Telangana SCERT TS 10th Class Hindi Study Material उपवाचक 4th Lesson अनोखा उपाय Textbook Questions and Answers.
TS 10th Class Hindi Guide Upavachak 4th Lesson अनोखा उपाय
प्रश्न – ప్రశ్నలు :
प्रश्न 1.
राजा कुमारवर्मा के राज्य में अकाल की स्थिति क्यों उत्पन्न हुई होगी?
(రాజు కుమారవర్మ రాజ్యంలో కరవు పరిస్థితి ఎందుకు సంభవించి ఉండవచ్చు?
उत्तर :
अकाल की स्थिति तो प्रकृति से संबंधित अंश है। अकाल की स्थिति का कारण वर्षा की कमी है। यदि वर्षा की कमी हो या वर्षा बराबर नहीं हो तो अकाल की स्थिति उत्पन्न होगी। इसी कारण राजा कुमारवर्मा के राज्य में अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई होगी।
(కరవు స్థితి అయితే ప్రకృతికి సంబంధించిన విషయము. అనావృష్టే కరవు స్థితికి కారణము. వర్షం తక్కువగా కురిసినా తగినంత వర్షం కురవకపోయినా కరవు పరిస్థితి ఏర్పడుతుంది. ఈ కారణంగానే రాజు కుమారవర్మ రాజ్యంలో కరవు పరిస్థితి సంభవించి ఉండవచ్చు.)
प्रश्न 2.
अकाल की समस्या के परिष्कार के लिए राजा ने क्या क्या उपाय सोचे होंगे ?
కరవు సమస్యా పరిష్కారానికి రాజు ఏ ఏ ఉపాయాలు ఆలోచించు ఉండవచ్చు?
उत्तर :
- राजा कुमार वर्मा ने अकाल की समस्या के परिष्कार के लिए कई बुद्धिमानों और विद्वानों को बुलवाया होगा।
- राजभंडार का अनाज प्रजा में बाँट दिया होगा।
- अडोस-पडोस के राज्यों से अनाज़ उधार लिये होंगे।
- सभी तरह से खुशहाल किसी राज्य के राजा से, वहाँ के शासन नियमों का पता प्राप्त करने भेंट कियें होंगे।
- (రాజు కుమారవర్మ కరవు సమస్యా పరిష్కారానికి అనేకమంది బుద్ధిశాలులను, పండితులను పిలిపించి ఉండవచ్చు.
- రాజభాండాగారములోని ధాన్యాన్ని ప్రజలకు పంచిపెట్టి ఉండవచ్చు.
- చుట్టుప్రక్క రాజ్యముల నుండి ధాన్యాన్ని ఋణంగా తీసుకొని ఉండవచ్చు.
- అన్ని విధముల సుఖముగానున్న రాజ్యము యొక్క రాజును అక్కడి పరిపాలనా విషయములను తెలుసుకోవడానికి కలిసి ఉండవచ్చు.)
प्रश्न 3.
राजा कुमारवर्मा की जगह पर यदि तुम होते तो अकाल की समस्या से कैसे जूझते ?
(రాజు కుమారవర్మ బదులుగా నీవే ఉంటే కరవు పరిస్థితిని ఎలా ఎదుర్కొంటావు ?)
उत्तर :
राजा कुमारवर्मा की जगह पर यदि मैं होता तो अकाल की समस्या से इस प्रकार जूझता
- राज्य के धान्यागार में से धान लेकर सबको बाँट देता।
- अडोस-पडोस के राज्यों के राजाओं से धन-धान्य आदि उदार लेकर जनता में बाँट देता।
- नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि पढ़कर समस्या को हल करने का प्रयत्न करता ।
- नीति कोविद, धर्मकोविद, ज्योतिष्य कोविदों को बुलाकर उनसे अकाल के कारणों के बारे में चर्चा करता।
- वेदों में लिखा गया है कि यज्ञ यागादि कार्य करने से अकाल की स्थिति दूर होगी। इस कथन के अनुसार मैं यज्ञ यागादि कार्यक्रम करता।
- शास्त्र, सांकेतिक वैज्ञानिकता की सहायता से मेघ मदन कार्यक्रम करता।
(రాజు కుమారవర్మ బదులుగా నేను ఉంటే కరవు పరిస్థితిని ఈ విధంగా ఎదుర్కొంటాను
- రాజ్యపు ధాన్యాగారము నుండి ధాన్యము తీసుకొనిపోయి అందరికీ పంచుతాను.
- పొరుగు రాజ్యాల రాజుల నుండి ధనము ధాన్యము ఋణంగా తీసుకొని ప్రజలకు పంచుతాను.
- నీతిశాస్త్రము, ధర్మశాస్త్రములు మొ||వాటిని చదివి సమస్యను పరిష్కరించెడి ప్రయత్నం చేస్తాను.
- నీతికోవిదులు, ధర్మకోవిదులు, జ్యోతిష్య పండితులను పిలిపించి వారితో కరవు కారణముల గురించి చర్చిస్తాను.
- యజ్ఞ-యాగాది కార్యములు చేయుట వలన కరవు స్థితి దూరమవుతుందని వేదాలలో వ్రాయబడినది. ఈ వివరణ ప్రకారం నేను యజ్ఞ యాగాది కార్యములు చేస్తాను..
- శాస్త్రములు, సాంకేతికమైన విజ్ఞానము సహాయముతో మేఘమదన కార్యక్రమము చేస్తాను.)
अर्थग्राह्यता – प्रतिक्रिया :
नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।
I. महाराज सत्यसिंह ने पहले तो हितोपदेश के लिए मना कर दिया। किंतु राजा कुमारवर्मा के अनुरोध पर उन्होंने कहा – ‘नहीं महाराज ! मुझे मजबूर मत कीजिए। मैं दोषी हूँ। जो दोषी होता है, उसे हितोपदेश करने का कोई अधिकार नहीं होता। में आपको एक घटना सुनाता हूँ। मैं एक बार अपने अंगरक्षक के साथ इसी तरह उपवन में चर्चा कर रहा था। तभी मुझे राजमाता के पास ज़रूरी बात करने के लिए जाना पड़ा। मैने अंगरक्षकों को अपने लौटने तक वहीं खड़े रहने का आदेश दिया था। राजमाता से बात करते – करते रात हो गयी। बहीं पर मैंने भोजन किया।. सो गया। अगले दिन सुबह उटकर देखा तो खूब बारिश हो रही थी! सेवकों ने बताया कि देर रात से बारिश हो रही थी। जब मैंने उपवन लौटकर देखा तो अंगरक्षक उसी स्थान पर भीगते हुए खड़े थे। में बातचीत में इतना निमग्न हो गया था कि अंगरक्षकों को जाने के लिए भी नहीं कह सका। यह मेरी भूल थी। अतः ऐसी भूल करने बाले राजा को हितोपदेश देने का कोई अधिकार नहीं। मुझे क्षमा कीजिए।”
प्रश्न :
1. सत्यसिंह हितोपदेश क्यों नहीं दे सकते थे ?
2. राजा सत्यसिंह उपवन में किसके साथ चर्चा कर रहे थे ?
3. राजा सत्यसिंह अंगरक्षकों से क्या कहा ?
4. अंगरक्षकों को उपवन में छोडकर राजा सत्यसिंह कहाँ गये थे ?
5. राजा किसे भूल समझे ?
उत्तर :
1. सत्यसिंह अपने आपको दोषी मानते थे, इसलिए वे हितोपदेश करने का कोई अधिकार नहीं रखते थे।
2. राजा सत्यसिंह उपवन में अंगरक्षकों के साथ चर्चा कर रहे थे।
3. राजा सत्यसिंह अंगरक्षकों से यह कहा कि मेरे लौटने तक यहीं खड़े रहना, वे रात भर बारिष में वहीं खड़े रहें। .
4. राजा माता के बुलाने पर राजा सत्यसिंह अंगरक्षकों को उपवन में छोड़कर राजमहल में राजमाता से बातचीत करने चले गये थे।
5. अंगरक्षकों को रात भर बारिश में ठृहरा करना राजा भूल समझे।
II. राज्य में पशुओं का चारा मिलना भी मुश्किल हो गया था। कई क्सिान अपने – अपने पालतू जानवर सस्ते दामों पर बेचने लगे। ऐसी परिस्थितियों में राजभंडार का अनाजं प्रजा में बाँटा जाने लगा। अड़ोस – पड़ोस के राज्यों से अनाज उधार लिया जाने लगा। फिर भी राजा को भविष्य की चिंता सता रही थी। राजा उत्पन्न परिस्थितियों के बारे में गंभीर रूप से सोचने लगा लेकिन इसका कोई पता नहीं चला।
प्रश्न :
1. राज्य में पशुओं की दशा कैसी थी ?
2. प्रजा की र्थिति देखकर राजा ने क्या किया?
3. राजा अनाज कहाँ से ला रहा था ?
4. राजा को किस तरह की चिंता सता रही थी ?
5. राजा किसके बारे में सोचने लगा ?
