AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 4 with Solutions

Access to a variety of AP Inter 2nd Year Hindi Model Papers Set 4 allows students to familiarize themselves with different question patterns.

AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 4 with Solutions

Time : 3 Hours
Max Marks : 100

सूचनाएँ :

  1. सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
  2. जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।

खंड – क ( 60 अंक)

1. निम्नलिखित दोहे की पूर्ति करते हुए भावार्थ सहित विशेषताएँ लिखिए। (1 × 8 = 8)

एक भरोसो ……………………
…………………. चातक तुलसीदास ||
उत्तर:
भावार्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र के बादलों पर विश्वास रखता है क्यों कि वही उसका बल है । इसीलिए वह स्वाती नक्षत्र के बादलों की प्रतीक्षा करता है स्वाती नक्षत्र के वर्षा की, बूँदों को ही पीता है । उसी प्रकार तुलसी भी श्रीरामचंद्र पर विश्वास रखते है । वही उनका बल है । वह उनकी प्रतीक्षा में ही रहता है । इसी लिए तुलसी रुपी चातक के लिए राम बादल बन गये |

अथवा

कोऊ कोटिक ………………………
…………………. बिपति बिदारन हार ||
उत्तर:
भावार्थ : कवि बिहारीलाल इस दोहे के माध्यम से कह रहे हैं कि “कोई लाखों करोडों रूपये कमा लेते हैं, कोई लाखों या हजारों रूपये कमा लेते हैं । मेरी दृष्टि में धन का कोई महत्व नहीं है । मेरी दृष्टि में इस संसार की सबसे अनमोल संपत्ति मात्र श्रीकृष्णा ही है जो हमेशा मेरी विपत्तियों को नष्ट कर देते हैं, मुझे सदा सुखी रखते हैं । इसलिए सदा श्रीकृष्ण का नाम स्मरण करना चाहिए ।

2. किसी एक कविता का सारांश बीस पंक्तियों में लिखिए 1 (1 × 6 = 6)

1. ऊर्मिला का विरह गान’ कविता का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘ऊर्मिला का विरह गान’ नामक कविता के कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिक खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं। खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई को झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ । गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, चिंतक, विद्वान है । साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ । गुप्त जी को भारत सरकार पद्मभूषण से सम्मानित किया ।

सारांश : प्रस्तुत कविता साकेत नामक महाकाव्य के नवम सर्ग से लिया गया है। रामायण में अधिक उपेक्षित तथा अनदेखा नारी पात्र उर्मिला । इस कविता में विरह विदग्ध उर्मिला की मनोदशा का मार्मिक चित्रण है । लक्ष्मण राम और सीता के साथ वनवास के लिए चल पड़ते हैं । लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला पति के आदेश के अनुसार अयोध्या नगरी के राजभवन में ही रह जाती है । उर्मिला लम्बे समय से पति से दूर रह ने कारण पति के वियोग एवं विरह में व्यकुल हो उठती है और अपने आप में ही बातें करने लगती है । अपने सम्मुख पति लक्ष्मण ना होने पर भी लक्ष्मण को सम्बोधितं करती हुई कह रही है ।

हे प्रियतम ! तुम हंस कर मुझे भूल जाओ पर मैं तुम्हें याद कर – करके रोती ही रहूँगी, तुम्हारे हंसने में ही फूलों जैसी सुकुमारता, मधुरता है, पर हमारे रोने में निकलने वाले आँसू मोती बनते जा रहे हैं। मैं सदा यही मानती रही हूँ कि तुम मेरे देवता हो, तुम ही मेरे सब कुछ हो तथा मेरे आराध्य हो । अपने आप को साबित करना अनिवार्य है कि मैं सोती रहती हूँ या जागती रहती हूँ पर तुम्हें ही याद करती रहती हूँ, तुम्हारे ही स्मरण में जी रही हूँ । तुम्हारे हंस ने में फूल है असीम प्यार है और हमारे रोने में मोती है ।

प्रार्थना करती हूँ कि तुम्हारा त्याग सहज हो, सफ़ल हो, मेरा अटूट विश्वास है कि आपके प्रति मेरा अनुराग, प्रेम कभी निष्फल नहीं होगा । बस साधन-भाग स्वयं सिद्धी है । अमृत की तृषा में भूख भी नहीं होती।
काल चक्र भले ही रूक ना जाय, तुम्हारे और मेरे मिलन को भले ही काल चक्र रोक पाये, पर हमारे लिए बस विरह काल है । तुम जहाँ हो वहाँ सृजन, मिलन है, पर यहाँ राजभवन में सुविशाल प्रलय, विनाश सा सूना सूना एकाँत है ।

विशेषताएँ : इतिहास में उपेक्षित उर्मिला नामक नारी पात्र को महत्व देने का प्रयास किया है। गुप्त जी ने उर्मिला के दुख को, उसकी पीड़ा के प्रति अपनी संवेदना, सहानुभुति प्रकट किया है । कविता की भाषा सरल सहज अवं प्रसंगानुकूल शुद्ध खड़ीबोली है | शैलि लालित्य से भरपूर है ।

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2. परशुराम की प्रतीक्षा’ कविता का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ

सारांश : परशुराम की प्रतीक्षा एक खंड काव्य है । भारत चीन युद्धानंतर देश की परिस्थितियाँ बदलगयी । देश में निराशा हताशा कि स्थिति फैली हुई थी, ऐसी स्थिति को दूर करने के लिए परशुराम जैसे वीर के पुनः जन्म की प्रतीक्षा थी इसी प्रतीक्षा को लेकर यह लिखा गया है परशुराम की प्रतीक्षा काव्य के माध्यम से कवि दिनकर जी ने भारतीय संस्कृति के महत्व का परिचय दिया है | भारत की संस्कृति सर्वोन्नत है ही ।

