Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material पद्य भाग 3rd Poem हिमाद्रि से Textbook Questions and Answers, Summary.
AP Inter 2nd Year Hindi Study Material 3rd Poem हिमाद्रि से
संदर्भ सहित व्याख्याएँ – సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు
प्रश्न 1.
अमर्त्य वीर – पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य – पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
उत्तर:
कवि परिचय : हिमाद्री से कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के पकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं – कानन – कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ।
संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियो को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उत्तेजित कर रहे है।
व्याख्या : भारत – माता स्वतंत्रता के लिए पुकार रही है | जागो हे अमर्त्य वीर पुरुषों जागो, भारत – माता के सपूतों जागो । दृढ संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करो कि “भारत देश को आजाद बनायेंगे” इस सर्वश्रेष्ठ, पुण्य, उत्तम मार्ग में निकलो … बढ़ते चलो, बढ़ते चलो । विजयी बनो । रुको मत हे वीर पुत्रों, तुम्हारा मार्ग प्रशस्त ही नहीं पवित्र तथा पुण्यवाला है ।
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देश प्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है।
प्रश्न 2.
अराति सैन्य सिंधु में सुवाडवाग्निसे जलो।
प्रवीर हो जयी बनी – बढ़े चलो, बढ़े चलो।
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से’ कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं। प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ | आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं । आपकी रचनाएँ हैं – कानन – कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ।
संदर्भ : कवि अलका के माध्यम से भारत वासियों को उत्तेजित करते हुए देशभक्ति की मशाल जला रहे हैं।
व्याख्या : भारत देश के गौरव चिह्न हिमालयों के द्वारा माता भारती अपने सुपुत्रों को बुला रही है। स्वाधीनता के संघर्ष में भाग लेने को प्रेरित कर रही है । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसी अनन्त है । उस को हराना हँसी – खेल नहीं है । फिर भी देश स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढ़ना ही होगा । ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा.। अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा | आप कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे।
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है।
दीर्घ प्रश्न – దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न
1. ‘हिमाद्रि से’ कविता का सारांश लिखिए ।
2. इस कविता के द्वारा कवि क्या संदेश देता है ?
उत्तर:
कवि परिचय : ‘हिमाद्री से’ कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं। प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्तंभ हैं । इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ | आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं | आपकी रचनाएँ हैं – कानन – कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील रहती है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ ।
सारांश : प्रस्तुत गीत चंद्रगुप्त नाटक के चौथे अंक के छठे दृश्य से संकलित है । यह एक सामूहिक गीत है । अलका के भाई आम्भिक देशद्रोही है । गांधार नरेश पुरुषोत्तम के विरुद्ध यवनों को भारत पर हमला करने के लिए सिंधु तट पर सेतु का निर्माण करते वक्त उनके विरुद्ध में उनकी बहन अलका ने सब सैनिकों को युद्ध के लिए उत्साहित करती गाती है। मा – भारती गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए वीर सैनिकों को बुला रही है । वह नींद से जगाती है | आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। वह स्वतंत्र हो कर अपनी संपत्ती का सदुपयोग करना चाहती है।
युद्ध में मरनेवाले अमर हो जाते हैं भारतवासी ऐसे ही अमरों के पुत्र हैं। उन्होंने मातृभूमि को स्वतंत्र बनाने की प्रतिज्ञा की है। पूर्वजों से बना मार्ग उनके सामने हैं उसको उन्होंने प्रशस्त किया है।
भारत माता स्वतंत्रता के लिए पुकार रही है | जागो हे अमर्त्य वीर पुरुषों जागो, भारत – माता के सपूतों जागो । दृढ संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करो कि “भारत देश को आजाद बनायेंगे’ इस सर्वश्रेष्ठ, पुण्य, उत्तम मार्ग में निकलो … बढ़ते चलो, बढ़ते चलो | विजयी बनो ।
संसार में इस देश की असंख्याक कीर्ति है । भारत – माता के सुपुत्रों पवित्र मशाल बन कर जलते हुए तपते हुए उजालों को फैलाते आगे बढो… आगे बढो । शत्रुओं की सेना समुद्र जैसे अनन्त है । उसको हराना हसी खेल नहीं है। फिर भी देश की स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढ़ना ही होगा | ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा | अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा | तुम अच्छे वीर हो, तुम में सच्ची देश भक्ति है आवश्य विजयी बनो… बढ़ते चलो बढ़ते चलो | रुको मत हे वीर पुत्रों । तुम्हारा मार्ग प्रशस्त है । भारतीय कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे।
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है । प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है । यह गीत देशभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत हैं।
एक वाक्य प्रश्न – ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न 1.
