AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण

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आत्मत्राण AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers

प्रश्न – अभ्यास

क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहे हैं ?
కవి ఎవరితో, ఏమని ప్రార్థిస్తున్నారు ?
उत्तर :
कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि वह उसे जीवन की विपदाओं से दूर न रखने की शक्ति दे कि मुश्किलों पर विजय पा सके। कवि ईश्वर से किसी की सहायता नहीं चाहता है। वह अपने बल पौरुष को ही अपना सहायक बनाने की शक्ति माँगता है। वह सुख दुःख में भी ईश्वर को न भूले, उस पर विश्वास अटल रहे। वह वंचना, निराशा और दुःखों के बीच परमात्मा की कृपा शक्ति और सत्ता पर रखी, अपनी आस्था पर संदेह न कर सके। आत्मविश्वास का भाव मुझमें जागृत करें। मुझे भय रहित बनाएँ।

(కవి కరుణామయుడైన ఈశ్వరున్ని ప్రార్థిస్తున్నారు. భగవంతుడు జీవితంలోని కష్టాలకు దూరంగా ఉండే శక్తిని కాదు, కష్టాల మీద విజయాన్ని సాధించే శక్తిని ఇవ్వాలి. కవి భగవంతునితో ఎవరి సహాయంను కోరుకోవట్లేదు. అతను తన బలం, పౌరుషం యొక్క సహాయంతో మానసిక శక్తిని పొందాలి అని కోరుకుంటున్నారు.

కష్టసుఖాలలో కూడా భగవంతుణ్ణి మర్చిపోకుండా. ఆయన మీద నమ్మకాన్ని, విశ్వాసంను స్థిరంగా ఉంచాలని కోరుకుంటున్నారు. అతను వంచన, నిరాశ మరియు దు:ఖాల మధ్యలో పరమాత్ముని యొక్క కృపాశక్తి మరియు బలం మీద ఉంచిన నమ్మకం మీద సందేహం కల్గకుండా ఉండాలి. ఆత్మవిశ్వాసం నాలో జాగృతమవ్వాలి. ఏ స్థితిలోనైనా నేను భయం లేకుండా, నిర్భయంగా ఉండేలా తయారు చేయండి.)

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प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
‘ఆపదల నుండి నన్ను కాపాడు, ఇది నా ప్రార్థన కాదు’ – కవి ఈ పంక్తి ద్వారా ఏమి చెప్పాలని కోరుకుంటున్నారు ?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि हे ईश्वर ! मैं यह नहीं कहता कि मुझ पर कोई विपदा ना आए और मेरे जीवन में कोई दुःख न आए। मैं चाहता हूँ कि मैं मुसीबत तथा दुःखों से नहीं घबराऊँ। मुझे आत्मविश्वास के साथ निर्भीक होकर हर परिस्थिति का सामना करने की शक्ति दीजिए।

కవి చెబుతున్నారు – హే భగవాన్ ! నేను నా మీద ఎలాంటి ఆపద రాకూడదని మరియు నా జీవితంలో ఎలాంటి బాధలు రాకూడదని కోరుకోవట్లేదు. నేను కష్టాలు మరియు బాధల వల్ల భయపడకూడదు. నాలో ఆత్మవిశ్వాసంతో పాటు భయం లేకుండా ప్రతి పరిస్థితిని ఎదుర్కొనే శక్తిని ఇవ్వమని కోరుకుంటున్నాను.

प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करते हैं?.
కవి తనకు సహాయం చేసేవాళ్ళు లభించనప్పటికీ ఏమని ప్రార్థిస్తారు ?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में कोई सहायक न मिलने पर भी मेरा आत्मबल कमज़ोर न पडे । जीवन में आनेवाली कठिनाइयों का डटकर निर्भयता से सामना करने की शक्ति प्रदान करें । उसका बल, पौरुष न हिले, वह कोई भी कष्ट धैर्य से सह ले।

కవి ఆపద పరిస్థితుల్లో ఎవరి సహాయం లభించనప్పటికీ నా ఆత్మబలం, ధైర్యం తగ్గకూడదు. జీవితంలో వచ్చే సమస్యలను స్థిరంగా, నిర్భయంతో ఎదుర్కొనే శక్తిని ప్రసాదించండి. తన బలం, పౌరుషం తగ్గకూడదు. ఏ కష్టాన్ని అయినా ధైర్యంతో సహించేటట్టు శక్తిని ఇవ్వమని ప్రార్థిస్తున్నాడు.

प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अनुनय करते हैं ?
చివరిలో కవి ఏమని ప్రార్థిస్తున్నాడు ?
उत्तर :
अंत में कवि ईश्वर से यह अनुनय करते हैं कि चाहे सब लोग उसे धोखा देने पर भी सब दुःख उसे घेर लेने पर भी ईश्वर के प्रति उनकी आस्था कम न होना है। उसके मन में ईश्वर के प्रति संदेह उत्पन्न न होना है। दुःख रूपी रात्रि में जब समस्त विश्व उसे अकेला छोड देने पर, अवहेल करने पर भी उसे अपने प्रभु पर तनिक भी संदेह न हो। उसकी प्रभु पर आस्था बनी रहे !

