Access to a variety of AP Inter 2nd Year Hindi Model Papers Set 2 allows students to familiarize themselves with different question patterns.
AP Inter 2nd Year Hindi Model Paper Set 2 with Solutions
Time : 3 Hours
Max Marks : 100
सूचनाएँ :
- सभी प्रश्न अनिवार्य हैं ।
- जिस क्रम में प्रश्न दिये गये हैं, उसी क्रम से उत्तर लिखना अनिवार्य है ।
खंड – क ( 60 अंक)
1. निम्नलिखित दोहे की पूर्ति करते हुए भावार्थ सहित विशेषताएँ लिखिए । (1 × 8 = 8)
राम नाम मनि …………………….
………………. जौ चाहसि उजियार ||
उत्तर:
भावार्थ : कवि तुलसीदास कहते हैं ‘राम’ शब्द मणि के समान है । इसे दीप के रूप में द्वार पर रखे तो भीतर – बाहर प्रकाश फैलता है । उसी प्रकार मुह में राम शब्द का प्रयोग करने से देह के भीतर – बाहर भी उजियाला
होगा । अर्थात राम शब्द से मन की शुद्धी होगी |
अथवा
कोऊ कोटिक ………………….
……………………बिपति बिदारन हार ||
उत्तर:
भावार्थ : कवि बिहारीलाल इस दोहे के माध्यम से कह रहे हैं कि “कोई लाखों करोडों रूपये कमा लेते हैं, कोई लाखों या हजारों रूपये कमा लेते हैं । मेरी दृष्टि में धन का कोई महत्व नहीं है। मेरी दृष्टि में इस संसार की सबसे अनमोल संपत्ति मात्र श्रीकृष्णा ही है जो हमेशा मेरी विपत्तियों को नष्ट कर देते हैं, मुझे सदा सुखी रखते हैं । इसलिए सदा श्रीकृष्ण का नाम स्मरण करना चाहिए ।
2. किसी एक कविता का सारांश बीस पंक्तियों में लिखिए । (1 × 6 = 6)
1. ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ कविता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए ।
उत्तर:
कवि – परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । आपने प्रयाग विश्वविद्यालय में अंग्रेजी प्रोफेसर के रूप में कार्य क्रिया । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं । प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।
सारांश : कवि प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर कोशिश करने की सीख देते हैं । अपनी बात की पुष्टि के लिए वे अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं । वे कहते हैं- “यदि लहरों से डर गयी तो नौका समुंदर में आगे नहीं बढ़ सकती, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में असफलताओं से डरना नहीं चाहिए | नन्हीं चींटी दाना लेकर दीवारों पर चढ़ती है, किन्तु कई बार फिसलकर नीचे गिर जाती है । फिर भी वह अपनी लगन नहीं छोड़ती और मंजिल पहुँचने तक उसका प्रस्थान नहीं रुकता । चींटी की कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती । जिनके मन का विश्वास, रगों के अंदर साहस को भरता है – वे चढ़ने और गिरने में संकोच नहीं करते ।
समुंदर में डुबकी लगाकर मोतियों का अन्वेषण करते गोताखोरों को देखिए वे कितनी बार खाली हाथ लौटकर आते हैं ! समुंदर में मोती बहु गहराई पर होते हैं और इतनी आसानी से वे हाथ नहीं आते । पर हर हार के बाद वे दुगुना उत्साह लेकर कोशिश करते हैं । अर्थात् मोतियों को पाने की बेताबी के कारण उनका उत्साह बढ़ जाता है । वे तब तक लगातार प्रयास करते रहते हैं जब तक मोती उनके हाथ नहीं आते। आखिर वे अपनी मनचाही वस्तु पाकर ही रहते हैं। किसी न किसी दिन उनकी मुट्ठियाँ मोतियों से भर जाती हैं । निरंतर कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती ।
इससे जानना चाहिए कि असफलता एक चुनौती है और उसे स्वीकार करना चाहिए। पिछले प्रयास में हमने क्या किया और उसमें क्या कमी है – इन बातों की समीक्षा करके अपने आपको सुधारना चाहिए । पुनः उत्साह से प्रयास करना चाहिए । जब तक सफल नहीं होते तब तक नींद और आराम को छोड़ देना चाहिए । मनुष्य को कदापि संघर्ष का मैदान छोड़कर भागना नहीं चाहिए | क्योंकि जीवन में यश की प्राप्ति आसानी से नहीं होती । उसके लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है ।”
विशेषताएँ : कवि ने निरंतर प्रयास का महत्व बहुत प्रभावशाली ढंग से समझाया । उनके अनुसार मनुष्य को कभी प्रयास रोकना नहीं चाहिए | कविता में प्रवाहमान शैली है। सरल और शुद्ध खड़ीबोली का प्रयोग कुल मिलाकर बच्चन जी की सफल कविता है ।
2. ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ कविता का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं | आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ ।
सारांश : परशुराम की प्रतीक्षा एक खंड काव्य है । भारत चीन युद्धानंतर देश की परिस्थितियाँ बदलवगयी । देश में निराशा हताशा कि स्थिति फैली हुई थी, ऐसी स्थिति को दूर करने के लिए परशुराम जैसे वीर के पुनः जन्म की प्रतीक्षा थी इसी प्रतीक्षा को लेकर यह लिखा गया है । परशुराम की प्रतीक्षा काव्य के माध्यम से कवि दिनकर जी ने भारतीय संस्कृति के महत्व का परिचय दिया है। भारत की संस्कृति सर्वोन्नत है ही ।
