AP Inter 1st Year Hindi Study Material Non-Detailed Chapter 3 परमात्मा का कुत्ता

Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 1st Year Hindi Study Material Non-Detailed 3rd Lesson परमात्मा का कुत्ता Textbook Questions and Answers, Summary.

AP Inter 1st Year Hindi Study Material Non-Detailed 3rd Lesson परमात्मा का कुत्ता

अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
परमात्मा का कुत्ता कहानी का सारांश लिखिए ।
उत्तर:
‘परमात्मा का कुत्ता’ मोहन राकेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है । इसमें आप सरकारी दफ्तरों में व्याप्त लालफीताशाही, भ्रष्टाचार तथा उदासीनता का सजीव चित्रण करते हैं।

कहानी के आरंभ में एक सरकारी दफ्तर के परिसर का चित्रण किया गया । वहाँ कई लोग अपनी फाइलों का काम पूरा होने की आशा रखकर इंतजार कर रहे होते हैं । उनमें बाल-बच्चे, बूढ़े, निस्सहाय बहुत होते हैं, किन्तु वहाँ के कर्मचारियों पर इनकी स्थितिगतियों का कोई प्रभाव नहीं रहता । एक बूढ़ी अपने मरे हुए बच्चे को मिली ज़मीन के बारे में पूछती है किन्तु उसका जवाब देनेवाला. कोई नहीं है। सभी कर्मचारी अपने में मस्त और इन लोगों के प्रति उदासीन रहते हैं । कुछ सरकारी बाबू कविता-गजलें आदि सुनने-सुनाने में मग्न हैं तो कुछ कर्मचारी मजे में बातें करते रहते हैं। कई लोग चाय पीते रहते हैं । फाइलों का काम उन्हीं का जल्दी होता है जो इन लोगों को कुछ पैसे घूस के रूप में देते हों । इन सबके ऊपर अधिकारी जो कमीशनर साहब हैं वे भी कुछ दस्तख़त करके मैगजीन वगैरा पढ़ने में व्यस्त रहते ।

ऐसे में एक अधेड़ आदमी अपनी भाभी और बच्चों के साथ दफ्तर के परिसर में प्रवेश करता है । आते ही वह अपनी पगड़ी जमीन पर बिछाकर परिवार सहित बैठ जाता है और ऊँची आवाज से कहने लगता है कि सरकार इतने सालों से उसकी अर्जी पर फैसला नहीं ले सकी । वह पाकिस्तान से आया हुआ भारतीय है और उसके कुछ रिश्तेदार अभी पाकिस्तान में ही हैं। उसके पुनरावास की समस्या हल नहीं हुई । सात वर्ष घूमने के बाद ज़मीन के रूप में नालायक ‘गड्ढा मिला । उसने अर्जी रखी कि उस गड्ढ़े के बदले थोड़ी कम ज़मीन ही क्यों न हो, अच्छी दिलवायें । उसके अर्जी रखे दो साल बीत गये किन्तु सरकार का फैसला अब तक नहीं हुआ । वह सरकार की कार्रवाई से ऊब जाता है और आज सीधे कार्यालय में घुस पड़ता है कि काम करके ही वापस जाऊँगा । वह कहता है कि कर्मचारियों ने उसका नाम भी बदल डाला अब वह ‘बारह सौ छब्बीस बटा सात’ है क्योंकि वही उसकी फाइल का नंबर है । धीरे-धीरे सबका ध्यान उस पर जाने लगता है और चरपासी उसे बाहर निकालने की कोशिश करता है । इतने में वह अचानक सरकारी कर्मचारियों को ‘कुत्ता …. साला’ कहते हुए गाली देने लगता है।

