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मनुष्यता AP 10th Class Hindi Sparsh 3rd Lesson Questions and Answers
प्रश्न- अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ?
కవి ఎలాంటి మరణంను మంచి మరణం అని పిలిచారు ?
उत्तर :
प्रत्येक मनुष्य समय के अनुसार मृत्यु को अवश्य प्राप्त करता है । क्योंकि यह जीवन नश्वर है। इसलिए मृत्यु से डरना नहीं चाहिए। जो व्यक्ति केवल अपने लिए जीते हैं, वे पशु के समान है। जो मनुष्य सेवा, त्याग, परोपकार और बलिदान का जीवन बिताते हैं और किसी महान कार्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, उनकी मृत्यु को सुमृत्यु कहते हैं।
ప్రతి మనిషి సమయం అనుసారంగా మృత్యువును తప్పకుండా పొందుతాడు. ఎందుకంటే ఈ జీవితం క్షణికమైనది. అందువల్ల మృత్యువుకు భయపడకూడదు. ఏ మనిషీ కేవలం తన కొరకు, తన స్వార్థం కొరకు జీవిస్తాడో అతడు పశువుతో సమానం. ఏ మనిషి సేవ, త్యాగం, పరోపకారంతో కూడిన జీవితంను గడుపుతాడో మరియు ఏదైనా గొప్ప కార్యం కొరకు తన జీవితాన్ని సమర్పిస్తాడో, అతని మృత్యువును మంచి మరణం అని పిలుస్తాము.
प्रश्न 2.
varma rara and a wadi ?
గొప్ప వ్యక్తిని ఏ విధంగా గుర్తించగలుగుతాము ?
उत्तर :
उदार व्यक्ति परोपकारी होता है। वे अपना पूरा जीवन लोकहित के लिए बिताता है। वे किसी से भेद – भाव नहीं रखता है । वे सबसे आत्मीय भाव रखता है। उदार व्यक्ति मन, वचन, कर्म से संबंधित कार्य मानव मात्र की भलाई के लिए ही करते हैं। वह स्वयं हानि उठकर भी दूसरों का हित करता है। प्रेम, भाईचारा और उदारता का भाव ही उसकी पहचान होती है।
గొప్ప వ్యక్తులు పరోపకారులు. అతను తన పూర్తి జీవితంను ప్రపంచానికి మేలు చేయడంలో గడుపుతాడు. అతనికి ఎలాంటి తారతమ్యాలు ఉండవు. అందరితో ప్రేమ, ఆత్మీయ భావంతో ఉంటాడు. గొప్ప వ్యక్తి యొక్క మనస్సు, మాట, పని ఒకే విధంగా త్రికరణ శుద్ధితో మనుషులకు మేలు చేస్తాడు. అతను స్వయంగా బాధలు ఓర్చుకుంటూ ఇతరులకు మంచి చేస్తాడు. ప్రేమ, సోదర భావం, దయాగుణం వల్ల అతన్ని గుర్తించవచ్చును.
प्रश्न 3.
कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है ?
కవి దధీచి, కర్ణుడు మొదలగు గొప్ప వ్యక్తులను ఉదాహరణ ఇచ్చి మానవత్వం కొరకు ఏమి సందేశంను ఇచ్చారు?
उत्तर :
कवि दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर त्याग और बलिदान का संदेश देता है। दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दी। कर्ण ने अपने सोने का रक्षा कवच दान दे दिया। रंतिदेव ने खुद भूखे रहकर अपना भोजन थैली दान दे दिया। राजा उशीनर ने कबूतर के लिए अपने शरीर का मांस दान में दिया। ये कथाएँ हमें संदेश देती है कि मनुष्य को इस नश्वर शरीर पर मोह को त्यागकर, दूसरों के हित चिंतन में लगा देने में ही जीवन सार्थक बन जाता है। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही होता है जो दूसरे मनुष्य के लिए अपना सर्वस्व त्याग कर देता है।
కవి దధీచి, కర్ణుడు మరియు గొప్ప వ్యక్తుల ఉదాహరణ ద్వారా త్యాగం మరియు బలిదానం యొక్క సందేశం ఇచ్చారు. దధీచి దేవతలను రక్షించుటకు తన వెన్నుముకని దానం చేసారు. కర్ణుడు తన బంగారపు రక్షాకవచంను దానం చేసారు. రంతిదేవుడు స్వయంగా ఆకలితో ఉండి అతని భోజన ప్లేటును దానం చేశారు. శిబి చక్రవర్తి పావురాన్ని రక్షించడం కొరకు తన శరీరంలోని మాంసంను దానం చేశారు.
ఈ కథలు మనకు మనిషి జీవితం క్షణభంగురమని జీవితం మీద మోహాన్ని వదలి ఇతరులకు మేలు చేయాలనే ఆలోచనతో జీవితంను సార్థకం చేసుకోవాలి అని చెబుతున్నాయి. వాస్తవంగా ఎవరైతే ఇతరుల కొరకు తమ సర్వస్వాన్ని త్యాగం చేస్తారో వారే నిజమైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు.
प्रश्न 4.
कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व – रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?
కవి ఏ పంక్తుల ద్వారా గర్వం లేని జీవితాన్ని గడపాలి అని చెబుతున్నారు ?
उत्तर :
कवि प्रस्तुत पंक्तियों में यह स्पष्ट करता है कि हमें गर्व रहित जीवन व्यतीत करने चाहिए । ईश्वर ने सुख – साधन, धन – संपत्ति आदि दिए हैं। हमें उन पर गर्व नहीं करना चाहिए। सभी मनुष्यों को समान समझना चाहिए। इस संसार में कोई अनाथ नहीं हैं, ईश्वर सबके है।
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
కవి ఈ ప్రస్తుత ఈ పంక్తుల ద్వారా మనం గర్వం లేనటువంటి జీవితాన్ని గడపాలి. పరమాత్మ సుఖసాధనాలను ధన – సంపత్తి మొదలైనవి ఇచ్చారు. మనకు వాటిపట్ల గర్వం ఉండరాదు. మనుష్యులందరూ సమానం అని అర్థం చేసుకోవాలి. ఈ ప్రపంచంలో ఎవరూ అనాథ కాదు. ఆ పరమాత్ముడు అందరికీ తోడుగా ఉంటాడు అ స్పష్టం చేశారు.
प्रश्न 5.
‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
‘మనుష్యులంతా బంధువులే’ అనే భావం నుండి ఏమి అర్థం చేసుకున్నారు? స్పష్టం చేయండి.
उत्तर :
इस कथन का अर्थ है कि सभी मानव परमात्मा के संतान है। सभी का एक पिता होने के कारण सभी आपस में एक – दूसरे के भाई और बंधु हैं। इसलिए सभी को प्रेम भावना से रहना चाहिए। आपस में सहायता करनी चाहिए। कोई पराया नहीं है। सभी एक- दूसरे के काम आना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को दुर्बल मनुष्य की पीडा दूर करने का प्रयास करना चाहिए। सभी मनुष्यों को आपसी भेदभाव भूलकर, भाईचारे के साथ रहना चाहिए ।
ఈ కథనం ద్వారా మానవులందరూ పరమాత్ముని యొక్క సంతానమే. అందరికీ తండ్రి అతనే అవ్వడం వల్ల మనమందరం ఒకరికొకరం సోదరులం మరియు బంధువులం అవుతాము. కాబట్టి మనం అందరితో ప్రేమగా మెలగాలి. పరస్పరం సహాయం చేసుకుంటూ ఉండాలి. ఎవరూ పరాయివాళ్ళు కాదు. అందరూ ఒకరు ఇంకొకరికి పనిచేస్తూ, సహాయపడుతూ ఉండాలి. ప్రతి మనిషి బలహీనుల బాధలను దూరం చేయడానికి ప్రయత్నం చేయాలి. అందరూ పరస్పరం ఎటువంటి భేదభావాలు లేకుండా సోదరభావంతో జీవించాలి.
प्रश्न 6.
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
కవి అందరూ కలిసి ఒక్కటై ముందుకు సాగాలి అని ఎందుకు ప్రేరణ కలిగించారు ?
उत्तर :
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है कि एकता में बल है। एकता से मिलकर रहने से सभी कार्य सफल होते हैं। ऊँच-नीच, वर्ग भेद, जाति भेद, धर्म भेद आदि नहीं रहता। बैर भाव समाप्त होता है। एक साथ चलने से मार्ग की विपत्तियाँ तथा विघ्न बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसलिए सभी को सबकी सहायता करते हुए, एक होकर आगे बढना चाहिए ।
కవి అందరినీ ముందుకు సాగమని ప్రేరేపించారు. ఎందుకంటే ఐకమత్యమే బలం. ఐకమత్యంతో కలిసి ఉంటే అన్ని పనులు నెరవేరుతాయి. పెద్ద, చిన్న వర్గం, జాతి, మత భేదాలు లేకుండా ఉండాలి. పరస్పర వైరభావాన్ని అంతం చేయాలి. ఒకేసారి కలిసి నడవడం వల్ల మన మార్గంలో ఆపదలు మరియు విఘ్నాలు దూరమవుతాయి. కావున అందరూ అందరికీ సహాయం చేస్తే ఒక్కటిగా ముందుకు సాగాలి.