कवि कह रहे हैं हम कैसी बीज बो रह हैं हमे पता ही नहीं, पर यहाँ की धरती दानी है । मनुष्य उसको जब भी जल कण देता उस के दान वृथा नहीं . होने देती, बदले में कुछ न कुछ देती है । यह धरती वज्रों का निर्माण करती है यह देश और कोई नहीं, केवल हम और तुम है। यह देश किसी और के लिए नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा और तुम्हारा है । भारत में न तो जाति का, न तो गोत्रों का बन्धन है । अनेकता में एकता रखने वाला देश है । इस देश महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध जैसे महापुरूषों का जन्म हुआ । इन महा पुरुषों के त्याग की नीव पर इस देश का निर्माण हुआ है, शंकराचार्य का शुद्ध विराग लेकर आते हैं । यह भी सच है कि जब- जब भारत का गौरव खतरे में पड़ता है तब तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में आग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भाग्य लिए आते हैं । भारत पर चीन के आक्रमण के समय भारत का गौरव घायल हुआ है। इसीलिए भारत के लोग चोट खाये भुजंग की तरह क्रोदित हो कर सुलगी हुई आग बना देते हैं | जब किसी जाति का आत्म सम्मान चोट खाता है, आग प्रचंड हो कर बाहर आती है । यह चोट खाये स्वदेश का बल वही है। ऐसी परिस्थिति में देश के उद्धार के लिए परशुराम जैसे वीर आदर्श पुरुष की प्रतीक्षा करते हैं । परशुराम के आदर्शों के बल पर भारत का भाग्योदय संभव है ।

3. किसी एक पाठ का सारांश 20 पंक्तियों में लिखिए । (1 × 6 = 6)

1. ‘अपना पराया’ पाठ का साराँश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत कहानी ‘अपना पराया’ के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है । आपका जन्म कौडियागंज, अलीगढ़ में 1905 ई में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ । गाँधीजी के प्रभाव से असहयोग आंदोलन में भाग लेकर जेल भी गये । आपकी पहली कहानी ‘विशल भारत में प्रकाशित हुई । आपका पहला उपन्यास ‘परख’ है ।

सारांश : जैनेंद्र कुमार जी ने इस कहानी में लंबी अवधी के बाद युद्ध क्षेत्र से घर लौटते एक सिपाही की मनोभावनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है ।

एक सिपाही लंबी अवधी के बाद युद्ध – क्षेत्र से घर लौटते हुए एक सराय में टहरकर अपने घर-परिवार की कल्पनाएँ करता है । सिपाही सपने में घर की बातें देखने लगा । उसकी पत्नी पाँच साल से विधवा की भाँती रही, प्रेम-संभाषण के लिए अवकाश नही निकाल पाती । बेचारी कितनी कष्ट उठाती थी । किस प्रकार मेरे पीछे दिन काटे ? बे पैसे, बे- आदमी, साढे चार साल का बेटा करनसिंह कैसा है ? जैसे सपने देखता ही था इतने में सिपाही की नींद टूटी। देखा घर की मंजिल अभी दूर है। और बातचीत के लिए सरायवाले को बुलाया और कहा- युद्ध क्षेत्र में हम जितने दुश्मनों को मारते है उतना ही नाम सम्मान और प्रतिष्ठा देते है ।

सिपाही बातें करता रहा, भटियारा सुनता रहा। जब रात हुई सिपाही खा – पीकर सोने लगा । इतने में जोर से एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई पडी । बच्चे को माँ कितनी बार समझाने पर भी रोता ही रहा । आखिर सिपाही को नींद असंभव हो गई । भटियारे को बुलाकर कहा बच्चा और उसकी माँ को यहाँ से कही दूर भेजने का आदेश दिया । बच्चे की माँ के अनुरोध पर भटियार का मन बदलगया । लेकिन सिपाही की खफगी का उसे डर था । बच्चा और प्रबल से रोता रहा ।

यह काम भटियारे से न होगा समझकर इस बार स्वयं सिपाही ही उस स्त्री की कोठरी के पास जाकर कहा – “देखो, तुमको इसी वक्त बच्चे को लेकर चले जाना होगा। बच्चा रोता रहा स्त्री चुपचाप उठी, बच्चे को उठाकर मैं चली जाती हूँ | बच्चे को जहाँ चाहे फेंक दो ।” कहती हुई चलने लगी। सिपाही कहता है- ” ठहरो ठहरों कहाँ जाती हों । स्त्री ने उत्तर दिया – “मुझे जहाँ मौत मिले वहाँ जाती हूँ ।”

सिपाही के पैरों में डालकर जब सिपाही के मन में एकदम परिवर्तन आजाता है और कहता है. पाँच कौन हो, कहाँ से आ रही हो, किधर जाती हो’ स्त्री ने कहा तुम बरस से बच्चे के बाप की तलाश में धूमती हूँ। वह लडाई पर गया । पता नही जिंदा है या मर गया । शायद लौटते हुए रास्ते में मिल जाय । मैं उसी के पास इस बदनसीब बच्चे को ले जा रही हूँ ।”
सिपाही की आँखो में आँसू आगये । तब सिपाही को पता चला कि वह बच्चा अपना ही है और वह स्त्री अपनी पत्नी । बच्चे को पैरो पर से उठाया, प्यार किया और वह अत्यंत ममत्वपूर्ण हो उठता है ।

विशेषताएँ : सैनिक के मनोभावनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया गया । यह एक मौलिक चिंतन है जो देश के लिए अपने परिवार को छोडकर सुदूर सीमा पर रहनेवाले सिपाही की है । मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जैनेंद्र कुमारजी की कहानियों की विशेषता है ।

