Telangana SCERT TS 9th Class Hindi Study Material Pdf 10th Lesson अमर वाणी Textbook Questions and Answers.
TS 9th Class Hindi 10th Lesson Questions and Answers Telangana अमर वाणी
प्रश्न – ప్రశ్నలు :
प्रश्न 1.
चित्र में क्या दिखाई दे रहा है?
(చిత్రములో ఏమి కనపడుతూ ఉన్నది?)
उत्तर :
चित्र में दो हाथ हैं। अपनी मुट्ठियों से एक धागे (रस्सी) को पकडे हुए हैं।
प्रश्न 2.
यहाँ हाथों से क्या किया जा रहा है?
(ఇక్కడ చేతులతో ఏవి చేయబడుతూ ఉంది?)
उत्तर :
यहाँ हाथों से एक धागे को तोडा जा रहा है।
प्रश्न 3.
जीवन में दोरती का क्या महत्व है?
(జీవితంలో స్నేహానికి ఉన్న విలువ ఏమిటి?)
उत्तर :
मानव जीवन में दोस्ती का बहुत बडा महत्व है। दोस्ती पवित्र भावनाओं का प्रतीक है। दो व्यक्तियों के बीच हुयी दोस्ती निभाने के लिये प्राण भी अर्पण करते हैं। दोस्ती निख्वार्थ भावना से की जाती है। सच्ची दोस्ती हमेशा त्याग भावना से ही होती है।
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया (అర్థమును తెలుసుకోవటం – జవాబు ఇవ్వటం)
अ. इन प्रश्नों के उत्तर सोचकर दीजिए। (ఈ ప్రశ్నలకు జవాబులు ఆలోచించి ఇవ్వండి.)
प्रश्न 1.
कबीर के बारे में बताइए। (కబీరు గురించి తెలపండి.)
उत्तर :
कबीरदास जी हिन्दी साहित्य के निर्गुण धारा के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि थे। इनका जन्म सन् 1398 में हुआ। कबीर पढे – लिखे नहीं थे। स्वामी रामानंद इनके गुरु थे। कबीरदास का हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। वे उच्च कोटि के मानवतावादी कवि थे। वे व्यक्तित्व साधना में विश्वास रखनेवाले थे। उपासना के बाह्य आडंबरों पर इनका विश्वास नहीं था। इसलिए मानसिक शुद्धता और पवित्रता को उपासना की श्रेष्ठ आवश्यकता मानते थे।
(కబీర్దాస్ హిందీ సాహిత్య నిర్గుణ కావ్వధార యొక్క జ్ఞానమార్గశాఖకు చెందిన ప్రముఖ కవి. వీరు 1398లో జన్మించారు. కబీర్ దాస్ చదువుకున్నవారు కాదు. స్వామి రామానంద్ వీరి గురువుగారు, కబీర్ దాస్ కు హిందీ సాహిత్యంలో చాలా గొప్ప స్థానమున్నది. వారు గొప్ప మానవతావాది కవి. వ్యక్తిత్వ సాధనయందు వీరికి నమ్మకం ఎక్కువ. బాహ్య ఆడంబరాలతో కూడిన భక్తియందు వీరికి నమ్మకం లేదు. అందువలన మానసిక శుద్ధత, పవిత్రతతో కూడిన పూజే శ్రేష్ఠమని భావించేవారు.)
प्रश्न 2.
अभ्यास का क्या महत्व है ?
उत्तर :
मानव जीवन में अभ्यास का महत्वपूर्ण स्थान है। अभ्यास करते रहने से असंभव काम भी संभव ज़रूर होता है। मूर्ख व्यक्ति भी अभ्यास करने से महा पंडित बन सकता है। महाकवि वाल्मीकि ही इसका सच्चा उदाहरण है। कविवर वृंद भी इसी विषय का समर्थन करते हुए कहते हैं शिला पर निशान पडना बहुत मुश्किल है। लेकिन रस्सी की रगड से उस पर भी निशान पड जाता है। इसलिए अभ्यास के द्वारा मानव सब कुछ प्राप्त कर सकता है।
(మానవ జీవితంలో సాధనకు చాలా గొప్ప విలువ ఉన్నది. సాధన చేస్తూ ఉండుట వలన అసంభవమైన పని కూడా తప్పక జరుగును. తెలివి తక్కువ వ్యక్తి కూడా సాధన చేయుటవలన గొప్ప పండితుడు అవుతాడు. మహాకవి వాల్మీకి దీనికి నిజమైన ఉదాహరణ. కవి వృంద్ కూడా ఈ విషయాన్ని సమర్ధిస్తూ అంటున్నారు. బండరాతి మీద గుర్తుపడటం చాలా కష్టం. కాని త్రాడు యొక్క ఒరిపిడిచే రాయి మీద కూడా చిహ్నము ఏర్పడుతుంది. అందువలన సాధన ద్వారా మానవుడు కావలసింది పొందగలడు.)