उत्तर :
1. राज्य में पशुओं का चारा म्लिना भी मुश्किल हो गया था।
2. प्रजा की स्थिति देखकर राजा राजभंडार का अनाज प्रजा में बाँट दिया था।
3. पडोसी राज्यों से अनाज उधार लिया जा रहा था।
4. राजा को राज्य की भविष्य की चिंता सता रही थी।
5. राजा राज्य में उत्पन्न समस्याओं के बारे में गंभीरता से सोचने लगा।
III. देखते – देखते वह दिन आ ही गया। राजा कुमारवर्मा का पड़ोसी राज्य में भव्य स्वागत हुआ। वहाँ चारों तरफ जलाशय भरे हुए थे। नदियाँ लबालब थीं। नहरें बह रही थीं। ठंडी हवाएँ सन – सना रही थीं। खेत भरी हरियाली से लह – लहा रहे थे। फूलों के चमन खुशबू से महक रहे थे। बाग – बगीचे फल – फूलों से लदे थे । ये सारी चीज़ें देखकर राजा कुमाखबर्मा को बेहद खुशी हुई। “पुत्र !, सच कहूँ तो मैं भी दोषी हूँ। एक बार मेरे पुत्र ने अपनी पत्नी के लिए आभूषण बनवाये। मेरे मन में आभूषण के प्रति लालच हुआ। यदि मैं अपने पुत्र या बहू से जेवर माँगती, तो बे कभी मना नहीं करते। एक राजमाता का ज़ेघरों के प्रति आकर्षण होना दोष है। किसी दूसरे की वस्तु के प्रति लालच रखना भी ग़लत है। ऐसी भूल करने बाली मैं, हितोपदेश करने के योग्य नहीं समझती।”.
प्रश्न :
1. राजा का नाम क्या है?
2. पड़ोसी राज्य में राजा कुमार वर्मा को क्या देखने को मिला ?
3. पड़ोसी राज्य में चारों तरफ़ क्या भरे हुए थे ?
4. ज़ेवर को देखकर किसको लालच पैदा हुआ ?
5. उपर्युक्त गद्यांश से आप क्या सींखते हैं?
उत्तर :
1. राजा का नाम कुमार वर्मा है।
2. नदियाँ, नहरें, ठंडी हवाएँ, हरियाली से भरे खेत, फूलों की खूशबू
3. पड़ोसी राज्य में चारों तरफ़ जलाशय भरे हुये थे।
4. जेवर को देखकर राजमाता को लालच पैदा हुआ।
5. उपर्युक्त गद्यांश से यह सीखने को मिलता है कि दूसरे की वस्तु के प्रति लालच रखना ग़लत है।
IV. राजा कुमारवर्मा आश्चर्य में पड़ गया। बाद में राजगुरु से भेंट की और उनसे उपदेश के लिए निवेदन किया। तब राज्गुरु ने कहा, ‘‘महाराज! मुझे क्षमा कीजिए। मैं इसके योग्य नहीं। एक बार सुदूर देश सें एक पंडित आया था। राजदर्शन करना चाहा। उसके पांडित्य की जाँच करने का समय न होने के कारण मैंने राजा को यह कह दिया कि बह बडा पंडित है। राजा मुझ्न पर असीम विश्वास रखते हैं। उन्होंने पंडित को ढेंर सारा इनाम दिया। आगे चलकर मुझे पता चला कि वह पंडित केवल औसत था। मेरे आलस के कारण मैं राजा को उचित सलाह न दे सका। ऐसी भूल करनेकाला मैं, हितोपदेश के योग्य नहीं समझता’। राजाकुमारवर्मा बड़ी सोच में पड़ गया। इन तीन घटनाओं से उसे यह सीख मिली कि हमें छोटी से छोटी भूल भी नहीं करनी चाहिए। यदि हमसे कोई भूल हो तो उसे सुधारलेना चाहिए। राजा ने इस सीख का पालन किया। कुछ ही दिनों में उसका राज्य खुशहाल बन गया।
प्रश्न :
1. राजा कुमार वर्मा की भेंट किंससे हुई ?
2. राजा से मिलने कौन आया ?
3. राजा किस पर विश्वास रखते हैं?
4. राजगुरु अपने आपको हितोपदेश देने के योग्य क्यों नहीं समझते हैं?
5. राजा कुमार वर्मा को क्या सीख मिली ?
उत्तर :
1. राजा कुमार वर्मा की भेंट राजगुरु से हुई।
2. राजा से मिलने सुदूर देश से एक पंडित आया।
3. राजा राज गुरु पर विश्वास रखते हैं।
4. राजगुरु राजा को उचित सलाह न .दे सकें। इसलिए अपने आपको हितोपदेश देने अयोग्य समझते हैं।
5. राजा कुमार वर्मा को यह सीख मिली कि हमें छोटी से छोटी भूल भी नहीं करनी चाहिए। यदि हमसे कोई भूल हो तो उसे सुधार लेना चाहिए।
v. राजा ने इस समस्या के हल की चर्चा के लिए कई बुदूधिमानों, हाज़िर जवाबदारों और बिद्ववानों को बुलवाया। सब एक के बाद एक अपने – अपने सुझाव देने लगे ।र्चा में कुछ बुद्धिमानों ने बताया – “हे महांराज! भूलें कई तरह की होती हैं। कुछ भूलें सरलता से पहचानी जाती हैं तो कुछ पहचानी नहीं जातीं।” कुछ हाज़िरजवाबदारों ने बताया – “हहे राजन ! कुछ भूलों का आभास होता है और कुछ का आभास तक नहीं होता।’ कुछ विद्वानों ने बताया ‘है प्रभु ! कुछ भूलें सुधार के रूप में हो जाती हैं, तो कभी – कभी कोई सुधार कार्य भी भूल के रूप’ बदल जाती हैं। ऐसी ही कोई जानी – अनजानी बात छिपी होगी।
प्रश्न :
1. राजा कुमार वर्मा विद्वानों और बुद्धिमानों को क्यों बुलवाया ?
2. बुद्धिमानों ने राजा से क्या बताया ?
3. हाज़िर जवाबदारों ने राजा को क्या बताया ?
4. विद्वानों ने राजा को क्या संमझाया ?
5. राज्य में समस्या.उत्पन्न होने का क्या कारण बताया गया ?
उत्तर :
1. राजा कुमार वर्मा ने राज्य में उत्पन्न समस्या के हल की चर्चा के लिए विद्वानों और बुद्धिमानों को बुलवाया।
2. बुद्धिभानों ने राजा से बताया कि – भूलें कई तरह की होती हैं। कुछ सरलता से पहचांनी जाती हैं तो कुछ पहचानी नहीं जातीं।”
3. हाज़िर जवाबदारों ने राजा को यह बताया कि कुछ भूलों का आभास होता है, कुछ का अभास नहीं होता।
4. विद्वानों ने बताया कि राजा कुछ भूले सुधार के रूप में हो जाती हैं, तो कभी – कभी सुधार कार्य भी भूल के रूप में बदल जाती हैं।
5. कोई जानी – अनजानी बात छिपी होती जिससे राज्य में समस्या उत्पन्न हुई है।
VI. महांराज सत्यसिंह ने अपने संदेश में लिखा – “आप और हम पड़ोसी राजा हैं। किसी भी समस्या में एक – दूसरे का हाथ बँटाना हमारा कर्तव्य है। हमारे राज्य में आपका हार्दिक स्वागत है। आप हमारे आदरणीय अतिथि हैं। अतिथि के रूप में आपका सत्कार करने का सौभाग्य हमें मिल रहा है, इसके लिए हम कृतज़ हैं।“ इस प्रत्युत्तर के पढ़ते ही राजा कुमारवर्मा को अपने राज्य की समस्या का हल करने का कुछ हद तक उपाय मिल ही गया था। फिर भी राजा स्वयं पड़ोसी राज्य के राजा से भेंट करना चाहते थे।
प्रश्न :
1. महाराज सत्यसिंह के पडोसी राजा कौन थे ?
2. किसी भी समस्या के आने पर हमारा कर्तव्य क्या होता है?
3. सत्यसिंह का प्रत्युत्तर पढते ही राजा कुमार वर्मा को कैसा अनुभव हुआ ?
4. राजा कुमारवर्मा क्या करना चाहते थे ?
5. यह गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?