చివరిలో కవి భగవంతుని ఈ విధంగా ప్రార్థిస్తున్నాడు – అందరూ అతన్ని మోసం చేసినప్పటికీ, అన్ని కష్టాలు అతన్ని చుట్టుముట్టినప్పటికీ భగవంతుని ఎడల అతని నమ్మకం తగ్గకూడదు. అతని మనస్సులో భగవంతుని ఎడల సందేహం ఉత్పన్నమవ్వకూడదు. దుఃఖాల రాత్రిలో సమస్త ప్రపంచం అతన్ని ఒంటరిగా వదిలి వేసినప్పటికీ, ఎగతాళి చేసినప్పటికీ అతనికి తన భగవంతుని మీద కొద్దిగా కూడా సందేహం రాకూడదు. తన ప్రభువు మీద నమ్మకం అలాగే స్థిరంగా ఉండాలి.

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प्रश्न 5.
‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए ।
‘ఆత్మత్రాణ్’ అనే శీర్షిక ఈ కవితకు ఏ విధంగా సార్థకత తెచ్చిందో స్పష్టం చేయండి.
उत्तर :
आत्मत्राण का अर्थ अपने आंतरिक भय से बाहर आना । कवि विपदाओं, दुःखों तथा पीडा से मुक्ति के लिए ईश्वर की प्रार्थना नहीं करता है। वह ईश्वर से सहायता नहीं माँगता है। वह अपने आंतरिक भय छुटकारा पाने के लिए वह अपने अंदर साहस, निर्भयता तथा संघर्षशीलता की कामना करता है । कवि का मानना है कि इन गुणों के माध्यम से वह विपदाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। वह स्वयं को समर्थ बनाना चाहता है। यह शीर्षक उपयुक्त

“ఆత్మత్రాణ్” అనగా మన లోపల భయంను పోగొట్టుకొనుట. కవి కష్టాలలో, బాధలలో, సమస్యల నుండి విముక్తి కొరకు భగవంతున్ని ప్రార్థించుట లేదు. అతను భగవంతున్ని ఏ సహాయాన్ని అడుగుట లేదు. అతను తన లోపల ఉన్న భయం నుండి విముక్తి పొందటం కొరకు, అతను తన మనస్సులో సాహసం, ధైర్యం మరియు పోరాడే శక్తిని పొందాలనుకుంటున్నాడు. ఈ గుణాల ద్వారా అతను ఆపదల మీద విజయాన్ని సాధించాలి అనుకుంటున్నారు. అతను స్వయంగా తనను తాను సమర్థుడుగా తయారవ్వాలని కోరుకుంటున్నాడు. కావున ఈ శీర్షిక సరియైనది.

प्रश्न 6.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
తమ కోరికలు నెరవేరడం కొరకు మీరు ప్రార్థన కాకుండా ఏమేమి ప్రయత్నాలు చేస్తారో రాయండి.
उत्तर :
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम प्रार्थना के अतिरिक्त परिश्रम कर सकते हैं। दूसरों के सलाह और सहयोग भी ले सकते हैं। जब इच्छा पूरी न हो जाने पर न घबराकर धैर्य और सहनशीलता से काम करते हैं। सफलता प्राप्त होने तक धैर्य धारण रखते हैं।

మన కోరికలు తీర్చుకొనడానికి మనం ప్రార్థన కాకుండా బాగా కష్టపడతాము. ఇతరుల సలహా మరియు సహకారం కూడా తీసుకుంటాము. ఎప్పుడైనా కోరిక నెరవేరకపోతే భయపడకుండా ధైర్యం మరియు సహనంతో మళ్ళీ ప్రయత్నిస్తాము. విజయం పొందే వరకు ధైర్యంగా ప్రయత్నిస్తాము.

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प्रश्न 7.
क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे ?
కవి యొక్క ప్రార్థన ఇతర ప్రార్ధనల కన్నా వేరుగా అనిపిస్తుందా ఏమిటి ? నిజమైతే ఎలా ?
उत्तर :
हाँ, कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है। अधिक लोग अपने भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए और दुख से बचाने के लिए प्रार्थना करते हैं। मगर कवि ने हर परिस्थिति को निर्भीकता से सामना करने का साहस माँगा है। आत्मविश्वास के साथ विषम परिस्थितियों पर विजय पाना चाहता है। इसलिए यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थनाओं से भिन्न है।

అవును, కవి యొక్క ఈ ప్రార్థన మిగతా ప్రార్థనల కన్నా వేరుగా ఉంది. ఎక్కువమంది సాధారణంగా తమ భౌతిక సుఖాల ప్రాప్తి కొరకు, కష్టాల నుండి కాపాడటం కొరకు ప్రార్థన చేస్తారు. కానీ కవి ప్రతి పరిస్థితిని ధైర్యంతో ఎదుర్కొనే సాహసంను అడిగారు. ఆత్మ విశ్వాసంతో ఆపద పరిస్థితులలో విజయంను పొందాలని కోరుకున్నారు. కావున ఈ ప్రార్థన మిగతా ప్రార్ధనల కన్నా భిన్నంగా ఉంది.

