AP Inter 1st Year Hindi Study Material Chapter 1 भारतीय संस्कृति और नारी

Andhra Pradesh BIEAP AP Inter 1st Year Hindi Study Material गद्य भाग 1st Lesson भारतीय संस्कृति और नारी Textbook Questions and Answers, Summary.

AP Inter 1st Year Hindi Study Material 1st Lesson भारतीय संस्कृति और नारी

निबन्ध का सारांश

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति और नारी पाठ का सारांश लिखिए ?
उत्तर:
कवि परिचय : भारतीय संस्कृति और नारी श्रीमती महादेवी वर्मा जी का निबंध लेखन है । आप छायावाद के प्रमुख लेखकों में एक है।

यामा कविता संग्रह पर आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है । आपको पद्मभूषण की उपधि से भी सम्मानित किया गया है।

भारतीय संस्कृति शब्द का अर्थ अंग्रेजी कलचर शब्द से भिन्न माना है। संस्कृति मानव चेतना का ऐसा विकास-क्रम है, जो उसके अंतरंग तथा बहिरंग को परिष्कृत करके विशेष जीवन पद्धति का सृजन करती है । संस्कृति मानव चेतना की प्राकृतिक ऊर्ध्वगति का प्रकाशन है । पर संस्कृति सभ्यता से भिन्न है । सभ्यता का मानव के बाह्य आचरण से सम्बंध रखती है तो संस्कृति अन्तर्जगत से । मनुष्य में आत्मरक्षा की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है जिसके अस्तित्व से परिवार, परिवार से ग्राम, देश तथा देश से विश्वरक्षा तक फैलकर एक नवीन जीवन मूल्य का निर्माण कर लेता है । वस्तुतः संस्कृति एकाकी व्यक्ति की न होकर समष्टि की होती है ।

भारतीय संस्कृति मे पृथ्वी सभी मानव समूहों की जन्मदात्री है । भारतीय संस्कृति का सौन्दर्यबोध नारी रूप से अविच्छिन सम्बन्ध से जुडा हुआ है । प्राचीन संस्कृति मे नारी के देवी रूप की प्रतिष्ठा मिलेगी । आर्य संस्कृति से पूर्व हमे जो सिन्धु घाटी और मोहनजदड़ो में तत्कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुआ हैं उनमे मातृदेवी की मूर्ति भी है । इस मातृ मूर्ति के अनेक दिय रूप वर्णित हुआ है जैसे भारतमाता के रूप में, राष्ट्रीयता के रूप में, प्रकृति के रूप में, माया के रूप में, शक्ति के रूप में का आदि भारतीय संस्कृति में स्त्री और पुरुष दोनो को समान रूप में महत्व दिया गया है।

AP Inter 1st Year Hindi Study Material Chapter 1 भारतीय संस्कृति और नारी

भारतीय संस्कृति का आदि स्त्रोत वेदकालीन जीवन पद्धति है जो आज भी हमारे जीवन को प्कार प्रभावित करती है । भारतीय संस्कृति भी एक अविच्छिन्न नदि प्रवाह की तरह आगे चलती रहती है । उसका उद्गम जीवन मूल्यों की दृष्टि में उन्नत भी है और भावबोध की दृष्टि से गहरा भी है । वेदकालीन संस्कृति में नारी के दो रूप मिनते है – दिव्य देवी रूप तथा सामाजिक रूप । दिव्य देवी रूप के अन्तर्गत तीन प्रकार आते है । प्रकृति के व्यापक दिव्य रूप जैसे उषा,सूर्य, रात्रि, दूसरे में पृथ्वी, सिन्धु, सरस्वती नदि के रूप और तीसरे प्रकार में अमूर्त भावनों भावनाओं की प्रतीक देवियो – दिति, अदिति, क्षद्धा आदि के रूप आते है । इन प्रतीकों की व्यापकता से आज भी भारतीय संस्कृति स्थित है।

नारी के सामाजिक रूप में स्त्री के साथ पुरूष की भी मान्यता दी गयी, वृद्धारण्यक अनिषद के अनुसार दोनो की स्थिति समान है । वैदिक समाज रचना मे पत्नी सहधर्मचारिणी है जिसके बिना कोई धर्मकांड सम्पन्न नही हो सकता । आपस्तम्ब धर्मसूत्रों के अनुसार पत्नी पारिवारिक सम्पत्ति मे सह अधिकारिणी भी है और पति को अनुपस्थिति में उस सम्पत्ति मे से दान का अधिकार भी रखती है।