2. ‘आलस्य और दृढ़ता पाठ का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक-परिचय : प्रस्तुत पाठ ‘आलस्य और दृढ़ता’ के लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं । आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।

सारांश : प्रस्तुत पाठ एक प्रबोधात्मक लेख है । लेखक ने इस लेख के द्वारा जीवन में आलस्य को छोड़ने तथा दृढ़ता को अपनाने का संदेश दिया है । उनके अनुसार आज की युवापीढ़ी के लिए इससे अच्छा संदेश दूसरा नहीं होगा कि ‘कभी आलस्य न करें।’ आलस्य का अर्थ है सुस्ती । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित रूप से करना चाहिए । इस प्रकार किसी काम को रोज नियमित ढंग से करने से एक वर्ष के बाद हम उस काम में माहिर बन जायेंगे। इस नियम के द्वारा हमारे सामने चाहे जितना भी बड़ा लक्ष्य हो, उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है। बीज तो देखने में छोटा ही है किन्तु उसीमें एक बड़ा वृक्ष छिपा रहता है ।

लेखक कहते हैं – ” जल्दबाजी और अस्थिरता जीवन में आलस्य की तरह बुरे गुण हैं । आलसी आदमी व्यर्थ ही मुश्किलों का आह्वान करता है । जिन्दगी में वही सफल मनुष्य कहलायेगा जो व्यर्थ प्रलापों में समय नष्ट नहीं करता और हर समय काम में लगा रहता । जो समय नष्ट करता है वह अपने घर को चोरों के लिए छोड़ रखे मकान मालिक जैसा ही मूर्ख है ! एक काम के पूरा होने के बाद ही दूसरे काम में लगना श्रेष्ठता की पहचान है । परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । यह संसार मेहनती लोगों के लिए है । इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्य ही आगे चलकर गौरव पा सकता है । आलस्य को छोड़ने से मन की दृढ़ता अपने आप आ जाती है ।

दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विघ्न-बाधाओं के बारे में नहीं सोचता । वह पक्के मन से कार्यक्षेत्र में उतरता है। ऐसे दृढ़वान मनुष्य की लगन के सामने चाहे कितना भी बड़ा संकट हो, टिक नहीं सकता । सामने की कठिनाई को देखकर हमें साहस छोड़ना नहीं चाहिए । दृढ़ता से एक-एक कदम आगे बढ़ायेंगे तो चाहे पहाड़ जितना भी बड़ा हो, आसानी से उसकी चढ़ाई की जा सकती है। विशेषकर, किसी कार्य के आरंभ होने से पहले उस कार्य की विघ्न-बाधाओं को देखकर डरना नहीं चाहिए । क्योंकि आरंभ में सभी कार्य कठिन होते हैं । वह आदमी जिन्दगी में कुछ भी नहीं कर सकता जो यह सोचकर पासा पटक देता है कि पहली बार ही उसे खेल में जीत नहीं मिली । परिश्रम और सबर जिन्दगी के खेल में बहुत महत्वपूर्ण हैं ।”

विशेषताएँ : इस लेख के द्वारा रचइता ने जीवन के कई मूल्यों को बहुत प्रभावशाली ढंग से सिखाया । लेख में अंग्रेजी साहित्य से भी कई उदाहरण दिये गये । इससे लेखक के गहन अध्ययन का पता चलता है । यह पाठ युवाओं के लिए अत्यंत मूल्यवान है । भाषा सरल व गंभीर है और शैली प्रवाहमान है ।

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4. किसी एक एकांकी का सारांश लिखिए । (1 × 6 = 6)

1. ‘सर्प दंश एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
रीता नामक बाईस साल की एक लडकी सुबह के नौ बजे को पूजा के लिए फूल तोडते समय, बगीचे मे उसे साँप काटता है । घास के ज्यादा उगने के कारण रीता साँप को ठीक से देख नही पाती है । लेकिन अपने पैर को ध्यान पूर्वक जब देखती है तो उसे दो गोल गोल बारीक निशान दिखाई देते है जिनमें खून भी छलक आया था | वह तुरंत अस्पताल पहुँचती है। वहाँ क्यू में खड़े रहने की नौबत आ पडती है । सर्प दंश एक गंभीर समस्या है लेकिन रीता को क्यु में खडें होने के लिए मजबूर करते है । परचा बनाते समय कर्मचारी शर्मा तथा हरीलाल रीता को सताते है । हरीलाल, रीता से कहता है – लाइन में खडे खड़े मरने का आर्डर नही है, यहाँ से परचा बनवाकर वार्ड में पहुँच जाओ, जब जी चाहा जियो या जी चाहा मरो !

इतने में एक नीली साडी वाली औरत सबसे आगे जाकर परचा बनवा लेती है । रीता के पूछने पर हीरालाल जवाब देता है कि वह डाक्टर की रिश्तेदार है और इसलिए उसको क्यू में खडे होने की जरूरत नही है । रीता खडी नही हो पाती है । इसलिए हीरालाल के स्टूल पर बैठ जाती है । परचा बनवाने की जब उसकी बारी आती है तब उसको शर्मा से भिडना पडता है । शर्मा रीता से पूछने लगता है कि किस जाति का सांप ने उसको काटा ? रीता जब कहने लगती है कि उसने सांप को ध्यान से नही देखा, शर्मा चिढकर कहने लगता है कि मैं आपकी भलाई के लिए पूछ रहा हूँ हर जाति के सांप के काटे का प्रति विष अलग होता है । नाग के काटने पर करैत के काटे का इलाज होता है तो मरीज उल्टे इलाज से मरजाता है तो जिम्मेदारी किसकी बनेगी। रीता से पुन: विचार कर परचे पर सर्प दंश लिखकर भेजता है ।

