Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed 3rd Lesson रीढ़ की हड्डी Textbook Questions and Answers, Summary.
AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed 3rd Lesson रीढ़ की हड्डी
दीर्घ प्रश्न – దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न.
1. ‘रीढ़ की हड्ड़ी’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
2. ‘रीढ़ की हड्ड़ी’ एकांकी का उद्देस्य क्या है ?
उत्तर:
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जानेमाने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य-सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । “भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।
सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है । इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं । प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं ।
उमा एक पढ़ी लिखी युवती है । वह मेहनत करके बी.ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं । एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी : बेटी का विवाह कर देना चाहता है । जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है । शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है । लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी हो । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ मेट्रिक पास है । दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता । वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे । उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जाये ।
निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है। वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है । पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं । वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो। इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है । गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए । उनमें शिक्षा भी एक है । वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम बस … घर को संभालना है।
रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है । गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती । उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है । वह कहती है कि बाजार में कुर्सी-मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती । दूकानदार बस …. उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं । उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है ।
उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है । वे बाजार में देखकर खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं । वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी । इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है । उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी.ए. पास की है । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं । उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं।’ यही पर एकांकी समाप्त होती है ।
विशेषताएँ : प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है । लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की,मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की-शिक्षा’ है । उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं । रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया । भाषा बहुत सरल और शैली प्रवाहमान है।
लघु प्रश्न – లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు
प्रश्न 1.
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
भारतीय समाज की कई समस्याओं का चित्रण करना ही ‘रीढ़ की हड्डी’ का मुख्य उद्देश्य है । लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव-इत्यादि कई समस्याएँ चित्रित करने में एकांकी का उद्देश्य पूरा हुआ ।
