AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed Chapter 1 महाभारत की एक साँझ

Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed 1st Lesson महाभारत की एक साँझ Textbook Questions and Answers, Summary.

AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed 1st Lesson महाभारत की एक साँझ

दीर्घ प्रश्न – దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు

प्रश्न
1. ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का सारांश लिखिए ।
2. ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर:
महाभारत की एक साँझ एकांकी में भारतभूषण अग्रवाल ने दुर्योधन के प्रति सहानुभूति जताया है ।

पाँडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युध्द चलता है । युद्ध अंतिम . दशा तक पहुँचता है । अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा संजय, धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखो दिखा वर्णन करता रहता है । युद्ध के परिणामों को देखकर धृतराष्ट्र अंत मे पछताता है । और संजय से कहता है कि यह किसके पापों का फल है ? क्या पुत्र – प्रेम अपराध है ? धृतराष्ट्र के दुःख को देखकर संजय शांत होने केलिए सांत्वना देते है।

युद्ध की अंतिम दशा का विवरण धृतराष्ट्र संजय से पूछते है । संजय बताते है कि आत्मरक्षा का उपाय न मिलने पर सुयोधन कुरुक्षेत्र के निकट द्वैतवन के सरोवर मे घुस गये और जल स्तंभ से छिपकर बैठे है ।

यह समाचार अहीरों के द्वारा पाण्डवो को मालूम हुआ तो वे दुर्योधन को तरह – तरह से ललकार कर युद्ध केलिए उकसाते है । युधिष्ठिर और भीम के उकसाने से सरोवर से बाहर आकर, दुर्योधन युद्ध करने केलिए सिद्ध हो जाते है।

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यह विवरण संजय धृतराष्ट्र को बता रहे है । पाण्डवो ने विरक्त सुयोधन को युद्ध केलिए विवश किया । पाण्डवों की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे । दोनो वीरो ने भयंकर युद्ध किया । सुयोधन का पराक्रम सबको चकित कर देता था । ऐसा लगता था मानों विजयश्री अंत में सुयोधन का वरण करेगी। पर तभी श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंधा में गदा का भीषण प्रहार किया । कुरूराज सुयोधन आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पडे ।

संजय के द्वारा पुत्र की स्थिति सुनते ही पिता का हृदय पिघल जाता है । पुत्र प्रेम से अंधा होकर धृतराष्ट्र. पांडवो को हत्यारे, अधर्मी कहने लगते है । जब सुयोधन आहत होकर निस्सहाय भूमिपर गिर पडे तो पाण्डव जय ध्वनि करते और हर्ष मनाते अपने शिविर को लौट गये । संध्या होने पर पहले अश्वत्थामा आए और कुरूराज की यह दशा देखकर बदला लेने का प्रण करते हुए चले गये । फिर युधिष्ठिर आए । सुयोधन के पास आकर वे झुके और शांत स्वर में उन्हे सांत्वना देने केलिए तरह – तरह से समझाते है।

सुयोधन और युधिष्ठिर के बीच धर्माधर्म की काफी लंबी चर्चा होती है । युधिष्ठिर चाहे जितना समझाने पर भी सुयोधन में पश्चत्ताप की लेशमात्र भावना भी नही होती है।

अंत में दुर्योधन कहता है – “मुझे कोई ग्लानी नही, कोई पश्चत्ताप नही है, केवल एक – – – – केवल एक दुख मेरे साथ जाएगा – – – – यही – – यही कि मेरे पिता अंधे क्यो हुए ।” इस अंतिम वाक्य से एकांकी समात्प होती है।

विशेषता : इसमें महाभारत युद्ध के उपरान्त दुर्योधन और पांडवो के भावपूर्ण मिलन – अवसरो का चित्रण किया गया ।

लघु प्रश्न – లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు

प्रश्न 1.
जल में छिपा बैठा दुर्योधन को युधिष्ठिर ने कैसे पुकारा ?
उत्तर:
जल में छिपे दुर्योधन को युधिष्ठिर, ओ पापी, अरे ओ कपटी, दुरात्मा दुर्योधन कहकर पुकारता है । स्त्रियों की भाति जल में छिपना नही. बाहर निकलकर आने केलिए युधिष्ठिर कहता है ।