आ. भाव से संबंधित दोहा लिखिए।
(భావమునకు సంబంధించిన దోహా వ్రాయండి.)
प्रश्न 1.
सुख में ईश्वर का ध्यान रखनेवाले को दुख नहीं होता।
उत्तर :
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
प्रश्न 2.
सज्जन के साथ रहने से सुख मिलता है।
उत्तर :
उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि ॥
इ. दोहा पढिए। भाव अपने शब्दों में बताइए।
(దోహ చదవండి, భావము మీ మాటలలో వ్రాయండి.)
प्रश्न 1.
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घडा, ऋतु आये फल होय।।
उत्तर :
कबीरदास जी कहते हैं कि सारे काम धीरे धीरे निश्चित समय पर ही होते हैं। शीघ्रता दिखाने मात्र से कोई काम नहीं होता। फल जल्दी पाने की अभिलाषा से माली सौ घडे पानी से पेड सींचता है तो भी असमय में पेड से कोई फल नहीं मिलता। मौसम के आने पर ही पेड से फल निकलते हैं। इसी तरह जल्दबाज़ी करने मात्र से कोई काम नहीं होता।
अभिव्यव्ति-सुजनात्मकता (వ్యక్తీకరణ-నిర్మాణాత్మకత)
अ. प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
कबीर की दृष्टि में – “किसी काम को धीरे – धीरे करना” इसका क्या तात्पर्य है?
(కబీర్ దృష్టిలో ఏ పనైనా నెమ్మదిగా చెయ్యాలి. దీని అర్థము / భావము ఏమిటి?)
उत्तर :
कबीरदास जी कहते हैं कि सारे काम धीरे धीरे निश्चित समय पर ही होते हैं। शीघ्रता दिखाने मात्र से कोई काम नहीं होता। फल जल्दी पाने की अभिलाषा से माली सौ घडे पानी से पेड सींचता है तो भी असमय में पेड से कोई फल नहीं मिलता। मौसम के आने पर ही पेड से फल निकलते हैं इसी तरह जल्दीबाज़ी करने मात्र से कोई काम नहीं होता।
प्रश्न 2.
हमें किन प्रयत्नों से सफलता मिल सकती है ?
(మనకు ఎటువంటి ప్రయత్నముల వలన సాఫల్యము లభించగలదు?)
उत्तर :
मानव जीवन में कोई भी काम असंभव नहीं है। मन लगाकर प्रयत्न करने से हर काम संभव होता है। मन
में श्रद्धा रखकर, काम की सफलता पर विश्वास रखते, भगवान पर भरोसा रखकर, संदेह या संशय छोडकर एकाग्र चित्त होकर काम करते रहने से ज़रूर सफलता मिल सकती है। इस तरह हमें श्रद्धा, विश्वास, कडी मेहनत, शक्ति से युक्त प्रयत्नों से सफलता ज़रूर मिल सकती है।
(మానవ జీవితంలో ఏ పనీ అసంభవమైనది కాదు. మనస్సు నిమగ్నం చేసి ప్రయత్నం చేస్తే ప్రతి పనీ తప్పక జరుగుతుంది. మనస్సులో శ్రద్ధ కలిగి, పని జరుగుతుంది అని విశ్వాసము ఉంచుకొని, భగవంతుని పైన నమ్మకము ఉంచి, సందేహం లేకుండా, ఏకాగ్రతతో పని చేస్తూ ఉండుట వలన తప్పక సాఫల్యము లభిస్తుంది. ఈ విధంగా మనకు శ్రద్ధ, విశ్వాసము, గట్టి శ్రమ, శక్తితో కూడిన ప్రయత్నము వలన సాఫల్యము లభిస్తుంది.)
प्रश्न 3.
भगवान का स्मरण कब करना चहिए? क्यों?
(భగవంతుని ఎప్పుడు స్మరించవలెను? ఎందువలన?)