प्रश्न 2.
“रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में उमा के विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी में उमा नायिका है । वह उच्चशिक्षा प्राप्त युवती है । उसका अपना व्यक्तित्व है । वह लड़की देखने की प्रथा के नाम पर होनेवाले अपमान का सहन नहीं करती । उमा के अनुसार लड़कियों का भी दिल होता है और उसे ठेस पहँचती है । ऐन मौके पर वह अपना मुँह खोलती है और लड़केवालों का मुंहतोड़ जवाब देती है।
प्रश्न 3.
उमा किसकी रीढ़ की हड्डी की बात कहती है और क्यों ?
उत्तर:
उमा, शंकर के रीढ़ की हड्डी की बात कहती है । शंकर का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता के हाथ का कठपुतला है । ‘रीढ़ की हड्डी’ किसीके स्वतंत्र व्यक्तित्व का प्रतीक है । इसलिए उमा एकांकी के अंत में गोपालप्रसाद से कहती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं।’
लेखक परिचय – రచయిత పరిచయం
जीवन-वृत : जगदीशचन्द्र माथुर का जन्म 1917 ई. में उत्तरप्रदेश के बुलन्दशाह शहर में हुआ था । आपने अपनी उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से प्राप्त की । एम.ए. अंग्रेजी के बाद आप 1941ई. में इण्डियन सिविल सर्वीस में चुने गये । भारतीय समाज को उन्होंने अत्यंत करीबी से देखा और अपने साहित्य में प्रतिबिंबित किया ।
साहित्यिक परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर का साहित्य-सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीया’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं ।
सारांश – సారాంశం
लेखक का परिचय : जगदीशचन्द्र माथुर हिन्दी साहित्य के जाने-माने नाटककार और एकांकीकार हैं । आपका साहित्य-सृजन भारतीय समाज को आधार बनाकर हुआ । आपने समाज की विविध विसंगतियों और समस्याओं को उजागर किया और विशेषकर नारी की समस्याओं का चित्रण उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । ‘भोर का तारा’, ‘ओ मेरे सपने’, ‘शारदीय’, ‘पहला राज’ आदि आपकी कृतियाँ हैं।
सारांश : प्रस्तुत पाठ ‘रीढ़ की हड्डी’ एक सामाजिक एकांकी है। इसमें भारतीय समाज में व्याप्त नारी विरोधी विचारधारा का चित्रण किया गया है । एकांकी के मुख्य पात्र उमा, उसके पिता रामस्वरूप, लड़का शंकर और उसके पिता गोपालप्रसाद हैं । प्रेमा और रतन एकांकी के गौण पात्र हैं । – उमा एक पढ़ी लिखी युवती है । वह मेहनत करके बी.ए. पास करती है और आत्मनिर्भर होना चाहती है । प्रेमा और रामस्वरूप उसके माता-पिता हैं । एक औसत मध्यवर्गीय पिता होने के कारण रामस्वरूप यथाशीघ्र अपनी बेटी का विवाह कर देना चाहता है । जल्दी में वह शंकर नामक युवक से उमा का विवाह तय करता है ।
शंकर मेडिकल कॉलेज का छात्र है और उसके पिता गोपालप्रसाद वकील है । लेकिन वे नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़ी -लिखी हो । इसलिए रामस्वरूप उनसे झूठ बोलता है कि उसकी बेटी सिर्फ मेट्रिक पास है । दोनों को लड़की देखने घर आमंत्रित करता है । उस दिन वह बहुत घबराहट के साथ सारी तैयारियाँ करवाता है । पत्नी प्रेमा और . नौकर रतन को कई काम सौंपता है । प्रेमा कहती है कि यह विवाह उमा को मंजूर नहीं है । किन्तु रामस्वरूप नहीं मानता । वह पत्नी को डाँटता है कि कुछ न कुछ करके लड़की को तैयार रखे । उसे डर है कि कहीं यह रिश्ता हाथ से न जाये।
निश्चित समय पर शंकर अपने पिता के साथ लड़की को देखने आता है । शंकर एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक है किन्तु उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है । वह अपने पिता की बात पर चलनेवाला युवक है । पिता गोपालप्रसाद तो वकील है किन्तु उसके विचार पुराने हैं । वह चाहता है कि घर की बहू ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो । इसलिए वह रामस्वरूप की बात मानकर, लड़की देखने आता है । पिता-पुत्र की बातों से उनका स्वार्थ और चतुराई स्पष्ट होती है । गोपालप्रसाद का विचार है कि लड़की और लड़के में बहुत अंतर होता है, इसलिए कुछ बातें लड़कियों को सीखनी नहीं चाहिए । उनमें शिक्षा भी एक है । वह कहता है कि मात्र लड़के ही पढ़ाई के लायक हैं, लड़कियों का काम बस … घर को संभालना है।