प्रश्न 7.
व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।
ప్రతి వ్యక్తి ఎలాంటి జీవితాన్ని గడపవలెను ? ఈ కవిత ఆధారంగా వ్రాయండి.
उत्तर :
हमें ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए कि जो दूसरों के काम आए । मनुष्य को अपने स्वार्थ का त्याग करके परहित के लिए जीना चाहिए। परोपकारी और उदार व्यक्ति को यह संसार याद रखती है। मनुष्य को एक- दूसरे के बारे में भी सोचना चाहिए। तभी यह मनुष्यता कहलाती है। अतः हमें सेवा, त्याग और बलिदान का जीवन बिताना चाहिए। उदारता, सहानुभूति तथा भाईचारा की भावना मानवता ( मनुष्यता) के प्रमुख गुण हैं।
మనం ఇతరులకు ఉపయోగపడే విధంగా జీవితాన్ని గడపాలి. మనిషి తన స్వార్థాన్ని త్యాగం చేసి, ఇతరుల మేలు కొరకు జీవించాలి. పరోపకారం మరియు దయాగుణం కల వ్యక్తులను ఈ ప్రపంచం ఎల్లప్పుడూ గుర్తుంచుకుంటుంది. మనుషులు ఒకరు, ఇంకొకరి గురించి ఆలోచించాలి అప్పుడే అది మానవత్వం అనిపించుకుంటుంది. కావున మనం సేవ, త్యాగం, మరియు బలిదానంతో కూడిన జీవితంను గడపాలి. దయాగుణం, సహానుభూతి మరియు సోదర భావం మానవత్వం యొక్క ప్రముఖ గుణాలు.
प्रश्न 8.
‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?
‘మానవత్వం’ కవిత ద్వారా కవి ఏమి సందేశాన్ని ఇవ్వాలని కోరుకుంటున్నారు ?
उत्तर :
इस कविता का प्रतिपाद्य यह है कि हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। परोपकार के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहना चाहिए । जब हम दूसरों के लिए जीते हैं तभी लोग हमें मरने के बाद भी याद रखते हैं। हमें धन दौलत का घमंड नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह जीवन नश्वर है। सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है।
अतः सभी लोग आपस में भाईचारे का व्यवहार करना चाहिए । निस्वार्थ भाव से जीते हुए दूसरों के काम आते हुए, स्वयं ऊँचा उठने के साथ – साथ दूसरों को भी ऊँचा उठाना ही मनुष्यता का वास्तविक अर्थ है । कवि इस कविता में मानवता, प्रेम, एकता, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, सद्भावना और उदारता से परिपूर्ण जीवन जीने का संदेश देना चाहते हैं।
ఈ కవిత ద్వారా మనం మృత్యువుకు భయపడకూడదు. ఇతరులకు ఉపకారం చేయుట కొరకు మనం సర్వస్వాన్ని త్యాగం చేయడానికి సిద్ధంగా ఉండాలి. ఎప్పుడైతే మనం ఇతరుల కొరకు జీవిస్తామో అప్పుడు ప్రజలు మనల్ని చనిపోయిన తర్వాత కూడా గుర్తుంచుకుంటారు. మనకు డబ్బు, సంపద యొక్క గర్వం ఉండకూడదు. ఎందుకంటే ఈ జీవితం క్షణభంగురం.
మనుష్యులందరూ పరమాత్ముని యొక్క సంతానం. కావున అందరూ పరస్పరం సోదరభావంతో వ్యవహరించాలి. నిస్వార్థభావంతో జీవిస్తూ, ఇతరులకు ఉపయోగపడుతూ స్వయంగా మనం అభివృద్ధి చెందుతూ, మనతోపాటు ఇతరులను కూడా వృద్ధిలోకి తీసుకురావడమే మానవత్వం యొక్క నిజమైన అర్థం. కవి ఈ కవితలో మానవత్వం, (పేమ, ఐకమత్యం, దయ, కరుణ, ఉపకారం, జాలి, మంచి ఆలోచనలతో పరిపూర్ణ జీవితం జీవించాలని సందేశం ఇస్తున్నారు.
ख) निम्न लिखित का भाव स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 1.
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही ;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही ।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया – प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा ?
उत्तर :
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त कविता की इन पंक्तियों में सहानुभूति और परोपकार को मनुष्यता का उदात्त गुण मानते हैं। इसमें कवि ने ‘महाविभूति’ की संज्ञा दी है। कवि का मानना है कि सहानुभूति जो गुण है वह दूसरों के दुःख को अपने दुःख के रूप में देखने की प्रवृत्ति है। धरती भी इस गुण के वश हो जाती है। कवि बुद्ध की दया भावना को महत्व देते हैं। उन्होंने अपने समय की सारी परंपराओं का जबरदस्त विरोध किया था। बुद्ध के दया भाव और अहिंसा के उपदेश को समाज के अनेक वर्ग विरोध किया। मगर जो लोग विरोधी हुए थे वे भी उनकी महानता के समाने स्वयं ही झुक गए।
प्रश्न 2.
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में |
अनाथ कौन है यहाँ ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
उत्तर :
कवि कहता है कि हमें कभी भी धन का घमंड नहीं करना चाहिए। धन को घमंड में व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित और सनाथ मानने लगता है। इस दुनिया में कोई अनाथ नहीं है। तीनों लोकों का संचालक ईश्वर सबकी रक्षा तथा सहायता करता है। दयालु ईश्वर दीनबंधु है। उसके विशाल हाथ हमेशा अनाथों की सहायता के लिए होते हैं।
प्रश्न 3.
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति,
विघ्न जो पढ़ें उन्हें ढकेलते हुए ।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी ।
उत्तर :
कवि ने इन पंक्तियों में हमें संघर्ष के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी है। तुम जीवन में जिस मार्ग पर चलना चाहते हो, हँसी – खुशी से चलते जाओ। रास्ते में संकट आने पर ढकेलते हुए आगे मित्रता, मेलजोल न घटे । आपस में भिन्नता न बढाओ। मनुष्य में किसी तरह के भेदभाव या अंतर न बढाओ । सभी मत – पंथ और संप्रदाय सतर्क होकर तुर्कातीत एकता को बढाने में सहयोग देना चाहिए।
योग्यता- विस्तार
प्रश्न 1.
अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
रंतिदेव : महाराज रंतिदेव दया के स्वरूप थे। भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने उनकी दया की परीक्षा ली। राजा रंतिदेव दूसरों को कभी कष्ट में नहीं देख सकते थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया। उनके राज्य में एक बार अकाल पड गया था। तब राजा रंतिदेव ने अपना सब कुछ दान में देकर लोगों की मदद की। सारा अनाज समाप्त हो गया। राज परिवार को भी आधा पेट खाना मिलने लगा।
राजा को भी कई दिनों तक खाना न मिला था। रंतिदेव स्वयं भूखे प्यासे रहे। उनको कहीं से भोजन मिला। उन्होंने खाने के लिए भोजन हाथ में लिया था। इतने में एक ब्राह्मण अतिथि के रूप में उनके सामने आ गए। राजा ने अपना भोजन ब्राह्मण को दे दिया। बचा हुआ भोजन अपने परिवार को देना चाहा। लेकिन उसी समय एक शूद्र अतिथि याचक उनके द्वार पर आ गया। राजा ने अन्न उसको भी दे दिया। अतिथि ने अपने कुत्ते के लिए खाना माँगा। राजा ने खाना दे दिया।
पूरा खाना समाप्त हो गया था। अब राजा के पास केवल थोडा ही पानी था। उसे भी राजा ने स्वयं न पीकर दूसरे व्यक्ति को दिया था। तभी त्रिदेव उनके समक्ष प्रत्यक्ष हो गये। परीक्षा में राजा रंतिदेव का संयम धैर्य और परोपकारिता देखकर तीनों देव प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा और उनके परिवार को मोक्ष प्रदान किया। त्रिदेव ने उनका भंडार अन्न धन से भर दिया।
दधीचि : महर्षि दधीचि परोपकारी और दयालु थे। वे सदा दूसरों का हित करने के लिए तत्पर रहते थे। उन्होंने एक बार लोकहित के लिए कठोर तपस्या की। उनके तप से तीनों लोक आलोकित हो उठे। स्वर्ग के राजा इंद्र को लगा कि, महर्षि दधीचि उनका इंद्रासन छीनना चाहते थे। इसलिए उनकी तपस्या भंग करने के अनेक प्रयास किए। लेकिन विफल रहे। इंद्र स्वर्गलोक लौट गये।
एक बार वृत्तासुर ने देवलोक पर कब्ज़ा कर लिया। पराजित इंद्र और देवता मारे-मारे फिरने लगे। तब ब्रह्मा ने बताया कि वृत्तासुर का अंत महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने अस्त्र से ही संभव है। तब इंद्र ने झिझकते हुए दधीचि से उनकी अस्थियाँ माँगे। इंद्र के अनुरोध पर दधीचि महर्षि ने लोककल्याण के लिए अपना शरीर त्याग दिया। बाद में इंद्र ने उनकी अस्थियों से वज्र का आयुध बनाकर वृत्तासुर का संहार किया था। लोकहित के लिए दधीचि ने अपनी अस्थियाँ दान कर दी थी।
कर्ण : महाभारत के कर्ण शूरवीर, दानी थे। वे मित्रता, कृतज्ञता, त्याग और तपस्या के मूर्ति थे। कर्ण की माता कुंती थी। वे अर्जुन के भाई थे। कुंती को सूर्य के वरदान से पैदा हुए थे। सूर्य ने उनकी रक्षा हेतु जन्मजात कवचकुंडल प्रदान किया था। जिसके कारण उन्हें मारना कठिन था। महाभारत युद्ध में कर्ण ने दुर्योधन का साथ दिया था। कर्ण को पराजित करने के लिए कृष्ण और इंद्र ने ब्राह्मण के रूप में उनके कवच और कुंडल माँगा। यह चाल जानकर भी कर्ण ने उन्हें अपने कवच – कुंडल दान दे दिया। उन्होंने अपनी मृत्यु की भी परवाह नहीं की।
प्रश्न 2.
‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए ।
उत्तर :
परोपकार पर कविता
औरों को हसते देखो मनु,
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत कर लो,
सबको सुखी बनाओ।
जग को मानवता का पाठ पढाना ।
खुद भी मानव धर्म निभाना ।
परहित कर, सभ्य समाज बनाना ।
दुख दर्द में सबको गले लगाना।
तन – मन – धन देकर, परहित में जुटजाना ।
इस धरती पर है स्वर्ग लाना ।
दोहे :
धन रहै न जोबन रहे, रहै न गाँव न ठाँव ।
कबीर जग में जस रहे, करिदे किसी का काम ॥
स्वारथ सूका लाकडा, छाह बिहना सूल।
पीपल परमारथ भजो, सुख सागर को मूल ॥
तरवर फल नहिं खात हैं, नदी न संचै नीर |
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ||
परियोजना कार्य
प्रश्न 1.
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए, तथा कक्षा में सुनाइए ।
उत्तर :
कर्मवीर
आले को तलवार बना,
ये रोज युद्ध सा लडते हैं।
खुद का जीवन दांव पे रख
जो सब की रक्षा करते हैं।
लझित होती मानवता
जब इन पर पत्थर पडते हैं।
सम्मान योग्य खाकी वाले
अन्य कविताएँ
उनका तो भाग्य ही फूट जाता है,
जो, भाग्य पे निर्भर हो जाता है,
हाथों, माथों की रेखाओं में उलझकर,
कर्मपथ से विचलित हो जाता है। – आक्षेय
गिरकर उठना उठकर चलना
यह क्रम है संसार का
कर्मवीर को फर्क न पडता
किसी जीत या हार का
यह क्रम है संसार का।
प्रश्न 2.
भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही प्राणी है’ कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर :
प्राणी वही प्राणी है
तापित को स्निग्ध करे, प्यासे को चैन दे,
सूखे हुए अधरों को फिर से जो बैन दे,
ऐसा सभी पानी है।
लहरों के आने पर काई – सा फटे नहीं,
रोटी के लालच में तोते – सा रटे नहीं,
प्राणी वह प्राणी है।
बोले तो हमेशा सच, सच से हटे नहीं,
झूठ के डराए से हरगिज डरे नहीं,
सचमुच वहीं सच्चा है।
माथे – को फूल जैसा अपने चढ़ा दे जो,
ऊकती – सी दुनिया को आगे बढा दे जो,
मरना वही अच्छा है।
प्राणी का वैसे और दुनिया में टोटा नहीं
कोई प्राणी बडा नहीं, कोई प्राणी छोटा नहीं। — भवानी प्रसाद मिश्र
दोनों कविताओं में परोपकारी की भावना है। वे लोग मरने के बाद भी लोगों के दिलों में बसते हैं। केवल खाते – पीने के लिए अपने लिए जीना नहीं चाहिए। ईश्वर की सृष्टि में सभी प्राणी समान है कोई छोटा और बडा नहीं। अपने कर्म के अनुसार भोगना पडता है।
पद्यांश- भावार्थ
1. विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, बृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु – प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
शब्दार्थ :
विचार लो = सोच लो, ఆలోచించుకో, think
मर्त्य 、 = मृत्यु, మరణం, death
यों = ऐसे, అలా, like that
परंतु = लेकिन, కానీ, but
वृथा = बेकार, వ్యర్థం, waste
जिया = जीना, జీవించుట, to live
पशु – प्रवृत्ति = जानवरों की तरह व्यवहार, పశువు స్వభావం, animal like nature
आप – आप = अपने लिए, నీ స్వార్థం కొరకు, selfish attitude or nature
सुमृत्यु = गौरवशाली, మంచి మరణం, good death
चरे = खाए – पिए, తిని – త్రాగి, wine and dine
प्रसंग : कवि बताना चाहता है कि मनुष्य को कैसा जीवन जीना चाहिए ?
भावार्थ : कवि कहता है कि हमें यह जान लेना चाहिए कि मृत्यु का होना निश्चित है, हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोग हमें मरने के बाद भी याद रखे। जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें। उनका जीना और मरना दोनों बेकार है। मरकर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है। अपने लिए तो जानवर ही जीते हैं। कवि के अनुसार मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्य के लिए मरे या दूसरों की चिंता करें वही असली मनुष्य कहलाता है।
ప్రసంగం : మనిషి ఏ విధంగా తన జీవితం గడపాలి ? అని కవి ఈ పద్యంలో చెప్పాలనుకుంటున్నారు. భావం: మనం తెలుసుకోవాల్సింది ఏమిటంటే మరణం అనేది తథ్యం. మనం మృత్యువుకు భయపడకూడదు. మన మరణం ఎలా ఉండాలంటే మనం చనిపోయిన తర్వాత కూడా మన గురించి మంచిగా గుర్తుంచుకోవాలి. మనిషి ఇతరులకు ఎలాంటి సహాయం చేయనప్పుడు అతని పుట్టుక మరియు మరణం కూడా వ్యర్థమే.
ఎవరైతే ఇతరుల గురించి ఆలోచిస్తారో ఇతరులకు సహాయం మరణించినా కూడా ఎల్లకాలం ప్రజల హృదయాలలో సజీవంగా ఉంటారు. ఎవరైతే తన కోసం, తన స్వార్థం కోసం జీవిస్తారో వారు పశువులతో సమానము. కవి అనుసారంగా తన కోసం కాకుండా ఇతరుల గురించి ఆలోచిస్తూ బాధపడుతూ ఇతరుల బాగు కొరకు చనిపోతారో వారే నిజమైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు. వారు మరణించినప్పటికీ కూడా ప్రజల గుండెల్లో జీవించే.
2. उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती ।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती ;
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती ।
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।
शब्दार्थ :
उदार = महान, श्रेष्ठ, గొప్ప, great
बखानती = वर्णन करती, వర్ణించుట, to describe
धरा = धरती, భూమి, the earth
कृतार्थ भाव = ऋपी, आभारी, ఋణపడి ఉండుట, to owe
सजीव = जीवित, జీవించియున్న, being alive
कूजती = गूँजती, ప్రతిధ్వనించడం, to echo
समस्त = सारी, पूरी, మొత్తం, total
सृष्टि = संसार, जगत, (ప్రపంచం, world
पूजती = सम्मान करती, గౌరవిస్తుంది, to respect
अखंड आत्मभाव = सबसे आत्मीयता का भाव, ఆత్మీయ భావం, affectionate feeling,
असीम = अनंत, అనంతమైన, unlimited
विश्व = जग, విశ్వంలో, in the world
प्रसंग : कवि के अनुसार जो मनुष्य दूसरों के लिए जीते हैं उनका गुणगान युगों युगों तक याद करते हैं। भावार्थ : कवि कहता है कि जो मनुष्य अपने जीवन भर दूसरों की चिंता करता है उस महान व्यक्ति की कथा का गुण गान सरस्वती याने पुस्तकों में किया जाता है। पूरी धरती उस महान व्यक्ति की आभारी रहती है।
उस व्यक्ति की बातचीत हमेशा जीवित व्यक्ति की तरह की जाती है और पूरी सृष्टि उसकी पूजा करती है । कवि कहता है कि जो व्यक्ति पूरे संसार को अखंड भाव और भाईचारे की भावना से रहता है वह मनुष्य कहलाने योग्य होता है। सच्चा मनुष्य वही है जो सब मनुष्यों के लिए जीता – मरता है।
ప్రసంగం: ఏ మనుష్యులైతే ఇతరుల కొరకు జీవిస్తారో వారి గొప్పదనాన్ని యుగయుగాల వరకు గుర్తుంచుకుంటారు. భావం : ఏ మనిషి అయితే తన జీవితంలో ఇతరుల గురించి చింతిస్తారో ఇతరులకు సహాయం చేస్తారో అలాంటి గొప్ప వ్యక్తుల యొక్క కథలను, వాళ్ళ గొప్పదనాన్ని పుస్తకాలలో ప్రచురించడం జరుగుతుంది. భూమి కూడా అటువంటి గొప్ప వ్యక్తులకు ఋణపడి ఉంటుంది.