कवि कह रहे हैं हम कैसी बीज बो रह हैं हमे पता ही नहीं, पर यहाँ की धरती दानी है । मनुष्य उसको जब भी जल कण देता उस के दान वृथा नहीं होने देती, बदले में कुछ न कुछ देती है । यह धरती वज्रों का निर्माण करती है । यह देश और कोई नहीं, केवल हम और तुम है । यह देश किसी और के लिए नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा और तुम्हारा है । भारत में न तो जाति का न तो गोत्रों का बन्धन है । अनेकता में एकता रखने वाला देश है । इस देश में महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध जैसे महा पुरुषों का जन्म हुआ | इन महा पुरुषों के त्याग की नीव पर इस देश का निर्माण हुआ है, शंकराचार्य का शुद्ध विराग लेकर आते हैं । यह भी सच है कि जब जब भारत का गौरव खतरे में पड़ता है तब तब यहाँ के लोग उग्र रूप धारण करके आंखों में आग लिए आते हैं पर स्वदेश (भारत) का भाग्य लिए आते हैं। भारत पर चीन के आक्रमण के समय भारत का गौरव घायल हुआ है । इसीलिए भारत के लोग चोट खाये भुजंग की तरह क्रोधित हो कर सुलगी हुई आग बना देते हैं । जब किसी जाति का आत्म सम्मान चोट खाता है, आग प्रचंड हो कर बाहर आती है। यह चोट खाये स्वदेश का बल वही है। ऐसी परिस्थिति में देश के उद्धार के लिए परशुराम जैसे वीर आदर्श पुरुष की प्रतीक्षा करते हैं । परशुराम के आदर्शों के बल पर भारत का भाग्योदय संभव है ।
3. किसी एक पाठ का सारांश 20 पंक्तियों में लिखिए । (1 × 6 = 6)
1. ‘आलस्य और दृढ़ता’ पाठ का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक – परिचय : प्रस्तुत पाठ ‘आलस्य और दृढ़ता’ के लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने-माने विद्वान और आलोचक हैं | आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रथम अध्यक्ष थे | कांशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालयों में हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ एक प्रबोधात्मक लेख है । लेखक ने इस लेख के द्वारा जीवन में आलस्य को छोड़ने तथा दृढ़ता को अपनाने का संदेश दिया है । उनके अनुसार आज की युवापीढ़ी के लिए इससे अच्छा संदेश दूसरा नहीं होगा कि ‘कभी आलस्य न करें।’ आलस्य का अर्थ है सुस्ती । लेखक सुझाव देते हैं कि चाहे जितना भी कम समय के लिए हो, एक काम को रोज नियमित रूप से करना चाहिए । इस प्रकार किसी काम को रोज नियमित ढ़ंग से करने से एक वर्ष के बाद हम उस काम में माहिर बन जायेंगे । इस नियम के द्वारा हमारे सामने चाहे जितना भी बड़ा लक्ष्य हो, उसे आसानी से पूरा किया जा सकता है। बीज तो देखने में छोटा ही है किन्तु उसीमें एक बड़ा वृक्ष छिपा रहता है ।
लेखक कहते हैं – ” जल्दबाजी और अस्थिरता जीवन में आलस्य की तरह बुरे गुण हैं । आलसी आदमी व्यर्थ ही मुश्किलों का आह्वान करता है । जिन्दगी में वहीं सफल मनुष्य कहलायेगा जो व्यर्थ प्रलापों में समय नष्ट नहीं करता और हर समय काम में लगा रहता । जो समय नष्ट करता है वह अपने घर को चोरों के लिए छोड़ रखे मकान मालिक जैसा ही मूर्ख है ! एक काम के पूरा होने के बाद ही दूसरे काम में लगना श्रेष्ठता की पहचान है । परिश्रम के बिना संसार में कोई काम नहीं बन सकता । यह संसार मेहनती लोगों के लिए है । इसलिए सबको परिश्रम का मूल्य जानना होगा । दृढ़ता के साथ किसी काम में लगे रहनेवाला मनुष्यं ही आगे चलकर गौरव पा सकता । आलस्य को छोड़ने से मन की दृढ़ता अपने आप आ जाती है ।
दृढ़ता से परिपूर्ण व्यक्ति भविष्य में आनेवाली विघ्न-बाधाओं के बारे में सोचता । वह पक्के मन से कार्यक्षेत्र में उतरता है। ऐसे दृढ़वान मनुष्य की लगन के सामने चाहे कितना भी बड़ा संकट हो, टिक नहीं सकता । सामने की कठिनाई को देखकर हमें साहस छोड़ना नहीं चाहिए । दृढ़ता से एक-एक कदम आगे बढ़ायेंगे तो चाहे पहाड़ जितना भी बड़ा हो, आसानी से उसकी चढ़ाई की जा सकती है। विशेषकर, किसी कार्य के आरंभ होने से पहले उस कार्य की विघ्न-बाधाओं को देखकर डरना नहीं चाहिए । क्योंकि आरंभ में सभी कार्य कठिन होते हैं । वह आदमी जिन्दगी में कुछ भी नहीं कर सकता जो यह सोचकर पासा पटक देता है कि पहली बार ही उसे खेल में जीत नहीं मिली । परिश्रम और सबर जिन्दगी के खेल में बहुत महत्वपूर्ण हैं ।”
विशेषताएँ : इस लेख के द्वारा रचइता ने जीवन के कई मूल्यों को बहुत प्रभावशाली ढंग से सिखाया । लेख में अंग्रेजी साहित्य से भी कई उदाहरण दिये गये । इससे लेखक के गहन अध्ययन का पता चलता है । यह पाठ युवाओं के लिए अत्यंत मूल्यवान है । भाषा सरल व गंभीर है और शैली प्रवाहमान है ।
2. ‘नंबरोंवाली तिजोरी’ कहानी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय : “नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथालेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं। सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर दश के कालाकाँकर के राज परिवार में हुआ। वे हिन्दी के सुपरिचित साई हैं तथा आइ.ए.एस अफसर भी हैं । आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत और कालाकाँकर’ अवं ‘यादों के झरोखे से’ । इनकी रचनाएँ भारत कार द्वारा पुरस्कृत हैं ।
सारांश : यह एक तिजोरी को लेकर लिखी गई हास्य रचना है । राजा – रईस तो अब नहीं रहे पर उनकी यादें अभी तक नहीं भूली गई, राजा रईसों के यहाँ नौकरी करना हंसी – खेल की बात नहीं । कहानी के मुख्य पात्र “मैं” के चाचा छुईखदान महाराजा के यहाँ नौकर थे, उन्हीं की शिफ़ारिश से “मैं” को नौकरी मिल गयी । रियासत में दस साल सर्वीस करने के बाद जमीन्दारी खत्म हो गयी। राजा साहब द्वारा कटाई गई टिकट के सहारे बिना कौडी के “मै’ अपने घर वापस आ गये। आते-आते राजा साहव से भेंट में मिली खाली, बंद तिजोरी के साथ | यह तिजोरी आज भी नीम के नीचे पड़ी है जिस पर दिन भर लड़के उछल-कूद मचाया करते हैं ।
आखिर यह तिजोरी आयी तो क्यों आयी, इसे मकान के बाहर क्यों फेंका गया इस के बारे में “मैं” पात्र बता रहा है । राजा साहब ने तिजोरी मैनेजर को तोहफ़े में दिया था । यह राय साहब की एक मात्र यादगार है इसलिए इसे संभाल कर रखना भी जरूरी हो गया । यह तिजोरी रौनख बढ़ाने के अलावा किसी काम की नहीं रही । यहाँ तक कि अचार, चटर्नी, दूध बिल्ली से बचाने में भी बेक़ाम है । इस तिजोरी को राजा साहब के वालिद साहब ने रियासत में ला रखा था और यह नंबरों वाली तिजोरी है । इसे खोलने के नंबर राजा साहब के वालिद के अलावा किसी को पता नहीं । मैनेजर ने इसे अपनी कोठी में रखना बढ़प्पन मानते थे। कई दिनों तक इस तिजोरी के कारण मैनेजर की खूब चर्चा चलती रही ।