रीता जब डां. बहादुर से मिलने जाती है तब उनके दरवाजे पर कर्मचारी रीता को रोकता है। रीता उसके हाथ में दस रुपये थमा देती है, रीता को तब कर्मचारी अंदर भेजता है । डॉ. बहादुर भी रीता से पूछने लगता है कि सांप किस जाति का था वह विषैल साँप या कि साधारण ? उसका रूप, धारियाँ रंग कैसा नहीं था ? ऊँबकर रीता डाक्टर से करने लगते है कि उसने ध्यान नही दिया था कई सवाल जवाब के बाद बहादुर उसे एमर्जेन्सी में जाकर दवा के साथ पट्टी लगवाने की सलाह देता है ।

इतने में कर्मचारी से पता चलता है कि एमर्जेन्सी में एक पूरे बसके के घायलो के इलाज के लिए लाया है । वह रीता को अब्जर्वेशन के लिए अस्पताल में भर्ती होने का सलाह देता है। रीता भर्ती होने के लिए सोचती
ही रहती हैं कि इतने में हीरालाल उसके सामने आता है। रीता के यह कहने पर कि उसके माता पिता बाहर गये, तब हीरालाल यह कहकर रीता को शांत करता है कि वह स्वयं रीता के घर जाकर अगले दिन सुबह उसके माता – पिताजी को रीता का समाचार दे आयेगा । तब रीता उसके हाथ में दस रुपये रख देती है । हीरालाल खुश होकर रीता का खयाल रखने लगता है ।

रीता को दवाई लेने का समय होता है । वह सिस्टर से पानी माँगती. है । सिस्टर चिढ़ – चिढ़कर बोलने लगती है कि घर से पानी आने तक थोडा इंतजार कर लीजिए ? इतने में हीरालाल सिस्टर के सामने आता है । हीरालाल से रीटा का जब समाचार मिलता है तब सस्टिर उससे कहने लगती है कि बेड नं तेरह रीता की मैं भी ख्याल रखूँगी ।

भोर होता है और रीता अस्पताल के बाहर निकलती है । हीरालाल जब सामने आता है तो उससे रीता कहती है कि मेरी जान बची है, अगर कोई सांप काटे का मरीज अस्पताल में इलाज के लिए आता है . तब हीरालाल उसे बोलने से रोकता है और कहता है कि उसे सीधे डाक्टर के पास भेजूँगा, लाइन में लगने केलिए हरगिज नही कहूँगा । धीरे धीरे परदा गिरता हैं और एकांकी समाप्त हो जाती है ।
विशेषताएँ : एक सरकारी अस्पताल की कार्य – प्रणाली एवं उसके कर्मचारियों तथा डाक्टरों की मानशिकता को व्यंग्यात्मक ढंग इस एकांकी में प्रस्तुत किया गया ।

2. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जाने- माने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।

सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है । इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं । प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं ।

उमा एक पढ़ी लिखी युवती है । वह मेहनत करके बी.ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं । एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी बेटी का विवाह कर देना चाहता है। जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है । शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है । लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़ी – लिखी हो । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ मेट्रिक पास है । दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता। वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे। उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जाये ।

निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है। पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं। वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो। इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है | गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए | उनमें शिक्षा भी एक है। वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम बस घर को संभालना है ।

रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है। गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती । उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है। वह कहती है कि बाजार में कुर्सी – मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती । दूकानदार बस उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं । उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है ।

उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है । वे बाजार में देखकर खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं । वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी । इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है । उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी. ए. पास की है । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं । उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’ यही पर एकांकी समाप्त होता है ।

विशेषताएँ: प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है। लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की – शिक्षा’ है । उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं । रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया । भाषा बहुत सरल और शैली प्रवाहमान है ।

AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 4 with Solutions

5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । (2 × 4 = 8)

1. अराति सैन्य सिंधु में सुवाडवाग्निसे जलो !
प्रवीर हो जयी बनी – बढ़े चलो, बढ़े चलो ।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ

संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियों को उत्तेजित करते हुए देशभक्ति की मशाल जला रहे हैं ।

व्याख्या : भारत देश के गौरव चिह्न हिमालयों के द्वारा माता भारती अपने सुपुत्रों को बुला रही है । स्वाधीनता के संघर्ष में भाग लेने को प्रेरित कर रही है । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसी अनन्त है । उस को हराना हँसी • खेल नहीं है । फिर भी देश स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढना ही होगा । ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा । अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा । आप कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे ।

विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।

2. सफल हो सहज हो तुम्हारा त्याग,
नहीं निष्फल मेरा अनुराग,
सिद्धि है स्वयं साधन – भाग,
सुधा क्या, क्षुधा न जो होती ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ऊर्मिला का विरह गान’ नामक कविता से दी गयी है । इस के कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिक खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं। खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ | गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, तिंतक, विद्वान है साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष, भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ । गुप्त जी को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया ।

संदर्भ : ये पंक्तियाँ उर्मिला वनवास को गये लक्ष्मण को याद करती हुई दुःख भाव से कहती हैं ।

व्याख्या : हे प्रियतम ! मुझे आयोध्या के राजभवन में छोड़ कर तुम राज्य के सुख – भोगों को त्याग कर श्रीराम, सीतादेवी के साथ वनवास को चले गये | तुम्हारा त्याग सहज तथा सरल, सफल होने की कामना करती हूँ । और आपके प्रति मेरा अनुराग कभी भी निष्फल नहीं जायेगा । आपको स्वयं सिद्धि भाग कर आपके पास पहुंचेगी। अमृत की तृषा में भूख भी नहीं होती। विशेषताएँ : अपने पती के वियोग, विरह में विदग्ध उर्मिला का वर्णन है । वियोग श्रृंगार का सफ़ल प्रस्तुतीकरण है । भाषा शुद्ध खड़ीबोली है।

3. नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती ।
उत्तर:
कवि-परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं ।

संदर्भ : प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।

व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते है कि जब नन्हीं चींटी दाना लेकर दीवारों पर चढ़ती है, कई बार फिसलकर नीचे गिर जाती है । फिर भी वह अपनी लगन नहीं छोड़ती और मंजिल पहुँचने तक उसका प्रस्थान नहीं रुकता । चींटी की कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती । जिनके मन का विश्वास, रगों में साहस को भरता है – वे चढ़ने और गिरने में संकोच नहीं करते । कोशिश करनेवालों की हार कभी नहीं होती |

विशेषता: प्रस्तुत कविता का संदेश स्पर्धा से युक्त आधुनिक युग में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । कवि चींटी जैसे छोटे और सरल उदाहरण से गंभीर विषय को समझाते हैं | कविता उपदेशात्मक एवं प्रभावशाली है । भाषा बहुत सरल है ।

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4. जब किसी जाति का अहं चोट खाता है,
पावक प्रचंड होकर बाहर आता है ।
उत्तर:
कविपरिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारतं सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ !

संदर्भ : कवि दिनकर जी इन पंन्तियों के माध्यम से भारत की गरिमा का गान गा रहे हैं ।

व्याख्या : यह भी सच है कि जब जब भारत का गौरव रे में पड़ता है तब तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में अग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भागय लिए आते है । भारत पर चीन के आक्रमण के समय भारत का गौरव घायल हुआ है । इसीलिए भारत के लोग चोट खाये भुजंग की तरह क्रोधित हो कर सुलगी हुई आग बना देते हैं । जब किसी जाति का आत्म सम्मान चोट खाता हैं, आग प्रचंड हो कर बाहर आती है ।

विशेषताएँ: देश के प्रति प्रेम और भक्तिभावनाओं को जगानेवाली कविता है | कविता की भाषा सरल तथा विषयानुकूल है । शैली सहज तथा प्रवाहमान है ।

6. निम्नलिखित में से किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। (2 × 4 = 8)

1. यह बेमतलब का क्रंदन, बेराग, बेस्वर, सन्नाटे को चीरकर आता हुआ उसके कानों में बहुत अप्रिय लगा ।
उत्तर:
कविपरिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ” अपना पराया’ नामक कहानी से दी गई है । कहानी के लेखक श्री जैनेंद्र कुमार जी है । ‘आप हिन्दी कहानी क्षेत्र में मनोविश्लेषण वादी रचनाकार के रूप में सुपरिचित हैं । आपका जन्म 1905 ई-अलीगढ़ के कौडियागंज में हुआ । गांधी जी के प्रभाव से असहयोग आन्दोलन में भागलेने के कारण जेल भी गये ! जेल के वातावरण से ही कहानियाँ लिखने की प्रेरणा मिली! आपने भाषा की सहजता शिल्पगत सूक्ष्मता पर अधिक बलदिया है ।

संदर्भ : लंब समय के बाद परिवार से निकले सिपाही को एक बच्चे के रोने की आवाज आती है और सिपाही की प्रतिक्रिया ।

व्याख्या : एक सिपाही युद्ध क्षेत्र से लंबी के बाद घर लौटने समय सड़क के किनारे एक सराय में टहरता है। परिवार के बारे में ख्वाब देखता है, रात का भोजन करके गाढी नींद में सो जाता है । पास की कोठरी से बच्चे की रोने की आवाज लगातार आती है । उस बच्चे को माँ मनाती है, पर रोग नहीं बन्द होता । पत्नी से मिलने के सुखद स्वप्न देखने वाले सिपाही को यह सेना अप्रिय लगता है । भटियारे को बुलाकर आदेश देता है कि इस शोर को बन्द कराओ ताकि नींद ठीक से लगे ।

विशेषता : लंबे के समय मे बाद परिवार से मिलने को आश, उमंगों वालेही की मनोदशा का सजीव चित्रण है ।

2. एक आलसी मनुष्य उस घरवाले के समान है जो अपना घर चोरों के लिए खुला छोड़ देता है ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है | इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने- माने विद्वान और आलोचक हैं। आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दीविभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी – एक थे । आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।

संदर्भ : सुस्ती या आलसीपन के कारण गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । आलसी आदमी उस मकान मालिक के समान है जो अपने घर को चोरों के लिए खुला छोड़कर तमाशा देखता है । क्योंकि आलसीपन अनेक समस्याओं को आश्रय देता है जो संपूर्ण जीवन का नाश कर देती हैं । अतः जीवन में कभी आलसी बनना नहीं चाहिए ।

विशेषता: यहाँ रचइता घर से एक व्यक्ति के जीवन की तुलना करते हैं । आलस्य के कारण हमारा जीवन अनेक समस्याओं का निलय होकर खाली हो जायेगा ।

3. कई वर्ष पूर्व मैंने निश्चय किया कि अब हिरन नहीं पालूँगी, परंतु आज उस नियम को भंग किए बिना इस कोमल प्राण जीव की रक्षा संभव है ।
उत्तर:
कवि परिचय : ये पंक्तियाँ सोना हिरनी नामक रेखाचित्र से दिगयी है । इस की लेखिका महादेवी वर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ है । हिन्दी साहित्य में छायावाद की प्रमुख लेखिका के साथ साथ संस्मरण तथा रेखाचित्र लेखिका के रूप में सुपरिचित है । आप की प्रमुख रचनाएँ है – नीहार, नीरजा, संध्यगीत, दीप शिखा, अतीत के चलचित्र, क्षणदा, श्रृंखला की कडियाँ, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार आदि । इन को ‘यामा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है ।