AP Inter 1st Year Hindi Study Material Non-Detailed Chapter 3 परमात्मा का कुत्ता

वह इसका विवरण भी प्रस्तुत करता है कि सरकारी कर्मचारी सब के सब कुत्ते हैं जो आम लोगों की हड्डियाँ चूसते हैं और सरकार की तरफ से भौंकते हैं । पर वह तो परमात्मा का कुत्ता है जो परमात्मा की तरफ से भौंकता है । परमात्मा का कर्तव्य है इन्साफ़ (न्याय) की रक्षा करना । अतः वह आज भौंककर इन सरकारी कुत्तों के कान फाड़ देगा । यह शोर-शराबा सुनकर कुछ सरकारी बाबू बाहर आते हैं और उसे शांत करने की कोशिश करते हैं । एक बाबू कहता है कि उसका काम ‘तकरीबन’ (लगभग) हो गया । पर अधेड़ व्यक्ति मानता नहीं और कहता है कि यदि आज उसका काम पूरा नहीं हुआ तो वह नंगा होकर कमीशनर साहब के पास जाएगा ।

धमकी के तौर पर वह अपनी कमीज़ भी उतार देता है जिससे वहाँ के सब कर्मचारी डर जाते हैं। कमीशनर साहब बाहर आते हैं और उसे लेकर कार्यालय के अपने कमरे में जाते हैं । आधे घण्टे में अधेड़ व्यक्ति का काम हो जाता है । अधेड़ आदमी विजयगर्व से बेताज बादशाह की तरह अकड़कर बाहर आता है । वह बाहर इंतजार करते लोगों से कहता है कि इस तरह चूहों की तरह रहने से काम नहीं बनेगा, जागो-भौंको और इनके कान फाड़ दो’ । अधेड़ आदमी के व्यवहार से स्पष्ट होता है कि भद्र व्यवहार से सरकार ही नींद नहीं खुलेगी, बेहयाई से ही सरकारी दफ्तरों में काम होता है।

इस कहानी में समाज की वास्तविक परिस्थितियों का चित्रण किया गया । कहानी की पृष्ठभूमि सरकारी कार्यालय है । ‘कुत्ता एवं भौंकना’ मात्र प्रतीक हैं । इन दोनों शब्दों के लिए ‘जागरूक’ तथा ‘सचेत कार्यवाही’ के अर्थ लेने चाहिए । मोहन राकेश इस कहानी के द्वारा बताते हैं कि जनता जब सचेत बनेगी तभी भ्रष्टाचारों का नाश होगा । दुःख की बात यह है कि आज भी सरकारी कार्यालयों की कार्यवाही में इस कहानी से भिन्न आचरण दिखाई नहीं पड़ता ।

परिचय

परिचयः श्री मोहन राकेश का जन्म पंजाब के अमृतसर में ई. 1925 में हुआ था । इसकी शिक्षा – दीक्षा अमृतसर में ही हुई । कुछ समय तक ‘ प्राध्यापक का काम किया । सन् 1960-62 में ‘सारिका’ का संपादन किया । ‘लाहरों का राजहंस’, संस्कृत के प्रसिद्ध बौद्ध कवि अश्वघोष विरचित ‘सौंदरनंद’ पर आधारित नाटक है । ‘आधे अधूरे’, ‘अंधेरे बंद कमरे’, ‘पैर तले जमीन’ आदि इनके अन्य प्रमुख नाटक है । ‘नये बादल’, ‘बारिश’ आदि प्रमुख कहानी है । ‘अंडे के छिलके’ इनका एकांकी संग्रह है। सन् 1972 में इनकी देहावसान हो गया ।

कहानी का सारांश

‘परमात्मा का कुत्ता’ मोहन राकेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। इसमें आप सरकारी दफ्तरों में व्याप्त लालफीता-शाही, भ्रष्टाचार तथा उदासीनता का सजीव चित्रण करते हैं।