उत्तर :
सब लोग भगवान (ईश्वर) का स्मरण दुख में ही करते हैं। अर्थात् भगवान दुख में ही याद आता है। सुखों में हम भगवान का स्मरण नहीं करते। अर्थात् सुखों में हमें भगवान याद नहीं आता। सुख में ईश्वर का ध्यान रखनेवाले को दुख ही नहीं होता। इसलिए हमें सुख में भी भगवान का स्मरण करना चाहिए।
(అందరూ భగవంతుణ్ణి దుఃఖం వచ్చినప్పుడే స్మరిస్తారు. అనగా భగవంతుడు మనకు దుఃఖసమయంలోనే గుర్తుకు వస్తాడు. సుఖాలలో మనం భగవంతుణ్ణి స్మరించం. అనగా సుఖ సమయాలలో మనకు భగవంతుడు గుర్తుకు రాడు: సుఖాలలో భగవంతుడిని స్మరించువారికి దుఃఖమే రాదు. అందువలన మనం సుఖాలలో కూడా భగవంతుని ధ్యానించాలి, స్మరించాలి, ప్రార్థించాలి.)
आ. तुलना कीजिए।
कबीर व वृन्द के दोहों में क्या अंतर स्पष्ट होता है ?
(కబీర్, వృంద్ దోహాలలో ఎలాంటి తేడా స్పష్టమవుతోంది?)
उत्तर :
कबीर और वृन्द दोनों ने दोहे लिखे थे। इन दोनों के दोहों में निम्न अंतर हैं।
कबीर के दोहे | वृन्द के दोहे |
1. इनके दोहे धार्मिक सिद्धांतो के अनुरूप नीतिपरक हैं। | 1. इसके दोहे लोकनीति से भरे हैं। |
2. ईश्वर संबन्धी विचारों पर आधारित है। | 2. उक्तियों का उपयोग अधिक हुआ है। |
3. रुढिवाद का खंडन मिलता है। | 3. भक्ति भावना की प्राधान्यता कम है। |
4. रहस्यवादी भावनाएँ प्रकट होती हैं। | 4. स्पष्ट वादिता प्रकट होती है। |
5. निराकार भगवान की उपासना नज़र आती है। | 5. उपदेश युक्त और प्रभावशाली हैं। |
इ. कुछ नीति संबंधी नारे लिखिए।
(నీతి సంబంధమైన కొన్ని నినాదములు వ్రాయండి.)
उत्तर :
सत्यमेव जयते। (సత్యమే జయించుగాక.)
सदा सच ही बोलिए। (ఎల్లప్పుడూ నిజమే మాట్లాడండి.)
धर्मों रक्षति रक्षितः (ధర్మాన్ని రక్షిస్తే అది మనల్ని రక్షిస్తుంది.)
वृक्षो रक्षति रक्षित :(వృక్షాలను రక్షించిన యెడల అవి మనల్ని రక్షించును.)
विद्यावान सर्वत्र पूज्यते। (విద్యావంతుడు సర్వత్రా పూజించబడును.)
बड़ों की सेवा करो। (అమ్మ – నాన్నలను పెద్దలందర్నీ గౌరవించుము.)
स्त्रियों का आदर करो। (స్త్రీలను గౌరవించుము.)
सभी जीव जंतुओं से प्यार करो। (సకల జీవ జంతువులయందు ప్రేమను ఉంచుము.)
ईमानदारी जीवन बिताइए। (నిజాయితీతో జీవించు.)
ई. कबीर और वृंद के दोहे हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं ? बताइए।
(కబీరు మరియు వృంద్ల దోహాలు మన జీవితాన్ని ఎలా ప్రభావితం చేస్తాయి? వివరించండి.)
उत्तर :
कबीर और वृंद के दोहे हमारे जीवन को इस प्रकार प्रभावित करते हैं-
कबीर
कबीर के दोहे हमें भगवान को सुख समय में भी स्मरण करने का आदत दिलाते हैं।
कबीर के दोहों से हम जीवन में किसी भी काम को जल्दबाजी से न करने का आदत को सीख लेते हैं। हर एक काम बहुत सोच विचार के साथ धीरे धीरे करने का आदत हम सीख लेते हैं।
कबीर के दोहों के द्वारा हम भगवान से हमारे लिये जितना आवश्यक है उतना ही देने की प्रार्थना कर सकेंगे।
(కబీర్
కబీర్దాస్ దోహాల ద్వారా మనం మన జీవితంలో భగవంతుని సుఖ సమయాలలో కూడా స్మరించుకునే అలవాటును పొందుతాము.