మనం గొప్పవాళ్ళు చనిపోయినా వాళ్ళ మంచి గురించి ఎల్లకాలం చెప్పుకుంటాము. మననం చేసుకుంటాము. ప్రపంచం మొత్తం అలాంటి వ్యక్తులను పూజిస్తుంది. అయితే ప్రపంచం మొత్తాన్ని ఎవరైతే సమాన దృష్టితో చూస్తారో విశ్వబంధుత్వ భావంతో భాత్రుత్వ భావనతో చూస్తారో వారే అసలైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు. అందరి కోసం జీవించి, అందరి కోసం చనిపోయేవారే నిజమైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు.
3. क्षुधार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर – चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे ?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ॥
शब्दार्थ :
क्षधार्त = भूख से पीडित, ఆకలితో బాధపడుతున్న, suffering from hunger
रंतिदेव = एक परम दानी राजा, దానవీరరాజు, very kind (donated) king
करस्थ = हाथ में रखा हुआ, చేతిలో ఉన్నటువoటి, kept in the hand
दधीची = एक ॠषि, ఒక ఋషి, a saint/sage
परार्थ = दूसरों के हित में, ఇతరుల మేలుకై, for the sake of others
अस्थिजाल = हड्डियों का समूह, వెన్నుముక, back bone
उशीनर = गांधार का राजा, గాంధార రాజు (శిబి), king of Gandhara
क्षितीश = राजा, రాజు, king, ruler
स्वमांस = अपने शरीर का मांस, తన శరీరంలోని మాంసం, a bit of meat from his body
सहर्ष = खुशी से, సంతోషంతో, happily
चर्म = चमडा, చర్మము, skin
अनित्य = नश्वर, శాశ్వతం కాని, temporary
देह = शरीर, శరీరం, body
अनादि जीव = अमर प्राणी, చిరస్మరణీయులు, immortal
प्रसंग : कवि ने महान दानवीर पुरुषों के उल्लेख के द्वारा मनुष्यता की महानता को परिभाषित कर रहा है। भावार्थ : कवि के अनुसार परमदानी राजा रंतिदेव तीव्र भूख से व्याकुल होते हुए भी भूखे व्यक्ति को भोजन की थाली दे देता है। दधीचि ने मानवता के हितार्थ लोककल्याण के लिए देवताओं के विजय के लिए अपनी रीढ़ की हड्डी को दान कर दिया था।
गांधार देश के राजा उशीनर एक कबूतर के प्राण बचाने के लिए अपने शरीर का मांस दान कर दिया। दानवीर कर्ण ने अपने वचन की रक्षा के लिए अपने शरीर के कवच और कुंडल भी दान कर दिए। यह संसार नश्वर है। आत्मा अमर है। मनुष्य को इस नश्वर शरीर के नष्ट होने पर भय नहीं होने चाहिए। सच्चा मनुष्य वही है जो संपूर्ण मानव जाति के लिए जीता है और मरता है।
ప్రసంగం: ఈ పద్యంలో గొప్ప దానవీరులు, గొప్ప – గొప్ప వ్యక్తుల ఉదాహరణ ద్వారా మానవత్వం యొక్క గొప్పదనంను వర్ణించారు.
భావం : కవి అనుసారంగా పరమ దానగుణం ఉన్న రాజు రంతిదేవుడు. తను తీవ్రమైన ఆకలితో ఉన్నప్పుడు ఒక భోజనం లభిస్తుంది. అది తినే సమయంలో ఆకలితో ఉన్న ఒక భిక్షగాడు అడగగానే అతను స్వయంగా ఆకలితో ఉండి, ఆ, భోజనాన్ని భిక్షగానికి దానంగా ఇస్తాడు. దధీచి అనే మహర్షి మరియు రాక్షసుల మధ్య జరిగే యుద్ధంలో ఇంద్రుని వజ్రాయుధం కొరకు లోకకళ్యాణం కొరకు తన వెన్నుముకను దానం చేస్తాడు.
దానవీర కర్ణుడు ఇచ్చిన మాట కొరకు తన శరీరంలో చర్మంతో కలిసిన కవచ కుండలాలను దానం చేస్తాడు. గాంధార రాజు శిబి చక్రవర్తి ఒక పావురాన్ని, ప్రాణాన్ని కాపాడటం కొరకు పావురం అంత బరువుతో సమానంగా తన శరీరంలోని మాంసంను దానంగా ఇస్తాడు. ఈ ప్రపంచం క్షణభంగురము. ఆత్మ శాశ్వతము. మనిషికి నాశనమయ్యే శరీరం మీద ఎందుకు ఇంత భయం ? ఎవరైతే సంపూర్ణ మానవజాతి కోసం జీవిస్తారో, మరణిస్తారో, వారే నిజమైన మనిషి అనిపించుకుంటారు.
4. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही ;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही ।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया – प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
अहा ! वही उदार है परोपकार जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।
शब्दार्थ :
सहानुभूति = दया, करुणा, దయ, కరుణ, జాలి, concern/mercy/ pity
महाविभूति = महान संपत्ति, గొప్ప సంపద, big treasure
वशीकृता = वश में करने वाला, వశ०లో ఉంచుకొనువాడు, tamer (one who grasps)
सदैव = हमेशा, ఎలప్పుడూ, always
मही = धरती, భూమి, the earth
विरुद्धवाद = खिलाफ, విరుద్ధంగా, వ్యతిరేకంగా, against
दया-प्रवाह = दया का तीव्र भाव, దయా భావం, compassion
बहा = बहता हुआ, ప్రవహిస్తున్న, flowing
विनीत = विनम्र, झुका हुआ, నమ్రతతో తలవంచుకున్న, a polite/ humble person, not proud
लाक वर्ग = लोगों को विभिन्न वर्ग, వివిధ వర్గాల ప్రజలు,different group/class of people
उदार = दयालु, గొప్ప దయాగుణం కలవాడు, who is charitable
परोपकार = दूसरों की भलाई, ఇతరుల మేలు, sake of others
प्रसंग : कवि ने महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए दया, करुणा को सबसे बडा धन बताया है। भावार्थ : कवि कहता है कि मनुष्यों के मन में दया और करुणा का भाव होना चाहिए । यही सबसे बडा धन है। पृथ्वी भी ऐसे महान लोगों के वश में हो जाती है। महात्मा बुद्ध लोक कल्याण के लिए दुनिया के नियमों के विरुद्ध चले गए। जो व्यक्ति उनके विरोधी थे, बाद में वे भी उनकी महानता, उदार और परोपकारी गुणों के सामने नतमस्तक हो गये और उनके मार्ग पर चले। सच्चा मनुष्य वही है जो अन्य मनुष्यों के काम आता है तथा सबके लिए जीता और मरता है।
ప్రసంగం : కవి మహాత్మా బుద్ధుని ఉదాహరణ ద్వారా దయ, కరుణ అనేవి అన్నింటి కంటే గొప్ప ధనంగా అభివ్యక్తపరిచారు.
భావం: మనుష్యుల మనస్సులలో దయ, కరుణ అనే భావాలు ఉండవలెను. అదే అన్నింటికన్నా పెద్ద సంపద. భూమి కూడా అలాంటి గొప్పవాళ్ళకు వశం అవుతుంది. అలాంటి గొప్పవాళ్ళు పుట్టినప్పుడు భూమి సంతోషంతో పులకరిస్తుంది. మహాత్మా బుద్ధుడు లోక కళ్యాణం కొరకు ప్రపంచంలోని కొన్ని నియమాలను వ్యతిరేకించారు.
ఏ వ్యక్తులైతే అతనిని విమర్శించారో వారే తర్వాత బుద్ధుని యొక్క గొప్పదనం, దయ, పరోపకారం, త్యాగ గుణాల ముందు తలవంచుకున్నారు. బుద్ధుని మార్గంలో నడిచారు. నిజమైన మనిషి ఇతరుల కోసం పనిచేస్తాడు మరియు ఇతరుల కోసం జీవిస్తాడు, మరణిస్తాడు.
5. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ॥
शब्दाथे :
मदांध = घमंड, గర్వము, proud
तुच्छ = बेकार, పనికిరానిది, waste/useless
वित्त = धन, ధనము, సంపద, wealth
सनाथ = जिसके पास अपनों का साथ हो, తన వాళ్ళ తోడు ఉన్నవాడు, one who have loved ones with him
गर्व = घमंड, గర్వము, proud
चित्त = हृदय, హృదయం, the heart
अनाथ = जिसका कोई न हो, అనాథ, orphan
त्रिलोकनाथ = ईश्वर, భగవంతుడు, God
दीनबंधु = ईश्वर, భగవంతుడు, Eswar (God)
दयालु = दयावान, దయావంతుడు, kind person
अतीव = अत्यधिक, అధికoగా, in the extreme
भाग्यहीन = बदकिस्मत, దురదృష్టవంతుడు, unlucky person
अधीर = व्याकुल, బాధ, sorrow
प्रसंग : कवि कहता है कि संपत्ति पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी को अनाथ नहीं समझना चाहिए। क्योंकि ईश्वर सबके साथ है।
भावार्थ : कवि कहता है कि भूलकर भी कभी संपत्ति या यश पर घमंड नहीं करना चाहिए। यह न सोचना है कि हमारे साथ घर परिवार – जन अपने साथ हैं। सोच लो कि इस संसार में कौन – सा व्यक्ति अनाथ है? ईश्वर का साथ सब पर है। ईश्वर दीनों का, गरीबों का, सहारा है, दयालु है। उसकी शक्ति बहुत अधिक है। इसलिए कोई व्यक्ति अपने को भाग्यहीन समझकर व्याकुल होने की ज़रूरत नहीं । भगवान सबका सुरक्षा और सहारा देता है। सच्चा मनुष्य तो वही है जो दूसरे मनुष्यों के काम आता है। उनके लिए जीता और मरता है।
ప్రసంగం : సంపదను చూసి ఎప్పుడూ గర్వపడకూడదు. మరియు ఎవరూ అనాథ అని బాధపడకూడదు. భగవంతుడు వారికి తోడుగా ఉంటాడు అని కవి అభిప్రాయము.