संदर्भ सहित व्याख्या

प्रश्न 1.
“भारतीय संस्कृति का सौन्दर्यबोध नारी रूप से अविच्छिन्न सम्बन्ध से जुडा हुआ है।
उत्तर:
प्रसंग :- यह उद्धरण महादेवी वर्मा के द्वारा लिखी गयी “भारतीय संस्कृति और नारी” नामक निबन्ध से लिया गया वे छायावाद से सम्बन्धित प्रमुख साहित्यकार है ।

सन्दर्भ :- इसमें भारतीय संस्कृति और नारी के बीच के अविच्छिन्न सम्बन्ध के प्रति जोर दिया गया है ।

व्याख्या :- भारतीय संस्कृति मे प्राचीनकाल से ही नारी का महत्वपूर्ण स्थान है । भारतीय संस्कृति का सौन्दर्य बोध नारी के रूप से अविच्छिन्न सम्बन्ध से जुडा हुआ है । नारी को देवी, माता जैसे रूपों मे दर्शाया गया है जो प्राचीन आर्य काल से पहले ही मातृसत्ता से जुडा हुआ है ।

विशेषताएँ :

  1. भारतीय संस्कृति मे नारी की महानता के बारे में स्पष्ट किया गया है।
  2. उनकी भाषा खडीबोली है ।

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प्रश्न 2.
ब्रह्मा ने एकाकी न होकर अपने आपको दो मे विभक्त कर लिया जिसके दक्षिण अंश को पुरुष तथा वाम को नारी की संज्ञा दी गई।
उत्तर:
प्रसंग :- यह उद्धरण महादेवी वर्मा के द्वारा लिखी गयी “भारतीय संस्कृति और नारी” नामक निबन्ध से लिया गया वे छायावाद से सम्बन्धित प्रमुख साहित्यकार है ।

सन्दर्भ :- सृष्टि में स्त्री और पुरुष की समानता के बारे में विवरण दिया गया है।

व्याख्या :- सृष्टि मे पुरुष तथा नारी की उत्पत्ति का एक ही केन्द्र है। वृहदारण्यक उपनिषद मे कहा गया है कि ब्रह्मा ने अपने आप को दो भागों में विभक्त कर लिया । अपने शरीर को दक्षिण अंश को पुरुष तथा वाम अंश को नारी की संज्ञा दी गयी । इसलिए दोनों की स्थिति संमान कर दी । इसीकारण शिव को अर्द्ध नारीश्वर रूप कहा गया है।

विशेषताएँ :

  1. संस्कृति के विभिन्न रूपों पर ध्यान दिया गया है ।
  2. उनकी भाषा सरल खडी बोली है ।

एक शब्द में उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति और नारी के निबंधकार कौन है ?
उत्तर:
श्रीमति महदेवी वर्मा ।

प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा को किस रचना पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ।
उत्तर:
यामा कविता संग्रह पर ।

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प्रश्न 3.
भारतीय संस्कृति में किसको पूजनीय स्थान दिया गया ?
उत्तर:
नारी को ।

प्रश्न 4.
भारतीय संस्कृति में किसे सहधर्मचारिणी माना जाता है ?
उत्तर:
पत्नी को ।

प्रश्न 5.
भारतीय संस्कृति में स्त्री पुरुष को कैसा स्थान दिया गया ?
उत्तर:
समान स्थान । समा अधिकार

निबन्धकार का परिचय

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फरूखाबाद जिले में हुआ । वे छायावाद के चार प्रमुख आधार स्तम्भो मे एक है । नीहार, रश्मि, सन्ध्यागीत, दीपशिखा उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं । थामा कविता संग्रह के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला । गद्य कृतियों में स्मृति की रेखाएँ, अतीत के चलचित्र, पथ के साथ, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध प्रमुख हैं।

इस निबंध में संस्कृति की परिभाषा, कलचर से इसका संबंध, संस्कृति और अभ्यता के बीच अन्तः सम्बन्ध भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत मानवीय चेतना और नारी के परिवर्तित रूपों पर चित्रण किया गया है उनकी भाषा सरल खडीबोली है।

కవయిత్రి పరిచయము : మహాదేవివర్మ ఉత్తరప్రదేశ్ కు చెందిన ఫరూఖాబాద్ జిల్లాలో 26 మార్చి 1907 న జన్మించారు. ఛాయావాదీ యుగ ప్రవర్తకులలో ఈమె ఒకరు. నీహార్, రశ్మి, సంధ్యాగీత్, దీపశిఖ ఈమె ముఖ్య రచనలు. ‘యామా’ కవితల సంపుటికి ‘జ్ఞానపీఠ పురస్కారము లభించింది. ప్రస్తుత వ్యాసములో సంస్కృతి అంటే ఏమిటి ? ‘కల్చర్’తో సంస్కృతికి గల సంబంధము, భారతీయ సంస్కృతిలో మానవీయ చేతన, స్త్రీ యొక్క విభిన్న రూపాల గురించి వివరించబడినది.