“हिमाद्रि से कविता के कवि कौन हैं ?
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 2.
प्रसाद जी का प्रमुख काव्य क्या है ?
उत्तर:
कामायनी
प्रश्न 3.
“हिमाद्रि से’ गीत किस संकलन से लिया गया है ?
उत्तर:
चंद्रगुप्त नाटक से
प्रश्न 4.
इस गीत को किसने गाया ?
उत्तर:
अलका
प्रश्न 5.
हिमाद्रि से कौन पुकार रहे हैं ?
उत्तर:
भारत – माता
कवि परिचय – కవి పరిచయం
‘हिमाद्री से’ कविता के कवि जयशंकर प्रसाद जी हैं । प्रसाद जी छायावादी कविता के प्रकाश स्थंभ हैं | इनका जन्म सन् 1881 को काशी में हुआ | आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार के रूप में सुप्रसिद्ध हैं। आपकी रचनाएँ हैं – कानन – कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, झरना आँसू लहर, कामायनी (महाकाव्य), कंकाल, तितली, इरावती, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि । इनकी भाषा- शैली स्वाभाविक एवं संवेदनशील है । इनका निधन 1937 ई. में हुआ ।
सारांश – సారాంశం
प्रस्तुत गीत चंद्रगुप्त नाटक के चौथे अंक के छठे दृश्य से संकलित है। यह एक सामूहिक गीत है । अलका के भाई आम्भिक देशद्रोही है । गांधार नरेश पुरुषोत्तम के विरुद्ध यवनों को भारत पर हमला करने के लिए सिंधु तट पर सेतु का निर्माण करते वक्त उनके विरुद्ध में उनकी बहन अलका ने सब सैनिकों को युद्ध के लिए उत्साहित करती गाती है । माँ – भारती गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए वीर सैनिकों को बुला रही है । वह नींद से जगाती है । आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रही है । वह स्वतंत्र हो कर अपनी संपत्ती का सदुपयोग करना चाहती है ।
युद्ध में मरनेवाले अमर हो जाते हैं भारतवासी ऐसे ही अमरों के पुत्र हैं। उन्होंने मातृभूमि को स्वतंत्र बनाने की प्रतिज्ञा की है। पूर्वजों से बना मार्ग उनके सामने हैं उसको उन्होंने प्रसस्त किया है ।
भारत माता स्वतंत्रता के लिए पुकार रही है । जागो हे अमर्त्य वीर पुरुषों जागो, भारत – माता के सपूतों जागो । दृढ संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करो कि “भारत देश को आजाद बनायेंगे’ इस सर्वश्रेष्ठ, पुण्य, उत्तम मार्ग में निकलो … बढ़ते चलो, बढ़ते चलो | विजयी बनो।
संसार में इस देश की असंख्याक कीर्ति है । भारत – माता के सुपुत्रों पवित्र मशाल बन कर जलते हुए तपते हुए उजालों को फैलाते आगे बढो… आगे बढो | शत्रुओं की सेना समुद्र जैसे अनन्त है । उसको हराना हसी खेल नहीं है। फिर भी देश की स्वतंत्रता के लिए सैनिकों को आगे बढ़ना ही होगा । ‘बाडव’ नामक अग्नि बन कर उस समुंदर को जलाना ही होगा । अर्थात दुश्मनों का अंत करके विजय पाना ही होगा । तुम अच्छे वीर हो, तुम में सच्ची देश भक्ति है आवश्य विजयी बनो… बढ़ते चलो बढ़ते चलो | रुको मत हे वीर पुत्रों । तुम्हारा मार्ग प्रशस्त है । भारतीय कुशल वीर हैं अवश्य विजयी होंगे।
विशेषताएँ : यह गीत अलका के देशप्रेम, लगन और उत्साह को प्रदर्शित करता है | प्रसाद जी अपने समय में देश की स्थिति से प्रभावित हो कर अलका के मुह से यह गीत गवाया है | यह गीत देशाभिमान, जागृति और नवीनता से ओतप्रेत है।
తెలుగు అనువాదం
హిమాద్రీ సే అనే కవితను కవిశ్రీ జయశంకర్ ప్రసాద్ గారు రచించారు. వీరు ఛాయవాద కవులలో శిఖర సమానులు. 1881 వ సం||లో కాశీలో జన్మించిన ప్రసాద్ గారు కవిగా, కధా రచయితగా నవలాకారుడిగా, నాటక కర్తగా ప్రసిద్ధికెక్కారు. ఈయన రచనలు ఆంసూ, లహర్, కామాయని, ప్రేమ పదిక్, ఝరానా, కంకాల్, తితలీ, ఇరావతి, స్కందగుప్తీ, చంద్రగుప్తి మొదలైనవి. సరళమైన భాషలో, నవరసభరితంగా హత్తుకునేలా ఉంటుంది ఈయన కవిత్వం. కవితాశైలి పారే జలపాతాన్ని తలపిస్తుంది.
