AP Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 2nd Year Hindi Study Material Intermediate 2nd Year Hindi Grammar संधि Questions and Answers.

AP Intermediate 2nd Year Hindi Grammar संधि

संधि संस्कृत शब्द ‘सम् + धि’ से बना है । इसका शाब्दिक अर्थ है ‘मेल या योग’ । इसमें वर्णों या अक्षरों का मेल होता है।

संधि – परिभाषा : दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार (परिवर्तन) को. संधि कहते हैं।

संधि – विच्छेद : वर्णों के अक्षरों को अलग करते हुए पदों को अलग – अलग कर देना ही संधि – विच्छेद है।

जैसे – देवालय (संधि) देव + आलय (संधि – विच्छेद)
संधि के तीन भेद हैं –

  1. स्वर संधि,
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

1. स्वर संधि : स्वर से स्वर के मेल को स्वर संधि कहते हैं ।
जैसे – हिम + आलय = हिमालय ।
स्वर संधि पाँच प्रकार के होते हैं –
(क) दीर्घ संधि
(ख) गुण संधि
(ग) वृद्धि संधि
(घ) यण संधि
(ङ) अयादि संधि

(क) दीर्घ संधि : ह्रस्व या दीर्घ ‘अ, इ, उ, ऋ’ आये तो क्रमश : ‘आ, ई, ऊ, ऋ’ हो जाते हैं जैसे –
(अ) दीर्घ ‘आ’ होता है –
अ + अ = आ – राम + अवतार = रामावतार
अ + आ = आ : शिव: + आलय. = शिवालय
आ + अ = आ – विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ – दया + आनंद = दयानंद

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(आ) दीर्घ ‘ई होता है –
इ. + ई = ई – गिरि + इन्द्र = गिरींद्र
इ – ई = ई – गिरि + ईश = गिरीश
ई + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
ई + ई = ई – नदी + ईश = नदीश

(इ) दीर्घ ‘उ होता है –
उ + उ = ऊ – भानु + उदय = भानूदय
उ + ऊ = ऊ – लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ – वधू + ऊपरि = वधूपरि

(ई) दीर्घ ‘ऋ होता है –
ऋ + ऋ = ऋ – मातृ + ऋण = मातृण
पितृ + ऋण = पितृण

(ख) गुण संधि : इसमें ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ, ई, उ, ऊ, ऋ’ आयेते क्रमश : ‘ए, ओ’, या ‘अर्’ हो जाते हैं –
(अ) ‘ए’ होता है –
अ + इ = ए – देव + इंन्द्र = देवेंद्र
अ + ई = ए – गण + ईश = गणेश
आ + इ = ए – रमा + इंन्द्र = रमेन्द्र
आ + ई = ए – महा + ईश = महेश

(आ) ‘ओ’ होता है –
अ + उ = ओ – सूर्य + उदय = सूर्योदय
अ + ऊ = ओ – नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
आ + ऊ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ = ओ – गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि

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(इ) ‘अर्’ होता है –
अ + ऋ = अर् – ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
आ + ऋ = अर् – महा + ऋषि = महार्षि

(ग) वृद्धि संधि : वृद्धि का अर्थ है बढ़ने की क्रिया । इस संधि के फलस्वरूप स्वर की मात्रा या संख्या बढ़ जाती है।

इसमें ‘अ – आ’ का मेल ‘ए – ऐ’ से होते तो वह ‘ऐ’ बन जाता है तथा ‘अ – आ’ का मेल ‘ओ – औ’ से होते तो वह ‘औ’ बन जाता है ।

(अ) ‘ए’ होता है –
अ + ए = ऐ – एक + एक = एकैक
अ + ऐ = ऐ – धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य
आ + ए = ऐ – सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ – महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(आ) ‘औ’ हो जाता है –
अ + ओ = औ – दंत + ओष्ठ्य = दन्तौष्ठ्य
अ + औ = औ – परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औ – महा + ओदन = महौदान
आ + औ = औ – महा + औषध = महौषध