एक दिन मैनेजर कुंभकर्ण की तरह गहरी नींद में खर्राटे भर रहे थे । डाकु घर में चोरी के लिए घुसे । खोज – बीन के बाद डाकुओं को कुछ भी न मिलने कारण तलाशी मे मैनेजर के कमरे में गये । डाकुओं के हाथों में बल्लम तने हुए थे उन्हें देख कर मैनेजर कांपने लगा | डाकुओं की निगाह तिजोरी पर पड़ी । तिजोरी को फोड़ने शताधिक प्रयत्न करके विफल रहे । तिजोरी की चाबी के लिए मैनेजर की खूब पिटाई की। मैनेजर ने कहा यह लाले से नहीं बलकी नंबरों से खुलती है। नंबरों के लिए बेहद पिटाई की, यहाँ कि जलाने के लिए गर्म सलाखा मंगवाया इतने में चौकीदार चौंक कर हा मचाते वहाँ पहुंचता है तो डाकू भाग जाते हैं । दूसरे दिन ही उठा कर में जर ने तिजोरी महल में पहुंचा दी। यह राजा साहब के तोहफ़े की शकल “मैं” के घर पहुंची, उसे घर में रखने की हिम्मत न होने कारण “मैं” ने नीम के पेड़ नीचे फेंकवा दिया ।
विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है। कमरे की रौनख बढाने के लिए लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा है। भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है। शैली प्रवाहमान है।
4. किसी एक एकांकी का सारांश लिखिए । (1 × 6 = 6)
1. ‘सर्प दंश’ एकांकी का सारांश लिखिए |
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत एकांकी सर्प – दंश की लेखिका शांति मेहरोत्रा है । शांति मेहरोत्रा जीने जनसाधारण से भोग – झेली यथार्य स्थितियां और घटनाएँ इस एकांकी में प्रस्तुत की है ।
सर्पदंश शब्द अपने आप में एक गंभीर समस्या नजर आती है । जिसके लिए त्वरित इलाज की जरुरत पडती हैं लेखिका ने इस सर्प दंश समस्या को व्यंगात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है ।
सारांश : रीता नामक बाईस साल की एक लडकी सुबह के नौ बजे को पूजा के लिए फूल तोडते समय, बगीचे मे उसे साँप काटता है । घास के ज़्यादा उगने के कारण रीता साँप को ठीक से देख नही पाती है । लेकिन अपने पैर को ध्यान पूर्वक जब देखती है तो उसे दो गोल गोल बारीक – निशान दिखाई देते है जिनमें खून भी छलक आया था। वह तुरंत अस्पताल पहुँचती है। वहाँ क्यू में खडे रहने की नौबत आ पडती है । सर्प – दंश एक गंभीर समस्या है लेकिन रीता को क्यु में खडे होने के लिए मजबूर करते है । परचा बनाते समय कर्मचारी शर्मा तथा हरीलाल रीता को सताते है । हरीलाल, रीता से कहता है – लाइन में खडे – खडे मरने का आर्डर नही है, यहाँ से परचा बनवाकर वार्ड में पहुँच जाओ, जब जी चाहा जियो था । जी चाहा मरो ।
इतने में एक नीली साडी वाली औरत सबसे आगे जाकर परचा बनवा लेती है। रीता के पूछने पर हीरालाल जवाब देता है कि वह डाक्टर की रिश्तेदार है और इसलिए उसको क्य में खडे होने की जरूरत नही है |
रीता खडी नही हो पाती है। इसलिए हीरालाल के स्टूल पर बैठ जाती परचा बनवाने की जब उसकी बारी आती है तब उसको शर्मा से भिडना पडता है । शर्मा रीता से पूछने लगता है कि किस जाति का सांप ने उसको काटा ? रीता जब कहने लगती है कि उसने सांप को ध्यान से नही देखा, शर्मा चिढकर कहने लगता है कि मैं आपकी भलाई के लिए पूछ रहा हूँ हर जाति के सांप के काटे का प्रति विष अलग होता है। नाग के काटने पर करैत के काटे का इलाज होता है तो मरीज उल्टे इलाज से मरजाता है तो जिम्मेदारी किसकी बनेगी । रीता से पुन: विचार कर परचे पर सर्प दंश लिखकर भेजदेता हैं |
रीता जब डां. बहादुर से मिलने जाती है – तब उनके दरवाजे पर कर्मचारी रीता को रोकता है। रीता उसके हाथ में दस रुपये थमा देती है, रीता को तब कर्मचारी अंदर भेजता है । डॉ. बहादुर भी रीता से पूछने
लगता है कि सांप किस जाति का था वह विषैल साँप या कि साधारण ? उसका रूप, धारियाँ रंग कैसा नही था ? ऊँबकर रीता डाक्टर से करने लगते है कि उसने ध्यान नहीं दिया था कई सवाल जवाब के बाद बहादुर उसे एमर्जेन्सी में जाकर दवा के साथ पट्टी लगवाने की सलाह देता हैं ।
इतने में कर्मचारी से पता चलता है कि एमर्जेन्सी में एक पूरे बस के घायलो के इलाज के लिए लाया है । वह रीता को अब्जर्वेशन के लिए अस्पताल में भर्ती होने का सलाह देता है। रीता भर्ती होने के लिए सोचती ही रहती है कि इतने में हीरालाल उसके सामने आता है । रीता के यह कहने पर कि उसके माता पिता बाहर गये, तब हीरालाल यह कहकर रीता को शांत करता है कि वह स्वयं रीता के घर जाकर अगले दिन सुबह उसके माता – पिताजी को रीता का समाचार दें आयेगा । तब रीता उसके हाथ में दस रुपये रख देती है। हीरालाल खुश होकर रीता का खयाल रखने लगता है ।
रीता को दवाई लेने का समय होता है । वह सिस्टर से पानी माँगती है । सिस्टर चिढ़ – चिढ़कर बोलने लगती है कि घर से पानी आने तक थोडा इंतजार कर लीजिए ? इतने में हीरालाल सिस्टर के सामने आता है । हीरालाल से रीटा का जब समाचार मिलता है तब सस्टिर उससे कहने लगती है कि बेड नं तेरह रीता की मैं भी ख्याल रखूँगी ।
भोर होता है और रीता अस्पताल के बाहर निकलती है। हीरालाल जब सामने आता है तो उससे रीता कहती है कि मेरी जान बची है, अगर कोई सांप काटे का मरीज अस्पताल में इलाज के लिए आता है तंब हीरालाल उसे बोलने से रोकता है और कहता है कि उसे सीधे डाक्टर के पास भेजूँगा, लाइन में लगने केलिए हरगिज नही कहूँगा । धीरे – धीरे परदा गिरता है और एकांकी समाप्त हो जाती है ।