ख) निम्न लिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए ।

प्रश्न 1.
नत शिर होकर सुख के दिन में
तब मुख पहचान छिन छिन में।
उत्तर :
इन पंक्तियों का भाव है कि कवि सुख के समय, सुख के दिनों में भी परमात्मा को हर पल श्रद्धा भाव से याद करना चाहता है तथा हर पल उसके स्वरूप को पहचानना चाहता है। अर्थात् कवि दुख – सुख दोनों में ही समय हर क्षण प्रभु को याद करते रहना चाहता है तथा उसके स्वरूप की कृपा को पाना चाहता है।

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प्रश्न 2.
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय ॥
उत्तर :
कवि चाहता है कि यदि उसे जीवन भर लाभ न मिले, यदि वह सफलता से वंचित रहे, यदि उसे हर कद्रम पर हानि पहुँचती रहे, तो भी वह मन में निराशा और विनाश के नकारात्मक भावों को स्थान न दें। उसके मन में ईश्वर के प्रति आस्था आशा और विश्वास बनी रहे। कवि ईश्वर से निवेदन करता है कि हानि – लाभ को जीवन की अनिवार्य अंग मानते हुए, वे निराशा न होकर निरंतर संघर्षशील रहे।

प्रश्न 3.
तरने की हो शक्ति अनामय ।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही ॥
उत्तर :
कवि इस संसार रूपी भवसागर, माया के दुष्कर सागर को स्वयं ही पार करना चाहता है। वह ईश्वर से अपने दायित्वों रूपी बोझ को हल्का नहीं करना चाहता तथा वह प्रभु से सांत्वना रूपी इनाम को भी पाने का इच्छुक नहीं है। वह तो ईश्वर से संसाररूपी सागर की सभी बाधाओं को पार करने की अपार शक्ति व जीवन में संघर्ष करने का साहस चाहता है।

योग्यता – विस्तार

प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने गीतों की रचना की है। उनके गीत संग्रह में से दो गीत छाँटिए और कक्षा में कविता पाठ कीजिए ।
उत्तर :
1) अन्तर मम विकसित करो
अन्तरयामी है।
निर्मल करो, उज्जल करो कर दो सुंदर हे !
जागृत करो, उद्दत करो
कर दो निर्भय हे !
मंगल करो, निरलस, निःसंशय कर दो हे !
अंतर मम विकसित करो
अन्तरयामी हे !
युक्त करो सबसे मुझको हे
मुक्त करो सब बंधन !
संचार करो सारे कर्मों में
शांतिमय सब छंद !
चरण – कमल में मेरा चित्त निस्पंदित कर हे !
अन्तर मम ;विकसित करो
अन्तर – यामी हे !

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2) मेरा शीश झुका दो अपनी
चरण धूलि के तल में
प्रभु ! डुबा दो अहंकार मम
मेरे अश्रुजल में !
अपने को गौरव देने को
अपमानित करता अपने को
अपने आपमें घूम – घूम कर
मरता हूँ क्षण – क्षण मैं।
प्रभु ! डुबा दो अहंकार मम
मेरे अश्रुजल में।

प्रश्न 2.
अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए। जैसे –
क) महादेवी वर्मा – क्या पूजा क्या अर्चना रे !
उत्तर :
उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे!
मेरी स्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे !
पद रज को धोने उमड़े आते लोचन में जल कण रे !
अक्षत पुलकित रोम मधुर मेरी पीडा का चंदन रे !
स्नेह भरा जलता है झिलमिल मेरा यह दीपक मन रे !
मेरे दृग के तारक में नब उत्पल का उन्मीलन रे !
धूप बने उड़ते जाते हैं प्रतिपल मेरे स्पंदन रे !
प्रिय – प्रिय जपते अधर ताल देता पलकों का नर्तन रे !

कविता का उद्देश्य : परमात्मा की महत्ता व्यक्त की गई है। उसे प्रेम से पाया जाता है। बाह्य उपचारों की आवश्यकता नहीं है। तन – मन – धन से उसके प्रति समर्पित होना ही पूजा – अर्चना है।

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ख) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला – दलित जन पर करो करुणा।
उत्तर :
दलित जन पर करो करुणा।
दीनता पर उतर आये।
प्रभु, तुम्हरी शक्ति अरुणा।।
हरे तन – मन प्रीति पावन,
मधुर हो मुख मनोभावन,
सहज चितवन पर तरंगित
हो तुम्हारी किरण तरुणा
देख वैभव न हो नंत सिर,
समुद्धत मन सदा हो स्थिर,
पारकर जीवन निरंतर
रहे बहती भक्ति बरुणा ॥

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ग) इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पर हम से
भूल कर भी कोई भूल हो न
इस प्रार्थना को ढूँढ़कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है? क्या आपको दोनों में कोई अंतर भी प्रतीत होता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
पक्ष : दोनों प्रार्थनाओं में समानता यह है कि दोनों प्रार्थनाओं में मन को विश्वास देने की बात कही गई। भूलकर भी कोई भूल न करने की प्रार्थना कर रहे हैं। अंधेरे में रोशनी देने के लिए मन कमज़ोर होने पर विश्वास देने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
विपक्ष : कुछ अंतर है कि दुश्मनी से सज़ा पाने और मौत भी खुशी से सहलेने की प्रार्थना भी कर रहे हैं।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरब प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र कर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर :
गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था। वे कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार ओर दार्शनिक थे। उनकी रचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नोबेल पुरस्कार पानेवालों में वे एशिया के प्रथम व्यक्ति थे।

वे अपने माता – पिता के तेरहवीं संतान थे। बचपन में उन्हें प्यार से ‘रबी’ बुलाया जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी। उन्होंने एक हजार कविताएँ, आठ उपन्यास, आठ कहानी संग्रह और विभिन्न विषयों पर लेख लिखे थे। वे संगीतप्रेमी थे। दो हजार से भी अधिक गीत लिखे थे। उनके लिखे दो गीत भारत और बंग्लादेश के राष्ट्रगान हैं। वे भारत के ही नहीं पूरे विश्व के साहित्य, कला और संगीत के महान व्यक्ति हैं।

