AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 3 with Solutions

Access to a variety of AP Inter 2nd Year Hindi Model Papers Set 3 allows students to familiarize themselves with different question patterns.

AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 3 with Solutions

Time : 3 Hours
Max Marks : 100

सूचनाएँ :

  1. सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
  2. जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।

खंड – क ( 60 अंक)

1. निम्नलिखित दोहे की पूर्ति करते हुए भावार्थ सहित विशेषताएँ लिखिए । (1 × 8 = 8)

तुलसी मीठे वचने ……………………
………………….. परिहरु वचन कठोर ||
उत्तर:
भावार्थ : कवि तुलसीदास इस दोहे माध्यम से कह रहे हैं – कोई भी व्यक्ति मीठे वचन बोलने से सब को अपने वश में कर ले सकते हैं अपनी ओर अकर्षित कर सकते हैं। अच्छी वाणी वशीकरण मंत्र के समान है | अच्छी वाणी से चारों ओर सुःख शांती फैली रहती है। अच्छी वाणी के कारण शत्रुता कभी भी पैदा नहीं होगी । इसलिए कठोर वचन को हमेशा के लिए त्याग कर वाणी में माधुर्य लाना चाहिए ।

अथवा

या अनुरागी चित्त ………………
……………….. त्यौं – त्यौं उज्ज्वलु होई ॥
उत्तर:
भावार्थ : कवि बिहारीलाल इस दोहे के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति अपने अट्टू प्रेम को प्रकट करते हुए कह रहे हैं “इस प्रेमी मन की स्थिति को कोई समझ नहीं सकता। जैसे जैसे मेरा मन कृष्ण के रंग में रंगता • जाता है, वैसे वैसे उज्ज्वल होता जाता है । अर्थात श्रीकृष्ण के प्रेम में रमने के बाद अधिक निर्मल हो जाता है । यही श्रीकृष्ण के प्रेम का महत्व है । अपने आप को निर्मल बनाने के लिए श्रीकृष्ण के प्रेम में रमने की अधिक आवश्यकता है ।”

2. किसी एक कविता का सारांश बीस पंक्तियों में लिखिए | (1 × 6 = 6)

1. ‘हिमाद्रि से’ कविता का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से’ कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं। प्रसाद जी. छायावादी कविता के प्रकाश स्तंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ

सारांश : प्रस्तुत गीत चंद्रगुप्त नाटक के चौथे अंक के छठे दृश्य से संकलित है | यह एक सामूहिक गीत है । अलका के भाई आम्भिक देशद्रोही है। गांधार नरेश पुरुषोत्तम के विरुद्ध यवनों को भारत पर हमला करने के लिए सिंधु तट पर सेतु का निर्माण करते वक्त उनके विरुद्ध में उनकी बहन अलका ने सब सैनिकों को युद्ध के लिए उत्साहित करती गाती है | मा भारती गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए वीर सैनिकों को बुला रही है । वह नींद से जगाती है । आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रही है | वह · स्वतंत्र हो कर अपनी संपत्ती का सदुपयोग करना चाहती है ।

युद्ध में मरनेवाले अमर हो जाते हैं भारतवासी ऐसे ही अमरों के पुत्र हैं। उन्होंने मातृभूमि को स्वतंत्र बनाने की प्रतिज्ञा की है । पूर्वजों से बना मार्ग उनके सामने हैं उसको उन्होंने प्रशस्त किया है ।
भारत माता स्वतंत्रता के लिए पुकार रही है । जागो हे अमर्त्य वीर पुरुषों जागो, भारत माता के सपूतों जागो । दृढ संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करो कि “भारत देश को आजाद बनायेंगे” इस सर्वश्रेष्ठ, पुण्य, उत्तम मार्ग निकल बढते चलो, बढ़ते चलो । विजयी बनो ।

संसार में इस देश की असंख्याक कीर्ति है । भारत माता के सुपुत्रों पवित्र मशाल बन कर जलते हुए तपते हुए उजालों को फैलाते आगे बढो… आगे बढो । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसे अनन्त है । उस को हराना हसी खेल नहीं है । फिर भी देश की स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढना ही होगा | ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा । अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा। तुम अच्छे वीर हो, तुम में सच्ची देश भक्ति है आवश्य विजयी बनो… बढ़ते चलो बढ़ते चलों । रुको मत हे वीर पुत्रों । तुम्हारा मार्ग प्रशस्त है । भारतीय कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे ।

विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुँह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।

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2. कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ – कविता का सारांश लिखिए |
उत्तर:
कवि – परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार
नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । आपने प्रयाग विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी प्रोफेसर के रूप में कार्य किया । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं । प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।

सारांश : कवि प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर कोशिश करने की सीख देते हैं । अपनी बात की पुष्टि के लिए वे अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं | वे कहते हैं – ‘”यदि लहरों से डर गयी तो नौका समुंदर में आगे नहीं बढ़ सकती, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में असफलताओं से डरना नहीं चाहिए । नन्हीं चींटी दाना लेकर दीवारों पर चढ़ती है, किन्तु कई बार फिसलकर नीचे गिर जाती है। फिर भी वह अपनी लगन नहीं छोड़ती और मंजिल पहुँचने तक उसका प्रस्थान नहीं रुकता । चींटी की कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती । जिनके मन का विश्वास, रगों के अंदर साहस को भरता है – वे चढ़ने और गिरने में संकोच नहीं करते ।

समुंदर में डुबकी लगाकर मोतियों का अन्वेषण करते गोताखोरों को देखिए वे कितनी बार खाली हाथ लौटकर आते हैं ! समुंदर में मोती बहुत गहराई पर होते हैं और इतनी आसानी से वे हाथ नहीं आते । पर हर हार के बाद वे दुगुना उत्साह लेकर कोशिश करते हैं । अर्थात् मोतियों को पाने की बेताबी के कारण उनका उत्साह बढ़ जाता है । ‘वे तब तक लगातार प्रयास करते रहते हैं जब तक मोती उनके हाथ नहीं आते । आखिर वे अपनी मनचाही वस्तु पाकर ही रहते हैं। किसी न किसी दिन उनकी मुट्ठियाँ मोतियों से भर जाती हैं । निरंतर कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती ।