उत्तर :
1. महाराज सत्यसिंह के पडोसी राजा, राजा कुमारवर्मा थे।
2. किसी भी समस्या के आने पर हमारा कर्तव्य एक – दूसरे का हाथ बँटाना होता है।
3. सत्यसिंह का प्रत्युत्तर पढते ही राजा कुमार वर्मा को अपने राज्य की समस्या का हल करने का कुछ हद तक उपाय मिल जाने का अनुभव हुआ।
4. राजा कुमारवर्मा स्वयं पड़ोसी राज्य के राजा से भेंट करना चाहते थे।
5. यह गद्यांश ‘अनोखा उपाय’ पाठ से लिया गया है।
अपठित गद्यांश :
1. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।
वास्तव में मानव की प्रमुख आवश्यकताएँ तीन हैं। उनमें प्रथम और अनिबार्य आवश्यकता है ‘अन्न’। दितीय आवश्यकता है ‘वस्ख’ और तृतीय है ‘गृह’। अत्र शरीर का पोषण बनकर उससे अभिन्न हो जाता है ; किंतु बस्र तथा गृह जैसे अपनाये जाते हैं, बैसे त्यागे भी जा सकते हैं। अतः जीवन में इनका स्तान गौण है। आवश्यकता चाहे प्रधान हो चाहे गोण, बह आज अत्यन्त अप्राकृतिक अवस्था को पहुंचायी गयी है। इसी से मानव के सामने आज अनन्त समस्याओं का जाल बिछा हुआ है। आज मनुष्य श्रम नहीं, विश्राम चाहता है। इसी से बह आलसी और विलासी बना हुआ है और ऊँच – नीच तथा मान सम्मान के कृत्रिम घेरे में घिरा हुआ है। जिस दिन कृत्रिमता का यह घेरा हट जायेगा और जिस दिन वह श्रम के महत्य को महसूस करके अपनी अप्राकृतिक आवश्यकताओं का विस्तार छाँटकर प्रकृति के अधिक निक्ट रहने का प्रयत्न करेगा, उस दिन वह दुर्बल – प्राणी क्यों होगा?
प्रश्न 1.
गध्यांश में मानव की किन आवश्यकताओं का उलेख है ?
उत्तर :
गद्यांश में मानव की अन्न, वस्त्र, गृह आदि तीन आवश्यकताओं का उक्लेख है।
प्रश्न 2.
जीवन में किनका स्थान गौण है ?
उत्तर :
जीवन में वस्त्र, गृह आदि का स्थान गौण है।
प्रश्न 3.
मनुष्य आलसी और विलासी कैसे बना ?
उत्तर :
श्रम करने की अपेक्षा, विश्राम चाहने के कारण मनुष्य आलसी. और विलासी बना।
प्रश्न 4.
किसके निकट आने का संदेश दिया गया है ?
उत्तर :
प्रकृति के निकट आने का संदेश दिया गया है।
प्रश्न 5.
गद्यांश का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर :
श्रम का महत्व ही गद्यांश का मुख्य विषय है।
2. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।
अपने जीबन में तीन बातों को मैं प्रधान पद देता हूं। उनमें पहली है – उद्योग’। अपने देश में आलस्य का भारी वाताबरण है। यह आलस्य बेकारी के कारण आया है। शिक्षितों का उद्योग से कोई ताल्लुक ही नहीं रहता, और जहाँ उद्योग नहीं बहाँ सुख कहाँ। दूसरी बात जिसकी मुझे धुन है, वह ‘भक्तिमार्ग’ है। ब्चपन से ही मेंरे मन पर यदि कोई संख्कार पड़ा है तो वह भक्तिमार्ग का है। उस समय मुझे माता से शिक्षा मिली। आगे चलकर आश्रम में दोनों कक्त की प्रार्धना करने की आदत पड़ गयी। तीसरी एक और बात को मुझे धुन है, पर सबके काबू की वह चीज़ नहीं हो सकती। बह चीज़ है – ‘खूब सीखना और खूब सिखाना’ जिसे जो आता है वह उसे दूसरे को सिखाए और जो सीख सके उसे वह सीखे।
प्रश्न 1.
गद्यांश में किन तीन बातों का उलेख है?
उत्तर :
गद्यांश में उद्योग, भक्तिमार्ग तथा खूब सीखना और खूब सिखाना तीन बातों का उल्लेख हैं।
प्रश्न 2.
आलस्य का कारण क्या है?
उत्तर :
आलस्य का कारण ‘बेकारी’ है।
प्रश्न 3.
लेखक को उनकी माता ने क्या शिक्षा दी थी ?
उत्तर :
लेखक को उनकी माता ने भक्तिमार्ग की शिक्षा दी थी।
प्रश्न 4.
किस बात को लेखक ने सबके लिए कठिन माना है?
उत्तर :
लेखक ने ‘खूब सीखना और खूब सिखाना’ बात को सबके लिए कठिन माना है।
प्रश्न 5.
गद्यांश के लिए उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
इस गद्यांश का उचित शीर्षक तीन महत्वपूर्ण बातें या जीवन की तीन महत्वपूर्ण बातें हैं।
3. निम्नलिखित गद्यांश् पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों कें लिखिए।
पेड़ हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जीवन प्रदान करता है क्योंकि ये ऑक्सीजन उत्पादन, CO2 उपभोग का द्रोत और बारिश का स्रोत है। प्रकृति की तरफ से धरती पर मानवता को दिया गया ये सबसे अनमोल उपहार है जिसका हमें आभारी होना चाहिए तथा इसको सम्मान देने के साथ ही मानवता की भलाई के लिए सुरक्षित करना चाहिए।
हमें अपने जीवन में पेड़ के महत्व को समझना चाहिए और जीवन को बचाने के लिए, धरती पर पर्यावरण को बचाने के लिए और पृथ्वी को हरित पृथ्वी बनाने के लिए पेड़ों को बचाने के लिए अपना सबसे बेहतर प्रयास करना चाहिए। पेड़ सोने की तरह मूल्यवान है इसी बजह से इन्हें धरती पर ‘हरा० सोना’ कहा जाता है। संपत्ति के साथ ही हमारी सेहत का ये वास्तविक स्रोत है, क्योंकि ये ऑक्सीजन, उंडी हवा, फल, फसाले, सबी, दवा, पानी, लकडी, फर्नीचर, छाया, जलाने के लिए इंधन, घर, जानवरों के लिए चारा आदि बहुत कुछ उपयोगी देता है।
प्रश्न 1.
पेड़ हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जीवन प्रदान करता है, कैसे ?
उत्तर :
पेड़ ऑक्सीजन उत्पादन, CO2 उपभोग और बारिश का स्रोत होने के कारण हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जीवन प्रदान करता है।
प्रश्न 2.
हम किसके आभारी है?
उत्तर : हम पेड़ के आभारी हैं।
प्रश्न 3.
पेड़ों को हरा सोना क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
पेड़ सोने की तरह मूल्यवान है इसीलिए इन्हें ‘हरा सोना’ कहा जाता है।
प्रश्न 4.
हमें क्या प्रयास करना चाहिए?
उत्तर :
हमें धरती पर पर्यावरण को बचाने, पृथ्वी को हरित पृत्वी बनाने, तथा पेड़ों को बचाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 5.
इस गद्यांश का एक उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
‘पेड़ों का महत्व’ या ‘पेड़ और पर्यावरण’।
4. निम्नलिखित गद्यांथ पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों कें लिखिए।
हाथियों के संरक्षण के लिए किये जा रहे अनेक प्रयासों के बावजूद पिछले पाँच वर्षों में हाथियों की संख्या में लगभग तीस प्रतिश्त की कमी आयी है। मार्च-मई 2017 के दौरान देश में हाथियों की गणना की गयी । पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्री ने 12 अगस्त 2017 को विश्व गज दिवस के अवसर पर एक समारोह में बताया कि देश में कुल हाथियों की संख्या 27,312 है। वर्ष 2012 में देश में लगभग तीस हज़ार हाथी थे। देश में हाथियों की सर्वाधिक संख्या बाला राज्य कर्नाटक है। असम दूसरे और केरल तीसरे स्थान पर है। विश्न में एशियाई हाथियों की कुल संख्या 40-50 हजार के बीच है, इनमें सें लगभग 60 प्रतिशत तो भारत में ही हैं।
प्रश्न 1.
पिछले पाँच वर्षों में कितने प्रतिशत हाथियों की संख्या घट गयीं ?
उत्तर :
पिछले पाँच वर्षों में लगभग तीस प्रतिशत हाथियों की संख्या घट गयीं।
प्रश्न 2.
किस मंत्री ने हाथियों से संबंधित जानकारी दी ?
उत्तर :
पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्री ने हाथियों से संबंधि जानकारी दी।
प्रश्न 3.
विश्व गज दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर :
विश्व गज दिवस 12 अगस्त को मनाया जाता है।
प्रश्न 4.
हाथियों की सर्वाधिक संख्या किस राज्य में है ?
उत्तर :
हाथियों की सर्वाधिक संख्या कर्नाटक में है।
प्रश्न 5.
इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
इस गद्यांश का उचित शीर्षक ‘हाथियों का संरक्षण है।
5. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।
भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था, वे बाणी के डिक्टेटर थे। लिस बात को उन्होने जिस रूप में प्रकट करना चाहा उसे उसी रूप में भाषा से कहलबा लिया। बन गया तो सीधे-सीधे नहीं तो आदेश देकराभाषा कुछ कबीर के सामने लाचार – सी नज़ आती है। उसमें मानों ऐसी हिम्मत नहीं है कि इस लापरवाह फंड़ की किसी फ़रमाइश को पूरा नहीं कर सके और कहनी – अनकहनी को रूप देकर मनोग्राही बना देने की तो जैसी ताकत कबीर की भाषा में है, वैसी बहुत कम लेखकों में पाई जाती है।
प्रश्न 1.
“वाणी के डिक्टेटर'” कौन थे ?
उत्तर :
वाणी के डिक्टेटर कबीर थे।
प्रश्न 2.
कंबीर ने बात को किस रूप में प्रकट करना चाहा ?