ठाकुर ने ग्रामीण पश्चिम बंगाल में एक प्रायोगिक स्कूल की स्थापना की। उसे शांति निकेतन कहते हैं। अब ‘विश्व भारती’ के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी नाइटहुड का त्याग कर दिया था। इसके अलावा 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड का विरोध कर अपनी ‘सर’ उपाधि त्याग दिया था। वे बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। साहित्य, कला, संगीत और राजनीति में उनका योगदान है।

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प्रश्न 2.
रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ को पुर्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर :
अध्यापक के निर्देश के अनुसार पुरस्तकालय से गीतांजलि लेकर छात्र पढेंगे।

प्रश्न 3.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की र्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर :
रवींद्रनाथ ठाकुर ने कोलकत्ता के निकट शांति निकेतन नामक एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। यह संस्थान एक नवाचारी शैक्षिक प्रतिष्ठान था जो शिक्षा को एक नए दृष्टिकोण से देखता था और छात्रों को विभिन्न कलाओं ओर विज्ञान में शिक्षा देने का प्रयास किया। इसे ‘रवींद्र संगीत’ कहा जाता है । क्योंकि इसमें गीत, संगीत, कला और साहित्य के प्रति एक विशेष प्रेम और समर्पण था, जिससे छात्रों का सामाजिक और मानवीय विकास होता था।

इस संस्थान में रवींद्रनाथ टाकुर ने एक नई शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया। जिसमें छात्रों को अपने आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए स्वतंत्रता और स्वयंसेवा का महत्त्व दिया गया। इसके माध्यम से वह छात्रों को साहित्य, संगीत और शिक्षा के विभिन्न पहलुओं में प्रेरित करते थे और इसे रवींद्र संगीत कहकर पुकारा गया।

प्रश्न 4.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गाया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सी.डी. लेकर सुनिए।
उत्तर :
छात्र को स्वयं करना है। अध्यापक के निरीक्षण में छात्र करेंगे।

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पद्यांश- भावार्थ

1. विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भया
दुःख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले ;
हानि उटानी पड़े; जगत् में लाभ अगर बंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय ।।

शब्दार्थ :

विपदा = संकट, కష్టం, difficult
प्रार्थना – विनती = ప్రార్థన, prayer
करुणामय = दूसरों पर दया करनेवाला, భగవంతుడు, the God
विपदा = विपत्ति, मुसीबत, కష్టం, ఆపద, danger
दु:खपात = कष्ट की पीडा, కష్టాల యొక్క బాధ, suffering of hardships, The pain of adversity
व्यथित = कष्ट की पीडा, దు:ఖము, sadness
चित्त = मन, दिल, మనస్సు, the mind
सांत्वना = दिलासा, तसल्ली, ధైర్యం చెప్పుట, giving courage
बल = शक्ति, శక్తి, power
पौरुष = पराक्रम, పరాక్రమం, valour
जगत = विश्व, ప్రపంచం, the world
वंचना = वंचित, మోసo, cheat
मन = हृदय, మనస్సులో, in the mind
क्षय = नाश, నాశనం, destroy
अगर = यदि, ఒకవేళ, if
सहायक = मददगार, సహాయకుడు, helper/assistant

प्रसंग : कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख – दर्द कम न करने को कह रहे हैं। वे उन दुःख दुर्दों को झेलने की शक्ति माँग रहे हैं।

भावार्थ : इन पंक्तियों में कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! दुख और कष्टों से मुझे बचाकर रखो। मैं तुम से ऐसी प्रार्थना नहीं करता हूँ । बल्कि मैं तो सिर्फ़ तुमसे ये चाहता हूँ कि तुम मुझे उन दुःख, तकलीफों को झेलने की शक्ति दो। उन कष्टों से कभी न डरूँ और उनका सामना करूँ।

उस पीडा से दुःखी मेरे मन को होंसला मत दो परंतु मुझमें आत्मविश्वास भर दो कि मैं हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकूँ । कष्टों में कोई सहायता करने वाला भी न मिले तो कोई बात नहीं। परंतु ऐसी रिथति में मेरा पराक्रम कम नहीं होनी चाहिए। मुझे इस संसार में किसी भी चीज़ की हानि और लाभ न मिलने पर या किसी प्रकार का वंचित हो जाने पर भी मेरे मन की शक्ति का कभी नाश न होना चाहिए। मेरा मन हर परिस्थिति में आत्मविश्वास से भरा रहना चाहिए।

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ప్రసంగం : కవి గురు ఠాగూర్ గారు భగవంతునితో తన బాధలను తగ్గించమని ఆడగడం లేదు. ఆయన ఆ కష్టాలను ఎదుర్కొనే శక్తిని అడుగుతున్నారు.

భావం : ఈ పంక్తులలో కవి భగవంతున్ని ఇలా ప్రార్థిస్తున్నారు. హే ప్రభూ ! ఏదైనా సమస్య, కష్టం వచ్చినప్పుడు నన్ను కాపాడు. అని నేను ప్రార్థించుట లేదు. నేను కేవలం నీ నుండి ఆ కష్టాలు, సమస్యలను ఎదుర్కొనే శక్తిని ఇవ్వమని కోరుకుంటున్నాను. ఆ కష్టాలకు భయపడకుండా ఎడుర్కొనే శక్తిని నాకు ఇవ్వు. కష్టాలు, సమస్యలు వచ్చి, బాధ పడినప్పుుడు నా మనస్సుకు ఓదార్పు ఇవ్వద్దు కానీ నాకు ఆత్మస్లైర్యం ఇవ్వు.