विशेषताएँ : एक सरकारी अस्पताल की कार्य- प्रणाली एवं उसके. कर्मचारियों तथा डाक्टरों की मानशिकता को व्यंग्यात्मक ढंग इस एकांकी में प्रस्तुत किया गया ।
2. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जाने- माने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य-सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है । इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं। प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं ।
उमा एक पढ़ी लिखी युवती है। वह मेहनत करके बी.ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं | एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी बेटी का विवाह कर देना चाहता है। जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है । शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है। लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी हो । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ मेट्रिक पास है। दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता । वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे। उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जाये ।
निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है। पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं । वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो। इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है । गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए | उनमें शिक्षा भी एक है । वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम बस घर को संभालना है ।
रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है । गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती। उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है । वह कहती है कि बाजार में कुर्सी – मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती । दूकानदार बस उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं । उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है । उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है । वे बाजार में देखकर खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं । वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी । इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है । उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी. ए. पास की है । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं । उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’ यही पर एकांकी समाप्त होता है ।
विशेषताएँ : प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है । लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन बस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की – शिक्षा’ है । उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं | रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया। भाषा बहुत सरल और शैली प्रवाहमान है ।
5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो पद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए । (2 × 4 = 8)
1. अराति सैन्य सिंधु में सुवाडवानिसे जलो ।
प्रवीर हो जयी बनी – बढ़े चलो, बढ़े चलो ।
उत्तर:
संदर्भ : ‘हिमाद्री से’ कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं – कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ |
संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियों को उत्तेजित करते हुए देशभक्ति की मशाल जला रहे हैं ।
व्याख्या : भारत देश के गौरव चिह्न हिमालयों के द्वारा माता भारती अपने सुपुत्रों को बुला रही है । स्वाधीनता के संघर्ष में भाग लेने को प्रेरित कर रही है । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसी अनन्त है । उस को हराना हँसी खेल नहीं है । फिर भी देश स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढ़ना ही होगा | ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा । अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा । आप कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे ।
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है ।
2. सफल हो सहज हो तुम्हारा त्याग,
नहीं निष्फल मेरा अनुराग,
सिद्धि है स्वयं साधन – भाग,
सुधा क्या, क्षुधा न जो होती ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘ऊर्मिला का विरह गान’ नामक कविता से दी गयी है । इस के कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी हैं। गुप्त जी आधुनिक खड़ीबोली हिन्दी के प्रथम कवि हैं। खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में निर्मित करते हुए एक नई दिशा देने वाले गुप्त जी का जन्म 1886 ई. को झांसी जिले के चिरगाँव में हुआ । गुप्त जी कवि, गद्य लेखक, चिंतक, विद्वान है साकेत, यशोधरा, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, नहुष, भारत भारती, काबा और कर्बला आदि आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं । गुप्त जी का निधन 1964 में हुआ | गुप्त जी को भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया ।