उत्तर :
कबीर ने बात को जिस रूप में प्रकट करना चाहा उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा लिया। बन गया तो सीधे – सीधे नहीं तो आदेश देकर।
प्रश्न 3.
कबीर की भाष में कैसी ताकत थी ?
उत्तर :
कबीर की भाषा में कहनी – अनकहनी को रूप देकर मनोग्राही बना देने की ताकत थी।
प्रश्न 4.
कबीर को किस पर जबरदस अधिकार था ?
उत्तर :
कबीर को भाषा पर जबरदस्त अधिकार था।
प्रश्न 5.
कबीर के सामने भाषा की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर :
कबीर के सामने भाषा लाचार ‘सी नजर आती थी।
6. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों के लिखिए।
1915 में गाँधी जी ने भारत आकर यहाँ की राजनीति में प्रवेश किया। जिस अहिंसा और सत्याग्रह से उन्हें अफ्रीका में सफलता प्राप्त हुई थी, उसी का प्रयोग भारत को स्वाधीन कराने के लिए उन्होंने शुरू किया। पहला सत्याग्रह आंदोलन 1920 में शुरू हुआ। किन्तु उस समय तक लोग गाँधी जी के सिद्धांतों को पूरी तरह समझ नहीं पाए थे। चौरी – चौरा नामक ग्राम में सत्याग्रह के सिलसिले में हिंसात्मक उपद्रब हो गया। गाँधी जी, जो सचे हृदय से अहिंसा के समर्थक थे, सत्याग्रह को तब तक के लिए स्थगित कर दिया, जब तक कि लोग अहिंसा का पालन करना भली – भांति सीख जाएँ। दस समल तक गाँधी जी देश में प्रचार करके सत्यय्रह के लिए उपयुक्त बाताबरण तैयार करते रहे। 1930 में दुबारा सत्याग्रह शुरू किया गया और इस बार सरकार को झुक्ना पड़ा।
प्रश्न 1.
गाँधीजी ने पहले अहिंसा और सत्याग्रह का प्रयोग किस देश में किया था ?
उत्तर :
गाँधीजी ने पहले अहिसा और सत्याग्रह का प्रयोग अफ्रीका देश में किया।
प्रश्न 2.
गाँधीजी के सिद्धांतों को लोग कब तक नहीं समझ पाये थे ?
उत्तर :
गाँधीजी के सिद्धांतों को लोग पहले सत्याग्रह आंदोलन 1920 तक नहीं समझ पाये थे।
प्रश्न 3.
गाँधीजी ने सत्याग्रह को क्यों त्थगित किया?
उत्तर :
चौरी-चौरा नामक ग्राम में हिंसात्मक उपद्रव फूट पड़ने के कारण सत्याग्रह को स्थगित किया गया।
प्रश्न 4.
सरकार को क्यों झुकना पड़ा ?
उत्तर :
1930 में सफलतापूर्वक सत्याग्रह शुरु किया गया। इसी कारण सरकार को झुकना पड़ा।
प्रश्न 5.
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर :
“सत्याग्रह’ ‘या “अहिंसा” या “गाँधी जी और अहिंसा”
7. निम्नलिखित गद्यांट पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखिए।
कई लोगों को ज़ररत न होने पर भी चीजों को खरीदने और इकटा करने की आदत होती है। यह आदत टी.बी., अखबार आदि के बिज्ञापनों से बहुत प्रभावित होती है। समाज में बड़े पैमाने में मौजूद इस स्थिति को उपभोक्तावाद कहते है। उपभोक्तावाद के विस्फोट पर अब सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि इसने पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ाकर दिया है। उपभोक्तावाद, अति उपभोग, बेहिसाब कचरा, उत्पादन और प्रदूषण का दानव तेल – संसाधनों की नीव पर खड़ा है। इन जीवाश्म ईधनों ने बेहिसाब मात्रा में प्रदूषण पैदा किया है जो जीवन के विविध रूपों के लिए विनाशकारी है। इसके लिए नई सदी में पश्चिमी विकसित जगत अपने भविष्य के लिए पर्यावरण की दृष्टि से भरोसेमंद और टिकाऊ विकल्प खोन रहा है। साइकिल – रिश्शा एक ऐसा ही विकल्प है। यह पूरे एशिया और विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीीप के परिवहन का एक लोकप्रिय साधन है।
प्रश्न 1.
बिना जरूरत चीजों को खरीदने एवं इकद्धा करने की आदत का कारण क्या है?
उत्तर :
टी.वी., अखबार आदि के विज्ञापनों के प्रभाव के कारण लोगों में ज़रूरत न होने पर भी चीजों को खरीदने एवं इकट्टा करने की आदत होती है।
प्रश्न 2.
उपभोक्तावाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
समाज में बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा ज़रूरत न होने पर भी चीजों को खरीदना और इकट्टा करना उपभोक्तावाद कहलाता है।
प्रश्न 3.
जीवन के विविध रूपों के लिए विनाशकारी साधन क्या है ?
उत्तर :
जीवन के विविध रूपों के लिए विनाशकारी साधन जीवाश्म इंधन से उत्पन्न प्रदूषण है।
प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप में परिवहन का प्रमुख साधन क्या होना चाहिए ?
उत्तर :
भारतीय उपमहाद्वीप में परिवहन का प्रमुख साधन साइकिल – रिक्शा है।
प्रश्न 5.
नई सदी में विकसित जगत किस ओर अपनी दृष्टि फैला रहा है ?
उत्तर :
नई सदी में विकसित जगत अपने भविष्य के लिए पर्यावरण की दृष्टि से भरोसेमंद और टिकाऊ विकल्प की खोज की ओर अपनी दृंष्टि फैला रहा है।
8. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वांक्यों कें लिखिए।
उस ज़माने में न तो मकान थे और न कोई दूसरी इमारत थी। लोग गुफ़ाओं में रहते थे। खेती करना किसी को न आता था। लोग जंगली फल बगोरा खाते थे, या जानबरों का शिकार करके मांस खाकर रहते थे। रोटी और भात उन्हें कहाँ मयस्सर होता, क्योंकि उन्हें खेती करनी आती ही न थी। वे पकाना भी नहीं जानते थे, हाँ शायद मांस को आग में गर्म कर लेते हों। उनके पास पकाने के बर्तन जैसे कढ़ाई और पतीली भी न थे। एक बात बड़ी अजीब है। इन जंगली आद्रमियों को तसवीर खींचना आता था। यह सत्य है कि उनके पास कागल़, क़लम, पेंसिल या ब्रश न थे। उनके पास सिर्फ़ पत्थर की सुइयाँ और नोकदारे औज़ार थे।
प्रश्न 1.
इस गघ्यांश में किस प्रकार के लोगों की जानकारी है?
उत्तर :
इस गद्यांश में जंगली आदमियों की जानकारी है।
प्रश्न 2.
वे क्या खाते थे ?
उत्तर :
वे जंगली फल और जानवरों का मांस खाते थे।
प्रश्न 3.
रोटी और भात उन्हें क्यों मयस्सर न था ?
उत्तर :
रोटी और भात उन्हें मयस्सर न थे क्योंकि उन्हें करनी नहीं आती थी।
प्रश्न 4.
वे मांस कैसे खाते थे ?
उत्तर :
वे मांस आग में गर्म करके खाते थे।
प्रश्न 5.
वे तस्वीर कैसे बनाते थे ?
उत्तर :
वे पत्थर की सुइयें और नोकदार औज़ार से तसवीर बनाते थे ।
9. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों कें लिखिए।
प्राचीन भारत का थोड़ा बहुत पता जो हमें लगता है, गह ग्रीक और चीनी यात्रियों के यात्रा – वृत्तान्त से लगता है। ग्रीक वाले इस देश में सैनिक अथवा राजदूत बनकर आते थे। इससी से उनके लेखों में अधिक्तर भारतीय राजनीनिं, शासन – पद्धति और भौगोलिक बातों का ही उल्लेख है। उन्होंने भारतीय धर्म शास्त्रों की छानबीन करने की विशेष परवाह नहीं की। चीनी यात्रियों का कुछ और ही उद्देश्य था, वे विद्वान थे। उन्होंने हज़ारों मील की यात्रा इसलिए की थी कि बौद्वों के पवित्र स्थानों का दर्शन करें, बौद्ध – धर्म की पुस्तकें एकत्र करें और उस भाषा को पढ़े, जिसमें बे पुस्तकें लिखी गयी थीं।
प्रश्न 1.
प्राचीन काल में किन देशों के यात्री भारत आया करते थे?
उत्तर :
प्राचीन काल में ग्रीक -चीन देशों के यात्री भारत आया करते थे।
प्रश्न 2.
ग्रीक वाले किस रूप में भारत आते थे ?
उत्तर :
ग्रीक वाले सैनिक – राजदूत के रूप में भारत आते थे।
प्रश्न 3.
चीनी यात्रियों की भारत यात्रा का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर :
चीनी यात्रियों की भारत यात्रा का उद्देश्य भारत के बौद्ध स्थानों के दर्शन करना था।
प्रश्न 4.
चीनी यात्री किस प्रकार के लोग थे ?