నేను ప్రతి కష్టం మీద విజయంను సాధించేటట్టు చెయ్యి కష్టాలలో సహాయం చేసేవారు ఎవరూ లభించకపోయినా పర్వాలేదు. కాని అలాంటి స్థితిలో నాకు ధైర్యం తగ్గకుండా ఉండేట్టు చూడు. నాకు ఈ ప్రపంచంలో ఏ వస్తువు ద్వారా, మనుష్యుల ద్వారా నష్టం వచ్చినా సరే, సుఖాలు లభించకపోయినా, ఎవరు వంచించినా సరే నా మనస్సుకి శక్తి ఎప్పుడూ తగ్గకూడదు. నా మనస్సులో ప్రతి క్షణం ఆత్మవిశ్వాసం నిండి ఉండేట్టు చూడు.

2. मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही
केवल इतना रखना अनुनय –
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन – छिन में।
दुःख रात्रि में करे बंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामयय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय ।।

शब्दार्थ :

त्राण = भय निवारण, बचाव, భయం తగ్గించుట, to stop fear, rescue
अनुदिन = हर दिन, ప్రతిరోజు, every day
तरने = पार करना, దాటుట, to cross
अनामय = रोग रहित, स्वसथ, ఆరోగ్యం, health
भार = पीडा, दुःख, బాధ, suffering
लघु = कम, తక్కువ, less
सही = सचा, నిజమైన, real
अनुनय = विनयपूर्ण निवेदन, ప్రార్ఠన, prayer
निर्भयय = बिना डर के, భయం లేకుండా, without fear
वहन = सामना करना, ఎదుర్కొనుట, to face
नतशिर = सिर झुकाकर, छల వంకుకొని, bow
तव = तेरा, యొక్క yourself
छिन – छिन = क्षण – क्षण, క్షణ-క్షణం, every moment by moment
दुःख रात्रि = दु:ख से भरी रात्रि, దు:ఖాలతో నిండిన రాత్రి, a night full of sorrows painful night
वंचना = धोखा देना, మోసం చేయుట, to cheat
निखिल = संपूर्ण, మొత్తం, whole / total
मही  = धरती, భూమి, the earth
संशय = संदेह, అనుమానం, doubt
करुणामय = भगवान, భగవంతుడు, the God

प्रसंग : कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी परिरिथति में मेरे मन में आपके प्रति संदेह न हो।

भावार्थ : इन पंक्तियों में कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! मेरी आपसे यह प्रार्थना नहीं है कि आप प्रतिदिन मुझे भय से दूर रखें। आप केवल मुझे निरोग और स्वरथ रखें। ताकि में अपनी शक्ति के सहारे भव सागर को पारकर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसल्नी दो।

जीवन में आनेवाली सभी मुसीबतों का मैं डटकर सामना कर सकूँ । मेरे जीवन में सुखों के दिनों का आगमन होना है। हर पल मैं तुम्हारा र्मरण करता रहूँ। एक क्षण के लिए भी तुम्हें विस्मृत न करूँ। दुःख से भरी रातों में भी संपूर्ण सृष्टि से मुझे धोखा मिले तो मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो। हे प्रभु ! करुणामय ! मुझ पर कृपा दृष्टि रखो कि मेरे मन में तुम्हारे प्रति आस्था और विश्वास सदैव बना रहे।

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ప్రసంగం : కవి గురు ఈశ్వరుడుని ఈ విధంగా ప్రార్ధిస్తున్నారు. ఏ పరిస్థితిలోనూ నా మనస్సులో మీ ఎడల సందేహం రాకూడదు.

భావం : ఈ పంక్తులలో కవి ఛగవంతునితో ఈ విధంగా ప్రార్థిస్తున్నారు. హే ప్రభు ! మీరు ప్రతిదినం నన్ను భయం నుండి దూరంగా ఉంచమని ప్రార్థన చేయడం లేదు. మీరు నన్ను రోగాలు లేనటువంటి ఆరోగ్యవంతునిగా ఉంచండి ఆ ఆరోగ్యం సహాయంతో సంసారమనే సముద్రాన్ని దాటగలుగుతాను.

నా కష్టాల భారాన్ని తగ్గించు, నాకు నువ్కు ఓదార్పు ఇవ్షు – అని కోరుకోవట్లేడు. జీవితంలో వచ్చే కష్టాలను నేను ఎదుర్కొనే శక్తిని ఇవ్వు. నా జీవితంలో సుఖ సంతోషాల్లో ప్రతి క్షణం నేను తలవంచుకొని నిన్ను స్మరించగలగాలి. ఒక్క క్షణం కూడా నిన్ను మరవకూడదు. దు:ఖంతో నిండిన రాత్రులలో కూడా, సంపూర్డ ప్రపంచంలో నాకు మోసం లభించినా కూడా నా మనస్సులో మీ ఎడల ఎలాంటి సందేహం రాకూడదు. హే ప్రభు ! నా మీద కృప ఉంచు. నా మనస్సులో నీ మీద విశ్కాసం మరీయు సమ్మకం ఎల్లప్పుడూ ఉండేలా చూడు.