संदर्भ : ये पंक्तियाँ उर्मिला वनवास को गये लक्ष्मण को याद करती हुई दुःख भाव से कहती है ।
व्याख्या : हे प्रियतम ! मुझे आयोध्या के राजभवन में छोड़ कर तुम राज्य के भोगों को त्याग कर श्रीराम, सीतादेवी के साथ वनवास को सुख चले गये | तुम्हारा त्याग सहज तथा सरल, सफल होने की कामना करती हूँ । और आपके प्रति मेरा अनुराग कभी भी निष्फल नहीं जायेगा । आपको स्वयं सिद्धि भाग कर आपके पास पहुंचेगी। अमृत की तृषा में भूख भी नहीं होती ।
विशेषताएँ : अपने पती के वियोग, विरह में विदग्ध उर्मिला का वर्णन है | वियोग श्रृंगार का सफ़ल प्रस्तुतीकरण है । भाषा शुद्ध खड़ीबोली है ।
3. नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत कविता ‘कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती’ के कवि हरिवंशराय बच्चन जी हैं । आप हिन्दी साहित्य में हालावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । ‘मधुशाला’, ‘मधुकलश’ आपके बहुचर्चित काव्य हैं ।
संदर्भ : प्रस्तुत कविता में मनुष्य को निरंतर प्रयत्नशील बनकर रहने का संदेश दिया गया है ।
व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते है कि जब नन्हीं चींटी दाना लेकर दीवारों पर चढ़ती है, कई बार फिसलकर नीचे गिर जाती है । फिर भी वह अपनी लगन नहीं छोड़ती और मंजिल पहुँचने तक उसका प्रस्थान नहीं रुकता । चींटी की कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती । जिनके मन का विश्वास, रगों में साहस को भरता है – वे चढ़ने और गिरने में संकोच नहीं करते । कोशिश करनेवालों की हार कभी नहीं होती ।
विशेषता : प्रस्तुत कविता का संदेश स्पर्धा से युक्त आधुनिक युग में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । कवि चींटी जैसे छोटे और सरल उदाहरण से गंभीर विषय को समझाते हैं | कविता उपदेशात्मक एवं प्रभावशाली है । भाषा बहुत सरल है ।
4. यह दान वृथा वह कभी नहीं लेती है,
बदले में कोई दूब हमें देती है ।
उत्तर:
कवि परिचय : परशुराम की प्रतीक्षा कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ और वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आप का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में सन् 1908 ई. को हुआ । कुरुक्षेत्र, ऊर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ साथ भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से अलंकृत किया गया । इन का निधन 1974 में हुआ
संदर्भ : कवि दिनकर जी इन पंन्तियों के माध्यम से भारत की गारिमा का गान गा रहे हैं ।
व्याख्या : कवि भारत के संदर्भ में कह रहे हैं हम कैसी बीज बो रहे हैं हमे पता ही नहीं, पर यहाँ की धरती दानी है । मनुष्य उसको जब भी जल कण देता उस के दान वृथा नहीं होने देती, बदले में कुछ न कुछ देती है । यह धरती वज्रों का निर्माण करती है । यह देश और कोई नहीं, केवल हम और तुम है यह देश किसी और केलिए नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा और तुम्हारा है।
विशेषताएँ : कवि भारत के वैशिष्ट्य का गान गा रहे हैं । यह देशभक्ति भरी कवित है
6. निम्नलिखित में से किन्हीं दो गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या (2 × 4 = 8)
1. एक आलसी मनुष्य उस घरवाले के समान है जो अपना घर चोरों के लिए खुला छोड़ देता है ।
उत्तर:
कवि परिचय : प्रस्तुत गद्यांश ‘आलस्य और दृढ़ता’ नामक लेख से दिया गया है । इसके लेखक बाबू श्यामसुंदर दास हैं । आप हिन्दी के जाने- माने विद्वान और आलोचक हैं। आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दीविभाग के प्रथम अध्यक्ष थे । काशी नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में आप भी एक थे । आपने विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी को एक पाठ्य विषय के रूप में स्थान दिलाया । प्रस्तुत लेख में आप युवापीढ़ी को आलस्य छोड़ने का संदेश देते हैं ।
संदर्भ : सुस्ती या आलसीपन के कारण गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । आलसी आदमी उस मकान मालिक के समान है जो अपने घर को चोरों के लिए खुला छोड़कर तमाशा देखता है । क्योंकि आलसीपन अनेक समस्याओं को आश्रय देता है जो संपूर्ण जीवन का नाश कर देती हैं । अतः जीवन में कभी आलसी बनना नहीं चाहिए ।
विशेषता: यहाँ रचइता घर से एक व्यक्ति के जीवन की तुलना करते हैं । आलस्य के कारण हमारा जीवन अनेक समस्याओं का निलय होकर खाली हो जायेगा ।
2. कवि गुरु कालिदास ने अपने नाटक में मृगी – मृग – शावक आदि को इतना महत्व क्यों दिया है, यह हिरन पालने के उपरांत ही ज्ञात होता है ।
उत्तर:
कवि परिचय : ये पंक्तियाँ सोना हिरनी नामक रेखाचित्र से दिया गया है इस की लेखिका महादेवी वर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ है । हिन्दी साहित्य में छायावाद की प्रमुख लेखिका के साथ साथ संस्मरण तथा रेखाचित्र लेखिका के रूप में सुपरिचित है । आप की प्रमुख रचनाएँ है – नीहार, नीरजा, संध्यगीत, दीप शिखा, अतीत के चलचित्र, क्षणदा, श्रृंखला की कडियाँ, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार आदि । इन को ‘यामा’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है ।
संदर्भ : महाकवि कालिदास के मृगी- मृग शावक नाटक के बारे में लेखिका बता रही है ।