इससे जानना चाहिए कि असफलता एक चुनौती है और उसे स्वीकार करना चाहिए। पिछले प्रयास में हमने क्या किया और उसमें क्या कमी है – इन बातों की समीक्षा करके अपने आपको सुधारना चाहिए । पुनः उत्साह से प्रयास करना चाहिए । जब तक सफल नहीं होते तब तक नींद और आराम को छोड़ देना चाहिए । मनुष्य को कदापि संघर्ष का मैदान छोड़कर भागना नहीं चाहिए | क्योंकि जीवन में यश की प्राप्ति आसानी से नहीं होती । उसके लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है ।”

विशेषताएँ : कवि ने निरंतर प्रयास का महत्व बहुत प्रभावशाली ढंग से समझाया । उनके अनुसार मनुष्य को कभी प्रयास रोकना नहीं चाहिए । कविता में प्रवाहमान शैली है। सरल और शुद्ध खड़ीबोली का प्रयोग हुआ है । कुल मिलाकर बच्चन जी की सफल कविता है ।

3. किसी एक पाठ का सारांश 20 पंक्तियों में लिखिए । (1 × 6 = 6)

1. ‘सोना’ रेखाचित्र का सारांश लिखिए |
उत्तर:
कवि परिचय : इस रचना की लेखिका महादेवी वर्मा जी जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ है । हिन्दी साहित्य में छायावाद की प्रमुख लेखिका के साथ साथ संस्मरण तथा रेखाचित्र लेखिका के रूप में सुपरिचित है । आप की प्रमुख रयनाएँ है – नीहार, नीरजा, संध्यगीत, दीप शिखा, अतीत के चलचित्र क्षणदा, श्रृंखला की कडियाँ, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार आदि । इन को ‘यामा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है ।

सारांश : प्रस्तुत ‘सोना हिरनी’ वर्मा जी का संस्मरणात्मक रेखचित्र हैं । इस रचना के माध्यम से प्राणिमात्र लिए अद्भुत संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं । महादेवी वर्मा जी को आज अचानक ‘सोना की याद आने का कारण है लेखिका के परिचित स्वर्गीय धीरेंद्रनाथ वसु की पौत्री सस्मिता ने लिखा है – उनके पडोसी से एक हिरन मिला था। जो उन्हें उसे पालने के लिए दिया था । कुछ ही महीनों में उस हिरन के साथ बहुत स्नेह हो गया था । ` वह अब बडी हो जाने के कारण अधिक विस्तृत स्थान चाहिए, स्थलविस्तृति के अभाव के कारण विश्वास के साथ लेखिका के यहाँ पालने देना चाहती है ।

लेकिन कई वर्षो पूर्व लेखिका ने निश्चय किया कि अब हिरन नहीं पालेंगी परंतु उस नियम को भंग किए बिना इस कोमल जीवी की रक्षा संभव नही है । सोना हिरनी भी इसी प्रकार अचानक आयी थी, परंतु वह अब तक शैशवावस्था पार नहीं की हैं। सुनहरे रंग के रेश्मी लच्छों की गांठ के समान उसका लघु शरीर था, छोटा सा मुँह बडी आँखें । सब उसके सरल शिशु रूप से प्रभावित हु कि किसी चंपकवर्णा रूपसी उपयुक्त सोना, सुवर्णा, स्वर्ण लेखा आदि नाम से परिचय बनाया । परंतु इस बेचारी हिरन शावक की कथा-व्यथा थी ।

बेचारी ‘सोना’ भी मनुष्य की निष्टुर मनोरंजनप्रियता के कारण अपने अरण्य परिवेश और स्वजाति से दूर मानव समाज में आ पडी है | प्रशांत `वनस्थली में जब अलस भाव से रोमान्थन करता हुआ मृग समूह शिकारियों की आहट से चौंक भागा । तब सोना और माँ प्रसूता – मृगशिशू होने के कारण भागने में असमर्थ रहे ऐसी स्थिती में सोना की माँ सोना को सुरक्षित रखने के यज्ञ में प्राण दिए । पता नहीं दया करुणा या कौतुक प्रियता के कारण शिकारी मृत हिरनी के साथ रक्त से सने ‘सोना’ को जीवित उठा लाया और उनमें से किसी की गृहिणि और बच्चों ने दूध पिला कर जीवित रखा | उस अनाथ मृगशावक को मुमूर्षावस्था में किसी लडकी ने लेखिका के पास लाया था।

सुनहले रंग का होने के कारण हिरण को ‘सोना’ कहने लगे । बहुसुंदर हिरन लिखिका से इतना घुल मिल गयी कि रात को लेखिका की पलंग के पाये से सट बिना गंदा किए सो जाती थी। छात्रावास की लड़कियों का अटूट स्नेह भाव रहा । लेखिका की बिल्ली – गोधूली, कुत्ते – हेमंत / वसंत, कुत्ती – फ़्लोरा से कुछी दिनों में घुल मिल गयी। मेस में उस के पहुंचते ही छात्राएँ ही नहीं नौकर-चाकर तक दौड़ आते, सभी उसे कुछ न कुछ खिलाने को उत्साहित होते । उसे छोटे बच्चे अधिक प्रिय थे। उनसे खेलना पसंद था । लेखिका के प्रति कई प्रकार से स्नेह प्रदर्शित करती थी । भीतर आने पर वह लेखिका के पैरों के अपना शरीर रगड़ने लगती है, कभी लेखिका की ओर ऐसा देखने लगती है कि हंसी आ जाती है ।