దోహల ద్వారా మనం మన జీవితంలో ఏ పనినీ తొందరపడక, ప్రతి పనిని నిదానంగా ఆలోచించి చేయ అలవాటును పొందెదము..
కబీర్ దోహాల ద్వారా భగవంతుని మనకు ఎంత వరకు అవసరమో అంత వరకే పొందుటకు ప్రార్థించెదము. )
वृंद
वृंद के दोहों के द्वारा हम उत्तम जन से स्नेह करने का सीख सीख लेंगे। हम यह जान सकेंगे कि सज्जनों से ही दोस्ती करना चाहिए।
वृंद के दोहों के द्वारा हम जीवन में हर हमेशा अच्छे से अच्छे काम ही करने का सीख सीख लेंगे। क्योंकि हमें अच्छे कामों से ही सुख और पुण्य मिलता है। बुरे कामों से पाप मिलेगा। हम दूसरों को जो करेंगे हमें भगवान वही करेगा।
वृंद के दोहों के द्वारा हमें निरंतर अभ्यास करने का आदत मिलता है। निरंतर अभ्यास से जडमति छात्र भी बुद्धिमान बनते हैं।
इस प्रकार कबीर और वृंद के दोहे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
వృంద్ దోహాల ద్వారా మనం మంచివాళ్ళతో స్నేహం చేయు పాఠాన్ని నేర్చుకుంటాము. మనం సజ్జనులతోనే.. స్నేహం చేయవలెనను నీతిని పొందెదము.
వృంద్ దోహాల ద్వారా మనం మన జీవితంలో ఎల్లప్పుడు మంచి పనులను చేయుట నేర్చుకుందుము. ఎందుకనగా మంచి పనులు చేయుట యందుయే మనకు సుఖం ఉంటుంది. పుణ్యం లభిస్తుంది. చెడు పనులు వలన పాపం లభించును. మనం ఎదుటివారికి ఏది చేస్తామో భగవంతుడు మనకు అది చేస్తాడు.
వృంద్ దోహాల ద్వారా మనం నిరంతరం అభ్యాసం చేయు అలవాటును పొందెదము. నిరంతర అభ్యాసం వలన మందమతి కూడా పండితుడు కాగలడు.
ఈ విధంగా కబీర్ – బృంద్ దోహాలు మన జీవితాలను ప్రభావితం చేస్తాయి.)
भाषा की बात (భాషా విషయము) :
अ. ‘जड़मति’ शब्द जड़ और मति शब्दों के जोड़ने पर बना है। ऐसे ही कुछ और शब्द बनाइए।
उत्तर :
जड़प्रकृति, जड़वाद, जड़हीन, जड़ाव, जड़ाऊ, जड़हन, जड़ताई, जड़काला आदि।
परियोजना कार्य (నిర్మాణాత్మక పని/ప్రాజెక్ట్ పని) :
कुछ दोहे संकलित कीजिए। (కొన్ని దోహాలు సేకరించండి.)
1. तुलसी संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं परहेत।
इतते ये पाहन हनत उतते वे फल देत।।
2.एक भरोसो, एक बल, एक आस बिस्वास।
एक राम घनस्याम हित, चातक तुलसीदास।।
3. रहिमन लाख भली करो, अगुनी अगुन न जाय।
राग सुनत पय पियत हूँ, साँप सहज धरि खाय।।
4. मथत मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराया।
5. कबिरा छुदा कै कूकरी करत भजन में भंग।
वाको टुकडा डारिकै, सुमिरन करो निसंग।।
6. कमल नयन घनस्याम मनोहर, अनुचर भयौ रहौ।
सूरदास प्रभु भक्त कृपानिधि, अनुचर चरण गहौ।।
प्रश्न-II
प्रश्न 1.
कबीर ने ईश्वर से क्या माँगा है?
(కబీర్ పరమాత్ముని / భగవంతుడిని ఏమి కోరారు?)
उत्तर :
कबीरदास भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करते हैं हे भगवान कृपा करके मुझे इतनी ही संपत्ति दीजिए – जिससे मैं अपने परिवार का पोषण कर सकूँ मेरी भूख भी मिट जाय और मेरे घर आये साधु लोगों की भूख मैं मिटा सकूँ। अर्थात् साधु लोगों का आदर करने का पवित्र काम हो सके।
प्रश्न 2.