व्याकरणांश (వ్యాకరణాంశాలు)

पर्यायवाची शब्द

  • ईश्वर – प्रभु, भगवान, परमात्मा
  • जीवन – ज़िंदगी, जीविका
  • कमज़ोर – दुर्बल, अशक्त, नाजुक
  • शक्ति – बल, पराक्रम, ताकत, दम
  • दीन – गरीब, रंग, निर्धन
  • प्रार्थना – विनती, अनुरोध, अर्चना, स्तुति
  • मुसीबत – विपदा, परेशानी, तकलीफ, कष्ट
  • इच्छा – कामना, आकांक्षा, चाह, अभिलाषा
  • रात्रि – निशा, रजनी, विभावरी, रात
  • साहस – दृढता, धैर्य, वीरता, निडरता

विलोम शब्द

  • भय × निर्भय
  • इच्छा × अनिच्छा
  • विपत्ति × संपत्ति
  • मिलना × बिछडना
  • गुरु × शिष्य
  • अकेला ×बहुल, सामूहिक
  • बचाना × मारना
  • दृढता × कोमलता
  • आस्था × अनास्था
  • कृतार्थ × कृतघन
  • खुश × नाखुश
  • रात्रि × दिन
  • मुक्ति × बंधन
  • डरपोक x निर्भय, निडर
  • बहुत × कम
  • लाभ × हनि
  • विजय x पराजय
  • दु:ख x सुख

AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण

लिंग

  • गुरु – गुरुआइन
  • तैराक – तैराकी
  • गायक – गायिका
  • शिष्य – शिष्या
  • दर्शक – दर्शिका
  • चित्रकार – चित्रकारनी
  • विद्यार्थी – विद्यार्थिनी
  • पहलवान – पहलवानी
  • शिक्षक – शिक्षिका

वचन

  • सुविधा – सुविधाएँ
  • आस्था – आस्थाएँ
  • कृपा – कृपा
  • वह – वे
  • अनुभूति – अनुभूतियाँ
  • प्रार्थना – प्रार्थनाएँ
  • सुरक्षा – सुरक्षा
  • संस्था – संस्थाएँ
  • रात – रातें
  • परीक्षा – परीक्षाएँ
  • शक्ति – शक्तियाँ
  • इच्छा – इच्छाएँ
  • आशा – आशाएँ
  • मैं – हम
  • कृति – कृतियाँ

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संधि विच्छेद

  • परमात्मा – परम + आत्मा
  • मनोबल – मनः + बल
  • स्वाध्याय – सु + अध्याय
  • गीतांजलि – गीत + अंजलि
  • निष्कामना – निः + कामना
  • विद्यार्थी – विद्या + अर्थी

उपसर्ग

  • प्रतिदिन – प्रति
  • निकेतन – नि
  • अपूर्व – अ
  • सफल स
  • निबंध – नि
  • संपूर्ण – सम्
  • अविकल – अ
  • संस्थान – सम्
  • कमज़ोर – कम
  • विशेष – वि
  • अक्षुण्ण – अ
  • संगीत – सम्
  • विदेश – वि
  • संगीत – सम्
  • सक्षम – स
  • प्रमुख – प्र
  • संग्रह – सम्
  • निबंध – नि

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प्रत्यय

  • सांस्कृतिक- इक
  • शैक्षिक – इक
  • पहलवान – वान
  • आंतरिक – इक
  • सम्मानित- इत
  • पूरबी – ई
  • दर्शक – क
  • समानता – ता
  • भारतीय – ईय
  • तैराक – आक
  • दलित – इत
  • एकत्रित – इत

समास

AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण 1

कवि परिचय – కవి పరిచయం

6 मई, 1861 को बंगाल के एक संपन्न परिवार में जन्मे रवींद्रनाथ टाकुर नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय हैं। इनकी शिक्षा – दीक्षा घर पर ही हुई। छोटी उम्र में ही स्वाध्याय से अनेक विषयों का ज्ञान अर्जित कर लिया। बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए विदेश भेजे गए लेकिन बिना परीक्षा दिए ही लौट आए।

रवींद्रनाथ की रचनाओं में लोक – संस्कृति का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है। प्रकृति से इन्हें गहरा लगाव था। इन्होंने लगभग एक हज़ार कविताएँ और दो हज़ार गीत लिखे हैं। चित्रकला, संगीत और भावनृत्य के प्रति इनके विशेष अनुराग के कारण र्वींद्र संगीत नाम की एक अलग धारा का ही सूत्रपात हो गया।

इन्होंने शांति निकेतन नाम की एक शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्था की सथापना की। यह अपनी तरह का अनूठा संस्थान माना जाता है। अपनी काव्य कृति गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए रवींद्रनाथ ठाकुर की अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं – नैवेद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत, काबुलीवाला और सैकड़ों अन्य कहानियाँ – उपन्यास – गोरा, घरे बाइरे और रीींद्र के निबंध।

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6 మే, 1861 న బెంగాల్లో ఒక సంపన్న పరివారంలో జన్మించిన రవీంద్రనాథ్ ఠాగూర్ నోబెల్ అవార్డును పొందిన మొదటి భారతీయుడు. ఆయన విద్యాభాసం ఇంట్లోనే కొనసాగింది. చిన్న వయస్సులోనే అనేక విషయాల మీద జ్ఞానంను పొందారు. బారిష్టర్ చదవడం కొరకు విదేశాలకు పంపించారు. కానీ పరీక్షలు రాయకుండానే తిరిగి వచ్చేశారు.