गर्मियों में लेखिका का बद्रीनाथ यात्रा का कार्यक्रम बना । लेखिका ने अपने पालतू जीवों की जिम्मेदारी नौकरों को देकर यात्रा पर चली जाती है ।. यात्रा पूरी कर के लेखिका छात्रावास आते ही दुखद समाचार मिलता है कि एक दिन सोना बंधन की सीमा भूलकर ऊँचाई तक उछल और रस्सी के कारण मुख के बल धरती पर गिरी अपनी अंतिम सांस तोडदी । उस सुनहली किसी निर्जन वन में जन्मी ‘सोना’ को गंगा में प्रवाहित कर आये । लेखिका ने यह निश्चय किया कि हिरन कभी नहीं पालेंगी । संयोग से फिर हिरन ही पालना पड़ रहा है ।

विशेषताएँ : इस रेखाचित्र में सोना हिरनी के प्रति लेखिका का स्नेह संपूर्ण आत्मीयता और अंतरंग भाव साकार हुआ है । महादेवी वर्मा अपनी गद्य भाषा के कवित्वपूर्ण विन्यास द्वारा सोना हिरनी के सौन्दर्य का अनुपम चित्रण किया है ।

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2. ‘अंधे बाबा अब्दुल्ला की कहानी’ पाठ का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
अंधे बाबा अब्दुल्ला नामक कहानी अलिफ लैला की कहानियाँ में से संकलित है | प्रस्तुत कंहानी स्वयं में ही चमत्कृत एवं अद्भुत कहानी है । यह कहानी- तिलिस्म और अय्यारी से परिपूर्ण है जो कथा को मनोरंजक और अय्यारी रोचक बनाते है । इस कहानी का मुख्य पात्र अब्दल्ला है ।

बाबा अब्दुल्ला के माता- पिता के देहात के बाद उनका धन उत्तराधिकार में अब्दुल्ला पाकर उस धन को भोग विलास में शीर्घ ही गँवा दिया । फिर जी तोडकर धनार्जन किया और उससे अस्सी ऊँट खरीदे । उन ऊँटो को किराए पर व्यापारियों को देकर इतना धन कमाया कि सारा जीवन आराम से बिता सकें ।

एक बार हिंदुस्तान जानेवाले व्यापारियों का माल ऊँटो पर लादकर बसरा ले गया । माल जहाजों पर चढ़ाकर ऊँटो के साथ बागदाद वापस आने लग | रास्ते में एक जगह आराम करने लगा । इतने में बसरा से बगदाद को जानेवाला एक फकीर उसके पास आया और कहाँ तुम रात दिन बेकार मेहनत करते हो। मै एक जगह दिखाऊगाँ जहाँ पर असंख्य द्रव्य भरा पडा है । तुम इन अस्सी ऊँटो को रत्नों और अरार्फियों से लाद सकते हो | इससे अब्दल्ला के मन में लालच पैदा हो गयी ।

फकीर ने आधे ऊँट देने की शर्त से वह खजाने की जगह दिखाने लगा । अब्दुल्ला इस शर्त को मान लिया। दोनो जिनो से बनाये हुए उस भव्य भवन से रत्नो और अशर्फियों को ऊँटो की खुर्जियों में भरने लगे । फकीर एक कमरे में लकडी की डिबिया निकाली और अपनी जेब में रखली । जिसमें मरहम रखा हुआ था । बाद में फकीर मंत्र पढा वह जगह गायब हो गयी । फकीर अपने शर्त का हिस्सा और मरहम ले जा रहा था इतने मे अब्दुल्ला के दिल में लोभ का शैतान फैल गया । और अपने सारे ऊँटो को वापस ले लिया । इतने से संतुष्ट न होकर उस फकीर से ‘मरहम’ भी देने केलिए कहा । फकीर ने मरहम को उसकी बायी आँख पर लगाया जिससे संसार के गुप्त खजाने दिखने लगे, अत्याशा से फकीर मना करने पर भी दूसरी आँख की पलक पर भी मरहम को लगाने पर मजबूर करदिया । जिससे दोनो आँखों की रोशनी खोकर अंधा हो जाता है । बाद में फ़कीर सभी ऊँठ लेकर चला गया ।

इस तरह बाबा अब्दुल्ला अपनी मूर्खता और लालच के कारण सब कुछ खो बैठा। इस बुरी दशा को देखकर खलीफ ने कहा – “तुम्हारी मूर्खता तो बहुत बडी है | भगवान तुम्हे क्षमा करेंगे। तुम्हे जीवन भर केलिए हर रोज पाँच रुपयाँ मिला करेंगे । बाबा अब्दुल्ला के खुश होने से कहानी समाप्त हो जाती है ।

विशेषता :
1) इस कहानी में दर्शाया गया है कि लालच का फल बुरा होता है। लोभी व्यक्ति का नाश होना संभव है ।
2) यह शिक्षाप्रद कहानी हँ, भाषा सरल और प्रवाहमान हँ ।

4. किसी एक एकांकी का सारांश लिखिए । (1 × 6 = 6)

1. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जाने- माने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य-सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ। आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है । इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं। प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं ।

उमा एक पढ़ी लिखी युवती है। वह मेहनत करके बी. ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं । एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी बेटी का विवाह कर देना चाहता है। जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है । शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है । लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा

पढ़ी-लिखी हो । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ मेट्रिक पास है । दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता । वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे। उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जाये ।

निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है । पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं। वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो। इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है । गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए। उनमें शिक्षा भी एक है । वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम् बस घर को संभालना है ।

रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है। गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती । उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है । वह कहती है कि बाजार में कुर्सी – मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती। दूकानदार बस ….. उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं । उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है । उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है । वे बाजार में देखकर खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं। वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी । इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है | उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी. ए. पास की हैं । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं । उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’ यही पर एकांकी समाप्त होता है 1