भगवान का स्मरण कब करना चाहिए? क्यों ?
(భగవంతుని స్మరణ ఎప్పుడు చెయ్యాలి? ఎందుకు?)
उत्तर :
कबीरदास हिन्दी साहित्य के निर्गुण ज्ञानाश्रय शाखा के प्रतिनिधि कवि थे। कबीर की रचनाएँ बी नामक ग्रन्थ में संकलित हैं। वे पढे लिखे नहीं थे। किन्तु ज्ञानी थे।
कबीर कहते हैं कि दुःख के समय में सब लोग भगवान को याद करते हैं। लेकिन सुख के दिनों में भगवान का स्मरण ही नहीं करते। यदि हम लोग सुख के समय में भी भगवान का स्मरण करें तो दुःख कैसे हो सकते हैं। इसलिए भगवान का स्मरण सदा करना चाहिए।
प्रश्न 3.
वृन्द अभ्यास के बारे में क्या कहते हैं?
(వృంద్ సాధన గురించి ఏమి చెప్పుచున్నారు?)
उत्तर :
कविवर वृंद जी इस तरह अभ्यास का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि अभ्यास से हम सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। इस विषय का उदाहरण वे इस तरह निशान पड जाता है। इसी तरह अभ्यास करते देते हैं रस्सी की बार बार रगड से शिला पर भी करते मूर्ख भी ज्ञानी बन सकता है।
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया
पठित पद्यांश :
निम्न लिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
I. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।।
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।
प्रश्न :
1. भगवान का स्मरण कब नहीं करते हैं?
2. भगवान का स्मरण सब कब करते हैं ?
3. फल कब फलते हैं ?
4. ये दोहे किस पाठ से लिये गये हैं?
5. माली कितने घडे सींचता है ?
उत्तर :
1. सुख में भगवान का स्मरण नहीं करते हैं।
2. सब दुख में भगवान का स्मरण करते हैं।
3. ऋतु आने से फल फलते हैं।
4. ये दोहे अमरवाणी पाठ से लिये गये हैं।
5. माली सौ घडे सींचता है।
II. साई इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावे इतर, लेत सभा जनवासि।।
प्रश्न :
1. कबीर भगवान से कितना धन देने की प्रार्थना करते हैं ?
2. इतर कौन लाते हैं ?
3. उत्तम जन के संग से हमें क्या मिलता है ?
4. उपर्युक्त इन दोहों में से दूसरे दोहे के कवि कौन है ?
5. इन दोहों को किस पाठ से लिया गया है ?
उत्तर :
1. कबीर भगवान से जितना धन अपना परिवार के लिए, आवश्यकता है उतना धन ही को देने की प्रार्थना करते हैं।
2. इतर नृप लाते हैं।
3. उत्तम जन के संग से हमें सुख मिलता है।
4. उपर्युक्त इन दोहों में से दूसरे दोहे के कवि है श्री वृंद। (वृंदावन दास)
5. इन दोहों को ‘अमर वाणी’ पाठ से लिया गया है।
III. करे बुराई सुख है, कैसे पावै कोई।
रोपै बिरवा आक को, आम कहाँ तें होइ।।
करत – करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।
प्रश्न :
1. जडमति सुजान कैसा बनता है ?
2. रस्सी रगडने से सिल पर क्या पडता है ?
3. लोग बुराई करने से किसे नहीं पाते हैं?
4. इन दोहों के कवि कौन है ?
5. इन दोहों को किस पाठ से लिया गया है ?
उत्तर :
1. अभ्यास करते करते जडमति सुजान बनता है।
2. रस्सी रगडने से सिल पर निशान पडता है।
3. लोग बुराई करने से सुख नहीं पाते हैं।
4. इन दोहों के कवि हैं श्री वृंद (वृंदावन दास)
5. इन दोहों को ‘अमर वाणी’ नामक पाठ से लिया गया है।
निम्न लिखित पद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
I. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान ॥
प्रश्न :
1. “अमृत की खान” कौन है?
2. विष की बेलरी क्या है?
3. सीस दिये तो कौन मिलते हैं?
4. “सीस” शब्द का अर्थ क्या है ?
5. ‘सस्ता” शब्द का विलोम शब्द क्या है ?
