Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 1st Year Hindi Study Material पद्य भाग 4th Poem सुख-दुख Textbook Questions and Answers, Summary.
AP Inter 1st Year Hindi Study Material 4th Poem सुख-दुख
संदर्भ सहित व्याख्या
प्रश्न 1.
मै नहीं चाहता चिर – सुख
मै नहीं चाहता चिर – दुःख
सुख दुःख की खेल मिचौनी
खेल जीवन अपना मुख !
उत्तर:
कवि परिचय :- यह पद्य सुमित्रानंदन पंत के द्वारा लिखी गयी ‘सुखदुःख’ नामक कविता से लिया गया है । वे प्रकृति का सुकुमार कवि कहे जाते है।
सन्दर्भ :- इसमें कवि सुख-दुख को समान रूप में स्वीकार करने की बात कह रहे हैं।
व्याख्या :- कवि का कहना है कि जीवन मे हमेशा सुख और हमेशा दुख का रहना भी अच्छा नहीं है । सुख और दुख आंख मिचौनी खेल की तरह हमारे जीवन में आते जाते रहना चाहिए ।
विशेषताएँ :-
- जीवन के लिए सुख और दुख होने की आवश्यकता के बारे में कवि कह रहे हैं।
- उनकी भाषा खडीबोली हैं।
प्रश्न 2.
सुख – दुःख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परिपूरन,
फिर घर में ओझल हो शशि,
फिर शशि से ओझल हो घन!
उत्तर:
कवि परिचय :- यह पद्य सुमित्रानंदन पंत के द्वारा लिखी गयी ‘सुखदुख’ नामक कविता से लिया गया है । वे प्रकृति का सुकुमार कवि कहे जाते है।
सन्दर्भ :- इसमें कवि सुख-दुख को समान रूप में स्वीकार करने की बात कह रहे हैं।
व्याख्या :- कवि का कहना है कि सुख और दुख को समान रूप से स्वीकारने से ही जीवन परिपूर्ण होता हैं । जिसप्रकार आकाश मे कभी बादलों के पी चाँद और चाँदनी मे बादल ओझल हो जाते हैं उसी प्रकार सुख और दुख दोनों का आना जाना भी स्वाभाविक है
विशेषताएँ :-
- जीवन के लिए सुख और दुख होने का आवश्यकता के बारे में कवि कह रहे हैं।
- उनकी भाषा खडीबोली हैं।
दीर्घ प्रश्न
प्रश्न 1.
सुख – दुख कविता का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
कवि परिचय :- सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म सन् 1900 ई. मे. उत्तर . प्रदेश अल्मोड़ा जिले के कौसानी ग्राम मे हुआ । उन्होने हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का अध्ययन किया । प्रकृति के उपासक होने के कारण उन्हे प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। पल्लन, वीणा, ग्रथि, ग्राम्या, स्वर्णधूलि आदि प्रमुख रचनाएँ हैं । उनकी भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त खडीबोली है ।
सारांश :- कवि का कहना है कि हमेशा सुख और दुख भी जीवन के लिए अच्छा नही । सुख और दुख दोनों के साथ खेल मिचौनी करना चाहिए । अर्थात् जीवन में सुख और दुख एक दूसरे के साथ आना ही चाहिए । सुख और दुख होने के साथ ही जीवन परिपूर्ण होता है । जिस प्रकार आकाश में घने बादलों के बीच चन्द्रमा और चाँदनी से बादल घेरे जाते हैं उसी प्रकार सुख और दुख एक दूसरे के बाद आते जाते है ।
सारा जगत कभी कभी अति दुख से और अति सुख से पीडित होता रहता है । लेकिन मानव जीवन में सुख और दुख दोनों को समान रूप में स्वीकारना चाहिए । हमेशा सुख और हमेशा दुख दोनो भी जीवन के लिए दुखदायक है ।
जिस प्रकार जीवन में दिन और रात का आना जाना स्वाभाविक है । उसी प्रकार जीवन में सुख और दुख का आना जाना भी स्वाभाविक है। जिस प्रकार सायंकाल सूर्योदय का आगमन विरह के बाद मिलन जीवन के लिए आनन्ददायक होता है । आनन्द और दुख हमेशा जीवन मे आता जाता रहता है । यही मानव जीवन है ।
इस प्रकार कवि इसमें जीवन मे स्वाभाविक और प्राकृतिक नियमों के बारे मे चित्रण करते हुए जीवन के लिए सुख और दुख जितना स्वाभाविक होते है उनके बारे मे व्यक्त कर रहे है । सुख और दुख दोनो को समान रूप मे स्वीकारने का सन्देश दे रहे हैं। उनकी भाषा सरल खडीबोली है।
एक शब्द में उत्तर
प्रश्न 1.
सुख-दुख कविता के कवि कौन है ?
उत्तर:
श्री सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 2.
पंत जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
सन् 1900 ई.मे ।
प्रश्न 3.
पंतजी को किस रचना पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ?
उत्तर:
चिदम्बरा ।
प्रश्न 4.
मानव जीवन की पूर्णता किससे संभव है ?
उत्तर:
सुख-दुख मिलन से ।
प्रश्न 5.
मानव जीवन में सुख-दुख किसके समान है ?