विशेषताएँ : प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है । लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की – शिक्षा’ है । उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं । रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया । भाषा बहुत सरल और शैली प्रवाहमान है ।

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2. ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत एकांकी “महा भारत की एक साँझ’ के लेखक भारत भूषण अग्रवाल है । आप आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुपरिचित एवं संवेदनशील प्रतिनिधि साहित्यकार है । इनके नाटक प्रयोगधर्मी है, किन्तु ये अपनी प्रभावान्विति में मानवीय अन्तस की गहराइयों का संस्पर्श करते हुए महनीय – जीवन मूल्यों के प्रति आस्या उत्पन्न करते है ।

संदर्भ : महाभारत की साँझ एक एकांकी में भारतभूषण अग्रवाल ने दुर्योधन के प्रति सहानुभूति जताया है ।

पाँडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युध्द चलता है । युद्ध अंतिम दशा तक पहुँचता है । अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा संजय, धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखो दिखा वर्णन करता रहता है। युद्ध के परिणामों को देखकर धृतराष्ट्र अंत मे पछताता है । और संजय से कहता है कि यह किसके पापों का फल है 1. क्या पुत्र प्रेम अपराध है, 2. धृतराष्ट्र के दुःख को देखकर संजय शांत होने केलिए सांत्वना देते है ।

युद्ध की अंतिम दशा का विवरण धृतराष्ट्र संजय से पूछते है । संजय बताते है कि आत्मरक्षा का उपाय न मिलने पर सुयोधन कुरुक्षेत्र के निकट द्वैतवन के सरोवर मे घुस गये और जल स्तंभ से छिपकर बैठे है ।
यह समाचार अहीरों के द्वारा पाण्डवों को मालूम हुआ तो वे दुर्योधन को तरह – तरह से ललकार कर युद्ध के लिए उकसाते है । युधिष्ठिर और भीम के उकसाने से सरोवर से बाहर आकर, दुर्योधन युद्ध करने केलिए सिद्ध हो जाते है ।

यह विवरणं संजय धृतराष्ट्र को बता रहे है । पाण्डवो ने विरक्त सुयोधन को युद्ध के लिए विवश किया । पाण्डवों की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे । दोनों वीरो ने भयंकर युद्ध किया । सुयोधन का पराक्रम सबको चकित कर देता था । ऐसा लगता था मानों विजयश्री अंत में सुयोधन का वरण करेगी। पर तभी श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंधा में गदा का भीषण प्रहार किया । कुरूराज सुयोधन आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पडे ।

संजय के द्वारा पुत्र की स्थिति सुनते ही पिता का हृदय बिघल जाता है । पुत्र प्रेम से अंधा होकर धृतराष्ट्र. पांडवो को हत्यारे, अधर्मी कहने लगते है । जब सुयोधन आहत होकर निस्सहाय भूमिपर गिर पडे तो पाण्डव जय ध्वनि करते और हर्ष मनाते अपने शिविर को लौट गये । संध्या होने पर पहले अश्वत्थामा आए और कुरूराज की यह दशा देखकर बदला लेने का प्रण करते हुए चले गये । फिर युधिष्ठिर आए । सुयोधन के पास आकर वे झुके और शांत स्वर में उन्हे सांत्वना देने केलिए तरह- तरह से समझाते सुयोधन और युधिष्ठिर के बीच धर्माधर्म की काफी लंबी चर्चा होती है । युधिष्ठिर चाहे जितना समझाने पर भी सुयोधन में पश्चत्ताप की लेशमात्र भावना भी नही होती हैं ।

अंत में दुर्योधन कहता है – “मुझे कोई ग्लानी नही, कोई पश्चत्ताप नही है, केवल एक केवल एक दुख मेरे साथ जाएगा —- यही – यही कि मेरे पिता अंधे क्यो हुए ।” इस अंतिम वाक्य से एकांकी समात्प होती है।

विशेषता : इसमें महाभारत युद्ध के उपरान्त दुर्योधन और पांडवो के भावपूर्ण मिलन – अवसरों का चित्रण किया गया ।

5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । (2 × 4 = 8)

1. अमर्त्य वीर – पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य – पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील रहती है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ

संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियो को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उत्तेजित कर रहे है ।

व्याख्या : भारत – माता स्वतंत्रता के लिए पुकार रही हैं । जागो हे अमर्त्य वीर पुरुषों जागो, भारत माता के सपूतों जागो । दृढ़ संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करो कि “भारत देश को आजाद बनायेंगे” इस सर्वश्रेष्ठ, पुण्य, उत्तम मार्ग में निकलो… बढ़ते चलो, बढ़ते चलो । विजयी बनो । रुको मत हे वीर पुत्रों, तुम्हारा मार्ग प्रशस्त ही नहीं पवित्र तथा पुण्यवाला है ।

विशेषताएँ : यह गीत अलका के देश प्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।

2. सखे जाओ तुम हँस कर भूल ।
रहूँ मैं सुध करके रोती ॥
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ऊर्मिला का विरह गान’. नामक कविता से दी गयी है । इस के कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिक खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं । खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ। गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, चिंतक, विद्वान है साकेत, यशोधरा, बेंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष, भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ । गुप्त जी को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया । संदर्भ : ये पंक्तियाँ उर्मिला वनवास को गये लक्ष्मण को याद करते हुए दुख भाव से कहती है ।

ब्याख्या : राम और सीता के साथ लक्ष्मण वनवास के लिए चल पड़ते हैं | लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला पति के आदेश के अनुसार अयोध्या नगरी के राजभवन में ही रह जाती है। उर्मिला लम्बे समय से पति से दूर रहने के कारण पति के वियोग एवं विरह में व्यकुल हो उठती है और अपने आप में बातें करने लगती है । अपने सम्मुख पति लक्ष्मण ना होने पर भी लक्ष्मण को सम्बोधित करती हुई कह रही है।