उत्तर :
1. अमृत की खान गुरु है।
2. विष की बेलरी तन है।
3. सीस दिये तो गुरु मिलते हैं।
4. सीस शब्द का अर्थ है “सिर”।
5. सस्ता शब्द का विलोम है- “महँगा “।
II. अभी समय है. अभी नहीं कुछ भी बिगडा है।
देखो अभी सुयोग, तुम्हारे पास खड़ा है।
करना हो जो काम, उसीमें चित्त लडा दो।
आत्मा पर विश्वास करो, सन्देह भगा दो।
आवेगा क्या समय, समय तो चला जा रहा है।
प्रश्न :
1. इस कविता में किसका महत्व बताया गया है ?
2. हमें किस पर विश्वास करना चाहिए ?
3. हमें किसको भगाना है ?
4. हमें किस पर चित्त लगाना चाहिए ?
5. अभी भी हमारे पास क्या खड़ा है ?
उत्तर :
1. इस कविता में समय का महत्व बताया गया है।
2. हमें आत्मा पर विश्वास करना चाहिए।
3. हमें संदेह को भगाना है।
4. हमें जो काम करना है उसी पर चित्त लगाना चाहिए।
5. अभी भी हमारे पास सुयोग खड़ा है।
III. दो में से क्या तुम्हे चाहिए, कलम या तलवार ?
मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति अजेय अपार ?
अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे, मीठे गान ?
या तलवार पकड, जीतोगे बाहर जो मैदान ?
जला ज्ञान का दीप सिर्फ़ फैलाओगे उजियाली ?
अथवा उठा कृपाण करोगे घर की भी रखवाली ?
पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे ?
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे ?
प्रश्न :
1. कवि किन दो चीज़ों में से एक को चुनने को कह रहा है ?
2. तलवार का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
3. विचारों के जलते अंगारे कौन पैदा करता है?
4. घर की रखवाली कौन करेगा ?
5. दिए गए गद्यांश का शीर्षक” क्या हो सकता है?
उत्तर :
1. कवि कलम और तलवार इन दो चीज़ों में से एक को चुनने को कह रहा है।
2. तलवार का प्रयोग युद्ध में किया जाता है।
3. विचारों के जलते अंगारे कलम पैदा करता है।
4. घर की रखवाली कृपाण करेगा।
5. दिये गये पद्यांश का शीर्षक हो सकता है कलम या तलवार
IV. सबकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाह हो,
गुण, शील, साहस, बल तथा सबमें भरा उत्साह हो।
सबके हृदय में सर्वदा समवेदना का दाह हो,
हमको तुम्हारी चाह हो, तुमको हमारी चाह हो ॥
प्रश्न :
1. सबकी नसों में किनका पुण्य रक्त प्रवाह हो ?
2. सबके हृदय में सर्वदा किसका दाह हो ?
3. सब में गुणशील तथा किनका भरा उत्साह हों ?
4. हमको किसकी चाह हो ?
5. तुम को किसकी चाह हो ?
उत्तर
1. सबकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्त प्रवाह हो।
2. सबके हृदय में सर्वदा समवेदना का दाह हो।
3. सब में गुण, शील, साहस, बल तथा भरा उत्साह हो।
4. हम को तुम्हारी चाह हो।
5. तुमको हमारी चाह हो।
उद्द्शेश्य (ఉద్దేశ్యము) :
नीति दोहों का संकलन व पठन कर नैतिक भावनाओं से जीवन मूल्यों का विकास करना
(నీతి పద్యాలను సంకలనం చేసి లేదా చదివి నైతిక భావములతో జీవిత విలువలను వికసింపచేయుట.)
कवि : कबीरदास
(కవి) (కబీర్దాస్)
जीवनकाल : 1398-1528
(జీవితకాల)
रचनाएँ : बीजक (బీజక్)
(రచనలు).
विशेषताएँ : ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि
(ఏ్రత్యేకతలు) (జ్ఞానమార్గశాఖకు చెందిన ప్రముఖ కవి)
शब्दार्थ – भावार्थ :
1. दुःख में सुमिरन सब करे,सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को हाय।।
शब्दार्थ (అర్థములు) (Meanings) :
- सुमिरन = జ్ఞప్తికి తెచ్చుకొనుట.