व्याख्या : लेखिका पिछले दिनों में एक सोना नामक हिरनी पाल रही थी कम दिनों में स्नेह हो गया था । जो छात्रावास में छात्राओं के साथ घुल – मिल गयी थी । छोटे बच्चे उसे अधिक प्रिय थे, भोजन का समय वह किसी भी प्रकार जान लेती थी. और ठीक उसी समय भीतर आ जाती थी । रात में लेखिका की पलंग के पायी के पास बिना गंदा किये सो जाती और सवेरे बाहर निकल जाती थी । लेखिका से ही दिन भर किसी न किसी प्रकार लगी रहती थी । इन सब बातों को सोचकर लेखिका मन ही मन कह ने लगती है कि कविगुरु कालिदास ने अपने नाटक में मृगी – मृग – शावक आदि को इतना महत्व क्यों दिया है यह हिरन पालने के उपरान्त ज्ञात होता है ।
विशेषताएँ : लेखिका अपनी पालतु हिरनी ‘सोना’ की स्मृतियों को याद करती हुई कालिदास मृगी-मृग शावक नाटक की रसात्मक अभिव्यक्ति में रम जा रही है ।
3. यहाँ से कुछ दूर पर एक ऐसी जगह है जहाँ असंख्य द्रव भरा है ! तुम इन अस्सी ऊँटों को रत्नों और अशर्फियों से लाद सकते हो और वह धन तुम्हारे जीवन भर को काफी होगा ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य अंधे बाबा अब्दुल्ला नामक पाठ से लिया गया है । यह कह्मनी ‘अलिफ लैला की कहानियाँ’ में से संकलित है । इस कहानी का मुख्य पात्र अब्दुल्ला है ।
व्याख्या : ये वाक्य अब्दुल्ला से फ़क़ीर कह रहा है । बाबा अब्दुल्ला अस्सी ऊँटो का मालिक है । अपनी ऊँटो को किराये पर देता था। एक बार हिन्दुस्तान जानेवाले व्यापारियों का माल ऊँटो पर लादकर बसरा ले गया माल जहाजो में चढाकर, वापस बगदाद आने लगा रास्ते में एक फकीर मिलकर एक असंख्य द्रव्य भंडार के बारे में बताते हुए अब्दुल्ला को अषर्फि रत्नो की लालच पैदा करता हँ ।
विशेषता: एक मेहनती आदमी अधिक धन संपत्ति के प्रति लालची बनने की कथा है जो उसके अस्तित्व को ही खतरे में डाल देती हँ ।
4. एक डाकू ने उनकी तोंद पर बल्लम अड़ाकर कहा जल्दी तिजोरी की चाबी दो, नहीं तो बल्लम पेट के आर पार हो जाएगा ।
उत्तर:
लेखक परिचय : “नंबरोंवाली तिजोरी’ नामक हास्य कथा के लेखक कुंवर सुरेश सिंह जी हैं। सुरेश सिंह जी का जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के कालाकाँकर के राज परिवार में हुआ। वे हिन्दी के सुपरिचित साहित्यकार हैं तथा आइ.ए.एस अफिसर भी हैं। आपकी रचनाएँ हैं ‘पंत जी और कालाकाँकर’ अवं ‘यादों के झरोखे से’ । इनकी रचनाएँ भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं ।
संदर्भ : मैनेजर सर पर डाकु बल्लम तनाकर तिजोरी की चाबी मांग रहे हैं ।
व्याख्या : मैनेजर साहब को राजा साहब के यहाँ से तोहफ़े में एक नंबरोंवाली तिजोरी मिली थी । जो बंद पडी हुई होती है उनके घर में डाकू चोरी के लिए आते हैं । उसे कई प्रयत्नों के बाद भी खोल नहीं पाते तो मैनेजर के सर पर बल्लम अड़ा कर धमकी देते हुए चाबी मांग रहे हैं । उनमें से एक डाकू ने मैनेयर कहा “चाबी अगर जल्दी नहीं दिये तो बल्लम पेट के आर पार हो जाएगा ।
विशेषताएँ : यह एक हास्य कथा है। कमरे की रौनख बढाने के लिए लायी गयी तिजोरी के कारण डाकुओं से बेहद पिटे जाने वाले बेकसूर मैनेजर की कथा है । भाषा सरल तथा उर्दू से भरी है । शैली प्रवाहमान है।
7. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)
1. आलस्य को दूर करने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर:
आलस्य को दूर करने के लिए आदमी को निरंतरता से काम करना होगा । लेखक के अनुसार इसके लिए सभी काम नियम से और उचित समय पर करने चाहिए | चाहे जितना भी कम समय हो, हर रोज निरंतर करने से किसी भी काम में सफलता प्राप्त होती है ।
2. सोना कहाँ आ पड़ी है ?
उत्तर:
बेचारी ‘सोना’ भी मनुष्य की निष्टुर मनोरंजन प्रियता के कारण अपने अरण्य परिवेश और स्वजाति से दूर मानव समाज में आ पडी है ।
3. फक़ीर ने कौन सा शर्त रखा ।
उत्तर:
फकीर ने अब्दुल्ला को सबक सिखाना चाहा । फकीर ने कहा कि मै एक ऊँट को लेकर क्या करूँ । तुम खजाने से भरे अपने ऊँटों में से आधे यनी चालीस ऊँटोंको मुझे दे दो ।
4. ताल्लुकेदारों के यहाँ नौकरी कैसा होता है ?
उत्तर:
ताल्लुकेदारों के यहाँ दिन भर का ही नहीं, बल्कि दिन और रात की नौकरी बजानी पड़ती है । जब भी मालिक की तलबी होती है, फ़ौरन हाज़िर होना पड़ता है चाहे रात या दिन चाहे ओले गिरते हो या तूफ़ान चलता हो. और वहाँ पहुंचकर जिस सिलसिले में बातें हो रही हो उसी में मालिक की हाँ में हाँ मिलानी पड़ती है ।
8. निम्नलिखित में से किन्हीं दो लघु प्रश्नों के उत्तर लिखिए । (2 × 2 = 4)
1. दुर्योधन ने कौन-सा कटु सत्य कहा ?
उत्तर:
दुर्योधन ने कटु सत्य यह कहा कि – पाण्डवो ने ही अपने कृत्य से वनवास पाकर भी दोष मुझ पर (दुर्योधन) लगाया है। उस वनवास में पांडवो ने एक – एक क्षण युद्ध की तैयारी में लगाया गया । अर्जुन ने तपस्या द्वारा नये शस्त्र प्रप्त किए. विराट राजा से मैत्री कर नये संबंध बनाए गए और वनवास अवधि पूर्ण होते ही अभिमन्यु के विवाह के बहाने सारे राजाओं को निमंत्रण भेजकर एकत्र किया ।
2. शर्मा के अनुसार डॉक्टर साहब क्या जानना चाहेंगे ।
उत्तर:
शर्मा के अनुसार डाक्टर साहब यह जानना चाहेंगे कि – मरीजो की भलाई के लिए सारी खास खास बातें परचे में लिख देना चाहते है जिससे डाक्टर साहब एक नजर डालते ही सारा केस समझ जायें और तुरंत इलाज हो जाय ।
3. उमा किसकी रीढ़ की हड्डी’ की बात कहती है और क्यों ?
उत्तर:
उमा, शंकर के रीढ़ की हड्डी की बात कहती है । शंकर का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है | वह अपने पिता के हाथ का कठपुतला है । ‘रीढ़ की हड्डी’ किसीके स्वतंत्र व्यक्तित्व का प्रतीक है । इसलिए उमा एकांकी के अंत में गोपालप्रसाद से कहती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ।’
4. डॉ. बहादूर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए क्या जानना जरूरी है ?