उत्तर :
चीनी यात्री विद्वान लोग थे।
प्रश्न 5.
यह गद्यांश किस विषय से संबंधित है?
उत्तर :
यहं गद्यांश इतिहास से संबंधित है।
10. निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों कें लिखिए।
महानगरों में बचों के खेलने – कूदने की बडी समस्या है। हमारे बचों के लिए शहर में खेलने – कूदने के लिए जगह है ही कहाँ ? जो भी खुली जगह थी, बहाँ लोगों ने या तो माँल्स बना लिए या फिर उसे पार्किंग एरिया घोषित कर दिया या फिर बित्डर मुनाफ़। कमाने के लिए इमारतें बनाने के लिए टूट पड़ें। बच्चों के खेलने की जगहों को इस तरह एक के बाद एक समाप्त करना निराशाजनक है। शहरों में खेल के लिए स्थान समाप्त होते जाने के कारण बच्चों को खेलने के लिए अक्सर सडक पर निकलना पडता है जो खतरनाक होता है। क्योंकि ट्रैफ़िक में या तो हादसे होने का डर होता है या फिर गंदगी के कारण बीमारियाँ लगने का खौफ़ उत्पत्र हो जाता है। आखिर बच्चे खेलेंगे नहीं तो विकसित कैसे होंगे?
प्रश्न 1.
उपर्युक्त गद्यांश में किस महानगरीय स्रमस्या का उलेख हुआ है?
उत्तर :
उपर्युक्त गद्यांश में मैदान की समस्या का उल्लेख हुआ है।
प्रश्न 2.
शारीरिक विकास प्रक्रिया में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है?
उत्तर :
शारीरिक विकास प्रक्रिया में पोष्टिक आहार व खेलकूद का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
प्रश्न 3.
खेलने के लिए ‘मैदान” के अभाव में शहरों में बच्चे अक्सर कहाँ निकल पडते हैं?
उत्तर :
खेलने के लिए ‘”मैदान” के अभाव में शहरों में बचे अक्सर सडकों पर निकल प्ते हैं।
प्रश्न 4.
“शहर में खेलने – कूदने के लिए जगह है ही कहाँ?” इस काक्य का तात्पर्य क्या है?
उत्तर :
“शहर में खेलने – कूदने के लिए जगह है ही कहाँ?” इस वाक्य का तात्पर्य है कि – खेलने की जगह नहीं है।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक क्या हो सकता है ?
उत्तर :
उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक ‘महानगरों में मैदान का अभाव’ हो सकता है।
नीचे दिये गये गद्यांं को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।
1. चंदमणी नामक एक लड़का था। उसके माता – पिता का देहांत हो चुका था। लेकिन वह खूब पढ़ना चाहता था। उसका एक मित्र था घनश्याम। पिछलीबार जब घनश्याम, चंद्रमी से मिला तब उसके माता – पिता जिंदा थे। अब चंदमणी अकेला था। वह दुखी और असहाय था। घनश्याम ने उसे अपने घर पर साथ रहने के लिए निवेदन किया।
प्रश्न :
1. घनश्याम के मित्र का नाम क्या था ?
2. वह खूब पढ़ना चाहता था। वाक्य में ‘वह’ किसका सूचक है ?
3. ‘देहांत’ किन दो शब्दों से बना है ?
4. कौन अकेला था ?
5. चंद्रमणी दुखी क्यों था?
उत्तर :
1. घनश्याम के मित्र का नाम था “चंद्रमणी”।
2. वाक्य में वह “चंच्रमणी” का सूचक है।
3. ‘देह + अंत’।
4. चंद्रमणी अकेला था।
5. चंद्रमणी के माता – पिता का देहांत हो चुका था। अब वह अकेला था। इसलिए चंद्रमणी दुखी था।
2. जब गोपन्रा भाचलम तहसील के अघिकारी बने तो उनकी दृष्टि भदगिरि पर स्थित सीता, राम और लक्ष्मण पर पड़ी। वे स्वयं राम भक्त थे। उन्होंने भदाचलम के राम मंदिर के निर्माण का भार अपने कंधों पर लियों तहसीलदर के रूप में जो धन राजकोश के लिए बसूल करते थे उसका उपयोग करके बे राम मंदिर बनबाने लगो। मंदिर बना। राम, सीता और लक्ष्मण के लिए आभूषण आदि भी बने। सरकार का सारा पैसा इसी में खर्च हो गया।
प्रश्न :
1. गोपत्ना स्वयं किसके भक्त थे ?
2. भद्राचलम के राम मंदिर के निर्माण का भार किन्होंने अपने कंधों पर लिया ?
3. राम, सीता और लक्ष्मण के लिए क्या बने ?
4. भद्राचलम तहसील के अधिकारी कौन थे ?
5. मंदिर शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर :
1. गोपन्ना स्वयं राम भक्त थे।
2. भद्राचलम के राम मंदिर के निर्माण का भार गोपन्ना ने अपने कंधों पर लिया।
3. राम, सीता और लक्ष्मण के लिए आभूषण आदि बने।
4. भद्राचलम तहसील के अधिकारी “गोपन्ना” थे।
5. मंदिर शब्द का अर्थ है “‘देवालय’।
3. खेलकूद और व्यायाम से हमारा शरीर और मन स्वस्थ रहता है। खुली हवा के बिना तो मतुष्य का शरीर सूस्थ नहीं बन सकता। इसके लिए घर हवादर होना चाहिए। प्रातः काल खुली हवा में टहलना भी स्वास्थ के लिए लाभदायक है। यह हमेशा याद रखना चाहिए कि अछा स्वास्थ्य ही सुखमय जीवन का आधार है। एक प्रचलित कहावत है – “मन चंगा तो कटौती में गंगा।”
प्रथ्न :
1. हमारा शरीर और मन किनसे स्वस्थ रहता है ?
2. किसके बिना तो मनुष्य का शरीर स्वस्थ नहीं बन सकता ?
3. घर कैसा होना चाहिए ?
4. सुखमय जीवन का आधार क्या है?
5. “मन चंगा तो कटौती में गंगा” यह क्या है?
उत्तर :
1. खेलकूद और व्यायाम से हमारा शरीर और मन स्वस्थ रहता है।
2. खुली हवा के बिना तो मनुष्य का शरीर स्वस्थ नहीं बन सकता ।
3. घर हवादार होना चाहिए।
4. स्वारथ्य सुखमय जीवन का आधार है।
5. “मन चंगा तो कटौती में गंगा”. यह एक कहावत है।
4. प्रथम पृष्ठ पर मुख्य – मुख्य समाचार होते हैं। ब्यापार और खेलकूद के समाचार दूसरे – तीसरे पृष्ठों पर दिये जाते हैं। साथ ही ब्यंग्य चित्र और विज्ञापनों के चित्र भी होते हैं, जिससे समाचार – पत्र और भी आकर्षक लगता है। प्रायः सभी समाचार – पत्रों में बच्चों का भी पृष्ठ होता है, जिसमें मनोरंजक कहानियाँ, कविताएँ तथा चुटकुले आदि होते हैं। बच्चों के लिए समाचार भी दिये जाते हैं। कभी कभी बच्चों के चित्रों के साथ उनके द्वारा लिखी गयी रचनाएँ भी छापी जाती हैं।
प्रश्न :
1. मुख्य – मुख्य समाचार किस पृष्ठ पर होते हैं ?
2. दूसरे – तीसरे पृष्ठों पर किनके बारे में समाचार दिये जाते हैं ?
3. किनसे समाचार पत्र और भी आकर्षक लगता है ?
4. सभी समाचार पत्रों में किनके लिए भी पृष्ठ होते हैं ?
5. इस अनुच्छेद में किसके बारे में बतायां गया है ?
उत्तर :
1. मुख्य – मुख्य समाचार प्रथम पृष्ठ पर होते हैं। (या) प्रथम पृष्ठ पर मुख्य – मुख्य समाचार होते ।
2. व्यापार और खेल – कूद के समाचार से समाचार पत्र दूसरे – तीसरे पृष्ठों पर दिये जाते हैं।
3. व्यंग्य और विज्ञापनों के चित्रों से समाचार पत्र और भी आकर्षक लगता है।
4. सभी समाचार पत्रों में बच्चों के लिए भी पृष्ठ होते हैं।
5. इस अनुच्छेद में समाचार पत्रों के बारे में बताया गया है।
5. बाबर को कला से बड़ा प्रेम था। बाबर के बाद हुमायूँ सिंहासन पर बैठा उसे ज्योतिष शास्त्र से बड़ा प्रेम था। बह नक्षत्रों को हिसाब करके उसीके अनुसार अपना दरबार किया करता था। कहते हैं कि एक बार किसी भिश्ती ने उसके प्राण बचाये थे। हुमायूँ ने उसको तीन घंटे के लिए बादशाह बनाया था।
प्रश्न :
1. कलाओं से किन्हें बडा प्रेम था?
2. बाबर के बाद किन्होंने सिंहासन पर बैठा ?
3. नक्षत्रों को हिसाब करके उसीके अनुसार कौन अपना दरबार किया करता था?
4. हुमायूँ नै भिश्ती को कितने घंटे के लिए बादशाह बनाया था ?