- काहे = ఎందుకు, why
- होय = होता है, సంభవించును. to happen
भावार्थ : कबीरदास हिन्दी साहित्य के निर्गुण ज्ञानाश्रय शाखा के प्रतिनिधि कवि थे। कबीर की रचनाएँ बीजक नामक ग्रन्थ में संकलित हैं। वे पढे – लिखे नहीं थे। किन्तु ज्ञानी थे। कबीर कहते हैं कि दु:ख के समय में सब लोग भगवान को याद करते हैं। लेकिन सुख के दिनों में भगवान का स्मरण ही नहीं करते। यदि हम लोग सुख के समय में भी भगवान का समरण करें तो दुःख कैसे हो सकता है। इसलिए भगवान का स्मरण सदा करना चाहिए।
భావార్థము : కబీర్ దాస్ హిందీ సాహిత్య నిర్గుణ జ్ఞానాశ్రయశాఖకు చెందిన గొప్ప కవి. వీరి రచనలు “బీజక్” అను గ్రంథంలో పొందుపరచబడినవి. వారు చదువుకున్నవారు కాదు కాని గొప్ప జ్ఞానవంతులు. దుఃఖ సమయంలో అందరూ భగవంతుని గుర్తుకు తెచ్చుకుంటారు. కాని సుఖములో ఎన్నడూ భగవంతుని తలచరు. మనము సుఖ సమయంలో కూడా భగవంతుని స్మరించినట్లయితే దుఃఖములు ఎందుకు కలుగుతాయి? అందువలన భగవంతుని సదా స్మరిస్తూ ఉండాలి అని కబీరు చెప్పారు.
2. धीरे – धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचै सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।
शब्दार्थ (అర్థములు) (Meanings) :
- धीरे = మెల్లగా, slowly
- मना = మనస్సు, heart/ soul
- सब कुछ = సర్వము / అంతయు whole / complete
- होय = అగును, to happen
- माली = తోటమాలి, gardener
- सीचै = నీరుపెట్టుట, to irrigate
- घडा = కుండ, pot
भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि सारे काम धीरे – धीरे निश्चित समय पर ही होते हैं। शीघ्रता दिखाने मात्र से कोई काम नहीं होता। फल जल्दी पाने की अभिलाषा से माली सौ घडे पानी से पेड सींचता है तो भी असमय में पेड से कोई फल नहीं मिलता। मौसम के आने पर ही पेड से फल निकलते हैं। इसी तरह जल्दबाजी करने मात्र से कोई काम नहीं होता।
భావార్ధము : అన్ని పనులు నెమ్మది – నెమ్మదిగా సరియైన సమయంలోనే జరుగుతాయి. త్వరిత గుణము చూపినంతలోనే ఏ పనీ జరుగదు. పండ్లు త్వరగా పొందాలనే ఆకాంక్షతో తోటమాలి వంద కుండల నీరు చెట్టుకు పోసి తడిపినా అకాలంలో చెట్టు నుండి పండు ఏమీ రాదు. ఋతువు వచ్చినప్వుడే చెట్టుకు పండ్లు కాస్తాయి. ఇదే విధంగా తొందరపాటుతనము వలన ఏ పనీ జరుగదు.
3. साई इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
शब्दार्थ (అర్థములు) (Meanings) :
- साई = భగవంతుడు, god
- कुटुम्ब = పరివారము, family
- भूखा = ఆకలితో ఉన్నవాడు, hungry man
भावार्थ : कबीरदास भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करते हैं – हे भगवान! कृपा करके मुझे इतनी ही संपत्ति दीजिए – जिससे मैं अपने परिवार का पोषण कर सकूँ। मेरी भूख भी मिट जाय और मेरे घर आये साधु लोगों की भूख मैं मिटा सकूँ। अर्थात् साधु लोगों का आदर करने का पवित्र काम हो सके।
భావార్థము : కబీర్దాస్ భగవంతుడి ఈ విధముగా ప్రార్రిస్తున్నారు. ఓ పరమాత్మా! దయచేస్ నా కుటుంబాన్ని పోష్ంచుకోగలిగే, నా ఆకలి తీర్చుకొని, నా ఇంటికి వచ్చిన సాధువుల అకలి తర్చగలిగినంత సంపదనే నాకు ప్రసాదించు.