(घ) यण संधि : संस्कृत व्याकरण में य् र् ल् व् वर्णों को ‘यण’ कहते हैं ।
इस संधि में स्वरों का मेल यण् अर्थात् य् र् ल् व् में परिवर्तन हो जाते हैं । जैसे

(अ) ‘य’ होता है –
‘इ.- ई’ के आगे कोई भिन्न स्वर आये तो ‘इ – ई’ का ‘य’ हो जाता है
इ + अ = य् + अ (य) अति+ अन्त = अत्यंत
इ+ आ.= य् + .आ (या) अति+ आचार = अत्याचार
ई + अ = य् + अ (य) देवी + अर्थ = देव्यर्थ
ई + आ = य् + आ (या) सखी + आगमन = सख्यागमन
इ + उ = य् + उ (यु) प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ + ऊ = य् + उ (यू) नि + ऊन = न्यून
ई + ओ = य् + रा (ये) प्रति + एक = प्रत्येक
ई + ओ = य् + ओ = य् + ओ (यौ देवी + औदार्य = देव्यौदार्य
इ+ अं = य् + अं (यं) प्रति + अंग = प्रत्यंग
ई + अं = य् + अं (य) देवी + अंग = देव्यंग

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(आ) ‘व्’ होता है –
‘उ – ऊ’ के आगे कोई भिन्न स्वर आये तो ‘उ – ऊ’ का ‘व्’ हो जाता है । जैसे –

उ + अ = व् + अ (व) अनु + अय = अन्वय
उ + आ = व् + आ (वा) सु + आगत = स्वागत
उ + इ = व् + इ (वि) अनु + इति = अन्विति
उ + ए = व् + ए (वे) अनु + एषण = अन्वेषण
ऊं + आ = व् + आ (वा) वधू + आगमन = वध्वागमन
उ + अ = उ + अं (व) तनु + अंगी = तन्वंगी

(इ) ‘र’ होता है –
‘ऋ’ के आगे कोई भिन्न स्वर आये तो ‘ऋ’ का ‘अर्’ हो जाता है ।

ऋ+ अ = र + अ (र) पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
ऋ+ आ = र् + आ (रा) मातृ + आदेश = मात्रादेश
ऋ+ उ = र् + उ (रू) पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश

(ङ) अयादि संधि : ‘ए, ऐ, ओ, औ’ के पश्चात् कोई अन्य स्वर आये तो ‘ए’ का ‘आय’ और ‘औ’ का ‘आव’, हो जाता है, उसे अयादि संधि कहते हैं।

(अ) ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय’ हो जाता है –
ए + अ = अय अय् + अ = अय – ने + अन = नयन
ऐ + आ = आय + आय् + अ = आय – नै + अक = नायक .

(आ) ओ का ‘अव’, ‘औ’ का ‘आव्’ होता है –
ओ + अ = अव् + अ = अव – भो + अन = भवन
औ + आ = आव् + अ = आव – पौ + अन = पावन

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2. व्यंजन संधि : व्यंजन वर्ण के बाद स्वर या व्यंजन वर्ण के आने से उस मेल के चलते जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे ‘व्यंजन संधि’ कहते हैं । व्यंजन संधि के तीन वर्ग बनाए जा सकते हैं

  1. व्यंजन एवं स्वर का योग – जैसे – ‘वाक् + ईश’ = वागीश,
    ‘जगत + ईश = जगदीश’ .
  2. स्वर एवं व्यंजन का योग – जैसे
    आ + छादन = आच्छादन, परि + छेद = परिच्छेद
  3. व्यंजन एवं व्यंजन का योग – जैसे – दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
    उत् + ज्वल = उज्जवल