భావం : పొరపాటున కూడా ఎప్పుడూ సంపద మరియు కీర్తిని చూసి గర్వపడకూడదు. మా దగ్గర, ఇల్లు జనాలు అన్నీ ఉన్నాయి అని ఆలోచించకూడదు. అనాథ అని ఎవ్వరూ బాధపడకూడదు. ఈ ప్రపంచంలో అనాథలు ఎవరున్నారు? భగవంతుని కృప అందరి మీద ఉంది.
భగవంతుడు దీనులకు, పేదవాళ్ళకు సహాయం చేస్తాడు. దయాళుడు. మహోన్నతుడు. ఆయన శక్తి అపారమైనది. కావున ఏ వ్యక్తీ కూడా తనని దురదృష్టవంతుడు అని అనుకొని బాధపడాల్సిన అవసరం లేదు. భగవంతుడు అందరినీ రక్షిస్తాడు మరియు తోడుగా ఉంటాడు. మంచి మనిషి ఇతర మనుషులకు ఉపయోగపడతాడు. ఇతరుల కోసమే జీవిస్తాడు మరియు మరణిస్తాడు.
6. अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े – बड़े ।
परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
शब्दार्थ :
अनंत = विशाल, असीम, అంతం లేనటువంటి, endless/without boundaries
अंतरिक्ष = आकाश, ఆకాశం, the sky
समक्ष = सामने, ఎదురుగా, infront of
स्वबाहु = अपनी भुजाएँ, తన భుజాలు, his (ones) shoulders
परस्परावलंब = एक – दूसरे का सहारा, ఒకరు ఇ०కొకరిక తోడుగా, interdependence – mutually together
अमर्त्य अंक = देवता की गोद, దేవతల ఒడి, the lap of the gods
अपंक = कलंकरहित, కళంకం లేనటువంటి, untainted
या = इस तरह, ఈ విధంగా, like this in this way
चढो = चढना, ఎక్కుట, to climb
सभी = सब लोग, అందరూ, all
देव = देव गण, దేవతలు, the gods
भावार्थ : कवि कहता है कि कलंक रहित और दूसरों का सहारा बननेवाले मनुष्यों के मरने के बाद देवता भी स्वागत करते हैं।
व्याख्याः कवि कहता है कि इस अनंत आकाश में असंख्य देवगण खडे होते हैं। वे परोपकारी और दयालू लोगों को देखकर अपने बाहू फैलाकर स्वागत करते हैं। अगर तुम दूसरों का सहारा बनकर कोई बुरा काम न करने पर देवता तुम्हें अपनी गोद में ले लेंगे। इसलिए हम अपने मतलब के लिए नहीं जीना चाहिए, दूसरों का कल्याण और उद्धार करना चाहिए। सच्चा मनुष्य वही है कि जो इस मरणशील संसार में मनुष्यों का कल्याण और परोपकार करें।
ప్రసంగం : కళంకం లేనటువంటి మరియు ఇతరులకు సహాయం చేసేవారిని మరణించిన తర్వాత దేవతలు కూడా స్వాగతం పలుకుతారు.
భావం: ఈ అనంత ఆకాశంలో అసంఖ్య దేవతలు నిలబడి ఉంటారు. వారు పరోపకారి మరియు దయామయుల్ని చూసి వాళ్ళ చేతులని చాచి స్వయంగా స్వాగతం పలుకుతారు. ఒకవేళ నువ్వు ఇతరులకు తోడుగా సహాయపడుతూ ఉండి ఇతరులకు చెడుచేయకుండా ఉన్నచో దేవతలు నిన్ను తమ ఒడిలోకి తీసుకుంటారు. కాబట్టి మనం మన స్వార్థం కోసం జీవించకూడదు. ఇతరులకు మేలు మరియు సహాయం చేయాలి. నిజమైన మనిషి ఈ క్షణభంగుర ప్రపంచంలో లోకకళ్యాణం, కోసం ఉపకారి వలె ఉండవలెను. మరియు పరోపకారం చేయవలెను.
7. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है,
पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद हैं,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे,
वही मनुष्य है कि जो है कि जो मनुष्य के लिए मरे ॥
शब्दार्थ :
मनुष्य मात्र = सभी मनुष्य, నునుషులందరూ, all the human beings
बंधु = रिश्तेदार, సోదరభావంతో, with brotherhood
विवेक = समझ, ज्ञान, జ్ఞానం, knowledge
स्वयंभु = परमात्मा, భగవంతుడు, the God
फलानुसार = परिणाम के अनुसार, కర్మ అనుసారంగా, according to karma
बाह्य भेद = बाहरी अंतर, పైకి కనబడే తారతమ్యాలు, differences showing outside
अंतरैक्य = आत्मा की एकता, ఆత్మ యొక్క ఏకత్వం, oneness of the soul
प्रमाण भूत = साक्षी, సాక్షి, evidence
अनर्थ = पाप, పాపం, sin
व्यथा हरे = कष्ट दूर करे, కష్టం దూరం చేయుట, moving away the difficult
प्रसंग : हम सब एक ईश्वर की संतान हैं। अतः हम सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई – बंधु हैं।
भावार्थ : कवि कहता है कि प्रत्येक मनुष्य एक- दूसरे के भाई – बंधु हैं। पुराणों के अनुसार सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं। विविध बाहरी कारणों के फलानुसार मनुष्य के कर्म अलग- अलग होते हैं। परंतु हमारे वेद इस बात के साक्षी है कि आंतरिक ष्टि से सभी की आत्मा एक है कोई व्यक्ति अपने बंधु का कष्ट न हरे तो यह बडा पाप है। उसका जीना व्यर्थ है। मनुष्य वही है जो अन्य मनुष्यों के लिए जीता है और मरता है।
ప్రసంగం : మనమందరం ఈ భగవంతుని సంతానము. కావున మన మనుష్యులందరం ఒకరు – ఇంకొకరితో సోదరభావంతో మెలగాలి.
భావం : ప్రతి మనిషి ఒకరికొకరు సోదరభావంతో ఉండాలి. పురాణాల అనుసారంగా మనుషులందరూ ఆ భగవంతుని సంతానమే. పరమాత్మ నుండి ఈ జీవాత్మ ఉద్భవించినది. వివిధ కర్మల ఫలితంగా మనుషులలో తారతమ్యాలు ఉండవచ్చును. కానీ మన వేదాల సాక్ష్యం ఆధారంగా ఆంతరికంగా అందరిలో ఉండే ఆత్మ ఒక్కటే. ఏ వ్యక్తీ తమ బంధువుల కష్టాలలో చేయి అందించరో అది మహా పాపం. అతను జీవించడం వ్యర్థం. ఎవడైతే ఇతర మనుష్యుల కొరకు జీవిస్తాడో, మరణిస్తాడో అతనే మనిషి అనిపించుకుంటాడు.
8. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विम्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाब है कि तारता हुआ तरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
शब्दार्थ :
अभीष्ट = इच्छित, మన ఇష్టానుసారంగా ఎంచుకున్న, according to our wish
मार्ग में = रास्ता, पथ में, దారిలో, on the way
सहर्ष = खुशी से, సంతోషంతో, happily
विपत्ति = संकट, ఆట०కాలు, obstacles
विघ्न = बाधा, కష్టాలు, difficulties
ढकेलते हुए = दूर फेंकते हुए, తోసేస్తూ, నెట్టేస్తూ, pushing away
न घटे = न घटते हुए, తగ్రకుండా, don’t let go
हेलमेल = मेलजोल, కలసిమెలిసి, together
भिन्नता = अलगाव, విడిగా ఉంచడం, keep separately
अतर्क = तर्क से परे, తారతమ్యాలు లేకుండా, without comparisons
पंथ = मार्ग, దారి, way
सतर्क = सावधान यात्री, మంచి బాటసారిగా, like a good traveller
समर्थ = संभव, సమర్థంగా, perfectly
तारता = उद्धार करता हुआ, ఉద్ధరిస్తూ, helping to develop
तरे = चले, ముందుకు సాగడం, moving forward
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए लक्ष्य पथ की ओर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी है।
भावार्थ : कवि कहता है कि मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग पर हँसी – खुशी चलना चाहिए। रास्ते में कोई भी संकट, बाधाएँ आएँ तो उन्हें हटाते हुए आगे बढना चाहिए। तुम्हारा आपसी मेलजोल न घटे, मित्रता और एकता का भाव कम न हो सके । आपस की भिन्नता में वृद्धि न होना है। मनुष्य में वर्ग, जाति, रंग, रूप, प्रांत, देश आदि के अंतर न बढने देना चाहिए। सभी लोग बिना किसी तर्क-वितर्क से एकता के साथ आगे बढना चाहिए । मनुष्य दूसरों की उन्नति और सहयोग के साथ अपना उद्धार करें। जन कल्याण करते आगे बढना है। वही मनुष्य कहलाता है जो दूसरों के कष्टों की चिंता करता है और उनके काम आता है।
ప్రసంగం : ప్రస్తుత పద్యం ద్వారా కవి సంఘర్షణపూర్ణ జీవితం గడుపుతూ లక్ష్యం అనే దారి వైపు ముందుకు వెళ్ళాలని ప్రేరేపిస్తున్నారు.