उत्तर:
डॉ. बहादुर के अनुसार सही निदान और सही इलाज के लिए जानना जरूरी है कि एक तो वह सांप था या नही, दूसरा अगर सांप था तो जहरीला था या नही, तीसरे अगर जहरीला था तो किस जाति का सांप था ।
9. निम्नलिखित प्रश्नों का वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)
1. तुलसी की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर:
तुलसी की पत्नी का नाम रत्नावली था ।
2. बिहारी का जन्म कब हुआ ।
उत्तर:
सन् 1652.
3. प्रसाद जी का प्रमुख काव्य क्या है ?
उत्तर:
कामायनी
4. बच्चन जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर:
बच्चन जी का जन्म सन 1907 ई. में इलाहाबाद में हुआ था ।
5. दिनकर जी को किस रचना पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ?
उत्तर:
ऊर्वशी ।
10. निम्नलिखित प्रश्नों का एक वाक्य में उत्तर लिखिए । (5 × 1 = 5)
1.कितने रुपये सिपाही की कमर में बंधा है ?
उत्तर:
‘दो हज़ार रुपये सिपाही कमर में बांधा है ।
2. डॉ. श्यामसुंदर दास के माता पिता का नाम क्या था ?
उत्तर:
डॉ. श्यामसुंदर दास के माता-पिता का नाम था देवीदास और देवकी देवी ।
3. ‘सोना हिरनी’ पाठ की लेखिका का नाम क्या है ?
उत्तर:
महादेवी वर्मा ।
4. ‘अंधे बाबा अब्दुल्ला’ पाठ के लेखक का नाम क्या है ?
उत्तर:
अज्ञातवासी ।
5. मैनेजर पर कौन आकर पिटाई करते हैं ?
उत्तर:
डाकू कुँवर |
खंड – ख (40 अंक)
11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीखिए । (5 × 2 = 10 )
मदर तेरेसा ऐसा नाम है कि जिसका स्मरण होते ही हमारा हृदय श्रद्धा से भर उठता है । मदर तेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थी जिनका हृदय संसार के तमाम दीन दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था और इसी कारण उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उनकी सेवा और भलाई में लगा दिया । मदर तेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को युगोस्लाविया में हुआ था । मदर का पूरा नाम ‘अग्नेस गोंझा बोयाजिजू तेरेसा’ था । अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूलों का कली’ होता है । वे 6 जनवरी, 1929 को भारत के कोलकता में ‘लोरेटो कान्वेंट’ पहुँची और भारत की नागरिकता स्वीकार कर ली । वे एक अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उनसे बहुत स्नेह करते थे । मदर तेरेसा ने भूखों, निर्वस्त्र, बेघर, लंगड़े – लूले, अंधों, चर्म रोग से ग्रसित लोगों की सहायता करने के लिए सन् 1950 में ‘मिशनरीस आफ चारटी’ संस्था की स्थापना की । मदर तेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मल शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले । ‘निर्मल हृदय’ का ध्येय असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की सेवा करना था। जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो । ‘निर्मल शिशु भवन’ की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए हुई । मदर को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में ‘पद्मश्री’ और 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया । मानव कल्याण के लिए किये गये कार्यों की वजह से उन्हें 1979 में ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ मिला था । मदर तेरेसा का देहांत 5 सितंबर 1997 में हुआ ।
प्रश्न :
1) मदर तेरेसा का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर:
मदर तेरेसा का जन्म 26 आगस्त, 1910 को युगोस्लाविया में हुआ था ।
2) गोंझा का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
अलबेनियन भाषा में ‘गोंझा’ अर्थ ‘फूलों की कली’ होता है ।
3) मदर तेरेसा से स्थापित आश्रमों के नाम बताइए ?
उत्तर:
मदर तेरेसा के आश्रमों के नाम निर्मल हृदय और निर्मल भवन है ।
4) भारत सरकार ने मदर तेरेसा को किन – किन पुरस्कारों से सम्मानित किया ?
उत्तर:
भारत सरकार ने मदर तेरेसा को पद्मश्री और भारत रत्न पुरस्कारों से सम्मानित किया ।
5) मदर तेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार कब प्राप्त हुआ ?
उत्तर:
1979 में मदर तेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
12. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए । (5 × 1 = 5)
1. हिमालय
2. विद्यार्थी
3. रजनीश
4. पितृण
5. सूक्ति
6. महेश्वर
7. देवर्षि
8. वनौषध
9. अत्यत्तम
10. गायक
उत्तर:
1. हिमालय = हिम + आलय
2. विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
3. रजनीश = रजनी + ईश
4. पितॄण = पितृ + ऋण
5. सूक्ति = सु + उक्ति
6. महेश्वर = महा + ईश्वर
7. देवर्षि = देव + ऋषि
8. वनौषध = वन + औषध
9. अत्यत्तम = अति + उत्तम
10. गायक = गै + अक
13. निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं पाँच शब्दों के समास के नाम लिखिए । (5 × 1 = 5)
1. यथाशक्ति
2. हर रोज
3. सीता पति
4. रसोईघर
5. सुख प्राप्त
6. असंभव
7. वायुवेग
8. मृगनयन
9. त्रिवेणी
10. दशानन
उत्तर:
1. यथाशक्ति = अव्ययीभाव समास (विग्रहवाक्य : शक्ति के अनुसार )
2. हर रोज = अव्ययीभाव समास ( विग्रहवाक्य : रोज – रोज )
3. सीता पति = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : सीता का पति )
4. रसोईघर = तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : रसोई के लिए घर )
5. सुख प्राप्त = तत्पुरुष समास ( विग्रहवाक्य : सुख को प्राप्त करनेवाला)
6. असंभव = नञ तत्पुरुष समास (विग्रहवाक्य : जो संभव न हों)
7. वायुवेग = कर्मधारय समास (विग्रहवाक्य : पवन की भांति तेज )
8. मृगनयन = कर्मधारय समास (विग्रहवाक्य : मृग के समान नयन )
9. त्रिवेणी = द्विगु समास ( विग्रहवाक्य : तीन नदियों का समाहार)
10. दशानन = द्विगु समास (विग्रहवाक्य : जिसके दस आनन (मुख) हो)
14. (अ) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को हिंदी में अनुवाद कीजिए | (5 × 1 = 5)
1. What is this ?
उत्तर:
यह क्या है ?
