Telangana SCERT TS 9th Class Hindi Study Material उपवाचक 2nd Lesson सम्मक्का-सारक्का जातरा Textbook Questions and Answers.
TS 9th Class Hindi Guide Upavachak 2nd Lesson सम्मक्का-सारक्का जातरा
प्रश्न – ప్రశ్నలు :
प्रश्न 1.
इस जातरा को तेलंगाणा राज्य का कुंभमेला क्यों कहा जाता है?
(ఈ జాతరను తెలంగాణ రాష్ట్ర కుంభమేళా అని ఎందుకు అంటారు?)
उत्तर :
हर दो साल में एक बार माघ पूर्णिमा के दिन सम्मक्का-सारक्का जातरा बडे वैभव के साथ आयोजित की जाती है। जातरा के पहले दिन कन्नेपल्ली से सारलम्मा की सवारी लायी जाती है। दूसरे दिन चिलुकलं गुट्टा में भरिणि के रूप में सम्मक्का को प्रतिष्ठापित किया जाता है। देवी की प्रतिष्ठापना के समय भक्तजनों की भीड उमड पडती है। यह भीड किसी कुंभ मेले से कम नहीं होती। इसीलिए इस जातरा को तेलंगाणा राज्य का कुंभ मेला कहा जाता है।
(ప్రతి రెండు సంవత్సరములకొకసారి మాఘపౌర్ణమి రోజున సమ్మక్క- సారక్క జాతర చాలా వైభవంగా ఏర్పాటు చేయబడుతుంది. జాతర మొదటి రోజు కన్నేపల్లి నుండి సారలమ్మను తీసుకువస్తారు. మరుసటి రోజు చిలుకల గుట్టలో భరిణ రూపంలో సమ్మక్కను ప్రతిష్ఠిస్తారు. అమ్మవారిని ప్రతిష్ఠించే సమయంలో భక్తులతో జనసంద్రం అవుతుంది. ఈ జనసంద్రము కుంభమేళా కన్నా తక్కువేమీ కాదు. ఇందువలన ఈ జాతరను తెలంగాణ రాష్ట్ర కుంభమేళా అంటారు.)
प्रश्न 2.
सम्मक्का – सारक्का के जीवन से क्या संदेश मिलता है?
(సమ్మక్క-సారక్క జీవితము నుండి లభించే సందేశం ఏమిటి ?)
उत्तर :
सम्मक्का – सारक्का का जीवन संदेशात्मक है । अकारण काकतीय राजा, प्रतापरुद्र ने मेडारम पर आक्रमण किया। सांप्रदायिक ढंग से अस्त्र शस्त्र धारण कर विविध प्रांतों से पगिडिद्दा राजु, सम्मक्का, सारक्का। नागुलम्मा जंपन्ना, गोविंद राजु आदि ने वीरता से युद्ध किया। मगर अधिक संख्यक काकतीय सेना से लडते वीरगति प्राप्त की है। स्मम्मक्षा, क्रोधित हो रणचंडी बनकर काकतीय सेना पर टूट पडी। जन जातीय युद्ध कला का प्रदर्शन करते घायल होकर चिलुकल गुट्टा की ओर जाती अदृश्य हो गयी। उसके जीवन से हमें यह संदेश मिलता है के मातृभूमि की रक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य है। चाहे जान भी चले जाए, अपने देश को स्वतंत्र रखना हमारा पवित्र धर्म है। तभी हमारा जन्म सार्थक होगा।
(సమ్మక్మ-సారక్క జీవితం సందేశాత్మకమైనది అకారణంగా కాకతీయ రాజు ప్రతాపరుద్రులు మేడారం మీద దండెత్తారు. సాంప్రదాయక పద్ధతిలో ఆయుధములు ధరించి వివిధ ప్రాంతాల నుండి పగిడిద్ద రాజు, సమ్మక్క, సారక్క, నాగులమ్మ, జంపన్న, గోవిందరాజు మొదలగువారు పరాక్రమంతో యుద్ధం చేశారు. కాని అధిక సంఖ్య గల కాకతీయ సైన్యంతో యుద్ధం చేస్తూ అమరులయ్యారు. సమ్మక్క కోపంతో రణచండిగా మారి కాకతీయ సైన్యంపై విరుచుకుపడింది. గిరిజన యుద్ధ కళను ప్రదర్శిస్తూ గాయపడి చిలుకల గుట్టలో అదృశ్యమైపోయింది. మాతృదేశ సంరక్షణ మన కర్తవ్యమని, ప్రాణం పోయినా మన దేశాన్ని స్వతంత్రంగా ఉంచటం మన పవిత్ర ధర్మమని, అప్పుడే మన జన్మ సార్ధకము అవుతుందని ఆమె జీవితం నుండి మనకు లభించే సందేశము.)
