्नपूर्वक उसे दूध की बोतल मुह से लगाथी । सोना अपने स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए लेखिका के सिर के ऊपर से कूदना आवश्यक लगेगा तो वह कूदेगी ही । लेखिका की किसी अन्य परिस्थितियों से प्रभावित होना उसके लिए संभव ही नहीं था ।
विशेषताएँ : जंगल के प्रणि मात्र के प्रति मनुष्य की संवेदना का सजीव चित्रण है । हिरन जंगली जीवी होते हुए भी मनुष्य के साथ मिल कर घुल – मिल जाने की रसात्मक कथा है ।
4. उसने डिबिया बंद करके अपनी जेब में रख ली। फिर उसने आग जलाकर उस में सुगंध डाली और मंत्र पढ़ा जिससे वह महल गायब हो गया और गुफा और टीला भी गायब हो गया ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य अंधे बाबा अब्दुल्ला नामक पाठ से लिया गया है । यह कहानी ‘अलिफ लैला की कहानियाँ’ में से संकलित है। इस कहानी का मुख्य पात्र अब्दुल्ला है ।
व्याख्या : अब्दुल्ला और फकीर 80 ऊँटो में रत्न और अषर्फियाँ लादते समय बाजूवाले कमरे के संदूक से एक लकडी की डिबिया मिलती है जिसमें मरहम रहता है। उस डिबिया को लेकर गुफा से बाहर आते ही मंत्र पढकर फकीर गुफा को गायब करदेता है ।
विशेषता : यह दृश्य चमत्कृत एव अद्भुत है । यह कहानी तिलिस्म और अय्यारी से मनोरंजक और रोचक बनगयी है ।
7. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)
1. काम में दृढ़ता से लगे रहने से क्या प्रयोजन है ?
उत्तर:
काम में दृढ़ता लगे रहने से काम आसानी से पूरा हो जाता है । दृढ़ता के कारण सुस्ती नहीं आती और कार्य में निरंतरता बनी रहती है । दृढ़ता से युक्त मनुष्य ही संसार में यथार्थ गौरव पा सकता है ।
2. कुत्ते का स्वभाव क्या है ?
उत्तर:
कुत्ता स्वामि और सेवक में अंतर जानता है और स्वामी की प्रत्येक मुद्रा से परिचित रहता है। स्नेह से बुलाने पर गद्गद होकर निकट आ जाता है और क्रोध करते ही सभीत और दयनीय बनकर दुबक जाता है ।
3. मरहम की विशेषता क्या है ?
उत्तर:
‘मरहम’ जख्म होने पर लगाया जानेवाला एक लेप है । मगर यहाँ इसकी विशेषता है कि – मरहम को एक बाई अँख में लगाओंगे तो सारे संसार के गुप्त कोश दिखाई देने लगेंगे । किन्तु अगर इसे दाहिनी आँख में लगायेंगे सर्देव केलिए अंधे हो जायेंगे ।
4. डाकुओं के सरदार ने क्या कहा ?
उत्तर:
डाकुओं के सरदार ने कहा- हमें उल्लू बनाना चाहता है ? अपने घर की तिजोरी का नंबर इसे नहीं मालूम है ? लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
8. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)
1. दुर्योधन ने कौन – सा कटु सत्य कहा ?
उत्तर:
दुर्योधन ने कटु सत्य यह कहा कि – पाण्डवो ने ही अपने कृत्य से वनवास पाकर भी दोष मुझ पर ( दुर्योधन) लगाया है । उस वनवास में पांडवो ने एक – एक क्षण युद्ध की तैयारी में लगाया गया । अर्जुन ने तपस्या द्वारा नये शस्त्र प्रप्त किए. विराट राजा से मैत्री कर नये संबंध बनाए गए और वनवास अवधि पूर्ण होते ही अभिमन्यु के विवाह के बहाने सारे राजाओं को निमंत्रण भेजकर एकत्र किया ।
2. डॉ. बहादूर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए क्या जानना जरूरी है ?
उत्तर:
डॉ. बहादुर के ‘अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए जानना जरूरी है कि एक तो वह सांप था या नही, दूसरा अगर सांप था तो जहरीला था या नही, तीसरे अगर जहरीला था तो किस जाति का सांप था ।
3. उमा किसकी ‘रीढ़ की हड्डी’ की बात कहती है और क्यों ?