संदर्भ : स्वर्गीय धीरेंद्रनाथ वसु पौत्री सस्मिता का पत्र पढते अपनी पुरानी यादों को सहारे कह रही है।

व्याख्या : लेखिका के परिचित स्वर्गीय धीरेंद्रनाथ वसु पौत्री सस्मिता ने पत्र लेखिका को लिखा है – उनके पडोसी से एक हिरन मिला था । जो उन्हें उसे पालने के लिए दिया था। कुछ ही महीनों में उस हिरन के साथ बहुत स्नेह हो गया था । वह अब बडी हो जाने के कारण अधिक विस्तृत स्थान चाहिए. स्थलविस्तृति के अभाव के कारण विश्वास के साथ लेखिका के यहाँ पालने देना चाहती है | पत्र पड़ते पड़ते लेखिका को अचानक ‘सोना’ (हिरन) की यादें ताजा हो जाती है । लेकिन कई वर्षो पूर्व लेखिका ने निश्वय किया कि अब हिरन नहीं पालेंगी। परंतु उस नियम को भंग किए बिना इस कोमल जीवी की रक्षा संभव नहीं है ।

विशेषताएँ : इस रेखाचित्र में सोना हिरनी के प्रति लेखिका का स्नेह संपूर्ण आत्मीयता और अंतरंग भाव साकार हुआ है। महादेवी वर्मा अपनी गद्य भाषा के कवित्वपूर्ण विन्यास द्वारा सोना हिरनी के सौन्दर्य का अनुपम चित्रण किया है जो मानवीय संवेदना की गत्वर दीप्ती को जागृत करती है ।

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4. आप अगर बुरा न मानें तो मैं आपको हिस्से में से दस ऊँट ले लूँ | आप तो जानते ही हैं कि मेरे जैसे सांसारिक लोगों के लिए धन का ही महत्व होता है ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य अंधे बाबा अब्दुल्ला नामक पाठ से लिया गया है | यह कहानी ‘अलिफ लैला की कहानियाँ’ में से संकलित है। इस कहानी का मुख्य पात्र अब्दुल्ला है ।

व्याख्या : ये वाक्य अब्दुल्ला फकीर से कह रहा है । अब्दुल्ला और फकीर असंख्याक द्रव्य से भरे गुफा से 80 ऊँट पर रत्न अषर्फियाँ लाद कर, वादे के अनुसार दोनो बाँट लिए । फकीर अपने शर्त का हिस्सा और मरहम ले जा रहा था इतने में अब्दुल्ला को दिल में लोभ का शैतान फैल गया । और अपने सारे ऊँटो को वापस लेलिया ।

विशेषता: इन वाक्यों से अब्दुल्ला की अत्याशा के बारे में बता रहे है।

7. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)

1. कौन – सा व्यक्ति संसार में गौरव पा सकता है ?
उत्तर:
वही व्यक्ति संसार में गौरव पा सकता है जो किसी काम में दृढ़ता के साथ लगे रहता है । वह आलस्य से मुक्त रहता है और सारे काम सफलता पूर्वक कर सकता है । अतः दृढ़तापूर्ण व्यक्ति ही संसार में गौरव पाने का योग्य है ।

2. सोना कहाँ आ पड़ी है ?
उत्तर:
बेचारी ‘सोना’ भी मनुष्य की निष्टुर मनोरंजन प्रियता के कारण अपने अरण्य परिवेश और स्वजाति से दूर मानव समाज में आ पडी है ।

3. फकीर ने कितने ऊँट लेने का शर्त रखा ?
उत्तर:
फकीर ने चालीस ऊँट लेने की शर्त रखा ।

4. मैनेजर पर कौन आकर पिटाई करते हैं ?
उत्तर:
डाकू कुँवर |

8. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)

1. जल में छिपा बैठा दुर्योधन को युधिष्ठिर ने कैसे पुकारा ?
उत्तर:
जल में छिपे दुर्योधन को युधिष्ठिर, ओ पापी, अरे ओ कपटी, दुरात्मा दुर्योधन कहकर पुकारता है । स्त्रियों की भाँति जल में छिपना नही. बाहर निकलकर आने के लिए युधिष्ठिर कहता है ।

2. शर्मा के अनुसार डॉक्टर साहब क्या जानना चाहेंगे ।
उत्तर:
शर्मा के अनुसार डाक्टर साहब यह जानना चाहेंगे कि – मरीजो की भलाई के लिए सारी खास खास बातें परचे में लिख देना चाहते है • जिससे डाक्टर साहब एक नजर डालते ही सारा केस समझ जायें और तुरंत इलाज हो जाय ।

3. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में उमा के विचारों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर:
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में उमा नायिका है । वह उच्चशिक्षा प्राप्त युवती है । उसका अपना व्यक्तित्व है । वह लड़की देखने की प्रथा के नाम पर होनेवाले अपमान का सहन नहीं करती । उमा के अनुसार लड़कियों का भी दिल होता है और उसे ठेस पहुँचती है। ऐन मौके पर वह अपना मुँह खोलती है और लड़केवालों का मुँहतोड़ जवाब देती है ।

4. डॉ. बहादूर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए क्या जानना जरूरी है ?
उत्तर:
डॉ. बहादुर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए जानना जरूरी है कि एक तो वह सांप था या नही, दूसरा अगर सांप था तो जहरीला था या नही, तीसरे अगर जहरीला था तो किस जाति का सांप था ।

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9. निम्नलिखित प्रश्नों का वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)