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प्रश्न 2.
दुर्योधन ने कौन-सा कटु सत्य कहा ?
उत्तर:
दुर्योधन ने कटु सत्य यह कहा कि – पाण्डवो ने ही अपने कृत्य से वनवास पाकर भी दोष मुझ पर (दुर्योधन) लगाया है । उस वनवास में पांडवो ने एक – एक क्षण युद्ध की तैयारी में लगाया गया । अर्जुन ने तपस्या द्वारा नये शस्त्र प्राप्त किए, विराट राजा से मैत्री कर नये संबंध बनाए गए और वनवास अवधि पूर्ण होते ही अभिमन्यु के विवाह के बहाने
सारे राजाओं को निमंत्रण भेजकर एकत्र किया ।

प्रश्न 3.
पश्चात्ताप के बारे में दुर्योधन ने क्या कहा ?
उत्तर:
पश्चात्ताप के बारे में दुर्योधन ने कहा – युधिष्ठिर ! तनिक अपनी ओर तो देखो ! पश्चात्ताप तो तुम्हे होना चाहिए ! मै क्यो पश्चात्ताप करूगा ? मै ने ऐसा कौन – सा पाप किया है ? मैं ने अपने मन के भावों को गुप्त नहीं रखा, मैं ने षडयंत्र नही किया, मैं ने गुरजनों का वध नहीं किया ।

लेखक परिचय – రచయిత పరిచయం

प्रस्तुत एकांकी “महा भारत की एक साँझ” के लेखक भारत भूषण अग्रवाल है । आप आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुपरिचित एवं संवेदनशील प्रतिनिधि साहित्यकार है। इनके नाटक प्रयोगधर्मी है, किन्तु ये अपनी प्रभावान्विति में मानवीय अन्तस की गहराइयों का संस्पर्श करते हुए महनीय – जीवन – मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करते है।

इस एकांकी में विशेषत : मरणासन्न दुर्योधन और विजयी युधिष्ठिर के संभाषणो से महाभारत को दर्शाया है । व्यास रचित महाभारत की तरह भारतभूषण जी ने भी, संजय – धृतराष्ट्र को महाभारत की महा कथा के वक्ता – श्रोता की भूमिका में रखा है।

सारांश – సారాంశం

महाभारत की एक साँझ एकांकी में भारतभूषण अग्रवाल ने दुर्योधन के प्रति सहानुभूति जताया है।

पाँडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युध्द चलता है । युद्ध अंतिम दशा तक पहुँचता है । अपनी दिव्य दृष्टि के द्वारा संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखो दिखा वर्णन करता रहता है।

AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed Chapter 1 महाभारत की एक साँझ

युद्ध की अंतिम दशा का विवरण धृतराष्ट्र संजय से पूछते है । संजय बताते है कि आत्मरक्षा का उपाय न मिलने पर सुयोधन कुरुक्षेत्र के निकट द्वैतवन के सरोवर मे घुस गये और जल स्तंभ से छिपकर बैठे है ।

यह समाचार अहीरों के द्वारा पाण्डवो को मालूम हुआ तो वे दुर्योधन को तरह – तरह से ललकार कर युद्ध केलिए उकसाते है । युधिष्ठिर और भीम के उकसाने से सरोवर से बाहर आकर, दुर्योधन युद्ध करने केलिए सिद्ध हो जाते है।

यह विवरण संजय धृतराष्ट्र को बता रहे है । पाण्डवो ने विरक्त सुयोधन को युद्ध केलिए विवश किया । पाण्डवों की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे । दोनो वीरो ने भयंकर युद्ध किया । श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंधा में गदा का भीषण प्रहार किया । कुरूराज सुयोधन आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पडे ।

जब सुयोधन आहत होकर निस्सहाय भूमिपर गिर पडे तो पाण्डव जय ध्वनि करते और हर्ष मनाते अपने शिविर को लौट गये । संध्या होने पर पहले अश्वत्थामा आए और कुरूराज की यह दशा देखकर बदला लेने का प्रण करते हुए चले गये । फिर युधिष्ठिर आए । सुयोधन के पास आकर वे झुके और शांत स्वर में उन्हे सांत्वना देने केलिए तरह – तरह से समझाते है।

सुयोधन और युधिष्ठिर के बीच धर्माधर्म की काफी लंबी चर्चा होती है । युधिष्ठिर चाहे जितना समझाने पर भी सुयोधन में पश्चत्ताप की लेशमात्र भावना भी नही होती है।

अंत में दुर्योधन कहता है – “मुझे कोई ग्लानी नही, कोई पश्चत्ताप नही है, केवल एक – – – – केवल एक दुख मेरे साथ जाएगा – – – – यही — यही कि मेरे पिता अंधे क्यो हुए ।” इस अंतिम वाक्य से एकांकी समाप्त होती है ।

विशेषता : इसमें महाभारत युद्ध के उपरान्त दुर्योधन और पांडवो के भावपूर्ण मिलन – अवसरो का चित्रण किया गया ।

తెలుగు సారాంశం

ప్రస్తుతం మనం చదువుతున్న ‘మహాభారత్ కీ ఎక్ సాంగ్స్’ ఎకాంకిక రచయిత భారత్ భూషణ్ అగ్రవాల్ గారు.