ప్రస్తుత గేయం ‘చంద్రగుప్తీ’ నాటకములోని 4వ అంకములోని 6వ దృశ్యములోనిది. ఇది ఒక బృందగానము. అలకా తమ్ముడు ఆంబిక్ ఒక దేశ ద్రోహి. గాంధార రాజు పురుషోత్తముడికి వ్యతిరేకంగా యవనులను భారతదేశంపై దాడికి ఉసిగొల్పడమే కాకుండా సింధూనదిపై వంతెన నిర్మించే ప్రయత్నం చేస్తుంటాడు. అప్పుడు అంబిక్ కు వ్యతిరేకంగా దేశ సైనికులను సమాయత్త పరచడానికి, వారిలో దేశభక్తిని నింపడానికి ఈ గానం ఆలపించడమైనది. ఇది భారతమాతను శత్రువుల కబంద హస్తాల నుండి కాపాడుటకు సైనికులను కార్యోన్ముఖలను చేస్తుంది.
అలకా దృష్టిలో ఎవరైతే దేశం కోసం ప్రాణత్యాగాలు చేస్తారో వారు అమరులుగా చరిత్రలో చిరస్థాయిగా నిలిచిపోతారు. భారతీయులు కూడా అలాంటి వీర పుత్రులు. మాతృభూమి దాస్య శృంఖలాలు తెంచే ప్రతిజ్ఞ చేశారు. మన పూర్వీకులిచ్చిన సన్మార్గము మన ముందుంది దానిని సాధిస్తాము.
భారత మాత స్వాతంత్ర్యం కోసం పిలుస్తుంది. వీర పురుషులారా మేల్కోనండి. దృఢ సంకల్పంతో స్వాతంత్ర్యం సాదిద్దాం ఇది సర్వ శేష్టమైన పుణ్య మార్గం.
భారతదేశానికి విశేషకీర్తి ప్రతిష్టలున్నవి. భారత వీర పుత్రుల్లారా అగ్ని గోళాలై మండి శత్రుమూకలపై విరుచుకుపడండి. శత్రుమూకలు సముద్రము లాగ ఉన్నారు. అయినప్పటికి వారిపై విరుచుకు పడండి. శతృ సంహారము చేసే సామర్థ్యం మీలో ఉంది. మీరే నిజమైన దేశ భక్తులు. మీకే విజయం వరిస్తుంది
ఈ గేయం దేశ భక్తిని, దేశం పట్ల గౌరవం పెంపొందించే విధంగా ఉంది.
कठिन शब्दों के अर्थ – కఠిన పదాలకు అర్ధాలు
हिमाद्रि – हिमालय पर्वत, హిమాలయ పర్వతాలు
तुंग – ऊँचा, ఎతైన
श्रृंग – पर्वत शिखर, పర్వత శిఖరం
प्रबुद्ध – जागा हुआ, మేల్కొల్ప బడిన
स्वयं प्रभा – एक अप्सरा, जो अपने ही प्रकाश से प्रकाशित हो, స్వయం ప్రకాశం కల .
समुज्जवल – अत्यंत उज्जवल, అత్యంత వెలుగైన
भारती – भारतमाता, భారత మాత
अमर्त्य – मृत्यु-रहित, మరణం లేని
प्रशस्त. – श्रेष्ठ, उत्तम, ఉత్తమమైన
विकीर्ण – फैलाया हुआ, వెదజల్లబడిన
दाह – जलन, ताप, మండుతున్న
अराति – शत्रु, శతృ
सुबाड़वग्नि – समुद्रस्थित अग्नि, సముద్రం నుండి ఉధ్బవించు అగ్ని
प्रवीर – अच्छा वीर, శ్రేష్ఠమైన వీరుడు