5. हुमायूँ के प्राण कौन बचाये ?
उत्तर :
1. बाबर को कलाओं से बड़ा प्रेम था।
2. बाबर के बाद हुमायूँ सिंहासन पर बैठा।
3. नक्षत्रों को हिसाब करके उसीके अनुसार बाबर अपना दरबार किया करता था।
4. हुमायूँ ने भिश्ती को तीन घंटे के लि बादशाह बनाया था।
5. किसी भिश्ती ने हुमायूँ के प्राण बचाये थे।
6. पुत्र और तरु में भी भेद है, क्योंकि पुत्र को हम स्वार्थ के कारण जन्म देते हैं परन्तु तरु – पुत्र को तो हम परमार्थ के लिए ही बनाते हैं। ऋषि – मुनियों की तरह हमें वृक्षों की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वृक्ष तो देषवर्जित हैं। जो छेदन करते हैं, उन्हें भी वृक्ष छाया, पुष्प और फल देते हैं। इसीलिए जो विद्वान पुरुष हैं, उनको वृक्षों का रोपण करना चाहिए और उन्हें जल से सींचना चाहिए।
प्रश्न :
1. पुत्र को हम किस कारण ज़न्म देते हैं ?
2. किसे तो हम परमार्थ के लिए ही बनाते हैं ?
3. हमें किनकी पूजा करनी चाहिए ?
4. द्वेष वर्जित क्या है ?
5. वृक्षों का रोपण किन्हें करना है?
उत्तर :
1. पुत्र को हम स्वार्थ के कारण जन्म देते हैं।
2. ‘तरु पुत्र’ को हम परमार्थ के लिए ही बनाते हैं।
3. हमें ऋषि मुनियों की तरह वृक्षों की पूजा करनी चाहिए।
4. वृक्ष द्वेषवर्जित हैं।
5. जो विद्वान पुरुष हैं उन्हें वृक्षों का रोपण करना है।
7. वर्तमान युग विज्ञान के नाम से जाना जाता है। आज इसकी विजय पताका धरती से लेकर आकाश तक लहरा रही है। सर्वत्र विज्ञान की महिमा का प्रचार व प्रसार है। मनुष्य ने चिज्ञान के द्वारा प्रकृति को जीत लिया है। आज मानव ने विज्ञान के द्वारा विद्युत बाष्प, गैस और केप्यूटर की खोन करके संपूर्ण विश्व में अपनी विजय दुंदुभी बजाकर एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है।
प्रश्न :
1. वर्तमान युग किस नाम से जाना जाता है ?
2. सर्वत्र किसकी महिमा का प्रचार व प्रसार है?
3. विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने किसे जीत लिया है?
4. इस अनुच्छेद में किसके बारे में बताया गया है ?
5. मानव ने किसके द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया ?
उत्तर :
1. वर्तमान युग विज्ञान के नाम से जाना जाता है।
2. सर्वत्र विज्ञान की महिमा का प्रचार व प्रसार है।
3. विज्ञान के द्वारा मनुष्य ने प्रकृति को जीत लिया है।
4. इस अनुच्छेद में वर्तमान युग और विज्ञान के बारे में बताया गया।
5. मानव ने विज्ञान के द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया।
8. सबेरे समय मगर जल के पास रेत में लेटने और सोने के लिए आता है। जाड़ों में तो वह देर तक धूप लेता रहता है। मगर फागुन – चैत में अंडे देता है। अण्डे उसके बड़े – बड़े होते हैं। बह उनको रेत में गहरा गाड़ता है। साधारण तौर पर बह मछलियाँ खाता है। मुँह खोल लिया, पानी फुफकारता रहा, और मछलियों को निगलता रहा।
प्रश्न :
1. मगर जल के पास में लेटने तथा सोने के लिए कब आता है ?
2. किन दिनों में तो वह देर तक धूप लेता रहता है ?
3. मगर के अंडे कैसे होते हैं?
4. साधारण तौर पर मगर किन्हें खाता है?
5. मगर अंडे कब देता है?
उत्तर :
1. सबेरे समय मगर जल के पास में लेटने तथा सोने के लिए आता है।
2. जाडों में तो वह देर तक धूप लेता रहता है।
3. मगर के अंडे बडे – बडे होते हैं।
4. साधारण तौर पर मगर मछलियों खाता है।
5. मगर फ़ागुन – चैत्र में अंडे देता है।
9. दूसरा प्रसंग सातबें दर्जे का है। उस समय दोराबजी एदलजी गीमी हेडमस्ट्र थो वे नियमों की पाबंदी कराते थे, बाकायदा काम करते और लेते थे और पढ़ाते अच्छा थे। ऊपर के दर्जों के बिद्यार्थियों के लिए उन्होंने कसरत और क्रिकेट अनिवार्य कर दिया था। मुझे इन चीज़ों में अरुचि थी। अनिवार्य होने के पहले तो में.कभी कसरत, क्रिकेट या फुटबाल में गया ही नहीं था।
प्रश्न :
1. दूसरा प्रसंग किस दर्जे का है?
2. ऊपर के दर्जे के विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य क्या था ?
3. हेड़मास्टर का नाम क्या था ?
4. नियमों की पाबंदी कौन कराते थे ?
5. इस अनुच्छेद में किन खेलों का उल्लेख मिलता है ?
उत्तर
1. दूसरा प्रसंग सातवें दर्जे का है।
2. ऊपर के दर्जे के विद्यार्थियों के लिए कसरत और क्रिकेट अनिवार्य था।
3. हेडमास्टर का नाम था “दोराबजी एदलजी गीमी’।
4. हेडमास्टर दोराबाजी एदलजी गीमी नियमों की पाबंदी कराते थे।
5. इस अनुच्छेद में क्रिकेट और फुटबॉल खेलों के बारे में उल्नेख मिलता है।
10. दक्षिण ध्रुव में पानी की कमी नहीं थी, पर यहाँ आनेवाले महीनों नहीं नहाते थे। परंतु यह शिबिर बड़ा आधुनिक था – इसमें नहाने के लिए गरम पानी, ठंडा पानी, कपड़े धोने के यंत्र, कपड़े सुखाने के यंत्र, फ़र्श को, साफ़ करने के लिए ‘बेक्युम क्लीनर’, हरेक के सोने की जगह पर एक – एक बिजली की अंगीठी, फ़र्श पर ‘लिनोलियम’ आदि का प्रबंध था।
प्रश्न :
1. पानी की कमी किस ध्रुव में नहीं थी ?
2. शिबिर कैसा था ?
3. शिबिर में फर्श को साफ़ करने के लिए क्या था ?
4. फ़र्श पर किसका प्रबंध था ?
5. शिबिर में नहाने के लिए किसका प्रबंध था ?
उत्तर :
1. दक्षिण ध्रुव में पानी की कमी नहीं थी।
2. शिबिर बड़ा आधुनिक था।
3. शिबिर में फर्श को साफ करने के लिए “वेक्युम क्लीनर” था।
4. फ़र्श पर “लिनोलियम” का प्रबंध था।
5. शिबिर में नहाने के लिए गरम और ठंडा पानी का प्रबंध था।
11. समाज की सेबा करना हमारा कर्तव्य है। समाज हम से ही बनता और बिगड़ता है। समाज को स्वच्छ और सुंदर रखना परम आवश्यक है। संगति का असर मानव पर अत्यधिक पड़ता है। बुरे आदमियों की संगति में हम अच्छा नहीं रह सकते। जब परिवार में सभी आदमी दुःख से पीडित हों उस समय हम हैंस नहीं सकते। समाज के साथ तो हमें जीबन पर्यत रहना है। यदि हमें अपने आपको सुखी और स्वच रखना है तो अपने पिरवार को, अपने पड़ोस को सुखी और स्वच्छ बनाना पडेगा। परिबार और पड़ोस समाज से ही जुड़े हैं। कुछ लोगों का कथन है कि समय की कमी के कारण हम समाज की सेवा करने में असमर्थ हैं। यह कथन आधार रहित है। आपका पड़ोसी दु:ख दर्द से कराह रहा है और आप ग्रामोफ़ोन का रिकार्ड सुन रहे हैं। क्या समाज के एक अंग विशेष के लिए आप उसकी सहायता नहीं कर सकते।
प्रथ्न :
1. हमारा कर्तव्य क्या है?
2. समाज को कैसा रखना परम आवश्यक है ?
3. किसका असर मानव पर अत्यधिक पडता है ?
4. परिवार और पडोस किससे जुडे हैं ?
5. समाज के साथ तो हमें कब तक रहना है?
उत्तर :
1. समाज की सेवा करना हमारा कर्तव्य है।
2. समाज को स्वच्छ और सुंदर रखना परम आवश्यक है।
3. संगति का असर मानव पर अधिक पडता है।
4. परिवार और पडोस समाज से जुडे हैं।
5. समाज के साथ तो हमें जीवन पर्यन्त रहना है।
12. चर्बी हमारे शरीर को गरमी पहुँचाती है और साँधों और जोड़ों को चिकना रखती है। घी, तेल इत्यादि सिग्ध पदार्थ देर से हज़ होनेवाले हैं। अतएव इनका उपयोग भी कम ही करना चाहिए। कनस्पति घी का तो एकदम बहिष्कार करके उसकी जगह शुद्ध तेल का व्यवहार किया जाए।
प्रश्न :
1. चर्बी हमारे शरीर को क्या पहुँचाती है?