हे प्रियतम ! तुम हंस कर मुझे भूल जाओ पर मैं तुम्हें याद कर करके रोती ही रहूँगी, तुम्हारे हंसने में ही फूलों जैसी सुकुमारता, मधुरता है, पर हमारे रोने में निकलने वाले आँसु मोती बनते जा रहे हैं ।

विशेषताएँ: अपने पती के वियोग विरह में विदग्ध उर्मिला का वर्णन है। वियोग श्रृंगार का सफ़ल प्रस्तुतीकरण है । भाषा शुद्ध खडीबोली हैं ।

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3. डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगुना उत्साह इसी हैरानी में ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं ।

संदर्भ : प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि कहते है” समुंदर में डुबकी लगाकर मोतियों का अन्वेषण करते गोताखोरो को देखिए वे कितनी बार खाली हाथ लौटकर आते हैं। पर हर डार के बाद वे दुगुना उत्साह लेकर कोशिश करते है । वे तब एक लगातार प्रयास करते रहते है। जब तक मोती उनके हाथ नही आते । किसी न किसी दिन उनकी मुटिठयां मोतियों से भर जाती है ।

विशेषता: प्रस्तुत कविता पाठकों में आशावाद एवं उत्साह भरनेवाली है । कविता उपदेशात्मक एवं प्रभावशाली है । भाषा बहुत सरल है ।

4. गाँधी – गौतम का त्याग लिये आता है,
शंकर का शुद्ध विराग लिये आता है ।
सच है, आँखों में आग लिये आता है,
पर यह स्वदेश का भाग लिये आता है ।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया। इन का निधन 1974 में हुआ ।

संदर्भ : कवि दिनकर जी इन पंन्तियों के माध्यम से भारत की गारिमा का गान गा रहे हैं |

व्याख्या : इस देश में महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों के त्याग की नीव पर इस देश का निर्माण हुआ है, शंकराचार्य शुद्ध विराग लेकर आते हैं । यह भी सच है कि जब-जब भारत का गौरव खतरे में पड़ता है तब-तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में आग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भाग्य लिए आते हैं ।

6. निम्नलिखित में से किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । (2 × 4 = 8)

1. उसकी पन्ती जो पाँच साल से विधवा की भाँति रह रही है, उसके धाम बहु व्यस्त है, प्रेम-संभाषण के लिए पहुँचने पर काम तनिक अवकाश नहीं निकाल पाती ।
उत्तर:
कविपरिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ” अपना पराया’ नामक कहानी से दी गई है । कहानी के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है। आप हिन्दी कहानी क्षेत्र में मनोविश्लेषणवादी रचनाकार के रूप में सुपरिचित हैं । आपका जन्म 1905 ई – अलीगढ़ के कौडियागंज में हुआ । गांधी जी के प्रभाव से असहयोग . आन्दोलन में भागलेने के कारण जेल भी गये! जेल के वातावरण से ही कहानियाँ लिखने की प्रेरणा मिली! आपने भाषा की सहजता शिल्पगत सूक्ष्मता पर अधिक बलदिया है ।

संदर्भ : एक सिपाही लंबे समय के बाद घर लौटते समय अपनी पत्नी परिवार के बरे में स्वप्न देखता है ।

व्याख्या : एक सिपाही युद्ध क्षेत्र से लंबी अवधी के बाद घर लौटते समय संडक के किनारे एक सराय में टहरता है । उसे जल्दी नींद आजाती है । सपने में घर की बातें देखने लगता है … उसकी पत्नी जो पाँच साल से विधवा जैसे रह रही है! उस के पहुँचने पर भी काम धाम में व्यस्त रहती है । प्रेम- संभाषण के लिए तनिक समय नहीं निकाल पाती है । पती से बची- बची काम कर रही है । और कल्पना करता है कि… इस बेचारी ने उसके बगैर विपदाओं में किस प्रकार समय काटा होगा ।

विशेषताएँ : इन पंक्तियों के माध्यम से जैनेंद्रजी ने एक सिपाई की परिवार के प्रति आकांक्षओं को प्रस्तुत किया है । भाषा सरल एवं सहज है ।

2. यह बात अच्छी तरह समझ ली जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाये संसार में कोई काम नहीं हो सकता ।
उत्तर:
संदर्भ : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है | इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं | आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दीविभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।

व्याख्या : लेखक के अनुसार परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । हमें समझ लेना चाहिए कि इस संसार में पसीना बहाये बिना कुछ भी संभव नहीं होगा। यह संसार मेहनती लोगों के लिए है। इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है ।

विशेषता : यह एक प्रबोधात्मक लेख है । भाषा भावानुकूल है । सरल उदाहरणों से लेख प्रभावशाली बन पड़ा ।

3. यदि सोना को अपने स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए मेरे सर को ऊपर कूदना आवश्यक लगेगा तो वह कूदेगी ही ।
उत्तर:
कवि परिचय : ये पंक्तियाँ सोना हिरनी नामक रेखाचित्र से दिया गया है । इस की लेखिका महादेवी वर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ है । हिन्दी साहित्य में छायावाद की प्रमुख लेखिका के साथ साथ संस्मरण तथा रेखाचित्र लेखिका के रूप में सुपरिचित है । आप की प्रमुख रचनाएँ है – नीहार, नीरजा, संध्यगीत, दीप शिखा, अतीत के चलचित्र, क्षणदा, श्रृंखला की कडियाँ, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार आदि । इन को ‘यामा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है।