భావం : మనిషి తన ఇష్టానుసారంగా ఎంచుకున్న దారిలో నవ్వుతూ, సంతోషంతో ముందుకు సాగిపోవాలి. దారిలో ఏమైనా సమస్యలు, బాధలు, ఆటంకాలు వస్తే వాటిని దాటుకుంటూ ముందుకు సాగిపోవాలి. అందరితో పరస్పరం కలిసిమెలిసి ఉండాలి. ఎవరితో ఎలాంటి భేదభావాలు లేకుండా ముందుకు సాగాలి. మనుషులలో వర్గం, జాతి, రంగు, రూపం, ప్రాంతం, దేశం అనే తారతమ్యాలు లేకుండా ముందుకు సాగాలి.
అందరూ ఎలాంటి తర్క – వితర్కం లేకుండా ఐకమత్యంతో ముందుకు సాగిపోవాలి. మనిషి ఇతరుల అభివృద్ధి మరియు సహకారంతో పాటు అతను కూడా జీవితంలో విజయంను సాధించాలి. అందరికీ మేలు చేస్తూ ముందుకు సాగిపోవాలి. ఎవరైతే ఇతరుల కష్టాలను చూసి కృంగిపోతారో మరియు వారికి చేతనైన సహాయం చేస్తారో వారే నిజమైన మనుష్యులు.
व्याकरणांश (వ్యాకరణాంశాలు)
पर्यायवाची शब्द
- मृत्यु – मरण, निधन
- असीम – अनंत, विशाल
- वृथा – बेकार, व्यर्थ
- देह – शरीर, तन
- सृष्टि – संसार, जगत, दुनिया
- धरा – पृथ्वी, भूमि,मही, धरती
- अनंत – विशाल, असीम
- अनर्थ – बुरा, पाप
- समस्त – पूरी, सभी
- त्रिलोकनाथ – भगवान, परमात्मा
- प्रमाण – साक्षी, गवाह
- पथ – मार्ग, रास्ता
- उदार – विशाल, महान
- अंतरिक्ष – आकाश, नभ, वायुमंडल
- अभीष्ट – लक्षित, वांछित, इच्छित
वचन
- हड्डी – हड्डियाँ
- कथा – कथाएँ
- बाधा – बाधाएँ
- साथी – साथियाँ
- एक – अनेक
- पंक्ति – पंक्तियाँ
- थाली – थालियाँ
- कृत्ति – कृतियाँ
- भुज – भुजाएँ
- चिंता – चिंताएँ
- पुरुष – पुरुष
- खुशी – खुशियाँ
- देवता – देवताएँ
- चीज – चीजें
विलोम शब्द
- धरती × आकाश’
- पूरा × अधूरा
- परेशान × खुशी
- असली × नकली
- त्याग × स्वार्थ
- जीना × मरना
- भाग्यवान × भाग्यहीन
- सामनें × पीछे
- चिंता × निश्चिंता
- योग्य × अयोग्य
- जन्म × मृत्यु
- शाश्वत × नश्वर
- धन × निर्धन
- अमीर × गरीब
- असली × नकली
- अंत × अनंत
- हमेशा × कभी-कभी
- जीवन × मरण
- एकता × भिन्नता
- डर × निडर
- सुख × दुःख
- अनाथ × सनाथ
- मनुष्य × जानवर
लिंग बदलिए
- कवि – कवइत्री
- भाई – बहन
- देव – देवी
- वीर – वीरांगना
- राजा – रानी
- पिता – माता
- नर – नारी
- साधु – साध्वी
- बाप – माँ
संधि विच्छेद
- परोपकार – पर + उपकार
- निश्चित – निः + चित
- प्रत्येक – प्रति + एक
- नि:स्वार्थ – नि: + स्वार्थ
- परमात्मा – परम + आत्मा
- सदैव – सदा + एव
संधि विच्छेद
उपसर्ग
- दुर्व्यवहार – दुर
- अभीष्ट – अभि
- प्रवृत्ति – प्र
- सम्मान – सम्
- परोपकार – पर
- अतुल – अ
- सद्भाव – सत्
- सुमृत्यु सु
- सतर्क – स
- सहयोगं – सह
- निडर – नि
- अनाथ – अ
प्रत्यय
- बाहरी – ई
- अपनापन – पन
- मानवीय – ईय
- दर्शनीय – ईय
- उदारता – ता
- भिन्नता – ता
- एकता – ता
- सहायता – ता
- ज़रूरतमंद – मंद
- अविस्मरणीय – ईय
- मनुष्यता – ता
- बौद्धिक – इक
- अलगाव – आव
- मनुषत्व – त्व
कवि परिचय – కవి పరిచయం
1886 में झाँसी के करीब चिरगाँव में जन्म मैथिलीशरण गुप्त अपने जीवनकाल में ही राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए। इनकी शिक्षा दीक्षा घर पर ही हुई। संस्कृत, बांग्ला, मराठी और अंग्रेज़ी पर इनका समान अधिकार था।
गुप्त जी रामभक्त कवि है। राम का कीर्तिगान इनकी चिरसंचित अभिलाषा रही। इन्होंने भारतीय जीवन को समग्रता में समझने और प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया। गुप्त जी की कविता की भाषा विशुद्ध खड़ी बोली है। भाषा पर संस्कृत का प्रभाव है। काव्य की कथावस्तु भारतीय इतिहास के ऐसे अंशों से ली गई है जो भारत के अतीत का स्वर्ण चित्र पाठक के सामने उपस्थित करते हैं। गुप्त जी की प्रमुख कृतियाँ हैं – साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध। गुप्त जी के पिता सेठ रामचरण दास भी कवि थे और इनके छोटे भाई सियारामशरण गुप्त भी प्रसिद्ध कवि हुए।
1886లో ఝాన్సీకి దగ్గరలో ఉన్న చిరగావ్లో జన్మించిన మైథిలీ శరణ్ గుప్త గారు తన జీవిత కాలంలో రాష్ట్రకవి (దేశభక్త కవి) గా ప్రసిద్ధి చెందారు. ఆయన ఇంటి దగ్గరే చదువుని కొనసాగించారు. సంస్కృతం, బంగాలీ, మరాఠీ మరియు ఇంగ్లీషు మీద ఆయనకు సమాన పట్టు ఉంది. గుప్తీ రామభక్త కవి. రాముని కీర్తనలు చేయాలని ఆయన చిరకాల వాంఛ. భారతీయ జీవితాన్ని సమగ్రంగా అర్థం చేసుకున్నారు మరియు ఆయన కవితలలో ప్రదర్శించడానికి చాలా ప్రయత్నించారు.
గుప్త యొక్క కవితా భాష శుద్ధమైన ఖడీబోలీ (హిందీ) భాషలో ఉండేది. ఈయన భాష మీద సంస్కృత భాష ప్రభావం చాలా ఉంది. ఈయన కావ్యాలలోని కథ భారతీయ చరిత్రలో నిర్లక్ష్యం చేసిన కొన్ని అంశాల నుండి తీసుకునేవారు. దానివల్ల భారతదేశం యొక్క ప్రాచీనకాలం నాటి సువర్ణ చిత్రాన్ని (గొప్పదనాన్ని) పాఠకుల ముందుకు తీసుకువచ్చేవారు. గుప్తోజీ గారి ప్రముఖ రచనలు సాకేత్, యశోధర, జయద్రథ్ వధ్ మొదలైనవి. గుప్త గారి తండ్రిగారు సేఠ్ రామచరణ్ దాస్ గారు కూడా గొప్ప కవి మరియు ఈయన చిన్న సోదరుడు సియారామ్ శరణ్ గుప్త గారు కూడా ప్రసిద్ధ కవిగా పేరుగాంచారు.