2. चर्बी किन – किनको चिकना रखती है?
3. देर से हज् होनेवाले पदार्थ क्या – क्या है ?
4. किस चीज़ को बहिष्कार करना चाहिए ?
5. वनस्पति घी की जगह किसका व्यवहार किया जाय?
उत्तर :
1. चर्बी हमारे शरीर को गरमी पहुँचाती है।
2. चर्बी साँधों और जोडों को चिकना रखती है।
3. घी, तेल इत्यादि स्निग्ध पदार्थ देर से हजम होनेवाले हैं।
4. वनस्पति घी को बहिष्कार करना चाहिए।
5. वनस्पति घी की जगह शुद्ध तेल का व्यवहार किया जाय।
13. सावन मास की छटा भी अनुपम है। यहौं पर मनभावन दृश्य किसके नेत्रों को आकर्षित नहीं कंरता गाँबों की रिमदिम – रिमझ़िम वर्षा में किसानों के प्राण पुलकित हो उठते हैं। यर्षों में लहलहते खेतों को देखकर उनके हदय में आनंद की बाढ़ आ जाती है। जो प्राणदायक स्वछ्ठ पवन नगर से दूर है। चह शीतलमन्द, सुग््ध समीर भोले – भाले ग्राम बासियों को अनायास ही प्राप्त होता है।
प्रश्न :
1. सावन मास की छटा कैसी है?
2. मनभावन दृश्य किस मास में नेत्रों को आकर्षित करते हैं?
3. वर्षा में खेत कैसे होते हैं?
4. प्राणदायक स्वच्छ पवन किस़से दूर है ?
5. ग्रामवासी कैसे होते हैं?
उत्तर :
1. सावन मास की छटा अनुपम है।
2. मनभावन दृश्य सावन मास में नेत्रों को आकर्षित करते हैं।
3. वर्षा में खेत लहलहाते हैं।
4. प्राणदायक स्वच्छ पवन नगर से दूर है।
5. ग्रामवासी भोल – भाले होते हैं।
14. हिन्दी हमारे देश की राजभाषा है और राष्ट्रभाषा भी। हिन्दी को लगभग भारत के सभी प्राँतों के लोग समझते हैं। देशवसियों के बीच व्यवहार के लिए हिन्दी भाषा उपयोगी है। सामान्य ब्यवहार के लिए हिन्दी को सीखने के लिए तुमको पत्र – पत्रिकाएँ पढ़नी है। हमें यह भी जानना चाहिए कि हिन्दी के अलाबा भारत में 21 और भाषाएँ हैं, जो संविधान के द्वारा स्वीकृस हैं – जैसे तेलुगु, तमिल, बंगाली, मराठी, गुजराती आदि। जहाँ तक हो सके इनकी जानकारी प्राप्त करना नागरिकों के लिए जरूरी है। इससे भाषाओं के प्रति सदूभाबना बनती है और भारत की एकता को बल मिलता है।
प्रश्न :
1. हमारे देश की राजभाषा और राष्ट्र भाषा क्या है ?
2. हिंदी के अलावा, भारत में कितनी भाषाएँ हैं, जो संविधान ने स्वीकृत की हैं ?
3. किस भाषा को भारत के लगभग सभी प्रांतों के लोग समझते हैं?
4. देशवासियों के बीच व्यवहार के लिए उपयोगी भाषा क्या है?
5. सामान्य व्यवहार के लिए हिन्दी सीखने के लिए किन्हें पढ़नी चाहिए ?
उत्तर :
1. हिंदी हमारे देश की राजभाषा और राष्ट्रभाषा है।
2. हिंदी के अलावा भारत में 21 और भाषाएँ हैं जो संविधान के द्वारा स्वीकृत की हैं।
3. हिंदी भाषा को भारत के लगभग सभी प्रांतों के लोग समझते हैं।
4. देशवासियों के बीच व्यवहार के लिए हिंदी भाषा उपयोगी है।
5. सामान्य व्यवहार के लिए हिंदी को सीखने के लिए पत्र – पत्रिकाएँ पढ़नी चाहिए।
సారాంశము :
చాలా సంవత్సరాల క్రితం నాటి మాట. ఒక రాజ్యం ఉండేది. దాని పేరు హరిత నగరం. హరిత నగరం రాజుగారు కుమారవర్మ. అతడు మంచి పరిపాలకుడు. కుమార వర్మ పరిపాలనా కాలంలో రాజ్యం పచ్చగా ఉంది. కానీ ఒకసారి రాజ్యం మొత్తం పంటలు ఎండిపోయాయి. చెరువులు కుంటలు ఎండిపోయాయి. కేవలం రెండే రెండు జీవనదులు మిగిలిపోయాయి. అవి కూడా చిన్న చిన్న కాలువల్లా తయారయ్యాయి.
రాజ్యంలో పశువులకు మేత దొరకడం కూడా చాలా కష్టంగా ఉంది. చాలా మంది రైతులు తమ పశువులను చౌక ధరలకు అమ్మివేయడం ప్రారంభించారు. ఇలాంటి పరిస్థితుల్లో రాజభండాగారంలోని ధాన్యాన్ని రాజుగారు ప్రజలకు పంచి పెట్టడం ఆరంభించిరి, ఇరుగు-పొరుగు రాజ్యాల నుండి ధాన్యాన్ని అప్పుగా తీసుకోవడం ప్రారంభించిరి. కానీ రాజుగారికి భవిష్యత్తుపై దిగులు బాధిస్తోంది. రాజుగారు ఉత్పన్నమైన ఈ పరిస్థితులను గురించి గంభీరంగా ఆలోచించసాగిరి.
కానీ దీనికి పరిష్కారం లభించలేదు. “ఇరుగు-పొరుగు రాజ్యాలన్నీ పచ్చగా ఉన్నాయి. అక్కడి ప్రజలంతా సుఖంగా ఉన్నారు. కానీ మన రాజ్యంలోనే ఇలా ఎందుకు జరుగుతున్నది? దీనికి కారణం ఏమిటి? ఈ సమస్యను ఎలా పరిష్కరించడం?” – అని రాజుగారి మనస్సులో ఎన్నో ప్రశ్నలు ఉదయిస్తున్నాయి. రాజుగారు కుమారవర్మ ఈ సమస్యను పరిష్కరించుటకు, బుద్ధిమంతులను, విద్వాంసులను, పరిస్థితులను క్షుణ్ణంగా అర్థం చేసుకుని జవాబు చెప్పగల మేధావులను పిలిపించారు.
వారి చర్చలో కొంత మంది బుద్ధిమంతులు “ఓ మహారాజా, తప్పులు చాలా రకాలుగా ఉంటాయి. కొన్ని తప్పులు సరళంగానే గుర్తించబడతాయి, కొన్ని తప్పులను గుర్తించలేం! – అని చెప్పిరి. కొంత మంది “ఓ రాజా! కొన్ని తప్పుల (పొరపాట్లు) కు సంకేతాలు ఉంటాయి. మరికొన్ని తప్పులకు సంకేతాలు ఉండవు అని చెప్పిరి. కొంత మంది విద్వాంసులు- ఓ ప్రభూ! కొన్ని తప్పులు (పొరపాట్లు) సంస్కరణల రూపంలో ఏర్పడతాయి. మరికొన్ని సంస్కరణలే తప్పులుగా మారతాయి. ఇలాంటిదే ఏదో తెలిసీ – తెలియని విషయం దాగి ఉండవచ్చు. అందువలననే ఈ రోజున మన రాజ్యంలో ఇలాంటి పరిస్థితి ఏర్పడినది” అని చెప్పిరి.
అప్పుడు రాజుగారు కుమారవర్మ “అలా అయితే మీరే చెప్పండి. ఇప్పుడు నన్ను ఏమి చేయమంటారు?” అని వారిని అడిగెను. అందరూ తర్జన – భర్జన చేసి రాజుగారికి ఈ సలహా ఇచ్చి – “అన్ని విధాలా సుభిక్షితంగా ఉన్న రాజ్యంలోని రాజుగారిని కలవండి. అక్కడి పరిపాలనా నియమాలను తెలుసుకోండి. వాటి ఆధారంగా ఇక్కడి పరిపాలనా విధానాలలో మార్పులు (సంస్కరణలు) తీసుకురండి. దీని ద్వారా రాజ్యంలోని పరిస్థితులు చక్కబడతాయి”.
రాజుగారైన కుమారవర్మకు ఈ సలహా చాలా బాగా నచ్చింది. ఆయన వెంటనే తన పొరుగు రాజ్యపు రాజుగారైన సత్యసింహను కలవడానికి నిర్ణయించుకుని తన సేవకుల ద్వారా ఆ రాజుగారికి సందేశం ఈ విధంగా పంపెను – “రాజాధిరాజు, మహారాజు అయిన సత్యసింహనకు సాదర నమస్కారములు. మా రాజ్యంలో కరువు కాటకాలతో ప్రజలు ఇబ్బందులు పడుతున్నారు. ఈ సమస్యను పరిష్కరించుటకు మీ ఉచిత సలహా మరియు మీ శాసన నియమాలను తెలుసుకొనుటకు మేము మీ రాజ్యం దర్శించాలని కోరుకుంటున్నాము. మీరు నా కోరికను మన్నిస్తారని ఆశిస్తున్నాను.”