ఈ ఏకాంకికలో మరణశయ్య పై ఉన్న దుర్యోదనుడు విజేత యుధిష్టరుడు (ధర్మరాజు) మధ్య జరిగిన సంభాషణను ఇవ్వడం జరిగింది. వ్యాసుడు రచించిన మహాభారతంలో సంజయుడు దృతరాష్ట్రునికి చెప్పినట్లు ఇక్కడకూడా ………… కథ మొదలవుతుంది. ఈ ఏకాంకికలో అగ్రవాల్ గారు దుర్యోధనుడి పట్ల సానుభూతిని ప్రకటించారు.

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దుర్యోధనుడు తన ప్రాణాలను రక్షించుకోవడానికి కురుక్షేత్రం దగ్గరలో ఉన్న ద్వైతవనంలోని జలాశయంలో జలస్థంభన విద్య ద్వారా తలదాచుకుంటాడు. ఈ సమాచారం పాండవులకు తెలుస్తుంది. ధర్మరాజు అక్కడికి చేరుకొని తన మాటలతో దుర్యోధనుని రెచ్చగొట్టడంతో, దుర్యోధనుడు భీముడితో గదా యుద్ధానికి తలపడతాడు. ఒకానొక సందర్భంలో దుర్యోధనుడు తన శక్తి పరాక్రములతో భీముడిని ఓడించే స్థితిలోకి . వెళ్ళన చివరకు శ్రీకృష్ణుని సలహా వల్ల భీముడు విజయం సాధిస్తాడు.

యుద్ధభూమిలో దుర్యోధనుడు ఓటమిపాలై నిస్సాహాయ స్థితిలో మరణశయ్యపై ఉండగా పాండవులు విజయదరహాసంతో తమశిబిరాలకు వెళ్ళిపోతారు. ఆ సంధ్యాసమయంలో అశ్వద్ధామ దుర్యోధనుని చూసి, పాండవులపై ప్రతికార ప్రతిజ్ఞ చేసి వెళ్ళిపోయిన తర్వాత ధర్మరాజు అక్కడికి చేరుకొని దుర్యోధనునితో సంభాషిస్తాడు.

తన తండ్రి గ్రుడ్డివాడు కావటం వల్లనే మీ (ధర్మరాజు) నాన్నకు రాజ్యాధికారం దక్కిందని, న్యాయం తన వైపు వుండటం వల్లనే భీష్ముడు, ద్రోణుడు, కుృపాచార్యుడు, అశ్వద్ధామా తనవైపు నిలిచారని మీ అధికార కాంక్షతోనే మీరు వనవాసం వెళ్ళాల్సి వచ్చిందని, వనవాసంలోనే కుట్రలు రచించారని దుర్యోధనుడు ధర్మరాజుతో అంటాడు.

ధర్మరాజు ఎంత నచ్చజెప్పినప్పటికి దుర్యోధనుడిలో పశ్చాతాపం కనిపించదు. తన తండ్రి ఎందుకు గ్రుడ్డివారయ్యారు అనే బాధతోనే ప్రపంచం వదిలి వెళ్తున్నానని, తనకు ఎటువంటి పశ్చాతాపం లేదని దుర్యోధనుడు అనడంతో ఏకాంకిక ముగుస్తుంది.

लेखक परिचय రచయిత పరిచయం

प्रस्तुत एकांकी “महा भारत की एक साँझ” के लेखक भारत भूषण अग्रवाल है । आप आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुपरिचित एवं संवेदनशील प्रतिनिधि साहित्यकार है । इनके नाटक प्रयोगधर्मी है, किन्तु ये अपनी प्रभावान्विति में मानवीय अन्तस की गहराइयों का संस्पर्श करते हुए महनीय – जीवन – मूल्यों के प्रति आस्थ उत्पन्न करते है।

AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Non-Detailed Chapter 1 महाभारत की एक साँझ

इस एकांकी में विशेषत : मरणासन्न दुर्योधन और विजयी युर्धाष्ठर के संभाषणो से महाभारत को दर्शाया है । व्यास रचित महाभारत की तरह . भारतभूषण जी ने भी, संजय – धृतराष्ट्र को महाभारत की महा कथा के वक्ता – श्रोता की भूमिका में रखा है।

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