पाठ प्रवेश – పాఠ్య ప్రవేశం
प्रकृति के अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में चेतना : शक्ति की प्रबलता होती ही है। वह अपने ही नहीं औरों के हिताहित का भी खयाल रखने में, औरों के लिए भी कुछ कर सकने में समर्थ होता है। पशु चरागाह में जाते हैं, अपने अपने हिस्से का चर आते हैं, पर मनुष्य ऐसा नहीं करता। वह जो कमाता है, जो भी कुछ उत्पादित करता है, वह औरों के लिए भी करता है, औरों के सहयोग से करता है।
प्रस्तुत पाठ के कवि अपनों के लिए जीने मरने वालों को मनुष्य तो मानता है लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है कि ऐसे मनुष्यों में मनुष्यता के पूरे – पूरे लक्षण भी हैं। वह तो उन मनुष्यों को ही महान मानेगा जिनमें अपने और अपनों के हित चिंतन से कहीं पहले और सर्वोपरि दूसरों का हित चिंतन हो। उसमें वे गुण हों जिनके कारण कोई मनुष्य इस मृत्युलोक से गमन कर जाने के बावजूद युगों तक औरों की यादों में भी बना रहा पाता है। उसकी मृत्यु भी सुमृत्यु हो जाती है। आखिर क्या हैं वे गुण?
ప్రకృతి యొక్క మిగతా ప్రాణులతో పోల్చినట్లయితే మనిషిలో చేతనా శక్తి ప్రబలంగా ఉంటుంది. అతను తన గురించే కాకుండా ఇతరుల మంచి చెడులను కూడా దృష్టిలో ఉంచుకొని ఇతరుల కొరకు ఏదైనా సహాయం చేయడానికి సంసిద్ధంగా ఉంటారు. పశువులు పచ్చికబయళ్ళలోకి వెళ్ళి వాటికి తగినంత భాగాన్ని మేసి వస్తాయి కానీ మనిషి అలా కాదు. అతను ఏమి సంపాదించినా ఏమి ఉత్పత్తి చేసినా, దానిని ఇతరుల కొరకు కూడా చేస్తాడు. ఇతరుల యొక్క సహకారంతో చేస్తాడు.
ప్రస్తుత పాఠంలో కవి తన వారి కొరకు జీవించి, చనిపోయే వారిని మనిషి అని నమ్ముతారు. కానీ ఇది ఒప్పుకొనుటకు తయారుగా లేరు ఏమిటంటే అలాంటి మనుషులలో మానవత్వం యొక్క పూర్తి లక్షణం కూడా ఉంది. ఎవరిలో తన మరియు తన వాళ్ళ కొరకు మంచి ఆలోచనతో అందరికంటే ముందు ఇతరుల మేలు కొరకు ఆలోచిస్తారో అలాంటి మనుషులను కవి గొప్పవారు అని నమ్ముతారు. ఆ గుణాలు ఉండటం కారణంగా ఏ మనిషైనా ఈ మృత్యులోకం నుండి తిరిగి వెళ్ళిన తర్వాత యుగాల వరకు ఇతరులు తలంపులలో (ఆలోచనలలో) నిలిచిపోతాడో అతని మృత్యువు సంస్మరణ అవుతుంది. చివరికి ఆ గుణాలు ఏమిటో చూద్దాం !
मनुष्यता Summary in Telugu
మొదటి పద్యంలో కవి మనం ఏ విధంగా జీవితంను గడపాలో చెబుతున్నారు. మనకు మరణం అనేది తథ్యం. మృత్యువుకు ఎప్పుడూ భయపడకూడదు. మన మరణం ఎలా ఉండాలంటే మనం చనిపోయిన తర్వాత కూడా మన గురించి గొప్పగా చెప్పుకోవాలి. మనిషి ఇతరులకు సహాయం చేయనప్పుడు అతని పుట్టుక మరియు మరణం కూడా వ్యర్థమే. ఎవరైతే ఇతరుల గురించి ఆలోచించి, ఇతరులకు సహాయం చేయడం కొరకు జీవిస్తారో వారు మరణించినా కూడా ఎల్లకాలం ప్రజల హృదయాలలో సజీవంగా ఉంటారు.
ఎవరైతే తన కోసం, తన స్వార్థం కోసం జీవిస్తారో వారు పశువులతో సమానం. కవి అనుసారంగా ఎవరైతే తన కొరకు కాకుండా, ఇతరుల గురించి ఆలోచిస్తూ, బాధపడుతూ, ఇతరుల బాగు కొరకు చనిపోతారో వారే నిజమైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు. వారు మరణించినప్పటికీ కూడా ప్రజల హృదయాలలో జీవించే ఉంటారు. రెండవ పద్యంలో కవి ఏ మనుష్యులైతే ఇతరుల కొరకు జీవిస్తారో వారి గొప్పదనాన్ని యుగయుగాల వరకు గుర్తుంచుకుంటారు అని చెబుతున్నారు.
ఏ మనిషి అయితే తన జీవితంలో ఇతరుల గురించి చింతిస్తారో, ఇతరులకు సహాయం చేస్తారో అలాంటి గొప్ప వ్యక్తుల కథలను, వాళ్ళ గొప్పదనాన్ని, పుస్తకాలలో ప్రచురించడం జరుగుతుంది. భూమి కూడా అటువంటి గొప్ప వ్యక్తులకు ఋణపడి ఉంటుంది. మనం గొప్పవాళ్ళు చనిపోయినా వాళ్ళ మంచి గురించి ఎల్లకాలం చెప్పుకుంటాము. మననం చేసుకుంటాము.
ప్రపంచం మొత్తం అలాంటి వ్యక్తులను పూజిస్తుంది. ఏ వ్యక్తి అయితే ప్రపంచం మొత్తాన్ని సమాన దృష్టితో చూసి, విశ్వబంధుత్వ భావంతో అందరినీ భాత్రుత్వ భావనతో చూస్తారో వారే అసలైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు. అందరి కోసం జీవించి, అందరి కోసం చనిపోయేవారే నిజమైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు.
మూడవ పద్యంలో గొప్ప దానవీరులు, గొప్పగొప్ప వ్యక్తుల ఉదాహరణ ద్వారా మానవత్వం యొక్క గొప్పదనాన్ని వర్ణించారు. పరమ దానగుణం ఉన్న రంతిదేవుడు తను తీవ్రమైన ఆకలితో ఉన్నప్పుడు ఒక భోజనం లభిస్తుంది. అది తినే సమయంలో ఆకలితో ఉన్న ఒక భిక్షగాడు అడుగగానే అతను స్వయంగా ఆకలితో ఉండి ఆ భోజనాన్ని భిక్షగాడికి దానం చేస్తాడు. వృత్తాసురుడు అనే రాక్షసుడు స్వర్గం పైకి దండెత్తి ఇంద్రుని వజ్రాయుధంను ఇరగగొట్టి ఇంద్రుణ్ణి ఓడించి స్వర్గాన్ని ఆక్రమిస్తాడు. దేవతల కోరిక మేరకు, లోకకళ్యాణం కోసం దధీచి మహర్షి తన వెన్నుముకను దానం చేసి ప్రాణంను వదిలేస్తాడు.
దానవీర కర్ణుడు కూడా ఇచ్చిన మాటకోసం తన శరీరంలో చర్మంతో కలిసిన కవచ కుండలాలను దానం చేస్తాడు. గాంధార రాజు శిబిచక్రవర్తి పావురం ప్రాణాన్ని కాపాడటం కోసం దాని బరువంత తన మాంసంను దానంగా ఇస్తాడు. ఈ ప్రపంచం క్షణభంగురము. ఆత్మ శాశ్వతము. మనిషికి నాశనమయ్యే, అంతమయ్యే ఈ శరీరం కోసం ఎందుకు ఇంత భయం ? ఎవరైతే సంపూర్ణ మానవజాతి కొరకు జీవిస్తారో, మరణిస్తారో వారే నిజమైన మనిషి అనిపించుకుంటారు.
నాల్గవ పద్యంలో కవి మహాత్మా బుద్దుని ఉదాహరణ ద్వారా దయ, కరుణ అనేవి అన్నింటికంటే గొప్పధనంగా అభివ్యక్తపరిచారు. మనుష్యుల మనస్సులలో దయ, కరుణ అనే భావాలు ఉండవలెను. అదే అన్నింటికన్నా పెద్ద సంపద. భూమి కూడా అలాంటి గొప్పవాళ్ళకు వశం అవుతుంది. అలాంటి గొప్పవాళ్ళు పుట్టినప్పుడు భూమి కూడా సంతోషంతో పులకరించిపోతుంది.
మహాత్మా బుద్ధుడు లోక కళ్యాణం కొరకు ప్రపంచంలోని కొన్ని నియమాలను వ్యతిరేకించారు. ఏ వ్యక్తులైతే అతనిని విమర్శించారో వారే తర్వాత బుద్ధుని యొక్క గొప్పదనం, దయ, పరోపకారం, త్యాగ గుణాల ముందు తలవంచుకున్నారు. బుద్ధుని మార్గంలో నడిచారు. నిజమైన మనిషి ఇతరుల కోసం పనిచేస్తాడు. మరియు ఇతరుల కోసం జీవిస్తాడు, మరణిస్తాడు. ఐదవ పద్యంలో సంపదను చూసి గర్వపడకూడదు. పరోపకారమే మనిషి యొక్క శ్రేష్ఠ గుణము అని చెబుతున్నారు.