దానికి ప్రత్యుత్తరంగా మహారాజు సత్యసింహ్ తన సందేశం ఈ విధంగా పంపెను. “మీరు నేను ఇరుగు-పొరుగు రాజులం. ఏదేని ఒక సమస్య విషయంలో ఒకరినొకరు పరస్పరం సహాయం చేసుకోవడం మన కర్తవ్యం. మా రాజ్యానికి మీకు సాదర స్వాగతం. మీరు మా ఆత్మీయ ఆదరణీయ అతిథులు. అతిథి రూపంలో మిమ్ములను సత్కరించు సౌభాగ్యం మాకు కల్గుచున్నందులకు, మేము మీకు కృతజ్ఞులం.”
ఈ ప్రత్యుత్తరం చదవగానే రాజుగారైన కుమారవర్మకు తన రాజ్యానికి సంబంధించిన కరువు కాటకాల సమస్యకు పరిష్కారం కొంతవరకు దొరికినట్లు భావించిరి. అయినప్పటికీ రాజుగారు పొరుగున ఉన్న రాజ్యాన్ని సందర్శించి రాజును కలుచుట కోరుకొనెను.
చూస్తూ చూస్తుండగానే ఆ రోజు రానే వచ్చింది. రాజుగారైన కుమారవర్మకు పొరుగు రాజ్యం నుండి భవ్యమైన స్వాగతం లభించినది. రాజ్యాన్ని చూసి రాజుగారు ఆశ్చర్యచకితులైరి. నాలుగువైపులా జలాశయాలు నిండుగా ఉన్నవి. నదులన్నీ నిండుగా ఉన్నవి. కాలువలు ప్రవహిస్తూ ఉన్నవి. చల్లని గాలులు వీస్తూ ఉన్నవి. పంట పొలాలన్నీ పచ్చని పైరు పంటలతో నిండుగా ఉన్నాయి. పూల సుగంధం అంతటా వ్యాపిస్తోంది. తోటలన్నీ పండ్లూ పూలతో నిండుగా ఉన్నాయి. వీటన్నిటినీ చూడగానే రాజుగారి మనస్సు అవధులు లేని సంతోషంతో నిండిపోయినది.
మహారాజు కుమారవర్మ మహారాజుగారైన సత్యసింహ ను కలిసిరి. “మిత్రమా, మీ రాజ్యం ఏ స్వర్గానికీ తక్కువ లేదు. నాకు తెలియని శాసన నియమాలను మీరు పాటించుచున్నట్లు ఉన్నారు అని నాకు అన్పించుచున్నది. అందువలననే మీ ప్రజలందరూ సుఖంగా ఉన్నారు. నేను కూడా మా దేశ ప్రజలను సుఖంగా చూడదలచుచున్నాను. దయచేసి మీరు నాకు సుపరిపాలన హితోపదేశం చేయండి” అని కుమారవర్మ, సత్యసింహను కోరిరి.
మహారాజుగారైన సత్యసింహ వారు మొదట తిరస్కరించిరి. కానీ రాజుగారైన కుమారవర్మగారి ప్రార్ధన మీదట ఆయన ఈ విధంగా బదులిచ్చిరి – ” లేదు మహారాజా, నన్ను అభ్యర్థించవద్దు. నేను దోషిని, దోషి అయిన వానికి హితోపదేశం చేసే హక్కు లేదు. నేను మీకు ఒక సంఘటన వినిపిస్తాను. నేను ఒకసారి నా అంగరక్షకునితో ఇదే విధంగా తోటలో విహరిస్తూ ఉన్నాను. అప్పుడే నేను రాజమాతతో అత్యవసర విషయమై మాట్లాడుటకు వెళ్ళవలసి వచ్చినది. నేను తిరిగి వచ్చేవరకు అంగరక్షకులను అక్కడే నిలబడి ఉండమని ఆదేశించితిని. రాజమాతతో మాట్లాడుతూ మాట్లాడుతుండగా రాత్రి అయిపోయినది. అక్కడే నేను భోజనం చేసి నిద్రించితిని.
మరుసటి రోజు ఉదయం లేచి చూడగా బాగా వర్షం కురియుచున్నది. నేను తోటలోకి వెళ్ళి చూడగా అంగరక్షకులు అక్కడే నిలబడి తడచిపోతూ ఉండడం గమనించితిని. నేను మాటల్లో అంగరక్షకులను మరచిపోయినంతగా నిమగ్నమైయున్నాను. వాళ్ళను వెళ్ళిపొమ్మని కూడా చెప్పలేనంతగా మాటల్లో మునిగిపోతిని. ఇది నేను చేసిన తప్పు. అందువలన అలా తప్పు చేసిన రాజుకు హితోపదేశం చేయు హక్కు లేదు. నన్ను క్షమించండి. ”
రాజుగారైన కుమారవర్మ మహారాజు సత్యసింహ్ చెప్పిన విషయాన్ని (సంఘటనను) పూర్తి ధ్యాసతో విన్నారు. రాజమాత గారే తనకు హితోపదేశం చేయగలరని అనుకుని ఆయన రాజమాత దర్శనం చేసుకొని వారిని హితోపదేశం చేయవలసినదిగా కోరిరి.
“కుమారా! నిజం చెప్పవలెనన్న నేను కూడా దోషినే. ఒకసారి నా కుమారుడు తన భార్యకు ఒక అందమైన నగ తయారుచేయించి ఇచ్చెను. నా మనస్సులో ఆ నగ పట్ల దురాశ కలిగినది. నేను నా కుమారుడిని లేదా నా కోడల్ని ఆ నగ ఇమ్మని అడిగినట్లయితే వారెప్పటికీ కాదనరు. ఒక రాజమాతకు నగల పట్ల వ్యామోహం ఉండడం తప్పు. వేరొకరి వస్తువు పట్ల దురాశ కలగడం తప్పు. అలాంటి తప్పు చేసిన నేను నీకు హితోపదేశం చేసేంత యోగ్యురాలిని కాను” -‘ అని రాజుగారైన కుమారవర్మతో రాజమాత చెప్పినది. (రాజా సత్యసింహ గారి తల్లి.)
రాజుగారైన కుమారవర్మ ఆశ్చర్యచకితులైరి. తదుపరి రాజగురువును కలిసి తనకు హితోపదేశం చేయవలసినదిగా కోరిరి. అప్పుడు రాజగురువుగారు ఇట్లు అనిరి – “మహారాజా నన్ను క్షమించండి. నేను దీనికి యోగ్యుడను కాను. ఒకసారి సుదూర దేశం నుండి ఒక పండితుడు విచ్చేసెను. ఆయన రాజ దర్శనాన్ని కోరెను. అతని పాండిత్యాన్ని పరీక్షించే సమయం లేకపోవడం వల్ల నేను రాజుగారితో అతడు చాలా గొప్ప పండితుడు అని చెప్పాను. రాజుగారు నాపై అంతులేని నమ్మకాన్ని ఉంచుతారు. ఆయన పండితునికి కుప్పలు – తెప్పలుగా బహుమతి ఇచ్చి పంపారు. ముందు ముందు నాకు ఆ పండితునికి అంత పాండిత్యం లేదని సాధారణ పండితుడు మాత్రమేనని తెలిసినది. నా సోమరితనం వల్ల నేను రాజుగారికి తగిన మార్గదర్శకత్వం చేయలేకపోయాను. అలాంటి తప్పు చేసిన నేను నీకు హితోపదేశం చేయగల యోగ్యుడను
కుమారవర్మగారు చాలా ఆలోచనలో మునిగిరి. ఈ మూడు సంఘటనల ఆధారంగా తను చిన్న చిన్న తప్పులు కూడా చేయరాదన్న గుణపాఠం నేర్చుకొనిరి. ఏదైనా తప్పు జరిగితే దానిని సరిదిద్దవలెనని అనుకొనెను. రాజుగారు ఈ గుణపాఠాన్ని పాటించిరి. కొద్దిరోజుల్లోనే తన రాజ్యం తిరిగి సస్యశ్యామలమైనది. సుఖసంతోషాలతో నిండిపోయినది. 2012 సంవత్సరమునకు జ్ఞానపీఠ పురస్కారాన్ని పొందిన స్వర్గీయ శ్రీ రావూరి భరద్వాజ గారు తెలుగులోని ఒక గొప్ప ప్రసిద్ధి చెందిన రచయిత. ప్రస్తుత ఈ కథ ఆయన రచించిన బంగారు కుందేలులో నుండి గ్రహించబడినది. దీనిని శ్రీసయ్యద్ మతీన్ అహ్మద్ గారు హిందీలోనికి అనువదించిరి.)
शब्दार्थ (శబ్దార్ధములు) Meanings :