कवि (కవి) : वृंद (वृंदावनदास) వృంద్ (వృందావన్దాస్)
जीवनकाल (జీవితకాలం) : 1643-1723
रचनाएँ (రచనలు) : वृदं सतसई (వృంద్ సత్సయీ)
विशेषताएँ (ప్రత్యేకతలు) : नीतिपरक दोहों के लिए प्रसिद्ध
(నీతి సంబంధమైన దోహాలకు ప్రసిద్రి చెందినవారు)
1. उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि।।
शब्दार्थ (అర్థములు) (Meanings) :
- उत्तम = మంచి, good
- संग = సాంగత్యము, company
- सहजे ही = సహజంగానే, naturally
- भासी = ప్రకాశిస్తుంది, twinkles
- नृप = రాజు, king
- इतर = సెంటు/లేపనము, scent
भावार्थ : कविवर वृंद हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के सूक्तिकार कवियों में प्रमुख हैं। इनकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण “वृंद सतसई” है उनके दोहे नीतिपरक और उपदेशात्मक हैं। इस दोहे में वृंद जी कहते हैं कि अच्छे और महान गुणवालों के सांगत्य से सदा सुख ही मिलता है। इसी का उदाहरण वे इस तरह देते है- राजा सभा में इत्र (सुगंध) लेकर आते हैं तो उस सुगंध का सुख सभी सभासद लेते हैं। अर्थात् वे इतर का अनुभव करते हैं।
భావార్థము : కవివర్యులు వృంద్ హిందీ సాహిత్య రీతికాల సూక్తికారులైన కవులలో ప్రముఖలు. ‘వృంద్ సత్సయీ’ వీరి ప్రసిద్ధికి ముఖ్యకారణము. వీరి దోహాలు నీతిని, ఉపదేశమును ఇచ్చెడివి.
ఈ దోహోలో వృంద్ మంచివారు, గొప్పగుణములు కలవాళి స్నేహము వలన ఎప్పుడ సుఖము కలుగుతుంది. దీనికి ఉదాహరణనిస్తూ అంటున్నారు. రారాజు సభకు సుగంధ లేపనము తీసుకొని (సెంటు) వచ్చినప్పుడు, దాని సువాసన సుఖ్న్న్ సభికులందరూ అనుభవించి సంతోషిస్తారు.
2. करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोई।
रोपे बिरवा आक को, आम कहाँ तें होइ।
शब्दार्थ (అర్థములు) (Meanings) :
- चहै = चाह, కోరిక, wish / desire
- पावै = పొందుట, to get
- रोपै = నాటుట, to sow
- बिरवा = మొక్క, plant
भावार्थ : कविवर वृंद जी कहते हैं कि कोई भी बुराई करके सुख चाहे तो वह कैसे मिल सकता है। अर्थ है कि बुरा करके सुख पाना असंभव है। उदाहरण देते वृन्द कहते हैं कि आक का पौधा लगाकर आम का फल प्राप्त करना कैसे संभव होता है ? उसी तरह भलाई करके ही सुख प्राप्त करना है, बुराई करके नहीं।
భావార్థము : ఎవరైనా చెడు చేసి సుఖము / సంతోషం కోరుకుంటే ఎలా కలుగుతుంది? అనగా కీడు / హాని చేసి సుఖం పొందటం అసంభవము. దీనికి ఉదాహరణ ఇస్తూ వృంద్ చెప్పుచున్నారు. జిల్లేడు మొక్క వేసి మామిడి పండు పొందటం ఎలా సంభవమవుతుంది. అదే విధంగా మేలు చేస్తేనే సుఖాన్ని పొందవచ్చు, కీడు చేసి కాదు.
3. करत – करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।
शब्दार्थ (అర్థములు (Meanings) :
- जडमति = మూర్ఖుడు, fool
- सुजान = పండితుడు, clever
- रसरी = త్రాడు, rope
- सिल = రాయి, stone
- निसान = చిహ్నము/గుర్తు, symbol
भावार्थ : कविवर वृंद जी इस दोहे में अभ्यास का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि अभ्यास से हम सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं। इस विषय का उदाहरण वे इस तरह देते हैं – रस्सी की बार – बार रगड से शिला पर भी निशान पड जाता है। इसी तरह अभ्यास करते – करते मूर्ख भी ज्ञानी बन सकता है।
భావార్థము : కవివర్యులు వృంద్ ఈ దోహాలో సాధన యొక్క గొప్పతనాన్ని వర్ణిస్తున్నారు. సాధనతో మనము అన్నీ పొందగలము. ఈ విషయానికి ఉదాహరణను ఇస్తూ త్రాడు యొక్క ఒరిపిడి వలన బండ రాయి మీద కూడా గుర్తు ఏర్పడుతుంది. ఇదే విధముగా సాధన చేయగా చేయగా మూర్ఖుడు కూడా పండితుడు కాగలడు అని అంటున్నారు.