పొరపాటున కూడా సంపదలు మరియు కీర్తిని చూసి గర్వపడకూడదు. నా దగ్గర ఇల్లు పరివారం అన్నీ ఉన్నాయి అని ఆలోచించకూడదు. అనాథ అని ఎవ్వరూ బాధపడకూడదు. ఆలోచిస్తే ఈ ప్రపంచంలో అనాథలు ఎవరున్నారు ? భగవంతుని కృప అందరి మీద ఉంది.
భగవంతుడు దీనులకు, పేదవాళ్ళకు సహాయం చేస్తాడు. దయాళుడు, మహోన్నతుడు. ఆయన శక్తి అపారమైనది. కావున ఏ వ్యక్తీ కూడా తను దురదృష్టవంతుడను అని బాధపడాల్సిన అవసరం లేదు. భగవంతుడు అందరినీ రక్షిస్తాడు. భగవంతుని దృష్టిలో అందరూ సమానమే. భగవంతుడు అందరికీ తోడుగా ఉంటాడు. మంచి మనిషి ఇతర మనుషులకు ఉపయోగపడతాడు. ఇతరుల కోసమే జీవిస్తాడు, మరణిస్తాడు.
ఆరవ పద్యంలో కళంకం లేనటువంటి మరియు ఇతరులకు సహాయం చేసేవారిని మరణించిన తర్వాత దేవతలు కూడా స్వాగతం పలుకుతారు.ఈ అనంత ఆకాశంలో అసంఖ్య దేవతలు నిలబడి ఉంటారు. వారు పరోపకారి మరియు దయామయుల్ని చూసి వాళ్ళ చేతులను చాపి స్వయంగా స్వాగతం పలుకుతారు.
ఒకవేళ నువ్వు ఇతరులకు తోడుగా ఉండి సహాయపడుతూ, ఇతరులకు చెడు చేయకుండా ఉన్నచో దేవతలు నిన్ను తమ ఒడిలోకి తీసుకుంటారు. కాబట్టి మనం మన స్వార్థం కోసం జీవించకూడదు. ఇతరులకు మేలు మరియు సహాయం చేయాలి. నిజమైన మనిషి ఈ క్షణభంగుర ప్రపంచంలో లోకకళ్యాణం కోసం ఉపకారి వలె ఉండవలెను.
ఏడవ పద్యంలో, కవి మనమందరం భగవంతుని సంతానం కావున మనుష్యులందరూ ఒకరు ఇంకొకరితో సోదర భావంతో మెలగాలి అని చెబుతున్నారు.పురాణాల అనుసారంగా మనుషులందరూ ఆ భగవంతుని సంతానమే. పరమాత్మ నుండి ఈ జీవాత్మ ఉద్భవించినది. వివిధ కర్మల ఫలితంగా మనుషులలో తారతమ్య భేదాలు ఉండవచ్చును. కానీ మన వేదాల సాక్ష్యం ఆధారంగా ఆంతరికంగా అందరిలో ఉండే ఆత్మ ఒక్కటే.
ఏ వ్యక్తి అయితే తమ బంధువుల కష్టాలలో చేయి అందించరో అది మహాపాపం. అతను జీవించడం వ్యర్థం. ఎవరైతే ఇతర మనుషుల కొరకు జీవిస్తారో, మరణిస్తారో వారే నిజమైన మనుషులు అనిపించుకుంటారు. ఎనిమిదవ పద్యంలో కవి సంఘర్షపూర్ణ జీవితం గడుపుతూ లక్ష్యం అనేదారి వైపు ముందుకు వెళ్ళాలని ప్రేరేపిస్తున్నారు.
మనిషి తన ఇష్టానుసారంగా ఎంచుకున్న దారిలో నవ్వుతూ, సంతోషంతో ముందుకు సాగిపోవాలి. దారిలో ఏమైనా సమస్య, బాధలు, ఆటంకాలు వస్తే వాటిని దాటుకుంటూ ముందుకు సాగిపోవాలి. అందరితో పరస్పరం కలిసిమెలిసి ఉండాలి. ఎవరితో ఎలాంటి భేదభావాలు లేకుండా ముందుకు సాగిపోవాలి.
మనుషులలో వర్గం, జాతి, రంగు, రూపం, ప్రాంతం, దేశం అనే తారతమ్యాలు లేకుండా ముందుకు సాగాలి. అందరూ ఎలాంటి తర్కం, విత్కరం లేకుండా ఐకమత్యంతో ముందుకు సాగిపోవాలి. మనిషి ఇతరుల అభివృద్ధి మరియు సహకారంతో పాటు అతను కూడా జీవితంలో విజయంను సాధించాలి. అందరికీ మేలు చేస్తూ ముందుకు సాగిపోవాలి. ఎవరైతే ఇతరుల కష్టాలను చూసి కృంగిపోతారో మరియు వారికి చేతనైన సహాయం చేస్తారో, వారే నిజమైన మనుష్యులు.
मनुष्यता Summary in English
In this poem, the poet conveys the real qualities of man. Those who think about others earlier than him are great. They must offer themselves for the good of others. If it is not so, their existence is useless. Human beings are the only wise creatures among all living beings. Man’s end must be such that he must be remembered by all even after
death. One must not be afraid of death. The generous man is always praised. A person who thinks about others is said to be a real man. Mythological heroes like Ranti Deva, Karna and King Sibi were remembered till now because of their sacrifices. The real man is one who is endowed with the quality of sacrifice.
He must have kindness and compassion. He must live and die for others. There are no orphans in this world. All are the children of God. There must be no discrimination. People of helping nature are welcomed by God. The vedas are the proof of this truth. All the spirits of human beings are one and the same. Diversity is confined to wordly tasks.
All human beings are brothers. The man who helps others in their difficulties is a man in the real sense. Man must overcome obstacles and difficulties and continue to move forward. People must develop good understanding and the sense of brotherhood towards one another.
Salient features of the poem :
- The noble qualities of human beings are brought out in the poem
- They are humanity, love, unity, kindness, compassion and philanthropy.
शब्दार्थ और टिप्पणियाँ
मर्त्य = मरणशील, మరణించే, mortal
पशु – प्रवृत्ति = पशु जैर, स्वभाव, జంతు స్వభావము, animal nature
उदार = दानशील / सहदय, దాతృత్వము, kind hearted
कृतार्थ = आंभारी / धन्य, కృతజ్ఞత, thankful/gratitude
कीर्ति = यश, కీర్తి, fame
कूजती = मधुर ध्वनि करती, మధుర ధ్వని, sweet sound
क्षुधार्त = भूख से व्याकुल, ఆకలితో విలవిలలాడు (అలమటించు), holding with hunger
रंतिदेव = एक परम दानी राजा, ఉదారమైన రాజు, generous king
करस्थ = हाथ में पकड़ा हुआ/ लिया हुआ, చేతిలోనున్న, in hand
दधीचि = एक प्रसिद्ध ॠषि जिनकी हड्डियों से इंद्र का वज्र बना था, వజ్రాయుధం కొరకు తన
ఎముకలను దానమిచ్చిన మహర్షి, A famous saint who gave his bones for Vajrayudh weapon
परार्थ = जो दूसरों के लिए हो, ఇతరుల కొరకు, which for others
अस्थिजाल = हड्डियों का समूह, ఎముకల గూడు, bones
उशीनर = गंधार देश का राजा, గాంధార దేశ రాజు, Gandhara’s king
क्षितीश = राजा, రాజు, పాలకుడు, king, ruler
स्वमांस = अपने शरीर का मांस, తన శరీర మాంసం, self meat
कर्ण दान देने के लिए प्रसिद्ध कुंती पुत्र, దానం చేయుటలో (పరిద్ధుడు – కుంతీ పుతుడు, Kunti’s son who is famous for donations (karna)
महाविभूति= बड़ी भारी पूँजी, అతి పెద్ద ధనం, Big asset
वशीकृता= वश में की हुई, వశపరచుకున్న, tamed
विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा = बुद्ध ने करुणावश उस समय की पारंपरिक मान्यताओं का विरोध किया था, గౌతమబుద్ధుడు తన కరుణ, పేమతో ఆనాటి సాంప్రదాయ విశ్వాసాలను తిరస్కరించాడు, that time Mahatma buddha opposed the traditional beliefs
मदांध = जो गर्व से अंधा हो, గర్వంతో అంధుడు, blind by pride
वित्त = धन – संपत्ति, సిరిసంపదలు, finance
परस्परावलंब = एक – दूसरे का सहारा, పరస్పర సహకారం, support with each other
अमर्त्य – अंक = देवता की गोद, దేవుని ఒడి, god’s lap
अपंक = कलंक – रहित, నిష్కళంక, Blemish free
स्वयंभू = परमात्मा / स्वयं उत्पन्न होनेवाला, పరమాత్ముడు, స్వయంగా ఉద్భవించినవాడు, self arise
अंतरैक्य = आत्मा की एकता/अंतःकरण की एकता, ఆత్మసेక్షి ఐక్ృత, unity of soul
प्रमाणभूत = साक्षी, సాక్షి, witness
अभीष्ट = इच्छिंत, కోరుకున్న, wanted
अतर्क = तर्क से परे, తర్కాని మించి, beyond reason
सतर्क पंथ = सावधान यात्री, జాగ్రత్తపరుడైన యాత్రికుడు, a careful traveller