उत्तर:
उमा, शंकर के रीढ़ की हड्डी की बात कहती है । शंकर का अपना कोई व्यक्तित्वं नहीं है । वह अपने पिता के हाथ का कठपुतला है । ‘रीढ़ की हड्डी’ किसीके स्वतंत्र व्यक्तित्व का प्रतीक है। इसलिए उमा एकांकी के अंत में गोपालप्रसाद से कहती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’
4. शर्मा के अनुसार डॉक्टर साहब क्या जानना चाहेंगे ।
उत्तर:
शर्मा के अनुसार डाक्टर साहब यह जानना चाहेंगे कि – मरीजो की भलाई के लिए सारी खास खास बातें परचे में लिख देना चाहते हैं जिससे डाक्टर साहब एक नजर डालते ही सारा केस समझ जायें और तुरंत इलाज हो जाय ।
9. निम्नलिखित प्रश्नों का वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)
1. तुलसीदास का जन्म कहा हुआ ?
उत्तर:
तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर (चित्रकूट) गाँव मे हुआ है ।
2. बिहारी किसके भक्त थे ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ।
3. ‘हिमाद्रि से’ कविता के कवि कौन हैं ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद
4. किसकी मेहनत बेकार नहीं होती ?
उत्तर:
चींटी की मेहनत बेकार नहीं होती ।
5. हालावाद के प्रवर्तक कौन हैं ?
उत्तर:
हालावाद के प्रवर्तक श्री हरिवंशराय बच्चन हैं ।
10. निम्नलिखित प्रश्नों का एक वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)
1. ‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ के लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ के लेखक डॉ.. श्यामसुंदर दास हैं ।
2. डॉ. श्यामसुंदर दास के माता- पिता का नाम क्या था ?
उत्तर:
डॉ. श्यामसुंदर दास के माता-पिता का नाम था देवीदास और देवकी देवी ।
3. मनुष्य किसको असुंदर और अपवित्र मानता है ?
उत्तर:
मनुष्य मृत्यु को असुन्दर ही नहीं अपवित्र भी मानता है ।
4. डाकू ने बल्लम कहाँ रखा ?
उत्तर:
मैनेजर के सर पर ।
5. युद्ध में मारने का काम क्या होता है ?
उत्तर:
युद्ध में मारने का नाम ‘बहादूरी’ होता है ।
खंड – ख (40 अंक)
11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीखिए । (5 × 2 = 10)
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर ‘बाबा साहेब’ के नाम से लोकप्रिय थे । आप भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे । वे भारत संविधान के निर्माता थे । उन्होंने भारत के संविधान की • रचना करके 26 नवंबर, 1949 में संविधान सभा को समर्पित किया था । बाबा साहेब का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित नगर सैन्य छावनी ‘महूँ’ में हुआ था । उनका परिवार मराठी था वे आंबडवे गाँव जो रत्नागिरि जिले में है । बाबा साहेब ने ‘कोलंबिया विश्वविद्यालय’ और ‘लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स’ दोनों विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की । वे भारत के प्रथम कानूनी मंत्री थे । मार्च, 1952 में उन्हें संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और इसके बाद उनकी मृत्यु 6 दिसंबर, 1956 तक वे इस सदन के सदस्य (एम. पी.) रहे । सन् 1990 में बाबा साहेब के मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से उन्हें सम्मानित किया गया था । प्रति वर्ष 14 अप्रैल को उनका जन्म दिन भारत में ‘अंबेडकर जयंती’ के रूप में मनाया जाता है ।
प्रश्न :
1) भारत के संविधान के निर्माता कौन थे ?
उत्तर:
भारत के संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर जी थे ।
2) अंबेडकर ने संविधान को कब समर्पित किया ?
उत्तर:
अंबेडकर ने संविधान को 26 नवंबर, 1949 को समर्पित किया ।
3) अंबेडकर ने किन – किन विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट प्राप्त की ?
उत्तर:
अंबेडकर ने ‘कोलंबिया विश्वविद्यालय’ और ‘लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स विश्वविद्यालयो में अर्थशास्त्र के डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।
4) अंबेडकर को भारत रत्न के पुरस्कार से कब सम्मानित किया ?
उत्तर:
अंबेडकर को भारत रत्न के पुरस्कार से सन् 1990 में सम्मनित किया !