कहानी के आरंभ में एक सरकारी दफ्तर के परिसर का चित्रण किया गया । वहाँ कई लोग अपनी फाइलों का काम पूरा होने की आशा रखकर इंतजार कर रहे होते हैं । उनमें बाल-बच्चे, बूढ़े, निस्सहाय बहुत होते हैं, किन्तु वहाँ के कर्मचारियों पर इनकी स्थितिगतियों का कोई प्रभाव नहीं रहता । एक बूढ़ी अपने मरे हुए बच्चे को मिली ज़मीन के बारे में पूछती है किन्तु उसका जवाब देनेवाला कोई नहीं है। सभी कर्मचारी अपने में मस्त और इन लोगों के प्रति उदासीन रहते हैं । कुछ सरकारी बाबू कविता गजलें आदि सुनने-सुनाने में मग्न हैं तो कुछ कर्मचारी मजे में बातें करते रहते हैं। कई लोग चाय पीते रहते हैं । फाइलों का काम उन्हीं का जल्दी होता है जो इन लोगों को कुछ पैसे घूस के रूप में देते हों । इन सबके ऊपर अधिकारी जो कमीशनर साहब हैं वे भी कुछ दस्तख़त करके मैगजीन वगैरा पढ़ने में व्यस्त रहते ।

AP Inter 1st Year Hindi Study Material Non-Detailed Chapter 3 परमात्मा का कुत्ता

ऐसे में एक अधेड़ आदमी अपनी भाभी और बच्चों के साथ दफ़्तर के परिसर में प्रवेश करता है । आते ही वह अपनी पगड़ी जमीन पर बिछाकर परिवार सहित बैठ जाता है और ऊँची आवाज से कहने लगता है कि सरकार इतने सालों से उसकी अर्जी पर फैसला नहीं ले सकी । वह पाकिस्तान से आया हुआ भारतीय है और उसके कुछ रिश्तेदार अभी पाकिस्तान में ही हैं। उसके पुनरावास की समस्या हल नहीं हुई । सात वर्ष घूमने के बाद ज़मीन के रूप में नालायक गड्ढा मिला । उसने अर्जी रखी कि उस गड्ढ़े के बदले थोड़ी कम ज़मीन ही क्यों न हो, अच्छी दिलवायें । उसके अर्जी रखे दो साल बीत गये किन्तु सरकार का फैसला अब तक नहीं हुआ ।

वह सरकार की कार्रवाई से ऊब जाता है और आज सीधे कार्यालय में घुस पड़ता है कि काम करके ही वापस जाऊँगा । वह कहता है कि कर्मचारियों ने उसका नाम भी बदल डाला अब वह ‘बारह सौ छब्बीस बटा सात’ है क्योंकि वही उसकी फाइल का नंबर है । धीरे-धीरे सबका ध्यान उस पर जाने लगता है और चरपासी उसे बाहर निकालने की कोशिश करता है। इतने में वह अचानक सरकारी कर्मचारियों को ‘कुत्ता …. साला’ कहते हुए गाली देने लगता है।

वह इसका विवरण भी प्रस्तुत करता है कि सरकारी कर्मचारी सब के सब कुत्ते हैं जो आम लोगों की हड्डियाँ चूसते हैं और सरकार की तरफ से भौंकते हैं । पर वह तो परमात्मा का कुत्ता है जो परमात्मा की तरफ से भौंकता है । परमात्मा का कर्तव्य है इन्साफ़ (न्याय) की रक्षा करना । अतः वह आज भौंककर इन सरकारी कुत्तों के कान फाड़ देगा । यह शोर-शराबा सुनकर कुछ सरकारी बाबू बाहर आते हैं और उसे शांत करने की कोशिश करते हैं। एक बाबू कहता है कि उसका काम ‘तकरीबन’ (लगभग) हो गया। पर अधेड़ व्यक्ति मानता नहीं और कहता है कि यदि आज उसका काम पूरा नहीं हुआ तो वह नंगा होकर कमीशनर साहब के पास जाएगा ।