रामस्वरूप अपनी बेटी को दोनों के सामने पेश करता है और उमा सितार पर मीरा का भजन गाती है । गोपालप्रसाद उससे कुछ प्रश्न करता है तो वह कुछ जवाब नहीं देती। उमा से जब बोलने को बार-बार कहा जाता है तो वह अपना मुँह खोलती है । वह कहती है कि बाजार में कुर्सी-मेज वगैरा खरीदते समय उनसे बात नहीं की जाती । दूकानदार बस …. उनको खरीददार के सामने लाकर दिखाता है, पसंद आया तो लोग खरीदते हैं। उसकी बातें सुनकर गोपालप्रसाद हैरान हो जाता है । उमा तेज आवाज में कहती है कि लड़कियों के भी दिल होते हैं और उनका अपना व्यक्तित्व होता है। वे बाजार में देखकर खरीदने के लिए भेड़-बकरियाँ नहीं हैं । वह शंकर की पोल भी खोल देती है कि वह एक बार लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर पकड़ा गया और नौकरानी के पैरों पर गिरकर माफी माँगी ।
इस बात से शंकर भी हैरान चलने लगता है और गोपालप्रसाद को मालूम हो जाता है कि वह पढ़ी-लिखी है । उमा हिम्मत से कहती है कि उसने बी.ए. पास की है । यह सुनकर गोपालप्रसाद रामस्वरूप पर नाराज हो जाता है और दोनों चलने लगते हैं । उमा गोपालप्रसाद को सलाह देती है कि ‘ज़रा पता लगाये कि बेटे के रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं।’ यही पर एकांकी समाप्त होता है।
विशेषताएँ : प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य भारतीय समाज की विविध समस्याओं को उजागर करना है । लड़कियों को लड़कों के बराबर न देखना, जल्दबाजी करके किसी अयोग्य के गले लड़की मढ़ देना, दहेज न दे पाने के कारण लड़की के पिता की लाचारी, लड़कियों को प्राणहीन वस्तु की तरह देखने की मानसिकता, उच्चशिक्षा प्राप्त युवकों में व्यक्तित्व का अभाव इत्यादि कई समस्याएँ इस एकांकी में चित्रित हैं । लेखक बताते हैं कि इनमें कई समस्याओं का एकमात्र समाधान ‘लड़की-शिक्षा है । उन्होंने उमा के पात्र से दिखाया कि पढ़ी-लिखी युवतियाँ कितनी ताकतवर होती हैं । रीढ़ की हड्डी व्यक्तित्व का प्रतीक है किन्तु शंकर का अपना व्यक्तित्व नहीं है । इसलिए एकांकी का शीर्षक ‘रीढ़ की हड्डी’ रखा गया । भाषा बहुत सरल और शैली प्रवाहमान है।
తెలుగు అనువాదం
ప్రస్తుతం మనం చదువుకున్న ఈ పాఠం ఒక సామాజిక నాటిక. దీన్ని రచించిన జగదీశ్ చంద్ర మాథుర్ అలహాబాదు యూనివర్శిటీలో చదువుకున్నవారు. ఆయన సివిల్ సర్వీస్లో చేరి కలెక్టరుగా ఉంటూ కూడా ఎన్నో నాటకాలు-నాటికలు రచించారు. ఈ నాటికలో మన సమాజంలోని సమస్యలను చక్కగా చిత్రించారు రచయిత.
నాటిక మొత్తం ఒక పెళ్లిచూపుల సందర్భంలో నడుస్తుంది. అమ్మాయి ఉమ . బి.ఎ. పాసైన ఉన్నత విద్యావంతురాలు. ఆమెకంటూ ఒక వ్యక్తిత్వం ఉన్నది. రామ్ స్వరూప్, ప్రేమ ఆమె తల్లిదండ్రులు. ఒక సామాన్య మధ్యతరగతి వ్యక్తి కావడం చేత రామ్ స్వరూప్ తన కుమార్తె వివాహం వీలయినంత త్వరగా చేసెయ్యాలనుకుంటాడు. శంకర్ అనే మెడికల్ స్టూడెంటు సంబంధం అతి కష్టం మీద దొరుకుతుంది. అబ్బాయి తండ్రి గోపాల్ ప్రసాద్ లాయరు. కానీ వీళ్ళకి అమ్మాయి పెద్ద చదువులు చదువుకుని ఉండటం ఇష్టం లేదు. ఏదో మెట్రిక్ పాసయితే చాలు అనుకునే రకం. అందుకే రామ్ స్వరూప్ ‘అమ్మాయి మెట్రిక్ వరకే చదువుకుంద’ని అబద్దమాడి అమ్మాయిని చూసుకోవడానికి రమ్మని ఆహ్వానిస్తాడు.
అనుకున్న రోజుకి శంకర్ తన తండ్రితో సహా పెళ్లిచూపులకి వస్తాడు. శంకర్ అనడానికి ఉన్నత విద్యావంతుడైనా, కానీ తనకంటూ ఒక వ్యక్తిత్వం లేనివాడు. అమ్మాయి అబ్బాయి ఒకటి కాదనీ, పెద్ద చదువులు అబ్బాయిలే చదువుకోవాలనీ, అమ్మాయి ఇల్లు జాగ్రత్తగా చూసుకుంటే చాలనీ అంటాడు గోపాల్ ప్రసాద్. తండ్రి మాటకు తందానా అనే రకం కొడుకు. వాళ్ళ మాటలలో స్వార్థం, అమ్మాయిల పట్ల చులకనభావం బయటపడుతూనే ఉంటాయి. ఉమను పెళ్ళి చూపులకు కూర్చోబెట్టి ఒక పాట పాడిస్తారు తల్లిదండ్రులు. సితార్ వాయిస్తూ మీరాభజన చక్కగా పాడుతుంది ఉమ. తరువాత ఆమెను మాట్లాడించడానికి ఏవో ప్రశ్నలు వేస్తాడు గోపాల్ ప్రసాద్. ఎన్నోసార్లు అడిగిన మీదట ఆమె గొంతు విప్పుతుంది.