5) अंबेडकर जयंती कब मनायी जाती है ?
उत्तर:
अंबेडकर जयंती प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को मनायी जाती है ।
12. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों का संधि विच्छेद कीजिए । (5 × 1 = 5)
1. हिमालय
2. पुनर्जन्म
3. सन्मार्ग
4. गायक
5. विद्यार्थी
6. निष्फल
7. वाग्दान
8. देवर्षि
9. महेश्वर
10. भूषण
उत्तर:
1. हिमालय = हिम + आलय.
2. पुनर्जन्म = पनः + जन्म
3. सन्मार्ग = सत् + मार्ग
4. गायक = गैः + अक
5. विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
6. निष्फल = निः + फल
7. वाग्दान = वाक्+ दान
9. महेश्वर = महा + ईश्वर
8. देवर्षि = देव + ऋषि
10. भूषण = भू + षन
13. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों के समास के नाम लिखिए । (5 × 1 = 5)
1. चौमास
2. कवि श्रेष्ठ
3. दाल – रोटी
4. सुख प्राप्त
5. थोड़ा – बहुत
6. अनाचार
7. लम्बोदर
8. रसोईघर
9. पंकज
10. दीनदयालु
उत्तर:
1. चौमासा = द्विगु समास (विग्रहवाक्य : चार मासों का समूह)
2. कवि श्रेष्ठ = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : कवियों में श्रेष्ठ)
3. दाल – रोटी = द्वंद्व समास (विग्रहवाक्य : दाल और रोटी)
4. सुख प्राप्त = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : सुख को प्राप्त करनेवाला)
5. थोड़ा – बहुत = द्वंद्व समास (विग्रहवाक्य : थोडा या बहुत )
6. अनाचार = नञ तत्पुरुष समास ( विग्रहवाक्य : न आचार)
7. लम्बोदर = बहुव्रीहि समास (विग्रहवाक्य : जिसका उदर लम्बा हो)
8. रसोईघर = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : रसोई के लिए घर)
9. पंकज = बहुव्रीहि समास (विग्रहवाक्य : पंक मे जन्म लेनेवाला)
10. दीनदयालु = कर्मधारय समास (विग्रहवाक्य : दीनों पर दयालु)
14. (अ) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को हिंदी में अनुवाद कीजिए । (5 × 1 = 5)
1) What is this ?
उत्तर:
यह क्या है ?
2) Joshi is a good administrator.
उत्तर:
जोशी एक अच्छा प्रशासक है ।
3) Madhuri, Rani are singing a song.
उत्तर:
माधुरी, रानी गीत गा रही है ।
4) Respect your teacher.
उत्तर:
अध्यापकों का सम्मान करो ।
5) Give respect, Take respect.
उत्तर:
सम्मान दीजिए, सम्मान लीजिए ।
6) Srikanth ate bread.
उत्तर:
श्रीकांत ने रोटी खाई ।
7) Cow gives milk.
उत्तर:
गाय दूध देती है ।
8) Visakhapatnam is a beautiful city.
उत्तर:
विशाखापट्टणम एक सुंदर नगर है ।
9) He is going.
उत्तर:
वह जा रहा है ।
10 ) Beauty is Truth.