संदर्भ : लेखिका अपनी पालतू हिरन स्नेह से जुड़े रहने के बारे में बता रही है ।

व्याख्या : लेखिका कह रही है – अनेक विद्यार्थियों की भारी भरकम जी से सोना का क्या लेना देना था । वह तो उस दृष्टि को पहचान ती गुरु थी जिसमें उनका प्यार छलकता था और उन हाथों को जानती थी जिन्हों ने यनपूर्वक उसे दूध की बोतल मुह से लगाथी । सोना अपने स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए लेखिका के सिर के ऊपर से कूदना आवश्यक लगेगा तो वह कूदेगी ही । लेखिका की किसी अन्य परिस्थितियों से प्रभावित होना उसके लिए संभव ही नहीं था ।

विशेषताएँ : जंगल के प्रणि मात्र के प्रति मनुष्य की संवेदना का सजीव चित्रण है | हिरन जंगली जीवी होते हुए भी मनुष्य के साथ मिल कर घुल- मिल जाने की रसात्मक कथा है ।

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4. उसने डिबिया बंद करके अपनी जेब में रख ली। फिर उसने आग जलाकर उस में सुगंध डाली और मंत्र पढ़ा जिससे वह महल गायब हो गया और गुफा और टीला भी गायब हो गया ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य अंधे बाबा अब्दुल्ला नामक पाठ से लिया गया हैं ! यह कहानी ‘अलिफ लैला की कहानियाँ’ में से संकलित है । इस कहानी का मुख्य पात्र अब्दुल्ला है |

व्याख्या : अब्दुल्ला और फकीर 80 ऊँटो में रत्न और अषर्फियाँ लादते समय बाजूवाले कमरे के संदूक से एक लकडी की डिबिया मिलती है जिसमें मरहम रहता है । उस डिबिया को लेकर गुफा से बाहर आते ही मंत्र : पढकर फकीर गुफा को गायब करदेता है ।

विशेषता : यह दृश्य चमत्कृत एव अद्भुत है । यह कहानी तिलिस्म ‘और अय्यारी से मनोरंजक और रोचक बनगयी है ।

7. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

1. काम में दृढ़ता से लगे रहने से क्या प्रयोजन है ?
उत्तर:
काम में दृढ़ता से लगे रहने से काम आसानी से पूरा हो जाता है । दृढ़ता के कारण सुस्ती नहीं आती और कार्य में निरंतरता बनी रहती है । दृढ़ता से युक्त मनुष्य ही संसार में यथार्थ गौरव पा सकता है ।

2. कुत्ते का स्वभाव क्या है ?
उत्तर:
कुत्ता स्वामि और सेवक में अंतर जानता है और स्वामी की प्रत्येक मुद्रा से परिचित रहता है। स्नेह से बुलाने पर गद्गद होकर निकट आ जाता है और क्रोध करते ही सभीत और दयनीय बनकर दुबक जाता है ।

3. मरहम की विशेषता क्या है ?
उत्तर:
‘मरहम’ जख्म होने पर लगाया जानेवाला एक लेप है । मगर यहाँ – इसकी विशेषता है कि – मरहम को एक बाई अँख में लगाओंगे तो सारे संसार के गुप्त कोश दिखाई देने लगेंगे । किन्तु अगर इसे दाहिनी आँख में लगायेंगे. सर्देव केलिए अंधे हो जायेंगे ।

4. डाकुओं के सरदार ने क्या कहा ?
उत्तर:
डाकुओं के सरदार ने कहा- हमें उल्लू बनाना चाहता है ? अपने घर की तिजोरी का नंबर इसे नहीं मालूम है ? लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

8. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)

1. पश्चात्ताप के बारे में दुर्योधन ने क्या कहा ?
उत्तर:
पश्चात्ताप के बारे में दुर्योधन ने कहा – युधिष्ठिर ! तनिक अपनी ओर तो देखो ! पश्चात्ताप तो तुम्हे होना चाहिए ! मै क्यो पश्चात्ताप करुगा ? मै ने ऐसा कौन – सा पाप किया है ? मैं ने अपने मन के भावों को गुप्त नहीं रखा, मैं ने षडयंत्र नही किया, मैं ने गुरजनों का वध नहीं किया ।

2. रीता को फूल तोड़ते समय क्या हुआ ?
उत्तर:
रीता बगीचे में पूजा के लिए फूल तोड रही थी । कोने मे घास बहुत ऊँची – ऊँची थी । रीता के पैर पर से साँप लहराता हुआ गुजरा और सर्र से झाडियों में गायब में गाया हो गया। कुछ ही देर में पैर में झुनझुनी – सी होने लगी । रोशनी में ध्यान से देखा तो बारीक गोल गोल निशान बने दिखायी दिये । उनमें से हलका सा खून भी छलक आया था ।

3. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
भारतीय समाज की कई समस्याओं का चित्रण करना ही ‘रीढ़ की हड्डी’ का मुख्य उद्देश्य है । लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव- इत्यादि कई समस्याएँ चित्रित करने में एकांकी का उद्देश्य पूरा हुआ ।

4. जल में छिपा बैठा दुर्योधन को युधिष्ठिर ने कैसे पुकारा ?
उत्तर:
जल में छिपे दुर्योधन को युधिष्ठिर, ओ पापी, अरे ओ कपटी, दुरात्मा दुर्योधन कहकर पुकारता है । स्त्रियों की भाँति जल में छिपना नही. बाहर निकलकर आने केलिए युधिष्ठिर कहता है ।

9. निम्नलिखित प्रश्नों का वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)

1. तुलसी के आराध्य कौन थे ?
उत्तर:
तुलसी के आराध्य भगवान श्रीरामचंद्र जी हैं ।

2. बिहारी किसके भक्त थे ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ।

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3. ‘हिमाद्रि से’ गीत किस संकलन से लिया गया है ?
उत्तर:
चंद्रगुप्त नाटक से