సారాంశము

భారతీయ సంస్కృతి, ఇంగ్లీషు ‘కల్చర్’ శబ్దానికి ఎంతో భిన్నత్వం కనిపిస్తుంది. సంస్కృతి అనగా మానవీయ చైతన్యం యొక్క వికాసక్రమము, జీవన విధానాల యొక్క బాహ్య, ఆంతరంగిక ఆచరణలకు సంబంధించినది. సంస్కృతికి సభ్యతకు కూడా భేదము మనకు కనిపిస్తుంది. సభ్యత మనిషి యొక్క బాహ్య ఆచరణకు సంబంధించినది అయితే సంస్కృతి ఆంతరిక వ్యవస్థకు సంబంధించినది. మనిషిలో ఆత్మరక్షణ ప్రవృత్తి కనిపిస్తూ వుంటుంది. దీని వలన కుటుంబం, గ్రామము, దేశముతోపాటు ప్రపంచ రక్షణ అన్ని కలిసి క్రొత్త జీవన విలువలను ఏర్పరుస్తాయి.

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సంస్కృతి కేవలం ఒక వ్యక్తికి సంబంధించినది కాదు. సమిష్టికి సంబంధించినది. మన భారతీయ సంస్కృతిలో భూతలము మానవులందరికీ జన్మభూమి. అంతేకాక భారతీయ సంస్కృతికి, స్త్రీకి విడదీయరాని సంబంధం వుంది. ప్రాచీన సంస్కృతిలో స్త్రీని దేవతగా పూజించారు. ఆర్య సంస్కృతి కన్నా ముందు సింధులోయ,మొహంజ దారో ప్రాంత సభ్యతల యొక్క అవశేషాలను పరిశీలిస్తే, స్త్రీ దేవతామూర్తులు మనకు కన్పిస్తాయి. ఈ మాతృమూర్తి భారతమాతగా, దేశమాతగా, ప్రకృతి రూపంలో, మాయా, శక్తుల రూపంలో దర్శించవచ్చు. ఈ భారతీయ సంస్కృతిలో స్త్రీ, పురుషులకు సమాన మైన గౌరవం ఇవ్వబడింది.

వేదకాలం నాటి జీవన పద్దతులు భారతీయ సంస్కృతికి మూలము. దీనివలన నేటి జీవన విధానాలు ప్రభావితమవుతున్నాయి. భారతీయ సంస్కృతి ప్రవహిస్తున్న నదీ ప్రవాహము లాంటిది. దీని మూలము జీవన విలువల దృష్ట్యా ఉన్నతమైనది. చాలా లోతైనది. ఈ వేదకాలీన సంస్కృతిలో స్త్రీ దేవతా స్వరూపము, సామాజిక రూపము రెండు రూపాలుగా భావించబడినది. దేవతా స్వరూపములో 3 రకాలు. ప్రకృతి సంబంధిత స్వరూపములు – ఉష , సూర్యుడు, రాత్రి, రెండో రూపంలో పృధ్వీ, సింధు, సరస్వతీ నదులు, మూడవ రూపంలో దితి, అదితి, శ్రద్ధ వంటి రూపములుగా భావించబడినాయి. వీటి యొక్క రూపాలలోనే భారతీయ సంస్కృతి నేటికీ సురక్షితంగా వుంది.

సామాజిక పరంగా స్త్రీతో పాటు పురుషునికి కూడా స్థానం కల్పించబడినది. బృహదారణ్యక ఉపనిషత్తులలో వీరిరువురికీ సమానస్థానం కల్పించబడింది. వైదిక నియమాలననుసరించి స్త్రీని సహధర్మచారిణిగాను, ఆమె లేకుండా ఎటువంటి ధర్మ కార్యాలు నిర్వహించబడవని చెప్పబడినది. ధార్మిక సూత్రాలననుసరించి స్త్రీ సహధర్మచారిణేకాక భర్త లేని పరిస్థితులలో సంపత్తికి కూడా భాగస్వామిగా చెప్పబడినది.

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