उत्तर:
सौंदर्य ही सत्य है ।
(आ) निम्नलिखित वाक्यों में से पाँच वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए । (5 × 1 = 5)
1) विजयश्री ने फूल लायी । (अशुद्ध)
उत्तर:
विजयश्री फूल लायी । (शुद्ध)
2) तुम पढ़ रहे हैं । (अशुद्ध )
उत्तर:
तुम पढ़ रहे हो । (शुद्ध)
3) तू क्या कर रहे हो ? (अशुद्ध)
उत्तर:
तू क्या कर रहा है ? (शुद्ध)
4) मैंने कल गाँव गया । (अशुद्ध)
उत्तर:
मैं कल गाँव गया । (शुद्ध)
5) श्रीदेवी पाठ पढ़ता है । (अशुद्ध)
उत्तर:
श्रीदेवी पाठ पढ़ती है । (शुद्ध)
6) वह गुंटूर जाना है। (अशुद्ध )
उत्तर:
उसे गुंटूर जाना है। (शुद्ध) (वह + को = उसे)
7) अध्यापक आते ही विद्यार्थी चले गये । (अशुद्ध )
उत्तर:
अध्यापक के आते ही विद्यार्थी चले गये । (शुद्ध)
8) राम वन जाना पड़ा । (अशुद्ध )
उत्तर:
राम को वन जाना पड़ा । (शुद्ध)
9) दशरथ की तीन रानियाँ थीं । (अशुद्ध)
उत्तर:
दशरथ के तीन रानियाँ थीं । (शुद्ध) (संबंधी)
10) अर्जुन का एक मकान है । (अशुद्ध )
उत्तर:
अर्जुन के एक मकान है । (शुद्ध) (स्थिर संपत्ति)
15. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षिप्तीकरण कीजिए । (1 × 5 = 5)
मनुष्य के लिए प्रतिभा नहीं, उद्देश्य आवश्यक है । विश्वास करिए, आँख मींच कर फेंका हुआ तीर अपना लक्ष्य नहीं बेध सकता, अंधे होकर भागने से मार्ग नहीं कट सकता, आँख मूंद कर बेमौसम बीज फेंकनेवाला किसान कभी सफल नहीं होता । भला आप उस व्यक्ति के बारे में क्या सोचेंगे जो गाड़ी में सवार होने के लिए स्टेशन पर पहुँचा हुआ है, पर जिसे यह नहीं मालूम कि उसे कहाँ जाना है। हम सब भी विश्व के रंगमंच पर आए हुए हैं। जीवन की नौका को संसार में खेने से पूर्व हमें जान लेना चाहिए कि हमें जाना कहाँ है । अतः हम अपनी इन बंद आँखों को खोल लें, उद्देश्य बनाएँ और चल पढ़ें । जिस नायिक ने लक्ष्य स्थिर नहीं किया उसके अनुकूल हवा कभी नहीं चलेगी। तुम शव नहीं हो कि संसार सागर की लहरें जिस किनारे चाहें तुम्हें पटक दें, परिस्थितियाँ जिधर चाहें ले चलें । भाग्य के नाम पर तुमको प्रवाह में बहना नहीं है अपितु प्रवाह का रुख बदलना है ।
उत्तर:
मानव जीवन का उद्देश्य
मनुष्य के विषय में प्रतिभा की तुलना उद्देश्य अहं है | बिना उद्देश्य के चलनेवाले का रास्ता कठिन बन जाता है । जीवन के आरंभ से ही उद्देश्य तथा लक्ष्य को निर्धारित करना है । उद्देश्य को तय करने से भाग्य के प्रभाव को भी बदला जा सकता है ।
16. निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच वाक्यों का वाच्य बदलिए । (5 × 1 = 5)
1) महेश से पुस्तक पढ़ी जाती है । (कर्म)
उत्तर:
महेश पुस्तक पढ़ता है । (कर्तृ) (पुस्तक – स्त्रीलिंग)
2) मैं प्रतिदिन व्यायाम करता हूँ । (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे प्रतिदिन व्यायाम किया जाता है । (कर्म) (व्यायाम – पुलिंग )
3) लड़कियाँ नहीं दौड़ सकतीं । (कर्तृ)
उत्तर:
लड़कियों से दौड़ा नहीं जाता । (भाव)
4) उससे चावल खाया जाएगा । (कर्म)
उत्तर:
वह चावल खाएगा । (कर्तृ) ( फूल – पुलिंग)
5) मौनिका गीत गाती है । (कर्तृ)
उत्तर:
मौनिका से गीत गाया जाता है । (कर्म) (गीत – पुलिंग)
6) कुमार हिंदी सीखेगा । (कर्ता)
उत्तर:
कुमार से हिंदी सीखी जाएगी। (कर्म) (हिंदी – स्त्रीलिंग)
7) मैं नहीं चल सकता । ( कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे चला नहीं जाता । (भाव)
8) रामबाबू मिठाई खाएगा । ( कर्तृ)
उत्तर:
रामबाबू से मिठाई खायी जाएगी। (कर्म) (मिठाई – स्त्रीलिंग)
9) प्रेमचंद उपन्यास लिख रहा है । (कर्तृ)
उत्तर:
प्रेमचंद से उपन्यास लिखा जा रहा है । (कर्म) (उपन्यास – पुलिंग)
10) तुलसीदास से रामचरित मानस लिखा गया । (कर्म)
उत्तर:
तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखा । (कर्तृ)