4. किसकी मेहनत बेकार नहीं होती ?
उत्तर:
चींटी की मेहनत बेकार नहीं होती ।

5. दिनकर जी की रचनाओं में कौन सा रस पाया जाता है ?
उत्तर:
वीर रस ।

10. निम्नलिखित प्रश्नों का एक वाक्य में उत्तर लिखिए ।

1. ‘अपना – पराया’ कहानी के कहानीकार कौन हैं ?
उत्तर:
अपना पराया कहानी के कहानीकार जैनेंद्र कुमार जी हैं ।

2. डॉ. श्यामसुंदर दास ने युवा पुरुषों के लिए कौन सा उपदेश दिया ?
उत्तर:
डॉ. श्यामसुंदर दास ने युवा पुरुषों के लिए आलस्य को छोड़ने का उपदेश दिया ।

3. मनुष्य किसको असुंदर और अपवित्र मानता है ?
उत्तर:
मनुष्य मृत्यु को असुन्दर ही नहीं अपवित्र भी मानता है ।

4. बाबा अब्दुल्ला कहाँ पैदा हुआ था ?
उत्तर:
बाबा अब्दुल्ला ‘बगदाद’ में पैदा हुआ था ।

5. तिजोरी किस पेड़ के नीचे है ?
उत्तर:
नीम के पेड़ |

खंड – ख (40 अंक)

11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीखिए । (5 × 2 = 10)

भारत एक प्रजातांत्रिक देश है । इस विशाल भारत में 1652 भाषाएँ बोली जाती हैं । भारत की मुख्य भाषा हिंदी है। हिंदी सभी देशवासियों को एक सूत्र में जोड़ती है। हिंदी मीठी तथा जनमानस की भाषा है । यह एक वैज्ञानिक भाषा भी है। इसमें जो बोला जाता है वही लिखा जाता है । हिंदी भारत की राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा है | हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में 14 सितंबर, 1949 को स्वीकार किया गया | इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के संबंध में व्यवस्था की गई। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिए या स्मृति के रूप में 14 सितंबर का दिन हर साल ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । धारा 341 (1) के अनुसार भारतीय संघ की भाषा ‘हिंदी’ एवं लिपि ‘देवनागरी’ है और संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होनेवाले अंकों का रूप, भारतीय अंकों का रूप अंतराष्ट्रीय रूप होगा | भारतीय संविधान की धारा 341 के अनुसार 14 सितंबर, 1950 को राष्ट्रभाषा को रूप में हिंदी को घोषित किया गया । भारत में सैकड़ों भाषाएँ बोले जाने पर भी जिनमें से 15 भाषाओं को संविधान में राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दी गई है जो भारत की करेंसी या मुद्रा पर हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा 15 भाषाओं का प्रयोग होता है ।

प्रश्न :
1. भारत की राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा क्या थी ?
उत्तर:
हिंदी भारत की राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा थी ।

2. हिंदी को राजभाषा के रूप में कब स्वीकार किया गया ?
उत्तर:
14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया ।

3. हिंदी दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर:
प्रति वर्ष 14 सितंबर 1949 को हिंदी दिवस मनाया जाता है ।

4. भारत की करेंसी या मुद्रा पर कितनी भाषाओं का प्रयोग होता है ?
उत्तर:
भारत की करेंसी या मुद्रा पर हिंदी और अंग्रेजी के अलावा 15 भाषाओं का प्रयोग होता है ।

5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर:
राजभाषा हिंदी |

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12. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए । (5 × 1 = 5)

1. पुनर्जन्म
2. निष्फल
3. दुरात्मा
4. पुनः स्मरण
5. प्रातः काल
6. निस्सार
7. नमस्कार
8. दुर्बल
9. तपोबल
10. मनोहर
उत्तर:
1. पुनर्जन्म = पुनः + जन्म
2. निष्फल = निः + फल
3. दुरात्मा = दुः + आत्मा
4. पुनः स्मरण = पुनः + स्मरण
5. प्रातः काल = प्रातः + काल
6. निस्सार = निः + सार
7. नमस्कार = नमः + कार
8. दुर्बल = दुः + बल
9. तपोबल = तपः + बल
10. मनोहर = मनः + हर

13. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों के समास के नाम लिखिए । (5 × 1 = 5)

1. आजीवन
2. कोनों – कान
3. हलधर
4. जयचंद्रकृत
5. पवन पुत्र
6. कवि श्रेष्ट
7. अनाचार
8. दिनदयालु
9. गुरूदेव
10. नव रत्न
उत्तर:
1. आजीवन = अव्ययीभाव समास (विग्रहवाक्य : जीवन भर )
2. कोनों कान = अव्ययीभाव समास (विग्रहवाक्य : कान ही कान में )
3. हलधर = बहुव्रीहि समास (विग्रहवाक्य : हल को धारण करनेवाला)
4. जयचंद्रकृत = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : जयचंद्र से कृत)
5. पवन पुत्र = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : पवन का पुत्र)
6. कवि श्रेष्ट = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : कवियों में श्रेष्ठ)
7. अनाचार = नञ तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : न आचार)
8. दीनदयालु = कर्मधारय समास (विग्रहवाक्य : दीनों पर दयालु)
9. गुरूदेव = कर्मधारय समास ( विग्रहवाक्य : गुरु रूपी देव)
10. नव रत्न = द्विगु समास (विग्रहवाक्य : नौ रत्नों का समाहार)

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14. (अ) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को हिंदी में अनुवाद कीजिए । (5 × 1 = 5)

1. Joshi is a good administrator.
उत्तर:
जोशी एक अच्छा प्रशासक है ।

2. Respect your teacher.
उत्तर:
अध्यापकों का सम्मान करी ।

3. Subhash Chandra Bose.
उत्तर:
शुभाषचंद्र बोस एक स्वतंत्रता सेनानी है |

4. Rakesh is playing in the play ground.
उत्तर:
राकेश मैदान में खेल रहा है ।

5. Work is worship.
उत्तर:
कर्म ही पूजा है ।

6. Srikanth ate bread.
उत्तर:
श्रीकांत ने रोटी खाई ।

7. Beauty is truth..
उत्तर:
सौंदर्य ही सत्य है ।

8. The pen is on the table.
उत्तर:
कमल मेज पर है।

9. Peacock is beautiful bird..
उत्तर:
मोर सुंदर पक्षी हैं ।

10. He is going.
उत्तर:
वह जा रहा है ।

(आ) निम्नलिखित वाक्यों में से पाँच वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए | (5 × 1 = 5)