अ) किसी वर्ग के पहल वर्ण कच् ट् त् प का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य र ल व् या किसी स्वर से हो जाए तो ‘क् का ग्’, ‘च का ज्’,’ट् का ड्’ ‘त् का द्’ और ‘प् का ब्’ हो जाता है । जैसे
क् का ग् – दिक् + अम्बर = दिगम्बर
दिक् + गज = दिग्गज, वाक् + दान = वाग्दान
वाक् + जाल = वाग्जाल दिक् + अंत = दिगंत
दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
च् का ज् – अच् + अन्त = अजन्त
ड् का द् – षड् + दर्शन = षड्दर्शन
त् का द् – जगत् + ईश = जगदीश
उत् + घाटन = उद्घाटन
प् का ब् – अप् + ज = अब्ज, अप + द = अब्द

आ) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल ‘न् या म्’ से हो तो उसके स्थान पर वर्ग का पाँचवाँ वर्ण अर्थात् क का ङ’, ‘च का ञ’, ‘ट् का ण’, ‘त् का न्’ और ‘प् का म्’ हो जाता है। जैसे
क् का ङ्- वाक् + मय = वाङ्मय, दिक् + नाग = दिङनाग
च् का ञ् – अच् + नाश = अञ्नाश
ट् का ण् – षट् + मास = षण्मास, षट् + मुख = षण्मुख
त् का न् – जगत् + नाथ = जगन्नाथ, चित् + मय = चिन्मय
प् का म् – अप + मय = अम्मय

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इ) त् के बाद ‘च’ या ‘छ’ हो तो त् का ‘च’ हो जाता है।
जैसे- उत् + चारण = उच्चारण, सत् + चरित्र = सच्चरित्र,
सत् + चित = सच्चित

ई) ‘त्’ के बाद ‘ज’ या ‘झ’ हो तो ‘त्’ का ‘ज’ हो जाता है
जैसे – उत् + ज्वल = उज्ज्वल, सत् + जन = सज्जन

उ) त् के बाद ‘ल’ हो तो त् का ‘ल’ हो जाता है।
जैसे – तत् + लीन = तल्लीन, उत् + लेख = उल्लेख

ऊ) त् को बाद ‘रा’ हो तो त् को ‘च’ तथा श को ‘छ’ हो जाता है । जैसे –
उत् + हार = उद्धार, तत् + हित = तद्धित
उत् + हरण = उद्धरण, उत् + दृत = उद्धृत

ऋ) म् के बाद यदि कोई स्पर्श ( क से म तक ) वर्ण हो तो उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण या विकल्प के अनुसार ( ) हो जाता है। जैसे –
सम् + कल्प = संकल्प या सकल्प
सम् + चय = संचय या सञ्चय
सम् + तोष = सन्तोष या संतोष
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण या संपूर्ण
सम् + देह = सन्देह या संदेह

ए) ‘म्’ के बात अंत : भ्य (य, र, ल, व) तथा ऊष्म (श, स, ह)
वर्ग हो तो ‘म्’
को सदैव अनुस्वर () ही होता है । जैसे –
सम् + यम = संयम
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + वाद = संवाद
(अपवाद ‘सम्’ के बाद ‘राट’ आने पर अनुसार का प्रयोग न होकर अपने मूल रूप में ही रखा जाता है । (उदा – सम् + राट = सम्राट) .

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ऐ) ऋ, र, ष के बाद ‘न’ हो तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। भले ही उसके बीच में किसी भी स्वर, व्यंजन या अनुस्वार आदि का भी हो । जैसे –
राम + अयन = रामायण, प्र + मान = प्रमाण

ओ) ‘छ’ से पूर्व कोई स्वर होने पर दोनों के बीच में अर्थात् ‘छ’ से पहले ‘च’ जुड़ जाता है । जैसे –
‘च’ जुड़ जाता है । जैसे
वि + छेद = विच्छेद, अनु + छेद = अनुच्छेद

औ) ‘स’ से पहले यदि ‘अ, आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो
‘स’ का ‘ष’ हो जाता है । जैसे –
वि + साम = विषम, अभि + सेक = अभिषेक
(अपवाद – अनुस्वार, विस्मरण आदि शब्द इस नियम के अपवाद है)