उत्तर:
रात और दिन के ।
कवि परिचय
सुमित्रानन्दन पंत का असली नाम गोसाई दत्त है, उनका जन्म सन् 1900 ई में उत्तर प्रदेश अल्मोडा जिले के कौसानी ग्राम में हुआ । इनके पिता गंगादत्त पन्त वहाँ की टी स्टेट के कोषाध्यक्ष रहे इन्होंने काशी से हाई स्कूल की परीक्षा पास की और फिर प्रयाग पढने चले गए । सन् 1912 ई के असहयोग आंदोलन के कारण उन्होंने अपनी पढाई छोड दी और घर पर ही संस्कृत, बँगला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का अध्ययन किया । पर्वतीय प्रदेश के निवासी होने के कारण पन्त जी को प्रकृति के प्रति विशेष प्रेम रहा । प्रकृति के उपासक होने के कारण उन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है ।
सुमित्रानन्दन पंत ने विद्यार्थी जीवन से ही काव्य रचना करना आरम्भ कर दिया था, उनकी रचनाओं में पल्लव, वीणा, ग्रंथि, युगान्त, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, उत्तरा, युगपथ, खादी के फूल, कला और चाँद, सौवर्ण आदि काव्य प्रमुख रहे है । उन्होंने लोकायतन महाकाव्य लिखा है, उन्हें कला और बूढा चाँद पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोकायतन पर सोवियत-भूमि का नेहरू पुरस्कार तथा चिदम्बरा पर भार य ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
पंत ने अपनी रचनाओं में कोम् ‘मान्त पदावली का प्रयोग कर खड़ीबोली को सरसता और मधुरता प्रदान । उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता मिलती है । उनकी भाषा चित्रमयी, अलंकृत तथा संगीतमयी और गीति शैली का प्रयोग मिलता है । पंत ने आरम्भ में छायावादी चित्रमयी भाषा और प्रकृति प्रेम से पूर्ण कविताएँ लिखने के बाद प्रगतिवाद तथा अरविन्द दर्शन से प्रेरित होकर अनेक रचनाएँ की है ।
सारांशं
कवि परिचय :- सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म सन् 1900 ई. मे. उत्तर प्रदेश अल्मोडा जिले के कौसानी ग्राम गे हुआ । उन्होने हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का अध्ययन किया । प्रकृति के उपासक होने के कारण उन्हे प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। पल्लव, वीणा, ग्रथि, ग्राम्या, स्वर्णधूलि आदि प्रमुख रचनाएँ हैं । उनकी भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त खडीबोली है।
सारांश :- कवि का कहना है कि हमेशा सुख और दुख भी जीवन के लिए अच्छा नही । सुख और दुख दोनों के साथ खेल मिचौनी करना चाहिए । अर्थात् जीवन में सुख और दुख एक दूसरे के साथ आना ही चाहिए। सुख और दुख होने के साथ ही जीवन परिपूर्ण होता है । जिस प्रकार आकाश में घने बादलों के बीच चन्द्रमा और चाँदनी से बादल घेरे जाते हैं उसी प्रकार सुख और दुख एक दूसरे के बाद आते जाते है ।
सारा जगत कभी कभी अति दुख से और अति सुख से पीडित होता रहता है । लेकिन मानव जीवन में सुख और दुख दोनों को समान रूप में स्वीकारना चाहिए । हमेशा सुख और हमेशा दुख दोनो भी जीवन के लिए दुखदायक है ।
जिस प्रकार जीवन में दिन और रात का आना जाना स्वाभाविक है । उसी प्रकार जीवन में सुख और दुख का आना जाना भी स्वाभाविक है। जिस प्रकार सायंकाल सूर्योदय का आगमन विरह के बाद मिलन जीवन के लिए आनन्ददायक होता है । आनन्द और दुख हमेशा जीवन मे आता जाता रहता है । यही मानव जीवन है ।
इस प्रकार कवि इसमें जीवन मे स्वाभाविक और प्राकृतिक नियमों के बारे मे चित्रण करते हुए जीवन के लिए सुख और दुख जितना स्वाभाविक होते है उनके बारे मे व्यक्त कर रहे है
विशेषताए : – सुख और दुख दोनो को समान रूप मे स्वीकारने का सन्देश दे रहे हैं । उनकी भाषा सरल खडीबोली है ।
कठिन शब्दार्थ
1. चिर = लम्बे समय के लिए; ఎక్కువ సమయం కోసం
2. मिचौनी = आँख पर पट्रटी बाँध कर खेलना; కళ్ళ గంతలు ఆడుట.
3. परिपूरन = परिपूर्ण; సంపూర్ణమైన.
4. घन = घना; మబ్బులు.
5. शशि = चन्द्रमा; చంద్రుడు.
6. ओझल = गायब हो जाना; మాయమైపోవడం.
7. अविरत = लगातार; వరసగా.
8. उत्पीडन = पीडा; కష్టం.
9. निशा = रात्रि; రాత్రి.
10. दिवा = दिन; రోజు.
11. साँझ = सायंकाल; సాయంత్రం.
12. उषा = सूर्योदय; ఉదయం.
13. आलिंगन = गले से लगाना; కౌగిలించుకోవడం.
14. विरह = बिछडने का दुःख; తాపంతో విడిపోవడం.
15. चिर = हमेशा के लिए; ప్రతిరోజు కోసం.
16. हास = हँसी; నవ్వుట.
17. आश्रुमम = आँसुओं से भरे हुए; కన్నీళ్ళు రావడం.
18. आनन = चेहरा; ముఖం.