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया
निम्न लिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
I. 12 वीं शताब्दी कें तत्कालीन करीमनठर जिले के जठित्याल प्रांत के पोलवासा के जनजातीय शासक मेडराजू की इकलौती पुत्री सम्मक्का का विवाह मेडारम के थासक पठिडिद्दा राजू के साथ हुआ। इस दपंति को सारलम्मा (सारका). नाठुलम्मा और जंपक्षा नामक तीन संतान हुई। राज्य विस्तार की आकांक्षा से काकतीय नरेश प्रथम प्रतापरुद्र के पोलवासा पर आक्रमण किया था। उनके आक्रमण के कारण मेडराजू केडारम से भाठकर अज्ञात कें रहने लठो। मेडारम के शासक कोया जाति के नरेश पठिडिद्दा राजू काकतीय सामंत के रूप कें रहने लठे। किंतु अकाल के कारण वे काकतीय नरेश को कर देने कें विफल हुए। काकतीय नरेश इस पर नाराज़ हो ठए। अतः प्रथम प्रतापुरुद्र के अपने महामंत्री युठांधर के साथ माघ पूर्णिमा के दिन केडारम पर आक्रमण कर दिया।
प्रश्न :
1. सम्मक्का का विवाह किसके साथ हुआ था ?
2. काकतीय सामंत के रूप में कौन रहने लगे ?
3. पगिडिद्दा राजु कौन था ?
4. सारलम्मा, नागुलम्मा और जंपन्ना ये तीन किसके संतान थे ?
5. मेडराजू मेडारम से भागकर क्यों अज्ञात में रहने लगे ?
उत्तर :
1. सम्मक्का का विवाह मेडारम के शासक पगिडिद्दा राजू के साथ हुआ था।
2. पगिडिद्दा राजू काकतीय सामंत के रूप में रहने लगे।
3. पगिडिद्दा राजू मेडारम के शासक कोया जाति का नरेश था।
4. सारलम्मा, नागुल्मा और जंपन्ना ये तीन सम्मक्का और पगिडिद्दा राजू दंपति के संतान थे।
5. राज्य विरतार की आकांक्षा से काकतीय नरेश प्रथम प्रतापरुद्र ने पोलवासा घर आक्रमण किया था। इस कारण मेडराजू मेडारम से भागकर अज्ञात में रहने लगे।
II. भारतीय संस्कृति विश्व में विशेष स्थान रखती है। यहाँ सभी धर्मों, जातियों के लोग मिलजुलकर रहते हैं। इसका एक उदाहरण है – सम्मक्का- सारक्षा जातरा। यह जातरा तेंलगाणा राज्य का एक जनजातीय मेला है। यह बरंगल जिले के ताडवाई मंडल के मेडारम गाँव में धूम – धाम से मनाया जाता है।
प्रश्न :
1. जनजातीय मेला क्या है?
2. भारत देश में क्या – क्या भेद नहीं हैं?
3. सम्मक्का – सारक्षा किसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं?
4. ताडवाई मंडल और मेडारम गाँव किस जिले के हैं?
5. विश्व में विशेष स्थान रखने वाली संस्कृति क्या है?