अं) ह्रस्व ‘इ, उ’ स्वर के बाद आनेवाले ‘र’ से परे यदि ‘र’ हो तो ह्रस्व को दीर्घ होकर पहले ‘र’ का लोप हो जाता है । जैसे –
निर् + रोग = नीरोग, निर् + रस = नीरस

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3. विसर्ग संधि : ( : ) विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन वर्ग की संधी को व्यंजन संधि कहते हैं । इस संधि में विसर्ग ही रूपांतर होता है।
जैसे – मनः + योग = मनोयोग
विसर्ग संधि के मुख्य नियम इस प्रकार हैं –

(क) विसर्ग से पहले और बाद में दोनों ओर ‘अ’ होने पर विसर्ग ‘ओ’ हो जाता है और दूसरे ‘अ’ के स्थान पर अवग्रह (ऽ) हो जाता है । जैसे
मनः + अनुकूल = मनोऽनुकूल
यशः + अभिलाषा = यशोऽभिलाषा

(ख) विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण तथा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ‘ओ’ हो जाता है । जैसे
रजः + गुण = रजोगुण, मनः + ज = मनोज

(ग) विसर्ग से पहले ‘अ, आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर तथा बाद में कोई स्वर किसी भी वर्ण का तीसरा,चौथा, पाँचवाँ वर्ण तथा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ‘र्’ हो जाता है। जैसे
निः + आकार = निराकार
निः + विकार = निर्विकार
दु: + आशा = दुराशा
दु: + गुण = दुर्गुण

(घ) विसर्ग के बाद ‘च, छ’ होत तो विसर्ग को ‘श्’, ट्, ठ हो तो ‘ष’ तथा, त, थ हो तो ‘स’ हो जाता है । जैसे
निः + चय = निश्चय,
धुनः + टंकार = धनुष्टंकार
मनः + ताप = मनस्ताप
नमः + ते = नमस्ते

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(ङ) निः तथा दुः के बाद ‘क-ख’ या ‘प – फ’ हो तो इनके विसर्ग को ‘ष’ हो जाता है । जैसे
निः + कपट = निष्कपट
निः + पाप = निष्पाप
निः + फल = निष्फल

(च) विसर्ग के बाद यदी ‘श, स’ हो तो विकल्प से विसर्ग को भी क्रमशः ‘श’ तथा ‘स्’ हो जाता है । जैसे
दुः + शासन = दुश्शासन या दुःशासन
निःसंदेह = निस्सन्देह या निःसन्देह

(छ) यदि विसर्ग से पहले ‘अ, आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और फिर उन वर्गों में संधि (स्वर संधि) नहीं होती । जैसे
अतः + एव = अतएव, ततः + एव = ततएव

अभ्यास

(इसमें संधि तथा संधि – विच्छेद भी दिया गया है।)

1) देवालय = देव + आलय
2) मुनींद्र = मुनि + इन्द्र
3) रजनीश = रजनी + ईश।
4) पितॄण = पितृ + ऋण
5) सूक्ति = सु + उक्ति
6) महेश्वर = महा + ईश्वर
7) देवर्षि = देव + ऋषि
8) वनौषध = वन + औषध
9) अत्युत्तम = अति + उत्तम
10) गायक = गै + अक
11) दिगम्बर = दिक् + अम्बर
12) अजंत = अच् + अंत
13) सन्मार्ग = सत् + मार्ग
14) भूषण = भू + षन
15) आच्छादन = आ + छादन
16) संभावना = सम् + भावना
17) परिच्छेद = परि + छेद
18) जगदानन्द = जगत् + आनंद
19) प्रमाण = प्र + मान
20) वाग्दान = वाक् + दान
21) मनोहर = मनः + हर
22) तपोबल = तपः + बल
23) दुर्बल = दुः + बल
24) नमस्कार = नमः + कार
25) निस्सार = निः + सार
26) प्रातःकाल = प्रातः + काल
27) पुनःस्मरण = पुनः + स्मरण
28) दुरात्मा = दु: + आत्मा
29) निष्फल = निः .. ‘+ फल’
30) पुनर्जन्म = पुनः + जन्म

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