धमकी के तौर पर वह अपनी कमीज़ भी उतार देता है जिससे वहाँ के सब कर्मचारी डर जाते हैं। कमीशनर साहब बाहर आते हैं और उसे लेकर कार्यालय के अपने कमरे में जाते हैं । आधे घण्टे में अधेड़ व्यक्ति का काम हो जाता है । अधेड़ आदमी विजयगर्व से बेताज बादशाह की तरह अकड़कर (రొమ్ము విరుచుకుని ) बाहर आता है । वह बाहर इंतजार करते लोगों से कहता है कि ‘इस तरह चूहों की तरह रहने से काम नहीं बनेगा, जागो-भौंको और इनके कान फाड़ दो’ । अधेड़ आदमी के व्यवहार से स्पष्ट होता है कि भद्र व्यवहार से सरकार ही नींद नहीं खुलेगी, बेहयाई (నిస్సిగ్గుగా వ్యవహరించుట) से ही सरकारी दफ्तरों में काम होता है ।

इस कहानी में समाज की वास्तविक परिस्थितियों का चित्रण किया गया । कहानी की पृष्ठभूमि सरकारी कार्यालय है । ‘कुत्ता एवं भौंकना’ मात्र प्रतीक हैं । इन दोनों शब्दों के लिए जागरूक’ तथा ‘सचेत कार्यवाही’ के अर्थ लेने चाहिए । मोहन राकेश इस कहानी के द्वारा बताते हैं कि जनता जब सचेत बनेगी तभी भ्रष्टाचारों का नाश होगा ।

दुःख की बात यह है कि आज भी सरकारी कार्यालयों की कार्यवाही में इस कहानी से भिन्न आचरण दिखाई नहीं पड़ता।

కథా సారాంశము

శ్రీ మోహన్ రాకేష్ సామాజిక విషయాలు తన కథలలో రాస్తారు. హాస్య, వ్యంగ్య రచయిత. సామాజిక అసమానతలు మరియు ప్రభుత్వ ఆఫీసులలో జరిగే అకృత్యముల గూర్చి రాశారు. ప్రస్తుత కథ ‘దేవుని కుక్క’ ఒక సామాజిక అంశాన్ని తీసుకుని రాయబడినది. ప్రభుత్వ ఆఫీసులలో జరిగే అలసత్వము గూర్చి ఇందులో చెప్పబడింది.

ఒక మధ్య వయస్సు గల వ్యక్తి చాలా సంవత్సరములు ప్రభుత్వ ఆఫీసుల చుట్టూ తిరిగి కొంత భూమిని సంపాదించాడు, కాని ఆ భూమి పెద్ద గుంట. వ్యవసాయానికి పనికిరాదు. దానికి బదులుగా చిన్నది అయినా ఫర్వాలేదు అని అర్జీ పెట్టుకున్నాడు. కొన్ని గంటల పాటు ఆఫీసు బైట నిలబడి ఆ వ్యక్తి ఓపిక : కెంచింది. సహనం చచ్చిన అతడు చివరికి లోపలికి వెళ్లాడు. తెగించి ఉద్యోగస్తులని తిట్టడం మొదలెట్టాడు.

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చాలా నెలలు అయినా ఆ దరఖాస్తు గూర్చి ఎవరు పట్టించుకోవడము లేదు. గట్టిగా అరవడము మొదలు పెట్టగానే ఆఫీసులోంచి కమీషనర్ బయటకు వచ్చి ॐ 6303 8 . 36 30. 1226/7. Hots (whos. కదిలినాయి. గుమాస్తాలు పిలిచిన తరువాత కాసేపటికి ఆ మధ్య వయస్కుడు చక్రవర్తిలాగా బయటికి వచ్చాడు. కుక్కలలాగా అరవండి అరిస్తేనే పనులు జరుగుతాయి అని బయట వారితో అన్నాడు.

ప్రభుత్వ ఆఫీసులలో పనులు జరగక కలిగే అలసత్వము, లంచగొండితనము మొదలైన వాటిని హాస్యముగ, వ్యంగ్యముగ వర్ణించారు.

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