రవీంద్రనాథ్ రచనలలో జానపద సంస్కృతి యొక్క స్వరం ముఖ్యంగా కనబడుతుంది. ప్రకృతితో వీరికి లోతైన అనుబంధం ఉంది. ఈయన సుమారు ఒక వెయ్యి కవితలు మరియు రెండు వేల గేయాలు రాశారు. చిత్రకళ, సంగీతం మరియు భావోద్వేగ నృత్యం ఎడల ప్రత్యేక అనురాగం కారణంగా రవీంద్ర సంగీతం అనే పేరుతో విభిన్న సంగీతాన్ని కనిపెట్టారు.

వీరు శాంతి నికేతన్ అనే పేరుతో విద్యాసంస్థ మరియు సాంస్కృతిక సంస్థను స్థాపించారు. ఇది అతని తరపున ప్రత్మేక సంస్థగా (ఇన్స్టిట్యూట్) నమ్ముతారు. ఆయన రాసిన గీతాంజలి అనే కవితా కావ్యానికి నోబెల్ అవార్డుతో సత్కరించారు. రవీంద్రనాథ్ ఠాగూర్ గారి ఇతర కృతులు – నైవేద్య్, పూరబీ, బలాకా, క్షశికా, చిత్ర మరియు సాంధ్య గీత్, కాబూలీవాలా మరియు వందల కొలది ఇతర కథలు, నవలలు – గోరా, ఘరే బాఇరే మరియు రవీంద్ర యొక్క చ్యాసాలు మొదలైనవి.

पाठ प्रवेश – పాఠ్య ప్రవేశం

तैरना चाहने वाले को पानी में कोई उतार तो सकता है, उसके आस – पास भी बना रह सकता है, मगर तैर्ना चाहने वाला जब म्बयं हाथ – पाँव चलाता है तभी तैराक बन पाता है। परीक्षा देने जाने वाला जाते समय बड़ों मे आर्शार्वाद की कामना करता ही है, बड़े आशीर्वाद देते भी हैं, लेकिन परीक्षा तो उसे स्वयं ही देनी होती है। इसी तग्ह जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तब उनका उत्साह तो सभी दर्शक बढाते हैं, इससे उनका मनोबल बढ़ता है, मगर कुश्ती तो उन्हें खुद ही लड़नी पड़ती है।

प्रस्तुन पाट में कविगुरु मानते हैं कि प्रभु में सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ्य है, फिर भी वह यह कतई नहीं चहते कि वही सब कुछ कर दें। कवि कामना करता है कि किसी भी आपद – विपद में, किसी भी द्वंद्व में सफल होने के लिए संघर्ष वह स्वयं करे, प्रभु को कुछ न करना पड़े। फिर आखिर वह अपने प्रभु से चाहते क्या हैं?

रवींद्रनाथ टाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिंदी में अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपूर्व योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा’ को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम है।

AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण

ఈత కొట్టాలి అనుకునేవాడిని నీళ్ళల్లో ఎవరైనా దింపగలరు అతని పక్కను కూడా ఉండగలరు. కానీ ఈదాలి అనుకునేవాడు ఎప్పుడైతే స్షయంగా చేతులు, కాళ్ళు కదిలిస్తాడో అప్షుడు ఈతగాడు అవుతాడు. పరీక్ష రాయడానికి వెళ్ళేవాడు వెళ్ళే సమయంలో పెద్దవాళ్ళ నుండి ఆశీర్వాదం పొందాలని అనుకుంటాడు. పెద్దవాళ్ళు ఆశీర్వదిస్తారు కూడా, కానీ పరీక్ష స్వయంగా అతనే రాయాలి. ఈ విధంగా ఎప్షుడైతే ఇద్దరు మల్లయోధులు కుస్తీ పడుతున్నారో అప్పుడు వారి ఉత్సాహాన్ని (పేక్షకులు పెంచుతారు.

దానితో వారి మనోబలం పెరుగుతుంది. కానీ కుస్తీ అయితే వారే స్పయంగా పోరాడాల్సి వస్తుంది. ప్రస్తుత పాఠంలో కవి గురు నమ్ముతున్నారు. భగవంతునిలో ఏదైనా సంభవించేటట్టు చేసే సామర్ధ్యం ఉంది. అయినప్పటికీ అతను అస్సలు అనుకోడు. అతను అంతా చేసేయాలని కవి ఆశిస్తున్నారు. ఏదైనా ఆపదలో, ఏమైన సంఘర్షణలో సఫలం అవ్వడానికి సంఘర్షణ స్వయంగా అతనే చేయాలి. దేవుడు ఏమి చేయనవసరం లేదు కానీ చివరికి అతను తన ప్రభువులో కోరుకునేది ఏమిటి ?

రవీంద్రనాథ్ ఠాకూర్ యొక్క ప్రస్తుత కవిత బెంగాలీ నుండి హిందీలో అనువాదం చేసిన గౌరవనీయ ఆచార్యులు హజారీ ప్రసాద్ ద్వివేదీ గారు. ద్వివేదీగారు హిందీ సాహిత్వాన్ని అభివృద్ధి చేయడంలో అసాధారణ సహకారం చేశారు. ఈ అనువాదం చెబుతున్నది అనువాదం ఎలా మూల రచన యొక్క ఆత్మని చెక్కుచెదరకుండా ఉంచడంలో సమర్థుడు అయ్యారో అని.