1.रामचरितमानस की भाषा क्या थी ?
उत्तर:
रामचरितमानस का भाषा अवधी थी ।

2. नायिका के अंग किसकी भाँति चमक रहे हैं ?
उत्तर:
रत्न ।

3. इस गीत को किसने गाया ?
उत्तर:
अलका

4. हरिवंशराय बच्चन जी किसे एक चुनौती मानने के लिए कहते हैं ?
उत्तर:
हरिवंशराय बच्चन जी असफलता को एक चुनौती मानने के लिए कहते हैं |

5. भारत – भर का मित्र कौन है ?
उत्तर:
परशुराम ।

10. निम्नलिखित प्रश्नों का एक वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)

1. सिपाही के बेटे का नाम क्या है ?
उत्तर:
सिपाही के बेटे का नाम ‘करनसिंह’ हैं

2. लोगों को किस बात का ध्यान बचपन से ही रखना चाहिए ?
उत्तर:
लोगों को इस बात का ध्यान बचपन से ही रखना चाहिए कि समय व्यर्थ न जाये ।

3. पशु जगत में निरीह और सुंदर पशु कौन है ?
उत्तर:
हिरन |

4. डाकू ने बल्लम कहाँ रखा ?
उत्तर:
‘मैनेजर के सर पर ।

5. देहाती लक्ष्मी कितने रास्तों से भागती है ?
उत्तर:
चार रास्तों में भागती है ।

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खंड-ख (40 अंक)

11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीखिए । (5 × 2 = 10)

अज्ञेय जी का जन्म सन् 1911 ई. में जिला देवरिया के कुशीनगर नामक गाँव में हुआ था । आपका पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ था । ‘अज्ञेय’ कवि का उपनाम है । आपकी बाल्यावस्था लखनऊ, कश्मीर, नालंदा, पटना और नीलगिरि आदि में व्यतीत हुई और इसी बीच में इन्होंने संस्कृत, फारसी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया । मद्रास तथा लाहौर से आपने बी. एस. सी. तथा अंग्रेजी में एम. ए. की परीक्षाएँ उत् तीर्ण कीं । अज्ञेय ने ‘दिनमान’, ‘प्रतीक’ तथा ‘तार सप्तक’ पत्रिकाओं का संपादन एवं प्रकाशन किया । तार सप्तक संपादन के साथ हिंदी में प्रयोगवाद का सूत्रपात हुआ | उपन्यास, कहानी तथा निबंध आदि के अतिरिक्त इनकी कुछ काव्य रचनाएँ हैं- भग्नदूत, चिंता, प्रियजन और हरी घास पर क्षण – भर आदि । उपन्यास के क्षेत्र में ‘शेखर एक जीवनी’ ने उनको विशेष ख्याति प्रदान की । उन्होंने जापान की ‘हाइकू’ कविताओं का अनुवाद किया था। श्री अज्ञेय का देहांत सन् 1987 ई. में हुआ था ।

प्रश्न :

1) अज्ञेय का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर:
अंज्ञेय का जन्म सन् 1911 ईं में जिला देवरिया के कुशीनगर नामक गाँव में हुआ था ।

2. अज्ञेय का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर:
अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय था ।

3. अज्ञेय ने किन-किन पत्रिकाओं का संपादन एवं प्रकाशन किया ?
उत्तर:
अज्ञेय ने ‘दिनमान’ ‘प्रतीक’ तथा ‘तार सप्तक’ पत्रिकाओं का संपादन एवं प्रकाशन किया ।

4. अज्ञेय प्रसिद्ध उपन्यास का नाम क्या था ?
उत्तर:
शेखर एक जीवनी अज्ञेय का प्रसिद्ध उपन्यास था ।

5. अज्ञेय ने किनका अनुवाद किया ?
उत्तर:
जपान की ‘हाइकू’ कविताओं का अनुवाद अज्ञेय ने किया ।

12. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए । (5 × 1 = 5)

1. सन्मार्ग
2. वाग्दान
3. दिगम्बर
4. परिच्छेद
5. अजंत
6. प्रमाण
7. भूषण
8. संभावना
9. जगदानन्द
10. आच्छादन
उत्तर:
1. सन्मार्ग = सत् + मार्ग
2. वाग्दान = वाक् + दान
3. दिगम्बर = दिक् + अम्बर
4. परिच्छेद = परि + छेद
5. अजंत = अच् + अंत
6. प्रमाण = प्र + मान
7. भूषण = भू + षन
8. संभावना = सम् + भावना
9. जगदानन्द = जगत् + आनंद
10. आच्छादन = आ + छादन

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13. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों के समास के नाम लिखिए।

1. चौमासा
5. हलधर
2. दाल – रोटी
3. थोड़ा – बहुत
4. लम्बोदर
6. पंकज
7. यथाशक्ति
8. हर रोज
9. सीता पति
10. आजीवन
उत्तर:
1. चौमासा = द्विगु समास (विग्रहवाक्य : चार मासों का समूह )
2. दाल – रोटी = द्वंद्व समास (विग्रहवाक्य : दाल और रोटी)
3. थोड़ा-बहुत = द्वंद्व समास(विग्रहवाक्य : थोडा या बहुत )
4. लम्बोदर = बहुव्रीहि समास(विग्रहवाक्य : जिसका उदर लम्बा हो)
5. हलधर = बहुव्रीहि समास (विग्रहवाक्य : हल को धारण करनेवाला)
6. पंकज = बहुव्रीहि समास(विग्रहवाक्य : पंक मे जन्म लेनेवाला)
7. यथाशक्ति = अव्ययीभाव समास (विग्रहवाक्य .: शक्ति के अनुसार)
8. हर रोज = अव्ययीभाव समास (विग्रहवाक्य : रोज रोज)
9. सीता पति = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : सीता का पति)
10. आजीवन = अव्ययीभाव समास (विग्रहवाक्य : जीवन भर)