1. अध्यापक आते ही विद्यार्थी चले गये । (अशुद्ध )
उत्तर:
अध्यापक के आते ही विद्यार्थी चले गये । (शुद्ध)

2. शेषकुमार किससे रुपया पूछा ? (अशुद्ध)
उत्तर:
शेषुकुमार ने किससे रुपया माँगा ? (शुद्ध)

3. मेज में पुस्तकें रखी हैं। (अशुद्ध)
उत्तर:
मेज पर पुस्तकें रखी हैं। (शुद्ध)

4. जेब पर रुपये हैं। (अशुद्ध)
उत्तर:
जेब में रुपये हैं । (शुद्ध)

5. तुम यहाँ नहीं लिखो । (अशुद्ध )
उत्तर:
तुम यहाँ मत लिखो । (शुद्ध)

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6. अर्जुन का एक मकान है । (अशुद्ध )
उत्तर:
अर्जुन के एक मकान हैं । (शुद्ध) (स्थिर संपत्ति )

7. दशरथ की तीन रानियाँ थीं । (अशुद्ध)
उत्तर:
दशरथ के तीन रानियाँ थीं । (शुद्ध) (संबंधी)

8. मैं छुट्टियों में नागार्जुन सागर जाना होगा । (अशुद्ध )
उत्तर:
मुझे छुट्टियों में नागार्जुन सागर जाना होगा। (शुद्ध) (मै+ को = मुझे)

9. राम वन जाना पड़ा । (अशुद्ध )
उत्तर:
राम को वन जाना पड़ा । (शुद्ध)

10. वह गुंटूर जाना है । (अशुद्ध)
उत्तर:
उसे गुंटूर जाना है । (शुद्ध) (वह + को = उसे)

15. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षिप्तीकरण कीजिए । (1 × 5 = 5)

मनुष्य के लिए प्रतिभा नहीं, उद्देश्य आवश्यक है । विश्वास करिए, आँख मींच कर फेंका हुआ तीर अपना लक्ष्य नहीं बेध सकता, अंधे होकर भागने से मार्ग नहीं कट सकता, आँख मूंद कर बेमौसम बीज फेंकनेवाला किसान कभी सफल नहीं होता । भला आप उस व्यक्ति के बारे में क्या सोचेंगे जो गाड़ी में सवार होने के लिए स्टेशन पर पहुँचा हुआ है, पर जिसे यह नहीं मालूम कि उसे कहाँ जाना है। हम सब भी विश्व के रंगमंच पर आए हुए हैं। जीवन की नौका को संसार में खेने से पूर्व हमें जान लेना चाहिए कि हमें जाना कहाँ है । अत: हम अपनी इन बंद आँखों को खोल लें, उद्देश्य बनाएँ और चल पढ़ें । जिस नायिक ने लक्ष्य स्थिर नहीं किया उसके अनुकूल हवा कभी नहीं ‘चलेगी । तुम शव नहीं हो कि संसार सागर की लहरें जिस किनारे चाहें तुम्हें पटक दें, परिस्थितियाँ जिधर चाहें ले चलें । भाग्य के नाम पर तुमको प्रवाह में बहना नहीं है अपितु प्रवाह का रुख बदलना है ।
उत्तर:

मानव जीवन का उद्देश्य

मनुष्य के विषय में प्रतिभा की तुलना उद्देश्य अहं है । बिना उद्देश्य के चलनेवाले का रास्ता कठिन बन जाता है। जीवन के आरंभ से ही. उद्देश्य तथा लक्ष्य को निर्धारित करना है । उद्देश्य को तय करने से भाग्य के प्रभाव को भी बदला जा सकता है ।

16. निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच वाक्यों का वाच्य बदलिए । (1 × 5 = 5)

1. वह नहीं सोता ( कर्तृ)
उत्तर:
उससे सोया नहीं जाता । (भाव)

2. मैं नहीं चल सकता । (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे चला नहीं जाता । (भाव)

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3. लड़कियाँ नहीं दौड़ सकतीं। (कर्तृ)
उत्तर:
लड़कियों से दौड़ा नहीं जाता । (भाव)

4. उससे चावल खाया जाएगा । (कर्म)
उत्तर:
वह चावल खाएगा । (कर्तृ) ( फूल – पुलिंग )

5. कवि कविता लिखेगा । (कर्तृ)
उत्तर:
कवि से कविता लिखी जाएगी। (कर्म) (कविर्ता – स्त्रीलिंग)

6. रामबाबू मिठाई खाएगा । (कर्तृ)
उत्तर:
रामबाबू से मिठाई खायी जाएगी । (कर्म) (मिठाई – स्त्रीलिंग)

7. कुमार हिंदी सीखेगा । (कर्तृ)
उत्तर:
कुमार से हिंदी सीखी जाएगी। (कर्म) (हिंदी स्त्रीलिंग)

8. हम फिल्म देखेंगे | (कर्तृ)
उत्तर:
हमसे फिल्म देखी जाएगी। (कर्म) (फिल्म – स्त्रीलिंग)

9. श्रावणी से फूल लाया जाता है । (कर्म)
उत्तर:
श्रावणी फूल लाती है । (कर्तृ) ( फूल – पुलिंग)

10. कृष्ण से बाँसुरी बजायी जाती है । (कर्म)
उत्तर:
कृष्ण बाँसुरी बजाता है । (कर्तृ) (बाँसुरी – स्त्रीलिंग)

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