उत्तर :
1. सम्मक्का – सारक्का जातरा एक जनजातीय मेला है।
2. भारत देश में धर्म, जाति, पाँति, ऊँच – नीच और रंग का कोई भेद नहीं है।
3. भारत में सभी लोग धर्म, जाति- पाँति, ऊँच – नीच ओर रंग आदि भेद भाव के बिना मिलजुलकर रहते हैं। इसका ही श्रेष्ठ उदाहरण है – सम्मक्बा – सरक्का जातरा।
4. ताडवाई मंडल और मेडारम गाँव वरंगल जिले के हैं।
5. विश्व में विशेष स्थान रखनेवाली संस्कृति भारतीय संस्कृति है।
III. ‘जनजातीय स्त्री की युद्ध कला देखकर प्रतापरुद्र आश्चर्यचकित हो जाते हैं। कहा जाता है कि अंत कें शत्रुओं के हाथों घायल सम्मक्का युद्ध भूमि से चिलुकल गुट्टा की ओर जाती हुई अदृश्य हो जाती है। उसकी खोज कें ठयी सेना को उस प्रांत कें बांबी के पास हल्दी, कुंकुम की भरिणी मिलती है। उसी को सक्मझ्छा मानकर उस दिन से हर दो साल में एक बार माघ पूर्णिमा के दिन सम्मबा – सारक्का जातरा बड़े ही वैभव के साथ आयोजित की जाती रही है।
प्रश्न :
1. प्रतापरुद्र क्यों आश्चर्यचकित हो जाते हैं?
2. सम्मक्का के बारे में क्या कहा जाता है?
3. सम्मक्का – सारक्भा जातरा कब आयोजित की जाती है?
4. सम्मक्का की खोज में गयी सेना को क्या मिलती है?
5. यह गद्यांश किस पाठ से दिया गया है?
उत्तर :
1. जनजातीय स्त्री की युद्ध कला देखकर प्रतापरुद्र आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
2. कहा जाता है कि अंत में शत्रु के हाथों घायल सम्मक्का युद्ध भूमि से चिलुकल – गुट्टा की ओर जाती हुई अदृश्य हो जाती है।
3. सम्मक्का – सारक्का जातरा हर दो साल में एक बार माघ पूर्णिमा के दिन आयोजित की जाती है।
4. सम्मक्का की खोज में गयी सेना को बांबी के पास हल्दी, कुंकुम की भरिणी मिलती है।
5. यह गद्यांश सम्मक्का – सारक्का उपवाचक पाठ से दिया गया है।
IV. जातरा के पहले दिन कक्षेपक्की से सारलम्मा की सवारी लायी जाती है। दूसरे दिन चिलुकल गुट्टा कें भरिणि के रूप कें सम्मक्षा को प्रतिष्ठापित किया जाता है। देवी की प्रतिष्ठापना के समय भक्तजनों की भीड़ उमड़ पड़ती है। यह भीड़ किसी कुभ मेले से कम नहीं होती। इसीलिए इस जातरा को राज्य का कुंभमेला कहा जाता है। तीसरे दिन दोनों माता देवियों को आसन पर प्रतिष्ठापन करते हैं। चौथे दिन देवियों का अह्वान होता है। पुन: दोनों देवियों को युद्ध स्थल की ओर ले जाया जाता है।
प्रश्न :
1. सारलम्मा की सवारी कब लायी जाती है?
2. इस जातरा को राज्य का कुंभ मेला क्यों कहा जाता है ?
3. दोनों माता देवियों को आसन पर कंब प्रतिष्ठापित करते हैं?
4. भक्तजनों की भीड़ कब उमड़ पडती है?
5. देवियों का आह्वान कब होता है?
उत्तर :
1. जातरा के पहले दिन कन्नेपह्नी से सारलम्मा की सवारी लायी जाती है।
2. देवी की प्रतिष्ठापना के समय भक्तजनों की भीड उमड़ पडती है। यह भीड़ किसी कुंभ मेले से कम नहीं होती। इसलिए इस जातरा को राज्य का कुंभ मेला कहा जाता है।
3. तीसरे दिन दोनों माता देवियों को आसन पर प्रतिष्ठापित करते हैं।
4. देवी की प्रतिष्ठापना के समय भक्त जनों की भीड़ उमड पडती है।
5. चौथे दिन देवियों का आह्वान होता है।
V. बहुसंख्यक काकतीय सेना के आक्रमण से मेडराजू, पठिडिद्दा राजू, सारलक्मा, नागुलम्ना, गोविंदराजू युद्ध में वीरगति प्राप्त करते हैं। जंपश्ना संपेंठा नहर के जल कें समाधि लेते हैं। तभी से संपेंगा वाठु (छोटी नदी) जंपक्ना वाठु के नाम से प्रसिद्ध हो ठाई। इन सब घटनाओं से क्रुद्ध सम्मुका काकतीय सेना पर रणचंडी के समान टूट पड़ती है और वीरता के साथ युद्ध करती है
प्रश्न :
1. जंपत्रा किस नहर के जल में समाधि लेते हैं?