आत्मत्राण Summary in Telugu

1. ఈ పంక్తులలో కవి భగవంతుని ఇలా ప్రార్థిస్తున్నారు. హే ప్రభు ! ఏదైనా సమస్య, కష్టం వచ్చినప్పుడు నన్ను కాపాడు అని నేను ప్రార్థించుట లేదు ఇంకా నేను కేవలం నీ నుండి కోరుకునేది ఏమిటంటే నువ్వు నాకు ఆ కష్టాలు, సమస్యలను ఎదుర్కొనే శక్తిని ఇవ్వు. కప్టాలు సమస్టలు వచ్చి, బాధ పడినప్పుడు నా మనస్సుకు ఓదార్పు ఇవ్వడ్డు కానీ నాకు ఆత్మస్థైర్యం ఇవ్వు.

నేను ప్రతి కష్టం మీద విజయాన్ని సాధించేటట్టు చెయ్యి. కష్టాలలో సహాయం చేసేవారు ఎవరూ లభించకపోయినా పర్వాలేదు. కాని అలాంటి స్థితిలో ధైర్యం తగ్గకుండా ఉండేట్టు చూడు. నాకు ఈ ప్రపంచంలో దేని ద్వారా నష్టం కలిగినా, సుఖాలు లభించకపోయినా, ఎవరు మోసం చేసినా సరే నా మనస్సుకు శక్తి ఎప్పుడూ తగ్గకూడదు. నా మనస్సులో ప్రతిక్షణం ఆత్మ విశ్వాసం నిండి ఉండేట్టు చూడు.

2. ఈ పంక్తులలో కవి భగవంతునితో ఈ విధంగా ప్రార్థిస్తున్నారు. హే ప్రభు ! మీరు ప్రతిదినం నన్ను భయం నుండి దూరంగా ఉంచమని ప్రార్థన చేయడం లేదు. మీరు నన్ను రోగాలు లేనటువంటి ఆరోగ్యవంతునిగా ఉంచండి. ఆ ఆరోగ్య సహాయంతో సంసార సముద్రాన్ని దాటగలుగుతాను. నా కష్టాల భారాన్ని తగ్గించు. నాకు ఓదార్పు ఇవ్వు అని కోరుకోవట్లేదు. జీవితంలో ఎదురయ్యే సమస్యలను ఎదుర్కొనే శక్తిని ఇవ్పు.

AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण

నా జీవితంలో సుఖ, సంతోషాలలోప్రతిక్షణం నేను తలవంచుకొని నిన్ను స్మరించగలగాలి. ఒక్క క్షణం కూడా నిన్ను మరవకూడదు. దు:ఖంతో నిండిన రాత్రులలో కూడా, సంపూర్ణ ప్రపంచం నన్ను వంచించినా కూడా నా మనస్సులో నీ యెడల ఎలాంటి సందేహం రాకూడదు. హే ప్రభు ! నా మీద కృప ఉంచు. నా మనస్సులో నీ యెడల విశ్వాసం నమ్మకం ఎల్లప్పుడూ ఉండేలా చూడు.

आत्मत्राण Summary in English

Atma Tran is famous poem written by ‘Kaviguru’ Rabindranath Tagore. It has been translated from Bengali into English by Acharya Hajari Prasad Dwivedi.

In this poem the poet expresses his desire to overcome the hardships with his self will power. The poet does not want to be released from sorrows. He prays to God to give him strength to endure sorrows. He prays to God to fill his mind with self confidence to face difficulties fearlessly.

The poet continues his prayer : I have no complaint even if there is no one to help me. My courage must not fairly to face the problems. My courage is my helper. I do not want anyone to help me or console me. I do not want any assistance to cross the ocean of life.

AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण

The poet does not want the Lord to comfort him in every moment of difficulties. He wants to overcome the hardships with his boldness. He wants to face difficulties without fear. He does not want to forest God even in the moments of joy. He wants to remember God in every moment.

The poet says that he has no doubt in God even in times of difficulty. He prays to God to continue to have faith and devotion to God.

Salient features of the poem :

  • It is made clear how to shed fear and be free from problems.
  • One must endure suffering without any fear.
  • There is a message to have faith in God.
  • Self reliance is expressed.
  • One must recognise one’s self confidence and face problems.

AP 10th Class Hindi Sparsh 7th Lesson Questions and Answers आत्मत्राण

शब्दार्थ और टिप्पणियाँ

  • विपदा = विपत्ति/ मुसीबत, విపత్తు, సమస్య, trouble, problem
  • करुणामय =  दूसरों पर दया करने वाला, ఇతరుల పట్ల దయచూపువాడు, దయామయుడు, one who has mercy on other
  • दुःख-ताप = कष्ट की पीड़ा, బాధ, pain
  • व्यथित = दुःखी, విచారం. sad
  • सहायक = मददगार, సహాయకుడు, helper
  • पौरुष = पराक्रम, ధైర్యం, brave, courage
  • क्षय = नाश, క్షీణించుట, destruction
  • त्राण = भय निवारण / बचाव / आश्रय, రక్షణ, ఆశ్రయం. shelter
  • अनुदिन = प्रतिदिन, ప్రతిరోజు, daily
  • अनामय = रोग रहित / स्वस्थ, ఆరోగ్యం, health
  • सांत्वना = ढॉढस बัधाना, तसल्ली देना, ఓదార్పు, to console
  • अनुनय = विनय, వినయము, humility
  • नत शिर = सिर झुकाकर, తలవంచుకొని, bowed
  • दुःख रात्रि = दुःख से भरी रात, దుఃఖపూరీత రాత్రి, a sadful night
  • वंचना = धोखा देना / छलना, మోసము, cheat
  • निखिल = संपूर्ण, పూర్తి, complete
  • संशय = संदेह, సందేహము, doubt

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