14. (अ) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को हिंदी में अनुवाद कीजिए । (5 × 1 = 5)

1. My name is Mohan
उत्तर:
मेरा नाम मोहन है ।

2. Cow gives milk.
उत्तर:
गाय दूध देती है ।

3. Rama killed Ravana.
उत्तर:
राम ने रावण को मारा ।

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4. Visakhapatnam is a beautiful city.
उत्तर:
विशाखापट्टणम एक सुंदर नगर है ।

5. Don’t tell lies.
उत्तर:
झूठ मत बोलो ।

6. What is your Name ?
उत्तर:
तुम्हारा / आपका नाम क्या है ?

7. Service to man is service to God.
उत्तर:
मानव सेवा ही माधव सेवा है ।

8. The pen is on the table.
उत्तर:
कमल मेज पर है।

9. Ramakanth is a brave boy.
उत्तर:
रमाकांत एक साहसी लड़का है ।

10. Give respect, Take respect.
उत्तर:
सम्मान दीजिए, सम्मान लीजिए ।

14. (आ) निम्नलिखित वाक्यों में से पाँच वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए । (5 × 1 = 5)

1) मेरे को एक कलम चाहिए । (अशुद्ध )
उत्तर:
मुझे एक कलम चाहिए । (शुद्ध) (मेरे + को = मुझे)

2) हम हिंदी सीखनी चाहिए | (अशुद्ध )
उत्तर:
हमें हिंदी सीखनी चाहिए। (शुद्ध) (हम + को = हमें)

3) मल्लेश्वरी गाना चाहिए । (अशुद्ध)
उत्तर:
मल्लेश्वरी को गाना चाहिए । (शुद्ध)

4) देवेश देवेश की पुस्तक पढ़ता है। (अशुद्ध)
उत्तर:
देवेश अपनी पुस्तक पढ़ता है । (शुद्ध)

5) आप आपका नाम बताइये । (अशुद्ध)
उत्तर:
आप अपना नाम बताइये । (शुद्ध)

6) मैं मेरा काम करता हूँ । (अशुद्ध)
उत्तर:
मैं अपना काम करता । (शुद्ध)

7) तू क्या कर रहे हो ? (अशुद्ध)
उत्तर:
तू क्या कर रहा है ? (शुद्ध)

8) वह पूस्तक मेरा है । (अशुद्ध)
उत्तर:
वह पूस्तक मेरी है । (शुद्ध)

9) अध्यापक जी ने बोले । (अशुद्ध)
उत्तर:
अध्यापक जी बोले । (शुद्ध)

10) मैंने कल गाँव गया । (अशुद्ध)
उत्तर:
मैं कल गाँव गया । (शुद्ध)

15. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षिप्तीकरण कीजिए । (1 × 5 = 5)

अहिंसा परम धर्म है और हिंसा आपद् – धर्म । मनुष्य अहिंसा की ओर चलना चाहता है, किंतु परिस्थितियाँ उससे हिंसा कराती हैं, अर्थात् परम् धर्म की रक्षा के लिए आदमी बराबर आपद् – धर्म से काम लेता रहा है। भारत अपनी सेनाओं को विघटित कर दे, तब भी उसका अपमान उससे अधिक होनेवाला नहीं, जितना नेफा में किंतु हुआ । परम – धर्म पर टिकने का सामर्थ्य भारत में नहीं है, तो आपद् – धर्म पर उसे आना ही चाहिए। व्यावहारतः आपद् – धर्म का विरोधी नहीं, उसका रक्षक हैं ।
उत्तर:

अहिंसा परमो धर्म

मनुष्य अहिंसा मार्ग पर चलते हुए भी परिस्थितियों के अनुरूप हिंसा से काम लेता आ रहा है। ऐसी ही स्थिति भारत की सेना की भी है । परमधर्म आपद्धर्मका विरोधी नहीं उसका रक्षक है ।

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16. निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच वाक्यों का वाच्य बदलिए । (5 × 1 = 5)

1) राम ने रोटी खाई । (कर्तृ)
उत्तर:
राम से रोटी खाई गई। (कर्म) (रोटी स्त्रीलिंग)

2) मुझसे कहानी लिखी जाती है। (कर्म) (कहानी – स्त्रीलिंग)
उत्तर:
मैं कहानी लिखता हूँ | (कर्तृ)

3) मोहन ने आम खाया । (कर्तृ)
उत्तर:
मोहन से आम खाया गया । (कर्म) (आम – पुलिंग )

4) मैं प्रतिदिन व्यायाम करता हूँ । (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे प्रतिदिन व्यायाम किया जाता है । (कर्म) (व्यायाम – पुलिंग)

5) मैंने किताब पढ़ी | (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे किताब पढ़ी गई । (कर्म) (किताब – स्त्रीलिंग)

6) नागमणि खाना पकाती है । (कर्तृ)
उत्तर:
नागमणि से खाना पकाया जाता है। (कर्म) (खाना – पुलिंग)

7) माधुरी ने सिनेमा देखा । (कर्तृ)
उत्तर:
माधुरी से सिनेमा देखा गया । (कर्म) (सिनेमा – पुलिंग)

8) मुरली रस पीता है । (कर्तृ)
उत्तर:
मुरली से रस पीया जाता हैं । (कर्म) (रस – पुलिंग)

9) महेश से पुस्तक पढ़ी जाती है । (कर्म)
उत्तर:
महेश पुस्तक पढ़ता है । ( कर्तृ) (पुस्तक – स्त्रीलिंग)

10) प्रेमचंद उपन्यास लिख रहा है । (कर्तृ)
उत्तर:
प्रेमचंद से उपन्यास लिखा जा रहा है । (कर्म) (उपन्यास – पुलिंग)

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