2. रणचंडी के समान काकतीय सेना पर कौन टूट पडती है?
3. संपैंगा वागु जंपत्नवागु के नाम से क्यों प्रसिद्ध हुई?
4. बहुसंख्यक काकतीय सेना के आक्रमण से कौन – कौन युद्ध में वीरगति प्राप्त करते हैं?
5. उपर्युक्त गद्यांश किस पाठ से दिया गया है?
उत्तर :
1. जंपन्ना संपेंगा नहर के जल में समाधि लेते हैं।
2. रणचंडी के समान सम्मक्का काकतीय सेना पर टूट पडती है।
3. जंपत्ना, संपेंगा नहर के जल में समाधि लेतां है। तभी से यह वागु जंपन्नवागु नाम से प्रसिद्ध हुई।
4. बहुसंख्यक कांकतीय सेना की आक्रमण से मेडराजू, पगिडिद्दा राजू, सारलम्मा, नागुल्मा और गोंविदराजू युद्ध में वीरगति प्राप्त करते हैं।
5. उपर्युक्त गद्यांश सम्मक्का और सारक्का नामक उपवाचक पाठ से दिया गया है।
సారాంశము :
భారతీయ,సంస్కృతి ప్రపంచంలో విశేష స్థానాన్ని పొందియున్నది. ఇక్కడ (భారతదేశంలో) అన్ని మతాల, జాతుల ప్రజలు కలిసిమెలిసి ఉంటారు. దీనికి ఉదాహరణే సమ్మక్క-సారక్క జాతర. ఈ జాతర తెలంగాణ రాష్ట్ర ఒక ముఖ్యమైన ఆదివాసులు తిరునాల. ఇది జయశంకర్ భూపాల్ పల్లి జిల్లాలోని సమ్మక్క – సారక్క తాడువాయి మండలంలోని మేడారం గ్రామంలో వైభవోపేత వైభవంగా జరుపబడుతుంది.
ఇది వరంగల్ నుండి సుమారు 110 కి.మీ దూరంలో ఉన్నది. తాడ్వాయి మండల దట్టమైన అడవులు, కొండలలో ఉన్న మేడారంలో ఈ చారిత్రాత్మక జాతర ఏర్పాటు చేయబడుతుంది. యావత్తు గిరిజన ప్రజల దేవత సమ్మక్క-సారక్కలు మిక్కిలి మహిమ కలవారు అని నమ్మకము. వివిధ ప్రాంతముల నుండి ప్రజలు ఇక్కడికి వచ్చి అడవి తల్లి రూపంగా సమ్మక్క-సారక్కకు పూజ చేస్తారు. ఇది ఇక్కడి అన్నిటికన్నా పెద్ద గిరిజన జాతర. ఈ జాతర పూర్తిగా గిరిజన సాంప్రదాయ పద్ధతుల ప్రకారం ఏర్పాటు చేయబడుతుంది. క్రీ.శ. 1996లో ఆంధ్రప్రదేశ్ ప్రభుత్వం ఈ జాతరను రాష్ట్ర పండుగ రూపంగా గౌరవించింది.
12వ శతాబ్దంలో అప్పటి కరీంనగర్ జిల్లా జగిత్యాల ప్రాంత పోల్వాస గిరిజన రాజు మేడరాజు ఏకైక కుమార్తె సమ్మక్క వివాహము మేడారం రాజు పగిడిద్ద రాజుతో జరిగింది. ఈ దంపతులకు సారలమ్మ (సమ్మక్క), నాగులమ్మ, జంపన్న పేర్లు గల ముగ్గురు సంతానం కలిగారు. రాజ్యాన్ని విస్తరించాలనే కోరికతో కాకతీయ రాజు మొదటి ప్రతాపరుద్రులు పోల్వాసపై దండెత్తారు. వారి ఆక్రమణ కారణముగా మేడ్రాజు మేడారం నుండి పారిపోయి అజ్ఞాతంలో ఉండసాగాడు. మేడారం రాజు కోయజాతి ప్రభువు పగిడిద్ద రాజు కాకతీయ సామంతునిగా ఉండసాగారు. కాని కరువు కారణంగా వారు కాకతీయ రాజుకు పన్ను చెల్లించలేకపోయిరి. కాకతీయరాజు ఇందుకు కోపము చెందిరి. అందువలన ‘మొదటి ప్రతాపరుద్రులు తన మహామంత్రి యుగంధర్ తో మాఘ పౌర్ణమిరోజున మేడారంపై ఆక్రమణ చేశారు.