2. Madhuri, Rani are singing a song.
उत्तर:
माधुरी, रानी गीत गा रही है ।
3. Hindi is our official and National Language.
उत्तर:
हिंदी हमारी राजभाषा और राष्ट्रभाषा है ।
4. Give respect, Take respect.
उत्तर:
सम्मान दीजिए, सम्मान लीजिए ।
5. The pen is on the table.
उत्तर:
कमल मेज पर है।
6. All Indians are our brothers and sisters.
उत्तर:
समस्त भारतीय हमारे भाई – बहन हैं ।
7. What is your Name ?
उत्तर:
तुम्हारा / आपका नाम क्या है ?
8. Cow gives milk.
उत्तर:
गाय दूध देती है ।
9. Visakhapatnam is a beautiful city.
उत्तर:
विशाखापट्टणम एक सुंदर नगर है ।
10. Srikanth ate bread.
उत्तर:
श्रीकांत ने रोटी खाई ।
(आ) निम्नलिखित वाक्यों में से पाँच वाक्यों का शुद्ध रूप लिखिए । (5 × 1 = 5)
1. तुम पढ़ रहे हैं। (अशुद्ध)
उत्तर:
तुम पढ़ रहे हो । (अशुद्ध )
2. तू क्या कर रहे हो ? (अशुद्ध )
उत्तर:
तू क्या कर रहा है ? (शुद्ध)
3. श्रीदेवी पाठ पढ़ता है । (अशुद्ध )
उत्तर:
श्रीदेवी पाठ पढ़ती है । (शुद्ध)
4. गोदावरी की पानी मीठी है । (अशुद्ध )
उत्तर:
गोदावरी का पानी मीठा है । (शुद्ध)
5. वह पूस्तक मेरा है । (अशुद्ध )
उत्तर:
वह पूस्तक मेरी है । (शुद्ध)
6. धनराज ने चिट्ठी लिखी । (अशुद्ध )
उत्तर:
धनराज ने चिट्ठी लिखा । (शुद्ध)
7. मैंने कल गाँव गया । (अशुद्ध )
उत्तर:
मैं कल गाँव गया । (शुद्ध)
8. अध्यापक जी ने बोले । (अशुद्ध )
उत्तर:
अध्यापक जी बोले । (शुद्ध)
9. उसने काम कर चुका । (अशुद्ध)
उत्तर:
वह काम कर चुका । (शुद्ध)
10. विजयश्री ने फूल लायी । (अशुद्ध )
उत्तर:
विजयश्री फूल लायी । (शुद्ध)
15. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षिप्तीकरण कीजिए । (1 × 5 = 5)
वैदिक काल से हिमालय के पहाड़ बहुत पवित्र माने जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिमालय के पहाड़ों का दृश्य अति सुंदर हैं । उनकी विशालता को देखकर मन में आनंद और कृतज्ञता की लहर उठती है। ऐसा लगता है कि यह विशाल सृष्टि कैसी अनुपम देन है । सारी सृष्टि के प्रति समभाव जागृत होता है। वस्तुतः यह दृष्टि कोरी कल्पनात्मक या आध्यात्मिक नहीं है । देखा जाए तो सारे भारत की जलवायु का समतौल करने वाले यह हिमालय श्रृंग हैं, विशेषकर उत्तरी भारत को वर्षा और पानी देने वाले यही हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्री, केदार को तीर्थ माना जाता है, जो व्यर्थ कल्पना नहीं है । उन स्थानों से निकलने वाली पवित्र नदियाँ ही वास्तव में हमारी प्राणदायिनी रही हैं ।
उत्तर:
हिमालय की गरिमा
वैदिक काल से हिमालय पर्वत पवित्र, सुंदर एवं विशाल हैं । इन्हें देख कर आनंद होता है । मानो विशाल सृष्टि की अनुपम देन है । यह समानता का प्रतीक है। यह उत्तर भारत को वर्षा देनेवाली प्राणदायिनी है । गंगा, यमुना, सरस्वती का जन्मस्थान हिमालय ही है, ये निदियाँ पुण्य तीर्थ है ।
16. निम्नलिखित में से किन्हीं पाँच वाक्यों का वाच्य बदलिए । (5 × 1 = 5)
1. मोहन ने आम खाया । ( कर्तृ)
उत्तर:
मोहन से आम खाया गया । (कर्म) (आम – पुलिंग )
2. मैंने किताब पढ़ी | (कर्तृ)
उत्तर:
मुझसे किताब पढ़ी गई । (कर्म) (किताब – स्त्रीलिंग)
3. माधुरी ने सिनेमा देखा । (कर्तृ)
उत्तर:
माधुरी से सिनेमा देखा गया । (कर्म) (सिनेमा – पुलिंग)
4. महेश से पुस्तक पढ़ी जाती है । (कर्म)
उत्तर:
महेश पुस्तक पढ़ता है। (कर्तृ) (पुस्तक – स्त्रीलिंग)
5. वह पत्र लिखता है । ( कर्तृ)
उत्तर:
उससे पत्र लिखा जाता है । (कर्म) (पत्र – पुलिंग )
6. प्रेमचंद उपन्यास लिख रहा है । (कर्तृ)
उत्तर:
प्रेमचंद से उपन्यास लिखा जा रहा है । (कर्म) (उपन्यास – पुलिंग )
7. नागमणि खाना पकाती है । (कर्तृ)
उत्तर:
नागमणि से खाना पकाया जाता है । (कर्म) (खाना – पुलिंग )
8. मुझसे कहानी लिखी जाती है । (कर्म) (कहानी – स्त्रीलिंग)
उत्तर:
मैं कहानी लिखता हूँ। (कर्तृ)
9. श्रावणी से फूल लाया जाता है। (कर्म)
उत्तर:
श्रावणी फूल लाती है । (कर्तृ) (फूल – पुलिंग)
10. कुमार हिंदी सीखेगा । ( कर्तृ)
उत्तर:
कुमार से हिंदी सीखी जाएगी। (कर्म) (हिंदी – स्त्रीलिंग)