ఏదయినా కుర్చీనో, బల్లనో కొనడానికి వెళ్ళినప్పుడు దాన్ని ఏమీ అడగరనీ, చూసి నచ్చితే కొనుక్కోవడమేననీ’ ఫెడీల్మని సమాధానం చెబుతుంది ఉమ: అందరూ నివ్వేరపోతారు. ‘ఆమేను’ ఆపడం’ తండ్రి వల్ల’ కోదు. శంకర్ ‘ఆడపిల్లల హాస్టలు గోడదూకి పట్టుబడిన విషయం చెప్పి అతడి నిజస్వరూపం బట్టబయలు చేస్తుంది ఉమ. దీనితో ఉమ చదువుకున్నదనే విషయం కూడా బయటపడుతుంది. గోపాల్ ప్రసాద్ ప్రశ్నించిన మీదట, ‘బి.ఎ. వరకూ కష్టపడి చదువుకున్నానని’ ధైర్యంగా చెబుతుందామె. దీనితో ‘అమ్మాయి చదువుకోలేదని చెప్పి మోసం చేశావంటూ’ రామ్ స్వరూప్ ని నిందిస్తాడు గోపాల్ ప్రసాద్. ‘ఆడపిల్లలకీ ఒక మనసుంటుందనీ, వాళ్లని సంతలో పశువులను బేరమాడినట్లు కొనడం సరికాదని; ముందు నీ కొడుక్కి వెన్నెముక అసలు ఉన్నదా లేదా చూసుకో’మంటూ పదునైన మాటలతో బుద్ధి చెబుతుంది ఉమ. ఆమె మాటలకు రోషంతో గోపాల్ ప్రసాద్, శంకర్ లేచి వెళ్ళిపోతారు. ఇక్కడితో నాటిక ముగుస్తుంది.
ఈ నాటికలో అనేక సమస్యలను చూపే ప్రయత్నం చేశారు రచయిత. ఒక ఆడపిల్ల చదువుకుంటే కుటుంబానికి ఎంత మేలు జరుగుతుందో ఉమ పాత్రతో చెప్పించారు. చదువుకున్న మగపిల్లలు తండ్రుల చేతుల్లో కీలుబొమ్మల్లా మారి కట్నాలకు తలలూపడం, ఆడపిల్లను ప్రాణంలేని బొమ్మకన్నా హీనంగా చూడటం, తల్లిదండ్రులు కట్నాలు-ఖర్చులు ఇచ్చుకోలేక త్వరగా ఆడపిల్లలను వదిలించుకోవాలనుకోవడం, పెళ్ళిచూపుల పేరుతో అమ్మాయిల ఆత్మగౌరవాన్ని కించపరచడం లాంటి అనేక అంశాలను ఈ నాటికలో చూస్తాము.
వెన్నెముక వ్యక్తిత్వానికి ప్రతీక. అది లేకపోతే మనిషి నిటారుగా నిలబడలేడు. ఈ నాటికలో శంకర్ వెన్నెముక లేనివాడు. అంటే వ్యక్తిత్వం లేనివాడు. ఈ కారణంగానే ఉమ నాటిక చివరలో వెన్నెముక ప్రస్తావన తెచ్చి శంకర్ కి బుద్ధి చెబుతుంది. నాటికకి శీర్షిక ‘రీథ్ కీ హడ్డీ’ (వెన్నెముక) అని పెట్టింది కూడా అందుచేతనే !