సాంప్రదాయక పద్ధతిలో ఆయుధములు ధరించి పగిడిద్ద రాజు, సమ్మక్క, సారక్క, నాగులమ్మ, జంపన్న, గోవిందరాజు వేర్వేరు ప్రాంతాల నుండి గొరిల్లా యుద్ధము ఆరంభించి పరాక్రమంతో పోరాడారు. కాని శిక్షణ పొందిన, హెచ్చు సంఖ్యలోనున్న కాకతీయ సైన్య ఆక్రమణతో మేడ్రాజు, పగిడిద్ద రాజు, సారలమ్మ, నాగులమ్మ, గోవిందరాజు యుద్ధంలో స్వర్గస్తులౌతారు. జంపన్న సంపెంగ కాలువ నీటిలో సమాధౌతాడు. అప్పటినుండే సంపెంగ వాగు (చిన్న నది) జంపన్న
వాగుగా ప్రసిద్ధి చెందినది. ఈ సంఘటనలన్నింటిచే కోపం చెందిన సమ్మక్క కాకతీయ సైన్యంపై రణచండిలా విరుచుకుపడి, పరాక్రమంతో యుద్ధం’ చేసింది. గిరిజన స్త్రీ యుద్ధ కళను చూచి ప్రతాపరుద్రుడు ఆశ్చర్యపోతారు. చివరికి శత్రువుల చేతులలో గాయపడిన సమ్మక్క యుద్ధభూమి నుండి చిలుకల గుట్టవైపు వెళుతూ అదృశ్యమవుతుందని చెబుతారు. ఆమెను వెతుకుతూ వెళ్ళిన సైన్యానికి ఆ ప్రాంతంలో చీమల పుట్ట (పాముల పుట్ట) దగ్గర పసుపు, కుంకుమల భరిణ కనిపిస్తుంది. దాన్నే సమ్మక్కగా భావించి ఆనాటి నుండి ప్రతి రెండు సంవత్సరములకు ఒకసారి మాఘ పౌర్ణమినాడు సమ్మక్క-సారక్క జాతర చాలా వైభవంగా ఏర్పాటు చేయబడుతుంది.
జాతర మొదటిరోజున కన్నేపల్లి నుండి సారలమ్మను తీసుకు వస్తారు. మరుసటి రోజు చిలుకలగుట్టలో భరిణ రూపంలో సమ్మక్కను ప్రతిష్ట చేస్తారు. అమ్మను ప్రతిష్ఠించే సమయంలో భక్తజనం ఉప్పొంగుతుంది. ఈ సమూహం కుంభమేళాను స్మరింపచేస్తుంది. అందువలననే ఈ జాతరను రాష్ట్ర కుంభమేళ అని అంటారు. మూడవరోజు ఇద్దరు అమ్మవార్లను సింహాసనంపై ప్రతిష్ఠింపచేస్తారు. నాల్గవరోజు అమ్మవార్లను ఆహ్వానిస్తారు. మరల అమ్మవార్లు ఇద్దరిని యుద్ధప్రదేశం వైపు తీసుకువెళతారు. సాంప్రదాయబద్ధంగా వస్తున్న గిరిజన పురోహితులే ఇక్కడి పురోహితులు. తమ కోరికలను తీర్చమని కోరుతూ భక్తులు అమ్మవారికి బంగారం (బెల్లం) నైవేద్యంగా సమర్పిస్తారు. ఈ జాతర చరిత్ర సుమారు తొమ్మిది వందల సంవత్సరముల ప్రాచీనమైనది. ప్రతి సంవత్సరం భక్తుల సంఖ్య, దీని ప్రసిద్ధి పెరుగుతూనే ఉన్నవి. ఈ జాతర వలన సామాజికత్వము, దేశం కోసం తమను తాము అర్పించుకునే భావము జాగృతమవుతుంది. ఇది తెలంగాణా రాష్ట్ర ఆదివాసుల సంస్కృతికి అద్భుతమైన ఉదాహరణ.
शब्दार्थ (అర్థములు) (Meanings) :